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इकयावन उतकष गजल

(पत-पितकाओ व वबसाइटस म पकिशत)

— शाइर —

महावीर उतराचली

उतराचली सािहतय ससथान बी-४/७९, पयरटन िवहार,

वसनधरा एनकलव, िदलली –११००९६

USBN 06-2020-004-64

इकयावन उतकष गजल (51 Utkrisht Ghazlen)

कॉपीराइट: महावीर उतराचली (Mahavir Uttranchali)

आवरण / समपरण िचत : सोबन िसह (Soban Singh)

२०२० पथम ससकरण

पकाशक: उतराचली सािहतय ससथान बी-४/७९, पयरटन िवहार,वसनधरा एनकलव, िदलली –११००९६

कीमत: अनमोल

दो शबद

'इकयावन उतकष गजलो' क साथ खाकसार गजल पिमयो क बीच म पनःहािजर ह। इसस पवर म 'इकयावन रोमािटक गजलो' क साथ पसतत हआथा। िहनदी सािहतय हो या उदर अदब की िखदमत गद-पद क कत म मरीसािहतय याता लगभग 35 वषो स अनवरत जारी ह।

इन गजलो म पम स हटकर बात कहन की कोिशश की गई ह।भारतीय समाज म होती उथल-पथल, राजनितक, सामािजक, आिथकहर सतर पर िगरता मानवता का गाफ िचितत करन की कोिशश की ह।कछ गजल अना हजार आनदोलन क दौरान कही तो कछ उसी आनदोलनस उपजी राजनितक पाटी आम आदमी क कायरकतार की हिसयत स कही।उन िदनो कजरीवाल जी दवता िदखाई पडत थ। लगता था समाज मबडा बदलाव लाएग! िनराशा ही हाथ लगी। वो भी उनही हथकणडो कोअपनान लग, िजस पर भारतीय राजनीित कई दशको स चली आ रहीह। मा सरसवती न मझ जो सजन शिक दी उसक अनसार म जो कछसजन कर सका उसक िलए, म मा वाणी को शत-शत नमन करता ह। बडशाइर या किव होन का दावा मन कभी नही िकया। य िनणरय काल परह। वो ही समसत सािहतय को अपनी कसौटी म कसता ह और जो उसकअनरप नही होता वह कालानतर म जाकर सवयमव नष हो जाता ह।

( 5 )

िफर भी एक शाइर/किव होन क नात म खद को उसी खानदान का पाताह। किवयो, शा'इरो की कोई जात-धमर-मजहब नही होता। व सिदयो ससमाज का धवज बलनदी स उठाय, शबदो क माधयम स अपन-अपन यगका पितिनिधतव करत ह। उनम स कछ नाम मर इस दोह म उभर कआय ह:—

गजल कह तो म असद, मझम बसत मीर दोहा जब कहन लग, मझम सत कबीर

मरी इन उतकष गजलो म, “जो ववसथा भष हो....” को आमआदमी पाटी क नककड नाटको म सडक पर पाटी कायरकतारओ न बडउतसाह स बोला ह:—

इकलाबी दौर को, तजाब दो जजबात काआग यह बदलाव की, हर वक जलनी चािहए

रोिटया ईमान की, खाए सभी अब दोसतोदाल भषाचार की, हरिगज न गलनी चािहए

य दोनो शर बहद मशहर हए ह। कछ को म िविभन मचो क माधयम सपसतत कर चका ह। अनक पत-पितकाओ और वबसाइटस पर इनकापकाशन हआ ह। अनक सकलनो म मरी गजलो को सथान िमला ह। इसकिलए सभी गनी समपादको, सािहतयकारो व सािहतयपिमयो का आभारवक करता ह। शष आप सबकी पितिकया िमलन पर।

'इकयावन उतकष गजलो' की य िकताब अगर लोकिपय होती ह तोइसक जिरए उतराचली सािहतय ससथान अनक शाइरो को आग लान कापयत करगा।

—महावीर उतराचली

( 6 )

िवषय सची

गजल पष सखया

(1) जो ववसथा भष हो, फौरन बदलनी चािहए 11 (2) गरीबो को फकत, उपदश की घटी िपलात हो 12 (3) आप खोय ह िकन नजारो म 13 (4) िजदगी स मौत बोली खाक हसती एक िदन 14 (5) बडी तकलीफ दत ह य िरशत 15 (6) तीरो-तलवार स नही होता 16 (7) तलवार दोधारी कया 17 (8) सोच का इक दायरा ह, उसस म कस उठ 18 (9) साधना कर य सरो की, सब कह कया सर िमला 19(10) य जहा तक बन चप ही म रहता ह 20(11) लहज म कयो बरखी ह 21(12) वतन की राह म िमटन की हसरत पाल बठा ह 22(13) इक तमाशा यहा लगाए रख 23

