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-2assets.vmou.ac.in/DPM2.pdf · 2014-04-05 · इकाई -10 कुÈकुट पोषण के स ¨ात एवं व gभÛन कुÈकुट आहार फामू[ला

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    डी.पी.एम. -2

    कु कुट फाम का रख रखाव एवं ब धन

    अनु म णका

    इकाई वषय पेज न बर इकाई -1 ु डगं के स ा त डूर के व भ न कार तथा

    उनका रखरखाव 5—18

    इकाई -2 चक ब धन, ोबर ब धन, लेयर ब धन एव ंायलर ब धन

    19—32

    इकाई -3 आवास के स ा त एव ंकु कुट फाम का नमाण 33—42 इकाई -4 कु कुट आवास के व भ न तं एव ंउनका रख रखाव 43—52 इकाई -5 मुग आवास म काश यव था एव ं कार 53—60 इकाई -6 मुग पालन म सामा य तकनीक मापद ड एव ं

    उपयोगी रखरखाव 61—72

    इकाई -7 कु कुट आहार एव ंपोषक त व का व लेषण 73—82 इकाई -8 स तु लत मुग आहार, टाटर राशन, ोवर एव ं

    लेयर आहार, ायलर आहार 83—97

    इकाई -9 व भ न वटा म स एव ंउनके काय 98—108 इकाई -10 कु कुट पोषण के स ा त एव ं व भ न कु कुट

    आहार फामूला 109—126

    इकाई -11 कु कुट फाम के बाइ ोड ट, लटर ब धन, मु गय क छंटनी एव ंमतृ प य का न तारण

    127—140

    इकाई -12 अनसु धान एव ं योग 141—160 इकाई -13 कु कुट उ पाद का भ डारण 161—175 इकाई -14 इकोनोमी आफ पॉ फाम 176—194 इकाई -15 कु कुट ब धन सबंधंी मह वपणू ता लकाय 195—205

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    पा य म अ भक प स म त अ य ो.(डॉ.) नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा सम वयक डॉ. अशोक कुमार शमा माइ ोबायोलोिज ट एव ंव र ठ पश ु च क सा अ धकार े ीय रोग नदान के , कोटा

    सद य 1. डॉ. आर.के. तंवर

    सह आचाय, मे ड सन वभाग पश ु च क सा एव ंपश ु व ान महा व यालय, बीकानेर

    संयोजक ी राकेश शमा

    सहायक आचाय, वधमान महावीर खलुा व व व यालय कोटा

    2. डॉ. ए.के. कटा रया सहायक आचाय एव ं भार अ धकार एपे स से टर पश ु च क सा एव ंपश ु व ान महा व यालय , बीकानेर

    3. डॉ. अनुजा तवार पश ु च क सा अ धकार े ीय रोग नदान के , कोटा

    पाठ स पादन एव ंलेखन स पादन डॉ. अशोक कुमार शमा माइ ोबायोलोिज ट एवं व र ठ पशु च क सा अ धकार े ीय रोग नदान के , कोटा

    लेखक 1. डॉ. अशोक कुमार शमा

    माइ ोबायोलोिज ट एव ंव र ठ पश ु च क सा अ धकार े ीय रोग नदान के , कोटा

    2. डॉ. अनुजा तवार पश ु च क सा अ धकार े ीय रोग नदान के , कोटा

    3. डॉ. ए.के. कटा रया सहायक आचाय एव ं भार अ धकार एपे स से टर पश ु च क सा एव ंपश ु व ान महा व यालय बीकानेर

    4. डॉ. फख ीन सहायक आचाय, मे ड सन वभाग पश ु च क सा एव ंपश ु व ान महा व यालय बीकानेर

    5. डॉ. न लनी कटा रया सहायक आचाय एव ं भार अ धकार फिजयोलॉजी वभाग पश ु च क सा एव ंपश ु व ान महा व यालय बीकानेर

    पा य नदेशन एव ंउ पादन नदेशक(संकाय) ो.(डॉ.) अनाम जैतल

    वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    नदेशक(पा य साम ी उ पादन एवं वतरण) ो.(डॉ.) पी.के. शमा

    वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा सवा धकार सुर त। इस पा य म का कोई भी अंश वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा क ल खत अनुम त ा त कए बना या म मयो ाफ अथवा कसी अ य साधन से पुनः तुत करना विजत है। वधमान महावीर खुला व व व यालय के पा य म के वषय म और अ धक जानकार व व व यालय के कुलस चव, वधमान महावीर खुला व व व यालय,रावतभाटा रोड, कोटा से ा त क जा सकती है।

    कुलस चव, वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा वारा का शत

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    ू डगं के स ा त एव ं डूर के व भ न कार तथा उनका रखरखाव

    इकाई-1 1.0 उ े य 1.1 तावना 1.2 ू डगं एव ं ू डगं के कार व व धया ँ1.3 ू डगं के स ा त 1.4 व भ न कार के डूर 1.5 ू डगं / रय रगं के दौरान ल जाने वाल सावधा नया ँ1.6 साराशं 1.7 नावल 1.8 स दभ - पु तके

    1.0 उ े य जंगल कु कुट प ी पेड़ पर रहकर ह गजुर कर लेते है और थोड़ा बहु त अ डा उ पादन करके अपने वशं को आगे चलाते रहते ह, पर तु आधु नक यगु म कु कुट प ी से अ धक उ पादन ा त करने के भरसक यास कये जा रहे है और इसके लए आवास क उ चत यव था होना

    परमाव यक है । कु कुट शर र म उसके ताप को नयि त करने के लए पसीना लाने वाल ं थया नह ंहोती । अ धक गम अथवा सद म आवास क यव था ठ क न होने पर प य

    को बहु त बचेैनी होती है । अ ड से नकलने के प चात ्चजेू बहु त कोमल होत ेहै और सावधानीपवूक इनके पालन-पोषण क आव यकता होती है । इसी आव यकता को यान म रखत ेहु ए व भ न कार के डूर तैयार कये गये ता क चजू का सरु त ढंग से लालन-पालन कया जा सके तथा कु कुट पालक को अ धका धक लाभ ा त हो सके । यह इस इकाई का उ े य है ।

    1.1 तावना भारतवष म कु कुट पालन उतना ह ाचीन है, िजतनी हमार स यता है । भारतवष के जंगल म ‘रेड फाउल' सभी कु कुट न ल का जनक है । भारत म मुग पालन असंग ठत बेकयाड उ योग है, जो क ाय: गर ब व समाज के कमजोर लोग वारा ह अपनाया जाता है । भारत क देशी मुग न ले, जो क बहु त वपर त प रि थ त म भी जीवन-यापन कर लेती है, बहु त कम उ पादन देती है। मुग उ योग के ो साहन म कमी रह , उसके मु य कारण समाज के उ च जा त के वग वारा मुग व मुग उ पादन का कम उपयोग करना है । कु कुट उ योग के बारे म अ प

    जानकार भी इस उ योग पर वपर त भाव डालती है, जब क कु कुट गर बी दरू करने म

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    एव ंकुपोषण दरू करने म मह वपणू योगदान देता है । य य प पछले चार दशक म 'मुग पालन'' म मह वपणू प रवतन आया है । इस उ योग म रोजगार क सम या को दरू करने क अपार सभंावनाय ह । आज हजार क सं या म छोटे-बड़े मुग फाम था पत हो गये है । अब देशी मगु न ल क बजाय संकर न ल क अ छ मु गयाँ पाल जा रह है । आज लगभग 500 क सं या म चजेू उ पादन के है, जो क यवसा यक सकंर न ल के चजेू उपल ध करात ेह । के सरकार वारा भारतीय पशु च क सा व ान सं थान, इ जतनगर म, के य कु कुट अनसुधंान सं थान खोला है । अब पछले 40 वष म अ डे का उ पादन 9.5 गनुा बढ़ गया है । 1961 म जहाँ सात अ ड ेऔर 176 ाम माँस त यि त उपल ध था, वह ं आज 33 अ डे एव ं1100 ाम मासँ त यि त उपल ध है, पर तु यह उपलि ध अपने पड़ौसी देश पा क तान व ीलंका से भी कम है । भारत क जी. डी.पी म कु कुट यवसाय का 1.3 तशत योगदान है ।

