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पाठ्यम सिमित BASL-102 0 दामोदर राम िपाठी,गानाथ झॉ शोधपीठ, कृत िवभाग इलाहाबाद िविवालय ो0पुपा अवथी, स कृत िवभाग एस0एस0जे0प$रसर,कु मॉऊ िविवालय, अ*मोड़ा डॉ0 #जेश पा’डेय,एसो0,ो0 मिहला िड.ी कालेज, ह*/ानी डॉ0 गोपाल द*त िपाठी, कृत महािवालय ह*/ानी 0 एच0पी0 शु-ल, िनदेशक, मानिवक0 िवाशाखा उ0मु0िव0िव0, ह*/ानी डॉ0 देवेश कु मार िम/ सहायक आचाय5,स कृत िवभाग उ0मु0िव0िव 0, ह*/ानी डॉ0 स गीता बाजपेयी, अका0 एसोिसएट कृत िवभाग उ0मु0िव0िव0, ह*/ानी मु2य स3पादक डॉ0 उमेश शु-ल , /ीमती लाडदेवी शमा5 प चोली स कृत महािव8ालय ब9:दनी , भीलवाड़ा - राजथान सह स3पादक डॉ0 देवेश कु मार िम/ , सहायक आचाय5 - स कृत , उततराख’ड मु-त िव@विव8ालय , हABानी इकाई लेखन इकाई स 2या डॉ0 स गीता बाजपेयी, 4,5,15,16,17 अका0 एसोिसएट ,स कृत िवभाग उ0 मु 0 िव 0िव0, ह*/ानी डॉ0 उमेश शु-ल 10,11,12,13 ,व>ा ?याकरण ( स कृत िवभाग) Cी मती लाडदेवी शमा5 प चोली स कृत महािवालय बDEदनी , भीलवाड़ा , राजथान डॉ0 भगवती प 1,2,3,14 उ 0 मु 0 िव 0 िव 0, ह*/ानी डॉ0 रामनाथ झॉ 6,7 ,8 ,9 एसो0 ,ो 0 िविशH स कृत अIययन केEJ जे0एन0यू0 अकादिमक एव शासिनक Fयवथा ,ोफे . सुभाष धूिलया कुलपित , उOतराखPड मुQत िवRविवालय , ह*/ानी एल. एस . रावत कुलसिचव , उOतराखPड मुQत िवRविवालय , ह*/ानी कापीराइट @ उOतराखPड मु> िविवालय करण: 2014-15 ISBN.NO.978-93-84632-31-1 काशक: उ0मु0िव0िव0 ह*/ानी - 263139

पाठ्यम सिमित BASL-102 - uou.ac.in · कामदकय नीित सार के अितbरo कामदेव सेमे mारा नीित

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  • पाठ्य�म सिमित BASL-102

    �ो0 दामोदर राम ि�पाठी,गंगानाथ झॉ शोधपीठ,

    सं�कृत िवभाग इलाहाबाद िव�िव�ालय �ो0पु�पा अव�थी, सं�कृत िवभाग

    एस0एस0जे0प$रसर,कुमॉऊ िव�िव�ालय, अ*मोड़ा डॉ0 #जेश पा'डेय,एसो0,ो0

    मिहला िड.ी कालेज, ह*/ानी डॉ0 गोपाल द* त ि�पाठी,

    सं�कृत महािव�ालय ह*/ानी

    �ो0 एच0पी0 शु-ल,

    िनदशेक, मानिवक0 िव�ाशाखा उ0म0ुिव0िव0, ह*/ानी डॉ0 देवेश कुमार िम/

    सहायक आचाय5,सं�कृत िवभाग उ0म0ुिव0िव 0, ह*/ानी डॉ0 सगंीता बाजपेयी,

    अका0 एसोिसएट सं�कृत िवभाग उ0म0ुिव0िव0, ह*/ानी

    मु2 य स3 पादक डॉ0 उमेश शु- ल , /ीमती लाडदेवी शमा5 पंचोली स�ं कृत महािव8ालय ब9: दनी , भीलवाड़ा - राज� थान

    सह स3 पादक डॉ0 देवेश कुमार िम/ , सहायक आचाय5 - स�ं कृत , उततराख' ड मु- त िव@ विव8ालय , हA Bानी

    इकाई लेखन इकाई सं2या

    डॉ0 सगंीता बाजपेयी, 4,5,15,16,17

    अका0 एसोिसएट ,सं�कृत िवभाग उ0 म ु0 िव 0िव0, ह*/ानी

    डॉ0 उमेश शु-ल 10,11,12,13

    ,व>ा ?याकरण ( सं�कृत िवभाग) Cी मती लाडदवेी शमा5 पंचोली सं� कृत महािव�ालय बDE दनी , भीलवाड़ा , राज� थान डॉ0 भगवती पंत 1,2,3,14

    उ 0 म ु0 िव 0 िव 0, ह*/ानी

    डॉ0 रामनाथ झॉ 6,7 ,8 ,9

    एसो0 ,ो 0 िविशH सं�कृत अIययन केEJ

    ज0ेएन0य0ू अकादिमक एव ं�शासिनक F यव� था

    ,ोफे . सभुाष धिूलया कुलपित , उO तराखP ड मQु त िवR विव�ालय , ह* /ानी

    एल. एस . रावत कुलसिचव ,

    उO तराखP ड मQु त िवR विव�ालय , ह* /ानी

    कापीराइट @ उO तराखPड म>ु िव�िव�ालय

    सं�करण: 2014-15 ISBN.NO.978-93-84632-31-1

    �काशक: उ0म0ुिव0िव0 ह* /ानी - 263139

  • मुKक: ....................... इस सामMी का उपयोग उ* तराख' ड मु- त िव@ विव8ालय कN िलिखत अनुमित के िबना अ: य� िकसी भी

    9प मO नहP िकया जा सकता है ।

  • नीित काF य F याकरण एवं अनुवाद BASL102

    अनु�म

    �थम ख'ड - नीितशतकम ् पUृ

    इकाई 1: सं�कृत नीित सािहOय का प$रचय 1-19

    इकाई2: भतृ5ह$र का जीवन व ृएव ंनीित सािहOय को योगदान 20-33

    इकाइ3: नीितशतकम ्Xोक संYया 1से 20 तक 34-51

    इकाइ4: नीितशतकम ्Xोक संYया 21से 40 तक 52-67

    इकाई 5 : नीितशतकम ्Xोक संYया 41से 60 तक 68-81

    िBतीय ख'ड - लघुिसBा:त कौमुदी, संUा एवं सि:ध �करण पUृ 82

    इकाई 6 : संZा ,करण 83-102

    इकाई 7: �वर सिEध 103-121

    इकाइ 8: ,कृितभाव िवधायक स[ू, उदाहरण एव ं?याYया 122-132

    इकाइ 9: सिEध ,करण के अEतग5त संZा स[ू\ क0 ?याYया 133-143

    तृतीय ख'ड - अनुवाद- सामा:य िनयम लकार िवभिW, कारक एव ंवाXय पUृ 144

    इकाई 10: सामाEय िनयम - श]दDप 145-167

    इकाई 11: लकार िवभि> - धात ुDप 168-191

    इकाई 12: कारक एव ंवा^य 192-213

    इकाई 13: लघ ुग�ांशो के अनवुाद पंचतE[ के ग�ांश सं�कृत से 214-231

    िहEदी व िहEदी से सं�कृत

    चतुथ5 ख'ड - िहतोपदशे पUृ 232

    इकाई 14: नीित कथाओ ंका िवकास एव ंमहOव 233-246

    इकाई15: िहतोपदशे क0 कथाओ ंका सारांश 247-258

    इकाइ16: िच[.ीव िहरPयकथाEतग5त व/ृ?याC ल?ुध िव, कथा मगृ Cगृाल कथा 259-276

    इकाइ17: िच[.ीव िहरPयक कथाEतग5त जरaव िवडाल कथा एव ंमषूक प$रbाजक कथा 277-293

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 1

    ख� ड एक - नीितशतकम ्

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 2

    इकाई 1 सं�कृत नीित सािहय का प�रचय

    इकाई क� �परेखा

    1.1 ��तावना 1.2 उ�ेय 1.3 नीित का अथ� 1.4 सं�कृत सािह�य म� नीितयाँ

    1.4.1 शु� नीित 1.4.2 चाण य नीित 1.4.3 िवदरु नीित 1.4.4 भतृ�ह"र का नीित त� � वो पदशे 1.4.5 पंचतं& म� नीित 1.4.6 िहतोपदशे म� नीित