( 7 )

गजल पष सखया

(14) अशक आखो म, य िछपाय कयो 24(15) फन कया ह फनकारी कया 25(16) हार िकसी को भी सवीकार नही होती 26(17) िदल स उसक जान कसा बर िनकला 27(18) नजर को चीरता जाता ह मजर 28(19) धप का लशकर बढा जाता ह 29(20) कया अमीरी, कया गरीबी 30(21) बदली गम की जो छाएगी 31(22) बीती बात िबसरा कर 32(23) घास क झरमट म बठ दर तक सोचा िकय 33(24) जमी कीचड को िमलकर दर करना ह 34(25) पग न त पीछ हटा, आ वकत स मठभड कर 35(26) रौशनी को राजमहलो स िनकाला चािहय 36(27) काट खद क िलए, जब चन दोसतो 37(28) बात मझस यह ववसथा कह गई ह 38(29) कयो बच नामोिनशा जनतत म 39(30) फसला अब ल िलया तो, सोचना कया बढ चलो 40(31) काित का अब िबगल बजा दश म 41(32) श'र इतन ही धयान स िनकल 42(33) िजनक पखो म दो जहान हए 43(34) दशमनी का वो इिमतहान भी था 44(35) कया कह म वकत की इस दासता को 45(36) जो हआ उसप मलाल करक 46

( 8 )

गजल पष सखया

(37) बाण वाणी क यहा ह िवष बझ 47(38) यह पकित का िचत अित उतम बना ह 48(39) हर घडी को चािहए जीना यहा 49(40) खवाब हमशा अचछ बनना 50(41) इक शखस था, कहता रहा 51(42) िकस मशीनी दौर म रहन लगा ह आदमी 52(43) िजनदगी आजकल 53(44) राह गर दशार ह 54(45) कया कह इसान को कया हो रहा ह 55(46) रह-रहकर याद सताए ह 56(47) िबलखती भख की िकलकािरया ह 57(48) िजतना करत मनथन-िचनतन 58(49) जहर पीकर जो पचाए दवता वो 59(50) टटकर खद िबखर रहा ह म 60(51) जा स बढकर ह आन भारत की 61

••••••••••••

( 9 )

इसी सगह स कछ चिनदा श'र

मफिलसो क हाल पर, आस बहाना वथर हकोध की जवाला स अब, सता बदलनी चािहए

•••ववसथा कषकारी कयो न हो, िकरदार ऐसा ह

य जनता जानती ह सब, कहा तम सर झकात हो•••

नही टट कभी जो मिशकलो सबहत खदार हमन लोग दख

•••सच जरा छक जो गजरा

िदल म अब तक सनसनी ह•••

त 'महावीर', जब रह तनहािदल म इक, शोर-सा मचाए कयो

•••खाकर रखी-सखी, चन स सोत सब इचछाए यिद लाख उधार नही होती

•••

(1)

जो ववसथा भष हो, फौरन बदलनी चािहएलोकशाही की नई, सरत िनकलनी चािहए

मफिलसो* क हाल पर, आस बहाना वथर हकोध की जवाला स अब, सता बदलनी चािहए

इकलाबी दौर** को, तजाब दो जजबात काआग यह बदलाव की, हर वकत जलनी चािहए

रोिटया ईमान की, खाए सभी अब दोसतोदाल भषाचार की, हरिगज न गलनी चािहए

अम ह नारा हमारा, लाल ह हम िवश कबात यह हर शखस क, मह स िनकलनी चािहए

•••

_________*मफिलसो — गरीबो, बकसो, बसहारो**इकलाबी दौर — पिरवतरनकारी (कािनतकारी) यग

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 11 )

(2)

गरीबो को फकत, उपदश की घटी िपलात होबड आराम स तम, चन की बसी बजात हो

ह मिशकल दौर, सखी रोिटया भी दर ह हमसमज स तम कभी काज, कभी िकशिमश चबात हो

नजर आती नही, मफिलस की आखो म तो खशहालीकहा तम रात-िदन, झठ उनह सपन िदखात हो

अधरा करक बठ हो, हमारी िजनदगानी ममगर अपनी हथली पर, नया सरज उगात हो

ववसथा कषकारी कयो न हो, िकरदार ऐसा हय जनता जानती ह सब, कहा तम सर झकात हो

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 12 )