    1.2 ू डगं एवं रअ रंग व उसके कार व व धयाँ अ ड से नकलने के प चात चूजे बहु त कोमल होत ेहै और सावधानीपवूक इनके पालन-पोषण क आव यकता होती है । इनके लालन-पालन को तकनीक भाषा म ू डगं' तथा ' रअ रगं'' कहते है । चूज को ू डगं कराने क न न ल खत दो व धयाँ ह :-

    1.2.1 ाकृ तक व ध (Natural Method) :

    कृ त ने मादा प ी पशु को अपने छोटे ब च को पालने क मता द है । ाकृ तक व ध से चूज का पालन-पोषण मु गय वारा वय ंह कया जाता है । मुग वय ंइ यवेूटर तथा डूर का काय करती है तथा इस काय म भारत क देशी मुग क तुलना और कोई मुग नह ं

    कर सकती । सामा यत: एक मुग ' अपनी शर र क गम के भाव से 8- 10 अ ड म से ब चे नकाल सकती है । इस या को अ ड ेसेना कहत ेहै । मुग उ ह या अ य सम उ के ब च को पाल सकती है । ऐसी मुग को “ डूी मुग ” कहत ेहै । ड़ूी मुग को अलग दड़बा देना चा हये ता क वह श ओंु से वय ंका तथा चूज का बचाव कर सक । जब चूजे ाकृ तक ढंग से नकलवाये जाते है, तो वे सामा यत: मु गय वारा पाले पोषे भी जाते ह। हमारे देश म कु कुट पालन यवसाय अ धकतर नधन वारा कया जाता रहा है और यह लोग कम सं या म चूजे पालने के लए मु गय का ह योग कर लेते है । तवष थोड़ी सं या म चजेू तैयार करने के लए कृ म व ध क अपे ा ाकृ तक व ध से पालन-पोषण अ धक यवहा रक माना जाता है । इस व ध से चूज़ा पालन करने म कु कुट पालक को वशेष यान देने क आव यकता नह ंहोती है और इसके लए सबंं धत साधन को एक त करने

    म अ धक यय भी नह ं करना पड़ता है। छोटे चूज का लालन-पालन : सामा यत: ' डूी मुग ' वय ंह छोटे चूज क देखभाल कर उ ह बड़ा करती है । वह य कये गये एक या दो दन के चूज क देखभाल कर सकती है, पर तु इसके लए उ ह अ यास कराने क आव यकता होती है । मुग के नीचे उवरक अ ड ेरख दये

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    जाते है । त दन रा म इन अ ड को हटाकर अ य अ डे रखे जा सकते है । इस कार कोई भी अ डा न ट नह होता है और एक दो स ताह के प चात ्मुग चूजे पालने के लए तैयार हो जाती है । मु गय वारा पालन कराने के लए चजू को रा के समय डनै के नीचे रख दया जाता है । सामा यत: इन चूज को मु गयाँ अपना लेती है । बड़े आकार क मु गयाँ स दय म 12 तथा ग मय म 15 चजू को सरलता से पालन-पोषण कर सकती है । चूज़ा पालन के लए दड़बे (Brooding coops) : मु गय तथा चूज को उनके श ओंु से बचाने के लए आव यक है क उ हे सुर त थान पर रखा जाए । इन दड़ब म नमी नह ं होनी चा हए । वे शु क होने चा हए । दड़बे के साथ तार क जाल से ढका हुआ मैदान होना चा हए । मु गय के दड़बे सामा यत: स दकूनमुा तथा झोपड़ीनमुा आकृ त के होते ह । गाँव म बासँ से कम खच ले दड़बे बनाये जा सकते ह । थानीय कार गर वारा लकड़ी के ब स वारा स ते दड़बे बनाये जाते है । ये दड़बे 75

    से ट मीटर वगाकार आकृ त के होते है । वषा से र ा के लये इसक छत पीछे क ओर ढालदार होती है । दसूरा आगे का भाग नीचा होता है । इसके सामने क द वार 5 से.मी. मोट त ती क बनी होती है । यह त ते 7.5 से.मी. के अ तर पर लगे होते है । म य वाला त ता एक सा कट म लगा होता है, िजससे क मुग के अ दर वेश करते समय इसे खसकाया जा सके। दड़ब को सरु त तथा व छ थान पर रखना चा हए, िजससे मु गयाँ सुगमता से आहार ा त कर सक । यह थान तजे धूप, वाय ुतथा पानी से सरु त होना चा हए और यहा ँपानी

    का नकास अ छा रहना चा हए । चूज को दड़ब म पहु ँचाना (Placing Chicks in Coops) : मु गय तथा चूज को ाथ मक थान से दड़ब म उसी समय पहु ँचाया जाता है, जब क उनके शर र पर छोटे-छोटे कोमल रोये आ जाये । थान प रवतन का काय सायकंाल के समय करना चा हए । चूज को ठ ड से बचाने क परू को शश करनी चा हए । मुग को एक हाथ म पकड़कर दसूरे हाथ म चजू क ढक हु ई टोकर म ले जाना चा हए । दड़बे म रखते समय चूज को पहले और मुग को बाद म वेश कराना चा हए । कई बार मु गय एव ंचजू का थान प रवतन करते रहने से उनका परजी वय के सं मण तथा बीमा रय से बचाव हो जाता है । मुग तथा चजू को दन म कम से कम एक बार धूप म अव य नकालना चा हए । इससे चूज क वृ पर अ छा भाव पड़ता है और मुग को भी धूप से लाभ होता है । चूज को आहार दान करना (Feeding of Chicks) : अ ड से नकलने के 36 घ ट तक चूज को आहार क आव यकता नह ंहोती है । चूज के घमूने- फरने के थान पर अखबार फैला देना चा हए और कृ म व ध से उ प न हु ए चूके क भाँ त ह इ ह भी आहार दान करना चा हए । ार भ म दन म कई बार चूज को आहार दान करना चा हए, िजससे वे शी ह पचा सक ।

    मु गय को आहार दान करना (Feeding of Hen) :

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    मु गय को दन म दो बार आहार दान करना चा हए और उ ह पानी लगातार ा त होना चा हए । मुग के अ व थ अथवा बीमार हो जाने पर चजू को दसूर व थ मुग के साथ कर देना चा हए । ार भ म कुछ स ताह तक मुग के दड़ब और दौड़ने वाले थान से बाहर नह ं जाने देना चा हए । इससे वह अ धक दरू तक नह ं जा सकगे, पर त ुमौसम साफ होने तथा ात: काल क ओंस समा त होने पर मुग को दौड़ने वाले थान से बाहर जाने दया जा सकता है ।

    1.2.2 कृ म व ध (Artificial Method) :

    कृ म पालन पोषण का ता पय चूज को बना मुग क सहायता के पालन से है । कु कुट पालन उ योग म वक सत देश म चूज को यापक पमैाने पर कृ म व ध से पाला जाता है । इसके अनेक लाभ है:- 1. चूज को वष के कसी भी समय पाला जा सकता है । 2. बड़े पमैाने पर चजूा पालन कया जा सकता है । 3. व छता संबधंी यव थाओं को व नय मत कया जा सकता है । 4. तापमान को आव यकतानसुार घटाया, बढ़ाया जा सकता है । 5. चूज को योजनानसुार आहार एव ंपानी दान कया जा सकता है । 6. बड़े पमैाने पर चजूा पालन करने पर त चजूा यय कम आता है । 7. डूी मुग क आव यकता नह ं होती है ।

    1.3 ू डगं के स ा त (Principles of Broodings) 1. आव यकतानसुार ताप- डूर ऐसे होने चा हये क उनके नीचे आव यकतानसुार ‘’ताप’’ ा त

