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मगध महाजनपद मगध ाचीन भारत के 16 महाजनपद से एक था। आधुननक पटना तथा गया जला इसम शाममल थे। इसकी राजधानी गररज थी। भगवान बुध के पूवहथ तथा जरासंध यहा के नतजठित राजा थे। [1] अभी इस नाम से बहार एक ंमडल है - मगध मंडलमगध महाजनपद मगध का सववथम उलेख अथववेद मलता है। अमभयान गचतामणि के अनुसार मगध को कीकट कहा गया है। मगध बुधकालीन समय एक शक्नतशाली राजतएक था। यह दििी बहार जथथत था जो कालातर उर भारत का सवावगधक शक्नतशाली महाजनपद बन गया। यह गौरवमयी इनतहास और राजनीनतक एवं धाममवकता का वश ्व के बन गया। मगध महाजनपद की सीमा उर गंगा से दिि वय पववत तक, पूवचपा से पश ्गचम सोन नदी तक वथत थीं। मगध की ाचीन राजधानी राजग थी। यह पाच पहाडय से निरा नगर था। कालातर मगध की राजधानी पाटमलपुर थावपत ई। मगध राय तकालीन शक्नतशाली राय कौशल, वस अवजत को अपने जनपद मला मलया। इस कार मगध का वथतार अखड भारत के ऱप हो गया और ाचीन मगध का इनतहास ही भारत का इनतहास बना। ाचीन गणराय ाचीन बहार (बुधकालीन समय ) गंगा िटी लगभग १० गिराय का उदय आ। ये गिराय - () कवपलवथतु के शाय, () सुमसुमार पववत के भाग, () के सपुर के कालाम, () रामाम के कोमलय, () शीमारा के मल, () पावा के मल, () वपपमलवन के मौयव , ( ) आयकप के बुमल, () वैशाली के मलछव, (१०) मगथला के वदेह। --[अंक आनद ] मगध सााय का उदय मगध राय का वथतार उर गंगा, पश ्गचम सोन तथा दिि जगंलाछाददत पिारी देश तक था। पटना और गया जला का िाचीनकाल मगध के नाम से जाना जाता था। मगध ाचीनकाल से ही राजनीनतक उथान, पतन एवं सामाजजक- धाममवक जाग नत का के बदु रहा है। मगध बुध के समकालीन एक शक्नतकाली संगदित राजतन् था। कालातर मगध का उरोर वकास होता गया और मगध का इनतहास (भारतीय संथक नत और सयता के वकास के मुख थतभ के ऱप ) सपूिव भारतवका इनतहास बन गया।

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मगध महाजनपद

मगध प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। आधुननक पटना तथा गया ज़िला इसमें शाममल थे। इसकी राजधानी गगररव्रज थी। भगवान बुद्ध के पूवव बृहद्रथ तथा जरासंध यहााँ के प्रनतजठित राजा थे।[1] अभी इस नाम

से बबहार में एक प्रंमडल है - मगध प्रमंडल।

मगध महाजनपद

मगध का सववप्रथम उल्लेख अथवव वेद में ममलता है। अमभयान गचन्तामणि के अनुसार मगध को कीकट कहा गया है। मगध बुद्धकालीन समय में एक शक्नतशाली राजतन्रों में एक था। यह दक्षििी बबहार में जथथत था जो कालान्तर में उत्तर भारत का सवावगधक शक्नतशाली महाजनपद बन गया। यह गौरवमयी इनतहास और राजनीनतक एवं धाममवकता का ववशव् केन्द्र बन गया। मगध महाजनपद की सीमा उत्तर में गगंा से दक्षिि में ववन््य पववत तक, पूवव में चम्पा से पशग्चम में सोन नदी तक

ववथतृत थीं। मगध की प्राचीन राजधानी राजगहृ थी। यह पााँच पहाड़ियों से निरा नगर था। कालान्तर में मगध की राजधानी पाटमलपुर में थथावपत हुई। मगध राज्य में तत्कालीन शक्नतशाली राज्य कौशल, वत्स व अवजन्त को अपने