(3)

आप खोय ह िकन नजारो मलतफ िमलता नही बहारो म

आग कागज म िजसस लग जायकाश! जजबा वो हो िवचारो म

भीड क िहसस ह सभी जसहम ह गमसम खड कतारो म

इशक उनको भी रास आया हअब वो िदखन लग हजारो म

झठ को चार स पनाह िमलीसच को िचनवा िदया िदवारो म

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 13 )

(4)

िजदगी स मौत बोली, खाक हसती एक िदन िजसम को रह जाएगी, रह तरसती एक िदन

मौत ही इक चीज ह, कॉमन सभी म दोसतोदिखय कया सर बलनदी, और पसती एक िदन

पास आन क िलए, कछ तो बहाना चािहए बसत-बसत ही बसगी, िदल की बसती एक िदन

रोज बनता और िबगडता, हस ह बाजार का िदल स जयादा तो न होगी, चीज ससती एक िदन

मफिलसी ह, शाइरी ह, और ह दीवानगी "रग लाएगी हमारी, फाकामसती* एक िदन"

•••

__________*फाकामसती — भखो रहकर भी आनिदत-पसनिचत

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 14 )

(5)

बडी तकलीफ दत ह य िरशतयही उपहार दत रोज अपन

जमी स आसमा तक फल जाएधनक* म खवािहशो क रग िबखर

नही टट कभी जो मिशकलो सबहत खदार** हमन लोग दख

य कडवा सच ह यारो मफिलसी कायहा हर आख म ह टट सपन

कहा ल जायगा मझको जमानाबडी उलझन ह, कोई हल तो िनकल

•••

________*धनक — इनदधनष (rainbow)**खदार — सवािभमानी

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 15 )

(6)

तीरो-तलवार स नही होताकाम हिथयार स नही होता

घाव भरता ह धीर-धीर हीकछ भी रफतार स नही होता

खल म भावना ह िजदा तोफकर कछ हार स नही होता

िसफर नकसान होता ह यारोलाभ तकरार स नही होता

उसप कल रोिटया लपट सबकछ भी अखबार स नही होता

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 16 )

(7)

तलवार दोधारी कयासख-दःख बारी-बारी कया

कतल ही मरा ठहरा तोफासी, खजर, आरी कया

कौन िकसी की सनता हमरी और तमहारी कया

चोट कजा की पडनी हबालक कया, नर-नारी कया

पछ िकसी स दीवानकरमन की गित नयारी कया

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 17 )

(8)

सोच का इक दायरा ह, उसस म कस उठ सालती तो ह बहत याद, मगर म कया कर

िजदगी ह तज रौ, बह जायगा सब कछ यहा कब तलक म आिधयो स, जझता-लडता रह

हािदस इतन हए ह, दोसती क नाम पर इक तमाचा-सा लग ह, यार जब कहन लग

जा रह हो छोडकर, इतना बता दो तम मझ म तमहारी याद म, तडप या िफर रोता िफर

सच हो मर सवप सार, जी तो चाह काश म पिछयो स पख लकर, आसमा छन लग

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 18 )

(9)

साधना कर, य सरो की, सब कह, कया सर िमलाबज उठ सब, साज िदल क, आज त य गनगना

हाय! िदलबर, चप न बठो, राज-िदल अब खोल दोबजम-उलफत म िछडा ह, गफतग का िसलिसला

उसन हरदम कष पाए, कामना िजसन भी कीवथर मत जी को जलाओ, सोच सब अचछा हआ

इशक की दिनया िनराली, कया कह म दोसतोिबन िपए ही मय की पयाली, छा रहा मझपर नशा

मीरो-गािलब* की जमी पर, शर जो मन कहकहकशा सजन लगा, और लतफ-महिफल आ गया

•••

________*मीरो-गािलब — अठरहवी-उनीसवी सदी क महान शा'इर खदा-ए-सखन मीर तकीमीर (1723 ई.–1810 ई.) व िमजार असदललाह खान 'गािलब' (1797 ई.–1869 ई.)

