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हरि बोलौ हरि बोल
प्रवचन-क्रम
1. नीि बबनु मीन दुखी .............................................................................................................2
2. संसाि अर्ाात् मूर्च्ाा ......................................................................................................... 25
3. तुम सदा एकिस, िाम जी, िाज जी .................................................................................... 47
4. जीवन समस्या नहीं--विदान है .......................................................................................... 69
5. सुन्दि सहजै चीबन्हयां ....................................................................................................... 92
6. जो ह,ै पिमात्मा है.......................................................................................................... 115
7. हरि बोलौ हरि बोल ....................................................................................................... 137
8. पुकािो--औि द्वाि खुल जाएंगे........................................................................................... 164
9. सदगुरु की मबहमा .......................................................................................................... 185
10. जागो--नाचते हुए ........................................................................................................... 210
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हरि बोलौ हरि बोल
पहला प्रवचन
नीि बबन ुमीन दुखी
नीि बबनु मीन दुखी, ्ीि बबनु बििु जैसे,
पीि जाके औषबि बबनु कैसे िहयो जात है।
चातक ज्यों स्वाबत बंूद, चंद कौ चकोि जैसे,
चंदन की चाह करि सपा अकुलात है।
बनिान ज्यौं िन चाहे काबमनी को कंत चाहै,
ऐसी जाको चाह ताको क्ु न सुहात है।
प्रेम कौप्रभाव ऐसो, प्रेम तहां नेम कैसो,
संुदि कहत यह प्रेम ही की बात है।
प्रेम भबि यह मैं कही, जानै बबिला कोइ।
हृदय कलुषता क्यों िहै, जा घट ऐसी होइ।।
सत्य सु दोइ प्रकाि, एक सत्य जो बोबलए।
बमथ्या सब संसाि, दूसि सत्य सुब्रह्म है।।
संुदि देखा सोबिकै, सब काहू का ज्ञान।
कोई मन मानै नहीं, बबना बनिंजन ध्यान।।
िट दिसन हम खोबजया, योगी जंगम िेख।
संन्यासी अरु सेवड़ा, पंबित भिा भेख।।
तो भि न भावैं, दूरि बतावैं, तीिर् जावैं, फिरि आवैं।
ली कृबिम गावैं, पूजा लावैं, झूठ फदढ़ावैं, बबहकावैं।।
अरुमाला नांवैं, बतलक बनावैं, क्यों पावैं गुरु बबन गैला।
दादू का चेला, भिम प्ेला, संुदि न्यािा ह्वै खेला।।
हरि बोलौ हरि बोल! ... बोलने-योग्य कु् औि है भी नहीं, न सुनने-योग्य कु् औि है। बोलो तो हरि
बोलो, चुप िहो तो अरि में ही चुप िहो। भीति जाती श्वास हरि में िूबी हो, बाहि जाती श्वास हरि में िूबी हो।
उठो तो हरि में, सोओ, तो हरि में। जब हरि तुम्हें सब तिि से घेि ले, जब हरि तुम्हािी परिक्रमा किे, जब तुम
हरि के आवास हो जाओ... जागने में वही तुम्हािी दृबि में हो, स्वप्न में वही तुम्हािा स्वप्न भी बने, तुम्हािा िोआं-
िोआं उसी में ओत-प्रोत हो जाए, तुम्हािे पास जगह भी न बचे जो उसके अबतरिि फकसी औि को समा ले--जब
हरि ऐसा व्याप्त हो जाता है तभी बमलता है।
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र्ोड़ी भी जगह िही हरि से गैि-भिी तो तुम संसाि बना लोगे। औि एक ्ोटी सी बंूद संसाि की सागि
बन जाती है। एक ्ोटा सा बीज, वैज्ञाबनक कहते हैं, पूिी पृथ्वी को हरियाली से भि सकता है। एक ्ोटा सा
बीज, जहां तुम्हािे भीति हरि नहीं, है पयााप्त है तुम्हें भटकाने को--जन्मों-जन्मों तक भटकाने को।
हरि के अबतरिि कु् औि न बचे, ऐसी इस नई यािा पि संुदिदास के सार् हम चलेंगे। संतों में...
कबवताएं तो बहुत संतों ने की हैं, लेफकन काव्य के बहसाब से संुदिदास के ही केवल कबव कहा जा सकता है।
बाकी के पास कु् गाने को र्ा, तो गाया है। लेफकन संुदि के पास कु् गाने को भी है औि गाने की कला भी है।
संुदिदास अकेले, सािे बनगुाण संतों में, महाकबव के पद पि प्रबतबित हो सकते हैं। जो कहा है वह तो अपूवा है ही;
जैसे कहा है, वह भी अपूवा है। संदेि तो प्यािा है ही, संदेि के िब्द-िब्द भी बड़े बहुमूल्य हैं।
तुम एक महत्वपूणा अबभयान पि बनकल िहे हो। इसके पहले फक हम संुदिदास के सूिों में उतिना िुरू
किें... औि सीढ़ी-सीढ़ी तुम्हें बड़ी गहिाइयों में वे सूि ले जाएंगे। ठीक जल-स्रोत तक पहुंचा देंगे। पीना हो तो पी
लेना। क्योंफक संत केवल प्यास जगा सकते हैं। कहावत है न, घोड़े को नदी ले जा सकते हो, घोड़े को पानी फदखा
सकते हो, लेफकन पानी बपला नहीं सकते।
संुदिदास का हार् पकड़ो। वे तुम्हें ल ेचलेंगे उस सिोवि के पास, बजसकी एक घंूट भी सदा को तृप्त कि
जाती है। लेफकन बस सिोवि के पास ले चलेंगे। सिोवि सामने कि देंगे। अंजुली तो तुम्हािी ही बनानी पड़ेगी
अपनी। झुकना तो तुम्हें ही पड़ेगा। पीना तो तुम्हें ही पड़ेगा। लेफकन अगि संुदि को समझा तो मागा में वे प्यास
को भी जगाते चलेंगे भीति सोए हुए चकोि को पुकािेंगे, जो चांद को देखने लगे। तुम्हािे भीति सोए हुए चातक
को जगाएंगे, जा स्वाबत की बंूद के बलए तड़िने लगे। तुम्हें समझाएंगे फक तुम म्ली की भांबत हो, बजसका
सागि खो गया है औि जो फकनािे पि तड़ि िही है।
सागि का तुम्हें पता हो या न हो, एक बात का तो तुम्हें पता है बजससे तुम्हें िाजी होना पड़ेगा फक तुम
तड़ि िहे हो फक तुम पिेिान हो, फक तुम पीबड़त हो, फक तुम बेचैन हो, फक तुम्हािे जीवन में कोई िाहत की
घड़ी नहीं है, फक तुमने जीवन में कोई सुख की फकिण नहीं जानी। आिा की है। सुख बमला कब? सोचा है
बमलेगा, बमलेगा, अब बमला तब बमला; पि सदा िोखा होता िहा है। खोजा बहुत है। नहीं फक तुमने कम खोजा
है--जन्मों-जन्मों से खोजा है। मगि तुम्हािे हार् खाली हैं। तुम्हािी खोज गलत फदिाओं में चलती िही है।
तुम्हािी खोज तुम्हें सिोवि के पास नहीं लाई--औि-औि दूि ले गई है। औि िीिे-िीिे तुम्हािे अनुभव के तुम्हािे
