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|| दोहा || वन्दो वीरभ शरण शीश नवाओ ात ऊठकर मुहत शुभ कर लो भात ानहीन तनु जान के भजहह िशव कु मार। ान ध्यान देही मोही देह भक् ित सुकु मार। || चौपाई || जय-जय िशव नन्दन जय जगवन्दन जय-जय िशव पावती नन्दन जय पावती ाण लारे। जय-जय भक् तन के :टारे॥ कमल सश्य नयन िवशाला वण मुकु ट ामाला॥ ता तन सुन्दर मुख सोहे। सुर नर मुिन मन छिव लय मोहे॥ मस्तक ितलक वसन सुनवाले। आओ वीरभ कफली वाले॥ कर भक् तन सँग हास िवलासा ।पूरन कर सबक अिभलासा॥ लिख शक् ित मिहमा भारी।ऐसे वीरभ िहतकारी॥ ान ध्यान से दशन दीजै।बोलो िशव वीरभ जै॥ नाथ अनाथ के वीरभा। डूबत भँवर बचावत शुा॥ वीरभ मम कु मित िनवारो ।मह करो अपराध हमारो॥ वीरभ जब नाम कहावै ।आठ िसि दौडती आवै॥ जय वीरभ तप बल सागर जय गणनाथ िलोग उजागर िशवद महावीर समाना हनुमत समबल बुि धामा दजापित ठानी सदािशव िबन सफल जानी॥ सित िनवेदन िशव आा दीन्ही सभा सित स्थान कन्ही सबह देवन भाग राखा सदािशव कर िदयो अनदेखा िशव के भाग नह राख्यौ। तत्ण सती सशरीर त्यागो॥ िशव का ोध चरम उपजायो। जटा के श धरा पर मार यो॥ तत्ण टँकार उठी िदशाएँ वीरभ रौ िदखाएँ॥ कृ ष्ण वण िनज तन फै लाए सदािशव सँग िलोक हषाए॥ व्योम समान िनज धर िलन्हो शुप पर दऊ चरण धर िलन्हो॥ रणे ध्वँस मचायो आा िशव पाने आयो िसंह समान गजना भारी िमस्तक सह भुजधारी॥

Veerbhadra Chalisa

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Page 1: Veerbhadra Chalisa

|| दोहा ||

वनद्ो वीरभ� शरण� शीश नवाओ �ात । ऊठकर ��मुह�त� शभु कर लो �भात ॥

�ानहीन तन ुजान के भजह�ह िशव कुमार। �ान धय्ान देही मोही देह� भक्ित सकुुमार।

|| चौपाई ||

जय-जय िशव ननद्न जय जगवनद्न । जय-जय िशव पाव�ती ननद्न ॥

जय पाव�ती �ाण दलुारे। जय-जय भक्तन के द:ुख टारे॥

कमल स�श्य नयन िवशाला । �वण� मकुुट ��ा�माला॥

ता� तन सनुद्र मखु सोहे। सरु नर मिुन मन छिव लय मोहे॥

मस्तक ितलक वसन सनुवाले। आओ वीरभ� कफली वाले॥

क�र भक्तन सँग हास िवलासा ।परून क�र सबक� अिभलासा॥

लिख शक्ित क� मिहमा भारी।ऐसे वीरभ� िहतकारी॥

�ान धय्ान से दश�न दीजै।बोलो िशव वीरभ� क� जै॥

नाथ अनाथ� के वीरभ�ा। डूबत भँवर बचावत श�ुा॥

वीरभ� मम कुमित िनवारो ।�मह� करो अपराध हमारो॥

वीरभ� जब नाम कहावै ।आठ� िसि� दौडती आवै॥

जय वीरभ� तप बल सागर । जय गणनाथ ि�लोग उजागर ॥

िशवदतू महावीर समाना । हनमुत समबल बुि� धामा ॥

द��जापित य� क� ठानी । सदािशव िबन सफल य� जानी॥

सित िनवेदन िशव आ�ा दीनह्ी । य� सभा सित �सथ्ान क�न्ही ॥

सबह� देवन भाग य� राखा । सदािशव क�र िदयो अनदेखा ॥

िशव के भाग य� नह� राखय्ौ। तत�्ण सती सशरीर त्यागो॥

िशव का �ोध चरम उपजायो। जटा केश धरा पर मारय्ो॥

तत�्ण टँकार उठी िदशाएँ । वीरभ� �प रौ� िदखाएँ॥

कृषण् वण� िनज तन फैलाए । सदािशव सँग ि�लोक हषा�ए॥

वय्ोम समान िनज �प धर िलन्हो । श�पु� पर दऊ चरण धर िलन्हो॥

रण�े� म� धव्ँस मचायो । आ�ा िशव क� पाने आयो ॥

िसंह समान गज�ना भारी । ि�मस्तक सह� भजुधारी॥

Page 2: Veerbhadra Chalisa

महाकाली �कटह� आई । �ाता वीरभ� क� नाई ॥

|| दोहा ||

आ�ा ल ेसदािशव क� चलह� ँय� क� ओर ।

वीरभ� अ� कािलका टूट पडे चह� ँओर॥

|| इित �ी वीरभ� चालीसा समा� ||