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 19 )

(10)

य जहा तक बन, चप ही म रहता हकछ जो कहना पड, तो गजल कहता ह

जो भी कहना हो, कागज प करक रकम िफर कलम रखक, खामोश हो रहता ह

दजर होन लग, श'र तारीख* मबात इस दौर की, खास म कहता ह

दोसतो! िजन िदनो, िजनदगी थी गजलखश था म उन िदनो, अब नही रहता ह

ढढत हो कहा मझको ऐ दोसतोआबशार-गजल** बनक म बहता ह

•••

__________*तारीख — इितहास **आबशार-गजल — गजल का झरना

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 20 )

(11)

लहज म कयो बरखी ह आपको भी कछ कमी ह

पढ िलया उनका भी चहरा बद आखो म नमी ह

सच जरा छक जो गजरा िदल म अब तक सनसनी ह

भल बठा हािदसो म गम ह कया और कया खशी ह

ददर कागज म जो उतरा तब य जाना शाइरी ह

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 21 )

(12)

वतन की राह म, िमटन की हसरत पाल बठा हन जान कबस म, इक दीप िदल म बाल बठा ह

भगत िसह की तरह, मरी शहादत दासता म होयही अरमान लक, मौत अब तक टाल बठा ह

िमर िदल की सदाय, लौट आई आसमानो सखदा सनता नही ह, करक ऊच नाल बठा ह

थक ह पाव, मिनजल चनद ही कदमो क आग हमझ मत रोकना, अब फोड सार छाल बठा ह

िमरी खामोिशयो का, टटना ममिकन नही ह अबलबो पर म न जान, कफल* िकतन डाल बठा ह

•••

________*कफल — ताल (Locks)

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 22 )

(13)

इक तमाशा यहा लगाए रखसोई जनता को त जगाए रख

भिडय लट लग िहनदसताशोर जनतनत म मचाए रख

आएगा इनकलाब इस मलक मआग सीन म त जलाए रख

पार कशती को गर लगाना हिदल म तफान त उठाए रख

लोग ढढ तझ हजारो मलौ िवचारो की त जलाए रख

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 23 )

(14)

अशक आखो म, य िछपाय कयोआग सीन म, त दबाए कयो

जब तलक दशमनी, न जािहर होतब तलक दोसती, िनभाए कयो

य तो दसतर ह, जमान कायार रठा था, तो मनाए कयो

िमल ही जाएगी, तझको मिजल भी िदल म तफान, त उठाए कयो

त 'महावीर', जब रह तनहािदल म इक, शोर-सा मचाए कयो

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 24 )

(15)

फन कया ह फनकारी कयािदल कया ह िदलदारी कया

पछ जरा इन अशको स गम कया ह, गम-खवारी* कया

जान रही ह जनता सबसर कया ह, सरकारी कया

झाक जरा गबरत म तजर कया ह, जरदारी** कया

सोच फकीरो क आगदर कया ह, दरबारी कया

•••

________*गम-खवारी — सातवना**जरदारी — धनसपनता; अमीरी

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 25 )

(16)

हार िकसी को भी, सवीकार नही होती जीत मगर पयार, हर बार नही होती

एक िबना दज का, अथर नही रहता जीत कहा पात, यिद हार नही होती

बठा रहता म भी, एक िकनार पर राह अगर मरी, दशवार नही होती

डर मत लहो स, आ पतवार उठा ल बठ िकनार, नया पार नही होती

खाकर रखी-सखी, चन स सोत सब इचछाए यिद लाख, उधार नही होती

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 26 )

(17)

िदल स उसक जान कसा बर िनकला िजसस अपनापन िमला वो गर िनकला

था करम उस पर खदा का इसिलए ही डबता वो शखस कसा तर िनकला

मौज-मसती म आिखर खो गया कयो जो बशर* करन चमन की सर िनकला

सभयता िकस दौर म पहची ह आिखर बद बोरी स कटा इक पर िनकला

वो वफादारी म िनकला य अववल** आसओ म धलक सारा बर िनकला

•••

________*बशर — विक, मनषय **अववल — शष

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

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(18)

नजर को चीरता जाता ह मजर बला का खल खल ह समनदर

मझ अब मार डालगा यकीनन लगा ह हाथ िफर काितल क खजर

ह मकसद एक सबका उसको पाना िमल मिसजद म या मिदर म जाकर

पलक झपक तो जीवन बीत जाय य मला चार िदन रहता ह अकसर

नवािजश* ह ितरी मझ पर तभी तो िमर मािलक खडा ह आज तनकर

•••

________*नवािजश — कपा

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 28 )

(19)

धप का लशकर* बढा जाता ह छाव का मजर लटा जाता ह

रौशनी म इस कदर पनापन आख म सइया चभा जाता ह

चहचहात पिछयो क कलरव** म पयार का मौसम िखला जाता ह

फल-पतो पर िलखा कदरत न वो किरशमा कब पढा जाता ह

िफर नई इक सबह का वादाढलत सरज म िदखा जाता ह

•••

________*लशकर — बहद समह-दल**कलरव — मधर धविन म

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 29 )