    1.5 सारांश 1.6 श(दावली 1.7 बोध �,- के उ.र 1.8 स/दभ� 0/थ सूची 1.9 उपयोगी प�ुतक� 1.10 िनब/धा�मक �,

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 3

    1.1 ��तावना सं�कृत सािह�य म� विैदक यगु से ही नीित परक उपदशे" क# पर$परा चली आ रही ह,ै िजसम� िविभ)न मन*ु य" ने अपने अनसुार नीित कथाओ,ं क# िवधान" एव ंनीित के वचन" के वण.न िकये गये ह/ । इस इकाई के अ)त.गत आप सं�कृत वा4य म� विण.त नीितय" का अ5ययन कर�ग े। व�ततुः नीित के उ7ावक भगवान ् 89ा और ;ित

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 4

    आधार धम. ह ैइसिलय ेसबसे उdम नीित धमा.चरण ही ह,ै �य"िक संसार का ;�येक ;ाणी सदवै सखु क# ही आकांEा रखता ह ै और नीित का सहारा भी वह केवल अपने सखु के िलए ही करता ह ै। ऋ`वेद म� नीित का ;योग अभीb फल क# ;ािW से ह-ै'ऋजनुीित नो वUणो िम?ो नयत ुिवMान्' (ऋक 1/90/1) इसम� िम? और वUण से ;ाथ.ना करते ह=ए कहा ह ैिक हम� ऋजु अथा.त ्सरल नीित से अभीb फल क# िसिA होती ह ैिवषय क# fिb स ेनीित को दो भाग" म� िवभािजत िकया जाता ह ैपहली राजनीित तथा दसूरी धम.नीित। नीित के Mारा फल के अनुUप बीज का िनद_श ;ाW होता ह,ै इस तरह यिद दखेा जाय तो आिदकाल से ही मानव को सही माग. पर चलने के िलए नीित-वचन" का ;ितपादन होता आ रहा ह ै।

    1.4 सं�कृत सािह�य म� नीितयां

    सं�कृत भाषा म� नीित सािह�य का िवशाल भ�डार ह।ै इसम� नीित उपदशे" का संLह ह,ै नीित शाK के उ7ावक परमिपता 89ा, ;ितुाचाय. ने भी नीित-वचन" का ;णयन िकया ह,ै िजसे शु> नीित कहते ह/। काम)दक#य नीित सार के अितBरO कामदेव सेमे)n Mारा नीित कIप तU और सोमदवे सूरी कृ�य नीित वा�यामतृ आिद नीित L) थ भी सं�कृत सािह�य के अ)त.गत आते ह/ । इनके पGात् वत.मान म� स;ुिसA एवं ;शंसा पा? नीित िनयम" के रचियता भतृ.हBर Mारा नीित शतक क# रचना क# गयी जो लोक िवkतु ह,ैिव�ापित और चडेंjर ठाकुर का पUुष परीEा तथा राजनीित र�नाकर आिद नीित के िनद_शक L) थ" भी उपलQध ह/। इन सम�त नीित के भ� डार Lथं" के अितBरO परामश. , िशEा, मं?णा और DयावहाBरक Fान आिद के अनेक Lथं ह/ जो नीित परक उपदशे क# कोिट म� आते ह/। नीित के उपदशे और काDय" के बीच म� िवभाजक रेखा अ�य)त छोटी ह,ै िफर भी यह िनधा.Bरत होता ह ैिक नीित उपदशेा�मक काDय" क# रचना िन$न शैिलय" म� क# गई होगी - कहg पर दा$प�य जीवन के संवाद म�, कहg यगुल पशुओ ंके आलाप म�, कहg िशव पाव.ती के पBरसंवाद म� तो, कहg पर व>ोिO-अ)योिO और ;हिेलका आिद के Uप म� इन नीित परक काDय" म� कहg पर ;भु सि$मत वा�य के Mारा तथा कहg पर का)ता सि$मत उपदशे

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 5

    वा�य के Mारा तदUप माग^ पर चलने का िनद_श िदया गया ह ै। इ)हg नीित वचन" के अनपुालन से मनु*य पUुषाथ^ क# ;ािW म� िसA और सफल हो जाता । इनम� कुछ अ�य)त ;चिलत एवं स;ुिसA Dयवहारोपयोगी नीितय" के वण.न आपके अ5ययनाथ. ;�ततु िकये जा रह ेह/ ।

    1.4.1 शु� नीित

    परमिपता 89ाजी के मानस पु?" म� भगृ ुका नाम ;मखु ह,ै इ)हg भगुृ के प?ु असरुगUु महिष. श>ुाचाय. ह=ए । योगिव�ा के ;का�ड आचाय. श>ुाचाय. क# श>ु नीित िवj ;िसA ह ै। य�िप ये असुर" के गुU थे िक)तु मन से ये भगवान ् के अन)य भO थे । इनम� तप�या, योगसाधना, अ5या�मFान तथा नीित का बह=त बल था, इ)ह"ने अपने योग बल के Mारा अस$भव काय. भी स$भव िकये । श>ुाचाय. के नीित स$ब)धी उपदशे बह=त ही उपयोगी तथा अनपुालनीय ह/,इनके नीितमय उपदशे महाभारत तथा परुाण" म� य?-त? िव�मान ह ै। आधिुनक समय म� आचाय. श>ु के नाम से एक श>ु नीित नामक Lथं उपलQध ह ै । स$पूण. श>ु नीित म� पाँच अ5याय तथा 2200 oोक ह/, इसम� लोक Dयवहार का Fान, राजा के कत.Dय, राजधम., द�डिवधान, मं?ी पBरषद ्आिद के लVय" का समावशे ह ै । इसके साथ ही साथ Kी धम., ;ितमाओ ंका �वUप, िववाद, संिध तथा यAु नीित आिद का वण.न ह ै। लघु होने के कारण श>ुनीित का अ�यिधक महl व ह ैयह ;ामािणक भी अिधक ह ैश>ुाचाय.जी का कहना ह ैिक समाज के सभी लोग" के िलए उपकारक तथा समाज को सुरिEत रखने वाला नीितशाK ही ह ै ।'न कवेः स�शी नीिति�षु लोकेषु िव�ते' नीित शाK के स$ब)ध म� �वयं श>ुाचाय. ने कहा ह ै िक किव श>ुाचाय. क# नीित के समान अ)य कोई दसूरी नीित तीन" लोक" म� नहg ह-ै 1- आचाय. श>ुाचाय. ने कहा िक राजा के िलये नीित शाK का Fान आव�यक ह ै। �य"िक ;जा का स$पणू. दािय�व राजा के ऊपर ही रहता ह,ै ;जा का पालन करना व दbु ;ािणय" का दमन करना ये दोन" ही राजा के िलय ेपरम आव�यक ह ै। कहने का ता�पय. यह ह ैिक एक राजा को नीितFानी होना चािहए नीितFान से रिहत होना ही उसका सबसे बड़ा दोष माना जाता ह ै। नीित और बल ये दोन" िजस राजा को ;ाW होते ह/ उसके पास लVमी का आगमन होता ह ैअथा.त ्वह कभी दBरn नहg होता- य� नीितबले चोभे त� �ीः सव�तोमुखी ।। (शु�नीित 1/17)

    िवरत ;जा का भली ;कार पालक, श?ओु ंपर िवजय ;ाW, दानवीर, Eमावान ्तथा वैरा`यवान ्होता ह ैऐसा राजा ही मोE को ;ाW करता ह-ै 'स िह नपृोऽ#ते मो$मि#वयात ्' ( शु�नीित 1/31)

    3- श>ुाचाय. जी ने स)ुदर नीित वचन" के मा5यम से राजा के िलए ही नहg बिIक एक सामा)य DयिO के िलए भी उपयोगी बात� कहg ह/ । मन*ुय को दरूदशm होना चािहए । अपने ;�येक काय. को िवचार कर अिववेक व आल�य का पणू. Uप से �याग कर दनेा चािहए ।

    4- श>ु नीित म� एक महl व पणू. बात बतलायी गयी ह ैिक- आय,ु धन,(लVमी) गहृ के दोष, मं?, मैथनु, औषिध, दान, मान तथा अपमान इन नौ िवषय" को अ�य)त गWु रखना चािहए, िकसी स ेकुछ भी नहg कहना चािहए- दानमानापमानं च नवैतािन सगुोपयेत् ।।

    5- श>ुाचाय. जी ने अपने नीित वचन" म� बताया िक दजु.न" क# संगित नहg करनी चािहए, दजु.न"

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 6

    क# संगित का पBर�याग कर दनेचािहए- आयुिव�'ं गृहि*छ,ं म#�मैथुनभेषजम ्। '-यजेद् दुज�नसगंतम ्।

