60

HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

Embed Size (px)

Citation preview

Page 1: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

कल सफ़हात 59 मअिलफ़ हज़रत जी महमद शकल बन हनीफ़ साहब तरतीब इमरान राशद

फतव क हसयत और उस का जवाब

फहरत या कहा 1 डी वाल मदरस स पहल उमत क हालत या थी 5 2 डी वाल मदरस कब श हए 9 3 नहज नबत और मतलफ़ जमाअत 14 4 या महदamp दनया क तमाम इसान को राह रात पर ल आएग 18 5 रहमत व बरकत 1कस क साथ होती ह 31 6 फतव 1कस स लए जाए 34 7 अहादampस को जानन का सहampह पमाना 39 8 ईसा और महदamp एक हamp शिसयत क दो नाम 44 9 मरamp 1कताब म नज़7रयात क ल8ज़ स गलत फ़हमी 48 10 रहबर को कस काम करना होता ह 49 11 महदamp का अपन मख़ालफन स खलकर न मलन क वज़ाहत 52 12 महदamp क मवा1फ़क़त और मख़ालफत करन वाल 53 13 1कताब लखन क ज़रत य 57 14 हक़ बात मानन का मअयार 59

बिमलाहररहमानररहम अहद ललाह नहमदह व नसल अला रसलहल करम तमाम तारफ़ अलाह ह क लए ह िजस न इसान को अampल व फ़हम अता क ताक वो हक़ को पहचान तारफ़ उस अलाह ह क लए िजसन हजर अकरम सललाह अलह व सलम को सार आलम क लय रहमत और सीधी राह दखान वाला बनाकर भजा दद व सलाम हज़र अकरम सल पर िजह0न उमत क बहतरन रहबर क और उमत को हक़ और बा1तल को पहचानन का मअयार समझाया जसा क हम जानत ह3 क हज़र सललाह अलह वसलम क बाद जस जस ज़माना गज़रता गया उमत म6 इि7तलाफ़ात बढ़त चल गए और आज हज़र सललाह अलह वसलम क उमत बढ तादाद म6 फरक़0 और म7तलफ़ जमाअत0 म6 बट हई ह और हर जमाअत अपन को हक़ पर समझती ह और दसर क दर परदा या खलकर मख़ालफत करती ह बक बाज़ तो एक दसर पर कgt या बा1तल होन का फतवा तक लगा दत ह3 बाज़ मरतबा तो ऐसा भी दखा जाता ह क जो जमाअत दसर पर कgt या गमराह का फतवा लगाती ह ख़द उस जमाअत पर कई सार कgt या गमराह क फतव लग होत ह3

इसी तरह का एक फतवा िजसका तालक़ पशीनगोईय0 स ह उसकाऔर कछ दगर सवाल0 का जवाब हज़रत जी मोहमद शकल बन हनीफ साहब न 1नहायत ह आसान और आम फहम ज़बान म6 दया ह िजस आग नक़ल कया गया ह इस म6 उह0न फतव क हक़क़त हदस0 को परखन का सहह पमाना और इस बात क तरफ़ तवBजोह दलाई ह क पशीनगोई चक ग़ब का इम ह इसलए इस लोग0 क बात0 या लोग0 क फतव स नह बिक सहह अहादस म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह इस तहरर म6 उह0न इस बात क तरफ़ भी इशारा कया ह क हज़र सललाह अलह वसलम का लाया हआ दन आसान ह और हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान म6 लोग इस कस तरह आसानी स सीख लत थ य जवाबात हज़रत जी क इम हदस स गहर वािampफ़यत और मौजदा ज़मान क हालात पर उनक वसीउनज़र क वाज़ह दलाइल ह3 अलाह पाक हम6 बजा इि7तलाफ़ात स बचन क तौफ़क़ अता फरमाए और हक़ बात को समझन म6 हमार रहबर फरमाए और हम6 द1नया और आGखरत क भलाई नसीब फरमाय आमीन समा आमीन वHसलाम इमरान राशद 5 जनवर 2014ई

दन0 या चद महन भर म6 अपन माहौल म6 रहकर भी सीख जात थ और इस क लए कसी IडKी क ज़रत नह होती थी और इस तरह लोग0 क लए जहा दन पर चलना आसान था वह लखना और पढ़ना और दन को जानना भी आसान था मज़ीद य क अलाह न दन को जानन क लए य शतE नह रखी क हर एक को लखना आए ह य अलाह दन0 म6 उस को सीख लत थ और इस क लए कई साल तक उस म6 लगना नह पड़ता था बिक चदह वसलम क ज़मान म6 और आप क बाद खलफ़ाए राशदन क ज़मान म6 दन का जानना बहत आसान था उस ज़मान म6 लोग आम तौर पर लखना और पढ़ना इसी को समझत थ क कसी क कोई बात सन कर उसको लखना आ जाए या लखी बात को पढ़ना आ जाए इसीलए उस ज़मान म6 िजस को लखना या लखी चीज़ पढ़ना नह आता था वो एक दसर स थोड़ फतव क बार म6 जानन स पहल हम6 मदरस और उसक IडKी को जानना ज़र ह 1- डी वाल मदरस स पहल उमत क हालत या थी - रसललाह सललाह अल الحمد نحمده ونصلی علی رسولہ الکريم اما بعد फतव क बार म6 हज़रत जी क जवाबात بسم هللا الرحمن الرحيم

का फज़ल ह क उस न दन को आसान कर क हजर अकरम सललाह अलह व सलम को अता कया ह आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप स क बाद खलफ़ाndashए-राशदन क ज़मान म6 दन को जानन क लए य शतE नह थी क कसी को लखना पढ़ना आता ह क नह लोग एक दसर स हदस6 सन कर याद कर लत थ पढ़ना लखना सीखन को लोग उस ज़मान म6 अOछा समझत थ इसीलए बहत स सहाबा न एक दसर स लखना और लखी चीज़ पढ़ना सीख लया था ताहम उस ज़मान म6 ऐस बहत स लोग थ िजनको लखना पढ़ना नह आता था मगर उनको हज़र सललाह अलह व सलम क हदस6 कसरत स याद होती थी और वो मQतक़ होत थ यह वजह ह क हजर अकरम सललाह अलह व सलम क बाद एक लब असR तक अकसर अहादस सनी सनाई हआ करती थी और अहादस क लखन का Sरवाज बहत ह कम था हज़र अकरम स क ज़मान म6 या खलफ़ा-ए-राशदन क ज़मान म6 लोग0 को दन म6 कोई Iडगर नह मलती थी अलबQता आप सललाह अलह व सलम न चद सहाबा को उनक अOछ कारनाम0 क वजह स कछ अक़ाब स पकारा था मHलन अब बT रज़ी न जब हजर अकरम

सललाह अलह व सलम क मअराज क सफर क तHदक़ मUका क मशरकन क सामन अलल ऐलान क तो हजर अकरम सललाह अलह व सलम न उनको सVीक़ कहा या1न बहत Wयादा सOचा हज़रत उमर क ईमान व कgt म6 फक़E करन क इितयाज़ी सलाहयत क वजह स आप सललाह अलह व सलम न उह फ़ाक़ कहा यानी ईमान व कgt म6 फक़E करन वाला हज़रत ख़ालद बन वलद क नमाया जगी सलाहयत क वजह स आप सललाह अलह व सलम न उह6 सफलाह कहा मगर आप सललाह अलह व सलम क बाद खलफ़ाए राशदन न ग़ालबन अपनी तरफ स कोई Gखताब कसी को नह दया रह बात उमत क जाहल और आलम दो तबक0 म6 बटन क तो इस जानन स पहल य जानना ज़र ह क आलम क IडKी इस उमत को कब स मलन लगी इसलए क हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 या हज़र सललाह अलह व सलम क बाद कई सौ साल तक लोग0 को आलम होन क IडगSरया नह द जाती थी बिक मसलमान उनको अपन म6 का आलम समझत थ िजन को हज़र सललाह अलह व सलम क अहादस कसरत स याद हआ करती थी और वो काफ मQतक़ हआ करत थ और लोग0 को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स बाख़बर करात थ िजस क वजह स उमत क हर

फदE को अहादस को एक दसर को बतान का और सीखन सखान का हक़ था और अगर कोई कसी क अमल पर हदस क ब1नयाद पर एतराज़ करता तो उस स य नह पछा जाता क त कहा का फ़ाSरग़ ह या क त जाहल ह त हदस नह बता सकता इसलए क पछन वाल क पास भी कोई IडKी नह होती थी और वो भी कह का फ़ाSरग़ नह होता था बिक लोग ह उसको आलम कहत थ इस उमत म6 IडKी मलन क Sरवाज स पहल तक हर उमती को उस क नबी क बात कहन का हक़ था और हर बद को उसक रब क बात यानी क़रआन क बात कहन का हक़ था उस वampत सफE इतना होता था क लोग हदस बयान करन वाल स चाह वो कोई भी हो य पछत थ क तझ तक य हदस कस तरह पहची या त न य हदस कस स सनी फर अगर उस क बात सहह होती तो ठYक वरना उसक बात0 क इHलाह क जाती थी मगर य नह कहा जाता था क तर पास कोई IडKी नह इसलए तझ हदस बयान करन का हक़ ह नह पस उस ज़मान म6 दन आसान था और लोग दन पर शौक़ स चलत थ और उमत आलम और जाहल क दो तबक़ म6 बट हई नह समझी जाती थी बस इतना था क कसी क पास दन का इम कम था तो कसी क पास Wयादा यानी कोई कम इम वाला होता तो कोई Wयादा इम वाला होता

2- डी वाल मदरस कब श हए - य बात सहह ह क द1नया म6 ऐसा कोई नबी नह आया िजस न कोई ऐसा मदरसा खोला हो िजस म6 बOच0 को इकZा कर क कताब0 क राHत दन सखाया जाता हो फर सालाना इितहान ल ल कर छह सात साल क बाद उस को आलम या मौलवी होन क IडKी द जाती हो ताक उनक सवा िजनको IडKी मल हो बाक़ लोग [वाह उनक पास सहह इम हो या ना हो हर हाल म6 जाहल कहलाए य भी सहह ह क खलफ़ाए राशदन म6 स भी कसी न ऐसा कोई मदरसा नह खोला जहा बOच0 को उनक अपन0 स दर कर क कसी मकान म6 इकZा कर क कताब0 क राHत दन सखाया जाता हो फर सालाना इितहान वग़रह लकर छह सात साल बाद उनको मौलवी या आलम होन क IडKी द जाती हो ऐसा मदरसा ना उह0न अरब म6 कह खोला और न ह अरब क बाहर कह बात दरअसल यह ह क उनक ज़मान तक उमत म6 कताब एक ह थी और वो था क़रआन और अकसर लोग अहादस को ज़बानी याद करत थ और एक दसर को याद करात थपस जब क कताब ह एक थी तो Iडगर का मदरसा कहा स होता और अगर कसी को ऐसा लगता हो क उस ज़मान म6 आज क तज़E का मदरसा था तो मझ उस का नाम बता द और य बताए क वो कहा थाऔर उसम6 कतन बOच पढ़त थऔर कौन-कौन

स सहाबा उस म6 कतन कतन घट पढ़ात थ दरअसल उस ज़मान म6 लखन पढ़न का उममी मतलब य समझा जाता था क लोग कसी बात को लखना सीख ल6 और लखी बात0 को पढ़ना सीख ल6 मगर इस क लए कोई IडKी नह मलती थी और ना ह आज क तज़E का कोई इितहान होता था और न ह उमत आलम और जाहल क दो तबक़0 म6 IडKी क ब1नयाद पर बट हई थी बाज़ लोग अपनी नासमझी म6 यहा तक बोल जात ह3 क हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 स]फा मदरसा था तो उनको जानना चाहए क स]फा पर वो लोग रहत थ िजनको उनक घर वाल 1नकाल दत थ और वो भाग कर अपन ईमान को बचान क लए मदना आ जात थ और उनक पास कोई झ0पड़ी भी बनान क गजाइश नह होती थी फर जब वो महनत मज़दर करत या अलाह पाक उनक लए रहन का कोई दसरा इ1तज़ाम कर दत तो य वहा स हट कर अपन घर म6 रहन लगत मUका क महािजरन म6 स अUसर व बशतर सहाबा स]फा वाल नह ह3 इसलए क हजर अकरम सललाह अलह व सलम न उनका और असार का भाई चारा करा दया था इसलए उह6 स]फा पर बठन क नौबत नह आई और असार इसलए नह Uय0क उनका मदन म ख़द का घर होता था पस य [याल पर तरह गलत ह क स]फा कसी मदरस का नाम ह जहा पर

कोई आलम क IडKी मलती थी बिक अरबी म6 स]फा चबतर को बोलत थ य मिHजद नबवी म6 एक कनार पर मजबर लोग0 क वाHत बनवाया गया था हज़रत उमर रज़ी न अपनी Gखलाफत क ज़मान म6 यहा पहल क तरह बठन को मना कर दया था हजर अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप सललाह अलह व सलम क बाद एक ज़मान तक लोग माहौल व मआशर म6 दन सीखत थ और हदस6 आम तौर पर एक दसर स सन कर याद कर लत थ अहादस लख कर रखन का Sरवाज कम था उस ज़मान म6 दन सीखन या क़रआन करम को याद करन क ख़ा1तर बOच0 क ^पटाई नह क जाती थी बिक बOच अपन बड़0 को दन पर चलता दख कर और दन क बात6 सनत सनात दख कर अपन शौक़ स हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अहादस और क़रआन करम क कछ सरत6 याद कर लत थ लोग दनी माहौल व मआशर क क़ायम होन क वजह स आसानी स अपन माहौल व मआशर म6 रहकर दन सीख लत थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप क बाद एक ज़मान तक वो लोग जो मदन स बाहर रहत थ और नए-नए मसलमान होत थ उन म6 स कछ लोग कभी-कभी चद दन0 क लए या चद घट0 क लए मदना मन_वरा आत थ और मदना मन_वरा क

दनी माहौल म6 रहकर और हज़र सललाह अलह व सलम क या महािजरन व असार क बात6 सन कर आसानी स दन सीख लत थ और फर यहा क हालात और यहा क बात6 अपन क़बील क लोग0 को बयान करत थ और वो भी उन स आसानी स दन सीख लत और दन पर अमल करन लगत थ इसक अलावा य था क हजर अकरम सऔर आप क बाद खलफ़ाए राशदन मदना मन_वरा क कछ असहाब कराम को मदना मन_वरा क बाहर अलग- अलग इलाक0 म6 कभी-कभी भजत रहत थ ताक वो जाकर वहा क लोग0 को उनक माहौल व मआशर म6 रहकर अपन क़ौल व फ़ल (अमल) स दन सखाए इसक लए वहा कोई IडKी वाला मदरसा नह होता था हज़रत अल रज़ी का इतकाल छह सौ इUसठ ईसवी म6 हआ ह उनक बाद हज़रत अमीर मआ^वया रज़ी इHलामी हकमत क हाकम बन यहा स बन उम`या क हकमत श होती ह और सात सौ पचास ईसवी तक रहती ह इसक बाद बन अaबासया क हकमत श होती ह हान रशीद बन अaबासया क पाचव6 हाकम ह3 उनका इतक़ाल 809 AD म6 होता ह उनक इतक़ाल क सौ साल बाद 909 AD म6 मb बन अaबासया क हकमत स अलग हो जाता ह और वहा शीआओ क पहल हकमत क़ायम हो जाती ह इसक तक़रबन बावन साल बाद 961 AD म6 शीआओ क ज़Sरए

द1नया का पहला IडKी दन वाला मदरसा एक मिHजद म6 खलता ह िजस जामअ अज़हर कहा जाता ह इसक बाद स ह द1नया म6 जगह जगह IडगSरय0 का सलसला श होता हय ज़माना हज़र सललाह अलह व सलम क तीन सौ चालस साल बाद का ह इसक बाद स इस उमत क लोग र]ता र]ता IडगSरय0 क ब1नयाद पर आलम और जाहल क दो तबक0 म6 बटन लग ईसाइय0 और दसर क़ौम0 न भी IडKी दना शीआओ स सीखा ह इसीलए द1नया क सब स परानी यनीवरसट जामअ अज़हर कहलाती ह 1174 AD म6 सलाहVीन अ`यबी मb क हाकम बन उह0न इस मदरस को बद करवा दया था उनक इतक़ाल क बाद जब उनक औलाद मb क हकमत सभालती ह तो उह0न मदरस को फर स खलवाया इसक बाद स य मदरसा सिनय0 का हो गया पस जानना चाहए क अगर आलम होन क लए IडKी शतE होती और बग़र IडKी क लोग इम होन क बावजद जाहल कहलात तो हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क तक़रबन साढ़ तीन सौ साल बाद तक उमत जाहल नह थी और य काम ख़लफाndashए-राशदन म6 स कोई न कोई ज़र श करता [वाह अरब म6 या अरब क बाहर

3mdashनहज नबवत और मतलफ़ जमाअत - दरअसल इस क़Hम का IडKी वाला मदरसा भी उमत म6 दन सीखन सखान क लए एक जमाअत क तरह ह (जस क और दगर जमाअत6 ह3 मसलन तबलग़ खानक़ाह जमाअत इHलामी अहल हदस वग़रह) जो क हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क कई सौ साल बाद वजद म6 आता ह मगर इस जमाअत(मदरसा) क ज़रए लोग बलउमम बाइचास ह दन सीख पात ह3 क उनक बड़0 न बचपन म6 उनको इस जमाअत म6 शामल कया तो ठYक वरना जब इसान बालग़ होता ह और उस दन पर चलन का और उसको सीखन का शौक़ पदा होता ह तो उस का इस जमाअत म6 शामल होन का वampत ख़Qम होन लगता ह जबक दसर जमाअत0 म6 शामल होन का वampत श होता ह और अगर कोई बड़ी उd म6 इस म6 शामल होना चाह तो य काम उसक लए बलउमम मिeकल साबत होता ह नबय0 क नहज लोग0 क दन सीखन सखान क लए आसान होती ह उस हर उd का इसान आसानी स सीख लता ह मदन म6 आकर हर उd क लोग आसानी स दन सीख लत थ द1नया म6 कोई ऐसा नबी नह आया िजस न दन क कोई ऐसी नहज पश क हो िजस म6 शामल होन क उd उस वampत खQम होन लग जबक शामल होन वाल म6 अampल व होश आ जाए और वो बालग़ हो चका हो या पOचीस तीस

साल स Wयादा उd का हो चका हो बिक नबय0 का तरक़ा दनी माहौल व मआशरा क़ायम करन का होता था ताक हर कोई उस म6 रहकर आसानी स दन सीख ल [वाह उसक उd सQतर अHसी साल या इस स भी Wयादा Uय0 ना हो अलबQता बाज़ नबीय0 का लोग0 न साथ नह दया िजसक वजह स उनको ऐसा माहौल व मआशरा क़ायम करन क नौबत ना आ पाई म3 य नह कहता क इन जमाअत0 स उमत को फायदा नह होता ह या क इन म6 स कोई ग़लत ह िजनका म3 न ऊपर िज़T कया ह ग़लत तो वो ह जो शकE करता ह या ख़राफाती बदअत म6 मaतला ह [वाह वो कोई भी हो इसक Wयादा तफसील क यहा गजाइश नह ह दरअसल य तमाम जमाअत6 क़रआन व सनत को ह लाग करना चाहती ह3 हा क़रआन और सनत लाग करन का तरक़ा इनका अपना-अपना ह िजसक वजह स य एक दसर स इि[तलाफ़ करती ह3 इनक आपसी इि[तलाफ़ात क एक बड़ी वजह इनक बड़0 क लख लटरचर भी ह3 िजसक वजह स इन म6 क बाज़ दसर पर इHलाम स ख़ाSरज होन का फतवा तक द डालत ह3 यहा इनक लटरचर क इि[तलाफ़ात को बयान करन क गजाइश नह ह इसलए यहा म3 सफE इन जमाअत0 क दन फलान क तरक़ का िज़T कर रहा ह

दन को उमत म6 क़ायम करन क हर एक क अपन-अपन अलग-अलग ब1नयाद उसल ह3 तबलग़ का नज़Sरया य ह क असल काम मसलमान0 म6 चल फर कर दावत दन का ह ताक जब दावत द6ग तो ख़द का दन पर चलना आसान हो जाएगा और जब अपन लोग दन पर चलन लग6ग तो ग़र0 क लए भी दन क़बल करना आसान हो सकता ह इसलए वो बलउमम बालग़ लोग0 को अपनी जमाअत म6 शामल करत ह3 ताक बOच अपन बड़0 स दन सीख ल6 या बड़ होकर वो भी उनक जमाअत म6 शामल हो जाए इसक लए वो इस जमाअत क बानी इयास साहब क ज़Sरए क़ायम करदा नहज को पश करत ह3 मदरस वाल0 क ब1नयाद नज़Sरयात य ह3 क जब बOच0 म6 दन आ जाएगा तो वो बड़ होकर बड़0 तक दन पहचाएग खानक़ाह का नज़रया य ह क असल काम क़लब क इसलाह ह और नfस पर क़ाब पाना ह इसक लए िज़T क कसरत ज़र ह और जब दल िज़दा होगा तो दन पर चलना आसान होगा अहल हदस का मानना य ह क असल काम उमत क आमाल को बख़ार और मिHलम वग़रह म6 बताए गए तरक़ क मताबक़ लाना ह और उह6 ऐसी बात0 स रोकना ह िजस स क वो उन राHत0 स भी gक जाए िजन पर चलन स शकE क तरफ जान का ज़रा भी ख़तरा हो और दन क दावत को ग़र0 म6 आम करना ह जमाअत इHलामी का नज़Sरया भी कछ

मलता जलता ह वो भी ग़र0 म6 दावत पहचान को तरजीह दत ह3 दरअसल य मौज तफसील तलब ह िजसक यहा गजाइश नह ह इसलए म3 न ऊपर हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान क और आप क बाद ख़लफा-ए-राशदन और उनक बाद क एक ज़मान तक दन सीखन सखान क नहज का इि[तसारन िज़T कर दया ह और उनक बाद क़ायम हई अलग-अलग जमाअत0 क दन फलान क नहज का म[तसर सा जाइज़ा उसक नीच पश कर दया ह ताक जो लोग नहज नब_वत और दसर नहज का फक़E जानना चाह6 उह6 इस जा1नब रहबर मल जाए और जो कोई खद ना समझना चाह उस तो द1नया म6 समझाना मिeकल ह अब ज़ाहर सी बात ह क कोई भी आसमानी रहबर द1नया म6 नहज नब_वत को क़ायम करन आता ह और उसक लए यह बहतरन राHता ह दसर राHत तो उस वampत क लए होत ह3 जब क उमत म6 नहज-नब_वत क़ायम ना हो चक हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अलावा इस उमत का कोई नबी नह और आप क लाई गई शरअत या1न कताबलाह(क़रआन) और सनत रसललाह(या1न आप क ज़Sरए द गई तालमात) क अलावा इस उमत क लए कोई दसर शरअत नह इसलए लािज़मन इस उमत म6 नहज नब_वत क़ायम करन का

तरक़ा यह ह क क़रआन व सनत को आपक उमत म6 उस तरक़ पर क़ायम कया जाए जो क ख़द आप सललाह अलह वसलम न कर क दखलाया ह या आप न उसक तालम द ह मिHलम म6 ह क ईसा अलहHसलाम इस उमत म6 इसाफ पसद इमाम और आदल हाकम क हसयत स ह0ग अब दाउद म6 ह महद अलहHसलाम लोग0 म6 उनक नबी क सनत को जार कर6ग इaन माजा म6 महद अलहHसलाम को ख़लफ़तलाह कहा गया ह 4 ndash या महदamp अल(ह)सलाम दनया क तमाम इसान- को राह रा)त पर लआएग अब रह य बात क Uया महद अल द1नया क तमाम लोग0 को हदायत द द6ग और द1नया क तमाम लोग0 म6 इसाफ क़ायम कर6ग बाज़ लोग मर मतािलक़ य कहत ह3 क म3 न कसी स य कहा क 2012 या 2013 तक सार द1नया म6 इHलाम फल जाएगा तो जानना चाहए क य बात क़तअन दgHत नह ह या क मर बात को समझन म6 कसी स ग़लत फहमी हई ह Uय0क ग़ब का इम अलाह ह क पास ह आग Uया होना ह य अलाह को मालम ह मज़ीद य क अलाह न द1नया म6 क़रआन करम क ज़Sरए हर इसान को हदायत क राह दखाई ह मगर जो कोई इस को क़बल करता ह वो अपन लए और जो कोई इस ठकराता

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 2: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

फहरत या कहा 1 डी वाल मदरस स पहल उमत क हालत या थी 5 2 डी वाल मदरस कब श हए 9 3 नहज नबत और मतलफ़ जमाअत 14 4 या महदamp दनया क तमाम इसान को राह रात पर ल आएग 18 5 रहमत व बरकत 1कस क साथ होती ह 31 6 फतव 1कस स लए जाए 34 7 अहादampस को जानन का सहampह पमाना 39 8 ईसा और महदamp एक हamp शिसयत क दो नाम 44 9 मरamp 1कताब म नज़7रयात क ल8ज़ स गलत फ़हमी 48 10 रहबर को कस काम करना होता ह 49 11 महदamp का अपन मख़ालफन स खलकर न मलन क वज़ाहत 52 12 महदamp क मवा1फ़क़त और मख़ालफत करन वाल 53 13 1कताब लखन क ज़रत य 57 14 हक़ बात मानन का मअयार 59

बिमलाहररहमानररहम अहद ललाह नहमदह व नसल अला रसलहल करम तमाम तारफ़ अलाह ह क लए ह िजस न इसान को अampल व फ़हम अता क ताक वो हक़ को पहचान तारफ़ उस अलाह ह क लए िजसन हजर अकरम सललाह अलह व सलम को सार आलम क लय रहमत और सीधी राह दखान वाला बनाकर भजा दद व सलाम हज़र अकरम सल पर िजह0न उमत क बहतरन रहबर क और उमत को हक़ और बा1तल को पहचानन का मअयार समझाया जसा क हम जानत ह3 क हज़र सललाह अलह वसलम क बाद जस जस ज़माना गज़रता गया उमत म6 इि7तलाफ़ात बढ़त चल गए और आज हज़र सललाह अलह वसलम क उमत बढ तादाद म6 फरक़0 और म7तलफ़ जमाअत0 म6 बट हई ह और हर जमाअत अपन को हक़ पर समझती ह और दसर क दर परदा या खलकर मख़ालफत करती ह बक बाज़ तो एक दसर पर कgt या बा1तल होन का फतवा तक लगा दत ह3 बाज़ मरतबा तो ऐसा भी दखा जाता ह क जो जमाअत दसर पर कgt या गमराह का फतवा लगाती ह ख़द उस जमाअत पर कई सार कgt या गमराह क फतव लग होत ह3

इसी तरह का एक फतवा िजसका तालक़ पशीनगोईय0 स ह उसकाऔर कछ दगर सवाल0 का जवाब हज़रत जी मोहमद शकल बन हनीफ साहब न 1नहायत ह आसान और आम फहम ज़बान म6 दया ह िजस आग नक़ल कया गया ह इस म6 उह0न फतव क हक़क़त हदस0 को परखन का सहह पमाना और इस बात क तरफ़ तवBजोह दलाई ह क पशीनगोई चक ग़ब का इम ह इसलए इस लोग0 क बात0 या लोग0 क फतव स नह बिक सहह अहादस म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह इस तहरर म6 उह0न इस बात क तरफ़ भी इशारा कया ह क हज़र सललाह अलह वसलम का लाया हआ दन आसान ह और हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान म6 लोग इस कस तरह आसानी स सीख लत थ य जवाबात हज़रत जी क इम हदस स गहर वािampफ़यत और मौजदा ज़मान क हालात पर उनक वसीउनज़र क वाज़ह दलाइल ह3 अलाह पाक हम6 बजा इि7तलाफ़ात स बचन क तौफ़क़ अता फरमाए और हक़ बात को समझन म6 हमार रहबर फरमाए और हम6 द1नया और आGखरत क भलाई नसीब फरमाय आमीन समा आमीन वHसलाम इमरान राशद 5 जनवर 2014ई

दन0 या चद महन भर म6 अपन माहौल म6 रहकर भी सीख जात थ और इस क लए कसी IडKी क ज़रत नह होती थी और इस तरह लोग0 क लए जहा दन पर चलना आसान था वह लखना और पढ़ना और दन को जानना भी आसान था मज़ीद य क अलाह न दन को जानन क लए य शतE नह रखी क हर एक को लखना आए ह य अलाह दन0 म6 उस को सीख लत थ और इस क लए कई साल तक उस म6 लगना नह पड़ता था बिक चदह वसलम क ज़मान म6 और आप क बाद खलफ़ाए राशदन क ज़मान म6 दन का जानना बहत आसान था उस ज़मान म6 लोग आम तौर पर लखना और पढ़ना इसी को समझत थ क कसी क कोई बात सन कर उसको लखना आ जाए या लखी बात को पढ़ना आ जाए इसीलए उस ज़मान म6 िजस को लखना या लखी चीज़ पढ़ना नह आता था वो एक दसर स थोड़ फतव क बार म6 जानन स पहल हम6 मदरस और उसक IडKी को जानना ज़र ह 1- डी वाल मदरस स पहल उमत क हालत या थी - रसललाह सललाह अल الحمد نحمده ونصلی علی رسولہ الکريم اما بعد फतव क बार म6 हज़रत जी क जवाबात بسم هللا الرحمن الرحيم

का फज़ल ह क उस न दन को आसान कर क हजर अकरम सललाह अलह व सलम को अता कया ह आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप स क बाद खलफ़ाndashए-राशदन क ज़मान म6 दन को जानन क लए य शतE नह थी क कसी को लखना पढ़ना आता ह क नह लोग एक दसर स हदस6 सन कर याद कर लत थ पढ़ना लखना सीखन को लोग उस ज़मान म6 अOछा समझत थ इसीलए बहत स सहाबा न एक दसर स लखना और लखी चीज़ पढ़ना सीख लया था ताहम उस ज़मान म6 ऐस बहत स लोग थ िजनको लखना पढ़ना नह आता था मगर उनको हज़र सललाह अलह व सलम क हदस6 कसरत स याद होती थी और वो मQतक़ होत थ यह वजह ह क हजर अकरम सललाह अलह व सलम क बाद एक लब असR तक अकसर अहादस सनी सनाई हआ करती थी और अहादस क लखन का Sरवाज बहत ह कम था हज़र अकरम स क ज़मान म6 या खलफ़ा-ए-राशदन क ज़मान म6 लोग0 को दन म6 कोई Iडगर नह मलती थी अलबQता आप सललाह अलह व सलम न चद सहाबा को उनक अOछ कारनाम0 क वजह स कछ अक़ाब स पकारा था मHलन अब बT रज़ी न जब हजर अकरम

सललाह अलह व सलम क मअराज क सफर क तHदक़ मUका क मशरकन क सामन अलल ऐलान क तो हजर अकरम सललाह अलह व सलम न उनको सVीक़ कहा या1न बहत Wयादा सOचा हज़रत उमर क ईमान व कgt म6 फक़E करन क इितयाज़ी सलाहयत क वजह स आप सललाह अलह व सलम न उह फ़ाक़ कहा यानी ईमान व कgt म6 फक़E करन वाला हज़रत ख़ालद बन वलद क नमाया जगी सलाहयत क वजह स आप सललाह अलह व सलम न उह6 सफलाह कहा मगर आप सललाह अलह व सलम क बाद खलफ़ाए राशदन न ग़ालबन अपनी तरफ स कोई Gखताब कसी को नह दया रह बात उमत क जाहल और आलम दो तबक0 म6 बटन क तो इस जानन स पहल य जानना ज़र ह क आलम क IडKी इस उमत को कब स मलन लगी इसलए क हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 या हज़र सललाह अलह व सलम क बाद कई सौ साल तक लोग0 को आलम होन क IडगSरया नह द जाती थी बिक मसलमान उनको अपन म6 का आलम समझत थ िजन को हज़र सललाह अलह व सलम क अहादस कसरत स याद हआ करती थी और वो काफ मQतक़ हआ करत थ और लोग0 को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स बाख़बर करात थ िजस क वजह स उमत क हर

फदE को अहादस को एक दसर को बतान का और सीखन सखान का हक़ था और अगर कोई कसी क अमल पर हदस क ब1नयाद पर एतराज़ करता तो उस स य नह पछा जाता क त कहा का फ़ाSरग़ ह या क त जाहल ह त हदस नह बता सकता इसलए क पछन वाल क पास भी कोई IडKी नह होती थी और वो भी कह का फ़ाSरग़ नह होता था बिक लोग ह उसको आलम कहत थ इस उमत म6 IडKी मलन क Sरवाज स पहल तक हर उमती को उस क नबी क बात कहन का हक़ था और हर बद को उसक रब क बात यानी क़रआन क बात कहन का हक़ था उस वampत सफE इतना होता था क लोग हदस बयान करन वाल स चाह वो कोई भी हो य पछत थ क तझ तक य हदस कस तरह पहची या त न य हदस कस स सनी फर अगर उस क बात सहह होती तो ठYक वरना उसक बात0 क इHलाह क जाती थी मगर य नह कहा जाता था क तर पास कोई IडKी नह इसलए तझ हदस बयान करन का हक़ ह नह पस उस ज़मान म6 दन आसान था और लोग दन पर शौक़ स चलत थ और उमत आलम और जाहल क दो तबक़ म6 बट हई नह समझी जाती थी बस इतना था क कसी क पास दन का इम कम था तो कसी क पास Wयादा यानी कोई कम इम वाला होता तो कोई Wयादा इम वाला होता

2- डी वाल मदरस कब श हए - य बात सहह ह क द1नया म6 ऐसा कोई नबी नह आया िजस न कोई ऐसा मदरसा खोला हो िजस म6 बOच0 को इकZा कर क कताब0 क राHत दन सखाया जाता हो फर सालाना इितहान ल ल कर छह सात साल क बाद उस को आलम या मौलवी होन क IडKी द जाती हो ताक उनक सवा िजनको IडKी मल हो बाक़ लोग [वाह उनक पास सहह इम हो या ना हो हर हाल म6 जाहल कहलाए य भी सहह ह क खलफ़ाए राशदन म6 स भी कसी न ऐसा कोई मदरसा नह खोला जहा बOच0 को उनक अपन0 स दर कर क कसी मकान म6 इकZा कर क कताब0 क राHत दन सखाया जाता हो फर सालाना इितहान वग़रह लकर छह सात साल बाद उनको मौलवी या आलम होन क IडKी द जाती हो ऐसा मदरसा ना उह0न अरब म6 कह खोला और न ह अरब क बाहर कह बात दरअसल यह ह क उनक ज़मान तक उमत म6 कताब एक ह थी और वो था क़रआन और अकसर लोग अहादस को ज़बानी याद करत थ और एक दसर को याद करात थपस जब क कताब ह एक थी तो Iडगर का मदरसा कहा स होता और अगर कसी को ऐसा लगता हो क उस ज़मान म6 आज क तज़E का मदरसा था तो मझ उस का नाम बता द और य बताए क वो कहा थाऔर उसम6 कतन बOच पढ़त थऔर कौन-कौन

स सहाबा उस म6 कतन कतन घट पढ़ात थ दरअसल उस ज़मान म6 लखन पढ़न का उममी मतलब य समझा जाता था क लोग कसी बात को लखना सीख ल6 और लखी बात0 को पढ़ना सीख ल6 मगर इस क लए कोई IडKी नह मलती थी और ना ह आज क तज़E का कोई इितहान होता था और न ह उमत आलम और जाहल क दो तबक़0 म6 IडKी क ब1नयाद पर बट हई थी बाज़ लोग अपनी नासमझी म6 यहा तक बोल जात ह3 क हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 स]फा मदरसा था तो उनको जानना चाहए क स]फा पर वो लोग रहत थ िजनको उनक घर वाल 1नकाल दत थ और वो भाग कर अपन ईमान को बचान क लए मदना आ जात थ और उनक पास कोई झ0पड़ी भी बनान क गजाइश नह होती थी फर जब वो महनत मज़दर करत या अलाह पाक उनक लए रहन का कोई दसरा इ1तज़ाम कर दत तो य वहा स हट कर अपन घर म6 रहन लगत मUका क महािजरन म6 स अUसर व बशतर सहाबा स]फा वाल नह ह3 इसलए क हजर अकरम सललाह अलह व सलम न उनका और असार का भाई चारा करा दया था इसलए उह6 स]फा पर बठन क नौबत नह आई और असार इसलए नह Uय0क उनका मदन म ख़द का घर होता था पस य [याल पर तरह गलत ह क स]फा कसी मदरस का नाम ह जहा पर

कोई आलम क IडKी मलती थी बिक अरबी म6 स]फा चबतर को बोलत थ य मिHजद नबवी म6 एक कनार पर मजबर लोग0 क वाHत बनवाया गया था हज़रत उमर रज़ी न अपनी Gखलाफत क ज़मान म6 यहा पहल क तरह बठन को मना कर दया था हजर अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप सललाह अलह व सलम क बाद एक ज़मान तक लोग माहौल व मआशर म6 दन सीखत थ और हदस6 आम तौर पर एक दसर स सन कर याद कर लत थ अहादस लख कर रखन का Sरवाज कम था उस ज़मान म6 दन सीखन या क़रआन करम को याद करन क ख़ा1तर बOच0 क ^पटाई नह क जाती थी बिक बOच अपन बड़0 को दन पर चलता दख कर और दन क बात6 सनत सनात दख कर अपन शौक़ स हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अहादस और क़रआन करम क कछ सरत6 याद कर लत थ लोग दनी माहौल व मआशर क क़ायम होन क वजह स आसानी स अपन माहौल व मआशर म6 रहकर दन सीख लत थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप क बाद एक ज़मान तक वो लोग जो मदन स बाहर रहत थ और नए-नए मसलमान होत थ उन म6 स कछ लोग कभी-कभी चद दन0 क लए या चद घट0 क लए मदना मन_वरा आत थ और मदना मन_वरा क

दनी माहौल म6 रहकर और हज़र सललाह अलह व सलम क या महािजरन व असार क बात6 सन कर आसानी स दन सीख लत थ और फर यहा क हालात और यहा क बात6 अपन क़बील क लोग0 को बयान करत थ और वो भी उन स आसानी स दन सीख लत और दन पर अमल करन लगत थ इसक अलावा य था क हजर अकरम सऔर आप क बाद खलफ़ाए राशदन मदना मन_वरा क कछ असहाब कराम को मदना मन_वरा क बाहर अलग- अलग इलाक0 म6 कभी-कभी भजत रहत थ ताक वो जाकर वहा क लोग0 को उनक माहौल व मआशर म6 रहकर अपन क़ौल व फ़ल (अमल) स दन सखाए इसक लए वहा कोई IडKी वाला मदरसा नह होता था हज़रत अल रज़ी का इतकाल छह सौ इUसठ ईसवी म6 हआ ह उनक बाद हज़रत अमीर मआ^वया रज़ी इHलामी हकमत क हाकम बन यहा स बन उम`या क हकमत श होती ह और सात सौ पचास ईसवी तक रहती ह इसक बाद बन अaबासया क हकमत श होती ह हान रशीद बन अaबासया क पाचव6 हाकम ह3 उनका इतक़ाल 809 AD म6 होता ह उनक इतक़ाल क सौ साल बाद 909 AD म6 मb बन अaबासया क हकमत स अलग हो जाता ह और वहा शीआओ क पहल हकमत क़ायम हो जाती ह इसक तक़रबन बावन साल बाद 961 AD म6 शीआओ क ज़Sरए