(20)

कया अमीरी, कया गरीबी भद खोल ह फकीरी

गम स तरा भर गया िदल गम स मरी आख गीली

तीरगी* म जी रहा था तन आ क रौशनी की

खब भाए मर िदल को मिसतया फरहाद** की सी

मौत आय तो सक हो कया िरहाई, कया असीरी***

•••

________*तीरगी — अधर**फरहाद — 'शीरी-फरहाद' नामक पमकहानी का नायक***असीरी — कद

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 30 )

(21)

बदली गम की जो छाएगी रात यहा और गहराएगी

गर इजजत बचगी गरबत बचो की भख िमटायगी

सािहर* न िजसका िजक िकया वो सबह कभी तो आयगी

बस कतल यहा होग मफिलस आह तलक कचली जायगी

खामोशी ओढो ऐ शा' इर कछ बात न समझी जायगी

•••

________*सािहर — सािहर लिधयानवी एक पिसद शायर तथा िफलमी गीतकार थ। िजनहोन,'वो सबह कभी तो आयगी' लमबी किवता रची। िजसम बबस, मजलमो क िलए नईसबह का िजक ह! जहा उनकी खशहाली का सपना साकार होत बताया गया ह!

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 31 )

(22)

बीती बात िबसरा करअपन आज को अचछा कर

कर द दफन बराई कोअचछाई की चचार कर

लोग तझ बहतर समझवो जजबा त पदा कर

हर शय म ह नर-खदा*हर शय की त पजा कर

जब गम स जी घबरायऔरो क गम बाटा कर

•••

________*नर-खदा — ईशरीय पकाश, जयोित-आभा

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 32 )

(23)

घास क झरमट म बठ दर तक सोचा िकयिजनदगानी बीती जाए और हम कछ ना िकय

जोड ना पाए कभी हम चार पस ठीक सपट भरन क िलए हम उमभर भटका िकय

हम दखी ह गीत खिशयो क भला कस रचआदमी का रप लकर गम ही गम झला िकय

फल जस तन प दो कपड नही ह ठीक सशबनमी अशको की चादर उमभर िकय

कया अमीरी, कया फकीरी, वकत का सब खल हभष बदला, इक तमाशा, उमभर दखा िकय

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 33 )

(24)

जमी कीचड को िमलकर दर करना ह उठो, आग बढो, कछ कर गजरना ह

कदम कस रकग, इनकलाबी क बढो आग, मौत स, पहल न मरना ह

िमल नाकामी, या तकलीफ राहो म कभी इलजाम, औरो प न धरना ह

झकगा आसमा भी, एक िदन यारो िसतमगर हो बडा कोई, न डरना ह

उसी को हक िमल, जो मागना जान लडाई हक की ह, हरिगज न डरना ह

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 34 )

(25)

पग न त पीछ हटा, आ वकत स मठभड कर हाथ म पतवार ल, तफान स िबलकल न डर

कया हआ जो चल न पाए, लोग तर साथ-साथ त अकल ही कदम, आग बढा होक िनडर

िजनदगी ह बवफा, य बात त भी जान ल अनत तो होगा यकीनन, मौत स पहल न मर

बाध लो सर प कफन, य जग खशहाली की ह कािनत पथ प बढ चलो अब, बढ चलो होक िनडर

बात हक की ह तो यारो, कयो डर िफर जलम सजािलमो क सामन त आज हो जा ब-िफकर*

•••

________*ब-िफकर — िनिशत, िचनताहीन।

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

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रौशनी को राजमहलो स िनकाला चािहयदश म छाय ितिमर को अब उजाला चािहय

सन सक आवाम िजसकी, आहट बखौफ अबआज सता क िलए, ऐसा िजयाला* चािहय

िनधरनो का खब शोषण, भष शासन न िकयाबनद हो भाषण फकत, सबको िनवाला चािहय

सचना क दौर म हम, चप भला कस रहभष हो जो भी यहा, उसका िदवाला चािहय

िगर गई ह आज कयो इतनी िसयासत दोसतोएक भी ऐसा नही, िजसका हवाला** चािहय

•••

________*िजयाला — बहादर, वीर, िनडर **हवाला — उदरण (Reference)

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 36 )

(27)