    6 - िकसी के साथ कभी भी कपटपणू. Dयवहार और कभी िकसी क# धन स$ब)धी हािन नहg करनी चािहए , इसके अितBरO मन से भी कभी िकसी का अिहत नहg सोचना चािहए करने क# तो बात बह=त दरू ह ै। राजधम. और नीित के संदभ^ को बतलाकर अ)त म� श>ुाचाय. जी ने kी राम को ही सवrपBर नीितमान ्कहा । उनका कहना था िक भगवान ् राम के समान इस पsृवी पर कोई नीितमान् राजा नहg ह=आ ।

    1.4.2 चाण�य नीित

    चाण�य का ज)म लगभग चार सौ साल पवू. भारत के तEिशला नामक �थान म� ह=आ । चाण�य के बचपन का नाम िव*णगुWु शमा. था । कुटज गो? के होने के कारण ये कौिटIय कहलाये । चणक के प?ु होने के कारण चाण�य कहलाय,े अपने चातुय. के कारण भी इ)ह� चाण�य कहा जाता ह ै। ये िवMान और नीितमान ्थे । भारतीय राजनीित म� कूटनीितF के Uप म� चाण�य का �थान सव.kे< व सवrपBर माना जाता ह ै । चाण�य ने अपनी ;ारि$भक िशEा तEिशला म� ;ाW क#, ;ारि$भक िशEा समाW करने के पGात ्ये उtच िशEा अ5ययन के िलए पाटिलप?ु आये । मगध के िसहंासन पर उस समय अ�य)त लोभी व अ�याचारी राजा घनान)द अिधि

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 7

    वरं न िम�ं न कुिम�िम�म ्

    वरं न िश2यो न कुिश2यिश2या

    वरं न दारा न कुदारदारा ।।

    2- आचाय. चाण�य ने मै?ी के स$ब)ध म� बतात ेह=ए अपने नीित Lथं म� कहा ह ै िक हम� कैसे िम?ता क# कसौटी क# पहचान करनी चािहए-

    परो$े काय�ह#तारं 3-य$े ि3यवािदनम ्।

    वज�येत ् ता�शं िम�ं िवषकु4भं पयोमुखम ्।।

    परोE Uप म� अथा.त ्पीठ पीछे बुराई करके काम िबगाड़ने वाले और ;�यE अथा.त ्सामने मीठा बोलने वाले िम? का तो अव�य ही �याग कर दनेा चािहए । वह िम? उस िवष से भरे ह=ए घड़े के समान ह ैिजसके अLभाग अथा.त ्मखु के ऊपर थोडा ़ दधू लगा रहता ह ै।

    3- आचाय. चाण�य ने अपने नीित L) थ" म� बताया ह ैिक एक िपता को अपने प?ु के साथ कैसा Dयवहार करना चािहए-

    लालयेत ् पंचवषा�िण दशवषा�िण ताडयेत ्।

    3ा7े तु षोडशे वष8 पु�ं िम�वदाचरेत ्।।

    प?ु को पाँच वष. तक yयार करना चािहए, जब वह दस वष. का हो जाय तो उस पर अनशुासन रखना चािहए, जब वह सोलह वष. का हो जाय तो उसके साथ िम?वत ्अथा.त िम? के समान Dयवहार करना चािहए ।

    4- लौिकक सखु के िवषय म� बताते ह=ए चाण�य कहते ह/ िक-

    यिद रामा यिद च रमा यिद तनयो िवनयगणुोपेतः।

    तनये तनयो-पि'ः सरुवरनगरे िकमािध:यम ्।।

    िजस DयिO के घर म� सु)दर Kी हो, लVमी भी हो अथा.त ्धन-धा)य से स$प)न हो, प?ु व पौ? गणु" से यOु हो, वह घर तो इस पsृवीलोक म� इ)nलोक से भी अिधक सु)दर ह ैकहने का ता�पय. यह ह ैिक िजस ;कार इ)nलोक म� सभी ;कार के सुख वैभव ह/ उसी ;कार वह घर भी ह ै।

    5- चाण�य ने मzू. DयिO के िवषय म� बताते ह=ए उससे दरू रहने के िवषय म� कहा ह-ै

    मूख�पदः पशुः।

    िभनि' वा:यश@येन िन��शाः कAटका यथा ।।

    चाण�य कहते ह/ िक मखू. DयिO से दरू रहना चािहए, �य"िक मखू. DयिO दो पैर" वाले पश ुके

    समान ह ै। िजसम� ;�यE Uप से काँटे तो िदखलायी नहg पड़त ेह/ , िक)त ुवह बार-बार

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 8

    वा�यशIय से काँटे बोता रहता ह ै । वा�तव म� दखेा जाय तो चाण�य ने िजन नीितय" का ;ितपादन िकया वह कIयाण के माग. पर बढ़ने के िलए ;ेBरत करती ह/ । आचाय. चाण�य ने अपनी नीितय" म� जीवन के कटु स�य को उजागर िकया ह ै। दखेा जाय तो ऐसे नीितकार बह=त कम होते ह/, आचाय. एक महान कूटनीितF ह/, कूटनीितF" म� उनका नाम सवrपBर ह ैव सदवै रहगेा । कुUप कह ेजाने वाले आचाय. चाण�य ने अपने अलौिकक तेज से DयाW DयिO�व से िवj को अनठूी नीितयां ;दान क#, जो िवj म� चाण�य नीित के नाम से ;िसA ह=ई । दखेा जाय तो आज के भौितकवादी यगु म� जहाँ नैितकता का पतन हो रहा ह ैवहां महान आचाय. चाण�य क# नीितयां समाज के ;�येक मन*ुय को सही माग. पर चलने क# ;ेरणा दतेी ह/ िजससे ;�येक वग. व स$पणू. रा*X का कIयाण होगा।

    बोध ��ः -

    (1) नीचे जो वा�य िदये गये ह/ उनम� से तsय क# fिb से कुछ सही ह/ और कुछ गलत ह/ । सही वा�य" के सामने को

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 9

    अपने प?ु मोह म� इस ;कार बँध चकेु थे िक व ेकोई समाधान नहg खोज पा रह ेथ े । दयुrधन अपनी िजद पर अड़ा था । �तू >#डा क# शत. के अनसुार पांडव" ने बारह वष. का वनवास और एक वष. का अFातवास पणू. करने के बाद जब अपना राwय वापस मांगा तो प?ु मोह म� बँध ेधतृरा*X उ)ह� कोई िनणा.यक उdर नहg द ेपाय े । �तू >#डा के समय भी िवदरु ने धतृरा*X को चेतावनी दी थी िक यिद यह खेल समाW नहg िकया गया तो अनथ. हो जायेगा और हि�तनापरु को िवनाश क# कगार से कोई नहg बचा सकता । िवदरु नीित यAु क# नीित न होकर जीवन म� ;ेम Dयवहार क# नीित के Uप म� अपना िवशेष �थान रखती ह।ै िजस ;कार चाण�य नीित राजनीितF िसAा)त" से ओत ;ोत ह ैवहg िवदरु नीित सत ्असत् क# fिb से िवशेष महl व रखती ह।ै िवदरु सदा सत ्िवचार" का ही परामश. दतेे । दखेा जाय तो महाराज धतृरा*X और िवदरु के बीच ये कैसा संयोग था धतृरा*X अपने प?ु मोह म� फंसे थे इसके िवपरीत िवदरु अपनी नीित म� बँधे ह=ए थे । जब महाभारत का यAु ;ार$भ ह=आ तो य ेिकसी तरफ भी नहg ह=ए, लेिकन मन से य ेसदा पांडव" के पE म� थे और समय समय पर उ)ह"ने पाडंव" क# सहायता क# तथा उ)ह� कई िवपिdय" से भी बचाया । नीित क# चचा. महाभारत म� कई �थल" पर आयी । महाभारत म� वण.न आता ह ैिक धतृरा*X ने प?ु मोह म� कई बार पांडव" के साथ अ)याय िकया । इसी वजह से धतृरा*X बह=त दःुखी थे तब उ)ह"ने अपनी िच)ता िमटाने के िलए िवदरु से उपाय पछूा। िवदरु ने जो भी उपदशे धतृरा*X को िदये, वह िवदरु नीित के नाम से ;िसA ह=ई। महाभारत म� उ�ोग पव. के 33व� से 44व� अ5याय तक नीित स$ब)धी उपदशे संLिहत ह/ इसम� महा�मा िवदरु ने राजा धतृरा*X को लोक परलोक क# बह=त सी बात� बतायी ह/ । ;�ततु अ5याय म� आप िवदरु Mारा ;दd नीितय" का सVूम Uप म� अ5ययन कर�गे- 1- िवदरु ने अपनी नीित म� पंिडत" के िवषय म� कहा ह-ै