द1नया का पहला IडKी दन वाला मदरसा एक मिHजद म6 खलता ह िजस जामअ अज़हर कहा जाता ह इसक बाद स ह द1नया म6 जगह जगह IडगSरय0 का सलसला श होता हय ज़माना हज़र सललाह अलह व सलम क तीन सौ चालस साल बाद का ह इसक बाद स इस उमत क लोग र]ता र]ता IडगSरय0 क ब1नयाद पर आलम और जाहल क दो तबक0 म6 बटन लग ईसाइय0 और दसर क़ौम0 न भी IडKी दना शीआओ स सीखा ह इसीलए द1नया क सब स परानी यनीवरसट जामअ अज़हर कहलाती ह 1174 AD म6 सलाहVीन अ`यबी मb क हाकम बन उह0न इस मदरस को बद करवा दया था उनक इतक़ाल क बाद जब उनक औलाद मb क हकमत सभालती ह तो उह0न मदरस को फर स खलवाया इसक बाद स य मदरसा सिनय0 का हो गया पस जानना चाहए क अगर आलम होन क लए IडKी शतE होती और बग़र IडKी क लोग इम होन क बावजद जाहल कहलात तो हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क तक़रबन साढ़ तीन सौ साल बाद तक उमत जाहल नह थी और य काम ख़लफाndashए-राशदन म6 स कोई न कोई ज़र श करता [वाह अरब म6 या अरब क बाहर

3mdashनहज नबवत और मतलफ़ जमाअत - दरअसल इस क़Hम का IडKी वाला मदरसा भी उमत म6 दन सीखन सखान क लए एक जमाअत क तरह ह (जस क और दगर जमाअत6 ह3 मसलन तबलग़ खानक़ाह जमाअत इHलामी अहल हदस वग़रह) जो क हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क कई सौ साल बाद वजद म6 आता ह मगर इस जमाअत(मदरसा) क ज़रए लोग बलउमम बाइचास ह दन सीख पात ह3 क उनक बड़0 न बचपन म6 उनको इस जमाअत म6 शामल कया तो ठYक वरना जब इसान बालग़ होता ह और उस दन पर चलन का और उसको सीखन का शौक़ पदा होता ह तो उस का इस जमाअत म6 शामल होन का वampत ख़Qम होन लगता ह जबक दसर जमाअत0 म6 शामल होन का वampत श होता ह और अगर कोई बड़ी उd म6 इस म6 शामल होना चाह तो य काम उसक लए बलउमम मिeकल साबत होता ह नबय0 क नहज लोग0 क दन सीखन सखान क लए आसान होती ह उस हर उd का इसान आसानी स सीख लता ह मदन म6 आकर हर उd क लोग आसानी स दन सीख लत थ द1नया म6 कोई ऐसा नबी नह आया िजस न दन क कोई ऐसी नहज पश क हो िजस म6 शामल होन क उd उस वampत खQम होन लग जबक शामल होन वाल म6 अampल व होश आ जाए और वो बालग़ हो चका हो या पOचीस तीस

साल स Wयादा उd का हो चका हो बिक नबय0 का तरक़ा दनी माहौल व मआशरा क़ायम करन का होता था ताक हर कोई उस म6 रहकर आसानी स दन सीख ल [वाह उसक उd सQतर अHसी साल या इस स भी Wयादा Uय0 ना हो अलबQता बाज़ नबीय0 का लोग0 न साथ नह दया िजसक वजह स उनको ऐसा माहौल व मआशरा क़ायम करन क नौबत ना आ पाई म3 य नह कहता क इन जमाअत0 स उमत को फायदा नह होता ह या क इन म6 स कोई ग़लत ह िजनका म3 न ऊपर िज़T कया ह ग़लत तो वो ह जो शकE करता ह या ख़राफाती बदअत म6 मaतला ह [वाह वो कोई भी हो इसक Wयादा तफसील क यहा गजाइश नह ह दरअसल य तमाम जमाअत6 क़रआन व सनत को ह लाग करना चाहती ह3 हा क़रआन और सनत लाग करन का तरक़ा इनका अपना-अपना ह िजसक वजह स य एक दसर स इि[तलाफ़ करती ह3 इनक आपसी इि[तलाफ़ात क एक बड़ी वजह इनक बड़0 क लख लटरचर भी ह3 िजसक वजह स इन म6 क बाज़ दसर पर इHलाम स ख़ाSरज होन का फतवा तक द डालत ह3 यहा इनक लटरचर क इि[तलाफ़ात को बयान करन क गजाइश नह ह इसलए यहा म3 सफE इन जमाअत0 क दन फलान क तरक़ का िज़T कर रहा ह

दन को उमत म6 क़ायम करन क हर एक क अपन-अपन अलग-अलग ब1नयाद उसल ह3 तबलग़ का नज़Sरया य ह क असल काम मसलमान0 म6 चल फर कर दावत दन का ह ताक जब दावत द6ग तो ख़द का दन पर चलना आसान हो जाएगा और जब अपन लोग दन पर चलन लग6ग तो ग़र0 क लए भी दन क़बल करना आसान हो सकता ह इसलए वो बलउमम बालग़ लोग0 को अपनी जमाअत म6 शामल करत ह3 ताक बOच अपन बड़0 स दन सीख ल6 या बड़ होकर वो भी उनक जमाअत म6 शामल हो जाए इसक लए वो इस जमाअत क बानी इयास साहब क ज़Sरए क़ायम करदा नहज को पश करत ह3 मदरस वाल0 क ब1नयाद नज़Sरयात य ह3 क जब बOच0 म6 दन आ जाएगा तो वो बड़ होकर बड़0 तक दन पहचाएग खानक़ाह का नज़रया य ह क असल काम क़लब क इसलाह ह और नfस पर क़ाब पाना ह इसक लए िज़T क कसरत ज़र ह और जब दल िज़दा होगा तो दन पर चलना आसान होगा अहल हदस का मानना य ह क असल काम उमत क आमाल को बख़ार और मिHलम वग़रह म6 बताए गए तरक़ क मताबक़ लाना ह और उह6 ऐसी बात0 स रोकना ह िजस स क वो उन राHत0 स भी gक जाए िजन पर चलन स शकE क तरफ जान का ज़रा भी ख़तरा हो और दन क दावत को ग़र0 म6 आम करना ह जमाअत इHलामी का नज़Sरया भी कछ

मलता जलता ह वो भी ग़र0 म6 दावत पहचान को तरजीह दत ह3 दरअसल य मौज तफसील तलब ह िजसक यहा गजाइश नह ह इसलए म3 न ऊपर हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान क और आप क बाद ख़लफा-ए-राशदन और उनक बाद क एक ज़मान तक दन सीखन सखान क नहज का इि[तसारन िज़T कर दया ह और उनक बाद क़ायम हई अलग-अलग जमाअत0 क दन फलान क नहज का म[तसर सा जाइज़ा उसक नीच पश कर दया ह ताक जो लोग नहज नब_वत और दसर नहज का फक़E जानना चाह6 उह6 इस जा1नब रहबर मल जाए और जो कोई खद ना समझना चाह उस तो द1नया म6 समझाना मिeकल ह अब ज़ाहर सी बात ह क कोई भी आसमानी रहबर द1नया म6 नहज नब_वत को क़ायम करन आता ह और उसक लए यह बहतरन राHता ह दसर राHत तो उस वampत क लए होत ह3 जब क उमत म6 नहज-नब_वत क़ायम ना हो चक हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अलावा इस उमत का कोई नबी नह और आप क लाई गई शरअत या1न कताबलाह(क़रआन) और सनत रसललाह(या1न आप क ज़Sरए द गई तालमात) क अलावा इस उमत क लए कोई दसर शरअत नह इसलए लािज़मन इस उमत म6 नहज नब_वत क़ायम करन का

तरक़ा यह ह क क़रआन व सनत को आपक उमत म6 उस तरक़ पर क़ायम कया जाए जो क ख़द आप सललाह अलह वसलम न कर क दखलाया ह या आप न उसक तालम द ह मिHलम म6 ह क ईसा अलहHसलाम इस उमत म6 इसाफ पसद इमाम और आदल हाकम क हसयत स ह0ग अब दाउद म6 ह महद अलहHसलाम लोग0 म6 उनक नबी क सनत को जार कर6ग इaन माजा म6 महद अलहHसलाम को ख़लफ़तलाह कहा गया ह 4 ndash या महदamp अल(ह)सलाम दनया क तमाम इसान- को राह रा)त पर लआएग अब रह य बात क Uया महद अल द1नया क तमाम लोग0 को हदायत द द6ग और द1नया क तमाम लोग0 म6 इसाफ क़ायम कर6ग बाज़ लोग मर मतािलक़ य कहत ह3 क म3 न कसी स य कहा क 2012 या 2013 तक सार द1नया म6 इHलाम फल जाएगा तो जानना चाहए क य बात क़तअन दgHत नह ह या क मर बात को समझन म6 कसी स ग़लत फहमी हई ह Uय0क ग़ब का इम अलाह ह क पास ह आग Uया होना ह य अलाह को मालम ह मज़ीद य क अलाह न द1नया म6 क़रआन करम क ज़Sरए हर इसान को हदायत क राह दखाई ह मगर जो कोई इस को क़बल करता ह वो अपन लए और जो कोई इस ठकराता

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 3: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

बिमलाहररहमानररहम अहद ललाह नहमदह व नसल अला रसलहल करम तमाम तारफ़ अलाह ह क लए ह िजस न इसान को अampल व फ़हम अता क ताक वो हक़ को पहचान तारफ़ उस अलाह ह क लए िजसन हजर अकरम सललाह अलह व सलम को सार आलम क लय रहमत और सीधी राह दखान वाला बनाकर भजा दद व सलाम हज़र अकरम सल पर िजह0न उमत क बहतरन रहबर क और उमत को हक़ और बा1तल को पहचानन का मअयार समझाया जसा क हम जानत ह3 क हज़र सललाह अलह वसलम क बाद जस जस ज़माना गज़रता गया उमत म6 इि7तलाफ़ात बढ़त चल गए और आज हज़र सललाह अलह वसलम क उमत बढ तादाद म6 फरक़0 और म7तलफ़ जमाअत0 म6 बट हई ह और हर जमाअत अपन को हक़ पर समझती ह और दसर क दर परदा या खलकर मख़ालफत करती ह बक बाज़ तो एक दसर पर कgt या बा1तल होन का फतवा तक लगा दत ह3 बाज़ मरतबा तो ऐसा भी दखा जाता ह क जो जमाअत दसर पर कgt या गमराह का फतवा लगाती ह ख़द उस जमाअत पर कई सार कgt या गमराह क फतव लग होत ह3

इसी तरह का एक फतवा िजसका तालक़ पशीनगोईय0 स ह उसकाऔर कछ दगर सवाल0 का जवाब हज़रत जी मोहमद शकल बन हनीफ साहब न 1नहायत ह आसान और आम फहम ज़बान म6 दया ह िजस आग नक़ल कया गया ह इस म6 उह0न फतव क हक़क़त हदस0 को परखन का सहह पमाना और इस बात क तरफ़ तवBजोह दलाई ह क पशीनगोई चक ग़ब का इम ह इसलए इस लोग0 क बात0 या लोग0 क फतव स नह बिक सहह अहादस म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह इस तहरर म6 उह0न इस बात क तरफ़ भी इशारा कया ह क हज़र सललाह अलह वसलम का लाया हआ दन आसान ह और हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान म6 लोग इस कस तरह आसानी स सीख लत थ य जवाबात हज़रत जी क इम हदस स गहर वािampफ़यत और मौजदा ज़मान क हालात पर उनक वसीउनज़र क वाज़ह दलाइल ह3 अलाह पाक हम6 बजा इि7तलाफ़ात स बचन क तौफ़क़ अता फरमाए और हक़ बात को समझन म6 हमार रहबर फरमाए और हम6 द1नया और आGखरत क भलाई नसीब फरमाय आमीन समा आमीन वHसलाम इमरान राशद 5 जनवर 2014ई

दन0 या चद महन भर म6 अपन माहौल म6 रहकर भी सीख जात थ और इस क लए कसी IडKी क ज़रत नह होती थी और इस तरह लोग0 क लए जहा दन पर चलना आसान था वह लखना और पढ़ना और दन को जानना भी आसान था मज़ीद य क अलाह न दन को जानन क लए य शतE नह रखी क हर एक को लखना आए ह य अलाह दन0 म6 उस को सीख लत थ और इस क लए कई साल तक उस म6 लगना नह पड़ता था बिक चदह वसलम क ज़मान म6 और आप क बाद खलफ़ाए राशदन क ज़मान म6 दन का जानना बहत आसान था उस ज़मान म6 लोग आम तौर पर लखना और पढ़ना इसी को समझत थ क कसी क कोई बात सन कर उसको लखना आ जाए या लखी बात को पढ़ना आ जाए इसीलए उस ज़मान म6 िजस को लखना या लखी चीज़ पढ़ना नह आता था वो एक दसर स थोड़ फतव क बार म6 जानन स पहल हम6 मदरस और उसक IडKी को जानना ज़र ह 1- डी वाल मदरस स पहल उमत क हालत या थी - रसललाह सललाह अल الحمد نحمده ونصلی علی رسولہ الکريم اما بعد फतव क बार म6 हज़रत जी क जवाबात بسم هللا الرحمن الرحيم

का फज़ल ह क उस न दन को आसान कर क हजर अकरम सललाह अलह व सलम को अता कया ह आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप स क बाद खलफ़ाndashए-राशदन क ज़मान म6 दन को जानन क लए य शतE नह थी क कसी को लखना पढ़ना आता ह क नह लोग एक दसर स हदस6 सन कर याद कर लत थ पढ़ना लखना सीखन को लोग उस ज़मान म6 अOछा समझत थ इसीलए बहत स सहाबा न एक दसर स लखना और लखी चीज़ पढ़ना सीख लया था ताहम उस ज़मान म6 ऐस बहत स लोग थ िजनको लखना पढ़ना नह आता था मगर उनको हज़र सललाह अलह व सलम क हदस6 कसरत स याद होती थी और वो मQतक़ होत थ यह वजह ह क हजर अकरम सललाह अलह व सलम क बाद एक लब असR तक अकसर अहादस सनी सनाई हआ करती थी और अहादस क लखन का Sरवाज बहत ह कम था हज़र अकरम स क ज़मान म6 या खलफ़ा-ए-राशदन क ज़मान म6 लोग0 को दन म6 कोई Iडगर नह मलती थी अलबQता आप सललाह अलह व सलम न चद सहाबा को उनक अOछ कारनाम0 क वजह स कछ अक़ाब स पकारा था मHलन अब बT रज़ी न जब हजर अकरम

सललाह अलह व सलम क मअराज क सफर क तHदक़ मUका क मशरकन क सामन अलल ऐलान क तो हजर अकरम सललाह अलह व सलम न उनको सVीक़ कहा या1न बहत Wयादा सOचा हज़रत उमर क ईमान व कgt म6 फक़E करन क इितयाज़ी सलाहयत क वजह स आप सललाह अलह व सलम न उह फ़ाक़ कहा यानी ईमान व कgt म6 फक़E करन वाला हज़रत ख़ालद बन वलद क नमाया जगी सलाहयत क वजह स आप सललाह अलह व सलम न उह6 सफलाह कहा मगर आप सललाह अलह व सलम क बाद खलफ़ाए राशदन न ग़ालबन अपनी तरफ स कोई Gखताब कसी को नह दया रह बात उमत क जाहल और आलम दो तबक0 म6 बटन क तो इस जानन स पहल य जानना ज़र ह क आलम क IडKी इस उमत को कब स मलन लगी इसलए क हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 या हज़र सललाह अलह व सलम क बाद कई सौ साल तक लोग0 को आलम होन क IडगSरया नह द जाती थी बिक मसलमान उनको अपन म6 का आलम समझत थ िजन को हज़र सललाह अलह व सलम क अहादस कसरत स याद हआ करती थी और वो काफ मQतक़ हआ करत थ और लोग0 को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स बाख़बर करात थ िजस क वजह स उमत क हर

फदE को अहादस को एक दसर को बतान का और सीखन सखान का हक़ था और अगर कोई कसी क अमल पर हदस क ब1नयाद पर एतराज़ करता तो उस स य नह पछा जाता क त कहा का फ़ाSरग़ ह या क त जाहल ह त हदस नह बता सकता इसलए क पछन वाल क पास भी कोई IडKी नह होती थी और वो भी कह का फ़ाSरग़ नह होता था बिक लोग ह उसको आलम कहत थ इस उमत म6 IडKी मलन क Sरवाज स पहल तक हर उमती को उस क नबी क बात कहन का हक़ था और हर बद को उसक रब क बात यानी क़रआन क बात कहन का हक़ था उस वampत सफE इतना होता था क लोग हदस बयान करन वाल स चाह वो कोई भी हो य पछत थ क तझ तक य हदस कस तरह पहची या त न य हदस कस स सनी फर अगर उस क बात सहह होती तो ठYक वरना उसक बात0 क इHलाह क जाती थी मगर य नह कहा जाता था क तर पास कोई IडKी नह इसलए तझ हदस बयान करन का हक़ ह नह पस उस ज़मान म6 दन आसान था और लोग दन पर शौक़ स चलत थ और उमत आलम और जाहल क दो तबक़ म6 बट हई नह समझी जाती थी बस इतना था क कसी क पास दन का इम कम था तो कसी क पास Wयादा यानी कोई कम इम वाला होता तो कोई Wयादा इम वाला होता

2- डी वाल मदरस कब श हए - य बात सहह ह क द1नया म6 ऐसा कोई नबी नह आया िजस न कोई ऐसा मदरसा खोला हो िजस म6 बOच0 को इकZा कर क कताब0 क राHत दन सखाया जाता हो फर सालाना इितहान ल ल कर छह सात साल क बाद उस को आलम या मौलवी होन क IडKी द जाती हो ताक उनक सवा िजनको IडKी मल हो बाक़ लोग [वाह उनक पास सहह इम हो या ना हो हर हाल म6 जाहल कहलाए य भी सहह ह क खलफ़ाए राशदन म6 स भी कसी न ऐसा कोई मदरसा नह खोला जहा बOच0 को उनक अपन0 स दर कर क कसी मकान म6 इकZा कर क कताब0 क राHत दन सखाया जाता हो फर सालाना इितहान वग़रह लकर छह सात साल बाद उनको मौलवी या आलम होन क IडKी द जाती हो ऐसा मदरसा ना उह0न अरब म6 कह खोला और न ह अरब क बाहर कह बात दरअसल यह ह क उनक ज़मान तक उमत म6 कताब एक ह थी और वो था क़रआन और अकसर लोग अहादस को ज़बानी याद करत थ और एक दसर को याद करात थपस जब क कताब ह एक थी तो Iडगर का मदरसा कहा स होता और अगर कसी को ऐसा लगता हो क उस ज़मान म6 आज क तज़E का मदरसा था तो मझ उस का नाम बता द और य बताए क वो कहा थाऔर उसम6 कतन बOच पढ़त थऔर कौन-कौन

स सहाबा उस म6 कतन कतन घट पढ़ात थ दरअसल उस ज़मान म6 लखन पढ़न का उममी मतलब य समझा जाता था क लोग कसी बात को लखना सीख ल6 और लखी बात0 को पढ़ना सीख ल6 मगर इस क लए कोई IडKी नह मलती थी और ना ह आज क तज़E का कोई इितहान होता था और न ह उमत आलम और जाहल क दो तबक़0 म6 IडKी क ब1नयाद पर बट हई थी बाज़ लोग अपनी नासमझी म6 यहा तक बोल जात ह3 क हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 स]फा मदरसा था तो उनको जानना चाहए क स]फा पर वो लोग रहत थ िजनको उनक घर वाल 1नकाल दत थ और वो भाग कर अपन ईमान को बचान क लए मदना आ जात थ और उनक पास कोई झ0पड़ी भी बनान क गजाइश नह होती थी फर जब वो महनत मज़दर करत या अलाह पाक उनक लए रहन का कोई दसरा इ1तज़ाम कर दत तो य वहा स हट कर अपन घर म6 रहन लगत मUका क महािजरन म6 स अUसर व बशतर सहाबा स]फा वाल नह ह3 इसलए क हजर अकरम सललाह अलह व सलम न उनका और असार का भाई चारा करा दया था इसलए उह6 स]फा पर बठन क नौबत नह आई और असार इसलए नह Uय0क उनका मदन म ख़द का घर होता था पस य [याल पर तरह गलत ह क स]फा कसी मदरस का नाम ह जहा पर

कोई आलम क IडKी मलती थी बिक अरबी म6 स]फा चबतर को बोलत थ य मिHजद नबवी म6 एक कनार पर मजबर लोग0 क वाHत बनवाया गया था हज़रत उमर रज़ी न अपनी Gखलाफत क ज़मान म6 यहा पहल क तरह बठन को मना कर दया था हजर अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप सललाह अलह व सलम क बाद एक ज़मान तक लोग माहौल व मआशर म6 दन सीखत थ और हदस6 आम तौर पर एक दसर स सन कर याद कर लत थ अहादस लख कर रखन का Sरवाज कम था उस ज़मान म6 दन सीखन या क़रआन करम को याद करन क ख़ा1तर बOच0 क ^पटाई नह क जाती थी बिक बOच अपन बड़0 को दन पर चलता दख कर और दन क बात6 सनत सनात दख कर अपन शौक़ स हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अहादस और क़रआन करम क कछ सरत6 याद कर लत थ लोग दनी माहौल व मआशर क क़ायम होन क वजह स आसानी स अपन माहौल व मआशर म6 रहकर दन सीख लत थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप क बाद एक ज़मान तक वो लोग जो मदन स बाहर रहत थ और नए-नए मसलमान होत थ उन म6 स कछ लोग कभी-कभी चद दन0 क लए या चद घट0 क लए मदना मन_वरा आत थ और मदना मन_वरा क

दनी माहौल म6 रहकर और हज़र सललाह अलह व सलम क या महािजरन व असार क बात6 सन कर आसानी स दन सीख लत थ और फर यहा क हालात और यहा क बात6 अपन क़बील क लोग0 को बयान करत थ और वो भी उन स आसानी स दन सीख लत और दन पर अमल करन लगत थ इसक अलावा य था क हजर अकरम सऔर आप क बाद खलफ़ाए राशदन मदना मन_वरा क कछ असहाब कराम को मदना मन_वरा क बाहर अलग- अलग इलाक0 म6 कभी-कभी भजत रहत थ ताक वो जाकर वहा क लोग0 को उनक माहौल व मआशर म6 रहकर अपन क़ौल व फ़ल (अमल) स दन सखाए इसक लए वहा कोई IडKी वाला मदरसा नह होता था हज़रत अल रज़ी का इतकाल छह सौ इUसठ ईसवी म6 हआ ह उनक बाद हज़रत अमीर मआ^वया रज़ी इHलामी हकमत क हाकम बन यहा स बन उम`या क हकमत श होती ह और सात सौ पचास ईसवी तक रहती ह इसक बाद बन अaबासया क हकमत श होती ह हान रशीद बन अaबासया क पाचव6 हाकम ह3 उनका इतक़ाल 809 AD म6 होता ह उनक इतक़ाल क सौ साल बाद 909 AD म6 मb बन अaबासया क हकमत स अलग हो जाता ह और वहा शीआओ क पहल हकमत क़ायम हो जाती ह इसक तक़रबन बावन साल बाद 961 AD म6 शीआओ क ज़Sरए

द1नया का पहला IडKी दन वाला मदरसा एक मिHजद म6 खलता ह िजस जामअ अज़हर कहा जाता ह इसक बाद स ह द1नया म6 जगह जगह IडगSरय0 का सलसला श होता हय ज़माना हज़र सललाह अलह व सलम क तीन सौ चालस साल बाद का ह इसक बाद स इस उमत क लोग र]ता र]ता IडगSरय0 क ब1नयाद पर आलम और जाहल क दो तबक0 म6 बटन लग ईसाइय0 और दसर क़ौम0 न भी IडKी दना शीआओ स सीखा ह इसीलए द1नया क सब स परानी यनीवरसट जामअ अज़हर कहलाती ह 1174 AD म6 सलाहVीन अ`यबी मb क हाकम बन उह0न इस मदरस को बद करवा दया था उनक इतक़ाल क बाद जब उनक औलाद मb क हकमत सभालती ह तो उह0न मदरस को फर स खलवाया इसक बाद स य मदरसा सिनय0 का हो गया पस जानना चाहए क अगर आलम होन क लए IडKी शतE होती और बग़र IडKी क लोग इम होन क बावजद जाहल कहलात तो हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क तक़रबन साढ़ तीन सौ साल बाद तक उमत जाहल नह थी और य काम ख़लफाndashए-राशदन म6 स कोई न कोई ज़र श करता [वाह अरब म6 या अरब क बाहर

3mdashनहज नबवत और मतलफ़ जमाअत - दरअसल इस क़Hम का IडKी वाला मदरसा भी उमत म6 दन सीखन सखान क लए एक जमाअत क तरह ह (जस क और दगर जमाअत6 ह3 मसलन तबलग़ खानक़ाह जमाअत इHलामी अहल हदस वग़रह) जो क हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क कई सौ साल बाद वजद म6 आता ह मगर इस जमाअत(मदरसा) क ज़रए लोग बलउमम बाइचास ह दन सीख पात ह3 क उनक बड़0 न बचपन म6 उनको इस जमाअत म6 शामल कया तो ठYक वरना जब इसान बालग़ होता ह और उस दन पर चलन का और उसको सीखन का शौक़ पदा होता ह तो उस का इस जमाअत म6 शामल होन का वampत ख़Qम होन लगता ह जबक दसर जमाअत0 म6 शामल होन का वampत श होता ह और अगर कोई बड़ी उd म6 इस म6 शामल होना चाह तो य काम उसक लए बलउमम मिeकल साबत होता ह नबय0 क नहज लोग0 क दन सीखन सखान क लए आसान होती ह उस हर उd का इसान आसानी स सीख लता ह मदन म6 आकर हर उd क लोग आसानी स दन सीख लत थ द1नया म6 कोई ऐसा नबी नह आया िजस न दन क कोई ऐसी नहज पश क हो िजस म6 शामल होन क उd उस वampत खQम होन लग जबक शामल होन वाल म6 अampल व होश आ जाए और वो बालग़ हो चका हो या पOचीस तीस

साल स Wयादा उd का हो चका हो बिक नबय0 का तरक़ा दनी माहौल व मआशरा क़ायम करन का होता था ताक हर कोई उस म6 रहकर आसानी स दन सीख ल [वाह उसक उd सQतर अHसी साल या इस स भी Wयादा Uय0 ना हो अलबQता बाज़ नबीय0 का लोग0 न साथ नह दया िजसक वजह स उनको ऐसा माहौल व मआशरा क़ायम करन क नौबत ना आ पाई म3 य नह कहता क इन जमाअत0 स उमत को फायदा नह होता ह या क इन म6 स कोई ग़लत ह िजनका म3 न ऊपर िज़T कया ह ग़लत तो वो ह जो शकE करता ह या ख़राफाती बदअत म6 मaतला ह [वाह वो कोई भी हो इसक Wयादा तफसील क यहा गजाइश नह ह दरअसल य तमाम जमाअत6 क़रआन व सनत को ह लाग करना चाहती ह3 हा क़रआन और सनत लाग करन का तरक़ा इनका अपना-अपना ह िजसक वजह स य एक दसर स इि[तलाफ़ करती ह3 इनक आपसी इि[तलाफ़ात क एक बड़ी वजह इनक बड़0 क लख लटरचर भी ह3 िजसक वजह स इन म6 क बाज़ दसर पर इHलाम स ख़ाSरज होन का फतवा तक द डालत ह3 यहा इनक लटरचर क इि[तलाफ़ात को बयान करन क गजाइश नह ह इसलए यहा म3 सफE इन जमाअत0 क दन फलान क तरक़ का िज़T कर रहा ह

दन को उमत म6 क़ायम करन क हर एक क अपन-अपन अलग-अलग ब1नयाद उसल ह3 तबलग़ का नज़Sरया य ह क असल काम मसलमान0 म6 चल फर कर दावत दन का ह ताक जब दावत द6ग तो ख़द का दन पर चलना आसान हो जाएगा और जब अपन लोग दन पर चलन लग6ग तो ग़र0 क लए भी दन क़बल करना आसान हो सकता ह इसलए वो बलउमम बालग़ लोग0 को अपनी जमाअत म6 शामल करत ह3 ताक बOच अपन बड़0 स दन सीख ल6 या बड़ होकर वो भी उनक जमाअत म6 शामल हो जाए इसक लए वो इस जमाअत क बानी इयास साहब क ज़Sरए क़ायम करदा नहज को पश करत ह3 मदरस वाल0 क ब1नयाद नज़Sरयात य ह3 क जब बOच0 म6 दन आ जाएगा तो वो बड़ होकर बड़0 तक दन पहचाएग खानक़ाह का नज़रया य ह क असल काम क़लब क इसलाह ह और नfस पर क़ाब पाना ह इसक लए िज़T क कसरत ज़र ह और जब दल िज़दा होगा तो दन पर चलना आसान होगा अहल हदस का मानना य ह क असल काम उमत क आमाल को बख़ार और मिHलम वग़रह म6 बताए गए तरक़ क मताबक़ लाना ह और उह6 ऐसी बात0 स रोकना ह िजस स क वो उन राHत0 स भी gक जाए िजन पर चलन स शकE क तरफ जान का ज़रा भी ख़तरा हो और दन क दावत को ग़र0 म6 आम करना ह जमाअत इHलामी का नज़Sरया भी कछ

मलता जलता ह वो भी ग़र0 म6 दावत पहचान को तरजीह दत ह3 दरअसल य मौज तफसील तलब ह िजसक यहा गजाइश नह ह इसलए म3 न ऊपर हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान क और आप क बाद ख़लफा-ए-राशदन और उनक बाद क एक ज़मान तक दन सीखन सखान क नहज का इि[तसारन िज़T कर दया ह और उनक बाद क़ायम हई अलग-अलग जमाअत0 क दन फलान क नहज का म[तसर सा जाइज़ा उसक नीच पश कर दया ह ताक जो लोग नहज नब_वत और दसर नहज का फक़E जानना चाह6 उह6 इस जा1नब रहबर मल जाए और जो कोई खद ना समझना चाह उस तो द1नया म6 समझाना मिeकल ह अब ज़ाहर सी बात ह क कोई भी आसमानी रहबर द1नया म6 नहज नब_वत को क़ायम करन आता ह और उसक लए यह बहतरन राHता ह दसर राHत तो उस वampत क लए होत ह3 जब क उमत म6 नहज-नब_वत क़ायम ना हो चक हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अलावा इस उमत का कोई नबी नह और आप क लाई गई शरअत या1न कताबलाह(क़रआन) और सनत रसललाह(या1न आप क ज़Sरए द गई तालमात) क अलावा इस उमत क लए कोई दसर शरअत नह इसलए लािज़मन इस उमत म6 नहज नब_वत क़ायम करन का

तरक़ा यह ह क क़रआन व सनत को आपक उमत म6 उस तरक़ पर क़ायम कया जाए जो क ख़द आप सललाह अलह वसलम न कर क दखलाया ह या आप न उसक तालम द ह मिHलम म6 ह क ईसा अलहHसलाम इस उमत म6 इसाफ पसद इमाम और आदल हाकम क हसयत स ह0ग अब दाउद म6 ह महद अलहHसलाम लोग0 म6 उनक नबी क सनत को जार कर6ग इaन माजा म6 महद अलहHसलाम को ख़लफ़तलाह कहा गया ह 4 ndash या महदamp अल(ह)सलाम दनया क तमाम इसान- को राह रा)त पर लआएग अब रह य बात क Uया महद अल द1नया क तमाम लोग0 को हदायत द द6ग और द1नया क तमाम लोग0 म6 इसाफ क़ायम कर6ग बाज़ लोग मर मतािलक़ य कहत ह3 क म3 न कसी स य कहा क 2012 या 2013 तक सार द1नया म6 इHलाम फल जाएगा तो जानना चाहए क य बात क़तअन दgHत नह ह या क मर बात को समझन म6 कसी स ग़लत फहमी हई ह Uय0क ग़ब का इम अलाह ह क पास ह आग Uया होना ह य अलाह को मालम ह मज़ीद य क अलाह न द1नया म6 क़रआन करम क ज़Sरए हर इसान को हदायत क राह दखाई ह मगर जो कोई इस को क़बल करता ह वो अपन लए और जो कोई इस ठकराता

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 4: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

इसी तरह का एक फतवा िजसका तालक़ पशीनगोईय0 स ह उसकाऔर कछ दगर सवाल0 का जवाब हज़रत जी मोहमद शकल बन हनीफ साहब न 1नहायत ह आसान और आम फहम ज़बान म6 दया ह िजस आग नक़ल कया गया ह इस म6 उह0न फतव क हक़क़त हदस0 को परखन का सहह पमाना और इस बात क तरफ़ तवBजोह दलाई ह क पशीनगोई चक ग़ब का इम ह इसलए इस लोग0 क बात0 या लोग0 क फतव स नह बिक सहह अहादस म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह इस तहरर म6 उह0न इस बात क तरफ़ भी इशारा कया ह क हज़र सललाह अलह वसलम का लाया हआ दन आसान ह और हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान म6 लोग इस कस तरह आसानी स सीख लत थ य जवाबात हज़रत जी क इम हदस स गहर वािampफ़यत और मौजदा ज़मान क हालात पर उनक वसीउनज़र क वाज़ह दलाइल ह3 अलाह पाक हम6 बजा इि7तलाफ़ात स बचन क तौफ़क़ अता फरमाए और हक़ बात को समझन म6 हमार रहबर फरमाए और हम6 द1नया और आGखरत क भलाई नसीब फरमाय आमीन समा आमीन वHसलाम इमरान राशद 5 जनवर 2014ई

दन0 या चद महन भर म6 अपन माहौल म6 रहकर भी सीख जात थ और इस क लए कसी IडKी क ज़रत नह होती थी और इस तरह लोग0 क लए जहा दन पर चलना आसान था वह लखना और पढ़ना और दन को जानना भी आसान था मज़ीद य क अलाह न दन को जानन क लए य शतE नह रखी क हर एक को लखना आए ह य अलाह दन0 म6 उस को सीख लत थ और इस क लए कई साल तक उस म6 लगना नह पड़ता था बिक चदह वसलम क ज़मान म6 और आप क बाद खलफ़ाए राशदन क ज़मान म6 दन का जानना बहत आसान था उस ज़मान म6 लोग आम तौर पर लखना और पढ़ना इसी को समझत थ क कसी क कोई बात सन कर उसको लखना आ जाए या लखी बात को पढ़ना आ जाए इसीलए उस ज़मान म6 िजस को लखना या लखी चीज़ पढ़ना नह आता था वो एक दसर स थोड़ फतव क बार म6 जानन स पहल हम6 मदरस और उसक IडKी को जानना ज़र ह 1- डी वाल मदरस स पहल उमत क हालत या थी - रसललाह सललाह अल الحمد نحمده ونصلی علی رسولہ الکريم اما بعد फतव क बार म6 हज़रत जी क जवाबात بسم هللا الرحمن الرحيم

का फज़ल ह क उस न दन को आसान कर क हजर अकरम सललाह अलह व सलम को अता कया ह आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप स क बाद खलफ़ाndashए-राशदन क ज़मान म6 दन को जानन क लए य शतE नह थी क कसी को लखना पढ़ना आता ह क नह लोग एक दसर स हदस6 सन कर याद कर लत थ पढ़ना लखना सीखन को लोग उस ज़मान म6 अOछा समझत थ इसीलए बहत स सहाबा न एक दसर स लखना और लखी चीज़ पढ़ना सीख लया था ताहम उस ज़मान म6 ऐस बहत स लोग थ िजनको लखना पढ़ना नह आता था मगर उनको हज़र सललाह अलह व सलम क हदस6 कसरत स याद होती थी और वो मQतक़ होत थ यह वजह ह क हजर अकरम सललाह अलह व सलम क बाद एक लब असR तक अकसर अहादस सनी सनाई हआ करती थी और अहादस क लखन का Sरवाज बहत ह कम था हज़र अकरम स क ज़मान म6 या खलफ़ा-ए-राशदन क ज़मान म6 लोग0 को दन म6 कोई Iडगर नह मलती थी अलबQता आप सललाह अलह व सलम न चद सहाबा को उनक अOछ कारनाम0 क वजह स कछ अक़ाब स पकारा था मHलन अब बT रज़ी न जब हजर अकरम

सललाह अलह व सलम क मअराज क सफर क तHदक़ मUका क मशरकन क सामन अलल ऐलान क तो हजर अकरम सललाह अलह व सलम न उनको सVीक़ कहा या1न बहत Wयादा सOचा हज़रत उमर क ईमान व कgt म6 फक़E करन क इितयाज़ी सलाहयत क वजह स आप सललाह अलह व सलम न उह फ़ाक़ कहा यानी ईमान व कgt म6 फक़E करन वाला हज़रत ख़ालद बन वलद क नमाया जगी सलाहयत क वजह स आप सललाह अलह व सलम न उह6 सफलाह कहा मगर आप सललाह अलह व सलम क बाद खलफ़ाए राशदन न ग़ालबन अपनी तरफ स कोई Gखताब कसी को नह दया रह बात उमत क जाहल और आलम दो तबक0 म6 बटन क तो इस जानन स पहल य जानना ज़र ह क आलम क IडKी इस उमत को कब स मलन लगी इसलए क हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 या हज़र सललाह अलह व सलम क बाद कई सौ साल तक लोग0 को आलम होन क IडगSरया नह द जाती थी बिक मसलमान उनको अपन म6 का आलम समझत थ िजन को हज़र सललाह अलह व सलम क अहादस कसरत स याद हआ करती थी और वो काफ मQतक़ हआ करत थ और लोग0 को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स बाख़बर करात थ िजस क वजह स उमत क हर

फदE को अहादस को एक दसर को बतान का और सीखन सखान का हक़ था और अगर कोई कसी क अमल पर हदस क ब1नयाद पर एतराज़ करता तो उस स य नह पछा जाता क त कहा का फ़ाSरग़ ह या क त जाहल ह त हदस नह बता सकता इसलए क पछन वाल क पास भी कोई IडKी नह होती थी और वो भी कह का फ़ाSरग़ नह होता था बिक लोग ह उसको आलम कहत थ इस उमत म6 IडKी मलन क Sरवाज स पहल तक हर उमती को उस क नबी क बात कहन का हक़ था और हर बद को उसक रब क बात यानी क़रआन क बात कहन का हक़ था उस वampत सफE इतना होता था क लोग हदस बयान करन वाल स चाह वो कोई भी हो य पछत थ क तझ तक य हदस कस तरह पहची या त न य हदस कस स सनी फर अगर उस क बात सहह होती तो ठYक वरना उसक बात0 क इHलाह क जाती थी मगर य नह कहा जाता था क तर पास कोई IडKी नह इसलए तझ हदस बयान करन का हक़ ह नह पस उस ज़मान म6 दन आसान था और लोग दन पर शौक़ स चलत थ और उमत आलम और जाहल क दो तबक़ म6 बट हई नह समझी जाती थी बस इतना था क कसी क पास दन का इम कम था तो कसी क पास Wयादा यानी कोई कम इम वाला होता तो कोई Wयादा इम वाला होता