काट खद क िलए, जब चन दोसतोआम स खास य, हम बन दोसतो

राह दशार थी, हर कदम मिशकल पार जगल िकय, य घन दोसतो

रख हवा का जरा, आप पहचािनए आिधयो म िगर, वक घन दोसतो

काितलो को िदया, हमन खनजर तभी खन स हाथ उन क, सन दोसतो

सब बदल जायगा, सोच बदलो जरा सोच स ही बड, सब बन दोसतो

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 37 )

(28)

बात मझस यह ववसथा कह गई ह हर तमना िदल म घटक रह गई ह

चार स जनतनत म जलमो-िसतम ह अब यहा िकसम शराफत रह गई ह

दःख की बदली बन गई ह लोकशाही िजनदगी बस आसओ म बह गई ह

थी कभी महलो की रानी य ववसथा भष हाथो की य दासी रह गई ह

इकलाबी बातो म भी दम नही अब बात बीत वकत की बस रह गई ह

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 38 )

(29)

कयो बच नामोिनशा जनतत म कोई ह कया बागवा जनतत म

रहनमा खद लटत ह कारवा दःख भरी ह दासता जनतत म

टटती ह हर िकरण उममीद की कौन होगा पासवा जनतत म

मफिलसी, महगाई स सब चर हदन होग इिमतहा जनतत म

जानवर स भी बर हालात ह आदमी ह बजबा जनतत म

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 39 )

(30)

फसला अब ल िलया तो, सोचना कया बढ चलो जो िकया अचछा िकया ह, बोलना कया बढ चलो

रासत आसान कब, होत िकसी क वासत आिधयो स जझना तो, बठना कया बढ चलो

इनकलाबी रासत ह, मिशकल तो आएगी डर क िफर, पीछ कदम अब, खीचना कया बढ चलो

वकत क माथ प जो, िलख दगा अपनी दासताउसक आग सर झकाओ, सोचना कया बढ चलो

अहिमयत ह दोसतो बस, िजनदगी म वकत की आख मद वकत को िफर, दखना कया बढ चलो

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 40 )

(31)

काित का अब िबगल बजा दश म त भी कछ इकलाब ला दश म

कर रह आम आदमी चषा इक नया रासता खला दश म

छोडकर मफिलसो को और पीछ हकमरानो न कया िकया दश म

कोिशशो स िमली थी आजादी सोिचय हमन कया िकया दश म

हक हलाल की लडाई की खाितर होश म आज त भी आ दश म

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 41 )

(32)

श'र इतन ही धयान स िनकलतीर जस कमान स िनकल

भल जाय िशकार भी खद कोय िशकारी मचान स िनकल

था बलनदी का वो नशा तौबाजब िगर आसमान स िनकल

ह म कतरा, िमरा वजद कहाकयो समनदर गमान स िनकल

दखकर फख हो जमान कोय 'महावीर' शान स िनकल

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 42 )

(33)

िजनक पखो म दो जहान हएव ही पछी लहलहान हए

दोसती क जहा तकाज हफजर भी खब इिमतहान हए

सन नही पाए बात मरी जोहमवतन मर हमजबान हए

आपन कह दी बात मरी भीआप ही िदल की दासतान हए

कयो 'महावीर' मौत का डर हहािदस रोज दरिमयान हए

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 43 )

(34)

दशमनी का वो इिमतहान भी थादोसती की वो दासतान भी था

रख िदया खद को दाव पर मनसब का खब इिमतहान भी था

म अकला नही था यार िमर!बदगमानी* म तो जहान भी था

खन ही तो बहाया बस उसनशाह-यनान** कया महान भी था

जब बजगो क उठ गए सायहर कदम एक इिमतहान भी था

•••________*बदगमानी — उलझन म **शाह-यनान — िसकदर महान की तरफ इशारा

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 44 )

(35)

कया कह म वकत की इस दासता कोिजनदगी तयार ह हर इिमतहा को

चोट पर वो चोट दता ही रहा हकब तलक खामोश रकख म जबा को

हर घडी बचन था, सहमा हआ थाकह नही पाया कभी म दासता को

य तो ऊचा ही उडा मन का पिरनदाछ नही पाया मगर य आसमा को

कारवा स दर मिनजल हो गई हऐ खदा! त ही बता जाऊ कहा को

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 45 )

(36)

जो हआ उसप मलाल करककया िमलगा य बवाल करक

कौन-सा िरशता बचा ह भाईबीच आगन म िदवाल करक

खवाब म माजी* न जब दी दसतकलौट आया कछ सवाल करक

इस ववसथा न गरीब को हीछोड रकखा ह िनढाल करक

वकत हरा ह जमान स खदएक पचीदा** सवाल करक

•••

________*माजी — अतीत **पचीदा — घमाव–िफराववाला; चकरदार

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 46 )