    िनिC -य यः 3�मते ना#तव�सित कम�ण। अब#Eयकालो वFया-मा स वै पिAडत उ*यते।

    जो DयिO पहले िनGय अथा.त ्अtछी ;कार सोच समझकर िफर काय. का आर$भ करता ह,ै काय. के ;ार$भ होने के पGात ्बीच म� Uकता नहg ह।ै अपने समय का सदपुयोग करता ह ैअथा.त ्समय को Dयथ. नहg जाने दतेा और अपने िचd अथा.त ् मन को अपने वश म� रखता ह ै वही पि�डत कहलाता ह।ै 2- िवदरु ने अपने wये< }ाता धतृरा*X को नीित स$मत कई उपदेश िदये। िवदरु ने मखू. के िवषय म� बतात ेह=ए कहा ह-ै

    अकामान ् कामयित यः कामयानान ् प=र-यजेत् । बलव#तं च या >ेिI तमाहJमू�ढचेतसम ्।।

    जो मन*ुय न चाहने वाल" को चाहता ह ैऔर चाहने यो`य लोग" का पBर�याग कर देता ह,ै तथा जो बलवान" के साथ श?ुवत ्बैर बाँधता ह,ै उसे ही के अनसुार मzू.िचd वाला मन*ुय कहते ह/।

    3- िवदरु ने अपनी नीित म� कुछ आ5याि�मक ;संग" का वण.न भी िकया ह,ैशरीर Uपी को Uपक मानकर िवदरु कहते ह/- रथः शरीरं पुMष

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 10

    #ना-मा िनय#तेि#,याAय

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 11

    ;ितपादन ह=आ ह ैवे समL मानव जाित के िलए कIयाणकारी ह/ । भतृ.हBर के िवषय म� एक िकंवद)ती ह ै िक ये ;ार$भ म� अ�यिधक भोग िवलास म� िलW रहते थे,उनका जीवन िवषय वासनाओ ंसे िघरा ह=आ था ।व ेअपनी ि;य रानी िपंगला के ;ेम म� इस ;कार बँधे ह=ए थे िक अपने अनजु िव>मािद�य के बार- बार समझाने पर भी उन पर उनक# बात" का कोई ;भाव नहg पड़ा ।रानी िपंगला DयिभचाBरणी थी वह राजा ने नहg बिIक िकसी अ)य पUुष से ;ेम करती थी । जब राजा भतृ.हBर को रानी के इस िवjासघात के िवषय म� Fात ह=आ तो उ)ह� रानी के ;ित ऐसी घणृा ह=ई िक उ)ह� ये सारा संसार िमsया लगने लगा । त�पGात ्भतृ.हBर ने संसार के भोग िवलास" का वसैे ही �याग कर िदया िजस ;कार मन*ुय मरने के पGात ्अपने शरीर का �याग कर दतेा ह ै। िवरिO के पGात ्वे योगी बन बैठे और संसार को अपनी अमIूय धरोहर के Uप म� ?य शतक ;दान िकय े। भतृ.हBर के तीन शतक वैरा`य, नीित, kृंगार िवj ;िसA ह/ । दखेा जाय तो िविध के िवधान को कोई बदल नहg सकता ह ै । यिद राजा भतृ.हBर को अपनी रानी से िवjासघात न िमलता तो उ)ह� इस संसार से िवरिO न होती और वे महान ?य शतक" का िनमा.ण कैसे करत े। सं�कृत सािह�य म� िवMान" ने भतृ.हBर को एक राजा, िवMान, योगी और सं)यासी के Uप म� दखेा ह ै। भतृ.हBर ने अपने जीवन के अनभुव" का िनचोड़ इन शतक" म� ;वाहमयी भाषा म� अिभDयO िकया । यहाँ संEेप म� भतृ.हBर के नीित तlव के उपदशे" का वण.न कर�गे-

    1- यहाँ पर किव भतृ.हBर के कहने का ता�पय. ह ैिक शरीर के िविभ)न अगं" क# शोभा आभषूण" से नहg होती ह ैइसी का वण.न करते ह=ए कहा ह-ै

    �ो�ं �ुतेनैव न कुAडलेन दानेन पािणन� तु कङकणेन िवभाित कायः कMणापराणां परोपकारैन� तु च#दनेन ।।

    अथा.त् जो स�पUुष होते ह/ उनके कान क# शोभा सोने से जिड़त कु�डल से नहg बिIक शाK" के kवण से होती ह,ै अथा.त् स�पुUष" के कान" क# शोभा अtछे वचन" के kवण से ह ै। हाथ दान दनेे से सशुोिभत होत ेह/ र�न जिड़त कंकण पहनने से नहg, अथा.त ्हाथ क# शोभा दान दनेे से होती ह ै। शरीर क# शोभा परोपकार करने से ह ैच)दन से नहg । 2- भतृ.हBर के अनसुार प?ु, प�नी और िम? का �या नीित धम. ह ै । इसी संदभ. म� बताते ह=ए भतृ.हBर कहते ह/-

    यः 3ीणयेत ्सचुा=रतैः िपतरं स पु�ो यT˜तु�रेव िहतिम*छित तत ् कल�म ्ति#म�मापिद सखेु च समि�यं य- देतत ्�यं जगित पुAयकृतो ।।

    भतृ.हBर के अनसुार जो आFाकारी पु? अपने सु)दर चBर? से अपने िपता को ;स)न करता ह,ै दखेा जाय तो सही मायने म� वही प?ु ह ै। जो Kी अपने पित का कIयाण चाहती ह ैअथा.त ्नी ित क# आFा का पालन करती ह ैवही प�नी ह ै। और जो चाह ेिवपिd आय ेया सखु दोन" म� एक समान Dयवहार करता ह ै वही िम? ह ै । ये तीन" स�प?ु, स�प�नी और अtछा िम? ये पु�य आ�माओ ंको ही ;ाW होते ह/ ।

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 12

    3- जो DयिO अपने अमतृमयी मधरु वचन" से दbु" को सही माग. पर लाना चाहते ह/ उसी िवषय म� भतृ.हBर कहते ह/- �यालं बालमृणालत#तुिभरसौ रोVुं समु1जृ4भते छे'ुं वWमणी´ि*छरीषकुसुम3ा#तेन सनंXते माधुयY मधुिब#दुना रचियतु ं $ारा4बुधेरीहते नेतंु वा´छित यः खलान ्पिथ सतां सOैूः सधुा

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 13

    किठन ही नहg अिपत ुअस$भव भी ह ै । योगी)n भतृ.हBर ने नीितशतक म� नैितक िसAा)त" क# िशEा दी ह,ै िजनका उे�य मन*ुय को कIयाण के माग. क# ओर ;ेBरत करना ह ै । भतृ.हBर ने जीवन म� मानव मूIय" को िविशb महlव ;दान िकया ह ै।

    बोध �% न

    (3) BरO �थान" क# पिूत. क#िजयेः-

    (क) महा�मा िवदरु धतृरा*X और पा�डु के छोटे---थे।

    (ख) भतृ.हBर का नीित शतक एक ---- L) थ ह।ै

    (ग) िव�ा ही मन*ुय का---- गणु ह।ै

    (घ) �तू>#ड़ा के समय भी िवदरु ने -----को चेतावनी दी।

    (4) िन$न ;|" के उdर दीिजये-

    (1) 'पजूनीया महाभागाः प�ुयाG गहृदीWयः' म� किव ने िकसके िवषय म� कहा ह-ै

    (क) पUुष (ग) नारी

    (ख) पंिडत (घ) मूख.

