29
The treasure that is there to be explored… Home About this blog About Me Index of Serial Posts jump to navigation जजजज जज जजजजजजज जजज November 4, 2006 Posted by Jaya in Harivansh Rai Bachchan . 134 comments जजजज जज जजजजजजज जजज जज जजजजज जजजज जजज जजज जजजज जज जजज जजज जज जजज जजजज जज जजजज, जजज, जजजज जजजजज जजजज जजजज जजज जजज जजज जजजज जजजजज जजज जजजजज जजजज जजज जजजज जजज जजज जज जजजजजज जज जजजज जजज, जज जज जजजज जज जज जजजजजज जजज जजजज जज जज जजज जज जजजज जजजज जज-जज जजज जजज जजज जजज जजजजज-जजजजज, जजजजजजज-जज, ज जजज जजजज, जजजज जजजज जजजज, जजजज जजज जज? जजज जज जजज जज जजज जज जज जजजजज-जज जजजजज जज जजजज जजजज जजजज जज जजजज जजज, जजजज जजजज जज जजजज-जजजज जज जजज जज जज, जज जजजज जज जजजजज जज जजजजजज जजज, जज जजजज, जजज जज जजजज जज जजजजजज जज,

Hindi Kavita by Harivansh

Embed Size (px)

Citation preview

Page 1: Hindi Kavita by Harivansh

The treasure that is there to be explored…

Home About this   blog About   Me Index of Serial   Posts

jump to navigation

जी�वन की� आपाधापा�   में� November 4, 2006

Posted by Jaya in Harivansh Rai Bachchan. 134 comments

जी�वन की� आपाधापा� में� कीब वक़्त मिमेंलाकी� छ दे�र कीहीं� पार ब�ठ कीभी� यहीं सो�च सोकी !जी� किकीय, कीहीं, मेंन उसोमें� क्य ब�र भीला।

जिजीसो दिदेन में�र� च�तन जीगी� में)न� दे�खामें) खाड़ा हुआ हूँ! इसो दुकिनय की� में�ला� में�,हींर एकी यहीं! पार एकी भी�लान� में� भी लाहींर एकी लागी हीं� अपान� अपान� दे�-ला� में�की� छ दे�र रहीं हींक्की-बक्की, भी2चक्की-सो,आ गीय कीहीं!, क्य कीरूँ! यहीं!, जीऊँ! किकीसो जी?कि5र एकी तर5 सो� आय हीं� त� धाक्की-सोमें)न� भी� बहींन शु�रूँ किकीय उसो र�ला� में�,क्य बहींर की� ठ�ला-पा�ला� हीं� की� छ कीमें थी�,जी� भी�तर भी� भीव8 की ऊँहींपा�हीं मेंच,जी� किकीय, उसो� की� कीरन� की� मेंजीब र� थी�,जी� कीहीं, वहीं� मेंन की� अ9देर सो� उबला चला,जी�वन की� आपाधापा� में� कीब वक़्त मिमेंलाकी� छ दे�र कीहीं� पार ब�ठ कीभी� यहीं सो�च सोकी !जी� किकीय, कीहीं, मेंन उसोमें� क्य ब�र भीला।

में�ला जिजीतन भीड़ाकी�ला र9गी-र9गी�ला थी,मेंनसो की� अन्देर उतन� हीं� कीमेंज़ो�र� थी�,जिजीतन ज़्यदे सो9चिचत कीरन� की� ख़्वकिहींशु थी�,उतन� हीं� छ�टी@ अपान� कीर की� झो�र� थी�,जिजीतन� हीं� किबरमें� रहींन� की� थी� अभिभीलाषा,उतन हीं� र�ला� त�जी ढकी� ला� जीत� थी�,क्रय-किवक्रय त� ठण्ढ� दिदेला सो� हीं� सोकीत हीं�,यहीं त� भीगी-भीगी� की� छ@न-छ�र� थी�;अब में�झोसो� पा छ जीत हीं� क्य बतलाऊँ!क्य मेंन अकिंकीHचन किबखारत पाथी पार आय,वहीं की2न रतन अनमें�ला मिमेंला ऐसो में�झोकी�,जिजीसो पार अपान मेंन प्राण किनछवर कीर आय,यहीं थी� तकीदे@र� बत में�झो� गी�ण दे�षा न दे�जिजीसोकी� सोमेंझो थी सो�न, वहीं मिमेंट्टी@ किनकीला�,जिजीसोकी� सोमेंझो थी आ!सो , वहीं में�त� किनकीला।

