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abhishek-shukla
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रात आधी खींच कर मेरी हथेली / हरिरवंशराय बच्चनलेखक: हरि�वंश�ाय बच्चन
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�ात आधी खींच क� मे�ी हथेलीएक उंगली से लिलखा था प्या� तुमने।
फ़ासला था कुछ हमा�े बिबस्त�ों मेंऔ� चा�ों ओ� दुबिनया सो �ही थी।तारि�काऐं ही गगन की जानती हैंजो दशा दिदल की तुम्हा�े हो �ही थी।मैं तुम्हा�े पास होक� दू� तुमसेअधजगा सा औ� अधसोया हुआ सा।�ात आधी खींच क� मे�ी हथेलीएक उंगली से लिलखा था प्या� तुमने।
एक बिबजली छू गई सहसा जगा मैंकृष्णपक्षी चाँद बिनकला था गगन में।इस त�ह क�वट पड़ी थी तुम बिक आँसूबह �हे थ ेइस नयन से उस नयन में।मैं लगा दँू आग इस संसा� मेंहै प्या� जिजसमें इस त�ह असमथA कात�।जानती हो उस समय क्या क� गुज़�नेके लिलए था क� दिदया तैया� तुमने!�ात आधी खींच क� मे�ी हथेलीएक उंगली से लिलखा था प्या� तुमने।
प्रात ही की ओ� को है �ात चलतीऔ उजाले में अंधे�ा डूब जाता।मंच ही पू�ा बदलता कौन ऐसीखूबिबयों के साथ प�दे को उठाता।एक चेह�ा सा लगा तुमने लिलया थाऔ� मैंने था उता�ा एक चेह�ा।वो बिनशा का स्वप्न मे�ा था बिक अपनेप� ग़ज़ब का था बिकया अधिधका� तुमने।�ात आधी खींच क� मे�ी हथेलीएक उंगली से लिलखा था प्या� तुमने।
औ� उतने फ़ासले प� आज तकसौ यत्न क�के भी न आये बिN� कभी हम।बिN� न आया वक्त वैसाबिN� न मौका उस त�ह काबिN� न लौटा चाँद बिनमAम।औ� अपनी वेदना मैं क्या बताऊँ।
क्या नहीं ये पंलिक्तयाँ खुद बोलती हैं?बुझ नहीं पाया अभी तक उस समय जो�ख दिदया था हाथ प� अंगा� तुमने।�ात आधी खींच क� मे�ी हथेलीएक उंगली से लिलखा था प्या� तुमने।