2- डी वाल मदरस कब श हए - य बात सहह ह क द1नया म6 ऐसा कोई नबी नह आया िजस न कोई ऐसा मदरसा खोला हो िजस म6 बOच0 को इकZा कर क कताब0 क राHत दन सखाया जाता हो फर सालाना इितहान ल ल कर छह सात साल क बाद उस को आलम या मौलवी होन क IडKी द जाती हो ताक उनक सवा िजनको IडKी मल हो बाक़ लोग [वाह उनक पास सहह इम हो या ना हो हर हाल म6 जाहल कहलाए य भी सहह ह क खलफ़ाए राशदन म6 स भी कसी न ऐसा कोई मदरसा नह खोला जहा बOच0 को उनक अपन0 स दर कर क कसी मकान म6 इकZा कर क कताब0 क राHत दन सखाया जाता हो फर सालाना इितहान वग़रह लकर छह सात साल बाद उनको मौलवी या आलम होन क IडKी द जाती हो ऐसा मदरसा ना उह0न अरब म6 कह खोला और न ह अरब क बाहर कह बात दरअसल यह ह क उनक ज़मान तक उमत म6 कताब एक ह थी और वो था क़रआन और अकसर लोग अहादस को ज़बानी याद करत थ और एक दसर को याद करात थपस जब क कताब ह एक थी तो Iडगर का मदरसा कहा स होता और अगर कसी को ऐसा लगता हो क उस ज़मान म6 आज क तज़E का मदरसा था तो मझ उस का नाम बता द और य बताए क वो कहा थाऔर उसम6 कतन बOच पढ़त थऔर कौन-कौन

स सहाबा उस म6 कतन कतन घट पढ़ात थ दरअसल उस ज़मान म6 लखन पढ़न का उममी मतलब य समझा जाता था क लोग कसी बात को लखना सीख ल6 और लखी बात0 को पढ़ना सीख ल6 मगर इस क लए कोई IडKी नह मलती थी और ना ह आज क तज़E का कोई इितहान होता था और न ह उमत आलम और जाहल क दो तबक़0 म6 IडKी क ब1नयाद पर बट हई थी बाज़ लोग अपनी नासमझी म6 यहा तक बोल जात ह3 क हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 स]फा मदरसा था तो उनको जानना चाहए क स]फा पर वो लोग रहत थ िजनको उनक घर वाल 1नकाल दत थ और वो भाग कर अपन ईमान को बचान क लए मदना आ जात थ और उनक पास कोई झ0पड़ी भी बनान क गजाइश नह होती थी फर जब वो महनत मज़दर करत या अलाह पाक उनक लए रहन का कोई दसरा इ1तज़ाम कर दत तो य वहा स हट कर अपन घर म6 रहन लगत मUका क महािजरन म6 स अUसर व बशतर सहाबा स]फा वाल नह ह3 इसलए क हजर अकरम सललाह अलह व सलम न उनका और असार का भाई चारा करा दया था इसलए उह6 स]फा पर बठन क नौबत नह आई और असार इसलए नह Uय0क उनका मदन म ख़द का घर होता था पस य [याल पर तरह गलत ह क स]फा कसी मदरस का नाम ह जहा पर

कोई आलम क IडKी मलती थी बिक अरबी म6 स]फा चबतर को बोलत थ य मिHजद नबवी म6 एक कनार पर मजबर लोग0 क वाHत बनवाया गया था हज़रत उमर रज़ी न अपनी Gखलाफत क ज़मान म6 यहा पहल क तरह बठन को मना कर दया था हजर अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप सललाह अलह व सलम क बाद एक ज़मान तक लोग माहौल व मआशर म6 दन सीखत थ और हदस6 आम तौर पर एक दसर स सन कर याद कर लत थ अहादस लख कर रखन का Sरवाज कम था उस ज़मान म6 दन सीखन या क़रआन करम को याद करन क ख़ा1तर बOच0 क ^पटाई नह क जाती थी बिक बOच अपन बड़0 को दन पर चलता दख कर और दन क बात6 सनत सनात दख कर अपन शौक़ स हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अहादस और क़रआन करम क कछ सरत6 याद कर लत थ लोग दनी माहौल व मआशर क क़ायम होन क वजह स आसानी स अपन माहौल व मआशर म6 रहकर दन सीख लत थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप क बाद एक ज़मान तक वो लोग जो मदन स बाहर रहत थ और नए-नए मसलमान होत थ उन म6 स कछ लोग कभी-कभी चद दन0 क लए या चद घट0 क लए मदना मन_वरा आत थ और मदना मन_वरा क

दनी माहौल म6 रहकर और हज़र सललाह अलह व सलम क या महािजरन व असार क बात6 सन कर आसानी स दन सीख लत थ और फर यहा क हालात और यहा क बात6 अपन क़बील क लोग0 को बयान करत थ और वो भी उन स आसानी स दन सीख लत और दन पर अमल करन लगत थ इसक अलावा य था क हजर अकरम सऔर आप क बाद खलफ़ाए राशदन मदना मन_वरा क कछ असहाब कराम को मदना मन_वरा क बाहर अलग- अलग इलाक0 म6 कभी-कभी भजत रहत थ ताक वो जाकर वहा क लोग0 को उनक माहौल व मआशर म6 रहकर अपन क़ौल व फ़ल (अमल) स दन सखाए इसक लए वहा कोई IडKी वाला मदरसा नह होता था हज़रत अल रज़ी का इतकाल छह सौ इUसठ ईसवी म6 हआ ह उनक बाद हज़रत अमीर मआ^वया रज़ी इHलामी हकमत क हाकम बन यहा स बन उम`या क हकमत श होती ह और सात सौ पचास ईसवी तक रहती ह इसक बाद बन अaबासया क हकमत श होती ह हान रशीद बन अaबासया क पाचव6 हाकम ह3 उनका इतक़ाल 809 AD म6 होता ह उनक इतक़ाल क सौ साल बाद 909 AD म6 मb बन अaबासया क हकमत स अलग हो जाता ह और वहा शीआओ क पहल हकमत क़ायम हो जाती ह इसक तक़रबन बावन साल बाद 961 AD म6 शीआओ क ज़Sरए

द1नया का पहला IडKी दन वाला मदरसा एक मिHजद म6 खलता ह िजस जामअ अज़हर कहा जाता ह इसक बाद स ह द1नया म6 जगह जगह IडगSरय0 का सलसला श होता हय ज़माना हज़र सललाह अलह व सलम क तीन सौ चालस साल बाद का ह इसक बाद स इस उमत क लोग र]ता र]ता IडगSरय0 क ब1नयाद पर आलम और जाहल क दो तबक0 म6 बटन लग ईसाइय0 और दसर क़ौम0 न भी IडKी दना शीआओ स सीखा ह इसीलए द1नया क सब स परानी यनीवरसट जामअ अज़हर कहलाती ह 1174 AD म6 सलाहVीन अ`यबी मb क हाकम बन उह0न इस मदरस को बद करवा दया था उनक इतक़ाल क बाद जब उनक औलाद मb क हकमत सभालती ह तो उह0न मदरस को फर स खलवाया इसक बाद स य मदरसा सिनय0 का हो गया पस जानना चाहए क अगर आलम होन क लए IडKी शतE होती और बग़र IडKी क लोग इम होन क बावजद जाहल कहलात तो हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क तक़रबन साढ़ तीन सौ साल बाद तक उमत जाहल नह थी और य काम ख़लफाndashए-राशदन म6 स कोई न कोई ज़र श करता [वाह अरब म6 या अरब क बाहर

3mdashनहज नबवत और मतलफ़ जमाअत - दरअसल इस क़Hम का IडKी वाला मदरसा भी उमत म6 दन सीखन सखान क लए एक जमाअत क तरह ह (जस क और दगर जमाअत6 ह3 मसलन तबलग़ खानक़ाह जमाअत इHलामी अहल हदस वग़रह) जो क हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क कई सौ साल बाद वजद म6 आता ह मगर इस जमाअत(मदरसा) क ज़रए लोग बलउमम बाइचास ह दन सीख पात ह3 क उनक बड़0 न बचपन म6 उनको इस जमाअत म6 शामल कया तो ठYक वरना जब इसान बालग़ होता ह और उस दन पर चलन का और उसको सीखन का शौक़ पदा होता ह तो उस का इस जमाअत म6 शामल होन का वampत ख़Qम होन लगता ह जबक दसर जमाअत0 म6 शामल होन का वampत श होता ह और अगर कोई बड़ी उd म6 इस म6 शामल होना चाह तो य काम उसक लए बलउमम मिeकल साबत होता ह नबय0 क नहज लोग0 क दन सीखन सखान क लए आसान होती ह उस हर उd का इसान आसानी स सीख लता ह मदन म6 आकर हर उd क लोग आसानी स दन सीख लत थ द1नया म6 कोई ऐसा नबी नह आया िजस न दन क कोई ऐसी नहज पश क हो िजस म6 शामल होन क उd उस वampत खQम होन लग जबक शामल होन वाल म6 अampल व होश आ जाए और वो बालग़ हो चका हो या पOचीस तीस

साल स Wयादा उd का हो चका हो बिक नबय0 का तरक़ा दनी माहौल व मआशरा क़ायम करन का होता था ताक हर कोई उस म6 रहकर आसानी स दन सीख ल [वाह उसक उd सQतर अHसी साल या इस स भी Wयादा Uय0 ना हो अलबQता बाज़ नबीय0 का लोग0 न साथ नह दया िजसक वजह स उनको ऐसा माहौल व मआशरा क़ायम करन क नौबत ना आ पाई म3 य नह कहता क इन जमाअत0 स उमत को फायदा नह होता ह या क इन म6 स कोई ग़लत ह िजनका म3 न ऊपर िज़T कया ह ग़लत तो वो ह जो शकE करता ह या ख़राफाती बदअत म6 मaतला ह [वाह वो कोई भी हो इसक Wयादा तफसील क यहा गजाइश नह ह दरअसल य तमाम जमाअत6 क़रआन व सनत को ह लाग करना चाहती ह3 हा क़रआन और सनत लाग करन का तरक़ा इनका अपना-अपना ह िजसक वजह स य एक दसर स इि[तलाफ़ करती ह3 इनक आपसी इि[तलाफ़ात क एक बड़ी वजह इनक बड़0 क लख लटरचर भी ह3 िजसक वजह स इन म6 क बाज़ दसर पर इHलाम स ख़ाSरज होन का फतवा तक द डालत ह3 यहा इनक लटरचर क इि[तलाफ़ात को बयान करन क गजाइश नह ह इसलए यहा म3 सफE इन जमाअत0 क दन फलान क तरक़ का िज़T कर रहा ह

दन को उमत म6 क़ायम करन क हर एक क अपन-अपन अलग-अलग ब1नयाद उसल ह3 तबलग़ का नज़Sरया य ह क असल काम मसलमान0 म6 चल फर कर दावत दन का ह ताक जब दावत द6ग तो ख़द का दन पर चलना आसान हो जाएगा और जब अपन लोग दन पर चलन लग6ग तो ग़र0 क लए भी दन क़बल करना आसान हो सकता ह इसलए वो बलउमम बालग़ लोग0 को अपनी जमाअत म6 शामल करत ह3 ताक बOच अपन बड़0 स दन सीख ल6 या बड़ होकर वो भी उनक जमाअत म6 शामल हो जाए इसक लए वो इस जमाअत क बानी इयास साहब क ज़Sरए क़ायम करदा नहज को पश करत ह3 मदरस वाल0 क ब1नयाद नज़Sरयात य ह3 क जब बOच0 म6 दन आ जाएगा तो वो बड़ होकर बड़0 तक दन पहचाएग खानक़ाह का नज़रया य ह क असल काम क़लब क इसलाह ह और नfस पर क़ाब पाना ह इसक लए िज़T क कसरत ज़र ह और जब दल िज़दा होगा तो दन पर चलना आसान होगा अहल हदस का मानना य ह क असल काम उमत क आमाल को बख़ार और मिHलम वग़रह म6 बताए गए तरक़ क मताबक़ लाना ह और उह6 ऐसी बात0 स रोकना ह िजस स क वो उन राHत0 स भी gक जाए िजन पर चलन स शकE क तरफ जान का ज़रा भी ख़तरा हो और दन क दावत को ग़र0 म6 आम करना ह जमाअत इHलामी का नज़Sरया भी कछ

मलता जलता ह वो भी ग़र0 म6 दावत पहचान को तरजीह दत ह3 दरअसल य मौज तफसील तलब ह िजसक यहा गजाइश नह ह इसलए म3 न ऊपर हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान क और आप क बाद ख़लफा-ए-राशदन और उनक बाद क एक ज़मान तक दन सीखन सखान क नहज का इि[तसारन िज़T कर दया ह और उनक बाद क़ायम हई अलग-अलग जमाअत0 क दन फलान क नहज का म[तसर सा जाइज़ा उसक नीच पश कर दया ह ताक जो लोग नहज नब_वत और दसर नहज का फक़E जानना चाह6 उह6 इस जा1नब रहबर मल जाए और जो कोई खद ना समझना चाह उस तो द1नया म6 समझाना मिeकल ह अब ज़ाहर सी बात ह क कोई भी आसमानी रहबर द1नया म6 नहज नब_वत को क़ायम करन आता ह और उसक लए यह बहतरन राHता ह दसर राHत तो उस वampत क लए होत ह3 जब क उमत म6 नहज-नब_वत क़ायम ना हो चक हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अलावा इस उमत का कोई नबी नह और आप क लाई गई शरअत या1न कताबलाह(क़रआन) और सनत रसललाह(या1न आप क ज़Sरए द गई तालमात) क अलावा इस उमत क लए कोई दसर शरअत नह इसलए लािज़मन इस उमत म6 नहज नब_वत क़ायम करन का

तरक़ा यह ह क क़रआन व सनत को आपक उमत म6 उस तरक़ पर क़ायम कया जाए जो क ख़द आप सललाह अलह वसलम न कर क दखलाया ह या आप न उसक तालम द ह मिHलम म6 ह क ईसा अलहHसलाम इस उमत म6 इसाफ पसद इमाम और आदल हाकम क हसयत स ह0ग अब दाउद म6 ह महद अलहHसलाम लोग0 म6 उनक नबी क सनत को जार कर6ग इaन माजा म6 महद अलहHसलाम को ख़लफ़तलाह कहा गया ह 4 ndash या महदamp अल(ह)सलाम दनया क तमाम इसान- को राह रा)त पर लआएग अब रह य बात क Uया महद अल द1नया क तमाम लोग0 को हदायत द द6ग और द1नया क तमाम लोग0 म6 इसाफ क़ायम कर6ग बाज़ लोग मर मतािलक़ य कहत ह3 क म3 न कसी स य कहा क 2012 या 2013 तक सार द1नया म6 इHलाम फल जाएगा तो जानना चाहए क य बात क़तअन दgHत नह ह या क मर बात को समझन म6 कसी स ग़लत फहमी हई ह Uय0क ग़ब का इम अलाह ह क पास ह आग Uया होना ह य अलाह को मालम ह मज़ीद य क अलाह न द1नया म6 क़रआन करम क ज़Sरए हर इसान को हदायत क राह दखाई ह मगर जो कोई इस को क़बल करता ह वो अपन लए और जो कोई इस ठकराता

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 5: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

दन0 या चद महन भर म6 अपन माहौल म6 रहकर भी सीख जात थ और इस क लए कसी IडKी क ज़रत नह होती थी और इस तरह लोग0 क लए जहा दन पर चलना आसान था वह लखना और पढ़ना और दन को जानना भी आसान था मज़ीद य क अलाह न दन को जानन क लए य शतE नह रखी क हर एक को लखना आए ह य अलाह दन0 म6 उस को सीख लत थ और इस क लए कई साल तक उस म6 लगना नह पड़ता था बिक चदह वसलम क ज़मान म6 और आप क बाद खलफ़ाए राशदन क ज़मान म6 दन का जानना बहत आसान था उस ज़मान म6 लोग आम तौर पर लखना और पढ़ना इसी को समझत थ क कसी क कोई बात सन कर उसको लखना आ जाए या लखी बात को पढ़ना आ जाए इसीलए उस ज़मान म6 िजस को लखना या लखी चीज़ पढ़ना नह आता था वो एक दसर स थोड़ फतव क बार म6 जानन स पहल हम6 मदरस और उसक IडKी को जानना ज़र ह 1- डी वाल मदरस स पहल उमत क हालत या थी - रसललाह सललाह अल الحمد نحمده ونصلی علی رسولہ الکريم اما بعد फतव क बार म6 हज़रत जी क जवाबात بسم هللا الرحمن الرحيم

का फज़ल ह क उस न दन को आसान कर क हजर अकरम सललाह अलह व सलम को अता कया ह आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप स क बाद खलफ़ाndashए-राशदन क ज़मान म6 दन को जानन क लए य शतE नह थी क कसी को लखना पढ़ना आता ह क नह लोग एक दसर स हदस6 सन कर याद कर लत थ पढ़ना लखना सीखन को लोग उस ज़मान म6 अOछा समझत थ इसीलए बहत स सहाबा न एक दसर स लखना और लखी चीज़ पढ़ना सीख लया था ताहम उस ज़मान म6 ऐस बहत स लोग थ िजनको लखना पढ़ना नह आता था मगर उनको हज़र सललाह अलह व सलम क हदस6 कसरत स याद होती थी और वो मQतक़ होत थ यह वजह ह क हजर अकरम सललाह अलह व सलम क बाद एक लब असR तक अकसर अहादस सनी सनाई हआ करती थी और अहादस क लखन का Sरवाज बहत ह कम था हज़र अकरम स क ज़मान म6 या खलफ़ा-ए-राशदन क ज़मान म6 लोग0 को दन म6 कोई Iडगर नह मलती थी अलबQता आप सललाह अलह व सलम न चद सहाबा को उनक अOछ कारनाम0 क वजह स कछ अक़ाब स पकारा था मHलन अब बT रज़ी न जब हजर अकरम

सललाह अलह व सलम क मअराज क सफर क तHदक़ मUका क मशरकन क सामन अलल ऐलान क तो हजर अकरम सललाह अलह व सलम न उनको सVीक़ कहा या1न बहत Wयादा सOचा हज़रत उमर क ईमान व कgt म6 फक़E करन क इितयाज़ी सलाहयत क वजह स आप सललाह अलह व सलम न उह फ़ाक़ कहा यानी ईमान व कgt म6 फक़E करन वाला हज़रत ख़ालद बन वलद क नमाया जगी सलाहयत क वजह स आप सललाह अलह व सलम न उह6 सफलाह कहा मगर आप सललाह अलह व सलम क बाद खलफ़ाए राशदन न ग़ालबन अपनी तरफ स कोई Gखताब कसी को नह दया रह बात उमत क जाहल और आलम दो तबक0 म6 बटन क तो इस जानन स पहल य जानना ज़र ह क आलम क IडKी इस उमत को कब स मलन लगी इसलए क हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 या हज़र सललाह अलह व सलम क बाद कई सौ साल तक लोग0 को आलम होन क IडगSरया नह द जाती थी बिक मसलमान उनको अपन म6 का आलम समझत थ िजन को हज़र सललाह अलह व सलम क अहादस कसरत स याद हआ करती थी और वो काफ मQतक़ हआ करत थ और लोग0 को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स बाख़बर करात थ िजस क वजह स उमत क हर

फदE को अहादस को एक दसर को बतान का और सीखन सखान का हक़ था और अगर कोई कसी क अमल पर हदस क ब1नयाद पर एतराज़ करता तो उस स य नह पछा जाता क त कहा का फ़ाSरग़ ह या क त जाहल ह त हदस नह बता सकता इसलए क पछन वाल क पास भी कोई IडKी नह होती थी और वो भी कह का फ़ाSरग़ नह होता था बिक लोग ह उसको आलम कहत थ इस उमत म6 IडKी मलन क Sरवाज स पहल तक हर उमती को उस क नबी क बात कहन का हक़ था और हर बद को उसक रब क बात यानी क़रआन क बात कहन का हक़ था उस वampत सफE इतना होता था क लोग हदस बयान करन वाल स चाह वो कोई भी हो य पछत थ क तझ तक य हदस कस तरह पहची या त न य हदस कस स सनी फर अगर उस क बात सहह होती तो ठYक वरना उसक बात0 क इHलाह क जाती थी मगर य नह कहा जाता था क तर पास कोई IडKी नह इसलए तझ हदस बयान करन का हक़ ह नह पस उस ज़मान म6 दन आसान था और लोग दन पर शौक़ स चलत थ और उमत आलम और जाहल क दो तबक़ म6 बट हई नह समझी जाती थी बस इतना था क कसी क पास दन का इम कम था तो कसी क पास Wयादा यानी कोई कम इम वाला होता तो कोई Wयादा इम वाला होता

2- डी वाल मदरस कब श हए - य बात सहह ह क द1नया म6 ऐसा कोई नबी नह आया िजस न कोई ऐसा मदरसा खोला हो िजस म6 बOच0 को इकZा कर क कताब0 क राHत दन सखाया जाता हो फर सालाना इितहान ल ल कर छह सात साल क बाद उस को आलम या मौलवी होन क IडKी द जाती हो ताक उनक सवा िजनको IडKी मल हो बाक़ लोग [वाह उनक पास सहह इम हो या ना हो हर हाल म6 जाहल कहलाए य भी सहह ह क खलफ़ाए राशदन म6 स भी कसी न ऐसा कोई मदरसा नह खोला जहा बOच0 को उनक अपन0 स दर कर क कसी मकान म6 इकZा कर क कताब0 क राHत दन सखाया जाता हो फर सालाना इितहान वग़रह लकर छह सात साल बाद उनको मौलवी या आलम होन क IडKी द जाती हो ऐसा मदरसा ना उह0न अरब म6 कह खोला और न ह अरब क बाहर कह बात दरअसल यह ह क उनक ज़मान तक उमत म6 कताब एक ह थी और वो था क़रआन और अकसर लोग अहादस को ज़बानी याद करत थ और एक दसर को याद करात थपस जब क कताब ह एक थी तो Iडगर का मदरसा कहा स होता और अगर कसी को ऐसा लगता हो क उस ज़मान म6 आज क तज़E का मदरसा था तो मझ उस का नाम बता द और य बताए क वो कहा थाऔर उसम6 कतन बOच पढ़त थऔर कौन-कौन

स सहाबा उस म6 कतन कतन घट पढ़ात थ दरअसल उस ज़मान म6 लखन पढ़न का उममी मतलब य समझा जाता था क लोग कसी बात को लखना सीख ल6 और लखी बात0 को पढ़ना सीख ल6 मगर इस क लए कोई IडKी नह मलती थी और ना ह आज क तज़E का कोई इितहान होता था और न ह उमत आलम और जाहल क दो तबक़0 म6 IडKी क ब1नयाद पर बट हई थी बाज़ लोग अपनी नासमझी म6 यहा तक बोल जात ह3 क हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 स]फा मदरसा था तो उनको जानना चाहए क स]फा पर वो लोग रहत थ िजनको उनक घर वाल 1नकाल दत थ और वो भाग कर अपन ईमान को बचान क लए मदना आ जात थ और उनक पास कोई झ0पड़ी भी बनान क गजाइश नह होती थी फर जब वो महनत मज़दर करत या अलाह पाक उनक लए रहन का कोई दसरा इ1तज़ाम कर दत तो य वहा स हट कर अपन घर म6 रहन लगत मUका क महािजरन म6 स अUसर व बशतर सहाबा स]फा वाल नह ह3 इसलए क हजर अकरम सललाह अलह व सलम न उनका और असार का भाई चारा करा दया था इसलए उह6 स]फा पर बठन क नौबत नह आई और असार इसलए नह Uय0क उनका मदन म ख़द का घर होता था पस य [याल पर तरह गलत ह क स]फा कसी मदरस का नाम ह जहा पर

कोई आलम क IडKी मलती थी बिक अरबी म6 स]फा चबतर को बोलत थ य मिHजद नबवी म6 एक कनार पर मजबर लोग0 क वाHत बनवाया गया था हज़रत उमर रज़ी न अपनी Gखलाफत क ज़मान म6 यहा पहल क तरह बठन को मना कर दया था हजर अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप सललाह अलह व सलम क बाद एक ज़मान तक लोग माहौल व मआशर म6 दन सीखत थ और हदस6 आम तौर पर एक दसर स सन कर याद कर लत थ अहादस लख कर रखन का Sरवाज कम था उस ज़मान म6 दन सीखन या क़रआन करम को याद करन क ख़ा1तर बOच0 क ^पटाई नह क जाती थी बिक बOच अपन बड़0 को दन पर चलता दख कर और दन क बात6 सनत सनात दख कर अपन शौक़ स हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अहादस और क़रआन करम क कछ सरत6 याद कर लत थ लोग दनी माहौल व मआशर क क़ायम होन क वजह स आसानी स अपन माहौल व मआशर म6 रहकर दन सीख लत थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप क बाद एक ज़मान तक वो लोग जो मदन स बाहर रहत थ और नए-नए मसलमान होत थ उन म6 स कछ लोग कभी-कभी चद दन0 क लए या चद घट0 क लए मदना मन_वरा आत थ और मदना मन_वरा क

दनी माहौल म6 रहकर और हज़र सललाह अलह व सलम क या महािजरन व असार क बात6 सन कर आसानी स दन सीख लत थ और फर यहा क हालात और यहा क बात6 अपन क़बील क लोग0 को बयान करत थ और वो भी उन स आसानी स दन सीख लत और दन पर अमल करन लगत थ इसक अलावा य था क हजर अकरम सऔर आप क बाद खलफ़ाए राशदन मदना मन_वरा क कछ असहाब कराम को मदना मन_वरा क बाहर अलग- अलग इलाक0 म6 कभी-कभी भजत रहत थ ताक वो जाकर वहा क लोग0 को उनक माहौल व मआशर म6 रहकर अपन क़ौल व फ़ल (अमल) स दन सखाए इसक लए वहा कोई IडKी वाला मदरसा नह होता था हज़रत अल रज़ी का इतकाल छह सौ इUसठ ईसवी म6 हआ ह उनक बाद हज़रत अमीर मआ^वया रज़ी इHलामी हकमत क हाकम बन यहा स बन उम`या क हकमत श होती ह और सात सौ पचास ईसवी तक रहती ह इसक बाद बन अaबासया क हकमत श होती ह हान रशीद बन अaबासया क पाचव6 हाकम ह3 उनका इतक़ाल 809 AD म6 होता ह उनक इतक़ाल क सौ साल बाद 909 AD म6 मb बन अaबासया क हकमत स अलग हो जाता ह और वहा शीआओ क पहल हकमत क़ायम हो जाती ह इसक तक़रबन बावन साल बाद 961 AD म6 शीआओ क ज़Sरए

द1नया का पहला IडKी दन वाला मदरसा एक मिHजद म6 खलता ह िजस जामअ अज़हर कहा जाता ह इसक बाद स ह द1नया म6 जगह जगह IडगSरय0 का सलसला श होता हय ज़माना हज़र सललाह अलह व सलम क तीन सौ चालस साल बाद का ह इसक बाद स इस उमत क लोग र]ता र]ता IडगSरय0 क ब1नयाद पर आलम और जाहल क दो तबक0 म6 बटन लग ईसाइय0 और दसर क़ौम0 न भी IडKी दना शीआओ स सीखा ह इसीलए द1नया क सब स परानी यनीवरसट जामअ अज़हर कहलाती ह 1174 AD म6 सलाहVीन अ`यबी मb क हाकम बन उह0न इस मदरस को बद करवा दया था उनक इतक़ाल क बाद जब उनक औलाद मb क हकमत सभालती ह तो उह0न मदरस को फर स खलवाया इसक बाद स य मदरसा सिनय0 का हो गया पस जानना चाहए क अगर आलम होन क लए IडKी शतE होती और बग़र IडKी क लोग इम होन क बावजद जाहल कहलात तो हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क तक़रबन साढ़ तीन सौ साल बाद तक उमत जाहल नह थी और य काम ख़लफाndashए-राशदन म6 स कोई न कोई ज़र श करता [वाह अरब म6 या अरब क बाहर

3mdashनहज नबवत और मतलफ़ जमाअत - दरअसल इस क़Hम का IडKी वाला मदरसा भी उमत म6 दन सीखन सखान क लए एक जमाअत क तरह ह (जस क और दगर जमाअत6 ह3 मसलन तबलग़ खानक़ाह जमाअत इHलामी अहल हदस वग़रह) जो क हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क कई सौ साल बाद वजद म6 आता ह मगर इस जमाअत(मदरसा) क ज़रए लोग बलउमम बाइचास ह दन सीख पात ह3 क उनक बड़0 न बचपन म6 उनको इस जमाअत म6 शामल कया तो ठYक वरना जब इसान बालग़ होता ह और उस दन पर चलन का और उसको सीखन का शौक़ पदा होता ह तो उस का इस जमाअत म6 शामल होन का वampत ख़Qम होन लगता ह जबक दसर जमाअत0 म6 शामल होन का वampत श होता ह और अगर कोई बड़ी उd म6 इस म6 शामल होना चाह तो य काम उसक लए बलउमम मिeकल साबत होता ह नबय0 क नहज लोग0 क दन सीखन सखान क लए आसान होती ह उस हर उd का इसान आसानी स सीख लता ह मदन म6 आकर हर उd क लोग आसानी स दन सीख लत थ द1नया म6 कोई ऐसा नबी नह आया िजस न दन क कोई ऐसी नहज पश क हो िजस म6 शामल होन क उd उस वampत खQम होन लग जबक शामल होन वाल म6 अampल व होश आ जाए और वो बालग़ हो चका हो या पOचीस तीस

साल स Wयादा उd का हो चका हो बिक नबय0 का तरक़ा दनी माहौल व मआशरा क़ायम करन का होता था ताक हर कोई उस म6 रहकर आसानी स दन सीख ल [वाह उसक उd सQतर अHसी साल या इस स भी Wयादा Uय0 ना हो अलबQता बाज़ नबीय0 का लोग0 न साथ नह दया िजसक वजह स उनको ऐसा माहौल व मआशरा क़ायम करन क नौबत ना आ पाई म3 य नह कहता क इन जमाअत0 स उमत को फायदा नह होता ह या क इन म6 स कोई ग़लत ह िजनका म3 न ऊपर िज़T कया ह ग़लत तो वो ह जो शकE करता ह या ख़राफाती बदअत म6 मaतला ह [वाह वो कोई भी हो इसक Wयादा तफसील क यहा गजाइश नह ह दरअसल य तमाम जमाअत6 क़रआन व सनत को ह लाग करना चाहती ह3 हा क़रआन और सनत लाग करन का तरक़ा इनका अपना-अपना ह िजसक वजह स य एक दसर स इि[तलाफ़ करती ह3 इनक आपसी इि[तलाफ़ात क एक बड़ी वजह इनक बड़0 क लख लटरचर भी ह3 िजसक वजह स इन म6 क बाज़ दसर पर इHलाम स ख़ाSरज होन का फतवा तक द डालत ह3 यहा इनक लटरचर क इि[तलाफ़ात को बयान करन क गजाइश नह ह इसलए यहा म3 सफE इन जमाअत0 क दन फलान क तरक़ का िज़T कर रहा ह

दन को उमत म6 क़ायम करन क हर एक क अपन-अपन अलग-अलग ब1नयाद उसल ह3 तबलग़ का नज़Sरया य ह क असल काम मसलमान0 म6 चल फर कर दावत दन का ह ताक जब दावत द6ग तो ख़द का दन पर चलना आसान हो जाएगा और जब अपन लोग दन पर चलन लग6ग तो ग़र0 क लए भी दन क़बल करना आसान हो सकता ह इसलए वो बलउमम बालग़ लोग0 को अपनी जमाअत म6 शामल करत ह3 ताक बOच अपन बड़0 स दन सीख ल6 या बड़ होकर वो भी उनक जमाअत म6 शामल हो जाए इसक लए वो इस जमाअत क बानी इयास साहब क ज़Sरए क़ायम करदा नहज को पश करत ह3 मदरस वाल0 क ब1नयाद नज़Sरयात य ह3 क जब बOच0 म6 दन आ जाएगा तो वो बड़ होकर बड़0 तक दन पहचाएग खानक़ाह का नज़रया य ह क असल काम क़लब क इसलाह ह और नfस पर क़ाब पाना ह इसक लए िज़T क कसरत ज़र ह और जब दल िज़दा होगा तो दन पर चलना आसान होगा अहल हदस का मानना य ह क असल काम उमत क आमाल को बख़ार और मिHलम वग़रह म6 बताए गए तरक़ क मताबक़ लाना ह और उह6 ऐसी बात0 स रोकना ह िजस स क वो उन राHत0 स भी gक जाए िजन पर चलन स शकE क तरफ जान का ज़रा भी ख़तरा हो और दन क दावत को ग़र0 म6 आम करना ह जमाअत इHलामी का नज़Sरया भी कछ

मलता जलता ह वो भी ग़र0 म6 दावत पहचान को तरजीह दत ह3 दरअसल य मौज तफसील तलब ह िजसक यहा गजाइश नह ह इसलए म3 न ऊपर हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान क और आप क बाद ख़लफा-ए-राशदन और उनक बाद क एक ज़मान तक दन सीखन सखान क नहज का इि[तसारन िज़T कर दया ह और उनक बाद क़ायम हई अलग-अलग जमाअत0 क दन फलान क नहज का म[तसर सा जाइज़ा उसक नीच पश कर दया ह ताक जो लोग नहज नब_वत और दसर नहज का फक़E जानना चाह6 उह6 इस जा1नब रहबर मल जाए और जो कोई खद ना समझना चाह उस तो द1नया म6 समझाना मिeकल ह अब ज़ाहर सी बात ह क कोई भी आसमानी रहबर द1नया म6 नहज नब_वत को क़ायम करन आता ह और उसक लए यह बहतरन राHता ह दसर राHत तो उस वampत क लए होत ह3 जब क उमत म6 नहज-नब_वत क़ायम ना हो चक हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अलावा इस उमत का कोई नबी नह और आप क लाई गई शरअत या1न कताबलाह(क़रआन) और सनत रसललाह(या1न आप क ज़Sरए द गई तालमात) क अलावा इस उमत क लए कोई दसर शरअत नह इसलए लािज़मन इस उमत म6 नहज नब_वत क़ायम करन का

तरक़ा यह ह क क़रआन व सनत को आपक उमत म6 उस तरक़ पर क़ायम कया जाए जो क ख़द आप सललाह अलह वसलम न कर क दखलाया ह या आप न उसक तालम द ह मिHलम म6 ह क ईसा अलहHसलाम इस उमत म6 इसाफ पसद इमाम और आदल हाकम क हसयत स ह0ग अब दाउद म6 ह महद अलहHसलाम लोग0 म6 उनक नबी क सनत को जार कर6ग इaन माजा म6 महद अलहHसलाम को ख़लफ़तलाह कहा गया ह 4 ndash या महदamp अल(ह)सलाम दनया क तमाम इसान- को राह रा)त पर लआएग अब रह य बात क Uया महद अल द1नया क तमाम लोग0 को हदायत द द6ग और द1नया क तमाम लोग0 म6 इसाफ क़ायम कर6ग बाज़ लोग मर मतािलक़ य कहत ह3 क म3 न कसी स य कहा क 2012 या 2013 तक सार द1नया म6 इHलाम फल जाएगा तो जानना चाहए क य बात क़तअन दgHत नह ह या क मर बात को समझन म6 कसी स ग़लत फहमी हई ह Uय0क ग़ब का इम अलाह ह क पास ह आग Uया होना ह य अलाह को मालम ह मज़ीद य क अलाह न द1नया म6 क़रआन करम क ज़Sरए हर इसान को हदायत क राह दखाई ह मगर जो कोई इस को क़बल करता ह वो अपन लए और जो कोई इस ठकराता

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 6: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

का फज़ल ह क उस न दन को आसान कर क हजर अकरम सललाह अलह व सलम को अता कया ह आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप स क बाद खलफ़ाndashए-राशदन क ज़मान म6 दन को जानन क लए य शतE नह थी क कसी को लखना पढ़ना आता ह क नह लोग एक दसर स हदस6 सन कर याद कर लत थ पढ़ना लखना सीखन को लोग उस ज़मान म6 अOछा समझत थ इसीलए बहत स सहाबा न एक दसर स लखना और लखी चीज़ पढ़ना सीख लया था ताहम उस ज़मान म6 ऐस बहत स लोग थ िजनको लखना पढ़ना नह आता था मगर उनको हज़र सललाह अलह व सलम क हदस6 कसरत स याद होती थी और वो मQतक़ होत थ यह वजह ह क हजर अकरम सललाह अलह व सलम क बाद एक लब असR तक अकसर अहादस सनी सनाई हआ करती थी और अहादस क लखन का Sरवाज बहत ह कम था हज़र अकरम स क ज़मान म6 या खलफ़ा-ए-राशदन क ज़मान म6 लोग0 को दन म6 कोई Iडगर नह मलती थी अलबQता आप सललाह अलह व सलम न चद सहाबा को उनक अOछ कारनाम0 क वजह स कछ अक़ाब स पकारा था मHलन अब बT रज़ी न जब हजर अकरम

सललाह अलह व सलम क मअराज क सफर क तHदक़ मUका क मशरकन क सामन अलल ऐलान क तो हजर अकरम सललाह अलह व सलम न उनको सVीक़ कहा या1न बहत Wयादा सOचा हज़रत उमर क ईमान व कgt म6 फक़E करन क इितयाज़ी सलाहयत क वजह स आप सललाह अलह व सलम न उह फ़ाक़ कहा यानी ईमान व कgt म6 फक़E करन वाला हज़रत ख़ालद बन वलद क नमाया जगी सलाहयत क वजह स आप सललाह अलह व सलम न उह6 सफलाह कहा मगर आप सललाह अलह व सलम क बाद खलफ़ाए राशदन न ग़ालबन अपनी तरफ स कोई Gखताब कसी को नह दया रह बात उमत क जाहल और आलम दो तबक0 म6 बटन क तो इस जानन स पहल य जानना ज़र ह क आलम क IडKी इस उमत को कब स मलन लगी इसलए क हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 या हज़र सललाह अलह व सलम क बाद कई सौ साल तक लोग0 को आलम होन क IडगSरया नह द जाती थी बिक मसलमान उनको अपन म6 का आलम समझत थ िजन को हज़र सललाह अलह व सलम क अहादस कसरत स याद हआ करती थी और वो काफ मQतक़ हआ करत थ और लोग0 को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स बाख़बर करात थ िजस क वजह स उमत क हर

