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Xgdt H$jm

Xgdt H$jm - Balbharaticart.ebalbharati.in/BalBooks/pdfs/1002030024.pdf · के प्कार, अवयय के प्कार, काल के प्कार, कारक

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  • िासन तनर्णय क्रमांक अ यास-२११६/(प्.क्र.4३/१६) एसडी-4 तदनांक २5.4.२ १६ के अनुसार समनिय सतमति का गठन तकया गया । तद. २ .१२.२ १७ को ई इस सतमति की बैठक में यह पाठ् यपुसिक तनिा्णररि करने हेिु मानयिा प्दान की गई ।

    महारा रा य पाठ् यपुसिक तनतम्णिी ि अ यासक्रम संिोिन मंड , पुरे

    मेरा नाम है &

    आपके समाटशाफोन में ‘ ’ द् वारा, पुसिक के प्थम पृष्ठ पर . . के माधयम से तडतजटल पाठ् यपुसिक एवं प््येक पाठ में अंितनशातहि . . मंे अधययन- अधयापन के तलए पाठ से संबंतिि उपयुक्ि दृक-श्रावय सामग्ी उपलब्ि कराई जाएगी ।

    कमारभारिीदसि क ा

    तहंदी

  • प् मािृखत्ि २ १8 महारा रा य पाठ् यपुसिक तनतम्णिी ि अ यासक्रम संिोिन मंड , पुरे - 4११ 4इस पुसिक का सवाशातिकार महाराष्ट् राज्य पाठ् यपुसिक तनतमशािी व अभयासकम संशोिन मंड के

    अिीन सुरतक्ि है। इस पुसिक का कोई भी भाग महाराष्ट् राज्य पाठ् यपुसिक तनतमशािी व अभयासकम संशोिन मंड के संचिालक की तलशिि अनुमति के तबना प्कातशि नहीं तकया जा सकिा ।

    ©

    तहंदी भाषा सतमति

    डॉ.हेमचिंद्र वैद् य - अधयक् डॉ.छाया पाटील - सदसय प्ा.मैनोद् दीन मुल्ा - सदसयडॉ.दयानंद तिवारी - सदसयश्री रामतहि यादव - सदसयश्री संिोर् िोत्रे - सदसय डॉ.सुतनल कुलकणथी - सदसय श्रीमिी सीमा कांब े - सदसय डॉ.अलका पोिदार - सदसय - सतचिव

    प्कािक ी तििेक उत्िम गोसािी

    तनयंत्रकपाठ् यपुसिक तनतमशािी मंड

    प्भादेवी, मुंबई-२5

    तहंदी भाषा अ यासगट

    श्री संजय भारद् वाजसौ. वृंदा कुलकणथीडॉ. वर्ाशा पुनवटकरसौ. रंजना तपंग े डॉ. प्मोद शुक्लश्रीमिी पूतणशामा पांडेयडॉ. शुभदा मोघेश्री िनयकुमार तबराजदारश्रीमिी माया कोथ ीकरश्रीमिी शारदा तबयानीडॉ. र्ना चिौिरीश्री सुमंि द वीश्रीमिी रजनी महैसा कर

    संयोिन डॉ.अलका पोिदार, तवशेर्ातिकारी तहंदी भार्ा, पाठ् यपुसिक मंड , पुणे सौ. संधया तवनय उपासनी, तवर्य सहायक तहंदी भार्ा, पाठ् यपुसिक मंड , पुणे

    तनतम्णति श्री सशच्िानंद आफ े, मुखय तनतमशाति अतिकारीश्री राजेंद्र तचिंदरकर, तनतमशाति अतिकारीश्री राजेंद्र पांडलोसकर,सहायक तनतमशाति अतिकारी

    अ रांकन भार्ा तवभाग,पाठ् यपुसिक मंड , पुणेकागि ० जीएसएम, कीमवोवमु रादेि मु क

    तचत्रांकन श्री राजेश लव ेकर

    डॉ. आशा वी. तमश्राश्रीमिी मीना एस. अग्वालश्रीमिी भारिी श्रीवासिवडॉ. शैला ललवाणीडॉ. शोभा बेलिोडेडॉ. बंडोपंि पाटीलश्री रामदास काटेश्री सुिाकर गावंडेश्रीमिी गीिा जोशीश्रीमिी अचिशाना भुसकुटे डॉ. रीिा तसंहसौ. शतशकला सरगर श्री एन. आर. जेवेश्रीमिी तनशा बाहेकर

    तनमंतत्रि सदसय श्री िा. का. सूयशावंशी श्रीमिी मंजुला तत्रपाठी, तमश्रा

    मुिपृष्ठ lr {ddoH$mZ§X nmQ>rb

    पहला पुनमु्ण र २ १9

    मुखय समनियकश्रीमिी प्ाचिी रतवंद्र साठे

  • प्सिािना

    (ड . सुतनल मगर)संचालक

    महाराष्ट् राज्य पाठ् यपुसिक तनतमशािी व अभयासकम संशोिन मंड , पुणे-०4

    तप्य तिद् यात ्णयो,

    आपकी उत्सुकिा एिं अतभ तच को धयान में रििे ए नितनतम्णि कमारभारिी दसि क ा की पुसिक को रंगीन, आकष्णक एिं िैतिधयपूर्ण सिरूप प्दान तकया गया है । रंग-तबरंगी, मनमोहक, ज्ानिि्णक एिं कृतिप्िान यह पुसिक आपके हा ों मंे स पिे ए हमें अत्यतिक हष्ण हो रहा है ।

    हमें ज्ाि है तक आपको गीि सुनना-पढ़ना, गुनगुनाना तप्य है । क ा-कहातनयों की दुतनया में तिचरर करना मनोरंिक लगिा है । आपकी इन मनाेनुकल भािना को ख गि रििे ए इस पुसिक में कतििा, गीि, गिल, नई कतििा, पद, लोकगीि, िंडकावय-महाकावय अंि, ब रंगी कहातनयाँ, तनबंि, हासय-वयं य, संसमरर, सा ात्कार, एकांकी, आलेि, नाट् यांि, उपनयास अंि आतद सातहखत्यक तििा का समािेि तकया गया है । यही नह , तहंदी की अत्यािुतनक तििा ‘हाइक’ को भी प् मिः इस पुसिक में स ान तदया गया है । ये सभी तििाएँ केिल मनोरंिन के तलए ही नह अतपिु ज्ानाि्णन, भाषाई कौिलों- मिा के तिकास के सा -सा चररत्र तनमा्णर, रा ीय भािना को सु ढ़ करने ि ा स म बनाने के तलए भी आिशयक रूप से दी गई हैं । इन रचना का चयन आयु,

    तच, मनोतिज्ान, सामातिक सिर आतद को धयान में रिकर तकया गया है । बदलिी दुतनया की नई सोच, िैज्ातनक ख कोर ि ा अ यास को सहि एिं सरल बनाने के

    तलए इनहंे संिाल, प्िाह िातलका, तिशलेषर, िग करर तितिि कृतियाें, उपयोतिि लेिन, भाषातबंदु आतद के माधयम से पाठ् यपुसिक में समातहि तकया गया है । आपकी सृिनात्मक ित्ि और काय्ण मिा को धयान में रििे ए मिािाररि िरीय, संभाषरीय, पठनीय, लेिनीय कृतियांे द् िारा अधययन-अधयापन को अतिक वयापक और रोचक बनाया गया है । आपकी तहंदी भाषा और ज्ान में अतभिृद् ति के तलए ‘एेप’ एिं ‘्यू.आर.कोड,’ के माधयम से अतिरर्ि क- ावय सामग्री उपलबि कराई िाएगी । अधययन अनुभि हेिु इनका तनखशचि ही उपयोग हो सकेगा ।

    माग्णदि्णक के तबना ल य की प्ाख नह हो सकिी । अिः आिशयक उद् देशयों की पूति्ण हिेु अतभभािकों, ति कों का सहयोग ि ा माग्णदि्णन आपके ति याि्णन को सहि एिं स ल बनाने में सहायक तस ि होगा । पूर्ण तिशिास है तक आप सब पाठ ्यपुसिक का किलिापूि्णक उपयोग करिे ए तहंदी तिषय के प्ति तििेष अतभ तच, आत्मीयिा एिं उत्साह प्दति्णि करेंगे ।