जनपद में ममला मलया। इस प्रकार मगध का ववथतार अखण्ड भारत के रूप में हो गया और प्राचीन मगध का इनतहास ही भारत का इनतहास बना।

प्राचीन गणराज्य

प्राचीन बबहार में (बुद्धकालीन समय में) गगंा िाटी में लगभग १० गिराज्यों का उदय हुआ। ये गिराज्य हैं-

(१) कवपलवथतु के शाक्य,

(२) सुमसुमार पववत के भाग,

(३) केसपुर के कालाम,

(४) रामग्राम के कोमलय,

(५) कुशीमारा के मल्ल,

(६) पावा के मल्ल,

(७) वपप्पमलवन के मौयव, ( ८) आयकल्प के बुमल,

(९) वैशाली के मलच्छवव,

(१०) ममगथला के ववदेह।

--[अंकुर आनन्द ममश्र]

मगध साम्राज्य का उदय

मगध राज्य का ववथतार उत्तर में गगंा, पशग्चम में सोन तथा दक्षिि में जगलंाच्छाददत पिारी प्रदेश तक था। पटना और गया जजला का िेर प्राचीनकाल में मगध के नाम से जाना जाता था। मगध प्राचीनकाल से ही राजनीनतक उत्थान, पतन एवं सामाजजक-धाममवक जागनृत का केन्द्र बबन्दु रहा है। मगध बुद्ध

के समकालीन एक शक्नतकाली व संगदित राजतनर् था। कालान्तर में मगध का उत्तरोत्तर ववकास होता गया और

मगध का इनतहास (भारतीय संथकृनत और सभ्यता के ववकास के प्रमुख थतम्भ के रूप में) सम्पूिव भारतवर्व का इनतहास बन गया।

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मगध के उत्कर्व करने में ननम्न वंश का महत्वपूिव थथान रहा है-

ब्रहद्रथ वंश

यह सबसे प्राचीनतम राजवंश था। महाभारत तथा पुरािों के अनुसार जरासंध के वपता तथा चेददराज वसु के पुर ब्रहद्रथ

ने ब्रहद्रथ वंश की थथापना की। इस वंश में दस राजा हुए जजसमें ब्रहद्रथ पुर जरासंध एवं प्रतापी सम्राट था। जरासंध ने

काशी, कौशल, चेदद, मालवा, ववदेह, अंग, वंग, कमलगं, कश्मीर और गांधार राजाओ ंको पराजजत ककया। मथुरा शासक

कंस ने अपनी बहन की शादी जरासंध से की तथा ब्रहद्रथ वंश की राजधानी वशुमनत या गगररव्रज या राजगहृ को बनाई। भगवान श्रीकृठि की सहायता से पाण्डव पुर भीम ने जरासंध को द्वन्द युद्ध में मार ददया। उसके बाद उसके पुर

सहदेव को शासक बनाया गया। इस वंश का अजन्तम राजा ररपुन्जय था। ररपुन्जय को उसके दरबारी मंरी पूमलक ने

मारकर अपने पुर को राजा बना ददया। इसके बाद एक अन्य दरबारी ‘महीय’ ने पूमलक और उसके पुर की हत्या कर

अपने पुर बबजम्बसार को गद्दी पर बैिाया। ईसा पूवव ६०० में ब्रहद्रथ वंश को समाप्त कर एक नये राजवंश की थथापना हुई। पुरािों के अनुसार मनु के पुर सुद्युम्न के पुर का ही नाम “गया" था।

वैशाली के ललच्छवी बबहार में जथथत प्राचीन गिराज्यों में बुद्धकालीन समय में सबसे ब़िा तथा शक्नतशाली राज्य था। इस गिराज्य की थथापना सूयववंशीय राजा इशव्ाकु के पुर ववशाल ने की थी, जो कालान्तर में ‘वैशाली’ के नाम से ववख्यात हुई।