भीति यह बात गहिा दी है फक िायद यहां बमलने का कु् भी नहीं है। औि अगि कोई ऐसा हताि हो जाए फक
यहां बमलने को कु् भी नहीं है, तो फिि बमलने को कु् भी नहीं है। क्योंफक पैि र्क जाएंगे। तुम टूट कि बगि
जाओगे।
संुदि तुम्हें याद फदलाएंगेेः यहां बमलने को बहुत कु् है। बसिा खोजने की कला चाबहए। ठीक फदखा, ठीक
आयाम। यहां पाने को बहुत कु् है। स्वयं पिमात्मा यहां ब्पा है। लेफकन तुम गलत खोजते िहे हो। तुम कंकड़-
पत्र्ि बीन िहे हो, जहां हीिे की खदानें हैं। तुम्हािी प्यास जगाएंगे, तुम्हािे चातक को जगाएंगे, तुम्हािे चकोि
को जगाएंगे। तुम्हािे भीति एक प्रज्वबलत अबि पैदा किेंगे। ऐसी घड़ी तुम्हािे भीति प्यास की आ जाएगी जरूि,
जब न मालूम फकस गहिाई से हरि बोलौ हरि बोल, ऐसे बोल तुम्हािे भीति उठें गे। तभी तुम इन सूिों का समझ
पाओगे।
ये सूि ऊपि-ऊपि नहीं हैं, ये प्राणों के अंतितम का बनवेदन हैं।
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इसके पहले फक हम सूिों में चलें, संुदिदास के संबंि में दो-चाि बातें समझ लेनी जरूिी हैं; वे सहयोगी
होंगी।
संयोग की ही बात कहो, संुदिदास के बपता का नाम र्ा पिमानंद, औि मां का नाम र्ा सती। पिमानंद
औि सती--ऐसे दो जीवन-िािाओं के बमलन से यह अपूवा व्यबि पैदा हुआ। तुम्हािे भीति भी यह जन्म होगा,
मगि य ेदो िािाएं तुम्हािे भीति बमलनी चाबहए--आनंद औि सत्य। आनंद को तलािो तो सत्य बमल जाता है,
सत्य को तलािो तो आनंद बमल जाता है। वे एक-दूसिे के सार् जुड़े हैं--एक ही बसके्क के दो पहलू हैं।
यह संयोग की ही बात है फक बपता का नाम पिमानंद र्ा, मां का नाम सती र्ा। लेफकन सभी संत सत्य
औि आनंद के बमलन से पैदा होते हैं। पुिाने लोग नाम भी बड़े सोच कि िखते रे्। अक्सि तो यह होता र्ा फक
सािे नाम ही पिमात्मा के नाम होते रे्। हहंदुओं के पुिाने नाम सोचो, तो वे सब वे ही नाम हैं जो
बवष्णुसहस्रनाम में उपलब्ि हैं। पिमात्मा के हजाि नाम, उन्हीं को हम िख लेते रे् आदबमयों के नाम। कोई िाम,
कोई कृष्ण है, कोई बवष्णु है। मुसलमानों के नाम सोचो, तो मुसलमानों में सौ नाम हैं। पिमात्मा के। अगि उनके
नाम तुम खोजने चलोगे तो तुम पाओगे सभी नाम पिमात्मा के नाम से बने हैं। फिि चाहे िहीम हो औि चाहे
िहमान हो, चाहे अब्दुल्लाह हो--ये सब पिमात्मा के ही नाम हैं। अब्दुल्लाह यानी अब्द अल्लाह।
पुिाने लोग आदमी को नाम पिमात्मा का देते रे्। क्यों? क्योंफक बाि-बाि पुकािे जाने से चोट पड़ती हैं।
अगि तुम्हािा नाम िाम है, तो िावण होना जिा करठन हो जाएगा। औि कौन जाने, फकस िुभ घड़ी में तुम्हािा
नाम ही तुम्हािे भीति तीि की तिह चुभ जाए। िुरू तो नाम से हुआ र्ा। फकस फदन यह नाम सत्य बन जाए,
कोई भी नहीं कह सकता। यह नाम सत्य बन सकता है।
इसबलए मैं भी तुम्हें संन्यास देता हूं तो तुम्हें नये नाम देता हूं। नाम ऐसे, जो पिम से जुड़े हैं। तुम बहुत
दूि हो अभी वहां से। लेफकन तुम्हें याद तो फदलानी जरूिी है फक तुम दूि फकतने ही होओ, मंबजल तुम्हािी वहां
है, जाना वहां है, पहुंचन वहां है। वहां नहीं पहुंचे तो हजंदगी व्यर्ा गई, कचिे में गई।
याद िखना, नाम एक याददाश्त है। लेफकन यह संयोग की बात फक संुदिदास का जन्म हुआ--मां र्ी सती,
बपता रे् पिमानंद। तुम्हािे भीति भी इन दो का बमलन हो सकता है, तुम्हािा भी संतत्व जन्म हो सकता है।
संुदिदास का संन्यास बहुत अनूठा ह,ै भिोसे-योग्य नहीं। तुम चौंकोगे जानोगे तो। सात वषा के रे्, तब वे
संन्यस्त हुए। सात वषा! लोग सत्ति वषा में भी संन्यासी नहीं होते। अपूवा प्रबतभा िही होगी।
प्रबतभा का लक्षण क्या है? प्रबतभा का लक्षण है एक ही, फक दूसिे बजस बात को अनुभव से नहीं समझ
पाते, उसको प्रबतभािाली दूसिों के अनुभव से समझ लेता है। बुद्िू अपने अनुभव से नहीं समझ पाते, बुबिमान
दूसिों के अनुभव से समझ लेता है।
ययाबत की कर्ा है उपबनषदों में। ययाबत की मौत आई। वह सौ वषा का हो गया र्ा। लेफकन िोने लगा,
बगड़बगड़ाने लगा। मौत के चिण पकड़ बलए। कहा, मुझे क्षमा कि! मैं तो भूल ही गया फक मिना है। तो मैं तो
कु् कि ही नहीं पाया। िाम-नाम भी नहीं ले पाया। यह सोच कि फक सौ वषा तो जीना है, जल्दी क्या है, ले
लेंगे, टालता िहा। औि हजाि कामों में उलझ गया। बाजाि में ही पड़ा िहा। यह ज्यादती हो जाएगी, मुझे क्षमा
कि! भूल मेिी है। मुझे क्षमा कि। सौ वषा मुझे औि चाबहए।
मौत ने कहा, फकसी का तो ले जाना पड़ेगा। तुम्हािा कोई बेटा जाने को िाजी हो तो चला जाए, तो तुम्हें
मैं ्ोड़ दूं।
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मौत को भिोसा र्ा फक जब सौ साल का बूढ़ा जाने के िाजी नहीं है तो उसके बेटे जाने को क्यों िाजी
होंगे। ययाबत के सौ बेटे रे्। अनेक िाबनयां र्ी उसकी। सम्राट र्ा। उसने अपने बेटों की तिि देखा, कोई सत्ति
साल का र्ा, कोई पचहत्ति साल का र्ा। उन्होंने सब नीचे बसि झुका बलए। एक बेटे ने बजसकी उम्र अभी ज्यादा
नहीं र्ी, अठािह ही साल र्ी, सबसे ्ोटा बेटा र्ा, वह खड़ा हो गया, उसने कहा फक मैं चलता हूं। मौत को भी
दया आ गई। मौत को ऐसे दया आती नहीं। दया आने लगे तो मौत का काम न चले। मौत की तो बात ्ोड़ो,
मौत के सार् जो लोग काम किते हैं उन तक की दया खो जाती है--िाक्टि इत्याफद। िाक्टि को दया आने लगे
तो खुद ही की िांसी लग जाए। चौबीस घंट ेमौत का िंिा किते-किते बीमािी से लड़ते-लड़ते कठोि हो जाता
है। हो ही जाना पड़ता है। अगि हि बीमािी में बैठ कि िोने लगे िाक्टि भी, औि जब भी कोई मिीज आए
उसको मुबश्कल खड़ी हो जाए, भावावेि से भि जाए, तो जीना मुबश्कल हो जाए; मिीज तो दूि, वह खुद ही
मिीज हो जाए।
तो मौत तो जन्मों-जन्मों से लोगों को ले जाती िही है। ले जाना उसका काम है। मगि कहते हैं उसे भी
दया आ गई। दया आ गई इस भोले-भाले लड़के पि। अभी इसने हजंदगी देखी नहीं। अभी इसको कु् पता ही
नहीं है। उसने उस लड़के के कान में कहा, पागल! तेिा बाप सौ साल का होकि नहीं मिना चाहता, औि तू अभी
अठािह का है, कु् तो सोच! तेिे भाई, कोई सत्ति, कोई पचहत्ति, वे भी नहीं मिना चाहते, तू कु् तो सोच,
तूने अभी हजंदगी देखी नहीं कु्... !
