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इइ इइइइइइ इइ इइइइ इइइइइइइइ - इइ. इइइइइइइइ इइइइइ इइ इइइइ इइइइइइइइ इइइइइइइ इइइ इइइइइ इइ 'इइइइइइइइइइइइ', 'इइइइइइइइ', 'इइइइइ इइइइइ' इइइ इइइ इइइ इइ इइइइइ इइइ इइइइइइइइइ इइइइ 'इइइइइइइइ' इइइ इइइइ इइ इइइइ इइ 'इइइइइइइइइइ' इइ इइइइइइ इइइ 'इइइइइ', 'इइइ' इइइ इइ इइइइइ इइ इइइ इइइइइ इइ इइ'इइइइइइइइइ इइइइ' इइइ इइइइ इइ इइइइइ इइइ इइइइइइ इइइइइइ इइ इइ इइइइइ इइइ इइइइ इइ 78 इइ इइइइइइइ इइ इइ इइइइ इइइइइ इइइइइइ इइइइइइइ इइ इइइ ययययय ययययययय ययययय यय यययय ययययययय ययययययय हहहहहह [1] यययय ययययययय ययययय ययय यय यययय ययययययय यययययययय ययय ययय यय ययय यय यय 'यययययय' ययय ययययय ययययययययय यययय ययययय ययययययययय [2] ययय यय ययययय यय 'यययय यययय यय', ययययय यययययययय ययययययय यययययय यय ययय यय यय- 'यययय यय यययय-ययययय यय यय ययययययययय यय ययययययय यय ययय यययययययय यययय यय, यय ययययय ययय यययय [3] ययययय ' [4] यययय ययययययययय यय ययययययययय यययय ययययय ययय यय यय 'यययययय' यय ययय ययययययययय ययय यय यय यय यययययययय यययय यययययययय ययय यययय यययययय यययययययययय यय यययययययय [5] ययय ययय यय ययययय यययय ययययययय यययययय यय यययय ययययययययय यय यययययययय यय ययय यययययय यय यय-ययययय यय ययययय यय यययय यय ययययययय ययययय ययययययय ययय यययययययय [6] यय ययययययय यय यय ययययय ययययय यय यययययय यययययय -यययययययय यय ययययययय [7] यययय यय यययय ययययय ययय ययय यय- 'ययययययय यययययययय यय 'यययययययययय' ययय यययय यय, यय ययय-ययययययययय यय ययययय यय यय ययययय यय यययययय, ययययययय ययययय यय' यययय ययययय ययय ययय यय यय यय 'ययययय-यययययययय' [8] यययययययययय ययययय यय यययययय ययययय

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Page 1: Holi Origin

इस गोष्ठी के अन्य वि द्वान् - डा. रमाकान्त शुक्ल ने अपने शोधपूर्ण� क्तव्य में बताया विक 'वि#यदर्शिश&का', 'रत्ना ली', ' कुमार सम्भ ' सभी में रंग का र्ण�न आया है। कालिलदास रलि0त 'ऋतुसंहार' में पूरा एक सग� ही ' सन्तोत्स ' को अर्पिप&त

है। 'भारवि ', 'माघ' सभी ने सन्त की खूब 00ा� की है। ' पृथ् ीराज रासो' में होली का र्ण�न है। महाकवि सूरदास ने तो सन्त ए ं होली पर 78 पद लिलखे हैं। पद्माकर ने भी होली वि षयक #0ुर र0नायें की हैं।

यह बहुत प्राचीन उत्सव है। इसका आरम्भि�क शब्दरूप होलाका था।[1] भारत में पूव" भागों में यह शब्द प्रचलि&त था। जैमिमनिन एवं शबर का कथन है निक 'हो&ाका' सभी आय- द्वारा सम्पादिदत होना चानिहए। काठकगृह्य [2] में एक सूत्र है 'राका हो&ा के', जिजसकी व्याख्या टीकाकार देवपा& ने यों की है- 'हो&ा एक कम<-निवशेष है जो म्भि>त्रयों के सौभाग्य के लि&ए सम्पादिदत होता है, उस कृत्य में राका [3] देवता है।'[4] अन्य टीकाकारों ने इसकी व्याख्या अन्य रूपों में की है। 'हो&ाका' उन बीस क्रीड़ाओं में एक है जो सम्परू्ण< भारत में प्रचलि&त हैं। इसका उल्&ेख वात्>यायन के कामसूत्र[5] में भी हुआ है जिजसका अथ< टीकाकार जयमंग& ने निकया है। फाल्गुन की पूर्णिर्णMमा पर &ोग श्रृंग से एक-दूसरे पर रंगीन ज& छोड़ते हैं और सुगंलिRत चूर्ण< निबखेरते हैं। हेमादिS[6] ने बृहद्यम का एक श्लोक उद्भतृ निकया है। जिजसमें होलि&का-पूर्णिर्णMमा को हुताशनी[7] कहा गया है। लि&Mग पुरार्ण में आया है- 'फाल्गुन पूर्णिर्णMमा को 'फाल्गुनिनका' कहा जाता है, यह बा&-क्रीड़ाओं से पूर्ण< है और &ोगों को निवभूनित, ऐश्वय< देने वा&ी है।' वराह पुरार्ण में आया है निक यह 'पटवास-निव&ालिसनी' [8] है।शताजिब्दयों पूव< से होलि&का उत्सव