    हातद्णक िुभकामनाएँ

  • यह अपे ा है तक दसि क ा के अंि िक तिद् यात ्णयों में भाषा संबंिी तनम्नतलखिि मिाएँ तिकतसि हों ः

    भाषा तिषयक मिा

    अ.क्र. मिा मिा तिसिार

    १. िर १. गद् य-पद् य को रसानुभूति एवं सहसंबंि सथातपि करिे हुए सुनना-सुनाना । २. वैश्वक सिर की जानकारी सुनकर तव्लेर्णा्मक पद् िति से सुनाना । ३. प्सार माधयमों से प्ाप्त जानकारी के केंद्रीय भाव को सुनकर पक्पािरतहि सुनाना ।

    २. भाषर-संभाषर १. राज्य एवं राष्ट् के कायशाकमों पर पक्-तवपक् में अपना मि वयति करना । २. सथानीयकरण से वै्वीकरण में िाल-मेल तबठािे हुए पररचिचिाशा करना ।३. पाठ् य-पाठ् येिर तविाओं के भावस दयशा को समझिे हुए रसग्हण करना ।

    ३. िाचन १. पाठ् य/पाठ् ेयिर सामग्ी के भार्ाई स दयशा का आकलन करिे हुए आदशशा वाचिन करना ।२. तवतवि क्ेत्र के वयशतियों का पररचिय िथा जीवतनयों का मुिर एवं मौन वाचिन करना ।३. तप्ंट एवं इलेक्टट्ाॅतनक मीतडया के तवतवि प्कारों से उपलब्ि सामग्ी के अंिर का आकलन करिे हुए वाचिन करना ।

    4. लेिन १. तहंदी के वयावहाररक उपयोग का आकलन करिे हुए कायाशालयीन कामकाज आतद का लेिन, संगणक की सहायिा से प्पत्र भरना । २. कहानी को आ्मकथा और आ्मकथा को कहानी के रूप में रूपांिररि करना ।३. तवज्ापन और तकसी भी तविा का सूचिनानुसार सविंत्र एवं शुद् ि लेिन करना ।

    5. भाषा अधययन(वयाकरर)

    छठी से दसवीं कक्ा के तवद् यातथशायों के तलए भार्ा अधययन के घटक नीचिे तदए गए हैं ःप््येक कक्ा के पाठ् यांशों पर आिाररि चिुने हुए घटकों को प्संगानुसार श्रेणीब रूप मेंसमातवष् तकया है । घटकों का चियन करिे समय तवद् यातथशायों की आयुसीमा, रुतचि औरपुनराविशान का अभयास आतद मु ों को धयान में रिा गया है । प््येक कक्ा के तलए समातवष्तकए गए घटकों की सूचिी संबंतिि कक्ा की पाठ् यपुसिक में समातवष् की गई है । अपेक्ा है तक तवद् यातथशायों में दसवीं कक्ा के अंि िक सभी घटकों की सवशासामानय समझ तनमाशाण होगी ।पयाशायवाचिी, तवलोम, तलंग, वचिन, शब्दयुग्म, उपसगशा, प््यय, तहंदी-मराठी समोच्ाररितभनिाथशाक शब्द, शुद् िीकरण, संज्ा के प्कार, सवशानाम के प्कार, तवशेर्ण के प्कार, तकयाके प्कार, अवयय के प्कार, काल के प्कार, कारक तवभशति, वाक्य के प्कार औरउ े्य-तविेय, वाक्य पररविशान, तवरामतचिह् न, मुहावरे, कहाविें, वणशा तव छेद, वणशा मेल,संति के प्कार, समास के प्कार, अलंकार के प्कार, छंद के प्कार, शु उच्ारण औरप्योग करना ।

    ६. अधययन कौिल १. सुवचिन, उद् िरण, सुभातर्ि, मुहावरे, कहाविें अातद का संकलन करिे हुए प्योग करना । २. तवतभनि ोिों से जानकारी का संकलन, तट पणी िैयार करना । ३. आकृति, आलिे, तचित्र का सपष्ीकरण करन ेहिे ुमदु ्दों का लिेन, प््न तनतमशाति करना ।

  • ति कों के तलए माग्णदि्णक बािें ........अधययन अनुभि देने से पहले मिा तििान, प्सिािना, पररति , आिशयक रचनाएँ एिं समग्र रूप से

    पाठ् यपुसिक का अधययन आिशयक है । तकसी भी गद् य-पद् य के प्ारंभ के सा ही कति/लेिक पररचय, उनकी प्मुि कृतियाें और गद् य/पद् य के संदभ्ण में तिद् यात ्णयों से चचा्ण करना आिशयक है । प्त्येक पाठ की प्सिुति के उपरांि उसके आिय/भाि के ढ़ीकरर हेिु प्त्येक पाठ में ‘िबद संसार’, तितिि ‘उपक्रम’, ‘उपयोतिि लेिन’ ‘अतभवयत्ि’, ‘भाषा तबंदु’, ‘ िरीय’, ‘संभाषरीय’, ‘पठनीय’, ‘लेिनीय’ आतद कृतियाँ भी दी गई हैं । इनका सिि अ यास कराएँ ।

    सूचनानुसार कृतियाें में संिाल, कृति पूर्ण करना, भाि/अ ्ण/क ीय भाि लेिन, पद् य तिशलेषर, कारर लेिन, प्िाह िातलका, उतचि टनाक्रम लगाना, सूची िैयार करना, उपसग्ण/प्त्यय, समो ाररि-तभन्ना िबदों के अ ्ण तलिना आतद तितिि कृतियाँ दी गई हैं । ये सभी कृतियाँ संबंतिि पाठ पर ही आिाररि हैं । इनका सिि अ यास करिाने का उत्िरदातयत्ि आपके ही सबल किों पर है ।

    पाठों में ‘ िरीय’, ‘संभाषरीय’, ‘पठनीय’, ‘लेिनीय’ के अंिग्णि दी गई अधययन सामग्री भी मिा तििान पर ही आिाररि है । ये सभी कृतियाँ पाठ के आिय को आिार बनाकर तिद् यात ्णयों को पाठ और पाठ् य पुसिक से बाहर तनकालकर दुतनया में भी तिचरर करने का अिसर प्दान करिी हैं । अिः ति क/अतभभािक अपने तनरी र में इन कृतियों का अ यास अिशय कराएँ । परी ा में इनपर प्शन पू्ना आिशयक नह है । तिद् यात ्णयों के क पना प िन, मौतलक सृिन एिं सियंस ि्ण लेिन हेिु ‘उपयोतिि लेिन’ तदया गया है । इसके अंिग्णि प्संग/ तिषय तदए गए हैं । इनके द् िारा तिद् यात ्णयों को रचनात्मक तिकास का अिसर प्दान करना आिशयक है ।

    तिद् यात ्णयों की भािभूतम को धयान में रिकर पुसिक में मधयकालीन कतियों के पद, दोहे, सिैया, सा ही कतििा, गीि, गिल, ब तिि कहातनयाँ, हासय-वयं य, तनबंि, संसमरर, सा ात्कार, एकांकी आतद सातहतत्यक तििा का तिचारपूि्णक समािेि तकया गया है । इिना ही नह अत्यािुतनक तििा ‘हाइक’ काे भी प् मिः पुसिक में स ान तदया गया है । इनके सा -सा वयाकरर एिं रचना तिभाग ि ा मधयकालीन कावय के भािा ्ण पाठ् यपुसिक के अंि में तदए गए हैं । तिससे अधययन-अधयापन में सरलिा होगी ।

    पाठों में तदए गए ‘भाषा तबंदु’ वयाकरर से संबंतिि हैं । यहाँ पाठ, पाठ् यपुसिक एिं बाहर से भी प्शन पू्े गए हैं । वयाकरर पारंपररक रूप से न पढ़ाकर कृतियों और उदाहररों द् िारा वयाकरतरक संक पना को तिद् यात ्णयों िक प ँचाया िाए । ‘पूरक पठन’ सामग्री कह न कह पाठों को ही पोतषि करिी है । यह तिद् यात ्णयों की तच एिं उनमें पठन संसकृति को बढ़ािा देिी है । अिः इसका अ यास अिशय करिाएँ । उपरो सभी अ यास करिािे समय ‘पररति ’ में तदए गए सभी तिषयों को धयान में रिना अपेत ि है । पाठ के अंि में तदए गए संदभ से तिद् यात ्णयों काे सियं अधययन हेिु प्ेररि करें ।