फदE को अहादस को एक दसर को बतान का और सीखन सखान का हक़ था और अगर कोई कसी क अमल पर हदस क ब1नयाद पर एतराज़ करता तो उस स य नह पछा जाता क त कहा का फ़ाSरग़ ह या क त जाहल ह त हदस नह बता सकता इसलए क पछन वाल क पास भी कोई IडKी नह होती थी और वो भी कह का फ़ाSरग़ नह होता था बिक लोग ह उसको आलम कहत थ इस उमत म6 IडKी मलन क Sरवाज स पहल तक हर उमती को उस क नबी क बात कहन का हक़ था और हर बद को उसक रब क बात यानी क़रआन क बात कहन का हक़ था उस वampत सफE इतना होता था क लोग हदस बयान करन वाल स चाह वो कोई भी हो य पछत थ क तझ तक य हदस कस तरह पहची या त न य हदस कस स सनी फर अगर उस क बात सहह होती तो ठYक वरना उसक बात0 क इHलाह क जाती थी मगर य नह कहा जाता था क तर पास कोई IडKी नह इसलए तझ हदस बयान करन का हक़ ह नह पस उस ज़मान म6 दन आसान था और लोग दन पर शौक़ स चलत थ और उमत आलम और जाहल क दो तबक़ म6 बट हई नह समझी जाती थी बस इतना था क कसी क पास दन का इम कम था तो कसी क पास Wयादा यानी कोई कम इम वाला होता तो कोई Wयादा इम वाला होता

2- डी वाल मदरस कब श हए - य बात सहह ह क द1नया म6 ऐसा कोई नबी नह आया िजस न कोई ऐसा मदरसा खोला हो िजस म6 बOच0 को इकZा कर क कताब0 क राHत दन सखाया जाता हो फर सालाना इितहान ल ल कर छह सात साल क बाद उस को आलम या मौलवी होन क IडKी द जाती हो ताक उनक सवा िजनको IडKी मल हो बाक़ लोग [वाह उनक पास सहह इम हो या ना हो हर हाल म6 जाहल कहलाए य भी सहह ह क खलफ़ाए राशदन म6 स भी कसी न ऐसा कोई मदरसा नह खोला जहा बOच0 को उनक अपन0 स दर कर क कसी मकान म6 इकZा कर क कताब0 क राHत दन सखाया जाता हो फर सालाना इितहान वग़रह लकर छह सात साल बाद उनको मौलवी या आलम होन क IडKी द जाती हो ऐसा मदरसा ना उह0न अरब म6 कह खोला और न ह अरब क बाहर कह बात दरअसल यह ह क उनक ज़मान तक उमत म6 कताब एक ह थी और वो था क़रआन और अकसर लोग अहादस को ज़बानी याद करत थ और एक दसर को याद करात थपस जब क कताब ह एक थी तो Iडगर का मदरसा कहा स होता और अगर कसी को ऐसा लगता हो क उस ज़मान म6 आज क तज़E का मदरसा था तो मझ उस का नाम बता द और य बताए क वो कहा थाऔर उसम6 कतन बOच पढ़त थऔर कौन-कौन

स सहाबा उस म6 कतन कतन घट पढ़ात थ दरअसल उस ज़मान म6 लखन पढ़न का उममी मतलब य समझा जाता था क लोग कसी बात को लखना सीख ल6 और लखी बात0 को पढ़ना सीख ल6 मगर इस क लए कोई IडKी नह मलती थी और ना ह आज क तज़E का कोई इितहान होता था और न ह उमत आलम और जाहल क दो तबक़0 म6 IडKी क ब1नयाद पर बट हई थी बाज़ लोग अपनी नासमझी म6 यहा तक बोल जात ह3 क हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 स]फा मदरसा था तो उनको जानना चाहए क स]फा पर वो लोग रहत थ िजनको उनक घर वाल 1नकाल दत थ और वो भाग कर अपन ईमान को बचान क लए मदना आ जात थ और उनक पास कोई झ0पड़ी भी बनान क गजाइश नह होती थी फर जब वो महनत मज़दर करत या अलाह पाक उनक लए रहन का कोई दसरा इ1तज़ाम कर दत तो य वहा स हट कर अपन घर म6 रहन लगत मUका क महािजरन म6 स अUसर व बशतर सहाबा स]फा वाल नह ह3 इसलए क हजर अकरम सललाह अलह व सलम न उनका और असार का भाई चारा करा दया था इसलए उह6 स]फा पर बठन क नौबत नह आई और असार इसलए नह Uय0क उनका मदन म ख़द का घर होता था पस य [याल पर तरह गलत ह क स]फा कसी मदरस का नाम ह जहा पर

कोई आलम क IडKी मलती थी बिक अरबी म6 स]फा चबतर को बोलत थ य मिHजद नबवी म6 एक कनार पर मजबर लोग0 क वाHत बनवाया गया था हज़रत उमर रज़ी न अपनी Gखलाफत क ज़मान म6 यहा पहल क तरह बठन को मना कर दया था हजर अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप सललाह अलह व सलम क बाद एक ज़मान तक लोग माहौल व मआशर म6 दन सीखत थ और हदस6 आम तौर पर एक दसर स सन कर याद कर लत थ अहादस लख कर रखन का Sरवाज कम था उस ज़मान म6 दन सीखन या क़रआन करम को याद करन क ख़ा1तर बOच0 क ^पटाई नह क जाती थी बिक बOच अपन बड़0 को दन पर चलता दख कर और दन क बात6 सनत सनात दख कर अपन शौक़ स हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अहादस और क़रआन करम क कछ सरत6 याद कर लत थ लोग दनी माहौल व मआशर क क़ायम होन क वजह स आसानी स अपन माहौल व मआशर म6 रहकर दन सीख लत थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप क बाद एक ज़मान तक वो लोग जो मदन स बाहर रहत थ और नए-नए मसलमान होत थ उन म6 स कछ लोग कभी-कभी चद दन0 क लए या चद घट0 क लए मदना मन_वरा आत थ और मदना मन_वरा क

दनी माहौल म6 रहकर और हज़र सललाह अलह व सलम क या महािजरन व असार क बात6 सन कर आसानी स दन सीख लत थ और फर यहा क हालात और यहा क बात6 अपन क़बील क लोग0 को बयान करत थ और वो भी उन स आसानी स दन सीख लत और दन पर अमल करन लगत थ इसक अलावा य था क हजर अकरम सऔर आप क बाद खलफ़ाए राशदन मदना मन_वरा क कछ असहाब कराम को मदना मन_वरा क बाहर अलग- अलग इलाक0 म6 कभी-कभी भजत रहत थ ताक वो जाकर वहा क लोग0 को उनक माहौल व मआशर म6 रहकर अपन क़ौल व फ़ल (अमल) स दन सखाए इसक लए वहा कोई IडKी वाला मदरसा नह होता था हज़रत अल रज़ी का इतकाल छह सौ इUसठ ईसवी म6 हआ ह उनक बाद हज़रत अमीर मआ^वया रज़ी इHलामी हकमत क हाकम बन यहा स बन उम`या क हकमत श होती ह और सात सौ पचास ईसवी तक रहती ह इसक बाद बन अaबासया क हकमत श होती ह हान रशीद बन अaबासया क पाचव6 हाकम ह3 उनका इतक़ाल 809 AD म6 होता ह उनक इतक़ाल क सौ साल बाद 909 AD म6 मb बन अaबासया क हकमत स अलग हो जाता ह और वहा शीआओ क पहल हकमत क़ायम हो जाती ह इसक तक़रबन बावन साल बाद 961 AD म6 शीआओ क ज़Sरए

द1नया का पहला IडKी दन वाला मदरसा एक मिHजद म6 खलता ह िजस जामअ अज़हर कहा जाता ह इसक बाद स ह द1नया म6 जगह जगह IडगSरय0 का सलसला श होता हय ज़माना हज़र सललाह अलह व सलम क तीन सौ चालस साल बाद का ह इसक बाद स इस उमत क लोग र]ता र]ता IडगSरय0 क ब1नयाद पर आलम और जाहल क दो तबक0 म6 बटन लग ईसाइय0 और दसर क़ौम0 न भी IडKी दना शीआओ स सीखा ह इसीलए द1नया क सब स परानी यनीवरसट जामअ अज़हर कहलाती ह 1174 AD म6 सलाहVीन अ`यबी मb क हाकम बन उह0न इस मदरस को बद करवा दया था उनक इतक़ाल क बाद जब उनक औलाद मb क हकमत सभालती ह तो उह0न मदरस को फर स खलवाया इसक बाद स य मदरसा सिनय0 का हो गया पस जानना चाहए क अगर आलम होन क लए IडKी शतE होती और बग़र IडKी क लोग इम होन क बावजद जाहल कहलात तो हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क तक़रबन साढ़ तीन सौ साल बाद तक उमत जाहल नह थी और य काम ख़लफाndashए-राशदन म6 स कोई न कोई ज़र श करता [वाह अरब म6 या अरब क बाहर

3mdashनहज नबवत और मतलफ़ जमाअत - दरअसल इस क़Hम का IडKी वाला मदरसा भी उमत म6 दन सीखन सखान क लए एक जमाअत क तरह ह (जस क और दगर जमाअत6 ह3 मसलन तबलग़ खानक़ाह जमाअत इHलामी अहल हदस वग़रह) जो क हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क कई सौ साल बाद वजद म6 आता ह मगर इस जमाअत(मदरसा) क ज़रए लोग बलउमम बाइचास ह दन सीख पात ह3 क उनक बड़0 न बचपन म6 उनको इस जमाअत म6 शामल कया तो ठYक वरना जब इसान बालग़ होता ह और उस दन पर चलन का और उसको सीखन का शौक़ पदा होता ह तो उस का इस जमाअत म6 शामल होन का वampत ख़Qम होन लगता ह जबक दसर जमाअत0 म6 शामल होन का वampत श होता ह और अगर कोई बड़ी उd म6 इस म6 शामल होना चाह तो य काम उसक लए बलउमम मिeकल साबत होता ह नबय0 क नहज लोग0 क दन सीखन सखान क लए आसान होती ह उस हर उd का इसान आसानी स सीख लता ह मदन म6 आकर हर उd क लोग आसानी स दन सीख लत थ द1नया म6 कोई ऐसा नबी नह आया िजस न दन क कोई ऐसी नहज पश क हो िजस म6 शामल होन क उd उस वampत खQम होन लग जबक शामल होन वाल म6 अampल व होश आ जाए और वो बालग़ हो चका हो या पOचीस तीस

साल स Wयादा उd का हो चका हो बिक नबय0 का तरक़ा दनी माहौल व मआशरा क़ायम करन का होता था ताक हर कोई उस म6 रहकर आसानी स दन सीख ल [वाह उसक उd सQतर अHसी साल या इस स भी Wयादा Uय0 ना हो अलबQता बाज़ नबीय0 का लोग0 न साथ नह दया िजसक वजह स उनको ऐसा माहौल व मआशरा क़ायम करन क नौबत ना आ पाई म3 य नह कहता क इन जमाअत0 स उमत को फायदा नह होता ह या क इन म6 स कोई ग़लत ह िजनका म3 न ऊपर िज़T कया ह ग़लत तो वो ह जो शकE करता ह या ख़राफाती बदअत म6 मaतला ह [वाह वो कोई भी हो इसक Wयादा तफसील क यहा गजाइश नह ह दरअसल य तमाम जमाअत6 क़रआन व सनत को ह लाग करना चाहती ह3 हा क़रआन और सनत लाग करन का तरक़ा इनका अपना-अपना ह िजसक वजह स य एक दसर स इि[तलाफ़ करती ह3 इनक आपसी इि[तलाफ़ात क एक बड़ी वजह इनक बड़0 क लख लटरचर भी ह3 िजसक वजह स इन म6 क बाज़ दसर पर इHलाम स ख़ाSरज होन का फतवा तक द डालत ह3 यहा इनक लटरचर क इि[तलाफ़ात को बयान करन क गजाइश नह ह इसलए यहा म3 सफE इन जमाअत0 क दन फलान क तरक़ का िज़T कर रहा ह

दन को उमत म6 क़ायम करन क हर एक क अपन-अपन अलग-अलग ब1नयाद उसल ह3 तबलग़ का नज़Sरया य ह क असल काम मसलमान0 म6 चल फर कर दावत दन का ह ताक जब दावत द6ग तो ख़द का दन पर चलना आसान हो जाएगा और जब अपन लोग दन पर चलन लग6ग तो ग़र0 क लए भी दन क़बल करना आसान हो सकता ह इसलए वो बलउमम बालग़ लोग0 को अपनी जमाअत म6 शामल करत ह3 ताक बOच अपन बड़0 स दन सीख ल6 या बड़ होकर वो भी उनक जमाअत म6 शामल हो जाए इसक लए वो इस जमाअत क बानी इयास साहब क ज़Sरए क़ायम करदा नहज को पश करत ह3 मदरस वाल0 क ब1नयाद नज़Sरयात य ह3 क जब बOच0 म6 दन आ जाएगा तो वो बड़ होकर बड़0 तक दन पहचाएग खानक़ाह का नज़रया य ह क असल काम क़लब क इसलाह ह और नfस पर क़ाब पाना ह इसक लए िज़T क कसरत ज़र ह और जब दल िज़दा होगा तो दन पर चलना आसान होगा अहल हदस का मानना य ह क असल काम उमत क आमाल को बख़ार और मिHलम वग़रह म6 बताए गए तरक़ क मताबक़ लाना ह और उह6 ऐसी बात0 स रोकना ह िजस स क वो उन राHत0 स भी gक जाए िजन पर चलन स शकE क तरफ जान का ज़रा भी ख़तरा हो और दन क दावत को ग़र0 म6 आम करना ह जमाअत इHलामी का नज़Sरया भी कछ

मलता जलता ह वो भी ग़र0 म6 दावत पहचान को तरजीह दत ह3 दरअसल य मौज तफसील तलब ह िजसक यहा गजाइश नह ह इसलए म3 न ऊपर हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान क और आप क बाद ख़लफा-ए-राशदन और उनक बाद क एक ज़मान तक दन सीखन सखान क नहज का इि[तसारन िज़T कर दया ह और उनक बाद क़ायम हई अलग-अलग जमाअत0 क दन फलान क नहज का म[तसर सा जाइज़ा उसक नीच पश कर दया ह ताक जो लोग नहज नब_वत और दसर नहज का फक़E जानना चाह6 उह6 इस जा1नब रहबर मल जाए और जो कोई खद ना समझना चाह उस तो द1नया म6 समझाना मिeकल ह अब ज़ाहर सी बात ह क कोई भी आसमानी रहबर द1नया म6 नहज नब_वत को क़ायम करन आता ह और उसक लए यह बहतरन राHता ह दसर राHत तो उस वampत क लए होत ह3 जब क उमत म6 नहज-नब_वत क़ायम ना हो चक हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अलावा इस उमत का कोई नबी नह और आप क लाई गई शरअत या1न कताबलाह(क़रआन) और सनत रसललाह(या1न आप क ज़Sरए द गई तालमात) क अलावा इस उमत क लए कोई दसर शरअत नह इसलए लािज़मन इस उमत म6 नहज नब_वत क़ायम करन का

तरक़ा यह ह क क़रआन व सनत को आपक उमत म6 उस तरक़ पर क़ायम कया जाए जो क ख़द आप सललाह अलह वसलम न कर क दखलाया ह या आप न उसक तालम द ह मिHलम म6 ह क ईसा अलहHसलाम इस उमत म6 इसाफ पसद इमाम और आदल हाकम क हसयत स ह0ग अब दाउद म6 ह महद अलहHसलाम लोग0 म6 उनक नबी क सनत को जार कर6ग इaन माजा म6 महद अलहHसलाम को ख़लफ़तलाह कहा गया ह 4 ndash या महदamp अल(ह)सलाम दनया क तमाम इसान- को राह रा)त पर लआएग अब रह य बात क Uया महद अल द1नया क तमाम लोग0 को हदायत द द6ग और द1नया क तमाम लोग0 म6 इसाफ क़ायम कर6ग बाज़ लोग मर मतािलक़ य कहत ह3 क म3 न कसी स य कहा क 2012 या 2013 तक सार द1नया म6 इHलाम फल जाएगा तो जानना चाहए क य बात क़तअन दgHत नह ह या क मर बात को समझन म6 कसी स ग़लत फहमी हई ह Uय0क ग़ब का इम अलाह ह क पास ह आग Uया होना ह य अलाह को मालम ह मज़ीद य क अलाह न द1नया म6 क़रआन करम क ज़Sरए हर इसान को हदायत क राह दखाई ह मगर जो कोई इस को क़बल करता ह वो अपन लए और जो कोई इस ठकराता

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 7: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

सललाह अलह व सलम क मअराज क सफर क तHदक़ मUका क मशरकन क सामन अलल ऐलान क तो हजर अकरम सललाह अलह व सलम न उनको सVीक़ कहा या1न बहत Wयादा सOचा हज़रत उमर क ईमान व कgt म6 फक़E करन क इितयाज़ी सलाहयत क वजह स आप सललाह अलह व सलम न उह फ़ाक़ कहा यानी ईमान व कgt म6 फक़E करन वाला हज़रत ख़ालद बन वलद क नमाया जगी सलाहयत क वजह स आप सललाह अलह व सलम न उह6 सफलाह कहा मगर आप सललाह अलह व सलम क बाद खलफ़ाए राशदन न ग़ालबन अपनी तरफ स कोई Gखताब कसी को नह दया रह बात उमत क जाहल और आलम दो तबक0 म6 बटन क तो इस जानन स पहल य जानना ज़र ह क आलम क IडKी इस उमत को कब स मलन लगी इसलए क हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 या हज़र सललाह अलह व सलम क बाद कई सौ साल तक लोग0 को आलम होन क IडगSरया नह द जाती थी बिक मसलमान उनको अपन म6 का आलम समझत थ िजन को हज़र सललाह अलह व सलम क अहादस कसरत स याद हआ करती थी और वो काफ मQतक़ हआ करत थ और लोग0 को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स बाख़बर करात थ िजस क वजह स उमत क हर

फदE को अहादस को एक दसर को बतान का और सीखन सखान का हक़ था और अगर कोई कसी क अमल पर हदस क ब1नयाद पर एतराज़ करता तो उस स य नह पछा जाता क त कहा का फ़ाSरग़ ह या क त जाहल ह त हदस नह बता सकता इसलए क पछन वाल क पास भी कोई IडKी नह होती थी और वो भी कह का फ़ाSरग़ नह होता था बिक लोग ह उसको आलम कहत थ इस उमत म6 IडKी मलन क Sरवाज स पहल तक हर उमती को उस क नबी क बात कहन का हक़ था और हर बद को उसक रब क बात यानी क़रआन क बात कहन का हक़ था उस वampत सफE इतना होता था क लोग हदस बयान करन वाल स चाह वो कोई भी हो य पछत थ क तझ तक य हदस कस तरह पहची या त न य हदस कस स सनी फर अगर उस क बात सहह होती तो ठYक वरना उसक बात0 क इHलाह क जाती थी मगर य नह कहा जाता था क तर पास कोई IडKी नह इसलए तझ हदस बयान करन का हक़ ह नह पस उस ज़मान म6 दन आसान था और लोग दन पर शौक़ स चलत थ और उमत आलम और जाहल क दो तबक़ म6 बट हई नह समझी जाती थी बस इतना था क कसी क पास दन का इम कम था तो कसी क पास Wयादा यानी कोई कम इम वाला होता तो कोई Wयादा इम वाला होता

2- डी वाल मदरस कब श हए - य बात सहह ह क द1नया म6 ऐसा कोई नबी नह आया िजस न कोई ऐसा मदरसा खोला हो िजस म6 बOच0 को इकZा कर क कताब0 क राHत दन सखाया जाता हो फर सालाना इितहान ल ल कर छह सात साल क बाद उस को आलम या मौलवी होन क IडKी द जाती हो ताक उनक सवा िजनको IडKी मल हो बाक़ लोग [वाह उनक पास सहह इम हो या ना हो हर हाल म6 जाहल कहलाए य भी सहह ह क खलफ़ाए राशदन म6 स भी कसी न ऐसा कोई मदरसा नह खोला जहा बOच0 को उनक अपन0 स दर कर क कसी मकान म6 इकZा कर क कताब0 क राHत दन सखाया जाता हो फर सालाना इितहान वग़रह लकर छह सात साल बाद उनको मौलवी या आलम होन क IडKी द जाती हो ऐसा मदरसा ना उह0न अरब म6 कह खोला और न ह अरब क बाहर कह बात दरअसल यह ह क उनक ज़मान तक उमत म6 कताब एक ह थी और वो था क़रआन और अकसर लोग अहादस को ज़बानी याद करत थ और एक दसर को याद करात थपस जब क कताब ह एक थी तो Iडगर का मदरसा कहा स होता और अगर कसी को ऐसा लगता हो क उस ज़मान म6 आज क तज़E का मदरसा था तो मझ उस का नाम बता द और य बताए क वो कहा थाऔर उसम6 कतन बOच पढ़त थऔर कौन-कौन

स सहाबा उस म6 कतन कतन घट पढ़ात थ दरअसल उस ज़मान म6 लखन पढ़न का उममी मतलब य समझा जाता था क लोग कसी बात को लखना सीख ल6 और लखी बात0 को पढ़ना सीख ल6 मगर इस क लए कोई IडKी नह मलती थी और ना ह आज क तज़E का कोई इितहान होता था और न ह उमत आलम और जाहल क दो तबक़0 म6 IडKी क ब1नयाद पर बट हई थी बाज़ लोग अपनी नासमझी म6 यहा तक बोल जात ह3 क हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 स]फा मदरसा था तो उनको जानना चाहए क स]फा पर वो लोग रहत थ िजनको उनक घर वाल 1नकाल दत थ और वो भाग कर अपन ईमान को बचान क लए मदना आ जात थ और उनक पास कोई झ0पड़ी भी बनान क गजाइश नह होती थी फर जब वो महनत मज़दर करत या अलाह पाक उनक लए रहन का कोई दसरा इ1तज़ाम कर दत तो य वहा स हट कर अपन घर म6 रहन लगत मUका क महािजरन म6 स अUसर व बशतर सहाबा स]फा वाल नह ह3 इसलए क हजर अकरम सललाह अलह व सलम न उनका और असार का भाई चारा करा दया था इसलए उह6 स]फा पर बठन क नौबत नह आई और असार इसलए नह Uय0क उनका मदन म ख़द का घर होता था पस य [याल पर तरह गलत ह क स]फा कसी मदरस का नाम ह जहा पर

कोई आलम क IडKी मलती थी बिक अरबी म6 स]फा चबतर को बोलत थ य मिHजद नबवी म6 एक कनार पर मजबर लोग0 क वाHत बनवाया गया था हज़रत उमर रज़ी न अपनी Gखलाफत क ज़मान म6 यहा पहल क तरह बठन को मना कर दया था हजर अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप सललाह अलह व सलम क बाद एक ज़मान तक लोग माहौल व मआशर म6 दन सीखत थ और हदस6 आम तौर पर एक दसर स सन कर याद कर लत थ अहादस लख कर रखन का Sरवाज कम था उस ज़मान म6 दन सीखन या क़रआन करम को याद करन क ख़ा1तर बOच0 क ^पटाई नह क जाती थी बिक बOच अपन बड़0 को दन पर चलता दख कर और दन क बात6 सनत सनात दख कर अपन शौक़ स हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अहादस और क़रआन करम क कछ सरत6 याद कर लत थ लोग दनी माहौल व मआशर क क़ायम होन क वजह स आसानी स अपन माहौल व मआशर म6 रहकर दन सीख लत थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप क बाद एक ज़मान तक वो लोग जो मदन स बाहर रहत थ और नए-नए मसलमान होत थ उन म6 स कछ लोग कभी-कभी चद दन0 क लए या चद घट0 क लए मदना मन_वरा आत थ और मदना मन_वरा क

दनी माहौल म6 रहकर और हज़र सललाह अलह व सलम क या महािजरन व असार क बात6 सन कर आसानी स दन सीख लत थ और फर यहा क हालात और यहा क बात6 अपन क़बील क लोग0 को बयान करत थ और वो भी उन स आसानी स दन सीख लत और दन पर अमल करन लगत थ इसक अलावा य था क हजर अकरम सऔर आप क बाद खलफ़ाए राशदन मदना मन_वरा क कछ असहाब कराम को मदना मन_वरा क बाहर अलग- अलग इलाक0 म6 कभी-कभी भजत रहत थ ताक वो जाकर वहा क लोग0 को उनक माहौल व मआशर म6 रहकर अपन क़ौल व फ़ल (अमल) स दन सखाए इसक लए वहा कोई IडKी वाला मदरसा नह होता था हज़रत अल रज़ी का इतकाल छह सौ इUसठ ईसवी म6 हआ ह उनक बाद हज़रत अमीर मआ^वया रज़ी इHलामी हकमत क हाकम बन यहा स बन उम`या क हकमत श होती ह और सात सौ पचास ईसवी तक रहती ह इसक बाद बन अaबासया क हकमत श होती ह हान रशीद बन अaबासया क पाचव6 हाकम ह3 उनका इतक़ाल 809 AD म6 होता ह उनक इतक़ाल क सौ साल बाद 909 AD म6 मb बन अaबासया क हकमत स अलग हो जाता ह और वहा शीआओ क पहल हकमत क़ायम हो जाती ह इसक तक़रबन बावन साल बाद 961 AD म6 शीआओ क ज़Sरए

द1नया का पहला IडKी दन वाला मदरसा एक मिHजद म6 खलता ह िजस जामअ अज़हर कहा जाता ह इसक बाद स ह द1नया म6 जगह जगह IडगSरय0 का सलसला श होता हय ज़माना हज़र सललाह अलह व सलम क तीन सौ चालस साल बाद का ह इसक बाद स इस उमत क लोग र]ता र]ता IडगSरय0 क ब1नयाद पर आलम और जाहल क दो तबक0 म6 बटन लग ईसाइय0 और दसर क़ौम0 न भी IडKी दना शीआओ स सीखा ह इसीलए द1नया क सब स परानी यनीवरसट जामअ अज़हर कहलाती ह 1174 AD म6 सलाहVीन अ`यबी मb क हाकम बन उह0न इस मदरस को बद करवा दया था उनक इतक़ाल क बाद जब उनक औलाद मb क हकमत सभालती ह तो उह0न मदरस को फर स खलवाया इसक बाद स य मदरसा सिनय0 का हो गया पस जानना चाहए क अगर आलम होन क लए IडKी शतE होती और बग़र IडKी क लोग इम होन क बावजद जाहल कहलात तो हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क तक़रबन साढ़ तीन सौ साल बाद तक उमत जाहल नह थी और य काम ख़लफाndashए-राशदन म6 स कोई न कोई ज़र श करता [वाह अरब म6 या अरब क बाहर

3mdashनहज नबवत और मतलफ़ जमाअत - दरअसल इस क़Hम का IडKी वाला मदरसा भी उमत म6 दन सीखन सखान क लए एक जमाअत क तरह ह (जस क और दगर जमाअत6 ह3 मसलन तबलग़ खानक़ाह जमाअत इHलामी अहल हदस वग़रह) जो क हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क कई सौ साल बाद वजद म6 आता ह मगर इस जमाअत(मदरसा) क ज़रए लोग बलउमम बाइचास ह दन सीख पात ह3 क उनक बड़0 न बचपन म6 उनको इस जमाअत म6 शामल कया तो ठYक वरना जब इसान बालग़ होता ह और उस दन पर चलन का और उसको सीखन का शौक़ पदा होता ह तो उस का इस जमाअत म6 शामल होन का वampत ख़Qम होन लगता ह जबक दसर जमाअत0 म6 शामल होन का वampत श होता ह और अगर कोई बड़ी उd म6 इस म6 शामल होना चाह तो य काम उसक लए बलउमम मिeकल साबत होता ह नबय0 क नहज लोग0 क दन सीखन सखान क लए आसान होती ह उस हर उd का इसान आसानी स सीख लता ह मदन म6 आकर हर उd क लोग आसानी स दन सीख लत थ द1नया म6 कोई ऐसा नबी नह आया िजस न दन क कोई ऐसी नहज पश क हो िजस म6 शामल होन क उd उस वampत खQम होन लग जबक शामल होन वाल म6 अampल व होश आ जाए और वो बालग़ हो चका हो या पOचीस तीस

साल स Wयादा उd का हो चका हो बिक नबय0 का तरक़ा दनी माहौल व मआशरा क़ायम करन का होता था ताक हर कोई उस म6 रहकर आसानी स दन सीख ल [वाह उसक उd सQतर अHसी साल या इस स भी Wयादा Uय0 ना हो अलबQता बाज़ नबीय0 का लोग0 न साथ नह दया िजसक वजह स उनको ऐसा माहौल व मआशरा क़ायम करन क नौबत ना आ पाई म3 य नह कहता क इन जमाअत0 स उमत को फायदा नह होता ह या क इन म6 स कोई ग़लत ह िजनका म3 न ऊपर िज़T कया ह ग़लत तो वो ह जो शकE करता ह या ख़राफाती बदअत म6 मaतला ह [वाह वो कोई भी हो इसक Wयादा तफसील क यहा गजाइश नह ह दरअसल य तमाम जमाअत6 क़रआन व सनत को ह लाग करना चाहती ह3 हा क़रआन और सनत लाग करन का तरक़ा इनका अपना-अपना ह िजसक वजह स य एक दसर स इि[तलाफ़ करती ह3 इनक आपसी इि[तलाफ़ात क एक बड़ी वजह इनक बड़0 क लख लटरचर भी ह3 िजसक वजह स इन म6 क बाज़ दसर पर इHलाम स ख़ाSरज होन का फतवा तक द डालत ह3 यहा इनक लटरचर क इि[तलाफ़ात को बयान करन क गजाइश नह ह इसलए यहा म3 सफE इन जमाअत0 क दन फलान क तरक़ का िज़T कर रहा ह

दन को उमत म6 क़ायम करन क हर एक क अपन-अपन अलग-अलग ब1नयाद उसल ह3 तबलग़ का नज़Sरया य ह क असल काम मसलमान0 म6 चल फर कर दावत दन का ह ताक जब दावत द6ग तो ख़द का दन पर चलना आसान हो जाएगा और जब अपन लोग दन पर चलन लग6ग तो ग़र0 क लए भी दन क़बल करना आसान हो सकता ह इसलए वो बलउमम बालग़ लोग0 को अपनी जमाअत म6 शामल करत ह3 ताक बOच अपन बड़0 स दन सीख ल6 या बड़ होकर वो भी उनक जमाअत म6 शामल हो जाए इसक लए वो इस जमाअत क बानी इयास साहब क ज़Sरए क़ायम करदा नहज को पश करत ह3 मदरस वाल0 क ब1नयाद नज़Sरयात य ह3 क जब बOच0 म6 दन आ जाएगा तो वो बड़ होकर बड़0 तक दन पहचाएग खानक़ाह का नज़रया य ह क असल काम क़लब क इसलाह ह और नfस पर क़ाब पाना ह इसक लए िज़T क कसरत ज़र ह और जब दल िज़दा होगा तो दन पर चलना आसान होगा अहल हदस का मानना य ह क असल काम उमत क आमाल को बख़ार और मिHलम वग़रह म6 बताए गए तरक़ क मताबक़ लाना ह और उह6 ऐसी बात0 स रोकना ह िजस स क वो उन राHत0 स भी gक जाए िजन पर चलन स शकE क तरफ जान का ज़रा भी ख़तरा हो और दन क दावत को ग़र0 म6 आम करना ह जमाअत इHलामी का नज़Sरया भी कछ

मलता जलता ह वो भी ग़र0 म6 दावत पहचान को तरजीह दत ह3 दरअसल य मौज तफसील तलब ह िजसक यहा गजाइश नह ह इसलए म3 न ऊपर हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान क और आप क बाद ख़लफा-ए-राशदन और उनक बाद क एक ज़मान तक दन सीखन सखान क नहज का इि[तसारन िज़T कर दया ह और उनक बाद क़ायम हई अलग-अलग जमाअत0 क दन फलान क नहज का म[तसर सा जाइज़ा उसक नीच पश कर दया ह ताक जो लोग नहज नब_वत और दसर नहज का फक़E जानना चाह6 उह6 इस जा1नब रहबर मल जाए और जो कोई खद ना समझना चाह उस तो द1नया म6 समझाना मिeकल ह अब ज़ाहर सी बात ह क कोई भी आसमानी रहबर द1नया म6 नहज नब_वत को क़ायम करन आता ह और उसक लए यह बहतरन राHता ह दसर राHत तो उस वampत क लए होत ह3 जब क उमत म6 नहज-नब_वत क़ायम ना हो चक हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अलावा इस उमत का कोई नबी नह और आप क लाई गई शरअत या1न कताबलाह(क़रआन) और सनत रसललाह(या1न आप क ज़Sरए द गई तालमात) क अलावा इस उमत क लए कोई दसर शरअत नह इसलए लािज़मन इस उमत म6 नहज नब_वत क़ायम करन का

तरक़ा यह ह क क़रआन व सनत को आपक उमत म6 उस तरक़ पर क़ायम कया जाए जो क ख़द आप सललाह अलह वसलम न कर क दखलाया ह या आप न उसक तालम द ह मिHलम म6 ह क ईसा अलहHसलाम इस उमत म6 इसाफ पसद इमाम और आदल हाकम क हसयत स ह0ग अब दाउद म6 ह महद अलहHसलाम लोग0 म6 उनक नबी क सनत को जार कर6ग इaन माजा म6 महद अलहHसलाम को ख़लफ़तलाह कहा गया ह 4 ndash या महदamp अल(ह)सलाम दनया क तमाम इसान- को राह रा)त पर लआएग अब रह य बात क Uया महद अल द1नया क तमाम लोग0 को हदायत द द6ग और द1नया क तमाम लोग0 म6 इसाफ क़ायम कर6ग बाज़ लोग मर मतािलक़ य कहत ह3 क म3 न कसी स य कहा क 2012 या 2013 तक सार द1नया म6 इHलाम फल जाएगा तो जानना चाहए क य बात क़तअन दgHत नह ह या क मर बात को समझन म6 कसी स ग़लत फहमी हई ह Uय0क ग़ब का इम अलाह ह क पास ह आग Uया होना ह य अलाह को मालम ह मज़ीद य क अलाह न द1नया म6 क़रआन करम क ज़Sरए हर इसान को हदायत क राह दखाई ह मगर जो कोई इस को क़बल करता ह वो अपन लए और जो कोई इस ठकराता

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 8: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

फदE को अहादस को एक दसर को बतान का और सीखन सखान का हक़ था और अगर कोई कसी क अमल पर हदस क ब1नयाद पर एतराज़ करता तो उस स य नह पछा जाता क त कहा का फ़ाSरग़ ह या क त जाहल ह त हदस नह बता सकता इसलए क पछन वाल क पास भी कोई IडKी नह होती थी और वो भी कह का फ़ाSरग़ नह होता था बिक लोग ह उसको आलम कहत थ इस उमत म6 IडKी मलन क Sरवाज स पहल तक हर उमती को उस क नबी क बात कहन का हक़ था और हर बद को उसक रब क बात यानी क़रआन क बात कहन का हक़ था उस वampत सफE इतना होता था क लोग हदस बयान करन वाल स चाह वो कोई भी हो य पछत थ क तझ तक य हदस कस तरह पहची या त न य हदस कस स सनी फर अगर उस क बात सहह होती तो ठYक वरना उसक बात0 क इHलाह क जाती थी मगर य नह कहा जाता था क तर पास कोई IडKी नह इसलए तझ हदस बयान करन का हक़ ह नह पस उस ज़मान म6 दन आसान था और लोग दन पर शौक़ स चलत थ और उमत आलम और जाहल क दो तबक़ म6 बट हई नह समझी जाती थी बस इतना था क कसी क पास दन का इम कम था तो कसी क पास Wयादा यानी कोई कम इम वाला होता तो कोई Wयादा इम वाला होता

2- डी वाल मदरस कब श हए - य बात सहह ह क द1नया म6 ऐसा कोई नबी नह आया िजस न कोई ऐसा मदरसा खोला हो िजस म6 बOच0 को इकZा कर क कताब0 क राHत दन सखाया जाता हो फर सालाना इितहान ल ल कर छह सात साल क बाद उस को आलम या मौलवी होन क IडKी द जाती हो ताक उनक सवा िजनको IडKी मल हो बाक़ लोग [वाह उनक पास सहह इम हो या ना हो हर हाल म6 जाहल कहलाए य भी सहह ह क खलफ़ाए राशदन म6 स भी कसी न ऐसा कोई मदरसा नह खोला जहा बOच0 को उनक अपन0 स दर कर क कसी मकान म6 इकZा कर क कताब0 क राHत दन सखाया जाता हो फर सालाना इितहान वग़रह लकर छह सात साल बाद उनको मौलवी या आलम होन क IडKी द जाती हो ऐसा मदरसा ना उह0न अरब म6 कह खोला और न ह अरब क बाहर कह बात दरअसल यह ह क उनक ज़मान तक उमत म6 कताब एक ह थी और वो था क़रआन और अकसर लोग अहादस को ज़बानी याद करत थ और एक दसर को याद करात थपस जब क कताब ह एक थी तो Iडगर का मदरसा कहा स होता और अगर कसी को ऐसा लगता हो क उस ज़मान म6 आज क तज़E का मदरसा था तो मझ उस का नाम बता द और य बताए क वो कहा थाऔर उसम6 कतन बOच पढ़त थऔर कौन-कौन

स सहाबा उस म6 कतन कतन घट पढ़ात थ दरअसल उस ज़मान म6 लखन पढ़न का उममी मतलब य समझा जाता था क लोग कसी बात को लखना सीख ल6 और लखी बात0 को पढ़ना सीख ल6 मगर इस क लए कोई IडKी नह मलती थी और ना ह आज क तज़E का कोई इितहान होता था और न ह उमत आलम और जाहल क दो तबक़0 म6 IडKी क ब1नयाद पर बट हई थी बाज़ लोग अपनी नासमझी म6 यहा तक बोल जात ह3 क हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 स]फा मदरसा था तो उनको जानना चाहए क स]फा पर वो लोग रहत थ िजनको उनक घर वाल 1नकाल दत थ और वो भाग कर अपन ईमान को बचान क लए मदना आ जात थ और उनक पास कोई झ0पड़ी भी बनान क गजाइश नह होती थी फर जब वो महनत मज़दर करत या अलाह पाक उनक लए रहन का कोई दसरा इ1तज़ाम कर दत तो य वहा स हट कर अपन घर म6 रहन लगत मUका क महािजरन म6 स अUसर व बशतर सहाबा स]फा वाल नह ह3 इसलए क हजर अकरम सललाह अलह व सलम न उनका और असार का भाई चारा करा दया था इसलए उह6 स]फा पर बठन क नौबत नह आई और असार इसलए नह Uय0क उनका मदन म ख़द का घर होता था पस य [याल पर तरह गलत ह क स]फा कसी मदरस का नाम ह जहा पर

कोई आलम क IडKी मलती थी बिक अरबी म6 स]फा चबतर को बोलत थ य मिHजद नबवी म6 एक कनार पर मजबर लोग0 क वाHत बनवाया गया था हज़रत उमर रज़ी न अपनी Gखलाफत क ज़मान म6 यहा पहल क तरह बठन को मना कर दया था हजर अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप सललाह अलह व सलम क बाद एक ज़मान तक लोग माहौल व मआशर म6 दन सीखत थ और हदस6 आम तौर पर एक दसर स सन कर याद कर लत थ अहादस लख कर रखन का Sरवाज कम था उस ज़मान म6 दन सीखन या क़रआन करम को याद करन क ख़ा1तर बOच0 क ^पटाई नह क जाती थी बिक बOच अपन बड़0 को दन पर चलता दख कर और दन क बात6 सनत सनात दख कर अपन शौक़ स हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अहादस और क़रआन करम क कछ सरत6 याद कर लत थ लोग दनी माहौल व मआशर क क़ायम होन क वजह स आसानी स अपन माहौल व मआशर म6 रहकर दन सीख लत थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप क बाद एक ज़मान तक वो लोग जो मदन स बाहर रहत थ और नए-नए मसलमान होत थ उन म6 स कछ लोग कभी-कभी चद दन0 क लए या चद घट0 क लए मदना मन_वरा आत थ और मदना मन_वरा क