    होता रहे । चूके एक जगह इक े न हो या डूर से दरू न रहे । तापमान म भ नता का यान रख । य द कमरे का तापमान ऊँचा हो तो डूर क ह ट (तापमान) कम कर देव ।

    2. काश एव ंहवा - काशमय डूर चूज को आहार खाने के लए ो सा हत करते है । यदा-कदा गम के ावधान के फल व प कु कुट पालक शु ताजी हवा क परवाह नह ं करते । ऐसा करना चजू के लए हा नकारक है । इससे चूज का वा य एव ं वकास ठ क नह ं होगा ।

    3. उपयु त सं या- डूर म वगफुट के अनपुात से ह चजेू रखे जाने चा हए । य द आव यकता से अ धक चूजे ह गे तो उनका वकास ठ क नह ं होगा । ऐसा समझा जाता है क िजतना छोटा समूह होगा, उतना ह अ छा उनका वकास होगा ।

    4. समान वातावरण- डूर म समान अव था पायी जानी चा हए । डूर गहृ म अ धक शोर न कर । बजल जाने पर चूजे उ तिेजत होकर, एक जगह एक त हो जात ेहै । हमेशा म ी के तेल के ले प तैयार रख । डूर गहृ के कोने गोलाकार बना द ता क चूजे वहाँ जाकर इक े न हो सके ।

    5. व थ चूजे पाले । 6. आहार- सम त पोषक त व आहार से ा त हो सके । इसको यान म रखना चा हए ।

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    7. सावधानी से देखभाल - डूर गहृ तथा डूर को समय-समय पर चेक करते रहे तथा कोई भी कमी नजर आये तो उसे दरू कर ।

    डूर म थान (Space under Brooder) डूर के नीचे त चूजा सात वग इचं थान मलना आव यक है । पहले 6 स ताह तक ½ वगफुट

    फश थान तथा उसके बाद 1 वगफुट फश थान मलना चा हए । एक सामा य डूर म 350 चूजे पाले जा सकते है । आहार थान त 100 चजूा एक दन म 2 स ताह क उस तक 100 ल नयर इचं 3 स ताह से 6 स ताह क उस तक - 200 ल नयर इचं 7 स ताह से व 12 स ताह क उ तक - 250-300 ल नयर इंच पानी थान त 100 चजूा एक दन से 2 स ताह उ तक - 30 ल नयर इचं या 1 गलैन के 2 वाटर फाउ टेन । 3 स ताह से 6 स ताह उ तक - 40 ल नयर इचं या 3 गलैन के 2 वाटर फाउ टेन 7 स ताह से 12 स ताह उ तक - 50 ल नयर इंच या 3 गलैन के 3 वाटर फाउ टेन पहले स ताह के चूजे हेतु यान यो य ब द ु- जब तक चजेू आहार खाना न सीख जाए, उ ह कागज पर ह आहार डाले । परुानी / नई े भी काम म ल जा सकती है । लोहे ए यू म नयम क े भी योग म लायी जा सकती है । इ ह परूा भरे ता क सब चूजे आहार खाना सीख जाये । फर आहार के तर को फ डर म 2/3 रखा जा सकता है । आहार कम से कम दन म तीन बार डालना चा हए । थम दन मोटे दाने का आहार अखबार पर डाले ता क उसक आवाज सुनकर चूजे आहार क तरफ आक षत हो । दसूरे स ताह तथा बाद म फ डर को आधे से अ धक न भरे । दसूरे स ताह के बाद पानी और फ डर क सं या बढ़ाया जाना चा हए । चौथे स ताह के बाद फ डर क ऊँचाई बढ़ाये ता क चूजे आराम से आहार खा सके । इस अव था म लटर भी बढ़ा द । धीरे-धीरे चक फ डर हटाकर बड़े फ डर लगाये जा सकते है । 10 स ताह तक ऐसी यव था कर क त प ी 3 इचं आहार थान मल जाये । डूर 6 स ताह के बाद हटाया जा सकता है । अ छ कार से ू डगं हुआ या नह ,ं इसको जाचँने के लए देख क :- मृ य ुदर 5 तशत से अ धक न हु ई हो । सम त चजू का सम वकास हुआ है । परै टखने पीले हो, को ब चमक ला हो, आँखे चमकदार हो । चूज का इ क ा होना -- बहु धा डूर गहृ ऐसा देखा जाता है िजसम चजेू एक जगह इ क े हो जाते ह । इसके कई कारण हो सकते है :- 1. डूर म कम तापमान 2. कमजोर पखं सं थापन 3. तनाव, वातावरण म अचानक प रवतन, तापमान म अनायास भ नता 4. अ धक समय तक डूर का योग

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    य द उपयु त त य क जानकार एव ं यव था के बाद भी चजेू एक थान पर एक त हो तो उ ह पच (Perch) दये जाने चा हये । चूज म एक से दसूरे म उ तेजना क ि थ त हो जाती है । अत: यह आव यक है क उनम कोई ऐसा कारण नह ं पदैा कया जावे क िजससे तनाव या उ तेजना हो । मुग वातावरण एव ंअ य अ यव थाओं म अपने को उसी प म ढाल देती है । वे आपस म सहायता एव ंव वास ा त करने के लए उ तेजना के अवसर पर एक त होकर सरु त महसूस करती है, पर तु ऐसा होने पर नीचे क मुग बना सासँ के एव ंअ धक भार होने के कारण मर सकती है । य द ब ध यव था म मगु के मनोवै ा नक कारण क ओर यान दया जाये तो लाभ अ धक ा त हो सकता है । ू डगं से पवू तैया रयाँ :- कसी भी कु कुट शाला को शु करने से पहले हम कु कुटशाला (मुग गहृ)

    के नमाण का नणय करना होगा । वा तव म आजकल भू म व भवन क अ धक लागत क वजह से वतमान म डूर- लेयर हाउस प त को अपनाया जा रहा है । इस प त म प य को एक दवस क आय ुसे अ डा उ पादन क अव ध तक एक ह गहृ म रखा जाता है । मुग शाला भवन :- मकान क अ धकतम चौड़ाई 30 फुट हो, ल बाई पाल जाने वाल मु गय क सं या के अनसुार रखी जाती है । ऊँचाई 10' - 12' तक रख सकते है । छत प क व तीन फ ट छ ज वाल होनी चा हए । फश प का व समतल होना चा हए ता क उसम भू म क नमी न आ सके । भवन के बनने के 10-15 दन बाद उपयोग म लेना चा हए । य द शाला भवन परुाना हो तो उसे क टाणु र हत करना चा हए । लटर : - चूज़ा ाि त के 4-5 दन पहले कर ब 2'' - 4'' मोटाई म लटर बछाकर सखूने देते है । एक दवसीय चज़ूा आने के 24 घ टे पवू लटर पर दो परत अखबार क बछा देत ेहै । 10 वग फुट े हेतु एक कलो ाम क दर से चूना लटर म मला देते है । ू डगं अव था म 100 चजू हेतु आव यक थान - .स. ववरण आय ुवग आव यक थान

    1 फश थान 0-4 स ताह 3-8 स ताह

    50 Sqft/ 4.5 Sqm. 100 Sqft/ 9 Sqm.

    2 दाना खाने हेतु थान 0-4 स ताह 5-8 स ताह

    250cm./ 200'' ल बाई 500 cm./ 200'' ल बाई

    3 पानी हेतु थान 0-4 स ताह 5-8 स ताह

    25'' ल बाई थान 50'' ल बाई थान

    वशेष :- दाने व पानी के ल बे बतन के योग म लया जावे तो दोन तरफ क ल बाई को जोड़कर ल बाई क गणना क जानी चा हए । पानी के बतन : ये बतन जी.आई. चादर, लाि टक, पी.वी.सी या म ी के बने होते है । 2 ल टर डालडा के ड ब को लेट म उ टा रखकर बनाये जा सकते है । पानी के बतन म चजू को जाने से रोकने के लए उन पर जाल या गाडस लगा देत ेहै ।