    (2) 'सखुािथ.नः कुतो िव�ा नाि�त िव�ािथ.नःसुखम'् क# पिंO िकस प�ुतक से उAतृ ह ै

    (क) नीितशतक (ग) िवदरु नीित

    (ख) चाण�य नीित (घ) मेघदतू

    (3) 'िव�ानाम नर�य Uपमिधकं ;tछ)नगुWं धनं' म� िकसक# मिहमा बतायी ह-ै

    (क) िव�ा क# (ग) मखू. क#

    (ख) धन क# (घ) पंिडत क#

    1.4.5 पंचतं' म) नीित

    पंचतं? जैसा िक नाम से ही �पb ह,ै पाँच त)?" म� िनबA ह ै। आचाय. िव*णगुWु शमा. Mारा रिचत पंचतं? सरल होने के साथ-साथ बड़ा मह�व का ह ै । यह नीित L)थ ;�येक वग. के िलए ;ेरणादायी होने के साथ इसक# लोकि;यता भारत म� ही नहg बिIक िवjDयापी ह।ै कई िवदशेी भाषाओ ंम� अनका अनुवाद ह=आ ह ै। पंचतं? क# रचना काल के िवषय म� कई मतभेद ह/ लेिकन कई िन*कष^ के आधार पर इितहासकार" ने पंचतं? का रचनाकाल 300 ईसा पवू. के लगभग �वीकार िकया ह ै । जैसा िक आपको िविदत ह ै िक पंचतं? के अ)त.गत पाँच तं? आते ह/। आचाय. िव*णशुमा. एक धम.शाKी थ े। स$पणू. पंचत?ं क# कथाएँ पांच त)?" म� िवभO ह ै। इस

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 14

    स$ब)ध म� एक कथा ;चिलत ह ैकहते ह/ िक भारत क# दिEण िदशा म� मिहलारोyय नामक एक नगर था । वहाँ अमरशिO नामक एक राजा राwय करता था । उसके तीन प?ु बह=शिO, उLशिO और अनंत शिO थे । राजा के तीन" प?ु महामखू. थ,े राजा ने इन पु?" को िवMान बनाने के िलए नीितF िव*णशुमा. नामक 8ा9ण को सप िदया। िव*णशुमा. ने राजा को आjासन िदया िक म/ मा? 6महीने म� तीन" राजकुमार" को नीितशाK का Fाता बना दगेा। तब िव*णशुमा. ने पाँच तं?" क# रचना क# िम?भेद, िम?स$;ािW, काकोलूक#य, लQध;णाश और अपरीिEत कारक । इन तं?" के मा5यम से िव*णशुमा. ने राजकुमार" को नीितशाKF बना िदया । तभी यह पाँच तlव" वाला पंचतं? नामक नीित Lंथ सम�त भूतल पर नीितFान के िलए ;िसA हो गया। पंचतं? म� पाँच" तं?" को िमलाकर 71 कथाएँ ह/ । िम?भेद म� 22, िम?स$;ािW म� 8, काकोलूक#य म� 16, लQध ;णाश म� 12तथा अपरीिEत कारक त?ं म�13 कथाएँ ह/ । इनम� से 45 कथाओ ं म� िव*णशुमा. ने पशु पिEय" को पा? बनाया गया ह।ै आचाय. िव*णशुमा. ने कथाओ ंके बीच-बीच म� अनेक �थल" पर नीितकार" को �मरण िकया ह ै। हम यहाँ पर केवल उ)हg अंश" को ;�ततु कर रह� ह/ जो सदाचरण के िलए ;ेरणादायक ह/ -

    1- किव िव*णशुमा. ने अपनी नीित म� बताया ह ै िक कभी िकसी DयिO के ऊपर पणू. Uप से िवjास करके उसे अपनी गWु बात� नहg बतानी चािहए । कभी भी िकसी के ;ित अस�य भाषण अथा.त ् झूठ नहg बोलना चािहए । सदवै एक समान नीित अथा.त ् एक समान आचरण करना चािहए । ईjर व राजाओ ंके समE तो कभी भी अस�य का आचरण नहg करना चािहए ।

    2- कामी नाBरय" क# िन)दा करते ह=ए िव*णशुमा. ने कहा ह ैअ#तिव�षमया Xेता बिहCैव मनोरमाः। गु´जफलसमाकारा योिषतः केन िनिम�ताः।।

    कथाकार िव*णशुमा. ने िKय" के आ)तBरक और बा अंग के भाव" को �पb करने के िलए मापने क# सबसे छोटी इकाई गुजंा का िनमा.ण करके कािमिनय" से सदा दरू रहने क# चेतावनी दी ह।ै कथाकार ने एक ओर तो कािमिनय" से दरू रहने को कहा ह।ै वहg दसूरी ओर Kी के रEाथ. अथा.त ्रEा हते ुसदा त�पर रहने के िलए कहा ह।ै जो 8ा9ण, �वामी, Kी और गौ क# रEा हते ु;ाण�याग करते ह/, उ)ह� ही सनातन लोक क# ;ािW होती ह ै। 3-धम.बिुA अथा.त ्धम. के अनसुार जो अपनी बुिA का ;योग करते ह/ उनके िवषय म� कथाकार कहत ेह/-

    मातृवत ्परदारािण पर,�यािण लोIवत।् आ-मवत ्सव�भूतािन वी$#ते धम�बुVयः ।।

    धम.बुिA वाले DयिO दसूरे क# प�नी को माता के समान, पर धन अथा.त ्दसूरे के धन को िमी के समान और सम�त ;ािणय" को अपनी आ�मा के समान दखेते ह/ ।

    4- कथाकार िव*णशुमा. ने तीन काय^ को करने से वwय. िकया ह-ै

    अयशः 3ा_यते येन येन चापगितभ�वेत ्।

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 15

    ;ािW से विंचत रह जाय ऐसा कम. मन*ुय को कभी नहg करना चािहए कहने का ता�पय. यह ह ैिक मन*ुय को सत ्कम. करने चािहए । 5- धन और ;ाण रEा के स$ब)ध म� कथाकार कहते ह/-

    सव�नाशे च सजंाते 3ाणानामिप सशंये। अिप श�ु 3ण4यािप र$ेत ्3ाणान ्धनािन च।।

    यिद मन*ुय का सब कुछ नb हो जाता ह,ै यहाँ तक क# ;ाण भी संकट क# ि�थित म� ह" तो श? ुको ;णाम कर लेना चािहए इससे हमारे ;ाण भी संकट मOु हो जाते ह/ और धन क# भी रEा हो जाती ह ै। 6- िव*णशुमा. ने िवनाश क# ि�थित के िवषय म� कहा ह-ै

    सव�नाशे च सजंाते 3ाणानामिप सशंये। अिप श�ुं 3ण4यिप र$ेत ्3ाणान ्धनािन च ।।

    यिद मनु*य का आल�य बढ़ता रह ेऔर वह अपने श? ुऔर रोग क# उपेEा कर दतेा ह,ै तो ये शनै-शनै बड़े ;भावपणू. हो जाते ह/ और अंत म� वह इनके Mारा मारा जाता ह ै। कहने का ता�पय. यह हिैक यिद मन*ुय आल�य करेगा तो उसके श? ुउ�प)न ह"गे यिद उसका रोग बढ़ता रहगेा तो अतं म� उसक# म�ृय ुिनGय ह ै। कथाकार िव*णशुमा. ने कथामुख म� राजा अमरशिO के तीन" प?ु" को Fानवान बनाने के िलए इस Lथंक# रचना क#, िव*णशुमा. के अनसुार संसार म� जो लेशमा? (अIपमा?) भी Fान रखते ह/ यह L) थ उन सभी के िलए कIयाणकारी व ;ेरणादायक रहगेाइससे ;मािणत हो ही जाता ह ैिक कथाकार िव*णशुमा. ने सामा)य जन के कIयाण क# भावना से ;ेBरत होकर इसक# रचना क# ।

    1.4.6 िहतोपदेश म) नीित िहतोपदशे दो शQद" के योग से बना ह-ै िहत और उपदशे । िहतोपदशे क# Dय�ुपिd धा(िह)O के योग से होती ह ैयहाँ पर'धा' को 'िह' हो गया और O ;�यय से िहत शQद बना ह ै। िहत और उपदशे शQद म� िहत�य उपदशेः ष

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 16

    थे। धीरे-धीरे समय बीतता गया और राजा को अपने अनपढ़ प?ु" के िवषय म� अ�यिधक िच)ता होने लगी, �य"िक व े जानते थे िक शाK के Mारा अनेक संदहे" को दरू िकया जा सकता ह,ै िजसने शाK का अaयास नहg िकया दखेा जाय तो वह वा�तव म� मखू. ह ैउसके िवषय म� कहा गया ह-ैयौवन, धन-स$पिd, ;भतुा और अिववेक । इनम� एक-एक भी सबसे बड़ा अनथ. करने वाला ह,ै िजसम� ये चार" ह" उसके िवषय म� तो �या कहना । त�पGात ्राजा ने सोचा मेरे प?ु" म� तो ये चार" बात� िव�मान ह/,इसिलए इस स$ब)ध म� मझेु कुछ उपाय करना चािहए, िचि)तत राजा ने नीितशाKF पं0 िव*णशुमा. को बुलाकर कहा मेरे इन प?ु" को नीितशाK का उपदेश देकर िशिEत कर� । िव*णुशमा. ने राजा के प?ु" को जो िहतकारी उपदशे िदये वही िहतोपदशे कहलाया। िहतोपदशे क# रचना का समय 11 शती के लगभग माना जा सकता ह ै। सव.जनिहताय पंचतं? तथा अ)य नीित Lथं" के आधार पर ही पं0 kीनारायणशमा. ने िहतोपदशे नामक Lंथ क# रचना क# । यह Lथं चार भाग" म� िवभO ह ै - िम?लाभ, सु7ेद, िवLह और संिध । िहतोपदशे क# कथाओ ं के ;मखुपा? कौआ,मगृ,कछुआ,चहूा,धतू.गीदड़,मुसािफर,िबलाव, अधंािगA,सं)यासी,िचिड़या आिद ह/ । दखेा जाय तो इनम� से अिधकतर जंगली ;ाणी, पश ुपEी ह/ । इनके अ5ययन से हम� DयावहाBरक Fान ;ाW होता ह ै । इन कथाओ ंम� िम?लाभ म� 216, सु7ेद म� 184, िवLह म� 149 और संिध म� 133 oोक" क# संJया ह ै । नारायण पंिडत Mारा रिचत िहतोपदशे के कुछ नीितगत उपदशे िन$निलिखत ह/- 1-भा`य के िवषय म� यहां पर कथाकार ने कुछ सांकेितक उपदेश िदया ह-ै 'स िह गगनिवहारी क@मषEवंसकारी'