Page 2: Hindi Kavita by Harivansh

जी�वन की� आपाधापा� में� कीब वक़्त मिमेंलाकी� छ दे�र कीहीं� पार ब�ठ कीभी� यहीं सो�च सोकी !जी� किकीय, कीहीं, मेंन उसोमें� क्य ब�र भीला।

में) किकीतन हीं� भी ला !, भीटीकी ! य भीरमेंऊँ! ,हीं� एकी कीहीं� में9जिज़ोला जी� में�झो� ब�लात� हीं�,किकीतन� हीं� में�र� पा!व पाड़ा� ऊँ! च�-न�च�,प्राकितपाला वहीं में�र� पासो चला� हीं� आत� हीं�,में�झो पार किवमिधा की आभीर बहुत-सो� बत8 की।पार में) कीM तज्ञ उसोकी इसो पार सोबसो� ज़्यदे -नभी ओला� बरसोए, धारत� शु�ला� उगीला�,अनवरत सोमेंय की� चक्की� चलात� जीत� हीं�,में) जीहीं! खाड़ा थी कीला उसो थीला पार आजी नहीं�,कीला इसो� जीगीहीं पार पान में�झोकी� में�श्किQकीला हीं�,ला� मेंपादे9ड जिजीसोकी� पारिरवर्तितHत कीर दे�त�की� वला छ कीर हीं� दे�शु-कीला की� सो�मेंए!जीगी दे� में�झोपार 5� सोला उसो� जी�सो भीएला�किकीन में) त� ब�र�की सोफ़र में� जी�वन की�इसो एकी और पाहींला सो� हीं�कीर किनकीला चला।जी�वन की� आपाधापा� में� कीब वक़्त मिमेंलाकी� छ दे�र कीहीं� पार ब�ठ कीभी� यहीं सो�च सोकी !जी� किकीय, कीहीं, मेंन उसोमें� क्य ब�र भीला।

था तु�म्हें� में�न�   रुलाया ! November 4, 2006

Posted by Jaya in Harivansh Rai Bachchan. 47 comments

हीं, त�म्हींर� मेंMदुला इच्छा!हींय, में�र� कीटी� अकिनच्छा!थी बहुत में!गी न त�मेंन� किकीन्त� वहीं भी� दे� न पाय!थी त�म्हीं� में)न� रुलाय!

स्न�हीं की वहीं कीण तरला थी,मेंधा� न थी, न सो�धा-गीरला थी,एकी क्षण की� भी�, सोरलात�, क्य8 सोमेंझो त�मेंकी� न पाय!थी त�म्हीं� में)न� रुलाय!

ब !दे कीला की� आजी सोगीर,सो�चत हूँ! ब�ठ तटी पार -क्य8 अभी� तकी ड ब इसोमें� कीर न अपान अ9त पाय!थी त�म्हीं� में)न� रुलाय!

-

Other Information

Collection: Nisha-Nimantran (Published: 1938)

Page 3: Hindi Kavita by Harivansh

क्षण भर की� क्या� प्यार किकीया   था ? October 4, 2006

Posted by Jaya in Harivansh Rai Bachchan. 37 comments

अर्द्ध] रकि^ में� सोहींसो उठकीर,पालाकी सो9पा�टी8 में� मेंदिदेर भीर,त�मेंन� क्य8 में�र� चरण8 में� अपान तन-मेंन वर दिदेय थी?क्षण भीर की� क्य8 प्यर किकीय थी?

‘यहीं अमिधाकीर कीहीं! सो� लाय!’और न की� छ में) कीहींन� पाय -में�र� अधार8 पार किनजी अधार8 की त�मेंन� रखा भीर दिदेय थी!क्षण भीर की� क्य8 प्यर किकीय थी?

वहीं क्षण अमेंर हुआ जी�वन में�,आजी रगी जी� उठत मेंन में� -यहीं प्राकितध्वकिन उसोकी� जी� उर में� त�मेंन� भीर उद्गार दिदेय थी!क्षण भीर की� क्य8 प्यर किकीय थी?