दनी माहौल म6 रहकर और हज़र सललाह अलह व सलम क या महािजरन व असार क बात6 सन कर आसानी स दन सीख लत थ और फर यहा क हालात और यहा क बात6 अपन क़बील क लोग0 को बयान करत थ और वो भी उन स आसानी स दन सीख लत और दन पर अमल करन लगत थ इसक अलावा य था क हजर अकरम सऔर आप क बाद खलफ़ाए राशदन मदना मन_वरा क कछ असहाब कराम को मदना मन_वरा क बाहर अलग- अलग इलाक0 म6 कभी-कभी भजत रहत थ ताक वो जाकर वहा क लोग0 को उनक माहौल व मआशर म6 रहकर अपन क़ौल व फ़ल (अमल) स दन सखाए इसक लए वहा कोई IडKी वाला मदरसा नह होता था हज़रत अल रज़ी का इतकाल छह सौ इUसठ ईसवी म6 हआ ह उनक बाद हज़रत अमीर मआ^वया रज़ी इHलामी हकमत क हाकम बन यहा स बन उम`या क हकमत श होती ह और सात सौ पचास ईसवी तक रहती ह इसक बाद बन अaबासया क हकमत श होती ह हान रशीद बन अaबासया क पाचव6 हाकम ह3 उनका इतक़ाल 809 AD म6 होता ह उनक इतक़ाल क सौ साल बाद 909 AD म6 मb बन अaबासया क हकमत स अलग हो जाता ह और वहा शीआओ क पहल हकमत क़ायम हो जाती ह इसक तक़रबन बावन साल बाद 961 AD म6 शीआओ क ज़Sरए

द1नया का पहला IडKी दन वाला मदरसा एक मिHजद म6 खलता ह िजस जामअ अज़हर कहा जाता ह इसक बाद स ह द1नया म6 जगह जगह IडगSरय0 का सलसला श होता हय ज़माना हज़र सललाह अलह व सलम क तीन सौ चालस साल बाद का ह इसक बाद स इस उमत क लोग र]ता र]ता IडगSरय0 क ब1नयाद पर आलम और जाहल क दो तबक0 म6 बटन लग ईसाइय0 और दसर क़ौम0 न भी IडKी दना शीआओ स सीखा ह इसीलए द1नया क सब स परानी यनीवरसट जामअ अज़हर कहलाती ह 1174 AD म6 सलाहVीन अ`यबी मb क हाकम बन उह0न इस मदरस को बद करवा दया था उनक इतक़ाल क बाद जब उनक औलाद मb क हकमत सभालती ह तो उह0न मदरस को फर स खलवाया इसक बाद स य मदरसा सिनय0 का हो गया पस जानना चाहए क अगर आलम होन क लए IडKी शतE होती और बग़र IडKी क लोग इम होन क बावजद जाहल कहलात तो हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क तक़रबन साढ़ तीन सौ साल बाद तक उमत जाहल नह थी और य काम ख़लफाndashए-राशदन म6 स कोई न कोई ज़र श करता [वाह अरब म6 या अरब क बाहर

3mdashनहज नबवत और मतलफ़ जमाअत - दरअसल इस क़Hम का IडKी वाला मदरसा भी उमत म6 दन सीखन सखान क लए एक जमाअत क तरह ह (जस क और दगर जमाअत6 ह3 मसलन तबलग़ खानक़ाह जमाअत इHलामी अहल हदस वग़रह) जो क हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क कई सौ साल बाद वजद म6 आता ह मगर इस जमाअत(मदरसा) क ज़रए लोग बलउमम बाइचास ह दन सीख पात ह3 क उनक बड़0 न बचपन म6 उनको इस जमाअत म6 शामल कया तो ठYक वरना जब इसान बालग़ होता ह और उस दन पर चलन का और उसको सीखन का शौक़ पदा होता ह तो उस का इस जमाअत म6 शामल होन का वampत ख़Qम होन लगता ह जबक दसर जमाअत0 म6 शामल होन का वampत श होता ह और अगर कोई बड़ी उd म6 इस म6 शामल होना चाह तो य काम उसक लए बलउमम मिeकल साबत होता ह नबय0 क नहज लोग0 क दन सीखन सखान क लए आसान होती ह उस हर उd का इसान आसानी स सीख लता ह मदन म6 आकर हर उd क लोग आसानी स दन सीख लत थ द1नया म6 कोई ऐसा नबी नह आया िजस न दन क कोई ऐसी नहज पश क हो िजस म6 शामल होन क उd उस वampत खQम होन लग जबक शामल होन वाल म6 अampल व होश आ जाए और वो बालग़ हो चका हो या पOचीस तीस

साल स Wयादा उd का हो चका हो बिक नबय0 का तरक़ा दनी माहौल व मआशरा क़ायम करन का होता था ताक हर कोई उस म6 रहकर आसानी स दन सीख ल [वाह उसक उd सQतर अHसी साल या इस स भी Wयादा Uय0 ना हो अलबQता बाज़ नबीय0 का लोग0 न साथ नह दया िजसक वजह स उनको ऐसा माहौल व मआशरा क़ायम करन क नौबत ना आ पाई म3 य नह कहता क इन जमाअत0 स उमत को फायदा नह होता ह या क इन म6 स कोई ग़लत ह िजनका म3 न ऊपर िज़T कया ह ग़लत तो वो ह जो शकE करता ह या ख़राफाती बदअत म6 मaतला ह [वाह वो कोई भी हो इसक Wयादा तफसील क यहा गजाइश नह ह दरअसल य तमाम जमाअत6 क़रआन व सनत को ह लाग करना चाहती ह3 हा क़रआन और सनत लाग करन का तरक़ा इनका अपना-अपना ह िजसक वजह स य एक दसर स इि[तलाफ़ करती ह3 इनक आपसी इि[तलाफ़ात क एक बड़ी वजह इनक बड़0 क लख लटरचर भी ह3 िजसक वजह स इन म6 क बाज़ दसर पर इHलाम स ख़ाSरज होन का फतवा तक द डालत ह3 यहा इनक लटरचर क इि[तलाफ़ात को बयान करन क गजाइश नह ह इसलए यहा म3 सफE इन जमाअत0 क दन फलान क तरक़ का िज़T कर रहा ह

दन को उमत म6 क़ायम करन क हर एक क अपन-अपन अलग-अलग ब1नयाद उसल ह3 तबलग़ का नज़Sरया य ह क असल काम मसलमान0 म6 चल फर कर दावत दन का ह ताक जब दावत द6ग तो ख़द का दन पर चलना आसान हो जाएगा और जब अपन लोग दन पर चलन लग6ग तो ग़र0 क लए भी दन क़बल करना आसान हो सकता ह इसलए वो बलउमम बालग़ लोग0 को अपनी जमाअत म6 शामल करत ह3 ताक बOच अपन बड़0 स दन सीख ल6 या बड़ होकर वो भी उनक जमाअत म6 शामल हो जाए इसक लए वो इस जमाअत क बानी इयास साहब क ज़Sरए क़ायम करदा नहज को पश करत ह3 मदरस वाल0 क ब1नयाद नज़Sरयात य ह3 क जब बOच0 म6 दन आ जाएगा तो वो बड़ होकर बड़0 तक दन पहचाएग खानक़ाह का नज़रया य ह क असल काम क़लब क इसलाह ह और नfस पर क़ाब पाना ह इसक लए िज़T क कसरत ज़र ह और जब दल िज़दा होगा तो दन पर चलना आसान होगा अहल हदस का मानना य ह क असल काम उमत क आमाल को बख़ार और मिHलम वग़रह म6 बताए गए तरक़ क मताबक़ लाना ह और उह6 ऐसी बात0 स रोकना ह िजस स क वो उन राHत0 स भी gक जाए िजन पर चलन स शकE क तरफ जान का ज़रा भी ख़तरा हो और दन क दावत को ग़र0 म6 आम करना ह जमाअत इHलामी का नज़Sरया भी कछ

मलता जलता ह वो भी ग़र0 म6 दावत पहचान को तरजीह दत ह3 दरअसल य मौज तफसील तलब ह िजसक यहा गजाइश नह ह इसलए म3 न ऊपर हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान क और आप क बाद ख़लफा-ए-राशदन और उनक बाद क एक ज़मान तक दन सीखन सखान क नहज का इि[तसारन िज़T कर दया ह और उनक बाद क़ायम हई अलग-अलग जमाअत0 क दन फलान क नहज का म[तसर सा जाइज़ा उसक नीच पश कर दया ह ताक जो लोग नहज नब_वत और दसर नहज का फक़E जानना चाह6 उह6 इस जा1नब रहबर मल जाए और जो कोई खद ना समझना चाह उस तो द1नया म6 समझाना मिeकल ह अब ज़ाहर सी बात ह क कोई भी आसमानी रहबर द1नया म6 नहज नब_वत को क़ायम करन आता ह और उसक लए यह बहतरन राHता ह दसर राHत तो उस वampत क लए होत ह3 जब क उमत म6 नहज-नब_वत क़ायम ना हो चक हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अलावा इस उमत का कोई नबी नह और आप क लाई गई शरअत या1न कताबलाह(क़रआन) और सनत रसललाह(या1न आप क ज़Sरए द गई तालमात) क अलावा इस उमत क लए कोई दसर शरअत नह इसलए लािज़मन इस उमत म6 नहज नब_वत क़ायम करन का

तरक़ा यह ह क क़रआन व सनत को आपक उमत म6 उस तरक़ पर क़ायम कया जाए जो क ख़द आप सललाह अलह वसलम न कर क दखलाया ह या आप न उसक तालम द ह मिHलम म6 ह क ईसा अलहHसलाम इस उमत म6 इसाफ पसद इमाम और आदल हाकम क हसयत स ह0ग अब दाउद म6 ह महद अलहHसलाम लोग0 म6 उनक नबी क सनत को जार कर6ग इaन माजा म6 महद अलहHसलाम को ख़लफ़तलाह कहा गया ह 4 ndash या महदamp अल(ह)सलाम दनया क तमाम इसान- को राह रा)त पर लआएग अब रह य बात क Uया महद अल द1नया क तमाम लोग0 को हदायत द द6ग और द1नया क तमाम लोग0 म6 इसाफ क़ायम कर6ग बाज़ लोग मर मतािलक़ य कहत ह3 क म3 न कसी स य कहा क 2012 या 2013 तक सार द1नया म6 इHलाम फल जाएगा तो जानना चाहए क य बात क़तअन दgHत नह ह या क मर बात को समझन म6 कसी स ग़लत फहमी हई ह Uय0क ग़ब का इम अलाह ह क पास ह आग Uया होना ह य अलाह को मालम ह मज़ीद य क अलाह न द1नया म6 क़रआन करम क ज़Sरए हर इसान को हदायत क राह दखाई ह मगर जो कोई इस को क़बल करता ह वो अपन लए और जो कोई इस ठकराता

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 9: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

2- डी वाल मदरस कब श हए - य बात सहह ह क द1नया म6 ऐसा कोई नबी नह आया िजस न कोई ऐसा मदरसा खोला हो िजस म6 बOच0 को इकZा कर क कताब0 क राHत दन सखाया जाता हो फर सालाना इितहान ल ल कर छह सात साल क बाद उस को आलम या मौलवी होन क IडKी द जाती हो ताक उनक सवा िजनको IडKी मल हो बाक़ लोग [वाह उनक पास सहह इम हो या ना हो हर हाल म6 जाहल कहलाए य भी सहह ह क खलफ़ाए राशदन म6 स भी कसी न ऐसा कोई मदरसा नह खोला जहा बOच0 को उनक अपन0 स दर कर क कसी मकान म6 इकZा कर क कताब0 क राHत दन सखाया जाता हो फर सालाना इितहान वग़रह लकर छह सात साल बाद उनको मौलवी या आलम होन क IडKी द जाती हो ऐसा मदरसा ना उह0न अरब म6 कह खोला और न ह अरब क बाहर कह बात दरअसल यह ह क उनक ज़मान तक उमत म6 कताब एक ह थी और वो था क़रआन और अकसर लोग अहादस को ज़बानी याद करत थ और एक दसर को याद करात थपस जब क कताब ह एक थी तो Iडगर का मदरसा कहा स होता और अगर कसी को ऐसा लगता हो क उस ज़मान म6 आज क तज़E का मदरसा था तो मझ उस का नाम बता द और य बताए क वो कहा थाऔर उसम6 कतन बOच पढ़त थऔर कौन-कौन

स सहाबा उस म6 कतन कतन घट पढ़ात थ दरअसल उस ज़मान म6 लखन पढ़न का उममी मतलब य समझा जाता था क लोग कसी बात को लखना सीख ल6 और लखी बात0 को पढ़ना सीख ल6 मगर इस क लए कोई IडKी नह मलती थी और ना ह आज क तज़E का कोई इितहान होता था और न ह उमत आलम और जाहल क दो तबक़0 म6 IडKी क ब1नयाद पर बट हई थी बाज़ लोग अपनी नासमझी म6 यहा तक बोल जात ह3 क हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 स]फा मदरसा था तो उनको जानना चाहए क स]फा पर वो लोग रहत थ िजनको उनक घर वाल 1नकाल दत थ और वो भाग कर अपन ईमान को बचान क लए मदना आ जात थ और उनक पास कोई झ0पड़ी भी बनान क गजाइश नह होती थी फर जब वो महनत मज़दर करत या अलाह पाक उनक लए रहन का कोई दसरा इ1तज़ाम कर दत तो य वहा स हट कर अपन घर म6 रहन लगत मUका क महािजरन म6 स अUसर व बशतर सहाबा स]फा वाल नह ह3 इसलए क हजर अकरम सललाह अलह व सलम न उनका और असार का भाई चारा करा दया था इसलए उह6 स]फा पर बठन क नौबत नह आई और असार इसलए नह Uय0क उनका मदन म ख़द का घर होता था पस य [याल पर तरह गलत ह क स]फा कसी मदरस का नाम ह जहा पर

कोई आलम क IडKी मलती थी बिक अरबी म6 स]फा चबतर को बोलत थ य मिHजद नबवी म6 एक कनार पर मजबर लोग0 क वाHत बनवाया गया था हज़रत उमर रज़ी न अपनी Gखलाफत क ज़मान म6 यहा पहल क तरह बठन को मना कर दया था हजर अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप सललाह अलह व सलम क बाद एक ज़मान तक लोग माहौल व मआशर म6 दन सीखत थ और हदस6 आम तौर पर एक दसर स सन कर याद कर लत थ अहादस लख कर रखन का Sरवाज कम था उस ज़मान म6 दन सीखन या क़रआन करम को याद करन क ख़ा1तर बOच0 क ^पटाई नह क जाती थी बिक बOच अपन बड़0 को दन पर चलता दख कर और दन क बात6 सनत सनात दख कर अपन शौक़ स हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अहादस और क़रआन करम क कछ सरत6 याद कर लत थ लोग दनी माहौल व मआशर क क़ायम होन क वजह स आसानी स अपन माहौल व मआशर म6 रहकर दन सीख लत थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप क बाद एक ज़मान तक वो लोग जो मदन स बाहर रहत थ और नए-नए मसलमान होत थ उन म6 स कछ लोग कभी-कभी चद दन0 क लए या चद घट0 क लए मदना मन_वरा आत थ और मदना मन_वरा क

दनी माहौल म6 रहकर और हज़र सललाह अलह व सलम क या महािजरन व असार क बात6 सन कर आसानी स दन सीख लत थ और फर यहा क हालात और यहा क बात6 अपन क़बील क लोग0 को बयान करत थ और वो भी उन स आसानी स दन सीख लत और दन पर अमल करन लगत थ इसक अलावा य था क हजर अकरम सऔर आप क बाद खलफ़ाए राशदन मदना मन_वरा क कछ असहाब कराम को मदना मन_वरा क बाहर अलग- अलग इलाक0 म6 कभी-कभी भजत रहत थ ताक वो जाकर वहा क लोग0 को उनक माहौल व मआशर म6 रहकर अपन क़ौल व फ़ल (अमल) स दन सखाए इसक लए वहा कोई IडKी वाला मदरसा नह होता था हज़रत अल रज़ी का इतकाल छह सौ इUसठ ईसवी म6 हआ ह उनक बाद हज़रत अमीर मआ^वया रज़ी इHलामी हकमत क हाकम बन यहा स बन उम`या क हकमत श होती ह और सात सौ पचास ईसवी तक रहती ह इसक बाद बन अaबासया क हकमत श होती ह हान रशीद बन अaबासया क पाचव6 हाकम ह3 उनका इतक़ाल 809 AD म6 होता ह उनक इतक़ाल क सौ साल बाद 909 AD म6 मb बन अaबासया क हकमत स अलग हो जाता ह और वहा शीआओ क पहल हकमत क़ायम हो जाती ह इसक तक़रबन बावन साल बाद 961 AD म6 शीआओ क ज़Sरए

द1नया का पहला IडKी दन वाला मदरसा एक मिHजद म6 खलता ह िजस जामअ अज़हर कहा जाता ह इसक बाद स ह द1नया म6 जगह जगह IडगSरय0 का सलसला श होता हय ज़माना हज़र सललाह अलह व सलम क तीन सौ चालस साल बाद का ह इसक बाद स इस उमत क लोग र]ता र]ता IडगSरय0 क ब1नयाद पर आलम और जाहल क दो तबक0 म6 बटन लग ईसाइय0 और दसर क़ौम0 न भी IडKी दना शीआओ स सीखा ह इसीलए द1नया क सब स परानी यनीवरसट जामअ अज़हर कहलाती ह 1174 AD म6 सलाहVीन अ`यबी मb क हाकम बन उह0न इस मदरस को बद करवा दया था उनक इतक़ाल क बाद जब उनक औलाद मb क हकमत सभालती ह तो उह0न मदरस को फर स खलवाया इसक बाद स य मदरसा सिनय0 का हो गया पस जानना चाहए क अगर आलम होन क लए IडKी शतE होती और बग़र IडKी क लोग इम होन क बावजद जाहल कहलात तो हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क तक़रबन साढ़ तीन सौ साल बाद तक उमत जाहल नह थी और य काम ख़लफाndashए-राशदन म6 स कोई न कोई ज़र श करता [वाह अरब म6 या अरब क बाहर

3mdashनहज नबवत और मतलफ़ जमाअत - दरअसल इस क़Hम का IडKी वाला मदरसा भी उमत म6 दन सीखन सखान क लए एक जमाअत क तरह ह (जस क और दगर जमाअत6 ह3 मसलन तबलग़ खानक़ाह जमाअत इHलामी अहल हदस वग़रह) जो क हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क कई सौ साल बाद वजद म6 आता ह मगर इस जमाअत(मदरसा) क ज़रए लोग बलउमम बाइचास ह दन सीख पात ह3 क उनक बड़0 न बचपन म6 उनको इस जमाअत म6 शामल कया तो ठYक वरना जब इसान बालग़ होता ह और उस दन पर चलन का और उसको सीखन का शौक़ पदा होता ह तो उस का इस जमाअत म6 शामल होन का वampत ख़Qम होन लगता ह जबक दसर जमाअत0 म6 शामल होन का वampत श होता ह और अगर कोई बड़ी उd म6 इस म6 शामल होना चाह तो य काम उसक लए बलउमम मिeकल साबत होता ह नबय0 क नहज लोग0 क दन सीखन सखान क लए आसान होती ह उस हर उd का इसान आसानी स सीख लता ह मदन म6 आकर हर उd क लोग आसानी स दन सीख लत थ द1नया म6 कोई ऐसा नबी नह आया िजस न दन क कोई ऐसी नहज पश क हो िजस म6 शामल होन क उd उस वampत खQम होन लग जबक शामल होन वाल म6 अampल व होश आ जाए और वो बालग़ हो चका हो या पOचीस तीस

साल स Wयादा उd का हो चका हो बिक नबय0 का तरक़ा दनी माहौल व मआशरा क़ायम करन का होता था ताक हर कोई उस म6 रहकर आसानी स दन सीख ल [वाह उसक उd सQतर अHसी साल या इस स भी Wयादा Uय0 ना हो अलबQता बाज़ नबीय0 का लोग0 न साथ नह दया िजसक वजह स उनको ऐसा माहौल व मआशरा क़ायम करन क नौबत ना आ पाई म3 य नह कहता क इन जमाअत0 स उमत को फायदा नह होता ह या क इन म6 स कोई ग़लत ह िजनका म3 न ऊपर िज़T कया ह ग़लत तो वो ह जो शकE करता ह या ख़राफाती बदअत म6 मaतला ह [वाह वो कोई भी हो इसक Wयादा तफसील क यहा गजाइश नह ह दरअसल य तमाम जमाअत6 क़रआन व सनत को ह लाग करना चाहती ह3 हा क़रआन और सनत लाग करन का तरक़ा इनका अपना-अपना ह िजसक वजह स य एक दसर स इि[तलाफ़ करती ह3 इनक आपसी इि[तलाफ़ात क एक बड़ी वजह इनक बड़0 क लख लटरचर भी ह3 िजसक वजह स इन म6 क बाज़ दसर पर इHलाम स ख़ाSरज होन का फतवा तक द डालत ह3 यहा इनक लटरचर क इि[तलाफ़ात को बयान करन क गजाइश नह ह इसलए यहा म3 सफE इन जमाअत0 क दन फलान क तरक़ का िज़T कर रहा ह

दन को उमत म6 क़ायम करन क हर एक क अपन-अपन अलग-अलग ब1नयाद उसल ह3 तबलग़ का नज़Sरया य ह क असल काम मसलमान0 म6 चल फर कर दावत दन का ह ताक जब दावत द6ग तो ख़द का दन पर चलना आसान हो जाएगा और जब अपन लोग दन पर चलन लग6ग तो ग़र0 क लए भी दन क़बल करना आसान हो सकता ह इसलए वो बलउमम बालग़ लोग0 को अपनी जमाअत म6 शामल करत ह3 ताक बOच अपन बड़0 स दन सीख ल6 या बड़ होकर वो भी उनक जमाअत म6 शामल हो जाए इसक लए वो इस जमाअत क बानी इयास साहब क ज़Sरए क़ायम करदा नहज को पश करत ह3 मदरस वाल0 क ब1नयाद नज़Sरयात य ह3 क जब बOच0 म6 दन आ जाएगा तो वो बड़ होकर बड़0 तक दन पहचाएग खानक़ाह का नज़रया य ह क असल काम क़लब क इसलाह ह और नfस पर क़ाब पाना ह इसक लए िज़T क कसरत ज़र ह और जब दल िज़दा होगा तो दन पर चलना आसान होगा अहल हदस का मानना य ह क असल काम उमत क आमाल को बख़ार और मिHलम वग़रह म6 बताए गए तरक़ क मताबक़ लाना ह और उह6 ऐसी बात0 स रोकना ह िजस स क वो उन राHत0 स भी gक जाए िजन पर चलन स शकE क तरफ जान का ज़रा भी ख़तरा हो और दन क दावत को ग़र0 म6 आम करना ह जमाअत इHलामी का नज़Sरया भी कछ

मलता जलता ह वो भी ग़र0 म6 दावत पहचान को तरजीह दत ह3 दरअसल य मौज तफसील तलब ह िजसक यहा गजाइश नह ह इसलए म3 न ऊपर हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान क और आप क बाद ख़लफा-ए-राशदन और उनक बाद क एक ज़मान तक दन सीखन सखान क नहज का इि[तसारन िज़T कर दया ह और उनक बाद क़ायम हई अलग-अलग जमाअत0 क दन फलान क नहज का म[तसर सा जाइज़ा उसक नीच पश कर दया ह ताक जो लोग नहज नब_वत और दसर नहज का फक़E जानना चाह6 उह6 इस जा1नब रहबर मल जाए और जो कोई खद ना समझना चाह उस तो द1नया म6 समझाना मिeकल ह अब ज़ाहर सी बात ह क कोई भी आसमानी रहबर द1नया म6 नहज नब_वत को क़ायम करन आता ह और उसक लए यह बहतरन राHता ह दसर राHत तो उस वampत क लए होत ह3 जब क उमत म6 नहज-नब_वत क़ायम ना हो चक हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अलावा इस उमत का कोई नबी नह और आप क लाई गई शरअत या1न कताबलाह(क़रआन) और सनत रसललाह(या1न आप क ज़Sरए द गई तालमात) क अलावा इस उमत क लए कोई दसर शरअत नह इसलए लािज़मन इस उमत म6 नहज नब_वत क़ायम करन का

तरक़ा यह ह क क़रआन व सनत को आपक उमत म6 उस तरक़ पर क़ायम कया जाए जो क ख़द आप सललाह अलह वसलम न कर क दखलाया ह या आप न उसक तालम द ह मिHलम म6 ह क ईसा अलहHसलाम इस उमत म6 इसाफ पसद इमाम और आदल हाकम क हसयत स ह0ग अब दाउद म6 ह महद अलहHसलाम लोग0 म6 उनक नबी क सनत को जार कर6ग इaन माजा म6 महद अलहHसलाम को ख़लफ़तलाह कहा गया ह 4 ndash या महदamp अल(ह)सलाम दनया क तमाम इसान- को राह रा)त पर लआएग अब रह य बात क Uया महद अल द1नया क तमाम लोग0 को हदायत द द6ग और द1नया क तमाम लोग0 म6 इसाफ क़ायम कर6ग बाज़ लोग मर मतािलक़ य कहत ह3 क म3 न कसी स य कहा क 2012 या 2013 तक सार द1नया म6 इHलाम फल जाएगा तो जानना चाहए क य बात क़तअन दgHत नह ह या क मर बात को समझन म6 कसी स ग़लत फहमी हई ह Uय0क ग़ब का इम अलाह ह क पास ह आग Uया होना ह य अलाह को मालम ह मज़ीद य क अलाह न द1नया म6 क़रआन करम क ज़Sरए हर इसान को हदायत क राह दखाई ह मगर जो कोई इस को क़बल करता ह वो अपन लए और जो कोई इस ठकराता

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 10: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

स सहाबा उस म6 कतन कतन घट पढ़ात थ दरअसल उस ज़मान म6 लखन पढ़न का उममी मतलब य समझा जाता था क लोग कसी बात को लखना सीख ल6 और लखी बात0 को पढ़ना सीख ल6 मगर इस क लए कोई IडKी नह मलती थी और ना ह आज क तज़E का कोई इितहान होता था और न ह उमत आलम और जाहल क दो तबक़0 म6 IडKी क ब1नयाद पर बट हई थी बाज़ लोग अपनी नासमझी म6 यहा तक बोल जात ह3 क हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 स]फा मदरसा था तो उनको जानना चाहए क स]फा पर वो लोग रहत थ िजनको उनक घर वाल 1नकाल दत थ और वो भाग कर अपन ईमान को बचान क लए मदना आ जात थ और उनक पास कोई झ0पड़ी भी बनान क गजाइश नह होती थी फर जब वो महनत मज़दर करत या अलाह पाक उनक लए रहन का कोई दसरा इ1तज़ाम कर दत तो य वहा स हट कर अपन घर म6 रहन लगत मUका क महािजरन म6 स अUसर व बशतर सहाबा स]फा वाल नह ह3 इसलए क हजर अकरम सललाह अलह व सलम न उनका और असार का भाई चारा करा दया था इसलए उह6 स]फा पर बठन क नौबत नह आई और असार इसलए नह Uय0क उनका मदन म ख़द का घर होता था पस य [याल पर तरह गलत ह क स]फा कसी मदरस का नाम ह जहा पर

कोई आलम क IडKी मलती थी बिक अरबी म6 स]फा चबतर को बोलत थ य मिHजद नबवी म6 एक कनार पर मजबर लोग0 क वाHत बनवाया गया था हज़रत उमर रज़ी न अपनी Gखलाफत क ज़मान म6 यहा पहल क तरह बठन को मना कर दया था हजर अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप सललाह अलह व सलम क बाद एक ज़मान तक लोग माहौल व मआशर म6 दन सीखत थ और हदस6 आम तौर पर एक दसर स सन कर याद कर लत थ अहादस लख कर रखन का Sरवाज कम था उस ज़मान म6 दन सीखन या क़रआन करम को याद करन क ख़ा1तर बOच0 क ^पटाई नह क जाती थी बिक बOच अपन बड़0 को दन पर चलता दख कर और दन क बात6 सनत सनात दख कर अपन शौक़ स हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अहादस और क़रआन करम क कछ सरत6 याद कर लत थ लोग दनी माहौल व मआशर क क़ायम होन क वजह स आसानी स अपन माहौल व मआशर म6 रहकर दन सीख लत थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप क बाद एक ज़मान तक वो लोग जो मदन स बाहर रहत थ और नए-नए मसलमान होत थ उन म6 स कछ लोग कभी-कभी चद दन0 क लए या चद घट0 क लए मदना मन_वरा आत थ और मदना मन_वरा क

दनी माहौल म6 रहकर और हज़र सललाह अलह व सलम क या महािजरन व असार क बात6 सन कर आसानी स दन सीख लत थ और फर यहा क हालात और यहा क बात6 अपन क़बील क लोग0 को बयान करत थ और वो भी उन स आसानी स दन सीख लत और दन पर अमल करन लगत थ इसक अलावा य था क हजर अकरम सऔर आप क बाद खलफ़ाए राशदन मदना मन_वरा क कछ असहाब कराम को मदना मन_वरा क बाहर अलग- अलग इलाक0 म6 कभी-कभी भजत रहत थ ताक वो जाकर वहा क लोग0 को उनक माहौल व मआशर म6 रहकर अपन क़ौल व फ़ल (अमल) स दन सखाए इसक लए वहा कोई IडKी वाला मदरसा नह होता था हज़रत अल रज़ी का इतकाल छह सौ इUसठ ईसवी म6 हआ ह उनक बाद हज़रत अमीर मआ^वया रज़ी इHलामी हकमत क हाकम बन यहा स बन उम`या क हकमत श होती ह और सात सौ पचास ईसवी तक रहती ह इसक बाद बन अaबासया क हकमत श होती ह हान रशीद बन अaबासया क पाचव6 हाकम ह3 उनका इतक़ाल 809 AD म6 होता ह उनक इतक़ाल क सौ साल बाद 909 AD म6 मb बन अaबासया क हकमत स अलग हो जाता ह और वहा शीआओ क पहल हकमत क़ायम हो जाती ह इसक तक़रबन बावन साल बाद 961 AD म6 शीआओ क ज़Sरए

द1नया का पहला IडKी दन वाला मदरसा एक मिHजद म6 खलता ह िजस जामअ अज़हर कहा जाता ह इसक बाद स ह द1नया म6 जगह जगह IडगSरय0 का सलसला श होता हय ज़माना हज़र सललाह अलह व सलम क तीन सौ चालस साल बाद का ह इसक बाद स इस उमत क लोग र]ता र]ता IडगSरय0 क ब1नयाद पर आलम और जाहल क दो तबक0 म6 बटन लग ईसाइय0 और दसर क़ौम0 न भी IडKी दना शीआओ स सीखा ह इसीलए द1नया क सब स परानी यनीवरसट जामअ अज़हर कहलाती ह 1174 AD म6 सलाहVीन अ`यबी मb क हाकम बन उह0न इस मदरस को बद करवा दया था उनक इतक़ाल क बाद जब उनक औलाद मb क हकमत सभालती ह तो उह0न मदरस को फर स खलवाया इसक बाद स य मदरसा सिनय0 का हो गया पस जानना चाहए क अगर आलम होन क लए IडKी शतE होती और बग़र IडKी क लोग इम होन क बावजद जाहल कहलात तो हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क तक़रबन साढ़ तीन सौ साल बाद तक उमत जाहल नह थी और य काम ख़लफाndashए-राशदन म6 स कोई न कोई ज़र श करता [वाह अरब म6 या अरब क बाहर

3mdashनहज नबवत और मतलफ़ जमाअत - दरअसल इस क़Hम का IडKी वाला मदरसा भी उमत म6 दन सीखन सखान क लए एक जमाअत क तरह ह (जस क और दगर जमाअत6 ह3 मसलन तबलग़ खानक़ाह जमाअत इHलामी अहल हदस वग़रह) जो क हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क कई सौ साल बाद वजद म6 आता ह मगर इस जमाअत(मदरसा) क ज़रए लोग बलउमम बाइचास ह दन सीख पात ह3 क उनक बड़0 न बचपन म6 उनको इस जमाअत म6 शामल कया तो ठYक वरना जब इसान बालग़ होता ह और उस दन पर चलन का और उसको सीखन का शौक़ पदा होता ह तो उस का इस जमाअत म6 शामल होन का वampत ख़Qम होन लगता ह जबक दसर जमाअत0 म6 शामल होन का वampत श होता ह और अगर कोई बड़ी उd म6 इस म6 शामल होना चाह तो य काम उसक लए बलउमम मिeकल साबत होता ह नबय0 क नहज लोग0 क दन सीखन सखान क लए आसान होती ह उस हर उd का इसान आसानी स सीख लता ह मदन म6 आकर हर उd क लोग आसानी स दन सीख लत थ द1नया म6 कोई ऐसा नबी नह आया िजस न दन क कोई ऐसी नहज पश क हो िजस म6 शामल होन क उd उस वampत खQम होन लग जबक शामल होन वाल म6 अampल व होश आ जाए और वो बालग़ हो चका हो या पOचीस तीस

साल स Wयादा उd का हो चका हो बिक नबय0 का तरक़ा दनी माहौल व मआशरा क़ायम करन का होता था ताक हर कोई उस म6 रहकर आसानी स दन सीख ल [वाह उसक उd सQतर अHसी साल या इस स भी Wयादा Uय0 ना हो अलबQता बाज़ नबीय0 का लोग0 न साथ नह दया िजसक वजह स उनको ऐसा माहौल व मआशरा क़ायम करन क नौबत ना आ पाई म3 य नह कहता क इन जमाअत0 स उमत को फायदा नह होता ह या क इन म6 स कोई ग़लत ह िजनका म3 न ऊपर िज़T कया ह ग़लत तो वो ह जो शकE करता ह या ख़राफाती बदअत म6 मaतला ह [वाह वो कोई भी हो इसक Wयादा तफसील क यहा गजाइश नह ह दरअसल य तमाम जमाअत6 क़रआन व सनत को ह लाग करना चाहती ह3 हा क़रआन और सनत लाग करन का तरक़ा इनका अपना-अपना ह िजसक वजह स य एक दसर स इि[तलाफ़ करती ह3 इनक आपसी इि[तलाफ़ात क एक बड़ी वजह इनक बड़0 क लख लटरचर भी ह3 िजसक वजह स इन म6 क बाज़ दसर पर इHलाम स ख़ाSरज होन का फतवा तक द डालत ह3 यहा इनक लटरचर क इि[तलाफ़ात को बयान करन क गजाइश नह ह इसलए यहा म3 सफE इन जमाअत0 क दन फलान क तरक़ का िज़T कर रहा ह

दन को उमत म6 क़ायम करन क हर एक क अपन-अपन अलग-अलग ब1नयाद उसल ह3 तबलग़ का नज़Sरया य ह क असल काम मसलमान0 म6 चल फर कर दावत दन का ह ताक जब दावत द6ग तो ख़द का दन पर चलना आसान हो जाएगा और जब अपन लोग दन पर चलन लग6ग तो ग़र0 क लए भी दन क़बल करना आसान हो सकता ह इसलए वो बलउमम बालग़ लोग0 को अपनी जमाअत म6 शामल करत ह3 ताक बOच अपन बड़0 स दन सीख ल6 या बड़ होकर वो भी उनक जमाअत म6 शामल हो जाए इसक लए वो इस जमाअत क बानी इयास साहब क ज़Sरए क़ायम करदा नहज को पश करत ह3 मदरस वाल0 क ब1नयाद नज़Sरयात य ह3 क जब बOच0 म6 दन आ जाएगा तो वो बड़ होकर बड़0 तक दन पहचाएग खानक़ाह का नज़रया य ह क असल काम क़लब क इसलाह ह और नfस पर क़ाब पाना ह इसक लए िज़T क कसरत ज़र ह और जब दल िज़दा होगा तो दन पर चलना आसान होगा अहल हदस का मानना य ह क असल काम उमत क आमाल को बख़ार और मिHलम वग़रह म6 बताए गए तरक़ क मताबक़ लाना ह और उह6 ऐसी बात0 स रोकना ह िजस स क वो उन राHत0 स भी gक जाए िजन पर चलन स शकE क तरफ जान का ज़रा भी ख़तरा हो और दन क दावत को ग़र0 म6 आम करना ह जमाअत इHलामी का नज़Sरया भी कछ

मलता जलता ह वो भी ग़र0 म6 दावत पहचान को तरजीह दत ह3 दरअसल य मौज तफसील तलब ह िजसक यहा गजाइश नह ह इसलए म3 न ऊपर हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान क और आप क बाद ख़लफा-ए-राशदन और उनक बाद क एक ज़मान तक दन सीखन सखान क नहज का इि[तसारन िज़T कर दया ह और उनक बाद क़ायम हई अलग-अलग जमाअत0 क दन फलान क नहज का म[तसर सा जाइज़ा उसक नीच पश कर दया ह ताक जो लोग नहज नब_वत और दसर नहज का फक़E जानना चाह6 उह6 इस जा1नब रहबर मल जाए और जो कोई खद ना समझना चाह उस तो द1नया म6 समझाना मिeकल ह अब ज़ाहर सी बात ह क कोई भी आसमानी रहबर द1नया म6 नहज नब_वत को क़ायम करन आता ह और उसक लए यह बहतरन राHता ह दसर राHत तो उस वampत क लए होत ह3 जब क उमत म6 नहज-नब_वत क़ायम ना हो चक हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अलावा इस उमत का कोई नबी नह और आप क लाई गई शरअत या1न कताबलाह(क़रआन) और सनत रसललाह(या1न आप क ज़Sरए द गई तालमात) क अलावा इस उमत क लए कोई दसर शरअत नह इसलए लािज़मन इस उमत म6 नहज नब_वत क़ायम करन का

तरक़ा यह ह क क़रआन व सनत को आपक उमत म6 उस तरक़ पर क़ायम कया जाए जो क ख़द आप सललाह अलह वसलम न कर क दखलाया ह या आप न उसक तालम द ह मिHलम म6 ह क ईसा अलहHसलाम इस उमत म6 इसाफ पसद इमाम और आदल हाकम क हसयत स ह0ग अब दाउद म6 ह महद अलहHसलाम लोग0 म6 उनक नबी क सनत को जार कर6ग इaन माजा म6 महद अलहHसलाम को ख़लफ़तलाह कहा गया ह 4 ndash या महदamp अल(ह)सलाम दनया क तमाम इसान- को राह रा)त पर लआएग अब रह य बात क Uया महद अल द1नया क तमाम लोग0 को हदायत द द6ग और द1नया क तमाम लोग0 म6 इसाफ क़ायम कर6ग बाज़ लोग मर मतािलक़ य कहत ह3 क म3 न कसी स य कहा क 2012 या 2013 तक सार द1नया म6 इHलाम फल जाएगा तो जानना चाहए क य बात क़तअन दgHत नह ह या क मर बात को समझन म6 कसी स ग़लत फहमी हई ह Uय0क ग़ब का इम अलाह ह क पास ह आग Uया होना ह य अलाह को मालम ह मज़ीद य क अलाह न द1नया म6 क़रआन करम क ज़Sरए हर इसान को हदायत क राह दखाई ह मगर जो कोई इस को क़बल करता ह वो अपन लए और जो कोई इस ठकराता