(37)

बाण वाणी क यहा ह िवष बझह उिचत हर आदमी अचछा कह

भल स िवशास मत तोडो कभीधयान हर इक आदमी इसका धर

रोिटया ईमान को झकझोरतीमफिलसी म आदमी कया ना कर

भख ही ठमक लगाए रात-िदननाचती कोठ प अबला कया कर

िजनदगी ह हर िसयासत स बडीलोकशाही िजनदगी बहतर कर

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 47 )

(38)

यह पकित का िचत अित उतम बना ह"मत कहो आकाश म कहरा घना ह"

पितिदवस ही सयर उगता और ढलताचार पल ही िजनदगी की कलपना ह

लकय पाया मन सघषो म जीकरमिशकलो स लडत रहना कब मना ह

कया हदय स हीन हो, ऐ दष िनषररक स हिथयार भी दखो सना ह

तम रचो जग म नया इितहास अपनाहर िपता की पत को शभ कामना ह

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 48 )

(39)

हर घडी को चािहए जीना यहातिलखयो को पडता ह पीना यहा

िजनदगी भर हसता-गाता ही रहइतना पतथर िकसका ह सीना यहा

िगर पडग आक मह क बल हजर!छत स गर उतरग िबन जीना यहा

रशक* तझप गर भी करन लगय तझ अब चािहए जीना यहा

कया हआ ह आज क इसान कोआख होत भी ह नाबीना** यहा

•••

________*रशक — ईषयार, जलन **नाबीना — कम दखन वाला, अधा

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 49 )

(40)

खवाब हमशा अचछ बननाराह अपनी खद ही चनना

बन जा धन म मगन कबीराबात मगर त सबकी सनना

दिनया क जो मन को मोहपीत क धाग ऐस बनना

बाद म फल िगराना साहबकाट पहल सार चनना

अचछी गजल सननी हो तोतम मीरो-गािलब* को सनना

•••

________*मीरो-गािलब — अठरहवी-उनीसवी सदी क महान शा'इर खदा-ए-सखन मीर तकीमीर (1723 ई.–1810 ई.) व िमजार असदललाह खान 'गािलब' (1797 ई.–1869 ई.)

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 50 )

(41)

इक शखस था, कहता रहाइस शहर म, तनहा रहा

वो जहर पीक उमभरहालात स लडता रहा

भीतर ही भीतर टटकवो िकसिलए जीता रहा

कनध प लाद बोझ-सािरशत को वो ढोता रहा

वो शखस कोई और नहीहम सबका ही चहरा रहा

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 51 )

(42)

िकस मशीनी दौर म रहन लगा ह आदमीखन क आस फकत पीन लगा ह आदमी

सभयता इक दसरा अधयाय अब रचन लगीबोझ मा-ओ-बाप को कहन लगा ह आदमी

दसर को काटन की य कला सीखी कहासाप क अब साथ कया जीन लगा ह आदमी

लट रही ह घर की इजजत कौिडयो क दाम अबलोकशाही म फकत िबकन लगा ह आदमी

कया िमला इनसान होकर आज क इनसान कोखौफ का पयारय बन रहन लगा ह आदमी

इक मका की चाह म जजबात जजरर हो गएखणडहर बन आज खद ढहन लगा ह आदमी

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 52 )

(43)

िजनदगी आजकलआबशार-ए-गजल*

कयो बनात रहरत क हम महल

अम हो चार सकयो न करत पहल

दखकर हािदसिदल गया ह दहल

इक खशी पान कोजी रहा ह मचल

गनगनाए भमरिखल रहा ह कमल

•••________*आबशार-ए-गजल — गजल का झरना

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

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(44)

राह गर दशार हहाथ म पतवार ह

सच की खाितर दोसतोमौत भी सवीकार ह

श’र ह कमजोर तोशा’इरी बकार ह

चभ रहा ह शल-साफल ह या खार ह

िरशत-नातो म िछपािजनदगी का सार ह

झठी य मसकान भीगम का ही िवसतार ह

घी म चपडी रोिटयापगल मा का पयार ह

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 54 )

(45)

कया कह इसान को कया हो रहा हहर घडी ईमान अपना खो रहा ह

िगर गया ह गाफ मानवता का नीचअपन नितक मलय मानव खो रहा ह

अब नही ह ददर की पहचान ममिकनहसत-हसत आदमी अब रो रहा ह

आधिनक बनन की चाहत म कही तकाट राहो म िकसी क बो रहा ह

घल गए ह पिशमी ससकार इतननाच बशमी का हरदम हो रहा ह

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 55 )