-

Other Information

Collection: Nisha-Nimantran (Published: 1938)

पाथा की�   पाहेंचान September 30, 2006

Posted by Jaya in Harivansh Rai Bachchan. 48 comments

पा व] चलान� की� बटी�हीं� बटी की� पाहींचन कीर ला�।

पा�स्तकी8 में� हीं� नहीं�छपा� गीई इसोकी� कीहींन�हींला इसोकी ज्ञत हीं�तहीं� न और8 की� जीबन�

अनकिगीनत रहीं� गीएइसो रहीं सो� उनकी पात क्यपार गीए की� छ ला�गी इसो पारछ�ड़ा पा�र8 की� किनशुन�

यहीं किनशुन� में की हीं�कीरभी� बहुत की� छ ब�लात� हीं�खा�ला इसोकी अथी] पा9थी�पा9थी की अन�मेंन कीर ला�।

Page 4: Hindi Kavita by Harivansh

पा व] चलान� की� बटी�हीं� बटी की� पाहींचन कीर ला�।

यहीं ब�र हीं� य किकी अच्छाव्यथी] दिदेन इसो पार किबतनअब असो9भीव छ�ड़ा यहीं पाथीदूसोर� पार पागी बढ़ान

त इसो� अच्छा सोमेंझोय^ सोरला इसोसो� बन�गी�सो�च मेंत की� वला त�झो� हीं�यहीं पाड़ा मेंन में� किबठन

हींर सो5ला पा9थी� यहीं�किवश्वासो ला� इसो पार बढ़ा हीं�त इसो� पार आजी अपान�चिचत्त की अवधान कीर ला�।

पा व] चलान� की� बटी�हीं� बटी की� पाहींचन कीर ला�।

हीं� अकिनभिhत किकीसो जीगीहीं पारसोरिरत किगीरिर गीह्वर मिमेंला�गी�हीं� अकिनभिhत किकीसो जीगीहीं पारबगी वन सो�9देर मिमेंला�गी�

किकीसो जीगीहीं य^ खातमें हीं�जीएगी� यहीं भी� अकिनभिhतहीं� अकिनभिhत कीब सो�मेंन कीबकी9 टीकी8 की� शुर मिमेंला�गी�

की2न सोहींसो छ जीए!गी�मिमेंला�गी� की2न सोहींसोआ पाड़ा� की� छ भी� रुकी� गीत न ऐसो� आन कीर ला�।

पा व] चलान� की� बटी�हीं� बटी की� पाहींचन कीर ला�।

किकीस कीर में� याहें व�ण धार   दूँ# ? November 6, 2005

Posted by Jaya in Harivansh Rai Bachchan. 11 comments

दे�व8 न� थी जिजीसो� बनय,दे�व8 न� थी जिजीसो� बजीय,मेंनव की� हींथी8 में� की� सो� इसोकी� आजी सोमेंर्तिपाHत कीर दू!?किकीसो कीर में� यहीं व�ण धार दू!?

इसोन� स्वगी] रिरझोन सो�खा,स्वर्तिगीHकी तन सो�नन सो�खा,

Page 5: Hindi Kavita by Harivansh

जीगीत� की� खा�शु कीरन�वला� स्वर सो� की� सो� इसोकी� भीर दू!?किकीसो कीर में� यहीं व�ण धार दू!?

क्य8 बकी� अभिभीलाषा मेंन में�,झो9कीM त हीं� यहीं कि5र जी�वन में�?क्य8 न हृदेय किनमें]में हीं� कीहींत अ9गीर� अब धार इसो पार दू!?किकीसो कीर में� यहीं व�ण धार दू!?

Other Information

Collection: Nisha-Nimantran (Published: 1938)

सथा� , सब की� छ सहेंन   हें�गा ! November 6, 2005

Posted by Jaya in Harivansh Rai Bachchan. 15 comments

मेंनव पार जीगीत� की शुसोन,जीगीत� पार सो9सोMकित की ब9धान,सो9सोMकित की� भी� और किकीसो� की� प्राकितब9धा8 में� रहींन हीं�गी!सोथी�, सोब की� छ सोहींन हीं�गी!

हींमें क्य हीं) जीगीत� की� सोर में�!जीगीत� क्य, सो9सोMकित सोगीर में�!एकी प्राबला धार में� हींमेंकी� लाघु� कितनकी� -सो बहींन हीं�गी!सोथी�, सोब की� छ सोहींन हीं�गी!

आओ, अपान� लाघु�त जीन�,अपान� किनब]लात पाहींचन�,जी�सो� जीगी रहींत आय हीं� उसो� तरहीं सो� रहींन हीं�गी!सोथी�, सोब की� छ सोहींन हीं�गी!