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 11: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

कोई आलम क IडKी मलती थी बिक अरबी म6 स]फा चबतर को बोलत थ य मिHजद नबवी म6 एक कनार पर मजबर लोग0 क वाHत बनवाया गया था हज़रत उमर रज़ी न अपनी Gखलाफत क ज़मान म6 यहा पहल क तरह बठन को मना कर दया था हजर अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप सललाह अलह व सलम क बाद एक ज़मान तक लोग माहौल व मआशर म6 दन सीखत थ और हदस6 आम तौर पर एक दसर स सन कर याद कर लत थ अहादस लख कर रखन का Sरवाज कम था उस ज़मान म6 दन सीखन या क़रआन करम को याद करन क ख़ा1तर बOच0 क ^पटाई नह क जाती थी बिक बOच अपन बड़0 को दन पर चलता दख कर और दन क बात6 सनत सनात दख कर अपन शौक़ स हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अहादस और क़रआन करम क कछ सरत6 याद कर लत थ लोग दनी माहौल व मआशर क क़ायम होन क वजह स आसानी स अपन माहौल व मआशर म6 रहकर दन सीख लत थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 और आप क बाद एक ज़मान तक वो लोग जो मदन स बाहर रहत थ और नए-नए मसलमान होत थ उन म6 स कछ लोग कभी-कभी चद दन0 क लए या चद घट0 क लए मदना मन_वरा आत थ और मदना मन_वरा क

दनी माहौल म6 रहकर और हज़र सललाह अलह व सलम क या महािजरन व असार क बात6 सन कर आसानी स दन सीख लत थ और फर यहा क हालात और यहा क बात6 अपन क़बील क लोग0 को बयान करत थ और वो भी उन स आसानी स दन सीख लत और दन पर अमल करन लगत थ इसक अलावा य था क हजर अकरम सऔर आप क बाद खलफ़ाए राशदन मदना मन_वरा क कछ असहाब कराम को मदना मन_वरा क बाहर अलग- अलग इलाक0 म6 कभी-कभी भजत रहत थ ताक वो जाकर वहा क लोग0 को उनक माहौल व मआशर म6 रहकर अपन क़ौल व फ़ल (अमल) स दन सखाए इसक लए वहा कोई IडKी वाला मदरसा नह होता था हज़रत अल रज़ी का इतकाल छह सौ इUसठ ईसवी म6 हआ ह उनक बाद हज़रत अमीर मआ^वया रज़ी इHलामी हकमत क हाकम बन यहा स बन उम`या क हकमत श होती ह और सात सौ पचास ईसवी तक रहती ह इसक बाद बन अaबासया क हकमत श होती ह हान रशीद बन अaबासया क पाचव6 हाकम ह3 उनका इतक़ाल 809 AD म6 होता ह उनक इतक़ाल क सौ साल बाद 909 AD म6 मb बन अaबासया क हकमत स अलग हो जाता ह और वहा शीआओ क पहल हकमत क़ायम हो जाती ह इसक तक़रबन बावन साल बाद 961 AD म6 शीआओ क ज़Sरए

द1नया का पहला IडKी दन वाला मदरसा एक मिHजद म6 खलता ह िजस जामअ अज़हर कहा जाता ह इसक बाद स ह द1नया म6 जगह जगह IडगSरय0 का सलसला श होता हय ज़माना हज़र सललाह अलह व सलम क तीन सौ चालस साल बाद का ह इसक बाद स इस उमत क लोग र]ता र]ता IडगSरय0 क ब1नयाद पर आलम और जाहल क दो तबक0 म6 बटन लग ईसाइय0 और दसर क़ौम0 न भी IडKी दना शीआओ स सीखा ह इसीलए द1नया क सब स परानी यनीवरसट जामअ अज़हर कहलाती ह 1174 AD म6 सलाहVीन अ`यबी मb क हाकम बन उह0न इस मदरस को बद करवा दया था उनक इतक़ाल क बाद जब उनक औलाद मb क हकमत सभालती ह तो उह0न मदरस को फर स खलवाया इसक बाद स य मदरसा सिनय0 का हो गया पस जानना चाहए क अगर आलम होन क लए IडKी शतE होती और बग़र IडKी क लोग इम होन क बावजद जाहल कहलात तो हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क तक़रबन साढ़ तीन सौ साल बाद तक उमत जाहल नह थी और य काम ख़लफाndashए-राशदन म6 स कोई न कोई ज़र श करता [वाह अरब म6 या अरब क बाहर

3mdashनहज नबवत और मतलफ़ जमाअत - दरअसल इस क़Hम का IडKी वाला मदरसा भी उमत म6 दन सीखन सखान क लए एक जमाअत क तरह ह (जस क और दगर जमाअत6 ह3 मसलन तबलग़ खानक़ाह जमाअत इHलामी अहल हदस वग़रह) जो क हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क कई सौ साल बाद वजद म6 आता ह मगर इस जमाअत(मदरसा) क ज़रए लोग बलउमम बाइचास ह दन सीख पात ह3 क उनक बड़0 न बचपन म6 उनको इस जमाअत म6 शामल कया तो ठYक वरना जब इसान बालग़ होता ह और उस दन पर चलन का और उसको सीखन का शौक़ पदा होता ह तो उस का इस जमाअत म6 शामल होन का वampत ख़Qम होन लगता ह जबक दसर जमाअत0 म6 शामल होन का वampत श होता ह और अगर कोई बड़ी उd म6 इस म6 शामल होना चाह तो य काम उसक लए बलउमम मिeकल साबत होता ह नबय0 क नहज लोग0 क दन सीखन सखान क लए आसान होती ह उस हर उd का इसान आसानी स सीख लता ह मदन म6 आकर हर उd क लोग आसानी स दन सीख लत थ द1नया म6 कोई ऐसा नबी नह आया िजस न दन क कोई ऐसी नहज पश क हो िजस म6 शामल होन क उd उस वampत खQम होन लग जबक शामल होन वाल म6 अampल व होश आ जाए और वो बालग़ हो चका हो या पOचीस तीस

साल स Wयादा उd का हो चका हो बिक नबय0 का तरक़ा दनी माहौल व मआशरा क़ायम करन का होता था ताक हर कोई उस म6 रहकर आसानी स दन सीख ल [वाह उसक उd सQतर अHसी साल या इस स भी Wयादा Uय0 ना हो अलबQता बाज़ नबीय0 का लोग0 न साथ नह दया िजसक वजह स उनको ऐसा माहौल व मआशरा क़ायम करन क नौबत ना आ पाई म3 य नह कहता क इन जमाअत0 स उमत को फायदा नह होता ह या क इन म6 स कोई ग़लत ह िजनका म3 न ऊपर िज़T कया ह ग़लत तो वो ह जो शकE करता ह या ख़राफाती बदअत म6 मaतला ह [वाह वो कोई भी हो इसक Wयादा तफसील क यहा गजाइश नह ह दरअसल य तमाम जमाअत6 क़रआन व सनत को ह लाग करना चाहती ह3 हा क़रआन और सनत लाग करन का तरक़ा इनका अपना-अपना ह िजसक वजह स य एक दसर स इि[तलाफ़ करती ह3 इनक आपसी इि[तलाफ़ात क एक बड़ी वजह इनक बड़0 क लख लटरचर भी ह3 िजसक वजह स इन म6 क बाज़ दसर पर इHलाम स ख़ाSरज होन का फतवा तक द डालत ह3 यहा इनक लटरचर क इि[तलाफ़ात को बयान करन क गजाइश नह ह इसलए यहा म3 सफE इन जमाअत0 क दन फलान क तरक़ का िज़T कर रहा ह

दन को उमत म6 क़ायम करन क हर एक क अपन-अपन अलग-अलग ब1नयाद उसल ह3 तबलग़ का नज़Sरया य ह क असल काम मसलमान0 म6 चल फर कर दावत दन का ह ताक जब दावत द6ग तो ख़द का दन पर चलना आसान हो जाएगा और जब अपन लोग दन पर चलन लग6ग तो ग़र0 क लए भी दन क़बल करना आसान हो सकता ह इसलए वो बलउमम बालग़ लोग0 को अपनी जमाअत म6 शामल करत ह3 ताक बOच अपन बड़0 स दन सीख ल6 या बड़ होकर वो भी उनक जमाअत म6 शामल हो जाए इसक लए वो इस जमाअत क बानी इयास साहब क ज़Sरए क़ायम करदा नहज को पश करत ह3 मदरस वाल0 क ब1नयाद नज़Sरयात य ह3 क जब बOच0 म6 दन आ जाएगा तो वो बड़ होकर बड़0 तक दन पहचाएग खानक़ाह का नज़रया य ह क असल काम क़लब क इसलाह ह और नfस पर क़ाब पाना ह इसक लए िज़T क कसरत ज़र ह और जब दल िज़दा होगा तो दन पर चलना आसान होगा अहल हदस का मानना य ह क असल काम उमत क आमाल को बख़ार और मिHलम वग़रह म6 बताए गए तरक़ क मताबक़ लाना ह और उह6 ऐसी बात0 स रोकना ह िजस स क वो उन राHत0 स भी gक जाए िजन पर चलन स शकE क तरफ जान का ज़रा भी ख़तरा हो और दन क दावत को ग़र0 म6 आम करना ह जमाअत इHलामी का नज़Sरया भी कछ

मलता जलता ह वो भी ग़र0 म6 दावत पहचान को तरजीह दत ह3 दरअसल य मौज तफसील तलब ह िजसक यहा गजाइश नह ह इसलए म3 न ऊपर हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान क और आप क बाद ख़लफा-ए-राशदन और उनक बाद क एक ज़मान तक दन सीखन सखान क नहज का इि[तसारन िज़T कर दया ह और उनक बाद क़ायम हई अलग-अलग जमाअत0 क दन फलान क नहज का म[तसर सा जाइज़ा उसक नीच पश कर दया ह ताक जो लोग नहज नब_वत और दसर नहज का फक़E जानना चाह6 उह6 इस जा1नब रहबर मल जाए और जो कोई खद ना समझना चाह उस तो द1नया म6 समझाना मिeकल ह अब ज़ाहर सी बात ह क कोई भी आसमानी रहबर द1नया म6 नहज नब_वत को क़ायम करन आता ह और उसक लए यह बहतरन राHता ह दसर राHत तो उस वampत क लए होत ह3 जब क उमत म6 नहज-नब_वत क़ायम ना हो चक हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अलावा इस उमत का कोई नबी नह और आप क लाई गई शरअत या1न कताबलाह(क़रआन) और सनत रसललाह(या1न आप क ज़Sरए द गई तालमात) क अलावा इस उमत क लए कोई दसर शरअत नह इसलए लािज़मन इस उमत म6 नहज नब_वत क़ायम करन का

तरक़ा यह ह क क़रआन व सनत को आपक उमत म6 उस तरक़ पर क़ायम कया जाए जो क ख़द आप सललाह अलह वसलम न कर क दखलाया ह या आप न उसक तालम द ह मिHलम म6 ह क ईसा अलहHसलाम इस उमत म6 इसाफ पसद इमाम और आदल हाकम क हसयत स ह0ग अब दाउद म6 ह महद अलहHसलाम लोग0 म6 उनक नबी क सनत को जार कर6ग इaन माजा म6 महद अलहHसलाम को ख़लफ़तलाह कहा गया ह 4 ndash या महदamp अल(ह)सलाम दनया क तमाम इसान- को राह रा)त पर लआएग अब रह य बात क Uया महद अल द1नया क तमाम लोग0 को हदायत द द6ग और द1नया क तमाम लोग0 म6 इसाफ क़ायम कर6ग बाज़ लोग मर मतािलक़ य कहत ह3 क म3 न कसी स य कहा क 2012 या 2013 तक सार द1नया म6 इHलाम फल जाएगा तो जानना चाहए क य बात क़तअन दgHत नह ह या क मर बात को समझन म6 कसी स ग़लत फहमी हई ह Uय0क ग़ब का इम अलाह ह क पास ह आग Uया होना ह य अलाह को मालम ह मज़ीद य क अलाह न द1नया म6 क़रआन करम क ज़Sरए हर इसान को हदायत क राह दखाई ह मगर जो कोई इस को क़बल करता ह वो अपन लए और जो कोई इस ठकराता

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 12: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

दनी माहौल म6 रहकर और हज़र सललाह अलह व सलम क या महािजरन व असार क बात6 सन कर आसानी स दन सीख लत थ और फर यहा क हालात और यहा क बात6 अपन क़बील क लोग0 को बयान करत थ और वो भी उन स आसानी स दन सीख लत और दन पर अमल करन लगत थ इसक अलावा य था क हजर अकरम सऔर आप क बाद खलफ़ाए राशदन मदना मन_वरा क कछ असहाब कराम को मदना मन_वरा क बाहर अलग- अलग इलाक0 म6 कभी-कभी भजत रहत थ ताक वो जाकर वहा क लोग0 को उनक माहौल व मआशर म6 रहकर अपन क़ौल व फ़ल (अमल) स दन सखाए इसक लए वहा कोई IडKी वाला मदरसा नह होता था हज़रत अल रज़ी का इतकाल छह सौ इUसठ ईसवी म6 हआ ह उनक बाद हज़रत अमीर मआ^वया रज़ी इHलामी हकमत क हाकम बन यहा स बन उम`या क हकमत श होती ह और सात सौ पचास ईसवी तक रहती ह इसक बाद बन अaबासया क हकमत श होती ह हान रशीद बन अaबासया क पाचव6 हाकम ह3 उनका इतक़ाल 809 AD म6 होता ह उनक इतक़ाल क सौ साल बाद 909 AD म6 मb बन अaबासया क हकमत स अलग हो जाता ह और वहा शीआओ क पहल हकमत क़ायम हो जाती ह इसक तक़रबन बावन साल बाद 961 AD म6 शीआओ क ज़Sरए

द1नया का पहला IडKी दन वाला मदरसा एक मिHजद म6 खलता ह िजस जामअ अज़हर कहा जाता ह इसक बाद स ह द1नया म6 जगह जगह IडगSरय0 का सलसला श होता हय ज़माना हज़र सललाह अलह व सलम क तीन सौ चालस साल बाद का ह इसक बाद स इस उमत क लोग र]ता र]ता IडगSरय0 क ब1नयाद पर आलम और जाहल क दो तबक0 म6 बटन लग ईसाइय0 और दसर क़ौम0 न भी IडKी दना शीआओ स सीखा ह इसीलए द1नया क सब स परानी यनीवरसट जामअ अज़हर कहलाती ह 1174 AD म6 सलाहVीन अ`यबी मb क हाकम बन उह0न इस मदरस को बद करवा दया था उनक इतक़ाल क बाद जब उनक औलाद मb क हकमत सभालती ह तो उह0न मदरस को फर स खलवाया इसक बाद स य मदरसा सिनय0 का हो गया पस जानना चाहए क अगर आलम होन क लए IडKी शतE होती और बग़र IडKी क लोग इम होन क बावजद जाहल कहलात तो हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क तक़रबन साढ़ तीन सौ साल बाद तक उमत जाहल नह थी और य काम ख़लफाndashए-राशदन म6 स कोई न कोई ज़र श करता [वाह अरब म6 या अरब क बाहर

3mdashनहज नबवत और मतलफ़ जमाअत - दरअसल इस क़Hम का IडKी वाला मदरसा भी उमत म6 दन सीखन सखान क लए एक जमाअत क तरह ह (जस क और दगर जमाअत6 ह3 मसलन तबलग़ खानक़ाह जमाअत इHलामी अहल हदस वग़रह) जो क हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क कई सौ साल बाद वजद म6 आता ह मगर इस जमाअत(मदरसा) क ज़रए लोग बलउमम बाइचास ह दन सीख पात ह3 क उनक बड़0 न बचपन म6 उनको इस जमाअत म6 शामल कया तो ठYक वरना जब इसान बालग़ होता ह और उस दन पर चलन का और उसको सीखन का शौक़ पदा होता ह तो उस का इस जमाअत म6 शामल होन का वampत ख़Qम होन लगता ह जबक दसर जमाअत0 म6 शामल होन का वampत श होता ह और अगर कोई बड़ी उd म6 इस म6 शामल होना चाह तो य काम उसक लए बलउमम मिeकल साबत होता ह नबय0 क नहज लोग0 क दन सीखन सखान क लए आसान होती ह उस हर उd का इसान आसानी स सीख लता ह मदन म6 आकर हर उd क लोग आसानी स दन सीख लत थ द1नया म6 कोई ऐसा नबी नह आया िजस न दन क कोई ऐसी नहज पश क हो िजस म6 शामल होन क उd उस वampत खQम होन लग जबक शामल होन वाल म6 अampल व होश आ जाए और वो बालग़ हो चका हो या पOचीस तीस

साल स Wयादा उd का हो चका हो बिक नबय0 का तरक़ा दनी माहौल व मआशरा क़ायम करन का होता था ताक हर कोई उस म6 रहकर आसानी स दन सीख ल [वाह उसक उd सQतर अHसी साल या इस स भी Wयादा Uय0 ना हो अलबQता बाज़ नबीय0 का लोग0 न साथ नह दया िजसक वजह स उनको ऐसा माहौल व मआशरा क़ायम करन क नौबत ना आ पाई म3 य नह कहता क इन जमाअत0 स उमत को फायदा नह होता ह या क इन म6 स कोई ग़लत ह िजनका म3 न ऊपर िज़T कया ह ग़लत तो वो ह जो शकE करता ह या ख़राफाती बदअत म6 मaतला ह [वाह वो कोई भी हो इसक Wयादा तफसील क यहा गजाइश नह ह दरअसल य तमाम जमाअत6 क़रआन व सनत को ह लाग करना चाहती ह3 हा क़रआन और सनत लाग करन का तरक़ा इनका अपना-अपना ह िजसक वजह स य एक दसर स इि[तलाफ़ करती ह3 इनक आपसी इि[तलाफ़ात क एक बड़ी वजह इनक बड़0 क लख लटरचर भी ह3 िजसक वजह स इन म6 क बाज़ दसर पर इHलाम स ख़ाSरज होन का फतवा तक द डालत ह3 यहा इनक लटरचर क इि[तलाफ़ात को बयान करन क गजाइश नह ह इसलए यहा म3 सफE इन जमाअत0 क दन फलान क तरक़ का िज़T कर रहा ह

दन को उमत म6 क़ायम करन क हर एक क अपन-अपन अलग-अलग ब1नयाद उसल ह3 तबलग़ का नज़Sरया य ह क असल काम मसलमान0 म6 चल फर कर दावत दन का ह ताक जब दावत द6ग तो ख़द का दन पर चलना आसान हो जाएगा और जब अपन लोग दन पर चलन लग6ग तो ग़र0 क लए भी दन क़बल करना आसान हो सकता ह इसलए वो बलउमम बालग़ लोग0 को अपनी जमाअत म6 शामल करत ह3 ताक बOच अपन बड़0 स दन सीख ल6 या बड़ होकर वो भी उनक जमाअत म6 शामल हो जाए इसक लए वो इस जमाअत क बानी इयास साहब क ज़Sरए क़ायम करदा नहज को पश करत ह3 मदरस वाल0 क ब1नयाद नज़Sरयात य ह3 क जब बOच0 म6 दन आ जाएगा तो वो बड़ होकर बड़0 तक दन पहचाएग खानक़ाह का नज़रया य ह क असल काम क़लब क इसलाह ह और नfस पर क़ाब पाना ह इसक लए िज़T क कसरत ज़र ह और जब दल िज़दा होगा तो दन पर चलना आसान होगा अहल हदस का मानना य ह क असल काम उमत क आमाल को बख़ार और मिHलम वग़रह म6 बताए गए तरक़ क मताबक़ लाना ह और उह6 ऐसी बात0 स रोकना ह िजस स क वो उन राHत0 स भी gक जाए िजन पर चलन स शकE क तरफ जान का ज़रा भी ख़तरा हो और दन क दावत को ग़र0 म6 आम करना ह जमाअत इHलामी का नज़Sरया भी कछ

मलता जलता ह वो भी ग़र0 म6 दावत पहचान को तरजीह दत ह3 दरअसल य मौज तफसील तलब ह िजसक यहा गजाइश नह ह इसलए म3 न ऊपर हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान क और आप क बाद ख़लफा-ए-राशदन और उनक बाद क एक ज़मान तक दन सीखन सखान क नहज का इि[तसारन िज़T कर दया ह और उनक बाद क़ायम हई अलग-अलग जमाअत0 क दन फलान क नहज का म[तसर सा जाइज़ा उसक नीच पश कर दया ह ताक जो लोग नहज नब_वत और दसर नहज का फक़E जानना चाह6 उह6 इस जा1नब रहबर मल जाए और जो कोई खद ना समझना चाह उस तो द1नया म6 समझाना मिeकल ह अब ज़ाहर सी बात ह क कोई भी आसमानी रहबर द1नया म6 नहज नब_वत को क़ायम करन आता ह और उसक लए यह बहतरन राHता ह दसर राHत तो उस वampत क लए होत ह3 जब क उमत म6 नहज-नब_वत क़ायम ना हो चक हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अलावा इस उमत का कोई नबी नह और आप क लाई गई शरअत या1न कताबलाह(क़रआन) और सनत रसललाह(या1न आप क ज़Sरए द गई तालमात) क अलावा इस उमत क लए कोई दसर शरअत नह इसलए लािज़मन इस उमत म6 नहज नब_वत क़ायम करन का

तरक़ा यह ह क क़रआन व सनत को आपक उमत म6 उस तरक़ पर क़ायम कया जाए जो क ख़द आप सललाह अलह वसलम न कर क दखलाया ह या आप न उसक तालम द ह मिHलम म6 ह क ईसा अलहHसलाम इस उमत म6 इसाफ पसद इमाम और आदल हाकम क हसयत स ह0ग अब दाउद म6 ह महद अलहHसलाम लोग0 म6 उनक नबी क सनत को जार कर6ग इaन माजा म6 महद अलहHसलाम को ख़लफ़तलाह कहा गया ह 4 ndash या महदamp अल(ह)सलाम दनया क तमाम इसान- को राह रा)त पर लआएग अब रह य बात क Uया महद अल द1नया क तमाम लोग0 को हदायत द द6ग और द1नया क तमाम लोग0 म6 इसाफ क़ायम कर6ग बाज़ लोग मर मतािलक़ य कहत ह3 क म3 न कसी स य कहा क 2012 या 2013 तक सार द1नया म6 इHलाम फल जाएगा तो जानना चाहए क य बात क़तअन दgHत नह ह या क मर बात को समझन म6 कसी स ग़लत फहमी हई ह Uय0क ग़ब का इम अलाह ह क पास ह आग Uया होना ह य अलाह को मालम ह मज़ीद य क अलाह न द1नया म6 क़रआन करम क ज़Sरए हर इसान को हदायत क राह दखाई ह मगर जो कोई इस को क़बल करता ह वो अपन लए और जो कोई इस ठकराता

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 13: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

द1नया का पहला IडKी दन वाला मदरसा एक मिHजद म6 खलता ह िजस जामअ अज़हर कहा जाता ह इसक बाद स ह द1नया म6 जगह जगह IडगSरय0 का सलसला श होता हय ज़माना हज़र सललाह अलह व सलम क तीन सौ चालस साल बाद का ह इसक बाद स इस उमत क लोग र]ता र]ता IडगSरय0 क ब1नयाद पर आलम और जाहल क दो तबक0 म6 बटन लग ईसाइय0 और दसर क़ौम0 न भी IडKी दना शीआओ स सीखा ह इसीलए द1नया क सब स परानी यनीवरसट जामअ अज़हर कहलाती ह 1174 AD म6 सलाहVीन अ`यबी मb क हाकम बन उह0न इस मदरस को बद करवा दया था उनक इतक़ाल क बाद जब उनक औलाद मb क हकमत सभालती ह तो उह0न मदरस को फर स खलवाया इसक बाद स य मदरसा सिनय0 का हो गया पस जानना चाहए क अगर आलम होन क लए IडKी शतE होती और बग़र IडKी क लोग इम होन क बावजद जाहल कहलात तो हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क तक़रबन साढ़ तीन सौ साल बाद तक उमत जाहल नह थी और य काम ख़लफाndashए-राशदन म6 स कोई न कोई ज़र श करता [वाह अरब म6 या अरब क बाहर

3mdashनहज नबवत और मतलफ़ जमाअत - दरअसल इस क़Hम का IडKी वाला मदरसा भी उमत म6 दन सीखन सखान क लए एक जमाअत क तरह ह (जस क और दगर जमाअत6 ह3 मसलन तबलग़ खानक़ाह जमाअत इHलामी अहल हदस वग़रह) जो क हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क कई सौ साल बाद वजद म6 आता ह मगर इस जमाअत(मदरसा) क ज़रए लोग बलउमम बाइचास ह दन सीख पात ह3 क उनक बड़0 न बचपन म6 उनको इस जमाअत म6 शामल कया तो ठYक वरना जब इसान बालग़ होता ह और उस दन पर चलन का और उसको सीखन का शौक़ पदा होता ह तो उस का इस जमाअत म6 शामल होन का वampत ख़Qम होन लगता ह जबक दसर जमाअत0 म6 शामल होन का वampत श होता ह और अगर कोई बड़ी उd म6 इस म6 शामल होना चाह तो य काम उसक लए बलउमम मिeकल साबत होता ह नबय0 क नहज लोग0 क दन सीखन सखान क लए आसान होती ह उस हर उd का इसान आसानी स सीख लता ह मदन म6 आकर हर उd क लोग आसानी स दन सीख लत थ द1नया म6 कोई ऐसा नबी नह आया िजस न दन क कोई ऐसी नहज पश क हो िजस म6 शामल होन क उd उस वampत खQम होन लग जबक शामल होन वाल म6 अampल व होश आ जाए और वो बालग़ हो चका हो या पOचीस तीस

साल स Wयादा उd का हो चका हो बिक नबय0 का तरक़ा दनी माहौल व मआशरा क़ायम करन का होता था ताक हर कोई उस म6 रहकर आसानी स दन सीख ल [वाह उसक उd सQतर अHसी साल या इस स भी Wयादा Uय0 ना हो अलबQता बाज़ नबीय0 का लोग0 न साथ नह दया िजसक वजह स उनको ऐसा माहौल व मआशरा क़ायम करन क नौबत ना आ पाई म3 य नह कहता क इन जमाअत0 स उमत को फायदा नह होता ह या क इन म6 स कोई ग़लत ह िजनका म3 न ऊपर िज़T कया ह ग़लत तो वो ह जो शकE करता ह या ख़राफाती बदअत म6 मaतला ह [वाह वो कोई भी हो इसक Wयादा तफसील क यहा गजाइश नह ह दरअसल य तमाम जमाअत6 क़रआन व सनत को ह लाग करना चाहती ह3 हा क़रआन और सनत लाग करन का तरक़ा इनका अपना-अपना ह िजसक वजह स य एक दसर स इि[तलाफ़ करती ह3 इनक आपसी इि[तलाफ़ात क एक बड़ी वजह इनक बड़0 क लख लटरचर भी ह3 िजसक वजह स इन म6 क बाज़ दसर पर इHलाम स ख़ाSरज होन का फतवा तक द डालत ह3 यहा इनक लटरचर क इि[तलाफ़ात को बयान करन क गजाइश नह ह इसलए यहा म3 सफE इन जमाअत0 क दन फलान क तरक़ का िज़T कर रहा ह

दन को उमत म6 क़ायम करन क हर एक क अपन-अपन अलग-अलग ब1नयाद उसल ह3 तबलग़ का नज़Sरया य ह क असल काम मसलमान0 म6 चल फर कर दावत दन का ह ताक जब दावत द6ग तो ख़द का दन पर चलना आसान हो जाएगा और जब अपन लोग दन पर चलन लग6ग तो ग़र0 क लए भी दन क़बल करना आसान हो सकता ह इसलए वो बलउमम बालग़ लोग0 को अपनी जमाअत म6 शामल करत ह3 ताक बOच अपन बड़0 स दन सीख ल6 या बड़ होकर वो भी उनक जमाअत म6 शामल हो जाए इसक लए वो इस जमाअत क बानी इयास साहब क ज़Sरए क़ायम करदा नहज को पश करत ह3 मदरस वाल0 क ब1नयाद नज़Sरयात य ह3 क जब बOच0 म6 दन आ जाएगा तो वो बड़ होकर बड़0 तक दन पहचाएग खानक़ाह का नज़रया य ह क असल काम क़लब क इसलाह ह और नfस पर क़ाब पाना ह इसक लए िज़T क कसरत ज़र ह और जब दल िज़दा होगा तो दन पर चलना आसान होगा अहल हदस का मानना य ह क असल काम उमत क आमाल को बख़ार और मिHलम वग़रह म6 बताए गए तरक़ क मताबक़ लाना ह और उह6 ऐसी बात0 स रोकना ह िजस स क वो उन राHत0 स भी gक जाए िजन पर चलन स शकE क तरफ जान का ज़रा भी ख़तरा हो और दन क दावत को ग़र0 म6 आम करना ह जमाअत इHलामी का नज़Sरया भी कछ

मलता जलता ह वो भी ग़र0 म6 दावत पहचान को तरजीह दत ह3 दरअसल य मौज तफसील तलब ह िजसक यहा गजाइश नह ह इसलए म3 न ऊपर हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान क और आप क बाद ख़लफा-ए-राशदन और उनक बाद क एक ज़मान तक दन सीखन सखान क नहज का इि[तसारन िज़T कर दया ह और उनक बाद क़ायम हई अलग-अलग जमाअत0 क दन फलान क नहज का म[तसर सा जाइज़ा उसक नीच पश कर दया ह ताक जो लोग नहज नब_वत और दसर नहज का फक़E जानना चाह6 उह6 इस जा1नब रहबर मल जाए और जो कोई खद ना समझना चाह उस तो द1नया म6 समझाना मिeकल ह अब ज़ाहर सी बात ह क कोई भी आसमानी रहबर द1नया म6 नहज नब_वत को क़ायम करन आता ह और उसक लए यह बहतरन राHता ह दसर राHत तो उस वampत क लए होत ह3 जब क उमत म6 नहज-नब_वत क़ायम ना हो चक हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अलावा इस उमत का कोई नबी नह और आप क लाई गई शरअत या1न कताबलाह(क़रआन) और सनत रसललाह(या1न आप क ज़Sरए द गई तालमात) क अलावा इस उमत क लए कोई दसर शरअत नह इसलए लािज़मन इस उमत म6 नहज नब_वत क़ायम करन का

तरक़ा यह ह क क़रआन व सनत को आपक उमत म6 उस तरक़ पर क़ायम कया जाए जो क ख़द आप सललाह अलह वसलम न कर क दखलाया ह या आप न उसक तालम द ह मिHलम म6 ह क ईसा अलहHसलाम इस उमत म6 इसाफ पसद इमाम और आदल हाकम क हसयत स ह0ग अब दाउद म6 ह महद अलहHसलाम लोग0 म6 उनक नबी क सनत को जार कर6ग इaन माजा म6 महद अलहHसलाम को ख़लफ़तलाह कहा गया ह 4 ndash या महदamp अल(ह)सलाम दनया क तमाम इसान- को राह रा)त पर लआएग अब रह य बात क Uया महद अल द1नया क तमाम लोग0 को हदायत द द6ग और द1नया क तमाम लोग0 म6 इसाफ क़ायम कर6ग बाज़ लोग मर मतािलक़ य कहत ह3 क म3 न कसी स य कहा क 2012 या 2013 तक सार द1नया म6 इHलाम फल जाएगा तो जानना चाहए क य बात क़तअन दgHत नह ह या क मर बात को समझन म6 कसी स ग़लत फहमी हई ह Uय0क ग़ब का इम अलाह ह क पास ह आग Uया होना ह य अलाह को मालम ह मज़ीद य क अलाह न द1नया म6 क़रआन करम क ज़Sरए हर इसान को हदायत क राह दखाई ह मगर जो कोई इस को क़बल करता ह वो अपन लए और जो कोई इस ठकराता

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 14: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

3mdashनहज नबवत और मतलफ़ जमाअत - दरअसल इस क़Hम का IडKी वाला मदरसा भी उमत म6 दन सीखन सखान क लए एक जमाअत क तरह ह (जस क और दगर जमाअत6 ह3 मसलन तबलग़ खानक़ाह जमाअत इHलामी अहल हदस वग़रह) जो क हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क कई सौ साल बाद वजद म6 आता ह मगर इस जमाअत(मदरसा) क ज़रए लोग बलउमम बाइचास ह दन सीख पात ह3 क उनक बड़0 न बचपन म6 उनको इस जमाअत म6 शामल कया तो ठYक वरना जब इसान बालग़ होता ह और उस दन पर चलन का और उसको सीखन का शौक़ पदा होता ह तो उस का इस जमाअत म6 शामल होन का वampत ख़Qम होन लगता ह जबक दसर जमाअत0 म6 शामल होन का वampत श होता ह और अगर कोई बड़ी उd म6 इस म6 शामल होना चाह तो य काम उसक लए बलउमम मिeकल साबत होता ह नबय0 क नहज लोग0 क दन सीखन सखान क लए आसान होती ह उस हर उd का इसान आसानी स सीख लता ह मदन म6 आकर हर उd क लोग आसानी स दन सीख लत थ द1नया म6 कोई ऐसा नबी नह आया िजस न दन क कोई ऐसी नहज पश क हो िजस म6 शामल होन क उd उस वampत खQम होन लग जबक शामल होन वाल म6 अampल व होश आ जाए और वो बालग़ हो चका हो या पOचीस तीस

साल स Wयादा उd का हो चका हो बिक नबय0 का तरक़ा दनी माहौल व मआशरा क़ायम करन का होता था ताक हर कोई उस म6 रहकर आसानी स दन सीख ल [वाह उसक उd सQतर अHसी साल या इस स भी Wयादा Uय0 ना हो अलबQता बाज़ नबीय0 का लोग0 न साथ नह दया िजसक वजह स उनको ऐसा माहौल व मआशरा क़ायम करन क नौबत ना आ पाई म3 य नह कहता क इन जमाअत0 स उमत को फायदा नह होता ह या क इन म6 स कोई ग़लत ह िजनका म3 न ऊपर िज़T कया ह ग़लत तो वो ह जो शकE करता ह या ख़राफाती बदअत म6 मaतला ह [वाह वो कोई भी हो इसक Wयादा तफसील क यहा गजाइश नह ह दरअसल य तमाम जमाअत6 क़रआन व सनत को ह लाग करना चाहती ह3 हा क़रआन और सनत लाग करन का तरक़ा इनका अपना-अपना ह िजसक वजह स य एक दसर स इि[तलाफ़ करती ह3 इनक आपसी इि[तलाफ़ात क एक बड़ी वजह इनक बड़0 क लख लटरचर भी ह3 िजसक वजह स इन म6 क बाज़ दसर पर इHलाम स ख़ाSरज होन का फतवा तक द डालत ह3 यहा इनक लटरचर क इि[तलाफ़ात को बयान करन क गजाइश नह ह इसलए यहा म3 सफE इन जमाअत0 क दन फलान क तरक़ का िज़T कर रहा ह

दन को उमत म6 क़ायम करन क हर एक क अपन-अपन अलग-अलग ब1नयाद उसल ह3 तबलग़ का नज़Sरया य ह क असल काम मसलमान0 म6 चल फर कर दावत दन का ह ताक जब दावत द6ग तो ख़द का दन पर चलना आसान हो जाएगा और जब अपन लोग दन पर चलन लग6ग तो ग़र0 क लए भी दन क़बल करना आसान हो सकता ह इसलए वो बलउमम बालग़ लोग0 को अपनी जमाअत म6 शामल करत ह3 ताक बOच अपन बड़0 स दन सीख ल6 या बड़ होकर वो भी उनक जमाअत म6 शामल हो जाए इसक लए वो इस जमाअत क बानी इयास साहब क ज़Sरए क़ायम करदा नहज को पश करत ह3 मदरस वाल0 क ब1नयाद नज़Sरयात य ह3 क जब बOच0 म6 दन आ जाएगा तो वो बड़ होकर बड़0 तक दन पहचाएग खानक़ाह का नज़रया य ह क असल काम क़लब क इसलाह ह और नfस पर क़ाब पाना ह इसक लए िज़T क कसरत ज़र ह और जब दल िज़दा होगा तो दन पर चलना आसान होगा अहल हदस का मानना य ह क असल काम उमत क आमाल को बख़ार और मिHलम वग़रह म6 बताए गए तरक़ क मताबक़ लाना ह और उह6 ऐसी बात0 स रोकना ह िजस स क वो उन राHत0 स भी gक जाए िजन पर चलन स शकE क तरफ जान का ज़रा भी ख़तरा हो और दन क दावत को ग़र0 म6 आम करना ह जमाअत इHलामी का नज़Sरया भी कछ

मलता जलता ह वो भी ग़र0 म6 दावत पहचान को तरजीह दत ह3 दरअसल य मौज तफसील तलब ह िजसक यहा गजाइश नह ह इसलए म3 न ऊपर हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान क और आप क बाद ख़लफा-ए-राशदन और उनक बाद क एक ज़मान तक दन सीखन सखान क नहज का इि[तसारन िज़T कर दया ह और उनक बाद क़ायम हई अलग-अलग जमाअत0 क दन फलान क नहज का म[तसर सा जाइज़ा उसक नीच पश कर दया ह ताक जो लोग नहज नब_वत और दसर नहज का फक़E जानना चाह6 उह6 इस जा1नब रहबर मल जाए और जो कोई खद ना समझना चाह उस तो द1नया म6 समझाना मिeकल ह अब ज़ाहर सी बात ह क कोई भी आसमानी रहबर द1नया म6 नहज नब_वत को क़ायम करन आता ह और उसक लए यह बहतरन राHता ह दसर राHत तो उस वampत क लए होत ह3 जब क उमत म6 नहज-नब_वत क़ायम ना हो चक हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अलावा इस उमत का कोई नबी नह और आप क लाई गई शरअत या1न कताबलाह(क़रआन) और सनत रसललाह(या1न आप क ज़Sरए द गई तालमात) क अलावा इस उमत क लए कोई दसर शरअत नह इसलए लािज़मन इस उमत म6 नहज नब_वत क़ायम करन का

तरक़ा यह ह क क़रआन व सनत को आपक उमत म6 उस तरक़ पर क़ायम कया जाए जो क ख़द आप सललाह अलह वसलम न कर क दखलाया ह या आप न उसक तालम द ह मिHलम म6 ह क ईसा अलहHसलाम इस उमत म6 इसाफ पसद इमाम और आदल हाकम क हसयत स ह0ग अब दाउद म6 ह महद अलहHसलाम लोग0 म6 उनक नबी क सनत को जार कर6ग इaन माजा म6 महद अलहHसलाम को ख़लफ़तलाह कहा गया ह 4 ndash या महदamp अल(ह)सलाम दनया क तमाम इसान- को राह रा)त पर लआएग अब रह य बात क Uया महद अल द1नया क तमाम लोग0 को हदायत द द6ग और द1नया क तमाम लोग0 म6 इसाफ क़ायम कर6ग बाज़ लोग मर मतािलक़ य कहत ह3 क म3 न कसी स य कहा क 2012 या 2013 तक सार द1नया म6 इHलाम फल जाएगा तो जानना चाहए क य बात क़तअन दgHत नह ह या क मर बात को समझन म6 कसी स ग़लत फहमी हई ह Uय0क ग़ब का इम अलाह ह क पास ह आग Uया होना ह य अलाह को मालम ह मज़ीद य क अलाह न द1नया म6 क़रआन करम क ज़Sरए हर इसान को हदायत क राह दखाई ह मगर जो कोई इस को क़बल करता ह वो अपन लए और जो कोई इस ठकराता