    जे च)nमा ;ितिदन आकाश म� िवहार करता ह,ै अधंकार को दरू करता ह,ै राह= के Mारा उसे भी Lास बना िलया जाता ह,ै अतः दखेा जाय तो भा`य ही बलवान ह।ै 2-म�ृय ुके समीप होने का लEण बताते ह=ए कथाकार कहते ह/-

    दीपिनवा�णग#धं च सbु>:यमM#धतीम।् न िजcि#त न �ृAवि#त न पFयि#त गतायुषः।।

    िजनक# आय ुसमाW अथा.त ्जो म�ृय ुके ह/, उ)ह� दीपक के बुझने से गधं का आभास नहg होता ह,ै िम? के िहतैषी वा�य" को भी वे नहg सनुते ह/ और वे अU)धती तारा को नहg दखे पात े। 3-;�ततु oोक के मा5यम से कथाकार ने बताया ह ैिक िकस ;कार बुिAजािवय" क# बुिA भी मिलन को जाती ह-ै अस4भवं हेममृग

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 17

    िनराश अथा.त ्दःुखी होकर लौट जाता ह,ै वह उस घर के लोग" को अपना पाप द ेजाता ह ै। 5- िवपिद धैय�म ्

    शाK" म� भी कहा गया ह ैिक िवपिd के समय धैय. धारण करना चािहए । 6-कथाकार नारायणपंिडत राजनीित के िवषय म� कहते ह/- वाराङ्नेव नृपनीितरनेकMपा

    काDय के अ)त म� कथाकार ने अपने व अपने काDय िहतोपदेश के िवषय म� कहा ह-ै

    कथाकार कहते ह/ िक इस संसार म� जब तक िहमालय सुता पाव.ती के ;णय म� च)nमौिल अथा.त ्शंकर का ;ेम अनरुाग ह।ै जब तक बादल" म� िबजली के समान भगवान िव*ण ुके मन म� लVमी सशुोिभत अथा.त ्सदुश.न धारी िव*ण ुव दवेी लVमी का ;ेम ह ैऔर जब तक सयू. के �फुिलड्ग के समान �वण. िशखर समेुU ि�थत ह ै तब तक कथाकार नारायण पंिडत Mारा िवरिचत यह िहतोपदशे नामक कथाओ ंका L) थ ;चिलत रह ेअथा.त ्चलता रह े।

    1.5 सारांश

    इस इकाई के अ5ययन के पGात् आप नीित व नीित सािह�य से पBरिचत ह=ए,आपने शु> नीित, चाण�य नीित, िवदरु नीित, भतृ.हBर के नीिततlवोपदशे" का अ5ययन िकया । इसके साथ ही साथ पंचतं? और िहतोपदशे क# नीितय" से पBरिचत ह=ए । इस इकाई म� आपने िविभ)न Lथं" से संLिहत कIयाणकारी व जीवनोपयोगी नीितय" का अ5ययन िकया ।

    बोध ��

    (5) नीचे जो ;| िदये गये ह/ उनम� से तsय क# fिb से कुछ सही ह/ और कुछ गलत ह/, सही वा�य" के सामने का िच{ लगाइये- तथा गलत वा�य" के सामने गलत का िच{ को

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 18

    दीघ.दशm - दरू तक fिb रखने वाला िहतकारी- िहत करने वाले �तू>#ड़ा- जआु ;ेरणादायक- ;ेरणा दनेे वाला सव.जनिहताय- सभी लोग" के िहत म� नीितशाKF - नीित शाK म� िनपुण

    1.7 बोध ��� के उ!र

    1- (क) (ख) (ग) (घ)

    2- (1) (ग) दजु.न

    (2) (ग) श>ुनीित

    (3) (ग) मखू.

    3- (क ) - }ाता

    (ख ) - अिMतीय

    (ग ) - सव.kे<

    ( घ ) - धतृरा*X

    4- (1) (ग)- नारी

    (2) (ग) - िवदरु

    (3) (क)- िव�ा

    5- (क) (ख) (ग) (घ)

    1.8 स#दभ %ंथ सूची

    1 -बलदेव उपा5याय- सं�कृत सािह�य का इितहास शारदा िनकेतन5 बी, क�तरूबा नगर,िसगरा

    वाराणसी 2210102-

    2. डॉ0 बाबूराम ि?पाठी- kी भतृ.हBर कृत-नीितशतक$महालVमी ;काशनशहीद भगतिसंह

    माग.आगरा-2820023-;ो0 बालशाKी - िहतोपदशेDयाकरण िवभाग सं�कृत चैाख$बा

    सरुभारती ;काशन

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 19

    1.9 उपयोगी पु�तक�

    1- केशोराम अLवाल Mारा -कIयाण-नीितसार-अकंगीता;ेस,गोरखपरु से मिुnत जनवरी एवं फरवरी 2002ई0तथा ;कािशत।

    1.10 िनब#धा�मक ��

    1- पंचतं? के अ)त.गत नीित का सार िलिखये ।

    2 िहतोपदशे क# नीित को िव�तार से समझाइय े।

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 20

    इकाई 2 भतृ�ह�र ,जीवन व�ृ एवं नीित-सािहय म� योगदान

    इकाई क� �परेखा

    2.1 ��तावना 2.2 उ�ेय 2.3 भतृ�ह"र का ि�थित काल 2.4 भतृ�ह"र का जीवन व.ृ 2.5 द/तकथाओ ंके आधार पर भतृ�ह"र के जीवन क6 घटनाएं 2.6 भतृ�ह"र क6 कृितयां

    2.6.1 नीितशतकम ्2.6.2 :ृंगारशतकम ्2.6.3 वैरा=यशतकम ्2.6.4 वा यपदीय

    2.7 भतृ�ह"र का नीित सािह�य को योगदान 2.8 सारांश 2.9 श(दावली 2.10 बोध �,- के उ.र 2.11 संदभ� 0/थ सचूी 2.12 उपयोगी प�ुतक� 2.13 िनब/धा�मक � न

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 21

    2.1 ��तावना

    सं�कृत जगत म� ;चिलत नीित कथाओ ंको आप जानत ेह/ । उ)हg से स$बि)धत नीित सािह�य क# पर$परा विैदक यगु से ;ार$भ होकर आज तक चली आ रही ह ै। िविभ)न Lथं" म� नीित परक स$वाद" , कथाओ,ं सिूOय" आिद के वण.न िमलते ह/। इसी >म म� ;िसA नीित कथाओ ंके रचनाकार पंचतं? के रचियता आचाय. िव*णशुमा. का अaयदुय ह=आ िज)ह"ने नीित सािह�य का भरपरू स$वध.न िकया, इसी पर$परा को आग ेबढ़ाने वाल ेDयाकरण एवं दश.न ि;य DयिOlव तथा पाि�ड�य के धनी आचाय. भतृ.हBर ने नीितशतक क# रचना करके लौिकक जीवन के िविभ)न पE" म� नीितयां का उाटन िकया । इस इकाई के अ5ययन के पGात ्आप भतृ.हBर Mारा िविभ)न पE" से स$बि)धत घटनाओ ंव महlवपणू. नीित परक बात" का Fान कराने म� सEम हो सक� गे ।