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    आहार बतन : ये बतन जी.आ.ई. चादर, लोहे क चादर या ए यू म नयम के बने होते है । ार भ के दो स ताह तक चजू को आहार 1 '' -2 '' गहर लेट म दया जाता है तथा बाद

    म फ डस का उपयोग कया जाता है । चूज क बढ़ती उस के साथ ऊँचाई, टे ड या ईट वारा बढ़ाई जाती है । चजेू ाि त के 72 घ टे पवू कु कुटशाला म आहार एव ंपानी के बतन

    तैयार रख । व यतु यव था : कु कुट शाला म त 10 वग फुट थान पर एक 60 वाट के ब व क यव था कर व कुछ लग पाइ ट का ावधान भी रख, िजससे डूर को जोड़ा जा सक । चूजे आने के 24 घ टे पवू डूर चालू कर उनका तापमान नयं त कर । बजल ब द होने पर वक प तैयार रख ।

    1.4 व भ न कार के डूर डूर को रयरस या फॉ टर मदर भी कहते है । ू डगं व ध के आधार पर डूर कई कार

    के होते है, जो न न ल खत होते ह:-

    1.4.1 ठंडी ू डगं व ध (Cold Brooding) :

    य द वातावरण अ धक ठ डा न हो, डूर म बना अ त र त ताप के चजेू रख जा सकते है । इस व ध को ठ डी ू डगं व ध कहते है । इस व ध म लकड़ी का एक छोटा सा स दकु तथा उसम बछाल योग म लाई जाती है । इस काय के लए योग क गई टोकर , िजसक तल म बार क घास क मोट परत वाल बछावन हो तथा उसम चूज के आने-जाने के लए एक छ भी हो, लाभ द पाई गई है । 37.5 से.मी. यास वाल टोकर म 30 चजू को सरलता से रखा जा सकता है । ठ डे डूर वाल व ध म टोकर के चार ओर कसी कार क द वार बनाकर चूज को ार भ के चार-पाँच दन तक थोड़े थान म ह रखना चा हए । ऐसा करने से चूजे इधर-उधर मण न कर सकगे और ठ ड से उनका बचाव हो सकेगा । चूज को सात से दस दन तक रा के समय टोकर म ह ब द रखत ेहै । बड़े चूज को इस व ध से पालना क ठन नह ं है, पर त ुछोटे चूज को उस समय ह इस व ध से पालना चा हए, जब क वातावरण का ताप पया त ऊँचा हो और अ धकतम या यनूतम म अ धक अ तर नह ं हो ।

    1.4.2 गम डूर व ध :-

    गम डूर क बनावट बहुत कुछ ताप देने वाले धन पर नभर करती है । सामा यत: ऐसे धन म ी के तले एव ं व यतु के होते है । इन डूर को मश: ले प तथा व यतु से चलने

    वाले डूर कहते ह । कुछ डूर म ताप ोत के आसपास ताप को छोटे से े म सरु त रखने के लए द वार बनी रहती है । इ ह अं ेजी म हावस (HOVERS) कहते है । म यम एव ंबड़े आकार के डूर (Medium and Big Size Brooder) म यम आकार के डूर म लगभग 60 - 100 चजेू तथा बड़े आकार वाले डूर म कई हजार चूजे एक साथ पाले जा सकते ह । बड़े आकार के डूर यापा रक सं थान म च लत होते ह, य क वे पड़े पमैाने पर चजेू पालते ह । म यम आकार के डूर म ताप का ोत म ी

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    का तले, कोयला, लकड़ी, गसै तथा बजल होता है । बड़े आकार के डूर को कोयला गसै अथवा तेल क सहायता से चलाया जाता है । लै प से चलने वाले डूर (Oil Type Brooder) : इस कार के डूर बहु त सरल होते है । ये लकड़ी के ब स के बनाये जाते है और अ य डूर क अपे ा इनम कम यय होता है । इ ह गम करने के लए ले प अथवा साधारण लालटेन योग क जा सकती है । मैदान म योग कये जाने वाले डूर म हर केन लालटेन बहु त

    स तोष द स हु ई है । टोकर नमुा डूर (Basket Type Brooder) : इस कार के डूर भी साधारण और मत ययी होत ेहै । इ ह साधारण टोकर से बनाया जा सकता है । वाय ुके ती झ क को डूर के अ दर जाने से रोकने के लए टोकर के नचले आधे भाग म टाट बाधँ दया जाता है अथवा सीमे ट का म ण लगा दया जाता है । टोकर के ऊपर के आधे भाग को धुआँ नकालने के लए छोड़ दया जाता है । इस कार के डूर म ताप उ प न करने के लए साधारण हर केन लालटेन का योग कया जाता है । लालटेन के डूर के म य म रखकर चार ओर से तार क जाल से घेर देते है, िजससे चजेू लालटेन के स पक म आकर जल न जाये । डूर क भू म पर बरुादा अथवा अ य बछावन बछा द जाती है, इसम चूज का सद से बचाव होता है तथा आराम भी मलता है । टोकर का आकार चूज क सं या पर नभर करता है । इसका मू य 15-20 पये के लगभग होता है और लालटेन ह एक महँगी व तु इस व ध म होती है । लकड़ी के ब स के डूर (Wooden Box Type Brooder) : इनका आकार 90 से.मी. ल बा, 60 सेमी. चौड़ा तथा 75 सेमी. ऊँचा होता है और ये लकड़ी के ब से से तैयार कये जात ेहै । वां छत आकृ त दान करने के लए इसक तल और छत हटा ल जाती है । छत पर ट न क चादर इस कार डालत ेहै क पीछे क ओर ढाल रहे, िजससे वषा का पानी अ दर न जाने पावे । डूर के धरातल पर 1/4 से.मी. छ वाल जाल लगा द जाती है, िजससे चजू क व ठा नीचे गरती रहती है । इससे डूर के अ दर ग दगी नह ं रहती है और चूज म बीमार फैलने का भय भी कम हो जाता है । ार भ म तार क जाल पर घास-फूस बछा दया जाता है, िजससे चूज के कोमल परै म चोट न आने पावे, पर तु बाद म उनके थोड़ा बड़ा हो जाने पर इसे हटा दया जाता है । डूर के म य म ताप देने के लए लालटेन रख द जाती है और इसे चार ओर से तार क जाल से घेर दया जाता है । ले प से धुआँ बाहर नकलने के लये डूर क छत म बने छ से टन क चमनी लगा द जाती है । वषा से बचाव के लए चमनी के ऊपर तक ढ कन लगा दया जाता है । इससे धुआँ भी नकलता रहता है. और वषा का पानी अ दर नह ं जा सकता । ब से के ऊपर भाग म वाय ुके आवागमन के लए गोल छ बना दये जाते ह । धरातल क ओर सटर का छोटा सा वार बना दया जाता है, िजससे चजेू सुगमता से बाहर अथवा अ दर आ जा सक । डूर के चार ओर पाये बने रहते है, िजससे वह भू म के धरातल से ऊपर उठा रह सक । स दकुनमुा उ त ढंग का डूर (Improved Box Type Brooder) :