(46)

रह-रहकर याद सताए हकयो बचनी तडपाए ह

ओढो इस गम की चादर कोजो जीना तो िसखलाए ह

चपचाप िमर िदल म कोईखामोशी बनता जाए ह

कया कीज, सब का दामन भीअब हमस छटा जाए ह

वो ददर िमला ह ‘महावीर’उडन की चाहत जाए ह

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 56 )

(47)

िबलखती भख की िकलकािरया हयही इस दौर की सचाइया ह

अहम मानव का इतना बढ गया हिक सकट म अनको जाितया ह

िहमायत की िजनहोन सच की यारोिमली उनको सदा ही लािठया ह

यही सच नकसली* इस सभयता कािक बीहड वन ह, गहरी खाइया ह

गरीबी भखमरी क दशय दखोिक पतथर तोड, नगी छाितया ह

•••

_________*नकसली — नकसल शबद की उतपित पिशम बगाल क छोट स गाव नकसलबाडी सहई ह जहा भारतीय कमयिनसट पाटी क नता चार मजमदार और कान सानयाल न1967 म सता क िखलाफ एक सशस आदोलन की शरआत की।

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 57 )

(48)

िजतना करत मनथन-िचनतनबढती जाए मरी उलझन

य तो पषप भरी ह डालीसना सना लाग आगन

मान गए कषो म जीकरदःख की पिरभाषा ह जीवन

बस ना पाया नगर िहया काजब स उजड गया मन उपवन

िजतना सवय को म सलझाऊबढ बढ जाय मरी उलझन

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

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(49)

जहर पीकर जो पचाए दवता वोजो गमो म मसकराए दवता वो

वकत क तफान स डरना भला कयादीप आधी म जलाए दवता वो

दौर-नफरत खतम हो अब तो अजीजो*दशमनी को जो भलाए दवता वो

कयो िगरात हो िकसी को यार मरजो िगर को भी उठाए दवता वो

ह सभी का कजर माना हमप यारो!कजर मा का जो चकाए दवता वो

•••

________*अजीजो — िमतो

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 59 )

(50)

टटकर खद िबखर रहा ह महार स कब मकर रहा ह म

कर िलया खद स ही जो समझौतालोग समझ िक डर रहा ह म

मरी खामोिशयो का मतलब हमिशकलो स गजर रहा ह म

खौफ का नाम तक नही ह िफरिकसिलए यार डर रहा ह म

माफ करना मझ नही, बशकवकत स पहल मर रहा ह म

•••

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 60 )

(51)

जा स बढकर ह आन भारत कीकल जमा दासतान भारत की

सोच िजदा ह और ताजादम नौ'जवा ह कमान भारत की

दश का ही नमक िमर भीतरबोलता ह जबान भारत की

कद करता ह सबकी िहनदोसतापीिढया ह महान भारत की

सखरर* आज तक ह दिनया मआन-बान और शान भारत की

•••

________*सखरर — पितिषतः

इकयावन उतकष गजल — महावीर उतराचली

( 61 )

इसी सगह स कछ चिनदा श'र

पलक झपक तो जीवन बीत जाय य मला चार िदन रहता ह अकसर

•••खामोशी ओढो ऐ शा' इर

कछ बात न समझी जायगी •••

कया अमीरी, कया फकीरी, वकत का सब खल हभष बदला, इक तमाशा, उमभर दखा िकय

•••रौशनी को राजमहलो स िनकाला चािहय

दश म छाय ितिमर को अब उजाला चािहय•••

इक मका की चाह म जजबात जजरर हो गएखणडहर बन आज खद ढहन लगा ह आदमी

•••िगर गया ह गाफ मानवता का नीचअपन नितक मलय मानव खो रहा ह

•••

महावीर उतराचली का अनय सािहतय:—

१. रामभक िशव (सिकप जीवनी व दोह) २. इकयावन रोमािटक गजल ३. इकयावन उतकष गजल ४. लोकिपय कहािनया ५. उतराचली क आलख व ससमरण

उतराचली सािहतय ससथान की अनय पसतक:—

१. कालजयी दोह (समपादक: सरजन; िहनदी क शष किवयो क दोह । )२. तीन पीिढया: तीन कथाकार (समपादक: सरजन; पमचद/मोहन राकश व महावीर उतराचली की कहािनया । )

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