    आिशयकिानुसार पाठ् येिर कृतियों, भाषाई िेलों, संदभ -प्संगों का भी समािेि अपेत ि है । आप सब पाठ् यपुसिक के माधयम से नैतिक मू यों, िीिन कौिलों, क ीय ि िों, संिैिातनक मू यों के तिकास के अिसर तिद् यात ्णयों को अिशय प्दान करें । पाठ् यपुसिक में अंितन्णतहि प्त्येक संदभ्ण का सिि मू यमापन अपेत ि है । आिा ही नह पूर्ण तिशिास है तक आप सभी ति क इस पुसिक का सहष्ण सिागि करेंगे ।

  • दूसरी इकाई

    * अनुक्रमतरका *

    क्र. पाठ का नाम तििा रचनाकार पृष्ठ १. उड़ चिल, हाररल कतविा सशच्दानंद हीरानंद वा्सयायन

    ‘अज्ेय’१-२

    २. तडनर (पूरक पठन) वणशाना्मक कहानी गजेंद्र रावि ३-१० ३. नाम चिचिाशा हासय-वयंग्य तनबंि नरेंद्र कोहली ११-१8

    4. मेरी समृति हाइकु डॉ. रमाकांि श्रीवासिव १९-२१ 5. भार्ा का प््न (पूरक पठन) भार्ण महादेवी वमाशा २२-२ . दो संसमरण संसमरण संजय तसनहा २ -३३ . तहम िंडकावय अंश नरेश मेहिा ३4-३ 8. प्ण नाटक अंश मोहन राकेश ३ -4२ ९. जवासी पद भति सूरदास 4३-44१०. गुरुदेव का घर पत्र तनमशाल वमाशा 45-48

    ११. दो लघुकथाएूँ लघुकथा तत्रलोक तसंह ठकुरेला 4९-5२१२. गजलें (पूरक पठन) गजल अदम गोंडवी 5३-5

    क्र. पाठ का नाम तििा रचनाकार पृष्ठ १. संधया सुंदरी नई कतविा सूयशाकांि तत्रपाठी ‘तनराला’ 5 -58 २. चिीफ की दावि संवादा्मक कहानी भीष्म सहानी 5९- 8 ३. जानिा हूूँ मैं आलेि महा्मा गांिी ९- 4 4. बटोतहया (पूरक पठन) लोक भार्ा गीि रघुवीर नारायण 5- 5. अथािो घुममक्कड़-तजज्ासा वैचिाररक तनबंि राहुल सांकृ्यायन 8-8३ . मानस का हंस उपनयास अंश अमृिलाल नागर 84-8९ . अकथ कथयाै न जाइ पद संि नामदेव ९०-९१ 8. बािचिीि (पूरक पठन) साक्ा्कार दुगाशाप्साद नौतटयाल ९२-९९९. तचिंिा महाकावय अंश जयशंकर प्साद १००-१०२

    १०. टॉल्सटॉय के घर के दशशान यात्रा वणशान डॉ. रामकुमार वमाशा १०३-१०8११. दुि (पूरक पठन) मनोवैज्तनक कहानी यशपाल १०९-१११२. चिलो हम दीप जलाएूँ गीि सुरेंद्रनाथ तिवारी ११ -११९

    वयाकरण िथा रचिना तवभाग एवं भावाथशा १२०-१२8

    पहली इकाई

  • 1

    उड़ चिल हाररल तलए हाथ में, यही अकेला ओछा तिनका उर्ा जाग उठी प्ाचिी में कैसी बाट, भरोसा तकनका !शतक्ि रहे िेरे हाथों में, छट न जाय यह चिाह सृजन कीशतक्ि रहे िेरे हाथों में, रुक न जाय यह गति जीवन की !

    ऊपर-ऊपर-ऊपर-ऊपर, बढ़ा चिीर चिल तदग्मंडलअनथक पंिों की चिोटों से, नभ में एक मचिा दे हलचिल !तिनका िेरे हाथों में है, अमर एक रचिना का सािनतिनका िेरे पंजे में है, तविना के प्ाणों का सपंदन !

    काूँप न, यद् यतप दसों तदशा में, िुझे शूनय नभ घेर रहा हैरुक न यद् यतप उपहास जगि का, िुझको पथ से हेर रहा है !िू तमट् टी था, तकंिु आज तमट् टी को िूने बाूँि तलया हैिू था सृतष्ट तकंिु ष्टा का, गुर िूने पहचिान तलया है !

    तमट् टी तन्चिय है यथाथशा, पर क्या जीवन केवल तमट् टी है ?िू तमट् टी, पर तमट् टी, से उठने की इ छा तकसने दी है ?आज उसी ऊधवग ज्वाल का, िू है दुतनशावार हरकारादृढ़ धवज दंड बना यह तिनका, सूने पथ का एक सहारा !

    तमट् टी से जो छीन तलया है, वह िज देना िमशा नहीं हैजीवन सािन की अवहेला, कमशावीर का कमशा नहीं है !तिनका पथ की िूल सवयं िू, है अनंि की पावन िूलीतकंिु आज िूने नभ पथ में, क्ण में बद् ि अमरिा छ ली !

    उर्ा जाग उठी प्ाचिी में, आवाहन यह नूिन तदन का उड़ चिल हाररल तलए हाथ में, एक अकेला पावन तिनका !

    (‘इ्यलम् ’ कतविा संग्ह से)

    १. उ चल, हाररल

    - सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्ा्न ‘अज्ञे्’

    िनम ः १९११, देवररया (उ.प्.) मृत्यु ः १९ 8, तदल्लीपररचय ः सशच्दानंद हीरानंद वा्सयायन ‘अज्ेय’ जी आिुतनक तहंदी सातह्य के जाज्वल्यमान नक्त्र आैर बहुमुिी प्तिभा के िनी हैं । आपने कतविा, कहानी, उपनयास, आलोचिना, तनबंि, संसमरण, नाटक सभी तविाओं में सफलिापूवशाक अपनी कलम चिलाई है । आपने अनेक जापानी हाइकु कतविाओं को अनूतदि भी तकया है । प्मुि कृतियाँ ः ‘हरी घास पर क्ण भर’, ‘आूँगन के पार द् वार’, ‘सागर मुद्रा’ (कतविा संग्ह), ‘शेिरः एक जीवनी’(दो भागों में), ‘नदी के द् वीप’ (उपनयास), ‘एक बूूँद सहसा उछली’, ‘अरे ! यायावर रहेगा याद’ (यात्रा वृ्िांि), ‘सबरंग’, तत्रशंकु’ (तनबंि संग्ह), ‘िार सप्तक’, ‘दूसरा सप्तक’ और ‘िीसरा सप्तक’ (संपादन) आतद ।

    प्सिुि कतविा में ‘अज्ेय’ जी ने हाररल पक्ी के माधयम से देश के नवयुवकों को आगे बढ़ने की प्ेरणा दी है । कतव का कहना है तक जीवन पथ मंे अनेक कतठनाइयाूँ आ ंगी तकंिु उनसे घबराना नहीं है । जीवन-जगि के आह् वान को सवीकार करके ‘फीतनक्स’ पक्ी की भाूँति आसमान की ऊॅंचिाइयों िक पहुूँचिना ही हमारा लक्य होना चिातहए ।

    पहली इकाई

    पररचय

    पद् य संबंिी

  • 2

    * सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-(१) संिाल पूर्ण कीतिए ः (२) कृति पूर्ण कीतिए ः

    (३) उतचि िोत याँ ँढ़कर तलखिए ः

    (5) पद् य में प्यु्ि प्ेररादायी पंत्ियाँ तलखिए ।

    (७) तनम्न मुद् दांे के आिार पर पद् य तिशलेषर कीतिए ः१. रचिनाकार का नाम२. रचिना का प्कार३. पसंदीदा पंतक्ि4. पसंद होने का कारण5. रचिना से प्ाप्त प्ेरणा