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    यह डूर आकार म 90 से.मी. ल बे, 60 सेमी. चौड़े तथा 20 सेमी. ऊँचे आयताकार स ती लकड़ी के ब से से थानीय कार गर वारा तैयार कये जा सकते है । छत तथा धरातल क ति तय को नकाल दया जाता है । धरातल म 1 ¼ से.मी. तार वाल जाल लगा द जाती है । यह जाल फश का काम देती है तथा चूजे भी इस पर आराम कर सकत ेहै । सरे पर 90 से.मी., 60 से.मी. आकार का लकड़ी का ढाचँा होता है, जो क 1 ¼ से.मी. वाल तार क जाल से ढका रहता है । इस ढ कन म क जे लग जाने से वह आव यकतानसुार खोला अथवा ब द कया जा सकता है और ढ कन के प म काम करता है । ब स क चार ह नट म 3.75 सेमी. यास वाले छ 2.5 सेमी. क दरू पर बने रहते है, जो क धरातल से 3.75 सेमी. ऊपर क ओर बनाये जाते है । धरातल के चार ओर 7.5 से.मी. चौडा छ जा बना रहता है । बा स के चार कोन पर 7.5 सेमी. ऊँचे पाये होते है । छ जाओं पर िजकं के बने पानी तथा आहार के बतन रखे रहते है । ताप- देने के लए 1 ¼ से.मी. तार वाल जाल के अ दर हर केन लालटेन रखी रहती है अथवा 60 वाट का व यतु बल लगा रहता है । इस कार वाले डूर म 50-60 चजेू पाले जा सकत ेहै । अ य डूर क अपे ा इस डूर मे केवल लाभ यह है क इस कार के डूर म चजू को पालने-पोषने तथा दौडने संबधंी सु वधाय ा त होती ह । मौसम साफ होने पर तथा धूप नकलने पर लालटेन अथवा व यतु के बल

    हटाकर डूर को धूप म रख दया जाता है । डूर के छत के आधे भाग को खुला छो कर आधे भाग को टाट से ढक दया जाता है । इस कार चूजे इ छानसुार बाहर आ जा सकते है । रा के समय ले प को पनु: जला दया जाता

    है तथा ठ ड के समय स पणू छत को टाट अथवा क बल से ढक दया जाता है । आर भ के 2-3 स ताह तक ऐसा करना आव यक है । चौथे स ताह के प चात डूर को न तो ढकना ह आव यक है और न ह गम करना । डूर के धरातल पर व छ बछावन घास, भूसा आ द बछा देनी चा हए । इसको त स ताह एक बार अव य बदल देना चा हए । य द आव यक न समझा जाये तो 2-3 स ताह बाद भी बदला जा सकता है । चूज को मु यत: ठ डी हवा के झोक से बचाने के लए द वार म बने छ को क जे लगी छ जे वाल लकड़ी को उठाकर ब द कर दया जाता है । व यतु च लत डूर (Electric Type Brooder) : आजकल कई कार के व यतु च लत डूर उपल ध है । इनक रचना ले प से चा लत डूर क तरह ह होती है । केवल इतना ह अ तर होता है क इसम ताप का ोत व यतु ब व अथवा गम करने वाला तार होता है, जो क ब से क छत म लगा होता है । इसक काय कुशलता व यतु वाह पर नभर करती है और व यतु न होने पर चजेू ठ ड लगने से मर जाते है । य द व यतु स ती हो तो व यतु च लत डूर स ता पडता है । लकड़ी का साधारण ब सा लेकर व यतु च लत स ता एव ंकुशल डूर तैयार कया जा सकता है । इसम लालटेन के थान पर 60-60 वॉट के चार ब ब लगाये जा सकते है । बटैर डूर (Battery Brooder) जब थान क कमी हो और थोड़ ेसमय म ह बड़ी सं या म चूजे पालने हो तो इसके लए बटैर डूर उपयु त रहत ेहै । ये डूर एक दन क आय ुसे 4 - 6 स ताह क आय ुतक चूज

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    को पालने के काम म लाये जा सकते ह, पर तु ार भ म इनको य करना मंहगा पड़ता है । बटैर डूर म एक के ऊपर एक कई दराज रहती है और येक दराज से चूज के बठैने के लए तार क जाल लगी होती है । प य क बीट जाल के नीचे लगी े म गरती है, िजसे अनसुंधान काय के लए एक त कया जा सकता है अथवा फका जा सकता है । डूर म शीतक क तथा दौड़ने का थान भी होता है । येक क के चार ओर आहार एव ंपानी के बतन लगे रहत ेह । इस डूर के न न ल खत लाभ है: 1. कम थान म अ धक से अ धक चजेू पाले जा सकते है । 2. चूज क मृ य ुदर घट जाती है । 3. उ ह तैयार करने म लागत भी कम आती है । 4. इन डूर को सुगमता से व छ एव ं नज वीकरण कया जा सकता है । बटैर डूर से हा नयाँ :- इस डूर से न न ल खत हा नयाँ है । 1. चूज का ारि भक यय बहु त अ धक आता है । 2. हेचर म इस व वास के कारण क चूजे न बकने पर पालन कर लया जायेगा, अ धक

    अ ड का उ मायन कर दया जाता है और फर व य कम होने पर डूर म अ धक चूजे रखने पड़त ेहै ।

    3. चूज को घमूने- फरने के लए अ धक थान ा त नह होता है और उ ह यायाम का कम अवसर ा त होता है ।

    इं ारेड डूर (Infrared Brooder) : इस डूर म भूरे एव ंलाल दोन रंग के ले प योग कए जात ेहै । 250 वॉट के ले प मा एक अथवा जोड़ म अथवा 3-6 ले प क सं या म योग कए जाते है । डूर म चूज को सेने क मता ले प क सं या पर नभर करती है । ार म म बल क ऊँचाई फश से 46 से.मी. ऊँची रखी जाती है, पर त ुबाद म त स ताह 7.5 से.मी. बढ़ा ल जाती है । ऊँचाई म यह वृ उस समय तक क जाती है, जब तक क वह 60 से.मी. न हो जाए । य य प ू डगं क इस प त को सफलतापवूक योग कया जा सकता है । पर तु अभी तक यह व ध

    अनसुंधान क अव था म है । साथ ह योग म न न ल खत बाधाय है - 1. इसे योग करने से व यतु अ धक यय होती है । 2. डूर म कोई अंधेरा थान न रह जाने के कारण चूज म वजा त भ ण का वभाव पड़

    जाता है । 3. इस कार के डूर म हावर क कमी के कारण चजू वारा छोड़ी गई उ णता एक त

    नह ं हो पाती, िजससे क व यतु क कमी के समय यह उ णता चूज को उ ण रख सके और अ या धक ठ ड से उनका बचाव हो सके।

    4. 4.44 से ट ेट से कम ताप वाले थान पर इन डूर का योग नह ं करना चा हये ।

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    च : 1.4.2.1

    Fireless Brooder used for Chicks of five weeks Intensively. Sides Stuffed

    with Hay. 4’.8’’ long x 2’.5’’ wide x 2’.5’’ High.

    Fig. : 1.4.2.2

    1.5 ू डगं / रय रगं के दौरान ल जाने वाल सावधा नयां चूज के पालन-पोषण के लए जो य काम म लया जाता है, वह डूर कहलाता है । इसका चूज के पालन-पोषण से गहरा सबंधं है । अत: डूर के अ दर वह सभी साधन एव ंअव थाय व यमान होनी चा हए, िजनका क चूज क वृ पर लाभ द भाव पड़े और उनक मृ य ुदर भी कम बनी रहे । ू डगं अथवा रय रगं हेत ु डूर म न न दशाय होनी चा हए :- 1.5.1 तापमान (Temperature) - डूर म चूज को रखने के पवू 2-3 दन तक डूर

    को चलाकर उसके तापमान का अ छ तरह पर ण कया जाता है । ार भ म भू म से 5 से.मी. क ऊँचाई पर 35.0 से ट ेड तापमान होना आव यक है । तापमान को त स ताह लगभग 2.0 से ट ेड कम करते रहते ह । जब तक चौथे स ताह म ताप 23.30 से ट ेड तक न पहुचँ जावे । इसके प चात तापमान को इसी तर पर रखा जा सकता है । तापमान म कमी करना मौसम तथा बाहर तापमान पर नभर करता है ।