उस लड़के ने, पता है, मौत को क्या कहा? उस लड़के ने कहा, जब मेिे पीता सौ साल के होकि भी जीवन
से तृप्त नहीं हुए, मेिे भाई पचहत्ति साल के होकि जीवन से तृप्त नहीं हुए, सत्ति साल के होकि जीवन से तृप्त
नहीं हुए, तो मैं जीकि क्या करंूगा? इनका अनुभव कािी है। अतृप्त ही जाना है, सौ साल के बाद जाना है, तो
इतने फदन औि क्यों पिेिान होना? मैं अभी चलने को िाजी हूं।
इसे कहते हैं प्रबतभा! दूसिे के अनुभव से सीख बलया। औि तुम्हें पता है, ययाबत सौ साल जीया। यह बेटा
चला गया। सौ साल जब जीना र्ा तो फिि बनहचंत हो गया फक अब जल्दी क्या है। फिि मौत आई औि फिि
वही घटना घटी। फिि बगड़बगड़ाने लगा फक मुझ क्षमा किो। मैं तो यह सोच कि फक सौ साल जीना है, फिि भूल
गया। एक बाि मौका औि दे दो।
औि ऐसा कहते हैं ययाबत का दस बाि मौके फदए गए। वह हजाि साल जीया, लेफकन हजािवें साल भी
वह मौत के पैि में बगड़बगड़ा िहा र्ा। मौत ने कहा, अब बहुत हो गया। एक सीमा होती है।
औि तुम ययाबत की कहानी को कहानी ही मत समझना। यह तुम्हािी कहानी है। तुम फकतने बाि जी चुके
हो, फकतनी बाि तुमने हजंदगी मांग ली है--फिि, फिि, फिि! हि बाि मिे हो, फिि हजंदगी मांग कि आ गए हो।
यही तो आदमी की कहानी है। आदमी मि िहा है, खाट पि पड़ा है औि हजंदगी को मांग िहा है, पकड़ िहा है
पैि मौत के, फक एक बाि औि लौट आएगा, जल्दी फकसी गभा में समाएगा, जल्दी फिि वापस आ जाएगा। ...
ऐसे तुम फकतनी ही बाि आ गए हो औि जैसे ययाबत भूल-भूल गया र्ा, तुम भी भूल-भूल गए हो।
बुबिमान दूसिे के अनुभव से सीख लेता है। उस बेटे ने ठीक कहा फक जब ये सब मेिे भाई, बनन्यानबे मेिे
भाई, मेिा बपता, ये इतने फदन जीकि कु् नहीं पा सके औि बगड़बगड़ा िहे हैं बपता, सौ साल के बाद क्या
बगड़बगड़ाना, अभी िान से चलने को सार् तैयाि हूं। बात व्यर्ा हो गई मेिे बलए। यहां कु् बमलने का नहीं है।
यहां बसिा भटकना है दौड़ना है औि बगिना है। बगिने के पहले जाने की तैयािी है मेिी। मैं चलता हूं। मेिे बलए
संसाि व्यर्ा हो गया।
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ऐसी ही घटना कु् घटी संुदि के जीवन में। सात साल के रे्। दादू का गांव में आगमन हुआ। जैसे दादू ने
िज्जब को चेताया, ऐसे ही संुदिदास को भी चेताया। दादू ने बहुत लोग चेताए। दादू महागुरुओं में एक हैं।
बजतने व्यबि दादू से जागे उतने भाितीय संतों में फकसी से नहीं जागे।
दादू का गांव में आना हुआ। िाजस्र्ान का ्ोटा सा गांव, िौसा। कहा है संुदिदास ने--
दादू जी जब िौसा आए। बालपन हम दिसन पाए।
बतनके चिनबन नायौ मार्ा, उन दीयो मेिे बसि हार्ा।
सात वषा के रे्।
ख्याल किो, मनुष्य के जीवन में प्रत्येक सात वषा के बाद क्रांबत का क्षण होता है। जैसे चौबीस घंट ेमें फदन
का एक वतुाल पूिा होता है, ऐसे सात वषा में बचत्त की सािी वृबत्तयों का वतुाल पूिा होता है। हि सात वषा में वह
घड़ी होती है फक अगि चाहो तो बनकल भागो। हि सात वषा में एक बाि द्वाि खुलता है। सात साल का जब बच्चा
होता ह ैतब द्वाि खुलता है। औि अगि चूक गए तो फिि सात साल के बलए गहिी नींद हो जाती है। हि सात
साल में तुम पिमात्मा के बहुत किीब होते हो। जिा-सा हार् बढ़ाओ फक पा लो। इसी सात साल को बहसाब में
िख कि हहंदुओं ने तय फकया र्ा फक पचास साल की उम्र में व्यबि को वानप्रस्र् हो जाना चाबहए। उनचास साल
में सातवां चक्र पूिा होता है। तो पचासवें साल का मतलब है, उनचास साल के बाद, जल्दी कि लेनी चाबहए।
आदमी अब सत्ति साल जीता है। वह सौ साल के बहसाब से बांटा गया र्ा। अब आदमी सत्ति साल जीता है।
तो तुम्हािे जीवन में र्ोड़े मौके नहीं आते, बहुत मौके आते हैं, लेफकन हि मौका अपने सार् बड़े आकषाण
भी लेकि आता है; दिवाजा भी खुलता है औि संसाि भी अपनी पूिी मनमोहकता में प्रकट होता है। सात साल
का बच्चा अगि जिा जाग जाए, या सदगुरु का सार् बमल जाए, तो क्रांबत घट सकती है, क्योंफक यह घड़ी है जब
अहंकाि पैदा होता है। औि यही घड़ी है फक अगि इसी घड़ी में कोई अपने को सम्हाल ले तो सदा के बलए
बनिहंकािी हो जाता है। अहंकाि के पैदा होने का मौका ही नहीं आता।
तुमने देखा, सात साल के बाद बच्चे हि बात में नहीं कहने लगते हैं। तुम कहो, ऐसा नहीं किो; वे कहेंगे,
किेंगे! कहें न, तो भी किके फदखाएंगे, किेंगे। तुम कहो बसगिेट मत पीना, वे पीएंगे। तुम कहो बसनेमा मत जाना;
वे जाएंगे। तुम कहो ऐसा नहीं, वे वैसा ही किेंगे।
सात साल के बाद बच्चे के भीति अहंकाि पैदा होता है फक मैं कु् हूं, मुझे अपनी घोषणा किनी है जगत
के सामने। बच्चा आक्रमक होने लगता है। यही घड़ी है जब अहंकाि जन्म लेता है। औि जब अहंकाि जन्म लेता है,
उसी का दूसिा पहलू हैेः अगि संयोग बमल जाए, सौभाग्य हो, प्रबतभा हो, तो आदमी बनि-अहंकाि में सिक जा
सकता है।
यह ख्याल िखना। दोनों चीजें एक सार् होती हैं--यो तो अहंकाि में सिकना होगा औि या बनि-अहंकाि
में। या तो दिवाजे से बाहि बनकल जाओ या दिवाजा बंद कि दो, दिवाजे के बवपिीत चल पड़ो। ऐसा ही फिि
चौदह साल में होता है कामवासना का जन्म होता है। या तो कामवासना में उति जाओ औि या ब्रह्मचया में। वह