    (६) कतििा की अंतिम दो पंत्ियों का अ ्ण तलखिए ।

    अ आ१. प्ाण २. -------३. उर्ा4. -------

    -------पंि-------पावन िूली

    १.------- २.-------

    हाररल की शतक्ि संबंिी कतव की

    अपेक्ाएूँ

    िबद संसारहाररल पुं.सं.(दे.) = हररयाल (एक पक्ी)

    (महाराष्टट् का राज्यपक्ी)्ा तव.(दे.) = िु छ, छोटा

    तद मंडल पुं.सं.(सं) = तदशाओं का समूहतििना पुं.(सं.) = होनहारउपहास पुं.सं.(सं.) = हूँसी, तदल्लगी

    गुर पुं.सं.(दे.) = कायशा सािने की युतक्ि, कायदाधिग पुं.सं.(सं.) = शरीर के ऊपर का भाग

    दुतन्णिार तव.(सं.) = तजसका तनवारण करना कतठन हो ।

    हरकारा पुं. सं. (फा.) = डातकया, संदेशवाहक

    तिनके की तवशेर्िाएूँ

    सिाधयाय

    (4) चार ऐसे प्शन िैयार कीतिए तिनके उत्िर तनम्न िबदहों ःप्ाचिी ःउपहास ःअमरिा ःहलचिल ः

    ‘यतद मैं बादल होिा.....’ तिषय पर लगभग सौ िबदों में तनबंि तलखिए ।उपयोतिि लेिन

  • 3

    २. तडनर

    (पूरक पठन)- गजेंद्र रावत

    अगसि की शुरुआि थी...बाररश की िेज बौछारें होकर हटी थीं लेतकन अब वािावरण में तकसी

    िरह की कोई सरसराहट नहीं बचिी थी । एकदम ठहरी हवा सीली और तचिपतचिपी हो गई थी । आसमान में काले-दूतिया बादलों में िामोश घमासान मचिा हुआ था, मानो तकसी तचिकने फशशा पर तफसल रहे हों । लेतकन सड़क पर वाहनों की िक्कापेल से उठिी बेसुरी धवतन ने वहाूँ तबिरी कुदरि की नायाब चिु पी को जबरन दबा तदया था ।

    उतमशा के कंिे पर लंबी ितनयों के दो बैग झूल रहे थे और एक बड़ा पोली बैग उसकी ठड् डी िक पहुूँचि रहा था जो दोनों बाजुओं के बीचि थमा हुआ था । बुरी िरह असि-पसि थी वो, भीिर से एकदम िर-बिर । िीझ और झुूँझलाहट के बावजूद उसकी आूँिें उद् तवग्न-सी सामने के सरपट दौड़िे टट्ैतफक पर लगी हुई थीं । वह टो िोज रही थी । कभी कोई टो तदिाई देिा पर हाथ देने पर भी रुकिा न था । जाे रुकिा वह रोतहणी जाने के नाम से ही तबदक जािा । वह बहुिों से पूछ चिुकी थी । बार-बार

    टोवालों की तहलिी तसप्ंगदार शिलौनों-सी मुंतडयों ने उसे बरुी िरह तचिढ़ा तदया था । इस ‘न’ की आशंका भर से उसकी तदल की िड़कनें िेज हो गईं । इस अतववेकपूणशा अभयास ने उसकी टाूँगों से मानो संतचिि ऊजाशा का रेशा-रेशा बाहर िींचि तलया हो । वह लगभग पैरों को घसीट रही थी । उनमें कदम भर चिलने की िाकि नहीं बचिी थी । जब चिातहए होिे हैं िो एक भी नहीं तदििा और जब नहीं चिातहए िो चिारों िरफ टो-ही- टो देि लो। इिना िो तदन भर के काम से नहीं थकी तजिना कंबखि टो करने में टाूँगें टट गईं और देिो अभी िक हो भी नहीं पाया... वह सोचि रही थी और बचििी-बचिािी सड़क पार कर पैदल ही चिलने लगी । पैर घसीटिे-घसीटिे यही ऊहापोह पंचिकुइयाूँ के और अतिक वयसि चिौराहे िक ले आई । अब नहीं चिला जािा । बस ! वो फुटपाथ से लगी रेतलंग पर पीठ तटकाकर िड़ी हो गई । गहरी साूँस भरिे हुए उसने आसमान की ओर तसर उठाया और साूँस छोड़िे हुए आूँिें मूूँद लीं मानो पल भर को तवराम तलया हो । मगर थोड़ी देर में उसकी आूँिें तफर सड़क पर लगी थीं ।

    चिारों ओर अ छा-िासा अूँिेरा तघर चिुका था । सड़क के तकनारे तबजली के िंभों पर बत्ियाूँ तटमतटमाने लगी थीं तजनके इदशा-तगदशा बरसािी पिंगे जमा हो रहे थे ।

    िनम ः १९58, पौड़ी (उ्िरािंड)पररचय ः गजेंद्र रावि जी तहंदी के एक चितचिशाि रचिनाकार हैं । आपकी कहातनयों में दैतनक अनुभवों के तवतवि रूप तदिाई पड़िे हैं । अापकी कहातनयाूँ तनयतमि रूप से पत्र-पतत्रकाओं की शोभा बढ़ािी रहिी हैं । प्मुि कृतियाँ ः ‘बाररश’, ‘ठंड और वह’, ‘िुंिा-िंुआूँ िथा अनय कहातनयाूँ’ (कहानी संग्ह) आतद ।

    प्सिुि संवादा्मक कहानी में रावि जी ने नारी के जीवन संघर्शा एवं उससे पररवार-समाज की अपेक्ाओं को दशाशाया है । पढ़ी-तलिी, नौकरी करने वाली बहू चिातहए पर साथ ही यह अपेक्ा भी रहिी है तक घर के सारा काम भी वही करे । कहानीकार ने कहानी में यह सपष्ट तकया है तक घर के काम में हाथ बूँटाने की तजममेदारी पुरुर्ों की भी उिनी ही है तजिनी एक मतहला की ।

    पररचय

    गद् य संबंिी

  • 4

    वह तफर से हाथ का सामान उठाकर तबना समय गूँवाए पीछे के टो की िरफ चिल दी ।

    ‘‘चिलोगे बाबा ?’’ उतमशा हाूँफिी हुई बस इिना ही बोल पाई । ‘‘कहॉं ? वह काफी बूढ़ा था । ‘‘रोतहणी !’’ उतमशा डरी-सहमी िीरे-से बोली । ‘‘तबलकुल चिलेंगे पु्िर...’’ बूढ़े की आवाज में अपनापन था,

    जुबान मीठी थी । इिना सुनिे ही वह झट से टो में बैठ गई । बूढ़े की सहमति ने उसे

    तदली राहि दी । बूढ़ा अभी भी अगले पतहये पर झुका हुआ था और पाूँव से दबाकर टायर देि रहा था । बूढ़े की पैंट का पोंचिा घुटने िक गुल्टा हुआ था । उसके घुटने के थोड़ा नीचिे रगड़ का तनशान बना हुआ था । वैसे िो वह अ छा-िासा लंबा था लेतकन उसकी कमर सथायी िौर से झुकी थी । तसर के सन-से बाल तबना कंघी के फैले हुए थे । उसके चिेहरे के गोरे रंग पर मैल, िूल और िुएूँ की तचिपतचिपी परि चिढ़ी हुई थी । उसने आूँिें तमचितमचिािे हुए तपछली सीट के छोटे-से अूँिेरे में उसे देिा- वह बैठ चिुकी थी । िीनों बैग सीट के पीछे रिकर वह हाथ में मोबाइल और छोटा-सा पसशा तलए चिुपचिाप बैठी थी ।

    ‘‘चिलो जी चिलिे हैं ।’’ बूढ़ा मीटर तगरािे हुए सीट पर बैठ गया और दोनों हाथ जोड़े पल भर आूँिें मूॅंदे रहा । सुबह से नहीं तमला हाथ जोड़ने का टाइम ? वह बूढ़े के तकयाकलाप देििे हुए सोचिने लगी ।

    ‘‘हाूँ, िो पु्िर कौन-से सेक्टर जाना है ?’’ बूढ़े की जुबान में पंजाबी लहजा था ।

    ‘‘ सेक्टर िेरह ।’’ वो इ्मीनान से बोली अब पहले वाली िीझ, झूँुझलाहट जािी रही थी ।

    बूढ़ा तबना बोले चिल पड़ा । टो गति पकड़ने लगा । ‘‘पु्िर एक बाि पूछूँ ?’’ बूढ़ा आगे सड़क पर दृशष् गड़ाए तझझकिे