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    बढ़ते हु ए चजू म कतना ताप आव यक है, इसके लए कसी कार के व श ट नयम नह ं है । इनका नधारण यि तगत नणय एव ंअनभुव के आधार पर कया जाता है । ताप को उस तर पर रखा जाना चा हए, िजस पर चजेू आराम से रह सक । अत: तापमान संबधंी प रि थ तय म चूज क ग त व धय क जानकार रखना आव यक है । चूज को देखने से ह ात हो जाना चा हए क वे आराम से है या नह ं । डूर म ताप अ धक होने से चूजे तपने लगते ह और वे गम से बचने के लए कभी-कभी तो कोन म सं ह बनाकर एक त हो जात ेहै । इसके वपर त कम ताप होने पर चूजे डूर के के म ढ कन के नीचे एक त हो जाते ह । डूर के अ दर उ चत तापमान होने पर चूज को आराम मलता है, वे डूर म चार और फैल जाते ह और स न दखाई देते है ।

    चूज के पर भल -भाँ त उग आने के प चात कम उ मा क आव यकता होती है । सद क ऋतु म अ धक समय तक (लगभग 8 स ताह) उ मा दान करना आव यक होता है, पर त ु ी म ऋतु मा 5 स ताह अथवा इससे भी कम समय तक उ मा दान करने क आव यकता होती है । व यतु क अनपुि थ त म कोयला आ द

    जलाकर उ मा दान क जा सकती है, पर तु इस दशा म धआँु नकलने का ठ क से ब ध होना चा हए ।

    1.5.2 संवातन - वृ करने वाले चजू वारा वसन या म काबनडाईऑ साइड गसै और वा प बाहर नकाल जाती है, जो क हावर के नीचे एक त हो जाती है । इनको डूर से बाहर नकालने के लए संवातन क उ चत यव था आव यक है । साथ ह

    वाय ुके ती झोक से भी चूज का बचाव करना आव यक है । 1.5.3 शु कता एव ंसूय काश :- य द डूर एव ं डूर के रखने के कमर म शु कता होगी

    और सूय के काश जाने क उ चत यव था होगी तो वहां पर नमी नह ंरहेगी, िजससे बीमार फैलने वाले जीवाणुओं के सं मण का डर भी नह ं रहेगा । वाय ुवेग अ धक ती न होने क दशा म खड़क को थोड़ा खोलकर सूय काश को डूर के अ दर जाने देना चा हए । इससे न केवल बछावन ह शु क रहेगा, अ पतु चूज के लए वसं मण एव ं वटामीन 'डी के ोत का भी काय करेगा । चजू क अि थय क वृ के लए वटामीन 'डी बहु त आव यक है ।

    1.5.4 व छता (Sanitation) - बीमार फैलाने वाले जीवाणु ग दगी मे पदैा होत ेहै और डूर एव ं डूर के कमर म व छता रखने से बीमा रय के सं मण को पया त

    सीमा तक रोका जा सकता है । इससे चूज क मृ य ुदर कम हो जाती है । चूज को डूर म रखने के पवू उ ह भल -भाँ त साफ और वसं मत कर लेना चा हए । व छता म फश क ग दगी को हटाना, रगड़कर साफ करना और द वार क व छता भी शा मल है । फश, द वार एव ंअ य आ त रक व तुओं को रगड़कर साफ

    करने के प चात गम लाई से धोना चा हए । नम बछावन एव ंबीमार चजू म बीमार फैलने क सभंावना रहती है । कुछ दन तक ू डगं कराने के प चात चजू को बाहर

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    घमूने के लए जाने दया जाता है, पर त ुयहाँ पर एक वष तक न तो प ी रखे गये हो और न ह वय क प य को इनके साथ मलने देना चा हए ।

    1.5.5 डूर के अ दर का थान (Brooding Space) - सामा य दशाओं म चजेू शी ता से वृ करत ेह और 6 स ताह तक त दो स ताह म उनका भार दो गनुा हो जाता है । चजू को सफलता से पालने के लए डूर म पया त थान होना चा हए । ह क न ल के चूज के लए 17.5-250 वग से ट मीटर तथा भार न ल म त चज़ूा 25.0-25.0 वग से ट मीटर धरातल थान क आव यकता होती है । 60 से.मी. ल बे, 60 से.मी. चौड़ ेतथा 25 से.मी. ऊँचाई वाले डूर म 50-70 चजू को पालने का पया त थान होता है ।

    1.5.6 डूर के अ दर बछावन (Litter Material in brooder) - चूज को सीलन तथा ठ ड से बचाने के लए डूर के अ दर व छता रखने के लए फश पर बछाल क आव यकता होती है । इसके लए लकड़ी का बरुादा, धान का छलका, तथा कट हु ई पआुल और भसूा आ द पदाथ अ छे रहत ेहै । बछावन को 5- 10 से ट मीटर मोटा बछाना चा हए और न य ात: इसे पलटना चा हए । व ठा से अ धक ग दा हो जाने पर बछावन को बदल देना चा हए । बछावन के गीला हो जाने पर भी उसे बदलने क आव यकता होती है ।

    1.5.7 आग लगने का भय (Fire Hazard) : - य द डूर को गम करने के लए कोयला तथा लकड़ी जलाई जाती है, तो आग लगने का अ धक भय रहता है । अत: इसे जलाने वाले बतन को इस कार ढग कर रखना चा हए क ू डगं कराने वाले कमरे म आग न पकड़ने पावे । तेल जलाने वाले ू डगं म भी इसी कार क सावधानी क आव यकता होती है । व यतु चा लत डूर म तार के कने शन आ द ठ क से पर ण करके रखना चा हए और कोई तार ढ ला नह ं होना चा हए । डूर के तार भी अ छ वा लट के होने चा हए ।

    1.6 सारांश अ ड से जो चूजे नकलते है, वह बहु त कोमल होत ेहै । उ ह बहु त ह सावधानी से पाला जाता है । इसी तकनीक को ू डगं कहत ेहै । इसके लालन पालन क मु यत: दो व धया ँहोती है । थम ाकृ तक व ध - िजनम चूज का पालन-पोषण मुग वारा वय ंह कया जाता है । मुग वय ं डूर का काय करती है । इसे अ डे सेना भी कहते है । इस व ध म मुग को दड़बे दान करना तथा चजू व मुग को आहार क आव यकता को यान म रखा जाता है । दसूर ू डगं तकनीक कृ म व ध है, इसम व भ न कार के डूर बनाकर चजू को वहृद तर पर पाला जाता है । चजू को ू डगं के व त उनक पया त गम कृ म व ध से ह क जाती है । उनके काश, हवा, पया त थान, भोजन, पानी इ या द का यान उनक उ अनसुार रखा जाता है ।

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    अ छ कार ू डगं करने से चूज म मृ य ुदर कम होती है । सम त चूज का सम वकास होता है।

    1.7 नावल . 1 ू डगं रय रगं या है? इसक कौन सी व धया ँहै । उनका व तार से वणन कर। . 2 ू डगं के या स ा त है? चूज क व भ न आव यकताओं का मवार वणन कर। . 3 ू डगं से पवू या- या तैया रयाँ क जानी चा हए? ब दवुार लखे । . 4 व भ न कार के डूर का स च वणन कर? . 5 आधु नक के दौरान अपनायी जानी वाल सावधा नयाँ या है? वणन कर । . 6 आधु नक डूर या है? स च वणन कर ।

    1.8 संदभ- पु तके 1. “Principles Practice of Poultry’’Husbandry” Tom Newman 2. “Poultry” G.C. Banergee 3. “Poultry Husbandry” Morley a Jull 4. “Poultry Production” Leslie E.Card

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    चक ब धन, ोवर ब धन, लेयर ब धन एव ं ायलर ब धन

    इकाई-2 2.0 उ े य 2.1 तावना 2.2 यु त श दावल क ववेचना 2.3 चूज का ब धन (Chick Management)

    2.3.1 ाकृ तक व ध (Natural Method) (1) चूज के दड़बे (Brooding Coops) (2) चूज को दड़ब म पहु ँचाना (Placing Chick in Coops) (3) चूज को आहार दान करना (Feeding Of Chicks)