संभावना भी किीब है, उतने ही किीब है।
ऐसा ही फिि इक्कीस साल में होता है। या तो प्रबतस्पिाा में उति जाओ जगत की--ईष्याा संघषा,
प्रबतयोबगता, दे्वष--औि या अप्रबतयोगी हो जाओ।
ऐसा ही फिि अट्ठाइस साल फक उम्र में होता है। तो संग्रह में पड़ जाओ, परिग्रह पड़ जाओ--इकट्ठा कि लूं,
इकट्ठा कि लूं, इकट्ठा कि लूं--या अपरिग्रही हो जाओ, देख लो फक इकट्ठा किने से क्या इकट्ठा होगा? मैं भीति तो
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दरिद्र हू ंऔि दरिद्र िहूंगा। ऐसा ही फिि पैंतीस साल की उम्र में होता है। पैंतीस साल की उम्र में तुम अपनी
मध्यावस्र्ा में आ जाते हो। दुपहिी आती ह ैजीवन की। या तो तुम समझो फक अब ढलान के फदन आ गए, अब
रूपांतिण करंू। अब वि आ गया, उताि की घड़ी आ गई, अब हजंदगी िोज-िोज उतिेगी, अब सूिज ढलेगा औि
सांझ किीब आने लगी।
पैंतीस साल की उम्र में सुबह भी उतनी दूि है, सांझ भी उतनी दूि है। तुम ठीक मध्य में खड़े हो। लेफकन
अबिक लोग बजाय समझने के फक मौत किीब आ िही है, अब हम मौत की तैयािी किें; मौत किीब आ िही है,
यह सोच कि हम कैसे मौत से बचें, इसी चेिा में लग जाते हैं। इसबलए दुबनया की सवााबिक बीमारियां पैंतीस
साल औि बयालीस साल के बीच में पैदा होती हैं। तुम लड़ने लगते हो मौत से। मौत से लड़ोगे, जीतोगे कहां?
बजतने हाटा-अटैक होते हैं, बजतने मानबसक तनाव होते हैं, वे पैंतीस औि बयालीस के बीच में होते हैं। यह बड़े
संघषा का समय है।
अगि पैंतीस साल की उम्र में एक व्यबि समझ ले फक मौत तो आनी ही है; लड़ना कहां है, स्वीकाि कि
ले; न केवल स्वीकाि कि ले बबल्क मौत की तैयािी किने लगे, मौत का आयोजन किने लगे... । औि ध्यान
िखना, जैसे जीवन का बिक्षण है, ऐसे ही मौत का भी बिक्षण है। अर्च्ी दुबनया होगी कभी--औि कभी वैसी
दुबनया र्ी भी--तो जैसे जीवन को बसखाने वाले बवद्यापीठ हैं, वैसे ही मृत्यु के बसखाने वाले बवद्यापीठ भी रे्।
अभी दुबनया की बिक्षा अिूिी है। यह तुम्हें, जीना कैसे, यह तो बसखा देती है; लेफकन यह नहीं बसखाती फक
मिना कैसे।
औि मिना है अंत में।
तो तुम्हािा ज्ञान अिूिा है। तुम्हािी नाव ऐसी है फक तुम्हािे हार् में एक पतवाि दे दी है औि दूसिी
पतवाि नहीं है। तुमने कभी देखा, एक पतवाि से नाव चलाकि देखी? अगि तुम एक पतवाि से नाव चलाओग
तो नाव गोल-गोल घूमेगी, कहीं जाएगी नहीं। उस पाि तो जा ही नहीं सकती, बस गोल-गोल चक्कि मािेगी। दो
पतवाि चाबहए। दोनों के सहािे उस पाि जाया जा सकता है। लोगों को जीवन की बिक्षा तुम दे देते हो। बस
नाव उनकी गोल-गोल घूमने लगती है। वह जीवन के चक्कि में पड़ जाते हैं।
संसाि का अर्ा होता हैेः चक्कि में पड़ जाना।
पैंतीस साल की उम्र में मौका है; फिि द्वाि खुलता है एक घड़ी को। मौत की झलकें आनी िुरू हो जाती
हैं। हजंदगी पि हार् बखसकने िुरू हो जाते हैं। भय के कािण लोग जोि से पकड़ने लगते हैं हजंदगी को। औि जोि
से पकड़ोगे तो बुिी तिह हािोगे, टूटोगे। अपनी मौज से ्ोड़ तो कोई तुम्हें तोड़ने वाला नहीं है। समझ कि ्ोड़
दो।
औि बयालीस साल की उम्र में कामवासना क्षीण होने लगती है। जैसे चौदह साल की उम्र में कामवासना
पैदा होती है वैसे बयालीस साल की उम्र में कामवासना क्षीण होती है। यह प्राकृबतक क्रम है। लेफकन आदमी
पिेिान हो जाता है, बयालीस साल में जब वह पाता है कामवासना क्षीण होने लगी--औि वही तो उसकी
हजंदगी िही अब तक--तो चला बचफकत्सकों के पास। चला िाक्टिों के पास, हकीमों के पास।
तुमने दीवालों पि जो पोस्टि लगे देखे हैं--"िबि बढ़ाने के उपाय"; "गुप्त िोगों को दूि किने के उपाय"--
अगि तुम उन िाक्टिों के पास जाकि देखो तो तुम हैिान होओगे। उनके पास बैठकखाने में जो तुम्हें बैठे बमलेंगे।
क्योंफक कामवासना क्षीण हो िही है, ििीि से ऊजाा जा िही है, अब वे चाहते हैं फक कोई चमत्काि हो जाए,
कोई जड़ी-बूटी बमल जाए, कोई औषबि बमल जाए। नहीं कोई औषबि है कहीं, लेफकन इनका िोषण किने के
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बलए लोग बैठे हुए हैं--वैद्य, बचफकत्सक, हकीम... हकीम वीरूमल! इस तिह के लोग बैठे हुए हैं। औि यह िंिा
ऐसा ह ै फक इसमें पकड़ाया नहीं जा सकता, क्योंफक जो आदमी आता है वह पहले तो ब्पे-ब्पे आता है। वह
फकसी के बताना भी नहीं चाहता फक मैं जा फकसबलए िहा हूं। वह जब उसको कोई सिलता नहीं बमलती, तो
दूसिे वीरूमल का द्वाि खटखटाएगा। मगि की भी नहीं सकता फकसी के फक यह दवा काम नहीं आई। दवाएं
कभी काम आई हैं? पागलपन है।
औि फकसी भी तिह की मूढ़ता की बातें चलती हैं--मंि चलते, तंि चलते, ताबीज चलते, तांबिकों की
सेवा चलती फक िायद कोई चमत्काि कि देगा।
औि जो जीवन-ऊजाा जा िही है मेिे हार् से, वह मैं वाबपस पा लूंगा, फिि मैं जवान हो जाऊंगा।
बयालीस साल की उम्र घड़ी है फक आ गया क्षण, जब तुम कामवासना को जाने दो। अब िाम की वासना
के जगने का क्षण आ गया। काम जाए तो िाम का आगमन हो। फिि द्वाि खुलता है, मगि तुम चूक जाते हो।
ऐसे ही हि सात वषा पि द्वाि खुलता चला जाता है। जो पहले ही सात वषा पि जाग गया है वह अपूवा