महावग्ग जातक के अनुसार मलच्छवव वजज्जसंि का एक धनी समृद्धशाली नगर था। यहााँ अनेक सुन्दर भवन,

चतै्य तथा ववहार थे। मलच्छववयों ने महात्मा बुद्ध के ननवारि हेतु महावन में प्रमसद्ध कतागारशाला का ननमावि करवाया था। राजा चेतक की पुरी चेलना का वववाह मगध नरेश बबजम्बसार से हुआ था। ईसा पूवव ७वीं शती में वैशाली के मलच्छवव राजतन्र से गितन्र में पररवनत वत हो गया। ववशाल ने वैशाली शहर की थथापना की। वैशामलका राजवंश का प्रथम शासक नमनेददठट था, जबकक अजन्तम राजा

सुनत या प्रमानत था। इस राजवंश में २४ राजा हुए हैं।

अलकप्प के बुलल

यह प्राचीन गिराज्य बबहार के शाहाबाद, आरा और मुजफ्फरपुर जजलों के बीच जथथत था। बुमलयों का बैि द्वीप

(बेनतया) के साथ िननठि सम्बन्ध था। बेनतया बुमलयों की राजधानी थी। बुमल लोग बौद्ध धमव के अनुयायी थे। बुद्ध

की मृत्यु के पशच्ात ्उनके अवशेर् को प्राप्त कर एक थतूप का ननमावि करवाया था।

हयवक वंश

बबजम्बसार ने हयवक वंश की थथापना ५४४ ई. पू. में की। इसके साथ ही राजनीनतक शक्नत के रूप में बबहार का सववप्रथम

उदय हुआ। बबजम्बसार को मगध साम्राज्य का वाथतववक संथथापक/राजा माना जाता है। बबजम्बसार ने गगररव्रज

(राजगीर) को अपनी राजधानी बनायी। इसके वैवादहक सम्बन्धों (कौशल, वैशाली एवं पंजाब) की नीनत अपनाकर

अपने साम्राज्य का ववथतार ककया।

बबजम्बसार (५४४ ई. पू. से ४९२ ई. पू.)- बबजम्बसार एक कूटनीनतज्ञ और दरूदशी शासक था। उसने प्रमुख राजवंशों में वैवादहक सम्बन्ध थथावपत कर राज्य को फैलाया।

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सबसे पहले उसने मलच्छवव गिराज्य के शासक चेतक की पुरी चेलना के साथ वववाह ककया। दसूरा प्रमुख वैवादहक

सम्बन्ध कौशल राजा प्रसेनजीत की बहन महाकौशला के साथ वववाह ककया। इसके बाद भद्र देश की राजकुमारी िेमा के साथ वववाह ककया।

महावग्ग के अनुसार बबजम्बसार की ५०० राननयााँ थीं। उसने अवंनत के शक्नतशाली राजा चन्द्र प्रद्योत के साथ दोथताना सम्बन्ध बनाया। मसन्ध के शासक रूद्रायन तथा गांधार के मुक्कु रगनत से भी उसका दोथताना सम्बन्ध था। उसने अंग

राज्य को जीतकर अपने साम्राज्य में ममला मलया था वहााँ अपने पुर अजातशरु को उपराजा ननयुक्त ककया था।

बबजम्बसार महात्मा बुद्ध का ममर और संरिक था। ववनयवपटक के अनुसार बुद्ध से ममलने के बाद उसने बौद्ध धमव को ग्रहि ककया, लेककन जैन और ब्राह्मि धमव के प्रनत उसकी सदहठिुता थी। बबजम्बसार ने करीब ५२ वर्ों तक शासन

ककया। बौद्ध और जैन ग्रन्थानुसार उसके पुर अजातशरु ने उसे बन्दी बनाकर कारागार में डाल ददया था जहााँ उसका ४९२ ई. पू. में ननधन हो गया।