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 15: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

साल स Wयादा उd का हो चका हो बिक नबय0 का तरक़ा दनी माहौल व मआशरा क़ायम करन का होता था ताक हर कोई उस म6 रहकर आसानी स दन सीख ल [वाह उसक उd सQतर अHसी साल या इस स भी Wयादा Uय0 ना हो अलबQता बाज़ नबीय0 का लोग0 न साथ नह दया िजसक वजह स उनको ऐसा माहौल व मआशरा क़ायम करन क नौबत ना आ पाई म3 य नह कहता क इन जमाअत0 स उमत को फायदा नह होता ह या क इन म6 स कोई ग़लत ह िजनका म3 न ऊपर िज़T कया ह ग़लत तो वो ह जो शकE करता ह या ख़राफाती बदअत म6 मaतला ह [वाह वो कोई भी हो इसक Wयादा तफसील क यहा गजाइश नह ह दरअसल य तमाम जमाअत6 क़रआन व सनत को ह लाग करना चाहती ह3 हा क़रआन और सनत लाग करन का तरक़ा इनका अपना-अपना ह िजसक वजह स य एक दसर स इि[तलाफ़ करती ह3 इनक आपसी इि[तलाफ़ात क एक बड़ी वजह इनक बड़0 क लख लटरचर भी ह3 िजसक वजह स इन म6 क बाज़ दसर पर इHलाम स ख़ाSरज होन का फतवा तक द डालत ह3 यहा इनक लटरचर क इि[तलाफ़ात को बयान करन क गजाइश नह ह इसलए यहा म3 सफE इन जमाअत0 क दन फलान क तरक़ का िज़T कर रहा ह

दन को उमत म6 क़ायम करन क हर एक क अपन-अपन अलग-अलग ब1नयाद उसल ह3 तबलग़ का नज़Sरया य ह क असल काम मसलमान0 म6 चल फर कर दावत दन का ह ताक जब दावत द6ग तो ख़द का दन पर चलना आसान हो जाएगा और जब अपन लोग दन पर चलन लग6ग तो ग़र0 क लए भी दन क़बल करना आसान हो सकता ह इसलए वो बलउमम बालग़ लोग0 को अपनी जमाअत म6 शामल करत ह3 ताक बOच अपन बड़0 स दन सीख ल6 या बड़ होकर वो भी उनक जमाअत म6 शामल हो जाए इसक लए वो इस जमाअत क बानी इयास साहब क ज़Sरए क़ायम करदा नहज को पश करत ह3 मदरस वाल0 क ब1नयाद नज़Sरयात य ह3 क जब बOच0 म6 दन आ जाएगा तो वो बड़ होकर बड़0 तक दन पहचाएग खानक़ाह का नज़रया य ह क असल काम क़लब क इसलाह ह और नfस पर क़ाब पाना ह इसक लए िज़T क कसरत ज़र ह और जब दल िज़दा होगा तो दन पर चलना आसान होगा अहल हदस का मानना य ह क असल काम उमत क आमाल को बख़ार और मिHलम वग़रह म6 बताए गए तरक़ क मताबक़ लाना ह और उह6 ऐसी बात0 स रोकना ह िजस स क वो उन राHत0 स भी gक जाए िजन पर चलन स शकE क तरफ जान का ज़रा भी ख़तरा हो और दन क दावत को ग़र0 म6 आम करना ह जमाअत इHलामी का नज़Sरया भी कछ

मलता जलता ह वो भी ग़र0 म6 दावत पहचान को तरजीह दत ह3 दरअसल य मौज तफसील तलब ह िजसक यहा गजाइश नह ह इसलए म3 न ऊपर हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान क और आप क बाद ख़लफा-ए-राशदन और उनक बाद क एक ज़मान तक दन सीखन सखान क नहज का इि[तसारन िज़T कर दया ह और उनक बाद क़ायम हई अलग-अलग जमाअत0 क दन फलान क नहज का म[तसर सा जाइज़ा उसक नीच पश कर दया ह ताक जो लोग नहज नब_वत और दसर नहज का फक़E जानना चाह6 उह6 इस जा1नब रहबर मल जाए और जो कोई खद ना समझना चाह उस तो द1नया म6 समझाना मिeकल ह अब ज़ाहर सी बात ह क कोई भी आसमानी रहबर द1नया म6 नहज नब_वत को क़ायम करन आता ह और उसक लए यह बहतरन राHता ह दसर राHत तो उस वampत क लए होत ह3 जब क उमत म6 नहज-नब_वत क़ायम ना हो चक हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अलावा इस उमत का कोई नबी नह और आप क लाई गई शरअत या1न कताबलाह(क़रआन) और सनत रसललाह(या1न आप क ज़Sरए द गई तालमात) क अलावा इस उमत क लए कोई दसर शरअत नह इसलए लािज़मन इस उमत म6 नहज नब_वत क़ायम करन का

तरक़ा यह ह क क़रआन व सनत को आपक उमत म6 उस तरक़ पर क़ायम कया जाए जो क ख़द आप सललाह अलह वसलम न कर क दखलाया ह या आप न उसक तालम द ह मिHलम म6 ह क ईसा अलहHसलाम इस उमत म6 इसाफ पसद इमाम और आदल हाकम क हसयत स ह0ग अब दाउद म6 ह महद अलहHसलाम लोग0 म6 उनक नबी क सनत को जार कर6ग इaन माजा म6 महद अलहHसलाम को ख़लफ़तलाह कहा गया ह 4 ndash या महदamp अल(ह)सलाम दनया क तमाम इसान- को राह रा)त पर लआएग अब रह य बात क Uया महद अल द1नया क तमाम लोग0 को हदायत द द6ग और द1नया क तमाम लोग0 म6 इसाफ क़ायम कर6ग बाज़ लोग मर मतािलक़ य कहत ह3 क म3 न कसी स य कहा क 2012 या 2013 तक सार द1नया म6 इHलाम फल जाएगा तो जानना चाहए क य बात क़तअन दgHत नह ह या क मर बात को समझन म6 कसी स ग़लत फहमी हई ह Uय0क ग़ब का इम अलाह ह क पास ह आग Uया होना ह य अलाह को मालम ह मज़ीद य क अलाह न द1नया म6 क़रआन करम क ज़Sरए हर इसान को हदायत क राह दखाई ह मगर जो कोई इस को क़बल करता ह वो अपन लए और जो कोई इस ठकराता

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 16: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

दन को उमत म6 क़ायम करन क हर एक क अपन-अपन अलग-अलग ब1नयाद उसल ह3 तबलग़ का नज़Sरया य ह क असल काम मसलमान0 म6 चल फर कर दावत दन का ह ताक जब दावत द6ग तो ख़द का दन पर चलना आसान हो जाएगा और जब अपन लोग दन पर चलन लग6ग तो ग़र0 क लए भी दन क़बल करना आसान हो सकता ह इसलए वो बलउमम बालग़ लोग0 को अपनी जमाअत म6 शामल करत ह3 ताक बOच अपन बड़0 स दन सीख ल6 या बड़ होकर वो भी उनक जमाअत म6 शामल हो जाए इसक लए वो इस जमाअत क बानी इयास साहब क ज़Sरए क़ायम करदा नहज को पश करत ह3 मदरस वाल0 क ब1नयाद नज़Sरयात य ह3 क जब बOच0 म6 दन आ जाएगा तो वो बड़ होकर बड़0 तक दन पहचाएग खानक़ाह का नज़रया य ह क असल काम क़लब क इसलाह ह और नfस पर क़ाब पाना ह इसक लए िज़T क कसरत ज़र ह और जब दल िज़दा होगा तो दन पर चलना आसान होगा अहल हदस का मानना य ह क असल काम उमत क आमाल को बख़ार और मिHलम वग़रह म6 बताए गए तरक़ क मताबक़ लाना ह और उह6 ऐसी बात0 स रोकना ह िजस स क वो उन राHत0 स भी gक जाए िजन पर चलन स शकE क तरफ जान का ज़रा भी ख़तरा हो और दन क दावत को ग़र0 म6 आम करना ह जमाअत इHलामी का नज़Sरया भी कछ

मलता जलता ह वो भी ग़र0 म6 दावत पहचान को तरजीह दत ह3 दरअसल य मौज तफसील तलब ह िजसक यहा गजाइश नह ह इसलए म3 न ऊपर हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान क और आप क बाद ख़लफा-ए-राशदन और उनक बाद क एक ज़मान तक दन सीखन सखान क नहज का इि[तसारन िज़T कर दया ह और उनक बाद क़ायम हई अलग-अलग जमाअत0 क दन फलान क नहज का म[तसर सा जाइज़ा उसक नीच पश कर दया ह ताक जो लोग नहज नब_वत और दसर नहज का फक़E जानना चाह6 उह6 इस जा1नब रहबर मल जाए और जो कोई खद ना समझना चाह उस तो द1नया म6 समझाना मिeकल ह अब ज़ाहर सी बात ह क कोई भी आसमानी रहबर द1नया म6 नहज नब_वत को क़ायम करन आता ह और उसक लए यह बहतरन राHता ह दसर राHत तो उस वampत क लए होत ह3 जब क उमत म6 नहज-नब_वत क़ायम ना हो चक हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अलावा इस उमत का कोई नबी नह और आप क लाई गई शरअत या1न कताबलाह(क़रआन) और सनत रसललाह(या1न आप क ज़Sरए द गई तालमात) क अलावा इस उमत क लए कोई दसर शरअत नह इसलए लािज़मन इस उमत म6 नहज नब_वत क़ायम करन का

तरक़ा यह ह क क़रआन व सनत को आपक उमत म6 उस तरक़ पर क़ायम कया जाए जो क ख़द आप सललाह अलह वसलम न कर क दखलाया ह या आप न उसक तालम द ह मिHलम म6 ह क ईसा अलहHसलाम इस उमत म6 इसाफ पसद इमाम और आदल हाकम क हसयत स ह0ग अब दाउद म6 ह महद अलहHसलाम लोग0 म6 उनक नबी क सनत को जार कर6ग इaन माजा म6 महद अलहHसलाम को ख़लफ़तलाह कहा गया ह 4 ndash या महदamp अल(ह)सलाम दनया क तमाम इसान- को राह रा)त पर लआएग अब रह य बात क Uया महद अल द1नया क तमाम लोग0 को हदायत द द6ग और द1नया क तमाम लोग0 म6 इसाफ क़ायम कर6ग बाज़ लोग मर मतािलक़ य कहत ह3 क म3 न कसी स य कहा क 2012 या 2013 तक सार द1नया म6 इHलाम फल जाएगा तो जानना चाहए क य बात क़तअन दgHत नह ह या क मर बात को समझन म6 कसी स ग़लत फहमी हई ह Uय0क ग़ब का इम अलाह ह क पास ह आग Uया होना ह य अलाह को मालम ह मज़ीद य क अलाह न द1नया म6 क़रआन करम क ज़Sरए हर इसान को हदायत क राह दखाई ह मगर जो कोई इस को क़बल करता ह वो अपन लए और जो कोई इस ठकराता

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 17: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

मलता जलता ह वो भी ग़र0 म6 दावत पहचान को तरजीह दत ह3 दरअसल य मौज तफसील तलब ह िजसक यहा गजाइश नह ह इसलए म3 न ऊपर हज़र सललाह अलह व सलम क ज़मान क और आप क बाद ख़लफा-ए-राशदन और उनक बाद क एक ज़मान तक दन सीखन सखान क नहज का इि[तसारन िज़T कर दया ह और उनक बाद क़ायम हई अलग-अलग जमाअत0 क दन फलान क नहज का म[तसर सा जाइज़ा उसक नीच पश कर दया ह ताक जो लोग नहज नब_वत और दसर नहज का फक़E जानना चाह6 उह6 इस जा1नब रहबर मल जाए और जो कोई खद ना समझना चाह उस तो द1नया म6 समझाना मिeकल ह अब ज़ाहर सी बात ह क कोई भी आसमानी रहबर द1नया म6 नहज नब_वत को क़ायम करन आता ह और उसक लए यह बहतरन राHता ह दसर राHत तो उस वampत क लए होत ह3 जब क उमत म6 नहज-नब_वत क़ायम ना हो चक हज़र अकरम सललाह अलह व सलम क अलावा इस उमत का कोई नबी नह और आप क लाई गई शरअत या1न कताबलाह(क़रआन) और सनत रसललाह(या1न आप क ज़Sरए द गई तालमात) क अलावा इस उमत क लए कोई दसर शरअत नह इसलए लािज़मन इस उमत म6 नहज नब_वत क़ायम करन का

तरक़ा यह ह क क़रआन व सनत को आपक उमत म6 उस तरक़ पर क़ायम कया जाए जो क ख़द आप सललाह अलह वसलम न कर क दखलाया ह या आप न उसक तालम द ह मिHलम म6 ह क ईसा अलहHसलाम इस उमत म6 इसाफ पसद इमाम और आदल हाकम क हसयत स ह0ग अब दाउद म6 ह महद अलहHसलाम लोग0 म6 उनक नबी क सनत को जार कर6ग इaन माजा म6 महद अलहHसलाम को ख़लफ़तलाह कहा गया ह 4 ndash या महदamp अल(ह)सलाम दनया क तमाम इसान- को राह रा)त पर लआएग अब रह य बात क Uया महद अल द1नया क तमाम लोग0 को हदायत द द6ग और द1नया क तमाम लोग0 म6 इसाफ क़ायम कर6ग बाज़ लोग मर मतािलक़ य कहत ह3 क म3 न कसी स य कहा क 2012 या 2013 तक सार द1नया म6 इHलाम फल जाएगा तो जानना चाहए क य बात क़तअन दgHत नह ह या क मर बात को समझन म6 कसी स ग़लत फहमी हई ह Uय0क ग़ब का इम अलाह ह क पास ह आग Uया होना ह य अलाह को मालम ह मज़ीद य क अलाह न द1नया म6 क़रआन करम क ज़Sरए हर इसान को हदायत क राह दखाई ह मगर जो कोई इस को क़बल करता ह वो अपन लए और जो कोई इस ठकराता

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 18: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

तरक़ा यह ह क क़रआन व सनत को आपक उमत म6 उस तरक़ पर क़ायम कया जाए जो क ख़द आप सललाह अलह वसलम न कर क दखलाया ह या आप न उसक तालम द ह मिHलम म6 ह क ईसा अलहHसलाम इस उमत म6 इसाफ पसद इमाम और आदल हाकम क हसयत स ह0ग अब दाउद म6 ह महद अलहHसलाम लोग0 म6 उनक नबी क सनत को जार कर6ग इaन माजा म6 महद अलहHसलाम को ख़लफ़तलाह कहा गया ह 4 ndash या महदamp अल(ह)सलाम दनया क तमाम इसान- को राह रा)त पर लआएग अब रह य बात क Uया महद अल द1नया क तमाम लोग0 को हदायत द द6ग और द1नया क तमाम लोग0 म6 इसाफ क़ायम कर6ग बाज़ लोग मर मतािलक़ य कहत ह3 क म3 न कसी स य कहा क 2012 या 2013 तक सार द1नया म6 इHलाम फल जाएगा तो जानना चाहए क य बात क़तअन दgHत नह ह या क मर बात को समझन म6 कसी स ग़लत फहमी हई ह Uय0क ग़ब का इम अलाह ह क पास ह आग Uया होना ह य अलाह को मालम ह मज़ीद य क अलाह न द1नया म6 क़रआन करम क ज़Sरए हर इसान को हदायत क राह दखाई ह मगर जो कोई इस को क़बल करता ह वो अपन लए और जो कोई इस ठकराता

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 19: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

ह वो अपन लए अलाह पाक न द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह भजा िजसक हाथ म6 हदायत रखी हो क वो िजसको चाह हदायत याfता बना द हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स भी अलाह पाक न क़रआन करम म6 फरमाया आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत बिक अलाह िजस चाहता ह उस हदायत दता ह पस जब क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क िज़म भी हदायत नह रखी गई तो महद अलहHसलाम क िज़म Uय0 कर रखी जाएगी क वो सार द1नया क लोग0 को ज़बरदHती हदायत द द6 द1नया इितहान क जगह ह यहा हर श7स को आज़माया जाता ह यहा कसी को भी ज़बरदHती हदायत नह मलती इितहान इसको नह कहा जाता ह िजस म6 लोग0 स ज़बरदHती लखवा लया जाए अलाह पाक फरमात ह3 - ldquo واماکفورا اہديناه السبيل اماشاکر انا rdquo हम न इस (इसान) को सीधा राHता दखाया ह िजस का जी चाह शT कर और िजस का जी चाह इकार कर (सरह ndash इसान 3) अलाह पाक न तो सीधा राHता दखा दया ह अब हक़ बात को क़बल करना या ठकराना इसान क अि7तयार म6 द दया गया

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 20: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

(सरह ndash तौबा 24) हदायत नह दता और अलाह फासक0 को rdquoوهللا يہدی القوم الفاسقينldquo (सरह बक़रह 208) हदायत नह दता और अलाह ज़ालम0 को rdquoوهللا يہدی القوم الظالمينldquo (सरह बक़रह 264) हदायत नह दता और अलाह काफर0 को rdquoوهللا يہدی القوم الکافرينldquo - हदायत स महम हो जाता ह अलाह पाक फरमात ह3 हदायत मलती ह और जब कोई उसक Gखलाफ वरज़ी करता ह तो म होता ह अलाह पाक न एक दHतर बनाया ह जब कोई उसक मताबक़ चलता ह तो उसकोयानी शT करना और ईमान लाना इसान क िज़ (सरह ndash 1नसा 147) ह6 अज़ाब दकर Uया करगा अगर तम शT गज़ार करो और ईमान वाल रहो और अलाह क़दर करन वाला और जानन वाला हअलाह त rdquoمايفعل هللا بعذابکم ان شکرتم وآمنتم وکان هللا شاکراعليماldquo

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 21: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

यानी जब तक इसान कgt ज़म और फHक़ छोड़ ना द और उसस तौबा ना कर ल अलाह उनको हदायत नह दता ह अगर इसान अपन फHक़ पर अड़ा रह तो क़रआन पढ़कर भी हदायत नह पा सकता ldquo الفاسقين ومايضل بہ ا rdquo अलाह कसी को इस क़रआन स गमराह नह करता मगर फासक0 को (सरह बक़रह 26) पस जबक लोग कgt फHक़ ज़म स खद ह तौबा ना कर6 फर अलाह उनको हदायत ना द तो कोई रहबर उनको कस हदायत द सकता ह द1नया म6 कोई ऐसा आसमानी रहबर नह आया िजस न कसी स ज़बरदHती अपनी नब_वत या Sरसालत को तHलम करा लया हो तो महद अपनी Gखलाफत कस ज़बरदHती कसी स क़बल करवा सकता ह रहबर का काम तो सफE वाज़ह दलाइल स साफ-साफ अपनी िज़मदार क काम0 को पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह अगर रहबर क िज़म कसी को ज़बरदHती हदायत दना होता तो आसमानी रहबर य Uय0 कहत ldquoوما علينا االب0غ المبينrdquo हमार िज़म कछ नह मगर य क साफ-साफ बात को पहचा दया जाए (सरह ndash यासीन 17) और अलाह पाक य बात क़रआन करम म6 Uय0 कहत -

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 22: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

ldquo (सरह ndash अकबत 18) म कछ नह मगर साफ-साफ पहचा दनारसल क िज़ rdquoوماعلی الرسول االب0غ المبينldquo الب0غ وعليناالحساب فانماعليک rdquo पस आप क िज़म तो सफE पहचा दना ह ह और हसाब लना हमार िज़म ह (सरह ndash राद 40) अगर लोग0 को ज़बरदHती ह हदायत दना होता तो क़रआन करम म6 य Uय0 कहा जाता - ldquo الدين ه فیااکر rdquo दन म6 कोई ज़बरदHती नह (सरह ndash बक़रह 206) दरअसल लोग0 म6 य सवाल अज़E क लfज़ स पदा होता ह हदस म6 महद क बार म6 ह क- 13 (वो यानी महद ज़मीन को अiलो इसाफ स भर दगा) तो जानना चाहए क अरबी म6 अज़E का लfज़ जब ज़मीन व आसमान क त7लक़ क लया इHतमाल होता ह तो इसका मतलब होता ह सार क सार ज़मीन यानी हमारा jलनट िजस को इिkलश म6 अथE बोला जाता ह मगर जब यह अज़E का लfज़ कसी रहबर क ज़मान स या कसी और ग़ज़E स बोला जाता ह तो इसका मतलब कोई शहर कोई मक या सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता भी होता ह सरह यसफ म6 ह क हज़रत यसफ अलहHसलाम न अज़ीज़ मb स बोला था क मझ ज़मीन क ख़ज़ान का मालक बना दो(सरह यसफ आयत55) वहा

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 23: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

भी خزائن ارض का लfज़ इHतमाल कया गया ह जब क यहा ارض स मराद सफE मb ह और यहा सफE मb क ख़ज़ान क बात कह गई ह हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क बार म6 ह क लोग आप क क़दम ज़मीन स उखाड़न लग थ ताक आप को वहा स 1नकाल द6(सरह बनी इbाईल आयत 76) और यहा भी अज़E का लfज़ इHतमाल कया गया ह जबक यहा अज़E स मराद सफE मUका ह सरह माइदा म6 एक सज़ा का िज़T करत हए कहा गया ह क इह ज़मीन स 1नकाल दया जाए (आयत33)यहा भी من ا رض कहा गया ह जबक यहा भी अज़E स मराद वो इलाक़ा या शहर या मक ह जहा मसलमान रहत ह0 और वहा उनका इि7तयार हो क़रआन करम म6 ह क कसी नfस को नह मालम क वो कौन सी ज़मीन म6 मरगा यहा भीبای ارض تموت ह कहा गया ह यहा अज़E स मराद सफE ज़मीन का छोटा सा GखQता ह इaन माजा म6 महद अलहHसलाम स मतािलक़ अज़E क लfज़ क वजाहत कर द गई ह और साफ-साफ हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ ह3 क महद उस क़ौम को अiल व इसाफ स भरगा जो क उसको अपना सरदार बना लगी यहा भी इस सलसल म6 अज़E का लfज़ इHतमाल हआ ह इस का मतलब ह ज़मीन का वो GखQता जहा वो क़ौम आबाद होगी

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 24: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

वampत स पहल अOछा गमान रखना क सब लोग हदायत क़बल कर ल6ग सब लोग रहबर का साथ दन लग6ग अOछY बात ह जसा क म3 भी अOछा गमान रखता था मगर पशीनगोइया ग़ब का इम ह उह उनक सदर क वampत पर ह परखना होता ह म3 भी पहल यह कहता था क अगर लोग0 न इस काम को जद क़बल कर लया तो जद ह द1नया ख़र व बरकत का बहतरन ज़माना दखगी और म3 य गमान भी रखता था क लोग इस जद क़बल कर ल6ग लकन इसक लए म3 न कोई साल या तारख़ फUस होन क बात नह क थी और ना मझ या कसी को य हक़ बनता ह क वो आइदा क बात0 को अपनी तरफ स फUस कर द कोई भी आइदा क बात0 क बार म6 अपना गमान ह कर सकता ह आइदा क बात6 ग़ब का इम ह और य सफE अलाह ह क पास ह हा अOछा गमान करन का हक़ लोग0 को होता ह जसा क म3 न भी कया था मगर वampत आन पर अलाह क रज़ा म6 राज़ी होना ज़र होता ह क़रआन करम स य वाज़ह होता ह क हर ज़मान म6 आसमानी रहबर लोग0 क हक़ बात को क़बल करन का अOछ स अOछा गमान को लकर अपना काम पर तवBजोह स श करत थ मगर जब बलउमम लोग उस क़बल नह करत और रहबर का तरह-तरह स मज़ाक़ उड़ात और उह6 झटलात और रहबर अपनी सी तमाम कोशश6 कर डालत तो अलाह

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 25: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

पाक रहबर पर लोग0 क क़बल ना करन का इज़ाम नह डालत बलक रहबर को तसल दत और उनको सl करन का हUम दत फर अगर क़ौम को उसक नाफरमानी पर सज़ा दना होता तो रहबर और उसक साmथय0 को वहा स पहल 1नकाल दत या फर क़ौम को उसक सी हालात पर ढल द कर छोड़ दत और रहबर को उनक क़बल ना करन क वजह स मkमम ना होन क तरगीब दत क़रआन करम म6 ह - ldquo और बला शबाह आप स पहल जो रसल आए वो झटलाए जात रह तो उह0न उस झटलान और तकलफ पर सl ह कया यहा तक क हमार मदद उनको आ पहचीrdquo (अल-अनाम 34) ldquoए अफसोस बद0 तम पर नह आता कोई रसल मगर उसक साथ मज़ाक़ ह कया जाताrdquo (यासीन) हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स अलाह पाक न आप क मख़ालफन क बात0 क बार म6 फरमाया - ldquo आप उनक बात0 पर ग़मज़दा मत होइए हम जानत ह3 Uया कछ वो छपात ह और Uया वो ज़ाहर करत हrdquo (यासीन) कह फरमात ह3 - ldquoआप उन पर दारोग़ा नह ह3rdquo (सर गाशया 22) कह फरमात ह3 - ldquoमझ और इस कलाम को झटलान वाल0 को छोड़ीए हम उह6 इस तरह 1नकाल ल जाय6ग क

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 26: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

उह पता भी नह चलगा और म3 उह ढल दगा मर चाल बहत ज़बरदHत हrdquo (सरए क़लम 44-45) कह फरमात ह3 - ldquo आप िजस को चाह6 हदायत नह द सकत ह3 बक अलाह िजसको चाहता ह हदायत दता हrdquo (अल क़सस 56) मगर कह भी य नह फरमाया क इतन साल म6 आप न कतन शहर फतह कए या आप को फतह करन म6 इतनी दर Uय0 लग रह ह अगर कोई हज़रत मसा अलहHसलाम क बार म6 य सवाल करता क वो इतन साल तक मb म6 रह और बनी इbाइल क बारह हज़ार लोग0 न उनको क़बल कया फर भी उह0न मb फतह Uय0 नह कया तो इसका जवाब यह ह क रहबर का काम तो साफ-साफ पहचा दना होता ह अगर क़aती हज़रत मसा अलहHसलाम को क़बल करत तो ज़र मb तज़ी स फतह हो जाता चक क़िaतय0 न हज़रत मसा को बलउमम क़बल नह कया और बनी इbाइल क लोग मb म6 बहत ह कमज़ोर हालत म6 थ इसलए अलाह न उनको फ़रऔन क लeकर स लड़न का हUम नह दया बलक मb छोड़कर रात0 रात भाग जान का हUम दया और फ़रऔन और उसक लeकर स ख़द ह इ1तक़ाम ल लया मगर जब बनी इbाइल सीना क मदान म6 ठहर थ तो उह क़बीला अमालक़ा स लड़न का हUम दया गया िजस वो कर

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 27: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

सकत थ फर भी जब बनी इbाइल इस काम क लए भी त`यार नह हए तो अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य नह कहा क तम न इतन साल म6 इतना भी नह कया क तहार लोग अमालक़ा को फतह करत बक अलाह पाक न हज़रत मसा अलहHसलाम स य कहा क बनी इसराइल स य कहो क चालस साल तक इसी मदान म6 ठहर6 अलग़जE कसी रहबर क िज़म साफ-साफ पहचा दना होता ह ना क ज़बरदHती कसी स हक़ बात को क़बल करवाना हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न अरब म6 या अरब क बाहर हर श[स तक ख़द दावत नह पहचाई बक िजतन लोग0 न आप सललाह अलह व सलम को क़बल कया उसी क मनासब आप सललाह अलह व सलम क ज़मान म6 बराह राHत आप क ज़रए या आप क असहाब क ज़रए दावत पहच पाई बाक़ लोग0 म6 दावत ख़लफा-ए-राशदन क ज़मान म6 और उनक बाद क लोग0 क ज़रए पहची पस हर रहबर अपन ज़मान म6 वह तक दावत ख़द स या अपन साmथय0 क ज़Sरए पहचा पाता ह जहा तक उस क लए या उसक साmथय0 क लए ममकन होता ह हज़रत इlाहम अलहHसलाम को इराक़ क लोग0 न बलउमम क़बल नह कया तो वो और हज़रत लत

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 28: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

अलहHसलाम िजह0न उनको क़बल कया था हजरत कर क मक शाम चल गए हज़रत इlाहम अलहHसलाम को उनक ज़मान म6 बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत लत अलहHसलाम को तो सफE उनक घर वाल0 न क़बल कया उसम6 भी उनक बीवी ना फरमान ह 1नकल तो अलाह न उन हज़रात को इसका दोष नह दया बक उन लोग0 को ह ज़ालम कहा िजह0न उन नबय0 को क़बल नह कया हजरत इसहाक़ अलहHसलाम और हज़रत याक़ब अलहHसलाम को भी बहत कम लोग0 न क़बल कया हज़रत याक़ब अलहHसलाम अपन घरान क लोग0 को लकर िजह0न उनको क़बल कया था मb चल गए थ पस अलाह न कसी भी आसमानी रहबर को इस बार म6 क़सरवार नह ठहराया बक उनक हौसला अफज़ाई ह क और उनक मख़ालफन स ख़द ह 1नपट लया [वाह उनको ढल द या उनको कसी अज़ाब म6 पकड़ लया सहाह सQता म6 महद क ज़मान क कसी भी बड़ी जग का कोई िज़T नह ह (इसक तफसील क लए आप मर कताब महद क आमद क पशीनगोइया का जदद एडीशन पढ़ सकत ह3 जो क इनशाअलाह जद ह शायअ होन वाल ह ) मिHलम म6 महद अलहHसलाम क ज़मान क उस जग का िज़T ह िजस म6 महद अलहHसलाम क

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 29: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

साmथय0 क तादाद म6 ना होन यानी बहत ह कम तादाद म6 होन का िज़T ह और उस म6 य भी कहा गया ह क महद अलहHसलाम क साmथय0 क पास उस वampत ना कोई हmथयार होगा और ना ह लड़ाई स बचाओ का कोई सामान होगा जो लोग दBजाल क खज क ज़मान क जग0 म6 महद अलहHसलाम का नाम फट कर दत ह3 वो सहाह सQता स इसका एक भी सबत नह द सकत य तो लोग0 का गमान ह जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 म6 शामल हो गया ह जबक बाद क लोग0 को ऐस रावी मल नह पाय जस सहाह सQता क महVसीन को मल थ जो क अपनी सनी हई Sरवायत का सलसला हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा पात सहाह सQता क ज़मान क बाद अहादस क जो कताब6 ह3 उन म6 क अहादस या तो सहाह सQता स ल गई ह3 या फर सहाह सQता स पहल लखी गई कताब0 स या फर वो Sरवायत6 ह3 िजन को सहाह सQता क कसी भी महVस न सनद क हसाब स ऐतबार क क़ाबल नह समझा या फर वो जो क बाद म6 लोग0 स अहादस क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए सहह अहादस क परखन का मअयार उमत क पास सफE सहाह सQता ह ह बख़ार म6 ह क हज़र सललाह अलह व सलम क सामन उमत6 पश क गo तो आप सललाह अलह व

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 30: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

सलम न ऐस भी नबी दख िजन क साथ एक भी उमती नह था पस अगर हदायत का दना या रहबर को ज़बरदHती क़बल करवा लना रहबर क िज़म होता तो बहत स आसमानी रहबर क़यामत क दन क़सरवार ठहराय जात असल बात यह ह क आसमानी रहबर क िज़म सफE साफ-साफ पहचा दना होता ह और उनक बात6 वाज़ह दलाइल वाल होती ह3 मगर क़बल करना या ना करना लोग0 क िज़म होता ह रहबर उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करत ह3 जो उनको क़बल करत ह3 जो लोग आसमानी रहबर को ठकरा कर ख़द अपन ऊपर ज़म करत ह3 कोई रहबर उनको कस इसाफ स भर सकता ह हज़र सललाह अलह व सलम क िज़म भी उन लोग0 म6 ह इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था क़रआन करम म6 ह- (तअBजब क बात ह) य लोग कस आप को मसफ़ बनात ह3 जबक इनक पास तौरात ह िजस म6 अलाह क बताए हए अहकामात ह3 इसक बाद भी वो फर जात ह3 दरअसल वो ईमान वाल ह3 ह नह (अलमाइदा43) इस आयात स साफ ज़ाहर होता क हज़र स क िज़म सफE उह लोग0 म6 इसाफ क़ायम करना था िजह0न आप को क़बल कया था

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 31: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

5 ndash रहमत और बरकत कस क साथ होती ह अलाह क रहमत और बरकत आसमानी रहबर और उसक साmथय0 पर नािज़ल होती ह अलाह क ग़बी ताईद रहबर और उसक साmथय0 क साथ होती ह मख़ालफन क साथ नह अगर हज़रत मसा अलहHसलाम क या कसी और आसमानी रहबर क मख़ालफन य कहत क अगर तम सOच हो तो बताओ क हमार ऊपर तहार बरकत6 Uय0 नह नािज़ल होती और हमार लए ग़बी ख़ज़ान Uय0 नह खलत तो उनको Uया कहा जाता क रहबर क मख़ालफन स तो अलाह नाराज़ होता ह और िजस स अलाह नाराज़ होता ह उस पर रहमत और बरकत नािज़ल नह करता जानना चाहए क बनी इbाइल पर मन वा सवा मb म6 नािज़ल नह हआ जहा हज़रत मसा अलहHसलाम क मख़ालफन क तादाद कसरत स थी बक सीना क मदान म6 नािज़ल हआ जहा सफE बनी इbाइल ठहर हए थ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम को अलाह पाक न तमाम आलम क तरफ हदायत का पग़ाम पहचान वाला बना कर भजा और आप स स फरमाया क हम न आप को नह भजा मगर तमाम आलम क लए रहमत बना कर फर भी आप स क ज़मान म6 द1नया क कल आबाद का बहत थोड़ा हHसा ह आप स क लाय हए दन को क़बल कर पाया और आज तक अरब0 लोग ऐस ह3 जो क आप क

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 32: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

लाय हए दन स नफरत रखत ह3 या इसको क़बल नह करत तो य क़सर क़बल ना करन वाल0 का ह अलाह पाक न आप स फरमाया क आप कसको चाह हदायत नह द सकत बक अलाह िजस को चाहता ह हदायत दता ह पस रहबर क िज़म तो साफ-साफ पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना तो लोग0 क िज़म होता ह इसलए क द1नया इसान क इितहान क लए ह यहा कसी को हदायत ज़बरदHती नह मलती क़रआन करम म6 ह - य(क़रआन) तमाम आलम क लए नसीहत क अलावा और कछ नह ह(अल तकवीर 27) पस िजस न क़रआन करम स नसीहत नह पकड़ी य उसका क़सर ह पस महद क िज़म भी साफ-साफ पहचाना होता ह ना क कसी को ज़बरदHती हदायत दना इसक मसाल य समझो क कोई सरकार आदमी सरकार क तरफ स कसी मोहल क तमाम लोग0 को p म6 दध बाटन आए तो जो कोई उसको ना ल य उसका क़सर ह और जो लकर उसको फ6 क द तो य उसका क़सर ह इसलए क दध तक़सीम करन वाला तो हर एक क लए दध ल कर आया था और उसक पास दध इतना था भी जो पर मोहल क लए काफ होता मगर कोई श[स ख़द तो दध ल नह और दसर0 को भी दध लन स रोक फर दध बाटन वाल पर

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 33: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

य इज़ाम लगाए क सरकार न तो य ऐलान कया था क दध सार मोहल वाल0 क लए ह और उस स सार मोहल वाल फ़ाएदा उठाएग तो अगर दध वाला वाक़ई सरकार आदमी होता तो उसका दध सार मोहल वाल लत और हर कोई उसका लाया हआ दध पी कर नफा उठाता तो उस कम अक़ल को कौन समझाय क दध बाटन वाल क िज़म सफE सह दध लाकर बाटना होता ह कसी को ज़बरदHती दध दना नह और ना ह कसी क मह म6 ज़बरदHती दध डालना और ना ह कसी ऐस क पीछ पड़ना जो दध लकर फ6 क डाल मिHलम क हदस स मालम पड़ता ह क महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल इसी उमत क लोग ह0ग महद क Gख़लाफ आन वाल0 को हज़र सललाह अलह व सलम न अपनी उमत क लोग कहा ह और साथ म6 ताBजब का इज़हार भी कया ह य महद क मख़ालफत म6 खड़ होन वाल लोग हज़र सललाह अलह व सलम वाला कलमा पड़न वाल ह3 सहाह सQता म6 दजE अहादस स महद क Gख़लाफ आन वाल एक लeकर पर अलाह क पकड़ आन का वाज़ह सबत तो मलता ह [वाह उस लeकर म6 आन वाल लोग मजबर कर क लाय गए ह0 या क ख़शी स आए ह0 या क उस वampत राह चलत कछ लोग ह0 मगर सहाह सQता क अहादस म6 महद क बाक़ मख़ालफन का हाल कह भी दजE नह ह

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 34: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

इसलए बाक़ को अलाह पाक ढल द6ग या उनक साथ Uया मामला कर6ग इसका पता तो वampत और हालात क साथ-साथ ह चल सकता ह 6 ndash फतव कस स लए जाए अगर अहल हदस वाल0 स दओबद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनको बदअती क़रार द6ग और साथ म6 य हदस भी सना दत ह3 क हर बदअत गमराह ह और हर गमराह जहनम म6 ह तो Uया उनक फतव स कोई जहनमी हो जाता ह या बदअती हो जाता ह जहमी तो वो हो जात ह3 जो कसी को अलाह का शरक ठहरात ह3 या ख़राफाती बदआत करत ह3 अगर जमाअत इHलामी क बार म6 दओबद अक़ाइद रखन वाल0 स फतवा लया जाए तो सहाबा क Gख़लाफ गHताखी का फतवा दकर उह6 फ़तना क़रार दत ह3 अगर बरल^वय0 स दओबद क अक़ाइद क बार म6 फतवा लया जाए तो वो उनक अक़ाइद रखन वाल0 को इHलाम स ख़ाSरज ह नह बक बाज़ तो वािजबल क़Qल तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर दओबद क बानी और वहा क बड़0 क़ासम नानोQवी रशीद अहमद गगोह अशरफ अल थानवी और ख़लल अहमद अबqवी पर लगाए गए मUका क बीस और मदना क तरह कल त3तीस मिfतय0 क फतव दखा दत ह3( इन मfतीय0 न ग़ब क इम क मौज और कछ दसर मौज़ पर दओबद क इन बड़ बड़0 पर कgt

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 35: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

