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दखु का अधिकार-यशपाल
द्वारा-अनमोल
अक्षत,धरुणस्पर्शउज्वलहृततक
लेखक के बारे में यर्पाल (३ ददसंबर १९०३ - २६ ददसंबर १९७६) का नाम आिनुनक दिन्दी सादित्य के कथाकारों में प्रमखु िै। ये एक साथ िी क्ांनिकारी एवं लेखक दोनों रूपों में जाने जािे िै। पे्रमचंद के बाद दिन्दी के सपु्रससद्ि प्रगनिशील कथाकारों में इनका नाम सलया जािा िै। अपने ववद्याथी जीवन से िी यशपाल क्ांनिकारी आन्दोलन से जडु,े इसके पररणामस्वरुप लम्बी फरारी और जेल में व्यिीि करना पडा । इसके बाद इन्िोने सादित्य को अपना जीवन बनाया, जो काम कभी इन्िोने बंदकू के माध्यम से ककया था, अब विी काम इन्िोने बुलेदिन के माध्यम से जनजागरण का काम शरुु ककया। यशपाल को सादित्य एवं सशक्षा के क्षेत्र में भारि सरकार द्वारा सन १९७० में पद्म भषूण से सम्माननि ककया गया था।
प्रमुख प्रकासशि कृनियााँउपन्यास• ददव्या• देशद्रोिी• ज्क्जज• झूठा सच• दादा कामरेडअममता• मनुष्य के रूप• िेरी मेरी उसकी बािकहानी संग्रह• वपजंरे की उडान• फूलों का कुिाा• िमायुद्ि• सच बोलने की भूल• भस्माविृ धचगंारी
पाठ का सार….. दखु का अधिकार' पाठ के माध्यम से लेखक यशपाल जी ने समाज में उपज्कस्थि अंिववश्वासों पर प्रिार ककया िै। लोगों की गरीबों के प्रनि मानससकिा को भी उन्िोंने इस किानी के माध्यम से दशााया िै। ककसी भी भ-ूभाग में चले जाएाँ अमीरी और गरीबी का अंिर आपको स्पष्ि रूप से ददख जाएगा। परंिु इस आिार पर ककसी के साथ अमानवीय व्यविार करना िमें निीं सिुािा। लेखक पाठ के माध्यम से एक वदृ्ि स्त्री के दखु का वणान करिा िै। उस वदृ्ि स्त्री का एक िी बेिा था। उसकी अकाल मतृ्य ुिो जािी िै। घर की सारी ज्क़िम्मेदारी वदृ्ि स्त्री पर आ जािी िै। िन के अभाव में बेिे की मतृ्य ुके अगले ददन िी वदृ्िा को बा़िार में खरब़ेूि बेचने आना पडिा िै।
पाठ का सार…..आस-पास के लोग उसकी मजबूरी को अनदेखा करिे िुए, उस वदृ्िा को बिुि भला-बुरा बोलिे िैं। लेखक समाज को यिी संदेश देना चाििे िैं कक गरीबों की मजबूरी को कभी अनदेखा निीं करना चादिए। यि सत्य िै कक दखु समान रूप से सबके जीवन में आिा िै। सभी अपनों के जाने का दखु मनाना चाििे िैं पर अपनी आधथाक ज्कस्थनि के कारण मना निीं पािे। भारि जैसे देश में बिुि से लोग िैं, ज्कजन्िें यि समाज दखु मनाने का अधिकार भी निी ंदेिा िै। यि िमारे सलए ववडबंना की बाि िै।
भारि के ़ेििरीले सााँप• ककंग कोबरा• रेड ज्कस्पदिगं कोबरा• वपि वाइपर• ग्रीन मांबा
गद्यात्मक सौन्दयाव्यंग्य- ज्क़िंदा आदमी नंगा भी रि सकिा िै, परन्िु मुदे को नंगा कैसे ववदा ककया जाय?
• कल ज्कजसका बेिा चल बसा, आज वि बा़िार मे सौदा बेचेने चली िै, िाय रे पत्थर ददल!
• शोक करन,े गम मानने के सलये भी सिूसलयि चादिये और दखुी िोने का भी एक अधिकार िोिा िै. जैसे व्यंग्य पाठ मे समदिि कर लेखक ने पाठ के सौंदया को और बढा ददया िै.
गद्यात्मक सौन्दयार्ब्द युग्म:- बेिा-बेिी चन्नी-जकना दअुन्नी-चवन्नी पास-पडोस झारना-फूकना मंुि-अंिेरे• जैसे शब्द युग्म पाठ के गद्यात्मक सौन्दया मे वधृि कर रिे िै.
गद्यात्मक सौन्दयाशब्द अववृि:-•फफक-फफजकर• बबलख-बबलखकर• िडप-िडपकर• सलपि-सलपिकर
गद्यात्मक सौन्दयामिुावरे:-• बंद दरव़िे खोल देना• ननवााि करना• भखू से बबलबबलना• कोई चारा न िोना• शोक से द्रववि िोना.
गद्यात्मक सौन्दयाउदूा शब्दो का समयोजन:-• ईमान• बदन• अदंा़िा• बेचैनी• गम• द़िाा• ़िमीन• ़िमाना• बरकि.
प्रश्न-उिरमौखखक प्रश्न:-ककसी व्यज्कजि की पोशाक को देखकर िमे जया पिा चलिा िै?
खरबूजे बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूजे जयो निीं खरीद रिा था?
उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा?उस स्त्री के लडके की मतृ्यु का कारण जया था?
उसे कोई भी जयो उिर निीं देिा?
प्रश्न-उिरसलखखि प्रश्न:-मनुष्य के जीवन मे पोशाक का जया मित्व िै?लेखक उस स्त्री के रोने का कारण जयो निीं जान पाया?
भगवाना अपने पररवार का ननवााि कैसे करिा था?उस औरि का दखु देखकर लेखक को आपने पडोस की संभ्ांि मदिला की याद जयो आई?
पोशाक िमारे सलये कब बंिन बन जािी िै?बेिे की मतृ्यु के दसूरे िी ददन वि खरबूजे बेचने जयो चल पडी?
प्रश्न-उिरयोग्यिा-ववस्िार-'व्यज्कजि की पेिचान उसके पोशाक से िोिी िै' ववषय पर कक्षा मे पररचचाा करे.
यदद आपने कभी ऐसी दखुखया को देखा िो िो उसकी किानी सलखखए.
पिा करे की कौन से सााँप ़ेििरीले िोिे िै व उनके धचत्र एकत्र कर पबत्रका मे लगाए.