    हुए िीमे-से बोला । ‘‘हाूँ ?’’‘‘ऐसा लगिा है पु्िर आप कहीं काम करिी हो ?’’ ‘‘हाूँ, अिबार

    में !’’ उतमशा ने तसर पीछे तटका तलया था । ‘‘अिबार में ? अिबार में कैसे ?’’ बूढ़ा हैरान था । ‘‘िबरें लािी हूूँ...’’ उतमशा कहिे हुए लापरवाही से मुसकराई ।

    ‘‘िबरें ?’’ बूढ़े ने दोहराया, वह और ज्यादा हैरान था । काफी देर िक बूढ़ा चिुप रहा, उतमशा की इस अजीब नौकरी के बारे में सोचििा रहा । चिलिे-चिलिे अचिानक एक अजीब-सी धवतन के साथ टो बंद हो गया और िीर-िीरे रुक गया ।

    कामकाजी मतहलाओं की समसयाओं की जानकारी इकट् ठा करके चिचिाशा कीतजए ।

    संभाषरीय

    4

  • 5

    ‘‘ओ हो !’’ बूढे के मुूँह से तनकला, ‘‘क्या मुसीबि है ?’’ वह झुूँझलािे हुए टो को सड़क के तकनारे िक िींचि लाया ।

    टो के रुकिे ही दस तमनट के अंदर ही उतमशा पसीने-पसीने हो गई । बूढ़े की बड़बड़ाहट उसके कानों िक पड़ रही थी । गरमी और घुटन से त्रसि वह सामान टो के भीिर ही छोड़कर नीचिे बैठे बूढ़े के पास आ िड़ी हुई और थोड़ा-सा नीचिे झुकिे हुए बोली, ‘‘ठीक िो हो जाएगा न ?’’

    ‘‘हाूँ, हाूँ क्यों नहीं, चिालीस साल से टो चिला रहा हूूँ, पुज-पुज से वातकफ हूूँ । बस हो गया समझो !’’ भीिर लगी ग्ीस से उसका हाथ बुरी िरह सन गया था ।

    ‘‘आप इस उ में भी ... आपके बच्े कमािे होंगे ?’’ वह आदिन पूछ बैठी लेतकन पल भर में ही उसे अहसास हुआ तक इिना तनजी सवाल नहीं पूछना चिातहए था ।... पिा नहीं कैसे िो गुजारा कर रहा होगा बेचिारा !

    बच्ों के नाम पर बूढ़े ने एक बार नजर उठाकर जरूर देिा और तफर तसर झुकाकर ऐसे काम में लग गया जैसे कुछ सुना ही न हो ।

    ‘‘बच्े ! हाूँ पु्िर ...’’ बूढ़ा इिना ही बोल पाया तक उतमशा का मोबाइल बज उठा । वह तफर बोला, ‘‘आपका ...!’’

    उतमशा चि की और मोबाइल को कान से सटाकर फुटपाथ पर चिढ़िी हुई बाि करने लगी, ‘‘आ रही हूॅं बाबा ! हाूँ भई हाूँ ! शासत्री नगर में हूूँ... टो िराब हो गया है.... नहीं-नहीं, वह ठीक कर रहा है ।’’ अंतिम शब्द उसने बहुि िीमे-से कहे ।

    कुछ देर की अाशा-तनराशा के बाद टो सटाटशा हो ही गया । टो को सटाटशा होिे देि उतमशा जल्दी से उछलकर तपछली सीट पर बैठ गई ।

    कुछ देर टो को ठीक-ठाक चिलिे देि, बूढ़ा बोलने लगा, ‘‘दो लड़के हैं, पहला िो शादी होिे ही अलग हाे गया, मैंने सोचिा, चिलो छोटेवाला िो साथ है पर वह िो और भी चिालाक तनकला, एक ॉट था उसके तबकिे ही पट् ठे ने हमारा सामान बाूँि तदया... मुझे ही पिा है तक कैसे इज्जि बचिाई ...’’ इिना कहिे-कहिे उसकी आूँिें नम होिी चिली गईं । आवाज अवरुद् ि होिी जा रही थी ।

    ‘‘िाे अभी तबलकुल अकेले हो ?’’‘‘हाूँ पु्िर, घरवाली को मरे चिार साल हो गए हैं... बस बेटी है

    िुमहारी उ की होगी, वो चिक्कर लगा लेिी है ह िे-पंद्रह तदन में । बेटी का मन नहीं मानिा ! बेचिारी वह भी अकेली कमाने वाली है । उसके आदमी के पास भी काम नहीं है ।’’ बूढ़ा िीमे-िीमे बोल रहा था और आशिरी शब्द िक तबलकुल ऊजाशाहीन हो चिुका था मानो आगे नहीं बोल पाएगा ।

    बढ़िे हुए प्दूर्ण (वायु, धवतन) का सवासथय पर बुरा असर पड़ रहा है,’ तवर्य पर अपने तवचिार तलशिए ।

    लेिनीय

    5

  • 6

    कुछ देर वे चिु पी में बूँि गए । बूढ़ा तफर िीर-िीरे बोलने लगा, ‘‘मैं तकसी को दोर् नहीं देिा... सब

    तकसमि का िेल है ! दस साल का था मैं, जब लाहौर से तदल्ली आया था ... बाऊ जी िाूँगा चिलािे थे । यहाूँ भी िाूँगा ले तलया और तजंदगी भर वही चिलािे रहे ।’’...

    यकायक एक िीिा-ककश सवर गूूँजा । ... िड़िड़-िड़िड़ ... और झटके के साथ टो रुक गया ।

    ‘‘ओ फ आे ! अब क्या हुआ ?’’ बूढ़ा झुूँझलाया । उतमशा ने कलाई को रोशनी िक ले जाकर टाइम देिा, तफर िीझ में

    िीरे-से फुसफुसाई, ‘‘नो...ओ नो !’’ बूढ़ा उिरकर टो के इदशा-तगदशा घूमने लगा ‘‘पंचिर हो गया ... दस तमनट लगेंगे । आप तफकर न करें !’’

    तफर एक बार टो पटरी के साथ िड़ा हो गया । बूढ़े ने आगे से ग-पाना, जैक और सटेपनी तनकाल ली, तफर बैठकर जैक लगाने लगा ।

    उतमशा टो से उिर फुटपाथ पर चिढ़ गई । उद् तवग्न-सी, तसर नीचिे तकए छोटे-छोटे कदमों से टहलने लगी । अब टाइम ज्यादा हो गया है, ये गुससा कर रहे होंगे । बच्े िो मेरे तजममे ही मानकर चिलिे हैं ... उसने सोचिा ।

    आकाश बादलों से पटा हुआ था । दूर कभी-कभी तबजली चिमक जािी थी तजसकी िेज रोशनी आस-पास के तघरे अूँिेरे में तदिाई दे रही थी ।

    अचिानक मोबाइल बजने की आवाज ने उसे चि का तदया । ये तचिंिा कर रहे होंगे ? उसने जल्दी से मोबाइल कान से लगा तलया ...‘‘हैलो !’’