    2.3.2 कृ म व ध (Artificial Method) (1) उ नत चजूा न ल (Quality Chicks) (2) चूज़ा पालन (Brooding) (3) चूज का ट काकरण (Vaccination) (4) चूज का लगं भेद पर ण (Chicks Sexing)

    2.4 पठोर पालन (Grower Management) 2.4.1 काश यव था (Light Arrangement) 2.4.2 डबी कंग (च च काटना) (Debeaking) 2.4.3 आवास यव था (Space) 2.4.4 बछावन (Litter) 2.4.5 आहार एव ंपानी (Feed & Water)

    2.5 लेयर ब धन (Layer Management) 2.5.1 आवास यव था (Housing Management) 2.5.2 आहार यव था (Feeding Management) 2.5.3 बछावन यव था (Litter Management) 2.5.4 जल यव था (Water Management) 2.5.5 काश यव था (Light Management) 2.5.6 उपचार एव ंट काकरण यव था (Treatment & Vaccination) 2.5.7 अ डे हेतु दड़बे (Nest for eggs)

    2.6 ायलर ब धन (Broiler Management) 2.6.1 आवास गहृ क यव था

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    2.6.2 आहार यव था (Feeding Management) 2.6.3 ायलर का उ पादन गणु (Production Efficiency) 2.6.4 काश यव था (Light Management) 2.6.5 शव नवतन (Disposal of Dead Birds)

    (1) इन सनरेटर (2) ड पोजल पट

    2.6.6 कु कुट शाला क सफाई (Cleaning of Poultry House) 2.6.7 कु कुट पालन क पजंरा णाल (Cage System of Poultry House)

    (1) पजंरा णाल के लाभ (Advantage of Cage System) (2) पजंरा णाल से हा न (Disadvantage of Cage System)

    2.7 साराशं 2.8 नावल 2.9 स दभ - पु तक

    2.0 उ े य कसी भी यवसाय को लाभ द बनाने के लए उस यवसाय का ठ क से ब धन करना मह वपणू ब द ुहै । बना उ चत ब धन के कु कुट पालन का यवसाय उ न त नह ं कर सकता । इसी लए आजकल िजतने भी उ योग तर क कर रहे ह, सभी ब धन क ओर वशेष यान दे रहे ह । कु कुट पालन का यवसाय अलग-अलग उ े य क पू त के लए कया जाता

    है । जसेै - चूज का यवसाय (Brooding and Rearing of Chicks)] पठोर पालन (Grower Management)] अ ड वाल मु गय का पालन (Layers Management)एव ंायलर उ पादन (Broiler Production) आ द । इन सभी का ब धन अलग-अलग तरह

    का होता है । सभी क अलग-अलग आव यकताऐं होती है । उन आव यकताओं क पू त हेतु वशेष यान देना होता है । जसेै -आहार क यव था, पानी क यव था, काश क यव था, थान क यव था, बछावन क यव था, लेखा-जोखा रखने क यव था, उ पाद के व य

    क यव था, ट काकरण एव ंउपचार आ द क यव था आ द । य द कसी मुग पालक ने बहु त अ छ न ल के चजेू पाल लए, उनके लए आहार भी अ छ गणुव ता का खर द लया, पर तु उस आहार को खलाने का ब धन अ छा नह ंहै, तो अ छा उ पादन ा त नह ं कया जा सकता । इसी तरह य द अ छा आहार देकर अ छा उ पादन भी ा त कर लया, पर तु अ ड एव ंमासँ के व य क यव था ठ क नह ं है, तो अ छा लाभ नह ं कमाया जा सकता । अत: अ छे ब धन क येक तर पर आव यकता होती है ।

    2.1 तावना चूज (Chicks), पठोर (Growers), अ डा देने वाल मुग (Layers), मासँ के लए ायलस (Briolers) आ द का ब धन अलग-अलग तर क से कया जाता है । चजेू पालने के लए

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    डूर क आव यकता पड़ती है । ये चूजे बहु त कोमल होत ेह, इ छा पालन-पोषण वशेष सावधानी पवूक कया जाता है । चूजे जब बड़े हो जाते है, उ ह पठोर कहते ह । उस समय इनक च च काट द जाती है । इनके लए काश, बछावन आ द क यव था का यान रखा जाता है । इनक बढ़ो तर के लए वशेष कार का आहार होता है । इसी कार अ डा देने वाल मु गय क यव था वशेष कार क होती है । अ धक अ डा उ पादन के लए वशेष कार का आहार दया जाता है तथा अ ड एव ंमाँस से अ धक से अ धक क मत ा त हो

    सके, इसके लए उ चत व य क यव था क जाती है ।

    2.2 यु त श दावल क ववेचना डूर (Brooder) चूज़े पालने का पा ट (Grit) आहार म मलाये जाने वाले माबल के टुकड़ े

    च स (Chicks) चूजे पठोर (Growers) अ डा देने से पवू आय ुक मुग लेयस (Layers) अ डा देने वाल मुग ायलस (Broilers) माँस के लए पाले जाने वाले कु कुट बछावन (Litters) कु कुट के नीचे बछायी जाने वाल साम ी ू डगं (Brooding) चूज को पालने क व ध

    दड़बे (Nests) चूजे एव ंमुग को रखने का पा चक टाटर (Chick Starter) चूज का आहार चक सेि संग (Chick Sexing) चूज का लगं पर ण डबी कंग (Debeaking) कु कुट क च च काटना फ डर (Feeder) आहार रखने का पा इन सनरेटर मतृ मु गय को व यतु वारा न ट करने का यं ड पोजल पट मतृ मु गय को ग ढा खोदकर गाड़ना

    2.3 चूज़ का ब धन (Chicks Management) चूज का पालन-पोषण वशेष कार से कया जाता है । चू ं क ये बहु त कोमल होते है, इनके पालन-पोषण क व ध को ू डगं (Brooding) कहते है । चूज क ू डगं कराने क दो व धया ँहै ।

    2.3.1 ाकृ तक व ध (Natural Method)

    इस व ध म मु गय वारा वय ंह चूज का पालन कया जाता है । देशी मुग ाय: चूज का वय ंपालन करती है । गाँव म कम सं या म देशी मुग पालने वाले कु कुट पालक इसी व ध वारा चजेू पालते है । इसम कोई खचा नह ं आता तथा कु कुट पालक को वशषे यान देने क आव यकता नह ं होती । मुग वय ंआव यकतानसुार अ ड के ऊपर बठैकर तापमान

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    को संतु लत करती है । जब अ ड से चूज़े नकल आते है, तो मुग वय ंह छोटे चजू क देखभाल करती है । इन चूज को सद से बचाने के लए इन चूज पर मु गयाँ बठैकर गम दान करती है । बड़े आकार क मु गयाँ स दय म 12 तथा ग मय म 15 चूज का सरलता

    से पालन-पोषण कर सकती है । (i) चूज के दड़बे (Brooding Coops)

    चूज को तथा मु गय को श ओंु से बचाने के लए दड़ब म रखा जाता है । इन दड़ब म यह यान रखा जाता है क नमी नह ं होनी चा हए तथा ये दड़बे मजबतू, वायदुार, स त,े तथा सुर त होने चा हए । दड़ब को सुर त तथा व छ थान म रखना चा हए, िजससे मु गयाँ सुगमता से आहार ा त कर सक । यह थान तेज धूप, वाय ुतथा पानी से सरु त होना चा हए और यहाँ पानी का नकास अ छा रहना चा हए ।

    (ii) चूज को दड़ब म पहुचँाना (Placing Chicks in Coops) मु गय तथा चूज को ाथ मक थान से दड़ब म उसी समय पहु ँचाया जाता है, जब क उनके शर र पर छोटे-छोटे कोमल रोए आ जाऐं । थान प रवतन का काय सायकंाल के समय करना चा हए । चूज को ठ ड से बचाने क परू को शश करनी च हए । दड़बे म रखते समय चूज को पहल और मुग को बाद म वेश कराना चा हए । मुग तथा चूज को दन म कम से कम एक बार धूप म अव य नकालना चा हए । इससे चूज क वृ पर अ छा भाव पड़ता है ।