Other Information

Collection: Nisha-Nimantran (Published: 1938)

दि(न जील्(* - जील्(* ढलातु   हें, ! November 6, 2005

Posted by Jaya in Harivansh Rai Bachchan. 21 comments

हीं� जीय न पाथी में� रत कीहीं�,में9जिज़ोला भी� त� हीं� दूर नहीं� -

Page 6: Hindi Kavita by Harivansh

यहीं सो�च थीकी दिदेन की पा9थी� भी� जील्दे@-जील्दे@ चलात हीं�!दिदेन जील्दे@-जील्दे@ ढलात हीं�!

बच्चे� प्रात्यशु में� हीं8गी�,न�ड़ा8 सो� झो!की रहीं� हीं8गी�  -यहीं ध्यन पार8 में� चिचकिड़ाय8 की� भीरत किकीतन� च9चलात हीं�!दिदेन जील्दे@-जील्दे@ ढलात हीं�!

में�झोसो� मिमेंलान� की� की2न किवकीला?में) हीं�ऊँ! किकीसोकी� किहींत च9चला? -यहीं प्राश्न चिशुचिथीला कीरत पादे की�, भीरत उर में� किवह्वलात हीं�!दिदेन जील्दे@-जील्दे@ ढलात हीं�!

Other Information

Collection: Nisha-Nimantran (Published: 1938)

कीकिव की�   वसन October 24, 2005

Posted by Jaya in Harivansh Rai Bachchan. 6 comments

कीहीं रहीं जीगी वसोनमेंय हीं� रहीं उद्गार में�र!

1

सोMमिp की� प्रारम्भ में� में�न� उषा की� गीला च में�,बला रकिव की� भीग्य वला� दे@प्त भीला किवशुला च में�,

प्राथीमें सो9ध्य की� अरुण दृगी च में कीर में�न� सो�लाए,

तरिरकी-कीचिला सो� सो�सोज्जिuत नव किनशु की� बला च में�,

वय� की� रसोमेंय अधार पाहींला� सोकी� छ हींvठ में�र�मेंMभित्तकी की� पा�तचिलायv सो� आजी क्य अभिभीसोर में�र?

कीहीं रहीं जीगी वसोनमेंय हीं� रहीं उद्गार में�र!

2

Page 7: Hindi Kavita by Harivansh

किवगीत-बल्य वसो�न्धर की�उच्चे त�9गी-उर�जी उभीर�,तरु उगी� हींरिरतभी पाटी धारकीमें की� ध्वजी मेंत्त 5हींर�,

चपाला उच्छाMखाला कीर8 न�जी� किकीय उत्पात उसो दिदेन,

हीं� हींथी�ला� पार चिलाखा वहीं,पाढ़ा भीला� हीं� किवश्वा हींहींर�;

प्यसो वरिरमिधा सो� ब�झोकीरभी� रहीं अतMप्त हूँ! में),कीमिमेंन� की� की� च-कीलाशु सो�आजी की� सो प्यर में�र!

कीहीं रहीं जीगी वसोनमेंय हीं� रहीं उद्गार में�र!

3

इन्द्रधान� पार शु�शु धारकीरबदेला8 की� सो�जी सो�खाकीरसो� च�की हूँ! न�दे भीर में)च9चला की� बहु में� भीर,

दे@पा रकिव-शुचिशु-तरकी8 न�बहींर� की� छ की� चिला दे�खा�,

दे�खा, पार, पाय न की�ईस्वप्न व� सो�की� मेंर सो�न्देर

जी� पालाकी पार कीर किनछवरथी� गीई मेंधा� यमिमेंन� वहीं;यहीं सोमेंमिधा बन� हुई हीं�यहीं न शुयनगीर में�र!

कीहीं रहीं जीगी वसोनमेंय हीं� रहीं उद्गार में�र!

4

आजी मिमेंट्टी@ सो� मिघुर हूँ!पार उमें9गी� हीं) पा�रन�,सो�मेंरसो जी� पा� च�की हीं�आजी उसोकी� हींथी पान�,

हीं�ठ प्यला8 पार झो�की� त�थी� किववशु इसोकी� चिलाए व�,

Page 8: Hindi Kavita by Harivansh

प्यसो की व्रत धार ब�ठ;आजी हीं� मेंन, किकीन्त� मेंन�;

में) नहीं� हूँ! दे�हीं-धामें{ सो� ब!धा, जीगी, जीन ला� त ,तन किवकीM त हीं� जीए ला�किकीनमेंन सोदे अकिवकीर में�र!