    ‘‘हैलो, क्या हो रहा है ? कहाूँ हो यार ?’’वह टो से थोड़ा दूर जाकर िीरे-से बोली, ‘‘ टो पंक्चिर हो गया

    है, टो वाला बूढ़ा है, बेचिारा िीरे-िीरे पतहया बदल रहा है ।’’‘‘ऐसे िटारे में चिढ़ी क्यों ? छोड़ो उसे, दूसरा टो ले लो !’’‘‘दूसरा तमलना मुश्कल है, बहुि कोतशशों से तमला है ये भी ।’’‘‘अरे हाूँ, िुम िो बूढ़े का साक्ा्कार ले रही होगी, वृद् िों के एकाकी

    जीवन पर लेि जो तलिना है ।’’‘‘नहीं, नहीं...क्या बाि कर रहे हो ।’’‘‘नहीं, नहीं...क्या, ऐसा टो ही क्यों तकया... कभी िो तदमाग का

    इसिेमाल तकया करो’’... वह उसी िरह झुकी हुई एक लंबी साूँस िींचिकर तबना तहले-डले िड़ी रही । तझड़किे रहिे हैं हर वक्ि ! न जाने क्या समझिे हैं अपने आपको ? मैं कोई जान-बूझकर ऐसा कर रही हूॅं। इसे पचिास रुपये दे देिी हूंॅ... उसने पचिास का एक नोट पसशा से तनकालकर मुट् ठी में दबा तलया । अब वह सामने गुजरिे टो पर नजर रिे हुए थी ।

    अपने पररवेश में यािायाि सुरक्ा संबंिी लगे पोसटर, तभत्िपट िथा तवज्ापन पतढ़ए िथा कक्ा में लगाइए ।

    पठनीय

  • 7

    ‘‘टाइम लगेगा क्या बाबा ?’’‘‘नहीं, पु्िर बस हो गया !’’बूढ़ा पतहये के नट कस रहा था ।‘‘िुमहारा बच्ा छोटा है क्या ?’’बूढ़ा दोनों घुटनों पर हाथ रिकर िड़े

    होिे हुए बोला । वह बूढ़े के इस असंगि प््न से हैरान थी लेतकन उसने िीमे-से

    सवीकृति में तसर तहला तदया । असंगि प््न होने के बावजूद उसे अपने पापा की याद आ गई । उनहोंने बड़े तकए हैं मेरे दोनों बच्े...

    बूढ़ा टो की िकनीक पर बड़ी देर िक बड़बड़ािा रहा । वह तबना कुछ कहे बैठ गई । टो तफर से दौड़िे टट्ैतफक में शातमल हो

    गया । टो जब तसग्नल पर रुका िो उतमशा ने कलाई की घड़ी को तफर देिा और तसफ होंठों को तहलािे हुए फुसफुसाई ... ‘एक महाभारि अभी घर पर भी झेलनी है... क्या पकाना है ? ओफ हो ! लेबर-सी तजंदगी हो गई है ! तदन भर ररपोतटग के तलए िक्के िाओ... घर पहुूँचिो िो.... तडनर बनाओ !’

    आगे की डट्ाइतवंग सीट पर बूढ़ा भी लगािार बड़बड़ा रहा था जो टट्ैतफक के भारी शोर में सपष्ट नहीं था। उतमशा का मन घर पर ही लगा था ... अनुराग मुझसे िो इिनी पूछिाछ कर रहे हैं तक कहाूँ हॅूं, पर ये नहीं तक सब्जी ही काट दें, दाल िोकर गैस पर चिढ़ा दें । तदन भर आराम ही िो तकया है । सुबह िो िाना मैं ही बनाकर आिी हूॅं । ... लेतकन मेरी तकसमि कहाूँ ! ये सब िो मेरे इंिजार में होंगे ! आएगी और करेगी ....अौर क्या ? दुतनया मंे तसफ औरिको न िो कभी थकान होिी, न दुि, न िकलीफ ! सारे काम औरि के तजममे हैं... आदमी िो तफर आदमी है ! ये सारे ियाल करिे-करिे उसके मुूँह से हल्की-सी आह तनकल आई ।

    ‘‘मुड़ना तकिर है ?’’ बूढ़ा िेजी से बोला । वह चि की और तफर बाहर देििी हुई बोली, ‘‘सीिे हाथ... अगले गेट

    से अंदर ले लेना ।’’टो तबतल्डंग के नीचिे रुक गया । बूढ़े काे पैसे देकर वह सामान को

    पहले की िरह समेटे भारी कदमों से सीतढ़याूँ चिढ़िे-चिढ़िे सोचिने लगी... ‘दस से ऊपर का टाइम हो गया है, िीन भूिे प्ाणी घर में तवचिरण कर रहे होंगे... उनके तलए, अपने तलए िाना बनाना ! क्या मुसीबि है ! सुबह तफर प्ेस कॉनफेंस और द िर ! कैसे होगा ये सब ! क्या उनके बस का कुछ भी नहीं है ? मैं भी िो जॉब करिी हूूँ। ये िो िीन महीने से घर पर ही हैं... मेहनि िो मेरे काम में ही ज्यादा है ।’ वह दरवाजे िक पहुूँचि गई और बेल दबाकर दीवार से तसर तटकाकर िड़ी हो गई ।

    दरवाजा िुला । वे िीनों एक साथ ही उदास चिेहरे तलए दरवाजे पर िड़े थे । छोटा दौड़कर उससे तलपट गया ‘‘मममा भूि लगी है !’’

    आजकल ‘वृद् िों का जीवन कष्मय होिा जा रहा है’, तकसी वृद् ि से मुलाकाि करके उनसे इस तवर्य में सुतनए ।

    िरीय

  • 8

    ‘उसके िन-बदन में जैसे आग लग गई हो । कम-से-कम बच्ों को कुछ िाने को दे सकिे थे’ ... उसने सोचिा लेतकन िीरे से बुदबुदाई, ‘‘अरे भीिर िो आने दे !’’

    अनुराग तसर नीचिे तकए हुए बोला, ‘‘बहुि लेट हो गई हो, ऐसा भी क्या टो था ?’’

    उतमशा ने कुछ न कहा, एक नजर रसोई की ओर देिा । एकदम साफ-सुथरी । ‘तदन में कामवाली करके गई होगी िब से तकचिन में घुसे िक नहीं । इनहोंने सब्जी िक नहीं काटी । हर िरफ मुझे ही मरना ह ै ।’ वह भीिर-ही-भीिर सोचििी रही । बेडरूम की िरफ जािे हुए तवपरीि तदशा में हाथ से इशारा करिे हुए बाेली, ‘‘वहाूँ अूँिेरा क्यों तकया है ?’’

    ‘‘हम सब बेडरूम में ही थे । सीररयल देि रहे थे इसतलए वहाूँ क्या फायदा बेकार में लाइट ...’’ अनुराग के साथ िड़ी बेटी शैफी ने कहा ।

    ‘‘चिलो ठीक है, मैं हाथ-मुूँह िाेकर िाना पकािी हूॅं ।’’ वह िल्ि होकर बोली । ... ‘सीररयल देि रहे हैं... बिाओ ।’

    वे सब वहीं िड़े उसे हाथ-मुूँह िोिे चिुपचिाप देििे रहे । उतमशा रसोई की िरफ मुड़ गई । ऐप्न पहनकर तफज से सतब्जयाूँ

    तनकालकर सलैब पर रििे हुए िीझ से बोली, ‘‘चिाकू कहाूँ है ?’’‘‘डायतनंग टेबल पर होगा ।’’ बेडरूम से अनुराग की आवाज थी ।

    इनसे छोटी-छोटी मदद की भी उममीद नहीं की जा सकिी ... वह झल्लाहट में पैर पटकिी डायतनंग टेबल िक पहुूँचिी । ‘...यहाूँ कहाूँ रि तदया अूँिेरे में ! कोई चिीज जगह पर नहीं तमलिी ।’ वह बड़बड़ाई और दीवार िक पहुूँचिकर लाइट का बटन दबा तदया । रोशनी होिे ही उसने टेबल पर देिा िो भौचिक्की रह गई । वहाूँ िाना बना रिा हुआ था । डोंगा, सब्जी और केसरोल ! उसने जल्दी से डोंगे का ढक्कन हटाया और देिकर ढक तदया ।

    इस सीन को लाइव देिने के तलए वे िीनों बेडरूम से तनकलकर डायतनंग टेबल के पास इकट् ठा हो गए ।

    उनहंे पास देिकर उतमशा बुरी िरह झेंप गई । हथेतलयों से मुूँह तछपािी वहीं दुबककर बैठ गई ।

    वे िीनों जोर-जोर से हूँसिे िाली बजािे उसे घेरकर िड़े हो गए । छोटा, मौका देिकर माूँ से तचिपक गया और िुिलािा हुआ बोला, ‘‘मममा हमने बना तदया’’ इिनी राि हूँसी की आवाज दूर िक जािी रही ।

    ‘मैं भी क्या-क्या सोचििी रहिी हूूँ’, उसने इनहीं ठहाकों के बीचि तफर सोचिा । शमशा से उसके गालों पर लातलमा फैल गई ।