    2.2 उ+े,य

    * इस इकाई के अ5ययन के पGात आपः-

    * भतृ.हBर के ि�थित काल से स$बि)धत लखे" व ;माण" का पBरचय ;ाW कर सक� गे।

    * भतृ.हBर के जीवन से पBरिचत हो सक� गे ।

    * भतृ.हBर के जीवन से स$बि)धत घटनाओ ं के द)तकथाओ ंके मा5यम से समझा सक� गे ।

    * भतृ.हBर क# कृितय" का उIलखे कर सक� गे ।

    * भतृ.हBर के नीित सािह�य म� योगदान से स$बिधत तsय" से पBरिचत ह"ग े।

    2.3 भतृह-र का ि�थित काल

    सं�कृत िवj क# ;ाचीनतम व kे< भाषा ह ै। इसका सािह�य अ�य)त िवशाल और समAृ ह ै। भतृ.हBर सं�कृत सािह�य म� सूय. के समान चमके, िजस ;कार सयू. अपनी िकरण" से संसार को ;कािशत करता ह ैउसी ;कार भतृ.हBर के शतक अ)नत काल तक समाज को ;ेरणा देत ेरह�ग े। इ)ह"ने अपने काDय म� अपने समय का िनद_श नहg िकया । सं�कृत सािह�य क# पर$परा म� अनेक महान सािह�यकार व किव ह=ए, अपनी कृितय" म� अपना पBरचय न दनेे के कारण अनेक जनkिुतय" को ही स�य माना जाता ह ै। कािलदास ,भास, भारिव, माघ,तथा शnक क# तरह ही भतृ.हBर के समय के िवषय म� मतभेद ह ै। द)तकथाओ ंव िवदशेी याि?य" के Mारा िलखे लेख" के अितBरO कोई ;माण उपलQध नहg ह ै । इस ;कार दखेा जाय तो भतृ.हBर के ि�थित काल के िवषय म� िनिGत Fान उपलQध नहg होता ह ै। िविभ)न िवMान" के अलग-अलग मत ह/ ।

    जनkिुतय" के आधार पर राजा भतृ.हBर िव>मािद�य के अLज थे, ितिथय" के Fान हते ुिव>म के नाम पर एक संव�सर क# ;था चली जो वत.मान म� 'िव>म संवत' के नाम से जानी जाती ह ै। यिद हम जनkिुतय" को आधार मानकर राजा भतृ.हBर केा िव>मािद�य का अLज मान ल� तो उनका

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 22

    समय छठी शताQदी उdराA. माना जाता हिैज)ह"ने 644 म� कहUर के यAु म� ह~ण" को परािजत िकया । नवg शताQदी उdराA. होने वाले आचाय. आन)दवध.न ने अपने L)थ 5व)यालोक म� भतृ.हBर के o"को को उAतृ िकया ह,ैअतः िनGय ही भतृ.हBर इससे पवू. का होना चािहए । चीनी या?m िह�संग के अनुसार बौA भतृ.हBर को ?य शतक" का िनमा.ता मानते ह/ । इनका समय ईसा क# सातवg शताQदी पवूाA. का माना जा सकता ह,ै उसी समय अमUक नामक किव ह=ए, अमUक किव Mारा िलखे गये शतक के प� भतृ.हBर के kृंगार शतक के प�" से ;भािवत ह/ अथा.त ्िमलते ह/ । अतः हम भतृ.हBर के समय को 700 ई0 के कुछ पवू. का मान�गे, यिद भतृ.हBर को अमUक किव के समकालीन मान ल� तो तब भी भतृ.हBर का समय छठी शताQदी उdराA. का िनिGत िकया जा सकता ह ै।

    2.4 भतृह-र का जीवन व!ृ

    Dयाकरण दश.न म� अभूतपवू. िच)तन करने वाले जीवन म� ;ीित, दया, कUणा और िवMता जैसे अEु�ण गुण" को पहचानने वाले ;िसA किव भतृ.हBर का आिवभा.व महाकाDय" और नीित सािह�य के सि)ध काल क# उ7ूत ;ेरणाओ ं के साथ ह=आ । द)तकथाओ ं व िकंवदि)तय" के आधार पर ही आप भतृ.हBर के जीवन के िवषय म� जान पाय�गे।भतृ.हBर का जीवन िविवधताओ ंसे भरा ह,ै अपने काDय म� समय क# ही भाँित अपने जीवन के िवषय म� िनद_श न देने के कारण जनkिुतय" को ही आधार माना गया ह ै। भतृ.हBर का ज)म मालवा ;ा)त म� ह=आ था, ये जाित के Eि?य व परमार वशंज थे । इनका स$ब)ध राजघराने स ेथा। इनके िपता का नाम ग)ध.वसेन था। इनक# दो रािनयां थg। एक से भतृ.हBर का ज)म ह=आ व दसूरी से िव>मािद�य उ�प)न ह=ए। राजकुमार िव>म भतृ.हBर के छोटे भाई थे, राजकुमार िव>म ही बाद म� महाराजािधराज वीर िव>मािद�य के नाम से ;िसA ह=ए, इ)हg के नाम पर ितिथ का Fान कराने के िलए संवतसर क# ;था चलाई गई इसके िवषय म� आप पवू. जान चुके ह/ । भतृ.हBर ने अपनी िशEा गUु के आkम म� रहकर पणू. क#, भतृ.हBर आFाकारी थे । उ)ह"ने वेद", उपवदे" और छह शाK" का Fान ;ाW िकया, गUु के आkम म� रहकर ही उ)ह"ने वेदा)ताचाय. से 89-Fान ;ाW िकया । महाराजा भतृ.हBर असाधारण िवMान और बिुAमान होने के साथ-साथ एक महान योAा भी थे, एक बार उनके राwयम� श?ओु ं ने आ>मण कर िदया उ)ह"ने श?ओु ंका पणू. Uप से दमन िकया। राजा भतृ.हBर अपनी वीरता के कारण ही नहg अिपत ुिवMता के कारण भी ;िसिA को ;ाW ह=ए।भतृ.हBर के साथ िव>मािद�य और िव>मािद�य के साथ भतृ.हBर के नाम को कभी भी अलग नहg िकया जा सकता , अLज होने के कारण भतृ.हBर राजा बने िव>मािद�य अपने अLज के ;धानमं?ी के Uप म� काय.भार चलाने म� सहयोग दतेे थे, िजस ;कार एक िपता अपने पु? को काय.भार सपकर िनिG)त हो जाता ह ैउसी ;कार भतृ.हBर भी िव>म को स$पणू. दािय�व सपकर सखुी थे, दोन" भाईय" म� अ�यिधक ;ेम था । कुछ समय उपरा)त मालवा क# राजधानी उwजैन हो गयी, सdा पाकर भतृ.हBर िवषयासO हो गये और उनका अिधकांश समय आमोद-;मोद म� िबतने लगा। महाराजा भतृ.हBर क# िपंगला नाम क# रानी थी जो अपने समय क# परमसुंदरी, मनमोिहनी, Uपलाव�या स$प)ना थी । भतृ.हBर व रानी िपंगला म� अ�यिधक ;ेम था, असाधारण Uप से स$प)न रानी िपंगला पर महाराज इस ;कार मु̀ ध ह=ए िक अपनी बुिA, िववेक, और िवचार जैसे

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 23

    वैभव को उनके ऊपर समिप.त िकया वे महारानी िपंगला के हाथ" क# कठपतुली बन गये, उनका अिधकांश समय रिनवास म� बीतने लगा ,िव>मािद�य के बार-बार समझाने पर भी उ)ह"ने उनक# बात नही सनुी।यिद ;ाचीन काल से आधिुनक काल तक देखा जाय तो Uप लाव�या मोिहिनय" के स$मखु बड़े-बड़े योगी तप�वी भी धाराशायी हो जाते ह/ यहाँ हम भतृ.हBर को दोष नहg द�ग,े िवjािम? जैसे महान योगी तप�वी ने मेनका के Uप लाव�य म� फँसकर अपना तप भंग िकया था, बड़े-बड़े योAा जो अपने बाह=बल स ेइस संसार को परािजत कर सकत ेह/ उ)ह"ने भी इन कोमलांगी मनमोिहिनय" के स$मखु हार मान ली बड़े-बड़े योAा जो अपने यAु कौशल के बल नहg कर पात ेय ेअपने एक ही कटाE से कर लेती ह/ । इन मोिहिनय" के वशीभूत रहने वाल ेपUुष को अतं म� दःुख, धोखा और िवjासघात ही िमलता ह ै। यिद भतृ.हBर क# बिुA मारी नहg जाती तो व े रानी िपंगला के हाथ" क# कठपतुलीनहg बनत ेिजससे रानी पर पUुष से ;ेम न करती, यिद वह DयिभचाBरणी न होती तो भतृ.हBर को कैसे वैरा`य ;ाW होता और वे कैसे महान शतक ?य का िनमा.ण करते, येसब तो ईjर क# इtछा से होता ह।ै यिद उ)ह� िवरिO न होती तो उनका नाम संसारम� अमर न होता, अपनी ि;या के कुकम. को जानकर उ)ह� ऐसी िवरिO ह=ई िक व ेराजपाट �यागकर योगीराज बन गये ।