कीहीं रहीं जीगी वसोनमेंय हीं� रहीं उद्गार में�र!

5

किनष्पारिरश्रमें छ�ड़ा जिजीनकी�में�हीं ला�त किवश्न भीर की�,मेंनव8 की�, सो�र-असो�र की�,वMर्द्ध ब्रह्मा, किवष्ण�, हींर की�,

भी9गी कीर दे�त तपास्यचिसोर्द्ध, ऋकिषा, में�किन सोत्तमें8 की�

व� सो�मेंन की� बण में)न�, हीं� दिदेए थी� पा9चशुर की�;

शुचि� रखा की� छ पासो अपान�हीं� दिदेय यहीं देन में)न�,जी�त पाएगी इन्हीं� सो�आजी क्य मेंन मेंर में�र!

कीहीं रहीं जीगी वसोनमेंय हीं� रहीं उद्गार में�र!

6

प्राण प्राण8 सो� सोकी� मिमेंलाकिकीसो तरहीं, दे@वर हीं� तनकीला हीं� घुकिड़ाय! न किगीनत,ब�किड़ाय8 की शुब्दे झोन-झोन,

व�दे-ला�कीचर प्राहींर�तकीत� हींर चला में�र�,

बर्द्ध इसो वतवरण में�क्य कीर� अभिभीलाषा य2वन!

अल्पातमें इच्छा यहीं!में�र� बन� बन्दे@ पाड़ा� हीं�,किवश्वा क्र�ड़ास्थला नहीं� र�किवश्वा कीरगीर में�र!

Page 9: Hindi Kavita by Harivansh

कीहीं रहीं जीगी वसोनमेंय हीं� रहीं उद्गार में�र!

थी� तMषा जीब शु�त जीला की�खा चिलाए अ9गीर में)न�,च�थीड़ा8 सो� उसो दिदेवसो थीकीर चिलाय श्रM9गीर में)न�

रजीसो� पाटी पाहींनन� की�जीब हुई इच्छा प्राबला थी�,

चहीं-सो9चय में� ला�टीयथी भीर भी9डर में)न�;

वसोन जीब त�व्रतमें थी�बन गीय थी सो9यमें� में),हीं� रहीं� में�र� क्ष�धा हीं�सोव]दे आहींर में�र!

कीहीं रहीं जीगी वसोनमेंय हीं� रहीं उद्गार में�र!

8

कीला चिछड़ा�, हीं�गी� ख़तमें कीला प्रा�में की� में�र� कीहींन�,की2न हूँ! में), जी� रहीं�गी� किवश्वा में� में�र� किनशुन�?

क्य किकीय में)न� नहीं� जी� कीर च�की सो9सोर अबतकी?

वMर्द्ध जीगी की� क्य8 अखारत� हीं� क्षभिणकी में�र� जीवन�?

में) चिछपान जीनत त� जीगी में�झो� सोधा� सोमेंझोत,शु �̂ में�र बन गीय हीं� छला-रकिहींत व्यवहींर में�र!

कीहीं रहीं जीगी वसोनमेंय हीं� रहीं उद्गार में�र!

Other Information

Page 10: Hindi Kavita by Harivansh

Collection: Madhukalash (Published: 1937)

This poem was originally inspired by a comment by Pt. Banarsi Das Chaturvedi in the publication “Vishaal Bharat”, of which he was the editor. In response to that comment Bachchan wrote this poem and sent it to another well-known publication “Saraswati” with a note that it is in response to somebody’s comment (without naming him). When Pt. Banarsi Das Chaturvedi noticed this poem, he got it publihed in “Viashaal Bharat” itself, while openly accepting that he was the one who had written a comment like that. (Source: Preface by Bachchan in the 7th edition of Madhukalash)

इस पार , उस   पार October 24, 2005

Posted by Jaya in Harivansh Rai Bachchan. 14 comments

इसो पार, किप्राय� मेंधा� हीं� त�में हीं�, उसो पार न जीन� क्य हीं�गी!यहीं च!दे उदिदेत हीं�कीर नभी में� की� छ तपा मिमेंटीत जी�वन की,लाहींरलाहींर यहीं शुखाए!की� छ शु�की भी�ला दे�त� मेंन की,कीला में�झो]न�वला� कीचिलाय! हीं!सोकीर कीहींत� हीं) मेंगीन रहीं�,ब�लाब�ला तरु की� 5� नगी� पार सो� सो9दे�शु सो�नत� य2वन की,त�में दे�कीर मेंदिदेर की� प्यला� में�र मेंन बहींला दे�त� हीं�,उसो पार में�झो� बहींलान� की उपाचर न जीन� क्य हीं�गी!इसो पार, किप्राय� मेंधा� हीं� त�में हीं�,उसो पार न जीन� क्य हीं�गी!