    (‘लकीर’ कहानी संग्ह से)

    ० 8

  • 9

    * सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-(१) संिाल पूर्ण कीतिए ः (२) ऐसे चार प्शन िैयार कीतिए तिनके उत्िर

    तनम्नतलखिि िबद हों ः १. गरमी और घुटन२. सड़क ३. नौकरी4. शासत्री नगर

    (4) उत्िर तलखिए ः

    (३) उत्िर तलखिए ः

    वर्ाशा के आने से ये इस प्कार बदलेजलद

    प्कृति

    नभ

    हवा

    पाठ में प्युक्ि वाहन मरममि के तलए आव्यक सािनों के नाम

    पाठ में प्युक्ि पात्र

    िातक तव.(अ.) = पररतचिि, ज्ािि ि तव.(फा.) = कड़ुवा, कटडोंगा पुं.सं.(दे.) = बड़ा कटोरा

    मुहािरेतबदक िाना = भड़क जाना, चि कनापसीना-पसीना हो िाना = बहुि श्रम करना, थक जानाभौच्का रह िाना = आ्चियशाचितकि होनािेंप िाना = लशज्जि होना

    (5) तनम्नतलखिि क नों में से किेल सत्य क न ्ाँटकरपुनः तलखिए ः१. आॅटो के रुकने से उतमशा िुश थी ।२. आगे की डट्ाइतवंग सीट पर युविी थी, लगािार बड़बड़ा रही थी । ३. उतमशा उिरकर टो के इदशा-तगदशा घूमने लगी । 4. रोशनी होिे ही उतमशा ने टेबल देिा िो वह कोतिि

    हो गई ।

    (६) िबदयु म पूर्ण कीतिए ः१. - दूतिया

    २. डरी - ३. - तगदशा4. हाथ -

    अतभवयत्ि ‘ र के कामों मंे प्त्येक सदसय का सहयोग आिशयक है’, इसपर अपने तिचार तलखिए ।

    िबद संसार

    सिाधयाय

  • 10

    घना जंगल तवशाल और घने वृक्ों पर पंतछयों का बसेरा रोज पंतछयों का बच्ों के तलए दाना चिुगने उड़ जाना हर बार जािे समय बच्ों को समझाना ‘फँसना नहीं, बहेतलया आएगा, जाल तबछाएगा’ बच्ों द् वारा इसे केवल रटना रटिे-रटिे एक तदन पेड़ से नीचिे उिरना दाने देिकर िुश होना माूँ की सीि याद आना चिौकनिा हाेना साविान होकर उड़ जाना बहेतलए का पछिाना शीर्शाक ।

    भाषा तबंदु

    उपयोतिि लेिन

    (२) तनम्नतलखिि तिरामतचह् नों का उपयोग करिे ए लगभग १ िा्यों का पररच्ेद तलखिए ः

    तिरामतचह् न यु्ि पररच्ेद

    । - ? , ! ‘ ’ ‘‘ ’’    ० ....... ( ) ः -

    (१) तनम्नतलखिि िा्यों में उतचि तिरामतचह् न लगाकर िा्य त र से तलखिए ः१. हाूँ िो पु्िर कौन-से सेक्टर जाना है बूढ़े की जुबान में पंजाबी लहजा था२. रोतहणी उतमशा डरी-सहमी िीरे-से बोली ३. ऐसा लगिा है पु्िर आप कहीं काम करिी हो4. मैं भी क्या-क्या सोचििी रहिी हूूँ उसने इनहीं ठहाकों के बीचि तफर सोचिा5. उसने सोचिा लेतकन िीरे से बुदबुदाई अरे भीिर िो आने दो

    . जी हाूँ जी हाूँ बहुि यारा बच्ा है मेरे तमत्र ने कहा

    . संदभशा लकीर कहानी संग्ह से 8. िुम बोलिी क्यों नहीं अंतबका आकोश की दृतष्ट से उसे देििी है९. मतल्लका क्ण भर चिुपचिाप उसकी िरफ देििी रहिी है क्या हुआ है माूँ

    १०. पचिासों कहातनयाूँ पढ़ जाऊँ िो कही एकाि नाम तमलिा है नहीं िो लोग यह वह से काम चिला लेिे हैं

    मुद् दों के आिार पर कहानी लेिन कीतिए ः

  • 11

    प्सिुि हासय-वयंग्य तनबंि में नरेंद्र कोहली जी ने ‘नामकरण की समसया’ पर मनोरंजक प्काश डाला है । नवजाि तशशु का नाम रिने के तलए लोग तकस िरह परेशान होिे हैं, तकस-तकस िरह के नाम रिना चिाहिे हैं, इनका लेिक ने हासय-वयंग्यपूणशा तववेचिन तकया है ।

    ३. नाम चचा्ण

    कहिे हैं, तहंदी के कथा सातह्य में गतिरोि आ गया है । ऐसे संकट तहंदी सातह्य में पहले भी आए हैं और अकसर आिे रहिे हैं । तहंदी में आिे हैं िो अनय भार्ाओं के सातह्य में भी आिे होंगे पर तफर भी सारी दुतनया का काम चिलिा रहिा है । यह कोई ऐसी कतठनाई नहीं है तजसका कोई समािान न हो ।

    इस गतिरोि से एक भयंकर समसया दूसरे क्ेत्र में पैदा हो गई है । सारे तहंदी भार्ी प्देशों मंे नाम को लेकर गतिरोि आ गया है । कहीं तकसी के घर में कोई संिान हुई और मुसीबि उठ िड़ी हुई । तकिनी भयंकर समसया है तक बच्े का नाम क्या रिें ?

    इस किशावय को पूरा करने मंे मुझे कोई परेशानी नहीं थी पर तहंदी कथा सातह्य के इस गतिरोि ने मेरी गति भी अवरुद् ि कर दी है । पहले यह होिा था तक तकसी ने नाम पूछा और हमने कोई भी पतत्रका उठा ली, तजस तकसी कहानी की नातयका या नायक का नाम तदिा, वही तटका तदया । लोग होिे भी इिने सरल थे तक झट वह नाम पसंद कर लेिे थे ।

    अब तहंदी का कथा लेिक अपनी कहातनयों मंे नाम रिने से किराने लगा है । पचिासों कहातनयाूँ पढ़ जाओ िो कहीं एकाि नाम तमलिा है नहीं िो लोग ‘यह’, ‘वह’ से काम चिला लेिे हैं । हर कहानी के नायक का नाम ‘वह’ और मेरी बाि मान अपनी संिान का नाम ‘वह’ रिने को कोई भी िैयार नहीं । नाम तहंदी का कहानी लेिक नहीं रििा और परेशानी मेरे तलए िड़ी हो गई !

    मेरे मतसिष्क में एक सातहत्यक टोटका आया । मैंने सोचिा, ‘कथा सातह्य में गतिरोि आने पर भी िो आशिर तहंदी कहानी पतत्रकाओं का संपादक अपना कायशा तकसी प्कार चिला ही रहा है न । कैसे चिलािा है वह ?’

    थोड़ी-सी छानबीन से पिा चिला तक कोलकािा और बनारस में बहुि दूरी नहीं है । बस, कोलकािा से बांॅग्ला कहातनयाूँ बनारस मंे आ जािी हैं ।

    मैंने हजारों-लािों बांॅग्ला नामों को पीट-पीटकर िड़ा तकया और िड़ी बोली के नाम बना तलए ।

    इस बार प्ादेतशकिा आड़े आई । मेरे भाई-बंिु, तमत्र िथा अतिकांशिः पड़ोसी पंजाबी हैं । दूसरे प्देशों के लोग मेरा पंजाबी अक्िड़पन कम ही सहिे हैं, इसतलए अतिक तनभिी नहीं । एक क्मीरी