बाज़ार में विप0कारिरयाँ

जमैिमविन ए ं काठकगृह्य में र्णिर्ण&त होने के कारर्ण यह कहा जा सकता है विक ईसा की कई शताब्दिGदयों पू � से 'होलाका' का उत्स #0लिलत था। कामसूत्र ए ं भवि ष्योत्तर पुरार्ण इसे सन्त से संयुक्त करते हैं, अत: यह उत्स पूर्णिर्ण&मान्त गर्णना के अनुसार ष� के अन्त में होता था। अत: होलिलका हेमन्त या पतझड़ के अन्त की सू0क है और सन्त की काम#ेममय लीलाओं की द्योतक है। मस्ती भरे गाने, नृत्य ए ं संगीत सन्तागमन के उल्लासपूर्ण� क्षर्णों के परिर0ायक हैं। सन्त की आनन्दाभिभव्यलिक्त रंगीन जल ए ं लाल रंग, अबीर-गुलाल के पारस्परिरक आदान-#दान से #कट होती है। कुछ #देशों में यह रंग युक्त ाता रर्ण 'होलिलका के दिदन' ही होता है, विकन्तु दभिक्षर्ण में यह होलिलका के पाँ0 ें दिदन (रंग - पं0मी ) मनायी जाती है। कहीं-कहीं रंगों के खेल पहले से आरम्भ कर दिदये जाते हैं और बहुत दिदनों तक 0लते रहते हैं; होलिलका के पू � ही 'पहुनई' में आये हुए लोग एक-दूसरे पर पंक (की0ड़) भी फें कते हैं।[10] कही-कहीं दो-तीन दिदनों तक मिमट्टी, पंक, रंग, गान आदिद से लोग मत ाले होकर दल बना कर होली का हुड़दंग म0ाते हैं, सड़कें लाल हो जाती हैं। ास्त में यह उत्स #ेम करने से सम्बन्धिcत है, विकन्तु लिशष्टजनों की नारिरयाँ इन दिदनों बाहर नहीं विनकल पातीं, क्योंविक उन्हें भय रहता है विक लोग भद्दी गालिलयाँ न दे बैठें । श्री गुप्ते ने अपने लेख[11] में #कट विकया है विक यह उत्स ईजिजप्ट , मिमस्र या ग्रीस , यूनान से लिलया गया है। विकन्तु यह भ्रामक दृमिष्टकोर्ण है। लगता है, उन्होंने भारतीय #ा0ीन ग्रन्थों का अ लोकन नहीं विकया है, दूसरे, े इस वि षय में भी विनभिnत नहीं हैं विक इस उत्स का उद्गम मिमस्त्र से है या यूनान से। उनकी धारर्णा को गम्भीरता से नहीं लेना 0ाविहए।

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[सम्पादन] होलि&का

हेमादिp [12] ने भवि ष्योत्तर[13] से उद्धरर्ण देकर एक कथा दी है। युमिधमिष्ठर ने कृष्र्ण से पूछा विक फाल्गुन-पूर्णिर्ण&मा को #त्येक गाँ ए ं नगर में एक उत्स क्यों होता है, #त्येक घर में बच्चे क्यों क्रीड़ामय हो जाते हैं और 'होलाका' क्यों जलाते हैं, उसमें विकस दे ता की पूजा होती है, विकसने इस उत्स का #0ार विकया, इसमें क्या होता है और यह 'अडाडा' क्यों कही जाती है।