2

जीगी में� रसो की� नदिदेय! बहींत�, रसोन दे� ब 9दे� पात� हीं�,जी�वन की� जिझोलामिमेंलासो� झो!की� नयन8 की� आगी� आत� हीं�,स्वरतलामेंय� व�ण बजीत�, मिमेंलात� हीं� बसो झो9कीर में�झो�,में�र� सो�मेंन8 की� गी9धा कीहीं� यहीं वय� उड़ा ला� जीत� हीं�;ऐसो सो�नत, उसो पार, किप्राय�, य� सोधान भी� चिछन जीए!गी�;तब मेंनव की� च�तनत की आधार न जीन� क्य हीं�गी!

Page 11: Hindi Kavita by Harivansh

इसो पार, किप्राय� मेंधा� हीं� त�में हीं�, उसो पार न जीन� क्य हीं�गी!

3

प्यला हीं� पार पा� पाए!गी�, हीं� ज्ञत नहीं� इतन हींमेंकी�,इसो पार किनयकित न� भी�जी हीं�, असोमेंथी]बन किकीतन हींमेंकी�,कीहींन� वला�, पार कीहींत� हीं�, हींमें कीमें{ में� स्वधा�न सोदे,कीरन� वला8 की� पारवशुतहीं� ज्ञत किकीसो�, जिजीतन� हींमेंकी�?कीहीं त� सोकीत� हीं), कीहींकीर हीं� की� छ दिदेला हींलाकी कीर ला�त� हीं),उसो पार अभीगी� मेंनव की अमिधाकीर न जीन� क्य हीं�गी!इसो पार, किप्राय� मेंधा� हीं� त�में हीं�, उसो पार न जीन� क्य हीं�गी!

4

की� छ भी� न किकीय थी जीब उसोकी, उसोन� पाथी में� की!टी� ब�य�,व� भीर दिदेए धार की9 धा8 पार, जी� र�-र�कीर हींमेंन� ढ�ए;मेंहींला8 की� सोपान8 की� भी�तर जीजी]र खा!डहींर की सोत्य भीर,उर में� ऐसो� हींलाचला भीर दे@, दे� रत न हींमें सो�खा सो� सो�ए;अब त� हींमें अपान� जी�वन भीर उसो क्र र कीदिठन की� की�सो च�की� ;उसो पार किनयकित की मेंनव सो� व्यवहींर न जीन� क्य हीं�गी!इसो पार, किप्राय� मेंधा� हीं� त�में हीं�, उसो पार न जीन� क्य हीं�गी!

5

सो9सोMकित की� जी�वन में�, सो�भीगी� ऐसो� भी� घुकिड़ाय! आए!गी�,जीब दिदेनकीर की� तमेंहींर किकीरण� तमें की� अन्देर चिछपा जीए!गी�,जीब किनजी किप्रायतमें की शुव, रजीन� तमें की� चदेर सो� ढकी दे�गी�,तब रकिव-शुचिशु-पा�किषात यहीं पाMथ्व� किकीतन� दिदेन खा�र मेंनएगी�!जीब इसो ला9ब�-च2ड़ा� जीगी की अश्किस्तत्व न रहींन� पाएगी,

Page 12: Hindi Kavita by Harivansh

तब हींमें दे�न� की नन्हीं-सो सो9सोर न जीन� क्य हीं�गी!इसो पार, किप्राय� मेंधा� हीं� त�में हीं�, उसो पार न जीन� क्य हीं�गी!

6

ऐसो चिचर पातझोड़ा आएगीकी�यला न की� हुकी कि5र पाएगी�,ब�लाब�ला न अ9धा�र� में� गीगी जी�वन की� ज्य�कित जीगीएगी�,अगीभिणत मेंMदु-नव पाल्लाव की� स्वर ‘मेंरमेंर’ न सो�न� कि5र जीए!गी�,अचिला-अवला� कीचिला-देला पार गी�9जीन कीरन� की� हीं�त� न आएगी�,जीब इतन� रसोमेंय ध्वकिनय8 की अवसोन, किप्राय�, हीं� जीएगी,तब शु�ष्की हींमेंर� की9 ठ8 की उद्गार न जीन� क्य हीं�गी!इसो पार, किप्राय� मेंधा� हीं� त�में हीं�, उसो पार न जीन� क्य हीं�गी!