    - नरेंद्र कोहली

    िनम ः १९4०, तसयालकोट (पंजाब अतवभातजि भारि)पररचय ः नरेंद्र कोहली जी बहुआयामी वयतक्ि्व के िनी हैं । आपने उपनयास, वयंग्य, नाटक, कहानी, संसमरण, तनबंि, आलोचिना्मक सातह्य में लेिनी चिलाई है । आप प्ाचिीन भारिीय संसकृति से प्ेरणा लेकर समकालीन, िकसंगि लेिन करिे हैं । प्मुि कृतियाँ ः ‘गतणि का प््न’, ‘आसान रासिा’ (बालकथाएूँ), ‘पररणति’, ‘नमक का कैदी’ (कहानी संग्ह), ‘परेशातनयाूँ’, ‘त्रातह-त्रातह’, (वयंग्य), ‘तकसे जगाऊँ’, ‘नेपथय’ (तनबंि), ‘प्तवनाद’, ‘बाबा नागाजुशान’ (संसमरण), ‘श्रद् िा’, ‘आसथा’ (उपनयास) आतद ।

    पररचय

    गद् य संबंिी

  • 12

    मेरे पास आए । क्मीर बहुि सुंदर प्देश है । तफर उनकी तबतटया क्मीर के स दयशा से भी अतिक यारी थी । उस बच्ी का नाम कुछ ऐसा ही होना चिातहए था, तजसमें क्मीर का सारा प्ाकृतिक स दयशा साकार हो सके । मैंने क्मिा भर पररश्रम तकया तकंिु तकसी भी नाम से उनहें संिुष्ट नहीं कर पाया । अंििः उनहोंने ही कहा तक यतद मैं कोई नया नाम नहीं दे सकिा िो उनके सोचिे हुए नाम का तहंदी में कोई अ छा-सा पयाशाय दे दूूँ, जो तक उस बच्ी का नाम रिा जा सके।

    मैंने उनकी बाि मान ली, इसमें मुझे कोई परेशानी नहीं थी । मैंने उनका सोचिा हुआ नाम पूछा ।

    ‘‘रोजलीना ।’’ वे बोले, ‘‘इसमें क्मीर का स दयशा, क्मीर के गुलाब का स दयशा, सब कुछ आ जािा है । वैसे पंतडि नेहरू भी क्मीरी थे ।’’ वे अ्यंि भावुक हो उठे-‘‘रोजलीना शब्द से ही हमारी बेबी का चिेहरा आूँिों के सामने तघर जािा है ।’’

    ‘‘नाम िो सुंदर है !’’ मैंने सवीकार तकया ।‘‘बस, कतठनाई इिनी है तक नाम अंग्ेजी में है और हमारे रर्िेदार

    इसे हजम नहीं कर पा रहे । आप इसका तहंदी या भारिीय पयाशाय दे दें,’’ उनहोंने कहा ।

    मैंने बहुि सोचिा, शब्दकोश उलट-पलट डाले और िब िोजकर उनको ‘रोजलीना’ का पयाशाय तदया, ‘गुलाबो’ ।

    उनहोंने मेरा चिेहरा देिा और नाक तसकाेड़कर बोले, ‘आशिर पंजाबी हो न !’’

    मुझे िब भी लगा था तक प्ादेतशकिा मेरे किशावय में बािा िड़ी कर रही है ।

    अभी कल ही मेरे एक पंजाबी पड़ोसी आए थे । उनके घर पर परम परमे्वर की तकरपा से एक पु्िर का जनम हो गया था । अिः वे चिाहिे थे तक मैं उनके सुपु्िर के तलए कोई सोणा-सा नाम चिुन दूूँ ।

    मैं मान गया । वैसे इिनी जल्दी मैं सामानयिः माना नहीं करिा पर कल राि से एक बड़ा मिुर-सा नाम मेरे मन में चिक्कर-भंबीरी काट रहा था । सोचिा, ‘इनको वही नाम बिा दूूँ । इनके सुपु्िर को नाम तमल जाएगा और मुझे उसकी चिक्कर-भंबीरी से मुतक्ि ।’

    मैंने कहा, ‘‘लाला जी ! इसका नाम िो आप रिे ‘तनकुंज’ । बतढ़या नाम है और सारे मुहल्ले में तकसी का ऐसा नाम नहीं है ।’’

    ‘‘आप मजाक बतढ़या करिे हैं, मासटर साहब !’’ वह दोनों हाथों से िाली पीटकर शिलशिलाए, ‘‘क्या नाम चिुना है । कुंभकरन जैसा लगिा

    आपके घर में होने वाले नामकरण कायशाकम का तनमंत्रण पत्र बनाइए ।

    लेिनीय

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    है ।’’ मैंने कुछ नहीं कहा, चिुपचिाप उनहें देििा रहा । ‘‘ऐसा करो’’, वह बोले, ‘‘कोई बतढ़या-सा अंग्ेजी का नाम सोचिो ।

    मैंने सोचिा है, वेल्कम कैसा रहेगा ? वे िुशी से उछल पड़े । अपने मकान का नाम भी हम इसी पु्िर के नाम पर वेल्कम तबतल्डंग रिेंगे ।’’

    मेरी बुद् ति चिक्कर िा गई । ऐसे नाम की िो मैंने कल्पना ही नहीं की थी । तपंकी-तशंकी िो लोग नाम रिने लगे हैं । सुना था, तकसी ने अपनी बेटी का नाम ‘ट् तवंकल’ भी रिा है । हमारे पड़ोस में एक साहब ने अपने बेटे को ‘तप्ंस’ घोतर्ि तकया है पर वेल्कम ऊँचिा नाम था ।

    ‘‘पहला पु्िर है न ?’’ मैंने पूछा । ‘‘हाूँ जी ! पैल्ला, एकदम पैल्ला।’’ वह बोले । ‘‘िो ठीक है’’, मैं बोेला, ‘‘इसका नाम वेल्कम रशिए और दूसरे का फेयरवेल ।’’

    वे एक साथ दो-दो नाम पसंद कर चिल पड़े । अभी तपछले तदनों ही क्ेत्रीयिा ने मुझे एक बार और पछाड़ तदया ।

    हमारे मकान से चिौथे मकान में रहने वाले मेरे पड़ोसी का लड़का िीन वर्शा का हो गया था, पर वे अभी िक उसके तलए एक नाम िक नहीं िोज पाए थे । जैसे-जैसे तदन तनकलिे जािे थे, उनकी तचिंिा और भी गहरी होिी जािी थी । जब अपने लड़के के तलए एक उपयुक्ि नाम िक नहीं ढूँढ़ पा रहे थे िो उसके योग्य कनया और नौकरी कहाूँ से िोज पाएूँगे ।

    मुझसे तमले िो अपनी तचिंिा गाथा ले बैठे । जब वे बहुि रो चिुके और बहुि रोकने पर भी मेरा हृदय पूरा गल गया और फेफड़ों की बारी आ गई िो मैंने पूछा, ‘‘आशिर समसया क्या है ?’’

    ‘‘समसया क्या है ?’’ वह बोले, ‘‘बबुआ की महिारी का हठ और क्या ?’’ ‘‘क्या हठ है ?’’ बहुि चिाहने पर भी उनका घरेलू रहसय पूछने से मैं सवयं को न रोक सका ।

    वह बोले, ‘‘हमारा बबुआ बहुि शोर मचिािा है, बहुि ज्यादा । उसकी महिारी कहिी है तक उसका नाम उसके शोर मचिाने पर ही रिेंगे ।’’

    मैं चितकि हो गया, हठ को सुनकर । यह भी क्या हठ ! लोग गुण पर िो नाम रििे ही हैं पर दोर् को लेकर नाम !

    मुझे तचिंतिि देिकर वह बोले, ‘‘कोई नाम सोचि रहे हैं क्या ?’’मैंने कहा, ‘‘एक नाम सूझा है । आपके बबुआ के शोर मचिाने से

    तमलिा-जुलिा नाम । शाायद आपको पसंद आए ।’’‘‘हमारी पसंद क्या है’’, उनका मुॅंह लटका ही रहा, ‘‘पसंद िो बबुआ

    की महिारी को होना चिातहए । बोतलए, क्या नाम सूझा है आपको ?’’‘‘कोलाहल !’’ मैंने बिाया ।‘‘कोलाहल !’’ उनहोंने दुहराया, ‘‘वैसे िो सुंदर है, पर बबुआ की

    भारि में सघन वन तकन सथानों पर बचिे हैं, इसकी जानकारी के आिार पर आपस में चिचिाशा कीतजए ।

    संभाषरीय

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    महिारी को पसंद नहीं आवेगा ।’’‘‘क्यों ?’’ मैंने पूछा ।बोले, नाम िो कोई हमारे देसवा जैसा ही ह