    (iii) चजू को आहार दान करना (Feeding of Chicks) अ ड से नकलने के 36 घ ट तक चूज को आहार क आव यकता नह ं होती है । चूज के घमूने के थान पर अखबार फैलाकर आहार दान कया जाता है । ार भ म चजू को कई बार थोड़ा-थोड़ा आहार दान कया जाता है । इन का आहार वशेष कार का होता है, िजसे चक टाटर (Chick Starter) कहते ह । त 1000 चजू के लए 5 इंच ल बाई के 25-30 बतन पया त है । आहार बतन को आधे से अ धक नह ं भरा जाना चा हए । आहार बतन को ऐसा रखना चा हए क उस पर रोशनी रह । इनके आहार म

    ट (माबल टुकड़)े भी मला सकत ेहै ।

    2.3.2 कृ म व ध (Artificial Method)

    कृ म पालन पोषण से ता पय चूज को बना मुग क सहायता से पालना है । अ धक सं या म चजू को इस व ध वारा ह पाला जाता है । इस व ध के अनेक लाभ है । चूज को वष के कसी भी समय पाला जा सकता है । बड़े पमैाने पर आ पालन कया जा सकता है । व छता संबधंी यव थाओं को नय मत कया जा सकता है । तापमान को घटाया-बढ़ाया जा सकता है । चूज को योजना अनसुार आहार एव ंपानी दया जा सकता है । बड़े पमैाने पर चजूा पालने पर त चूज़ा यय कम आता है ।

    (i) उ नत चजूा न ल (Quality Chicks)

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    चूज़ा खर दते समय न न बात पर यान दया जाना चा हए । व थ मु गय से ह चजेू ा त कए जाये । एक दन के चूजे का वजन कम से कम 38.6 ाम होना चा हए । सभी चज़ेू एक आकार के तथा एक रंग के ह तथा साफ सथुरे ह । सभी चूज क आँख चमक ल , ना भ सूखी हो तथा सभी चूजे चु त एव ं व य हो । जहाँ तक सभंव हो,एक थान से चूजे य करने चा हए । ार भ म तीन घ टे तक चजू को पानी ह पलाना चा हए, फर आहार खलाना चा हए।

    (ii) चूजा पालन (Brooding) कृ म व ध से चजेू पालने के लए एक पा काम म लया जाता है, िजसे डूर कहते है । इस व ध वारा चूजे पालने को ू डगं कहा जाता है । डूर के नीचे ाय: न न कार से गम पदैा क जाती है । व यतु बल के डूर वारा जहाँ व यतु नह ं ह , वहाँ टोव, पै ोमै स लै प आ द से गम तथा रोशनी पदैा क जाती

    है । कभी-कभी परेू मकान का ह ए.सी. यं वारा या ह टर वारा ताप नधा रत कया जाता

    है। डूर का तापमान बछावन से 5 सेमी. ऊपर नापा जाता है । ग मय म सद क अपे ा कम

    चूजे डूर म रखत ेहै । चूज के ब स को चूज़ा गहृ म उतार, िजतने चजेू िजस डूर के नीचे रखने ह , उतने ब से येक डूर के पास रखने चा हए । डूर के नीचे चूजे छोड़ने से पहले यह सु नि चत कर लेना चा हए क डूर ठ क काय कर रहा है, उसका तापमान ठ क है, गाड लगे हु ए ह । आहार एव ंदाने के समुचत मा ा म बतन लगे है । डूर म बछावन बछ हु ई है । बछावन हेतु लकड़ी का बरुादा, छ लन, चावल के छलके, भूसा, मूँगफल के छलके काम म लए जा सकते है, पर तु यह यान रहे क बछावन म नमी नह ं हो, अ यथा फफँूद लग जायेगी, िजससे चूजे बीमार हो जायगे । डूर हेतु न न अनसुार डूर का तापमान नयं ण कया जाना चा हए ।

    चूज़ा उ ( दन म) तापमान F˚ C˚ 1-7 दन 95 35 8-14 दन 90 32.5 15-21 दन 85 29.4 22-28 दन 80 26.6 29-35 दन 75 23.9 36 दन के बाद 75 21.1

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    एक दवसीय चजेू का सामा य तापमान य क प ी से 3˚F या 1.7C˚ कम होता है तथा दसव दन पर औसत तापमान आ जाता है । तापमान नयं ण म गाड का बहु त मह व है । अत: डूर के चार ओर 18 इचं ऊँचाई का गाड अव य लगाना चा हए । सद म चजू को थोड़ा गम पानी पलाना उ चत रहता है । चूजे आने से 24 घ टे पवू डूर चालू कर दये जाने चा हए, ता क तापमान ि थर हो जाये । जसेै-जैसे चूज क उ बढ़े, गाड का दायरा बढ़ाते रहना चा हए । डूर के नीचे तापमान नय ण के लये बल क सं या घटायी-बढ़ाई जा सकती है अथवा डूर को नीचे करके भी वां छत तापमान ा त कया जा सकता है ।

    (iii) चूज का ट काकरण (Vaccination) चूज को ग भीर बीमा रय से बचाने के लए एक दन क उ से ह चजेू का ट काकरण कया जाता है । इनम कुछ बीमा रयाँ ऐसी होती ह क य द उनका कोप हो जाये तो सारे चजू का सफाया हो जाता है, िजसम रानीखेत बीमार (R.D) मखु है । ट काकरण करते समय वशेष सावधानी बरतनी होती है तथा ट काकारण का रकाड रखा जाना चा हए ।

    (iv) चूज का लगं भेद पर ण (Chick Sexing) चूज का लगं क पहचान करना क ठन काय है । हर यि त लगं क प हचान नह ं कर सकता । लगं क पहचान करना इस लए भी आव यक हो जाता है क िजस उ े य के लए चूजे पाले जाय, तो उसी अनसुार उसी लगं के चजेू पालना उ चत होता है । जैसे य द अ ड ेउ पादन के लए चूजे पालने ह, तो मादा चूजे तथा य द मासँ के लए चजेू पालने ह तो नर एव ंमादा दोन चूज का चयन कया जाता है । चजू म बाहर तौर पर नर-मादा के अलग-अलग जनन अंग नह ं होते है । अत: पहचानना क ठन होता है । एक दवसीय चजू म लगं भेद

    के ान को ' चक सेि संग कहते है । शु म जब इस तरह क पहचान का आ व कार नह ंहुआ था, तो मुग पालक को काफ आ थक नकुसान उठाना पड़ता था । चूँ क अ डा उ पादन के लए मादा चजू क ह आव यकता होती है । 1 ½ -2 माह पर जाकर पता चलता था क आधे नर चूजे भी शा मल है । तब जाकर अलग कया जाता था, तब तक उनके आहार एव ं ब धन पर कया गया खच यथ ह जाता था । जापान वारा आ व कृत यह व व स कला कु कुट पालन म ग त का उपयु त उदाहरण है ।

    2.4 पठोर पालन (Grower Management) जब चूजे बड़े हो जाते ह, पर त ुअ डे देने लायक नह ं बनत ेह । इस बीच क अव ध को पठोर (Grower) कहत ेहै । यह अव था मुग के जीवन एव ंउ पादन पर असर करने वाल मह वपणू अव था है । अत: इस उ के प य क ओर वां छत यान दया जाना आव यक है । ऐसा अनभुव है क ' ोवर' को थान भी कम दया जाता है तथा उसके तापमान क ओर भी वशेष यान नह ं दया जाता है । आहार के बारे म भी बहु त से कु कुट पालक वारा उदासीनता

    बरती जाती है । इससे आगे चलकर कु कुट पालक को अ डा उ पादन म हा न उठानी पड़ती है । यह भी जानकार