    2.5 द#त कथाओ ं के आधार पर भतृह-र के जीवन क1 घटनाए ं

    इससे पवू. आप भतृ.हBर के जीवन से पBरिचत ह=ए, अब आप द)तकथाओ ंके आधार पर उनके जीवन क# घटनाओ ंसे पBरिचत ह"गे िक िकस ;कार व ेमहाराजा भतृ.हBर से योगी भतृ.हBर बने । महारानी िपंगला अनपुम सौ)दय. शालीनी तो थी ही साथ ही साथ म�कार, चालाक व दGुBर?ा भी थी ,महाराज तो रानी से अटूट ;मे करते थे पर रानी िपंगलाआ)तBरक Uप से राजा से ;ेम नहg करती थी, उसे तो अपने महल के सेवक दरोगा से ;ेम था, कुछ समय तक महारानी क# कलंक कथा िछपी रही आिखर एक िदन राजकुमार िव>म को महारानी ( भाभी ) का कुकम. Fात ह=आ तो उ)ह� अस मनोवेदनाह=ई, उ)ह"ने अपने अLज भतृ.हBर को जब सारा वdृांत सुनाया तो उ)ह"ने िव>म से कहा- त$ुह� कोई }म हो रहा ह ैपंगला तो एक पितता व आदश. नारी ह,ै ऐसी पितता रानी िपंगला के चBर? म� कलंक लगाकर तमुने ठीक नहg िकया, िव>मािद�य के बार-बार समझाने पर भी भतृ.हBर ने उनक# एक न सनुी । जब रानी िपंगला को इस घटना के बारे म� Fात ह=आ तो उसने महाराज से िव>मािद�य को मं?ी पद से हटाने का अनरुोध िकया । िव>म समझ गये िक यह सब िपंगला का षड्यं? ह ै । राजा भतृ.हBर ने उ)ह� म?ंी पद से हटाकर अपने राwय से िन*कािसत कर िदया, वे सभा भवन से िनकल कर वन क# ओर चल पड़े । िव>मािद�य के चले जाने के बाद भतृ.हBर का जीवन अ�यिधक िवषयवासना L�त हो गया, राwय म� अशाि)त व अDयव�था फैल गई । इसी समय एक घटना ऐसी घटी िजसका भतृ.हBर के दय पर गहरा ;भाव पडा ़-एक द)तकथा के अनसुार भतृ.हBर के राwय म� एक दBरn 8ा9ण अपने िसिA के िलए िकसी दवेता क# घोर अराधना कर रहा था, तप करते -करत ेउसे कई वष. Dयतीत हो गये । उसके तप के ;भाव से दवेता का आसन िहल उठा, उ)ह"ने उसे एक अमर फलिदया । अमर फल ;ाW करने के बाद 8ा9ण ने सोचा इस फल को खाने से अमर होकर मझेु दBरnता का कb भोगना पड़ेगा । उसने मन म� िवचार िकया �य" न ये अमर फल म/ राजा को द ेदू।ँ 8ा9ण ने अमर फल का वdृा)त राजा को सनुाया और वह फल राजा के हाथ म� रख िदया, राजा भतृ.हBर ने ;स)नता

  • नीितका� य ,� याकरण एवं अनुवाद BASL102

    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 24

    पवू.क उस 8ा9ण को कई लाख �वण. मnुाएँ भ�ट �वUप दी । राजा अपनी रानी िपंगला से बह=त ;ेम करते थे अतः उ)ह"ने वह फल �वयं न खाकर अपनी ;ाणि;या रानी िपंगला को दे िदया । राजा भतृ.हBर ने रानी से कहा िक इस फल को खाने के बाद त$ुहारा सौ)दय. िचरकाल तक बना रहगेा, उसने वह फल महाराज से लेते ह=ए कहा यिद आप चाहते ह/ िक म/ इस फल को खाऊँ तो म/ इसफल को �नान के पGात ्खाऊँगी । राजा भतृ.हBर रानी क# बात पर िवjास करके सभा म� लौट आये । एक जनkिुत ह ै िक रानी अपने राwय के दरोगा से गWु ;ेम करती थी, अमर फल िमलने पर ;ेम के वशीभतू होकर रानी ने उस फल को �वयं न खाकर अपने ;ेमी दरोगा को द ेिदया । दरोगा बोला- ि;यतमे म/ इसे खा लूँगा । वह दरोगा भी रानी से सtचा ;ेम नहg करता था, वह उसी नगर क# वे�या से ;ेम करता था अतः वह फल उसने अपनी ;िेमका व�ेया को दे िदया। दरोगा ने कहा- ;ाणि;ये इस फल को खाने से कभी म�ृय ुको ;ाW नहg होता और उसका Uप यौवन भी िचर �थायी रहता ह ै। अतः म/ चाहता ह~ ँिक तमु इस अमर फल को खाओ । िजससे तमु सदा Uप लाव�या बनी रहोगी । व�ेया दरोगा से बोली �नान के पGात ्म/ इस फल को खा लूँगी । अमर फल को ;ाW करने के बाद व�ेया ने अपने मन म� िवचार िकया- िक इस फल को खाकर यिद म/ अमर हो जाऊँगी तो मेरी सारी आय ुतो पाप कमाते बीत जायेगी । मझेु न जाने िकतने पाप" व कुकम^ म� अपना जीवन िबताना पड़ेगा । और कब तक इन पाप" को इका करती रह~गँी । वह वे�या मन ही मन राजा भतृ.हBर से अटूट ;ेम करती थी , उसने सोचा �य" न म/ इस फल को राजा भतृ.हBर को द ेदू,ँ िजससे राजा भतृ.हBर िचरकाल तक जीिवत रहकर ;जा को सखुी रख सक� । महाराजा भतृ.हBर क# सभा म� एक अनपुम स)ुदरी, मनमोिहनी, Uप-लाव�या और वेष-क#मती पBरधान से ससुिwजत नवयवुती व�ेया अपने हाथ" म� िविच? फल िलए महाराज को दतेे ह=ए कहती ह-ै महाराज यह अमर फल ह ैइसे खाने वाला सदा अमर रहता ह ै। फल को वे�या के हाथ" म� दखेकर राजा भतृ.हBर के होश उड़ गये । राजा िकंकत.Dयिवमूढ़ हो गये । राजा ने उसी Eण वह फल वे�या के हाथ" से ले िलया और उसी Eण उसे खा िलया । भतृ.हBर ने जब रह�य का पता लगाया तो उ)ह� िपंगला के िवjासघात पर बड़ी आ�म`लािन ह=ई, रानी के कपटपणू. Dयवहार पर घणृा उ�प)न हो गई । उ)ह"ने रानी क# बड़ी भ�स.ना क# । अब उ)ह� इस संसार से िवरिO हो गई । उ)ह"ने समझ िलया िक इस संसार म� कोई िकसी का नहg होता यह संसार िमsया ह ै। राजा चाहत ेतो सबको दि�डत कर सकते थे लेिकन उ)ह"ने सबको Eमा कर िदया । राजा ने सोचा िक िवषय वासनाओ ंम� फँसकर लोग अपना बह=मूIय क#मती जीवन गंवा दतेे ह/ उ)ह"ने अ� य) त( दःुखी) होकर अपने मन म� सोचा-

    यां िच#तयािम सततं मिय सा िवरOा, साऽ_य#यिम*छित जनं स जनोऽ#यसOः। अ

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    उ� तराख� ड म�ु त िव� विव�ालय 25

    बाद बड़े दःुखी ह=ए और राजभवन �यागकर वैरागी बन बैठे । उ)ह"ने अपने मंि?य" से कहा िक म/ने उस कुिटला रानी के कहने पर अपने स�यवादी भाई िव>मािद�य के साथ बड़ा अ)याय िकया ह ै। आप लोग िव>मािद�य क# खोज कर उसे राजगी पर आUढ़ कर देना । भतृ.हBर ने तीन शतक" का िनमा.ण िकया । ये शतक अन)त काल तक समाज को ;ेरणा देते रह�ग,े योगी गोरखनाथ से उ)ह"ने योग साधना ;ाW क# अंत म� ई0 615 म� इनक# म�ृय ुहो गयी ।

    बोध ��

    1-नीचे जो वा�य िदये गये ह/ उनम� से तsय क# fिb से कुछ सही ह/ और कुछ गलत ह/। सही वा�य" के सामने कोमािद�य (ख) अमUक किव (घ) ग)