का फतवा लगाया था इन म]तीय0 म6 स बाज़ न इह मतEद इHलाम कहा था तो बाज़ न इह वािजबल क़Qल कहा था और बाज़ न य कहा था क इनक Gख़लाफ मबर0 और मिHजद0 म6 नफरत अगज़ बात6 क जाए और मजम म6 इह हक़ारत क 1नगाह स दखा जाए ताक इनका फ़तना हदHतान स बाहर अरब0 तक ना पहच जाए ( य फतवा उह0 न 1900 AD म6 दया था मUका और मदना क इतन सार म]तीय0 क फतव क बावजद Uया लोग अशरफ अल थानवी क़ासम नानोQवी खलल अहमद अबqवी रशीद अहमद गगोह को काफर समझत ह3 या ख़ाSरज अज़ इHलाम समझत ह3 या गHताख रसल समझत ह3 और Uया इस ब1नयाद पर य समझत ह3 क उनक सज़ा क़Qल कया जाना था या फर उन उलमा को िजह0न इन पर फतव दय बा1तल क़रार दत ह3 पस अगर मUका और मदना क इन उलमा को हक़ पर मानत ह3 तो इनक फतव क मताबक़ इन हज़रात को िजन का ऊपर िज़T कया गया ह ग़लत Uय0 नह मानत और अगर मान लो क अगर उह0न अपनी बात0 स तौबा कर भी ल हो ( अगर ऐसा हआ ह तो इसका वाज़ह सबत मर पास नह ह) तो Uया लोग य मानत ह3 क य लोग कसी ज़मान म6 काफर हो चक थ और क़Qल क सज़ा दय जान क लायक़ हो चक थ और बाद म6 फर स कलमा पढ़ कर मसलमान हए ह3

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 36: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

पस ज़ाहर सी बात ह क आप अगर कसी को हक़ पर मानत ह3 तो उसक फतव को आप तHलम कर6 या उसक हर बात को तHलम कर6 क य सह ह आप पर लािज़म नह आता और अगर आप पर लािज़म आता ह तो फर ऐसा Uय0 नह करत जसा ऊपर कहा गया ह अगर कोई मझ स य कहता ह क अगर तम तबलग़ क लोग0 को हक़ पर मानत हो तो दओबद क फतव को Uय0 नह मानत तो म3 उस स य पछता ह क वो भी तो मUका और मदना क म]तीय0 को हक़ पर मानत ह3 फर उनक फतव को Uय0 नह मानत ह3 अगर कोई तबलगी जमाअत क बार म6 अहल हदस स फतवा लन जाए तो इन म6 बाज़ तो इह बदअती गमराह जाहल0 क जमाअत और शकE पर अमल करन वाल जमाअत तक कह डालत ह3 और हवाल क तौर पर इaन बाज़ (जो क सऊद सरकार क जा1नब स मफतीए आज़म क ओहद पर फ़ाइज़ कए गए थ वो 1993ई स 1999ई म अपन इतक़ाल स पहल तक उस ओहद पर फ़ाइज़ थ) का फतवा पश करत ह3 िजह0न हदHतान स 1नकलन वाल इस तबलगी जमाअत को बदअती और शकE पर अमल परा कहा था और इस म6 1नकलन को नाजायज़ कहा था अहल हदस वाल0 का कहना ह क य फतवा इaन बाज़ स उनक इतक़ाल स दो साल पहल लया गया ह

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 37: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

इसक अलावा वो य कहत ह3 क उनक इतक़ाल स बारह साल पहल और कछ इस स भी पहल जो उन स फतव लए गए थ उनम6 उह0न तaलगी जमाअत क य कहत हए ताईद क थी क इस जमाआत क श क उलमा क अक़ाइद दgHत नह थ लकन मौजदा तबलगी जमाअत अपन बड़0 क इन अक़ाइद स पाक साफ ह और तबलगी 1नसाब अहल बदअत क आमाल वा अक़ाइद पर मeतमल थी मगर अब तबलगी जमाअत क लोग0 न तबलगी 1नसाब को छोड़ दया ह और इसक जगह फ़ज़ाइल आमाल नाम क एक कताब को अपना 1नसाब बना लया ह उनक मताबक़ जब इaन बाज़ को पता चला क तबलगी 1नसाब और फ़ज़ाइल आमाल एक ह कताब क अलग-अलग नाम ह3 तो उह0न इस जमाअत म6 जान को नाजायज़ कहा िजसका ऊपर िज़T कया गया नीज़ वो इaन बाज़ क उHताद महमद बन इlाहम जो क 1953 स 1969 तक इसी ओहद पर फाइज़ थ क फतव का हवाला दत ह3 िजह0न इस तबलगी जमाअत को बदअती और गमराह होन का फतवा दया था नीज़ वो नासीgVीन अलबानी का फतवा दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क साथ खज़ करना जायज़ नह इसलए क य तबलगी जमाअत कताबलाह और सनत रसललाह क तरक़ पर नह नीज़ वो अaदररWज़ाक उफ़फ़ का फतवा

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 38: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

दखात ह3 िजह0न य कहा था क इस जमाअत क लोग अलाह क राHत म6 नह 1नकलत बक य लोग बानी-ए-जमाअत इलयास साहब क वज़ा करदा राHत और तरक़ पर 1नकलत ह3 य सब अपन ज़मान क अरब क माgफ़ वा मशहर मfती ह3 तो Uया आप इनक फतव0 क बनयाद पर तबलगी जमाअत को बदअती शरकया जमाअत या गमराह जमाअत मानत ह3 या क उन लोग0 को िजह0न तबलग क Gख़लाफ फतवा सादर कया ह आप बा1तल पर मानत ह3 ज़ाहर सी बात ह क आप इन को हक़ पर मानत ह3 फर भी इनक फतव को नह मानत रह बात पशीनगोईय0 क तो इसको कसी क फतव क ज़रत नह इस तो अहादस क अलफाज़ स परखना होता ह उमत क लए अहादस को जानन का सहह पमाना सहाह सQता ह इसलए पशीनगोई क कसी बात को चल6ज करन क लए सहाह सQता क अफ़ाज़ को दलल क तौर पर पश करना होता ह मगर इनक भी दजR ह3 अगर एक ह पशीनगोई मिHलम और अब दाउद दोन0 म6 हो तो मिHलम क Sरवायत को तरजीह दनी होती ह और अगर एक ह मौक क दो अलग-अलग अदाज़ म6 एक ह कताब म6 (मसलन 1तरमज़ी या अब दाउद वग़रह म6) हो तो इन म6 स

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 39: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

वampत आन पर एक भी पर हो गई तो समझना होता ह क वो पशीनगोई पर हो चक और दसर म6 रावी स नक़ल करन म6 कछ भल चक हो गई ह इसलए क तहक़क़ात इसानी कोशश0 का नतीजा ह इस म6 कभी कभार ऊच नीच का ख़तरा हो सकता ह मगर य फसला भी पशीनगोई स सादर होन क वampत ह लया जा सकता ह हज़र सललाह अलह वसलम क ज़मान स मतािलक़ भी जब एक ह मौक़ क दो अलग-अलग बात6 सहाह सQता क कसी एक ह कताब म6 बयान क हई मलती ह3 और उन म6 क एक दसर क Gख़लाफ होती ह3 उनक लए भी यह उसल होता ह क उन म6 का कोई एक वाक़या ज़र उस ज़मान म6 नमा हआ होगा हा य बात बकल वाज़ह ह क सहाह सQता क कसी भी कताब पर बाद क कसी कताब को तरजीह नह दनी होती ह 7- हदampस का इ2म- सहाह सQता इस उमत म6सहह अहादस को जानन क लए मीटर क तरह ह सहह हदस मालम करन क लए शाह वलउलाह का क़ौल पश नह करना होता ह बक सहाह सQता म6 मौजद हज़र क अफ़ाज़ बतान होत ह3 पशीनगोई ग़ब का इम ह इस हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स परखना होता ह ना क कसी और क क़ौल स शाह वलउलाह न अब दाउद क Sरवायत क

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 40: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

ब1नयाद पर कहा ह मिHलम का दजाE अब दाउद स Wयादा ह अगर मिHलम क Sरवायत पढ6 तो हज़र सललाह अलह व सलम क अफ़ाज़ हाज़लबत या बलबत ह3 और वहा मक़ाम का िज़T नह ह पस पशीनगोइया सहह अहादस स हासल करना होता ह ना क कसी क क़ौल स अगर कोई अपनी मज़r स मीटर बना ल फर उसस नाप कर सरकार मीटर रखन वाल0 को ग़लत कह तो उस स बड़ा बवक़फ कौन होगा सहाह सQता मीटर क तरह ह उनक महVसीन तक जो भी बात6 हज़र क 1नHबत स पहची ह3 और उनक तहक़क़ात क मताबक़ उनको दgHत मालम हo तो उह0न उनक एक-एक लfज़ को हज़र सललाह अलह वसलम क अमानत समझ कर जमा कया ह ईसा अलहHसलाम क ज़मान क मतािलक़ कई पशीनगोइया सहाह सQता क अलग-अलग कताब0 म6 ह3 बख़ार और मिHलम म6 तो ईसा अलहHसलाम क पदाइश का साफ-साफ िज़T ह ( िजसका तफ़सील िज़T म3 असा gलाह क जवाब क तहत कर चका ह) सहाह सQता क कसी भी Sरवायत म6 ईसा अलहHसलाम क आसमान स आन का कोई भी िज़T नह ह तो Uया सहाह सQता क तमाम महVसीन न आसमान (यानी मनHसमा) क लfज़ को ग़ायब कर दया नहनह सह बात यह ह क हज़र सललाह अलह व सलम न ईसा अल क पदाइश का

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 41: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

साफ-साफ िज़T कया ह और आसमान स आन का सहाह सQता म6 कोई िज़T नह ह अब कोई सहाह सQता क इन साफ-साफ दलल0 को छोड़ कर बाद क Sरवायत6 पश कर क य साबत कर क वो आसमान स आएग तो वो ऐसा ह ह जस कोई अपना मीटर बना कर सरकार मीटर स मापन वाल0 को बरा भला कह और उन पर फ़तव लगाए तो ऐस0 का Uया जवाब ह अगर इनक नज़दक सहाह सQता क कोई अहमयत नह ह तो य सहाह सQता क इन छह कताब0 को ज़ईफ क़रार द कर इनक जगह इनक बाद क लखी गई दसर छह कताब0 को मला कर सहाह सQता Uय0 नह क़रार दत सहाह सQता म6 महद और ईसा क नाम स कई Sरवायत6 ह3 मगर कसी एक भी हदस म6 ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T नह ह मज़ीद य क इaन माजा म6 ईसा और महद अल को साफ-साफ एक ह शि7सयत बताया गया ह नीज़ बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का साफ-साफ िज़T कया गया ह इस स साफ पता चलता ह क ईसा और महद एक ह शि7सयत क दो अलग-अलग नाम ह3 और दोन0 नाम दो शि7सयत0 क होन का सहाह सQता म6 एक भी सबत नह ह अगर दोन0 एक ह शि7सयत नह होत तो कह ना कह एक ह Sरवायत म6

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 42: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

दोन0 नाम0 का िज़T होता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश का िज़T नह होता लोग मिHलम क Sरवायत जहा इमाम का लfज़ ह वहा महद का नाम ज़बरदHती फट करत ह3 हालाक ऐसी तमाम Sरवायत0 म6 जहा ह क ईसा स मसलमान0 का इमाम कहगा क आप नमाज़ पढ़ाइए बाज़ लोग अपनी मितक़ स महद का नाम फट करत ह3 मिHलम न तो हज़र सललाह अलह व सलम क अमानत समझ कर हदस का एक-एक लfज़ जमा कया लकन लोग कतनी ब हयाई स मिHलम का हवाला दत ह3 और Sरवायत उस कताब स लत ह3 जो सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई ह तो Uया बाद क लोग बख़ार और मिHलम स Wयादा सहह Sरवायत6 जमा करन वाल थ Uया बाद क इन लोग0 को ऐस रावी मल जो अपनी सनी हई Sरवायत0 क 1नHबत को हज़र सललाह अलह व सलम तक पहचा सक6 सहाह सQता क बाद तो ऐसा ज़माना ह नह रह पाया बाद क लोग0 न तो अपन स पहल क कताब0 स ह कताब6 लखी ह या फर वो बात6 लखी ह3 जो लोग0 स Sरवायत0 क नक़ल करन म6 कछ भल चक हो जाती थी जो बख़ार और मिHलम क मक़ाबल पर कई सौ साल बाद क कताब0 क हवाल पश करत ह3 उन क बात स तो य ज़ाहर होता ह क बख़ार और मिHलम को हदस क

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 43: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

अफ़ाज़ लखन क लए इतज़ार करना चाहए था क इनक कई सौ साल बाद कह कोई ऐसा पदा ना हो जाए जो इनक जमा क हई हदस क अफ़ाज़ म6 कोई नया लfज़ शामल कर द और ऐस नज़Sरय स तो साफ पता चलता ह क सहाह सQता क छह क छह महVसीन क इन तमाम महनत0 क बावजद उस ज़मान तक उमत म6 सहह हदस6 पहच ह नह पाo पस य ग़लत नज़Sरया ह क सहाह सQता क अफ़ाज़ को छोड़ कर बाद क लखी गई कताब0 क अफ़ाज़ उसक जगह फट कए जाए हासल कलाम य ह क पशीनगोइया ग़ब का इम ह अगर कसी को पशीनगोइया जानना ह तो हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ जानना होगा ना क दसर क बात0 स और हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ मालम करन को सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ स बहतर कोई नह पस बाद क कताब0 क अफ़ाज़ लख तो जा सकत ह3 मगर इन क सह होन क कोई गारट नह ल सकता इसलए इनक ब1नयाद पर कोई चल6ज नह कया जा सकता ह पस अगर कोई य समझता ह क ईसा आसमान स आएग तो वो सहाह सQता म6 दजE ईसा अलहHसलाम क आमद स मतािलक़ कसी एक भी Sरवायत म6 आसमान(यानी मनHसमा) का लfज़ दखाए

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 44: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

कोई य समझता ह क ईसा अल पदा नह हो सकत तो वो बख़ार और मिHलम म6 ईसा क पदाइश क अफ़ाज़ पर ग़ौर कर (इसका तफ़सील िज़T म3 असाgलाह क जवाब क तहत कर चका ह यहा तफसील क गजाइश नह) अगर कोई य समझता ह क ईसा और महद दो अलग-अलग शि7सयत ह तो वो सहाह सQता क एक भी Sरवायत दखा द िजस म6 दोन0 नाम0 का िज़T कया गया हो उस चाहए क वो इaन माजा म6 दजE ईसाndashमहद क एक ह शि7सयत होन क हज़र सल क अफ़ाज़ पढ़ बाज़ लोग ईसा और महद क एक ह शि7सयत होन वाल Sरवायत को झटलान को या इस दलल स अपनी गदEन छड़ान को तरह-तरह क तावीलत करत ह3 तो जानना चाहए क पशीनगोइया ग़ब का इम ह इस स मतािलक़ वampत स पहल कछ गमान करना या तावील 1नकालना कोई बर बात नह इसलए क ऐसा हर ज़मान म6 लोग करत आए ह3 मगर जब क पशीनगोई ह-ब-ह हज़र सलक बताए हए अफ़ाज़ क मताबक़ पर हो रह हो फर अपन या कसी क वampत स पहल गमान पर अड़ रहना हमाक़त क बात ह बाज़ लोग इस मामल म6 तावील 1नकालन क कोशश करत ह3 मगर बाज़ हदस क सनद पर कलाम करन क कोशश करत ह3 और इसक लए हाकम इaन तीमया और नासgVीन अलबानी क महVसीन क क़ौल नक़ल करत ह3 तो

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 45: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

उह6 य जानना चाहए क य Sरवायत इमाम शाफई न एक सलसल क साथ हज़र अकरम सललाह अलह व सलम स नक़ल क ह और इस इमाम अहमद बन हबल न अपनी कताब मसनद अहमद म6 नक़ल कया ह और सहाह सQता क एक महVस इaन माजा न इस अपनी कताब म6 नक़ल कया ह और इन तीन0 म6 स कसी भी महVस न इस ज़ईफ नह कहा ह और तीन0 क नज़दक य Sरवायत सह ह इनका ज़माना हज़र सललाह अलह वसलम स बाद क इन लोग0 स बहत ह क़रब का ह पस सहाह सQता क बाद का कोई भी महVस इन स Wयादा अहादस क सनद और इसक रावी को परखन वाला नह ह हाकम तो बख़ार क भी तक़रबन सौ साल बाद क ह3 Uया कोई हाकम को इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस मानता ह हरmगज़ नह इaन तीमया तो ग़र मक़िलद थ इनक तहक़क़ तो य ह क हज़र सललाह अलह व सलम क क़l क िज़यारत क लए जाना भी बदअत ह इनक तहक़क़ क मताबक़ एक मजलस म6 तीन तलाक़ दन स एक ह तलाक़ होती ह नासgVीन अलबानी तो तबलग़ क जमाअत म6 जान को नाजायज़ क़रार दत थ फर म3 पछता ह क जो लोग इनक तहक़क़ात का हवाला पश करत ह3 वो ग़र मक़िलद Uय0 नह हो जात और इनक तहक़क़ात और इनक दलल0 क मताबक़ इनक फतव0 को

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 46: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

Uय0 नह मानत िजन लोग0 का वो हवाला दत ह3 पस जब अपना मौक़ा आता ह तो इधर उधर क बोलन लगत ह3 तो फर दसर0 को इनक तहक़क़ात का पाबद Uय0 बनाना चाहत ह3 Uया इन म6 स कोई भी ऐसा ह िजह इमाम शाफई इमाम अहमद बन हबल और इaन माजा स बड़ा महVस माना जाए बात दरअसल यह ह क िजन लोग0 को हक़ बात वampत पर हज़म नह होती वो बहाना ढढत ह3 कसी तरह इस हक़क़त स बच 1नकलन का ईसाndashमहद एक ह शि7सयत होन क वजह स ह मिHलम म क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 ईसा का नाम तो ह मगर महद नाम का कोई िज़T नह ह चक एक नाम आ ह गया इसलए दसर नाम क ज़रत नह हालाक अब दाउद और 1तरमज़ी म6 य कहा गया ह क क़यामत आन म6 एक दन भी बाक़ रहगा तो अलाह पाक महद को ज़र भजगा पस िजस क शि7सयत इतनी अहम ह अगर वो ईसा अल क अलावा और कोई होता तो सहाह सQता म6 कह ना कह क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद नाम का िज़T ज़र होता सहाह सQता म6 क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 तीन ज़लज़ल0 का अलग-अलग िज़T ह और इह6 क़यामत क तीन अलग बड़ी-बड़ी 1नशा1नय0 म6 शमार कया गया ह

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 47: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

फर अगर महद क शि7सयत ईसा अल स अलग होती तो क़यामत क दस बड़ी 1नशा1नय0 म6 महद का नाम ज़र िज़T होता और इaन माजा म6 ईसाndashमहद को एक नह कहा जाता और बख़ार और मिHलम म6 ईसा अल क पदाइश का िज़T नह होता और सहाह सQता म6 ईसा और महद क नाम क तालक़ स इतनी सार हदस0 क होन क बावजद कसी एक Sरवायत म6 ह सह ईसा और महद दोन0 नाम0 का िज़T ज़र होता अगर कोई कसी हदस क वampत स पहल अपनी तरफ स तावील 1नकाल तो उसक मज़r मगर जबक वampत पर पशीनगोई हज़र सल क बराह राHत अफ़ाज़ क मताबक़ पर होती हो तो पहल स क गई तावील0 पर जम रहना हमाक़त क बात ह इसक कई मसाल6 म3 पहल द चका ह यहा तफसील क गजाइश नह यहा तो मझ सफE फतव क हसयत और पशीनगोइय0 क असल हसयत को समझाना ह पस अगर अब भी कोई ईसा महद को एक ह नह जान तो य उसक मज़r ह ना क हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ हज़र सललाह अलह वसलम न तो दोन0 को एक कहा ह पस अगर कोई सहाह सQता को दसर तमाम बाद क लखी गई कताब0 पर तरजीह दता ह तो कम अज़ कम उस पर य लािज़म आता ह क वो सहाह सQता क सहह अहादस को

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 48: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

तHलम करन वाल0 क Gखलाफ बाद क कताब0 क ज़ईफ अफ़ाज़ लकर खड़ा ना हो म3 पछता ह क जो अपनी कसी बात क दलल सहाह सQता क कई सौ साल बाद लखी गई कताब0 स पश करता हो वो ख़द को इHलाम स ख़ाSरज नह समझता हो तो वो कसी ऐस श[स को इHलाम स कस ख़ाSरज समझ सकता ह जो क अपनी बात क दलल सहाह सQता स पश करता हो इतनी अक़ल तो अUसर वा बशतर लोग0 को होती ह क कसी हदस को मानन स कोई इHलाम स ख़ाSरज नह होता ह अलबQता कसी हदस क इनकार करन स हो सकता ह मगर िजसक अक़ल इस स भी नीच चल गई हो तो उसको कोई कस अक़ल सखा सकता ह 8- मरamp कताब म नज़4रयात क ल5ज़ स ग़लत फहमी - बाज़ लोग य समझत ह3 क म3 न अपनी कताब क नाम म6 नज़Sरयात का लfज़ इसलए लखा ह ताक म3 इHलाम क बात0 को अपन नज़Sरय स पश करना चाहता ह य सोच क़तअन ग़लत ह म3 न अपनी कताब का नाम इHलामयात साइस और नज़Sरयात इसलए रखा ह क क़रआन वा अहादस म6 इHलाम क हक़क़त Uया ह और आम लोग इसक बार म6 अलग-अलग नज़Sरय कस तरह पश करत ह3 या फर अलग-

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 49: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

अलग जमाअत6 एक ह हदस को पश कर क अपन अलग-अलग नज़Sरयात कस तरह पश करती ह3 इसी तरह साइस क हक़क़त Uया ह और लोग इसक बार म6 Uया-Uया अलग-अलग नज़Sरय रखत ह3 चक मर कताब पशीनगोइय0 क तालक़ क नज़Sरयात और इनक हक़क़त को ह आम तौर पर वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर आदत कसी शि7सयत को एतराज़ का 1नशाना बनान क नह ह इसलए म3 न अपनी कताब म6 लोग0 क पशीनगोइय0 स मतािलक़ नज़Sरयात को उममी अदाज़ म6 पश कया ह और क़रआन वा अहादस स इसक हक़क़त को वाज़ह करन क कोशश क ह दरअसल मर कताब का परा नाम ldquo इHलाम म6 साइस और पशीनगोइय0 क हक़क़त और इस स मतािलक़ लोग0 क नज़Sरयातrdquo ह िजस म6 न इ7तसार म6 ldquoइHलामयात साइस और नज़Sरयातrdquo रखा ह मझ उमीद ह क कोई भी ज़ी अक़ल अगर मर कताब को इसाफ क नज़र स पढ़गा तो वह पाएगा जो म3 न ऊपर लखा ह 9- रहबर को कस काम करना चा(हए बाज़ लोग य जानना चाहत ह3 क हज़र अकरम सललाह अलह वसलम तो सब स खल कर मलत थ फर य कौन सा तरक़ा ह क रहबर लोग0 म6 हर एक स ना

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 50: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

मल और िजस स चाह उसी स मलाक़ात कर और बात कर Uया य भी नहज नब_वत का हHसा ह अ_वल तो म3 इस मामल म6 य कहना चाहता ह क द1नया म6 जो भी आसमानी रहबर आया उसक साथ Uया हालात वा वाक़यात पश आए और उनका हल Uया ह और उनको कस हकमत स काम करना होता ह इसका फसला अलाह तआला करत ह3 ना क दसर लोग हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न मUका म6 सब स पहल सफा क पहाड़ी पर खड़ हो कर अलल ऐलान लोग0 को अलाह क तरफ बलाया तो लोग आप क ज़बरदHत मख़ालफ हो गए फर आप ख़ामोशी क साथ दावत दन लग फर भी आम तौर पर लोग आप क मख़ालफत ह करत रह मगर र]ता-र]ता कछ लोग आप क दावत को क़बल करन लग और वो भी ख़ामोशी स महनत करन लग हQता क एक वampत आया क हज़रत हमज़ा और हज़रत उमर जस बहादर लोग भी आपक साथ हो गए तो हज़रत अब बT क दर7वाHत पर आप और आप क सहाबा-ए-कराम खल कर अलल ऐलान दावत दन को काबा म6 पहच और हज़रत अबबT ऐला1नया ख़Qबा दन को खड़ हए फर आप क मख़ालफन न हगामा बरपा कया और लड़न पर तल गए िजस क नतीज म6 हज़रत अबबT र अ बर तरह ज़[मी हो गए फर जब तक आप मUका म6 रह आप न या आप क सहाबा न कभी भी मUका

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 51: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

म6 इस तरह कोई तक़रर नह क हQता क आप मUका स हजरत कर गए और क़बा म6 पहच गए तो आप न जमा का पहला ख़Qबा दया जो क अलल ऐलान था जब आप मUका म6 थ छप कर रात क वampत मना म6 जा कर मदना क लोग0 को जो हज क ग़ज़E स आत थ दावत दत थ यह वजह ह क बत उक़बा ऊला और बत उक़बा सानी दोन0 मना म6 हई ह3 और इसक वाHत हज़र अकरम सललाह अलह व सलम छप कर आधी रात क बाद मना म6 हज़रत अaबास को साथ ल कर आत थ हालाक उस वampत तक हज़रत अaबास मसलमान नह हए थ मगर हज़र सललाह अलह व सलम का इन मामल0 म6 कछ ना कछ साथ दत थ हजरत क ज़मान म6 जब मUका वाल0 न आप क घर का घराओ कर रखा था तो आप और हज़रत अब बT छप कर रात क वampत मUका स यमन क राHत क जा1नब गए और मUका स कछ दर एक पहाड़ क खोहगार सौर म6 तीन दन तक छप कर रह फर छप-छप कर मदना मन_वरा पहच अब अगर कोई य पछ क हज़र सललाह अलह वसलम न य काम छप कर Uय0 कए या हज़रत उमर क तरह अलल ऐलान हजरत कर क Uय0 नह गए तो उस कौन समझाएगा क आसमानी रहबर का काम हकमत स भरा

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 52: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

होता ह हर ज़मान म6 अलाह पाक उस ज़मान क मनासब ऐतबार स उन स काम लत रहत ह3 अब रह बात महद क तो अब दाउद क Sरवायत म6 ह क महद क पास लोग बत क लए आएग और वो नाराज़ हो रहा होगा अब सोचो क जो श7स सफE तहक़क़ करन वाल ह नह बलक बत क लए भी इस रहबर क मज़r क Gख़लाफ आन वाल0 स नाराज़ हो रहा हो वो अपन मख़ालफ स खल कर मलता रह इसक Uया दलल ह ऊपर क हदस स Uया य साबत नह होता क महद क काम करन क इस तरक़ क हज़र सललाह अलह व सलम न पहल ह पशीनगोई कर रखी ह और Uया य तरक़ा भी हज़र सललाह अलह व सलम क बताए हए तरक़ म6 शामल नह ह पस महद क काम करन का यह तरक़ा भी हज़र सललाह अलह वसलम क बताई नहज का हHसा ह म3 य पछता ह क कभी हज़र सललाह अलह व सलम न अपन स बत करन क ग़ज़E स आन वाल स नाराज़गी ज़ाहर क तो जो लोग इस मामल म6 महद अल क लोग0 स मलन क तरक़ को हज़र सललाह अलह व सलम क तरक़ स मसाल दत ह Uया वो हज़र सललाह अलह व सलम क इस हदस स वाक़फ नह ह3 पस उह6 चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम क इस हदस को ग़ौर स पढ6 हज़र सललाह अलह वसलम न अगरच

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 53: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

इस नाराज़गी को एक मक़ाम पर िज़T कया ह मगर हज़र क अफ़ाज़ जाम होत ह इसलए समझना चाहए क हज़र सललाह अलह वसलम न यहा य बता कर महद क मजाज़ और उनक काम करन क इस मामल म6 उममी अदाज़ का जाइज़ा पश कया ह रह बात मक़ाम क तो यह बात म3 कई बार तफसील स बता चका ह क पशीनगोइय0 म6 बाज़ मतEबा मक़ाम का नाम राज़ म6 रहता ह जो क वampत पर ज़ाहर होता ह ( यहा इसक तफसील क गजाइश नह) 10 ndash महदamp को क़बल करन वाल - बाज़ लोग य समझत ह3 क महद क ख़बर सनत ह सार मसलमान एक साथ उह6 पहचान जाय6ग या सOचा रहबर तHलम कर ल6ग य गमान अगर कोई उसक वampत स पहल करता ह तो अOछा ह मगर सवाल य ह क ऐसा हो इसक Uया गारट ह जबक सहाह सQता म6 दजE हज़र सललाह अलह वसलम क हदस म6 महद क Gख़लाफ आन वाल लोग0 को हज़र न अपनी उमत क लोग कहा ह अब मानो ऐसा ह हआ हो तो बहत अOछा मगर मानो क इस उमत क बहत स लोग महद क मख़ालफत करन लग6 तो उह6 कौन समझाएगा क लोग0 न य गमान कर रखा ह क एक लeकर क सवा महद क मख़ालफत म6 मसलमान0 म6 स कोई भी खड़ा नह होगा इसलए तह6 इस मख़ालफत

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 54: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

का कोई हक़ नह ह कसी आसमानी रहबर क ज़मान म6 Uया-Uया हो सकता ह इसक ख़बर यक़नी तौर पर कौन द सकता ह इसक ख़बर तो पशीनगोइय0 म6 मल सकती ह या फर वampत आन पर ह पता चल सकता ह क उसक साथ Uया-Uया हालात आ सकत ह3 इसलए क पशीनगोइया तो सफE खास-खास बात0 क होती ह3 हर बात क पशीनगोई नह होती ऐसा तो जब कहा जा सकता था जबक पहल आए आसमानी रहबर0 क कोई मख़ालफत नह हई होती जबक क़रआन करम म6 ह क िजतन भी रसल आए हर एक का मज़ाक़ उड़ाया गया पस जबक उन सब का उनक काम0 क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया गया और उनक मख़ालफत क गई तो महद क भी उनक काम0 क ख़ा1तर यानी हज़र सललाह अलह वसलम क सनत को क़ायम करन क ख़ा1तर मज़ाक़ उड़ाया जा सकता ह और मख़ालफत क जा सकती ह रह य बात क मज़ाक़ उड़ान वाल दसर थ और यहा इसी उमत क लोग ह3 तो जानना चाहए क ख़द हज़र सललाह अलह व सलम क हदस ह बता रह ह क महद क मख़ालफ इसी उमत क लोग ह3 अगर कोई य समझता ह क इस उमत क लोग ऐसा नह कर सकत तो गमान अOछा ह मगर इसक गारट कौन ल सकता ह क लोग ऐसा कर6ग ह नह

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 55: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

म3 य पछता ह क दओबद क लोग0 पर फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर उन पर फतवा Uय0 लगा दया गया उह0न फतवा लगान वाल स य Uय0 नह कहा क अगर आप को फतवा लगाना ह था तो उन पर लगात जो हदHतान म6 रह कर इस उमत क लोग0 को शकE वा बदआत म6 मिaतला करना चाहत ह3 या जो ग़लत काम उनक बड़0 न कर रखा ह उसी म6 पड़ रहन दना चाहत ह3 आGख़र वो फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ तो उह0न ऐसा Uय0 कया म3 य पछता ह क तबलग़ क जमाअत तो इलयास साहब न लोग0 क भलाई क ख़ा1तर 1नकाल थी और उसक ज़Sरए स हदHतान और हदHतान क बाहर बहत स शकE वा बदआत खतम हई और बहत स गमराह लोग0 को हदायत क राह दखाई गई और उह0न इस क़बल भी कया फर द1नया क मशहर म]तीय0 न इस जमाअत पर Uय0 शरकया बदअती जमाअत और गमराह होन का फतवा लगाया आGख़र फतवा लगान वाल भी तो इसी उमत क लोग थ फर इस उमत क लोग0 न ऐसा Uय0 कया पस जानना चाहए क रहबर का काम हकमत भरा होता ह िजस क़बल करना होता ह य नह क बजा ऐतराज़ात का 1नशाना बनाया जाए ज़र सवालात पछन का लोग0 को हक़ तो होता ह मगर सह जवाबात मलन पर क़बल करना

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 56: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

भी उनक िज़मदार होती ह और जो हमशा सवाल ह करता रह उसक समझन क उमीद कम होती ह यहद न हज़र सललाह अलह वसलम स बहत स सवालात पछ अलाह न हज़र सलक अदर सवालात क जवाबात दन क ब इतहा सलाहयत रखी थी फर भी आप Wयादा सवाल पछन वाल0 स नाराज़ होत थ आप न यहद क बहत स सवालात क जवाबात दए और बाज़ सवालात क जवाबात ख़द अलाह पाक न क़रआन करम म6 दय मगर उनका मक़सद सफE सवाल पछना होता था बात को समझना नह इसलए उनक अUसर व बशतर लोग हक़ बात को क़बल नह कर पाय जह उनक एक सवाल का जवाब मलता दसरा सवाल त`यार कर दत थ उनक दल हसद स इस क़दर भर थ क हक़ बात पहचन क बावजद उन पर कछ भी असर नह होता था जबक उन जवाबात को सन कर सहाबा-ए-कराम ख़श हो जात थ इसक एक बड़ी वजह य थी क यहद गमान करत थ क नबी बन इसहाक़ स आएगा जबक हज़र बन इHमाइल स थ इस चीज़ न उनक अदर क हसद क आग को बहत बड़ा दया था पस रहबर का काम तो बात को वाज़ह दलाइल स पहचा दना होता ह क़बल करना ना करना य लोग0 क िज़म होता ह

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 57: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

11 ndash कताब लखन क ज़रत य- बाज़ लोग य समझत ह3 क महद आएगा तो Uया उसको अपनी दलल पश करन को कताब लखन क ज़रत पड़गी तो समझना चाहए क द1नया म6 िजतन भी आसमानी रहबर आए हर एक को अलाह पाक न इसक सOचाई को पश करन को कोई ना कोई मोिजज़ा या 1नशानी अता फरमाई हज़रत मसा आए तो उस ज़मान म6 जाद का ज़ोर था तो अलाह पाक न उनक डड को मोिजज़ा दखान का ज़Sरया बना दया पस इस मोिजज़ क सामन तमाम जादगर0 क बात फक पड़ गई हज़रत इlाहम अलहHसलाम को जब अलाह पाक न आग स बचा लया तो नमद क तमाम खल धर धराय रह गए हज़रत सालह अलहHसलाम क ज़मान म6 पहाड़ स ऊटनी 1नकलन क वजह स क़ौम क पास इकार करन को कोई ज़ाहर दलल नह बची ईसा बन मरयम अल न बनी इसराइल म6 अलाह क हUम स मदR िज़द कए कोढ़ क मरज़ को तदgHत कए मादरज़ाद अध को बीना कया तो उस ज़मान क माहर हकम0 (जो क बीमार0 का इलाज करत थ) क भी अक़ल ठकान लग गई हज़र अकरम सललाह अलह वसलम पर क़रआन नािज़ल हआ तो तमाम शायर0 क अक़ल ठकान लग गई और उनको जब चल6ज कया गया तो कोई भी शायर क़रआन क आयत0 जसी एक भी आयत

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 58: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

पश नह कर सका अब चक हज़र सललाह अलह वसलम क बाद इस उमत का कोई नबी नह ह और ना ह इस उमत क लए क़रआन क अलावा कोई आसमानी कताब बक महद अलअपन साmथय0 म6 इसाफ करन वाल इमाम क हसयत स अलाह क ख़लफा ह0ग इसलए वो अपनी दलल पश करन को कोई मोिजज़ा तो दखाएग नह तो ज़ाहर सी बात ह क अलाह पाक उनको कोई ऐसा ज़Sरया या कोई ऐसी सलाहयत तो दता जो क उस ज़मान क मनासब हो िजस स क वो अपनी सOचाई क दलल लोग0 तक पहचा सक6 मगर जानना चाहए क िजतन भी आसमानी रहबर आए उनको जो कछ भी उनक सOचाई क दलल क तौर पर दया गया उसका फसला लोग नह करत थ बक अलाह पाक ह करत थ क कस रहबर को Uया चीज़ द जाए और Uया ना दया जाय लोग0 न तो हज़र अकरम सललाह अलह वसलम स तरह तरह क मोिजज़ क फरमाइश क मगर िजतना अलाह न चाहा उतना तो आप को अता हआ और जो अलाह न नह चाहा वो अता नह कया गया जबक वो ज़माना मोिजज़ दखान का भी था मगर अब मोिजज़ दखान का नह ह इसलए ज़ाहर सी बात ह क महद इस उमत म6 अपनी सOचाई क दलल कस तरह पश कर6ग इसका फसला

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 59: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

या तो हज़र सललाह अलह वसलम क ख़बर करगी या फर उस महद अल क काम करन क तरक़ स मालम कया जा सकता ह ना क लोग0 क राय स क जो कोई भी जो कह द उस महद अल करन लग और िजस स लोग मना करद6 उस वो छोड़ द Uया ऐसा हो सकता हजी नह 12mdashहक़ बात मानन का मअयार- पशीनगोई ग़ब का इम ह और क़रआन करम म6 ह क अलाह अगर ग़ब क कोई बात बताता भी ह तो नबी क अलावा कसी को नह बताता तो ज़ाहर सी बात ह क पशीनगोई (या1न आग Uया होन वाला ह)क मामल म6 इस उमत क तमाम लोग बराबर ह3 और कसी क पास भी हज़र सललाह अलह वसलम क अफ़ाज़ क सवा पशीनगोई क मामल म6 कोई भी बात उसक सादर होन स पहल चल6ज क क़ाबल नह ह अब भी अगर कोई य कह क य दावा बा1तल ह या ख़द सा7ता ह तो म3 उस स य पछता ह क मझ बताओ क कोई अपनी सOचाई क गवाह तह6 कहा स और कस तरह द सकता ह दावा करन वाला सOचा ह या क झठा और ख़द सा7ता ह इसका फसला इस उमत म6 कौन करगा तम करोग या क हज़र सललाह अलह वसलम क हदस बताएगी क य दावा कसा ह पस अगर हज़र सल क हदस बताएगी तो म3न तहार वाHत हज़र सललाह अलह

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़

Page 60: HAZRAT JI MD SHAKEEL BIN HANIF SAHAB NE FATWE KA AASAN AUR MUDALLAL JAWAB DIYA HAI, MUST READ

वसलम क सहह अहादस जो क सहाह सQता म6 मौजद ह उस स वाज़ह दलाइल पश कर दए ह3 अगर तम चाहो तो इसाफ क नज़र स पढ़ कर दख लो और अगर फर भी ना मानो तो म3 तहारा मामला अलाह क ऊपर छोड़ता ह इaन माजा म6 हज़र अकरम सललाह अलह वसलम क य अफ़ाज़ ह3 क तम म6 स जो कोई भी उस ज़मान को (यानी महद क ज़मान को) पाय तो उस चाहए क उनस बत कर ल चाह उस बफ़E पर ह 1घसट कर Uय0 ना जाना पड़ यहा हज़र अकरम सललाह अलह वसलम न कसी ख़ास को नह बक अपनी उमत क हर फदE को बत होन क ज़बरदHत ताकद क ह وما علينا ا الب0غ المبين फ़क़त वHसलाम महमद शकल बन हनीफ़