7

सो�न कीला प्राबला की गी�रु-गीजी]न किनझो]रिरण� भी ला�गी� नत]न,किनझो]र भी ला�गी किनजी ‘टीलामेंला’, सोरिरत अपान ‘कीलाकीला’ गीयन,वहीं गीयकी-नयकी चिसोन्ध� कीहीं�, च�पा हीं� चिछपा जीन चहीं�गी,में�!हीं खा�ला खाड़ा� रहीं जीए!गी� गी9धाव], अप्सोर, किकीन्नरगीण;सो9गी�त सोजी�व हुआ जिजीनमें�, जीब में2न वहीं� हीं� जीए!गी�,तब, प्राण, त�म्हींर� त9^� की जीड़ा तर न जीन� क्य हीं�गी!इसो पार, किप्राय� मेंधा� हीं� त�में हीं�,उसो पार न जीन� क्य हीं�गी!

8

उतर� इन आखा8 की� आगी�जी� हींर चमें�ला� न� पाहींन�,वहीं छ@न रहीं, दे�खा�, मेंला�, सो�की� मेंर लातओं की� गीहींन�,दे� दिदेन में� खा�च� जीएगी� ऊँषा की� सोड़ा� चिसोन्दूर�,पाटी इन्द्रधान�षा की सोतर9गीपाएगी किकीतन� दिदेन रहींन�;

Page 13: Hindi Kavita by Harivansh

जीब में र्तितHमेंत� सोत्तओं की� शु�भी-सो�षामें ला�टी जीएगी�,तब कीकिव की� कीज्जिल्पात स्वप्न8 की श्रM9गीर न जीन� क्य हीं�गी!इसो पार, किप्राय� मेंधा� हीं� त�में हीं�, उसो पार न जीन� क्य हीं�गी!

9

दृगी दे�खा जीहीं! तकी पात� हीं), तमें की सोगीर लाहींरत हीं�,कि5र भी� उसो पार खाड़ा की�ई हींमें सोब की� खा�च ब�लात हीं�;में) आजी चला त�में आओगी�कीला, पारसो8 सोब सो9गी�सोथी�,दुकिनय र�त�-धा�त� रहींत�, जिजीसोकी� जीन हीं�, जीत हीं�;में�र त� हीं�त मेंन डगीडगी, तटी पार हीं� की� हींलाकी�र8 सो�!जीब में) एकीकी� पाहु!च !गीमें!झोधार, न जीन� क्य हीं�गी!इसो पार, किप्राय� मेंधा� हीं� त�में हीं�, उसो पार न जीन� क्य हीं�गी!

Other Information

Credit: Taken from Kaavyaalaya (Only minor corrections have been made by me)

Collection: Madhubala (Published 1936) 

मेंधा�बला October 18, 2005

Posted by Jaya in Harivansh Rai Bachchan. 13 comments

1

में) मेंधा�बला मेंधा�शुला की�,में) मेंधा�शुला की� मेंधा�बला!में) मेंधा�-किवक्र� त की� प्यर�,मेंधा� की� धाटी में�झोपार बचिलाहींर�,प्यला8 की� में) सो�षामें सोर�,में�र रुखा दे�खा कीरत� हीं�मेंधा�-प्यसो� नयन8 की� मेंला।में) मेंधा�शुला की� मेंधा�बला!

2

Page 14: Hindi Kavita by Harivansh

इसो न�ला� अ9चला की� छयमें� जीगी-ज्वला की झो�लासोयआकीर शु�तला कीरत कीय,मेंधा�-मेंरहींमें की में) ला�पान कीरअच्छा कीरत� उर की छला।में) मेंधा�शुला की� मेंधा�बला!

3

मेंधा�घुटी ला� जीब कीरत� नत]न,में�र� न पा�र की� छमें-छननमें� लाय हीं�त जीगी की क्र9 देन,झो में कीरत मेंनव जी�वनकी क्षण-क्षण बनकीर मेंतवला।में) मेंधा�शुला की� मेंधा�बला!