प्रबतभा का िनी िहा होगा। हो सकता है, दादू इस ्ोट ेसे बच्चे की तलाि में ही िौसा आए हों। क्योंफक सदगुरु
ऐसे ही नहीं आते।
कहानी है बुि के जीवन में फक वे एक गांव गए। उनके बिष्यों ने कहा भी फक उस गांव में कोई अर्ा नहीं
है जाने से। ्ोटे-मोटे लोग हैं, फकसान हैं। कोई समझेगा भी नहीं आपकी बात। वैिाली किीब है, आप िाजिानी
चाबहए। इस ्ोट े गांव में ठहिने की जगह भी नहीं है। मगि बुि ने तो बजद्द ही बांि िखी है फक उसी गांव
जाना है। उस गांव के बबना जाए वैिाली नहीं जाएंगे। नाहक का चक्कि है। उस गांव में जाने का मतलब दस-
बीस मील औि पैदल चलना पड़ेगा। नहीं माने, तो गए। जब गांव के किीब पहुंच िहे रे् तब एक ्ोटी सी
लड़की ने, उसकी उम्र कोई पंद्रह साल से ज्यादा नहीं िही होगी, वह खेत की तिि जा िही र्ी अपने बपता के
बलए भोजन लेकि, वह िास्ते में बमली, उसने बुि के चिणों में बसि झुकाया औि कहा फक प्रवचन िुरू मत कि
देना जब तक मैं न आ जाऊं। औि फकसी ने तो ध्यान ही नहीं फदया इस बात पि। गांव में पहुंच गए लोग इकट्ठे
हो गए। ्ोटा गांव है, लेफकन बुि आए, यह सौभाग्य है। सोचा भी नहीं र्ा फक इस गांव में बुि का आगमन
होगा। सािा गांव इकट्ठा हो गया। सब बैठे हैं फक अब बुि कु् बोलें। औि बुि बैठे हैं फक वे देख िहे हैं।
आबखि फकसी ने खड़े होकि कहा फक महािाज, आप कु् बोलें। उन्होंने कहा फक मैं फकसी की प्रतीक्षा कि
िहा हूं। उस आदमी ने चािों तिि देखा; उसने कहा, गांव के हि आदमी को मैं पहचानता हूं। र्ोड़े ही आदमी हैं,
सौ-पचास। सब यहां मौजूद हैं, आप फकसकी प्रतीक्षा कि िहे हैं?
बुि ने कहा, तुम ठहिो। वह लड़की भागी हुई आई। औि जैसे ही वह लड़की आकि बैठी, बुि बोले। बुि
ने कहा, मैं इस लड़की की प्रतीक्षा किता र्ा। सच तो यह है, मैं इसी के बलए आया हूं।
दादू िौसा गए, बहुत संभावना यही ह ैफक संुदिदास के बलए गए। यही एक हीिा र्ा वहां, बजसकी चमक
दादू तक पहुंच िही होगी; जो पत्र्ि के बीच िोिन दीये की तिह मालूम पड़ िहा होगा। उसकी तलाि में गए
रे्।
संुदिदास ने कहा है--
संुदि सतगुरु आपनैं, फकया अनुग्रह आइ।
मोह-बनसा में सोवते हमको बलया जगाइ।
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सात वषा के बच्चे को संन्यास फदया। ऐसे कु् ्ोट ेबच्चे यहां भी हैं। मुझसे लोग आकि पू्ते हैं फक आप
इतने-से बच्चे को क्यों संन्यास दे िहे हैं? तुमने दादू से भी पू्ा होता फक संुदि को क्यों संन्यास दे िहे हो? सात
साल का बच्चा है, अभी इसने देखा क्या, जाना क्या? लेफकन सच यह है फक यहां कौन है जो बच्चा है? जन्मों-
जन्मों की लंबी यािा हिेक के पी्े है। सब जाना जा चुका, बहुत बाि जाना जा चुका, बाि-बाि जाना जा
चुका। यहां ्ोटा बच्चा कौन है? यह जगत कु् नया तो नहीं है; बहुत पुिाना है, बहुत पुिाना है। बड़ा पुिातन
है। औि तुम यहां सदा से हो। यह देह तुम्हािी पहली देह तो नहीं। न मालूम फकतनी देहों में तुम बसे हो! हो
सकता है इस देह में नये मालूम हो िहे हो; देह नई होगी, मगि तुम नये नहीं हो।
दादू ने देख ली होगी झलक। उठा बलया इस बच्चे को हीिे की तिह। औि हीिे की तिह ही संुदि हो
सम्हाला। इसबलए "संुदि" नाम फदया उसे। संुदि ही िहा होगा बच्चा।
यही सौंदया है एकमाि फक आदमी पिमात्मा की प्यास में तड़पे। औि तड़प ऐसी हो फक सािे जीवन को
दांव पि लगा दे। सत्ति साल का आदमी भी दांव लगाने के बलए तैयाि नहीं; पास बचा भी नहीं कु् दांव लगाने
को। हड्डी-मांस-मज्जा िह गई है, सूख गई है; मगि दांव लगाने को िाजी नहीं है। कु् बचा भी नहीं है दांव
लगाने को। कु् गंवाने का भी नहीं है अब, सब गंवा ही चुका है। चली-चलाई काितूस है। मगि फिि भी िन
मािकि बैठा है चली-चलाई काितूस पि फक बचा लूं, कु् चूक न चला जाए, कु् ्ूट न जाए हार् से।
अभी यह बच्चा तो नया-नया र्ा। दादू ने इसे संुदि नाम फदया। एक ही सौंदया है इस जगत में--पिमात्मा
की तलाि का सौंदया। एक ही प्रसाद है इस जगत में--पिमात्मा को पाने की आकांक्षा का प्रसाद। िन्यभागी हैं
वे, वे ही केवल "संुदि" हैं बजनकी आंखों में कौन बसा है उसमें सौंदया होता है। तुम्हािा रूप-िंग संुदि नहीं होता;
तुम्हािे रूप-िंग में फकसकी चाहत बसी हैं, वहीं सौंदया होता है। औि तुम्हें भी कभी-कभी लगा होगा फक
पिमात्मा की खोज में चलनेवाले आदमी में एक अपूवा सौंदया प्िकट होने लगता है। उसके उठने-बैठने में, उसके
बोलने में, उसके चुप होने में, उसकी आंख में, उसके हार् के इिािों में--एक सौंदया प्रकट होने लगता है, जो इस
जगत का नहीं है।
दादू ने संुदि को बड़े प्रेम से पाला-पोसा। खूब प्रेम की बिसा की उस पि। हीिा र्ा खूब बनखािा उसे। औि
अपने सािे बिष्यों को कहा र्ा, संुदि की हचंता लो, संुदि की फिक्र किो, इसमें से कु् मबहमािाली प्रगट होने
को है। औि मबहमािाली प्रगट हुआ।
दादूदयाल की मृत्यु के बाद दादू सौंप गए रे् िज्जब को फक संुदि को सम्हालना। औि जैसे िज्जब के जीवन
में घटना घटी, फक दादूदयाल की मृत्यु के बाद िज्जब ने फिि आंखें नहीं खोली। कहा फक अब क्या आंख खोलनी?