#ह्लाद को गोद में विबठाकर बैठी होलिलकाकृष्र्ण ने युमिधमिष्ठर से राजा रघु के वि षय में एक किक& दंती कही। राजा रघु के पास लोग यह कहने के लिलए गये विक 'ढोण्ढा' नामक एक राक्षसी है जिजसे लिश ने रदान दिदया है विक उसे दे , मान आदिद नहीं मार सकते हैं और न ह अस्त्र शस्त्र या जाड़ा या गमy या षा� से मर सकती है, विकन्तु लिश ने इतना कह दिदया है विक ह क्रीड़ायुक्त बच्चों से भय खा सकती है। पुरोविहत ने यह भी बताया विक फाल्गुन की पूर्णिर्ण&मा को जाडे़ की ऋतु समाप्त होती है और ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है, तब लोग हँसें ए ं आनन्द मनायें, बच्चे लकड़ी के टुकडे़ लेकर बाहर #सन्नतापू �क विनकल पड़ें, लकविड़याँ ए ं घास एकत्र करें, रक्षोघ्न मन्त्रों के साथ उसमें आग लगायें, तालिलयाँ बजायें, अब्दि|न की तीन बार #दभिक्षर्णा करें, हँसें और #0लिलत भाषा में भदे्द ए ं अश्लील गाने गायें, इसी शोरगुल ए ं अट्टहास से तथा होम से ह राक्षसी मरेगी। जब राजा ने यह सब विकया तो राक्षसी मर गयी और ह दिदन 'अडाडा' या 'होलिलका' कहा गया। आगे आया है विक दूसरे दिदन 0ैत्र की #वितपदा पर लोगों को होलिलकाभस्म को #र्णाम करना 0ाविहए, मन्त्रोच्चारर्ण करना 0ाविहए, घर के #ांगर्ण में गा�कार स्थल के मध्य में काम-पूजा करनी 0ाविहए। काम-#वितमा पर सुन्दर नारी द्वारा 0न्दन-लेप लगाना 0ाविहए और पूजा करने ाले को 0न्दन-लेप से मिमभिश्रत आम्र-बौर खाना 0ाविहए। इसके उपरान्त यथाशलिक्त ब्राह्मर्णों, भाटों आदिद को दान देना 0ाविहए और 'काम दे ता मुझ पर #सन्न हों' ऐसा कहना 0ाविहए। इसके आगे पुरार्ण में आया है- 'जब शुक्ल पक्ष की 15 ीं वितलिथ पर पतझड़ समाप्त हो जाता है और सन्त ऋतु का #ात: आगमन होता है तो जो व्यलिक्त 0न्दन-लेप के साथ आम्र-मंजरी खाता है ह आनन्द से रहता है।'[14]

1. ↑ जमैिमविन, 1।3।15-16 2. ↑ काठकगृह्य, 73,1 3. ↑ पूर्ण�0न्p 4. ↑ राका होलाके। काठकगृह्य (73।1)। इस पर दे पाल की टीका यों है: 'होला कम�वि शेष: सौभा|याय

स्त्रीर्णां #ातरनुष्ठीयते। तत्र होला के राका दे ता। यास्ते राके सुभतय इत्यादिद।' 5. ↑ कामसूत्र, 1।4।42

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6. ↑ काल, पृ. 106 7. ↑ आलकज की भाँवित 8. ↑ 0ूर्ण� से युक्त क्रीड़ाओं ाली 9. ↑ लिल&गपुरार्णे। फाल्गुने पौर्ण�मासी 0 सदा बालवि कालिसनी। ज्ञेया फाल्गुविनका सा 0 ज्ञेया लोकर्पि &भूतये।।

ाराहपुरार्णे। फाल्गुने पौर्णिर्ण&मास्यां तु पट ासवि लालिसनी। जे्ञया सा फाल्गुनी लोके काया� लोकसमृद्धये॥ हेमादिp (काल, पृ. 642)। इसमें #थम का.वि . (पृ. 352) में भी आया है जिजसका अथ� इस #कार है-बाल ज्जनवि लालिसन्यामिमत्यथ�:

10. ↑ ष�कृत्यदीपक (पृ0 301) में विनम्न श्लोक आये हैं- '#भाते विबमले जाते ह्यंगे भस्म 0 कारयेत्। स ा�गे 0 ललाटे 0 क्रीविडतव्यं विपशा0 त्॥लिसन्दरै: कंुकुमैnै धूलिलभिभधू�सरो भ ेत्। गीतं ादं्य 0 नृत्यं 0 कृया�pथ्योपसप�र्णम् ॥ ब्राह्मर्णै: क्षवित्रयै �श्यै: शूpैnान्यैn जावितभिभ:। एकीभूय #कत�व्या क्रीडा या फाल्गुने सदा। बालकै: ह गन्तव्यं फाल्गुन्यां 0 युमिधमिष्ठर ॥'

11. ↑ विहन्दू हॉलीडेज ए ं सेरीमनीज'(पृ. 92 12. ↑ व्रत, भाग 2, पृ. 174-190 13. ↑ भवि ष्योत्तर, 132।1।51 14. ↑ पुस्तक- धम�शास्त्र का इवितहास-4 | लेखक- पांडुरंग ामन कार्णे | #काशक- उत्तर #देश किह&दी

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