4

में) इसो आ!गीन की� आकीषा]ण,मेंधा� सो� सिंसोHचिचत में�र� चिचतवन,में�र� वण� में� मेंधा� की� कीण,मेंदेमेंत्त बनय में) कीरत�,यशु ला टी कीरत� मेंधा�शुला।में) मेंधा�शुला की� मेंधा�बला!

5

थी एकी सोमेंय, थी� मेंधा�शुला,थी मिमेंट्टी@ की घुटी, थी प्यला,थी�, किकीन्त�, नहीं� सोकी�बला,थी ब�ठ ठला किवक्र� तदे� ब9दे कीपाटी8 पार तला।में) मेंधा�शुला की� मेंधा�बला!

6

तब इसो घुर में� थी तमें छय,थी भीय छय, थी भ्रमें छय,थी मेंतमें छय, गीमें छय,ऊँषा की दे@पा चिलाए सोर पार,में) आई कीरत� उजिजीयला।में) मेंधा�शुला की� मेंधा�बला!

7

सो�न� की� मेंधा�शुन चमेंकी�,मेंभिणत द्यु�कित सो� मेंदिदेर देमेंकी�,मेंधा�गी9धा दिदेशुओं में� चमेंकी�,चला पाड़ा चिलाए कीर में� प्यला

Page 15: Hindi Kavita by Harivansh

प्रात्य�की सो�र पा�न�वला।में) मेंधा�शुला की� मेंधा�बला!

8

थी� मेंदिदेर की� मेंMत-में की घुड़ा�,थी� में र्तितH सोदृशु मेंधा�पा^ खाड़ा�,थी� जीड़ावत� प्यला� भी मिमें पाड़ा�,जीदू की� हींथी8 सो� छ कीरमें)न� इनमें� जी�वन डला।में) मेंधा�शुला की� मेंधा�बला!

9

में�झोकी� छ कीर मेंधा�घुटी छलाकी� ,प्यला� मेंधा� पा�न� की� लालाकी� ,मेंचिलाकी जीगी मेंलाकीर पालाकी� ,अ!गीड़ाई ला�कीर उठ ब�ठ�चिचर सो�प्त किवमें र्च्छिच्छाHत मेंधा�शुला।में) मेंधा�शुला की� मेंधा�बला!

10

प्यसो� आए, में)न� आ!की,वतयन सो� में)न� झो!की,पा�न�वला8 की देला ब!की,उत्की9 दिठत स्वर सो� ब�ला उठ,‘कीर दे� पागीला, भीर दे� प्यला!’में) मेंधा�शुला की� मेंधा�बला!

11

खा�ला द्वार गीए मेंदिदेरलाय की� ,नर� लागीत� में�र� जीय की� ,मिमेंटी चिचह्न गीए सिंचHत भीय की� ,हींर ओर मेंच हीं� शु�र यहीं�,‘ला-ला मेंदिदेर ला-ला’!,में) मेंधा�शुला की� मेंधा�बला!

12

हींर एकी तMप्तिप्त की देसो यहीं!,पार एकी बत हीं� खासो यहीं!,पा�न� सो� बढ़ात� प्यसो यहीं!,सो2भीग्य मेंगीर में�र दे�खा�,दे�न� सो� बढ़ात� हीं� हींला!में) मेंधा�शुला की� मेंधा�बला!

13

Page 16: Hindi Kavita by Harivansh

चहीं� जिजीतन में) दू! हींला,चहीं� जिजीतन त पा� प्यला,चहीं� जिजीतन बन मेंतवला,सो�न, भी�दे बतत� हूँ! अप्तिन्तमें,यहीं शु9त नहीं� हीं�गी� ज्वला।में) मेंधा�शुला की� मेंधा�बला!

14

मेंधा� की2न यहीं! पा�न� आत,हीं� किकीसोकी प्यला8 सो� नत,जीगी दे�खा में�झो� हीं� मेंदेमेंत,जिजीसोकी� चिचर त9दिद्रला नयन8 पारतनत� में) स्वप्न8 की जीला।में) मेंधा�शुला की� मेंधा�बला!

15

यहीं स्वप्न-किवकिनर्मिमेंHत मेंधा�शुला,यहीं स्वप्न रचिचत मेंधा� की प्यला,स्वकिप्नला तMष्ण, स्वकिप्नला हींला,स्वप्न8 की� दुकिनय में� भी ला कि5रत मेंनव भी�लाभीला।में) मेंधा�शुला की� मेंधा�बला!

Other Information

Collection: Madhubala (Published: 1936)