जो देखने-योग्य र्ा, देख बलया। जो देखने में नहीं आता, वह देख बलया। जो आंखों के पाि है वह आंखों में झलक
गया। अब क्या आंख खोलनी? अब इस जगत में क्या िखा है? िहे कु् वषा हजंदा, लेफकन फिि आंख नहीं
खोली। हजंदा िहे औि अंिे की तिह िहे।
जैसे यह िज्जब के जीवन में अपूवा घटना घटी फक दादू के मि जाने के बाद उन्होंने आंख नहीं खोली... ।
उस प्यािे गुरु के जाने के बाद आंख खोलने का कोई कािण नहीं िहा। बहुत लोगों ने समझाया फक सूिज बहुत
संुदि ह,ै चांद-तािे बहुत संुदि हैं, िूल बखले हैं। लोग आएं, लेफकन िज्जब कहते, अब कोई िूल ज्यादा संुदि नहीं
हो सकता औि अब कोई सूिज उससे ज्यादा प्रकािवान नहीं हो सकता। अब तुम चांद-तािे की बात मत किो,
मैंने चांद-तािें के माबलक को देखा है। आंख बंद किके अब मुझे उसी के सार् िहने दो। अब बाहि देखने को मेिे
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बलए कु् नहीं। आंख खोलता इसबलए र्ा फक दादू रे्, अब क्या खोलनी? अब देह लुप्त हो गई दादू की। अब तो
भीति ही देख लेता हूं। अब तो भीति ही उनके सार् मुझे िचा िहने दो।
ऐसी घटना फिि संुदि के जीवन में घटी। दादू तो जल्दी चल बसे, बच्चा ्ोटा र्ा, दादू वृि रे्। िज्जब को
सौंप गए रे्। िज्जब ने सम्हाला। लेफकन ्ोटा बच्चा र्ा, िज्जब भी चल बसे एक फदन। तब दादू के चले जाने के
बाद, फिि िज्जब के चले जाने के बाद, संुदि पि क्या घटी? फिि एक अनूठी घटना घटी। ये घटनाएं समझने
जैसी हैं। क्योंफक ये घटनाएं तुम्हािे औि मेिे बीच घट िही हैं औि घटेंगी, इसबलए समझ लेना उपयोगी है। जब
िज्जब चल बसे तो िज्जब के चलने के कु् ही फदन पहले--दूि र्ा संुदि, कािी में र्ा--एकदम भागना िुरू फकया
कािी से। िज्जब तो रे् िाजस्र्ान में--सांगानेि में। लंबी यािा र्ी। बमिों ने कहा, बिष्यों ने कहा--अब तो संुदि
के भी बिष्य रे्, उसके पी्े भी प्यासे इकट्ठे होने लगे रे्--उन्होंने कहा, कहां भागे जाते हो, इतनी जल्दी क्या
है? लेफकन संुदि ने कहा, अब देि नहीं। रुकते भी न रे् बवश्राम किने को मागों में। फकसी तिह बस पहुंच जाना है
सांगानेि। औि इिि िज्जब की सांसें अटकी र्ी। औि वे बाि-बाि आंख खोल कि देखते रे्, पू्ते रे्; "संुदि
पहुंचा, नहीं पहुंचा?" औि जैसे ही संुदि का आगमन हुआ औि िज्जब ने संुदि को देखा, पास बलया। देखा...
बाहि की आंख तो वे खोलते नहीं रे्, भीति की आंख से ही देखा। िज्जब कोिांबत बमली, वे लेट गए। संुदि का
हार् हार् में ले बलया औि चल बसे।
संुदि पि क्या गुजिी? संुदि जवान र्ा, परिपूणा स्वस्र् र्ा, लेफकन उसी क्षण से बीमाि हो गया। बजस
बबस्ति पि िज्जब मिे, उसी बबस्ति पि संुदि मिा। वही बीमाि हो गया। वह बीमािी इतनी अकस्मात र्ी। पू्ा
बमिों ने, क्या हुआ? बिष्यों ने पू्ा, क्या हुआ? भले-चंगे आए रे्। लेफकन संुदि ने कहाेः अब... अब जीने का
कोई कािण नहीं। अब जीने का कोई िस नहीं। अपनी तिि से िस चला ही गया र्ा। अपनी तिि से तो जीने
का कोई कािण नहीं। लेफकन िज्जब बूढ़े हैं, मैं मि जाऊं तो इनके िक्का न लगे, इसबलए जी िहा र्ा। अब कोई
वजह नहीं, अब कोई कािण नहीं है। दादू गए, िज्जब गए, अब मैं भी जाता हूं।
सांगानेि में एक बिलालेख बमला है, बजस पि ये वचन खुदे हैं--
संवत सिसै ्ीयाला। काती सुदी अिमी उजीयाला।
तीजे पहि बृहसपतवाि। संुदि बमबलया संुदिदास।
प्यािा वचन है--संुदि बमबलया संुदिदास! मृत्यु की बात ही नहीं की। संुदिदास का संुदि बमल गया--पिम
संुदि का बमल गया! बजसकी तलाि र्ी उसमें िूब गया। देह की ्ोटी सी, झीनी सी आड़ र्ी, वह भी ्ूटी।
मृत्यु को ऐसे ही देखना--संुदि बमबलया संुदिदास! मृत्यु ििु नहीं है। मृत्यु तुमसे कु् भी ्ीनती नहीं,
बसिा बीच के पदे हटाती है। मृत्यु तुम्हें कु् देने आती है, लेने नहीं आती। मगि तुम इतने जोि से पकड़े हुए हो
व्यर्ा की चीजों को फक तुम्हें लगता है फक मृत्यु कु् ्ीनने आती है। तुम मृत्यु कोििु मानकि बैठे हो वह
तुम्हािी जीवन के प्रबत केवल आसबि के कािण। बजस फदन जीवन की आसबि नहीं, मृत्यु बमि है--पिमबमि है-
-पिम कल्याणकािी है।
संुदि बमबलया संुदिदास। अब तक तो संुदि के दास रे्, संुदिदास ने कहा, अब संुदि हुए। अभी तो संुदि
केवल उसके दास होने के कािण रे्, अभी तो प्रबतिबलत होती र्ी उसकी आभा। अभी तो र्ोड़ी-र्ोड़ी झलक
उसकी पड़ती र्ी। र्ोड़ी-र्ोड़ी गीत की कड़ी पकड़ में आती र्ी। अब उसी में िूब गए। अब महाप्रकाि हो गए।
उनके अंबतम वचन जो उन्होंने मिने के पहले कहे--
बनिालंब बनवाासना इर्च्ाचािी यह,
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संस्काि-पवनबह फििै, िुष्कपणा ज्यों देह
वैद्य हमािे िाम जी, औषिहू हरिनाम
संुदि यहे उपय अब, सुमिण आठों जाम
संुदि संसय को नहीं, वड़ी महोर्च्व यह
आतम पिमातम बमल्यौ, िहौ फक बबनसौ देह
सात बिस सौ में घट,ै इतने फदन को देह
संुदि आतम अमि है, देह खेह की खेह।
समझो--बनिालंब बनवाासना इर्च्ाचािी यह।
संसाि है इर्च्ा। पिमात्मा है बनवाासना। संसाि है वासना की दौड़--अर्ाात तुम बवमुख हो पिमात्मा से।
पिमात्मा है बनवाासना, तब तुम सन्मुख होते हो पिमात्मा के।
संस्काि-पवनबह फििै, िुष्कपणा ज्एं देह। सूखे पते्त को वहां में उड़ते देखा?
ऐसे ही तुम संस्कािों औि आदतों की हवा में उड़ते फििते हो। तुम अभी अपने पैिों से अपनी फदिा में नहीं
चल िहे हो। हवा में उड़ते हुए पते्त हो। दुघाटना तुम्हािी जीवन की व्यवस्र्ा है। संयोग से जी िहे हो। अभी तुम
योग से नहीं जी िहे, केवल संयोग से जी िहे हो। अभी तुम्हािी फदिा बनणीत नहीं। अभी तुम कहां जा िहे हो,
तुम्हें पता भी नहीं है। क्यों जा िहे हो, यह भी पता नहीं; कहां से आ िहे हो यह भी पता नहीं।
संस्काि-पवनबह फििै, िुष्कपणा ज्यों देह। यह देह तो सूखा पत्ता है, पुिानी आदतों, पुिाने संस्कािों से
चलता िहता है। तुम जागो, पुिानी आदतों, पुिाने संस्कािों से ऊपि उठो।
वैद्य हमािे िामजी। औि यह जो बीमािी है भटकने की, इसमें एक ही वैद्य है, वह िाम है।
... औषिहू हरिनाम। औि औषबि भी एक ही है--उस प्यािे का नाम, उस प्यािे की याद, उस प्यािे की
स्मृबत। ऐसी भि जाए, ऐसी िोएं-िोएं में समा जाए फक उसके अबतरिि औि कु् भी न बचे। फिि तुम्हािी
हजंदगी में फदिा होगी, अर्ा होगा। फिि तुम्हािी फदिा ऐसी ही घटनाओं के िके्क में नहीं घटती िहेगी। फिि तुम
ऐसे ही भीड़ के िेले-पेले में नहीं चलते िहोगे। फिि तुम चलोगे एक तीि की तिह--ऐसे तीि की तिह, जो
पिमात्मा को वेि देता है।
संुदि यहे उपाय अब, सुमिण आठों जाम
संुदि संसय कौ नहीं, बड़ी महार्च्व यह।
मि िहे हैं, मृत्यु आ िही है; बमि, बिष्य, बप्रयजन िोने लगे होंगे। संुदि से बहतों को संुदि की याद बमली
र्ी। संुदि से बहुतों के भीति संुदि की आकांक्षा जगी र्ी। वे सब िोने लगे होंगे, वे सब पीबड़त होंगे। संुदि उनसे
कह िहे हैं--संुदि संसय कौन नहीं, बड़ी महोर्च्व यह। यह बड़ा महोत्सव है तुम िोते क्यों हो, संिय क्या है? मैं
मि र्ोड़े ही िहा हूं। मैं वह नहीं हूं जो मि सकता है।
वेद कहते हैं, अमृतस्य पुिेः। तुम अमुत के पुि हो। मृत के सार् संबंि जोड़ बलया, इसबलए तुम्हें भ्ांबत हो
िही है। ऐसा ही समझो फक कच्चे िंग के कपड़े पहन बलए औि वषाा हो गई औि िंग बहने लगा। तो तुम्हािा िंग
र्ोड़े ही बह िहा है। कोई वस्त्रों से ही अपने को एक समझ ले--औि बहुतों ने समझ बलया है। अपने वस्त्रों से ही
अपने को एक समझ बलया है। उनके वस्त्र ्ीन लो तो तुमने उनसे सब ्ीन बलया। फिि उनके पास कु् नहीं
बचता। फकसी ने पद से अपने को समझ बलया है। पद ्ीन लो उसका, सब गया। फकसी ने िन से अपने को एक
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समझ बलया है। उसका िन गया फक आत्महत्या कि लेता है कु् कि; अब क्या जीने का साि है! तुमने कैसी
कु्षद्रता से अपने तादाम्य कि बलए हैं!
संुदि कहते हैं--संुदि संसय कौ नहीं, बड़ी महोर्च्व यह। यह बड़ा महोत्सव है, तुम िोओ मत। तुम
बचबन्तत न होओ, संिय न किो। मैं मि नहीं िहा हूं। मैं पिम जीवन में जा िहा हूं।
आतम पिमातम बमल्यौ िहो फक बबनसौ देह।
देह िही फक गई, इससे क्या लेना-देना? आतम पिमातम बमल्यौ... । यह बंूद अब सागि में जा िही है।
बंूद की तिह तो नहीं बचेगी, िका क्या पड़ता है? सागि की भांबत िहेगी अब।
सात बिस सौ में घट.ै.. । फिि सात वषा में घटे फक सौ वषा के बाद घट,े क्या िका पड़ता है? ... इतने फदन
की देह। फदन की तो बगनती है। ... इतने फदन की देह। इसकी तो सीमा है, समय है। समय चूक ही जाएगा।
संुदि आतम अमि है, देह खेह की खेह।
उसे पकड़ो जो अमृत है। उसको हार् में लो जो अमृत है। िाश्वत से अपने के जोड़ो। क्षणभंगुि से जोड़ोगे,
दुखी िहोगे। क्योंफक ये पानी के बबूले िूटते िहेंगे, िूटते िहेंगे औि दुख औि पीड़ा देते िहेंगे।
ये उनके अंबतम वचन रे्। ऐसे इस प्यािे आदमी के वचनों की हम यािा िुरू किते हैं।
नीि बबनु मीन दुखी, ्ीि बबनु बििु जैसे,
पी जाके औषद बबनु कैसे िहयो जात है।।
जैसे म्ली बबना पानी के तड़िे, तुम भी बबना पानी के हो। औि आचया यही है फक तड़ि भी िहे हो औि
तुम्हें याद भी नहीं। तड़ि भी िहे हो तो तुम ऐसे कािण खोज लेते हो जो तड़िन के कािण नहीं है। अगि तुम
तड़िते हो तो तुम कहते हो तड़िंू कैसे न--िन चाबहए! ऐसे ही जैसे कोई म्ली तड़िती हो घाट पि पड़ी
तपती हुई िेत में, औि सोचे फक मैं तड़ि िही हूं इसबलए फक िन नहीं है। हीिे बमल जाते तो तड़ि बमट जाती।
फक पद बमल जाता तो तड़ि बमट जाती। यि बमल जाता, तड़ि बमट जाती। लेफकन यि बमल जाएगा, तड़ि
बमटेगी म्ली की? पद बमल जाएगा, तड़ि बमटेगी म्ली की? िन बमल जाएगा, तड़ि बमटेगी म्ली की?
तुम देखो अपने चािों तिि, जो-जो तुम चाहते हो, दूसिों को बमल गया है। उनकी तड़ि नहीं बमटी है।
तुम्हािी भी तड़ि नहीं बमटेगी। सिल लोगों की असिलाएं तो देखो! िबनयों की बनिानता तो देखो! बजनके बड़े
नाम हैं उनके ्ोट े काम तो देखो! बजन्होंने फकसी तिह अपनी प्रबतिाएं बना ली, अपने अहंकाि बनर्मात कि
बलए, उनके भीति का खोखलापन तो देखो! बजनका तुम महान समझते हो उनके ब््लेपन को तो जिा
पहचानो!
तुम चफकत होओगे, अगि तुम्हें आदमी का सबसे ज्यदा ब््लापन देखना हो तो फकसी भी िाजिानी में
जाकि उसकी पार्लायामेंट में देख लो। फदल्ली चले जाओ, अगि आदमी के ओ्ेपन देखने हों। कु्षद्रताएं देखनी हों,
चालबाबजयां देखनी हों, बेईमानी देखनी हों, गलाघोंट प्रबतयोबगता देखनी हो, एक-दूसिे की टांग खींचना औि
एक-दूसिे को बगिाने की चेिा देखनी हो--फदल्ली चले गए।
जब भी तुम्हें संसाि से लगाव होने लगे, फदल्ली चले गए। देखकि एकदम बविाग पैदा होगा।
जिा िनी आदमी की हचंताओं में उति कि देखो। उसके बवषाि जीवन के देखो। उसके भीति की रििता
को पहचानो। जिा देखो फक वह सो भी नहीं पाता िात, नींद कहां? जिा देखो फक जी भी कहां पाता है! जीने का
आयोजन ही किने में ही जीवन बीत जाता है, जीने का समय कहां बमलता है? तैयािी ही तैयािी लोग किते
िहते हैं।
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मैंने सुना है, जमानी में एक बड़ा बवचािक र्ा। उसको एक ही िुन र्ी फक दुबनया में जो भी सबसे अर्च्ी
फकताबें हैं वे पढ़नी हैं। तो उसने बड़ी लाइबे्रिी खड़ी कि ली। वह दुबनया भि में घूमता फििता र्ा, जहां भी कोई
फकताब बमलती, फकसी भी भाषा में हो, महत्वपूणा हो, वह खिीद कि अपने देि पहुंचाता। फकताबें तो इकट्ठी हो
गयीं, लेफकन तब तक पढ़ने का समय नहीं बचा। जब वह मिा तो लाखों फकताबें ्ोड़ गया। मगि उसमें से पढ़ी
उसने एक भी नहीं र्ी। आयोजन ही किने में सािा समय चला गया।
मैंने एक औि पुिानी सूिी कहानी पढ़ी है जो इससे बमलती-जुलती है। एक आदमी ने देि के सािे िास्त्रों
में जो भी साि है वह जानना चाहा। वह बहुत िनी र्ा। उसके हजािों पंबित लगा फदए। उसने कहा, मुझे तो
िुसात नहीं है पढ़ने की, तुम साि बनकाल कि ले आओ। संबक्षप्त--िायजेस्ट। सब िमों का साि बनकल िालो।
पंबित लगे, उन्होंने बड़ी मेहनत की, वषों लगे साि बनकालने में। पि साि भी बनकला तो भी बड़े पोरे् तैयाि
हुए। क्योंफक फकतने िास्त्र हैं, उनका साि भी बनकालो... । हजाि िास्त्र का एक किोगे, तो हजािों िास्त्र हैं। उस
आदमी ने देखे वे बड़े-बड़े पोरे्, उसने कहा, भई इतने से काम नहीं चलेगा। अब मैं बूढ़ा भी हो गया हूं। मेिे पास
इतना समय भी नहीं है। फिि मुझे िन कमाने से सुबविा भी नहीं है, िुिसत भी नहीं है। औि संबक्षप्त किो। एक
ही फकताब बना लाओ। सािे, सबका इंतजाम इसमें आ जाना चाबहए।
फिि औि वषों लग गए, आबखि वे फकताब बना कि लाए, तब तक वह आदमी खाट पि पड़ा र्ा। उन्होंने
पू्ा फक अब यह फकताब एक बन गई है... । उसने कहा फक अब बहुत देि हो गई, अब तो यह एक फकताब पढ़ने
का भी समय नहीं है। तुम तो संबक्षप्त में एक कागज पि, एक पन्ने पि साि बात बलख लाओ।
अब एक फकताब को एक पन्ने में उतािना करठन मामला र्ा। ऐसे ही फकताब संबक्षप्त होते-होते होते-होते
बहुत संबक्षप्त हो गई र्ी, अब तो उसमें सूि ही सूि बचे रे्। अब उनमें से भी ्ांटना मुबश्कल बात र्ी। फिि भी
्ांटना चला, जब वे ्ांटकि एक पन्ने पि पहुंचे तब वह आदमी कि िहा र्ा। उसने कहा अब बहुत देि हो गई।
अब एक पन्ना पढ़ने की भी मेिे पास सुबविा नहीं। अब तो तुम एक वचन मेिे कान में बोल दो।
तो उन्होंने कहाेः हमें र्ोड़ा समय लगेगा, अब इसमें से फिि एक वचन बनाना; जब तक वे एक वचन
बना कि लाए, वह आदमी मि चुका र्ा।
अक्सि लोग ऐसे ही हजंदगी बबता िहे हैं। जीवन का आयोजन चलता है। जीवन का अनुभव कहां? तुम
भी तड़ि िहे हो सािी दुबनया तड़ि िही है, लेफकन तड़ि का कािण क्या है? जो जानते हैं उनसे पू्ो। जो जाग
गए, उनसे पू्ो। वे कहते हैंःेः तुम्हािे तड़िने का कािण यह नहीं है फक तुम्हािे पास िन कम है, फक तुम्हािे
पास यि कम है, पद कम है। तुम्हािे तड़िने का कािण यह है फक तुम म्ली हो औि सागि खो गया है। औि
तुम िेत पि पड़े हो।
नीि बबन मीन दुखी...
सागि है पिमात्मा; तुम सागि, उस पिमात्मा के सागि की म्ली हो। आत्मा ऐसे जैसे सागि में म्ली।
जैसे म्ली प्रिुबल्लत होती है सागि में, ऐसे ही आत्मा प्रिुबल्लत होती है पिमात्मा में। जैसे ही दूि हो जाते हो
वैसे ही बेचैनी िुरू हो जाती है। बजतने दूि उतनी बेचैनी। बजतना दुखी आदमी पाओ, समझ लेना पिमात्मा से
उतना ही दूि बनकल गया है। यह पूिब की अन्यतम खोज है। अगि तुम पबचम में हो, दुखी हो औि तुम जाओ
बविेषज्ञ के पास, तो हि दुख की वह अलग-अलग दवा बताता है। पूिब में ऐसा नहीं हैेः अगि पूिब में तुम दुखी
हो औि तुम ज्ञानी के पास जाओ तो वह दवा एक ही बताता है।
वैद्य हमािे िामजी, औषिहू हरिनाम।
14
वह कहता है फक ठीक, दुख-वुख का लंबा बहसाब न बताओ। तुम्हािे दुख से कोई िका नहीं पड़ता। हम
जानते हैं तुम्हािा दुख क्या है। हमें सब म्बलयों का दुख पता है फक उनका सागि खो गया है। िाम के सागि में
फिि िुबकी मािो। हरि बोलौ हरि बोल!
नीि बबनु मीन दुखी, ्ीि बबन बििु जैसे।
जैसे ्ोटा बच्चा, बजसे दूि नहीं बमला है... िायद ्ोट ेबच्चे को यह पता भी न हो फक मैं िो क्यों िहा हूं।
वह पहली दिा जब बच्चा पैदा होता है तो उसे पता भी कैसे होगा फक मैं दूि की कमी के कािण िो िहा हूं? दूि
तो अभी चखा ही नहीं है। अभी तो पैदा ही हुआ है। अभी तोश्वास ली है औि िोने लगा है। यह फकसबलए िो िहा
है? अगि यह बच्चा बोल सके तो भी बता नहीं सकेगा मैं फकसबलए िो िहा हूं। कंिे बबचकाएगा। कहेगाेः पता
नहीं, मगि िोना आ िहा है। ... "क्या चाहते हो? तो क्या तुम समझते हो फक बच्चा उत्ति दे सकेगा फक मैं क्या
चाहता हूं? जो कभी जाना नहीं, पहचाना नहीं, बजसे कभी चखा नहीं, स्वाद बलया--कैसे कहेगा? लेफकन उसके
िोने को देख कि मां पहचान ल