बबजम्बसार ने अपने ब़ेि पुर “दशवक" को उत्तरागधकारी िोवर्त ककया था। भारतीय इनतहास में बबजम्बसार प्रथम शासक था जजसने थथायी सेना रखी। बबजम्बसार ने राजवैद्य जीवक को भगवान बुद्ध की सेवा में ननयुक्त ककया था। बौद्ध मभिुओ ंको ननिःशुल्क जल यारा की अनुमनत दी थी।s बबजम्बसार की हत्या महात्मा बुद्ध के ववरोधी देवव्रत के उकसाने पर अजातशरु ने की थी। आम्रपाली- यह वैशाली की नतवकी एवं परम रूपवती काम कला प्रवीि वेश्या थी। आम्रपाली के सौन्दयव पर मोदहत होकर

बबजम्बसार ने मलच्छवव से जीतकर राजगहृ में ले आया। उसके संयोग से जीवक नामक पुररतन् हुआ। बबजम्बसार ने

जीवक को तिमशला में मशिा हेतु भेजा। यही जीवक एक प्रख्यात गचककत्सक एवं राजवैद्य बना। अजातशरु (४९२-४६०

ई. पू.)- बबजम्बसार के बाद अजातशरु मगध के मसहंासन पर बैिा। इसके बचपन का नाम कुणिक था। वह अपने वपता की हत्या कर गद्दी पर बैिा। अजातशरु ने अपने वपता के साम्राज्य ववथतार की नीनत को चरमोत्कर्व तक पहुाँचाया।

अजातशरु के मसहंासन ममलने के बाद वह अनेक राज्य संिर्व एवं कदिनाइयों से निर गया लेककन अपने बाहुबल और

बुद्गधमानी से सभी पर ववजय प्राप्त की। महत्वाकांिी अजातशरु ने अपने वपता को कारागार में डालकर किोर

यातनाएाँ दीं जजससे वपता की मृत्यु हो गई। इससे दुणखत होकर कौशल रानी की मृत्यु हो गई।

कौशल संिर्व- बबजम्बसार की पतन्ी (कौशल) की मृत्यु से प्रसेनजीत बहुत क्रोगधत हुआ और अजातशरु के णखलाफ

संिर्व छे़ि ददया। पराजजत प्रसेनजीत श्रावथती भाग गया लेककन दसूरे युद्ध-संिर्व में अजातशरु पराजजत हो गया लेककन प्रसेनजीत ने अपनी पुरी वाजजरा का वववाह कर काशी को दहेज में दे ददया।

वजज्ज संि संिर्व- मलच्छवव राजकुमारी चेलना बबजम्बसार की पतन्ी थी जजससे उत्पनन् दो पुरी हल्ल और बेहल्ल को उसने अपना हाथी और रतन्ों का एक हार ददया था जजसे अजातशरु ने मनमुटाव के कारि वापस मााँगा। इसे चेलना ने

अथवीकार कर ददया, फलतिः अजातशरु ने मलच्छववयों के णखलाफ युद्ध िोवर्त कर ददया।

वथसकार से मलच्छववयों के बीच फूट डालकर उसे पराजजत कर ददया और मलच्छवव अपने राज्य में ममला मलया।

मल्ल संिर्व- अजातशरु ने मल्ल संि पर आक्रमि कर अपने अगधकार में कर मलया। इस प्रकार पूवी उत्तर प्रदेश के एक

ब़ेि भू-भाग मगध साम्राज्य का अंग बन गया।

अजातशरु ने अपने प्रबल प्रनतद्वन्दी अवजन्त राज्य पर आक्रमि करके ववजय प्राप्त की।

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अजातशरु धाममवक उदार सम्राट था। ववमभनन् ग्रन्थों के अनुसार वे बौद्ध और जैन दोनों मत के अनुयायी माने जाते

हैं लेककन भरहुत थतूप की एक वेददका के ऊपर अजातशरु बुद्ध की वंदना करता हुआ ददखाया गया है। उसने शासनकाल के आिवें वर्व में बुद्ध के महापररननवावि के बाद उनके अवशेर्ों पर राजगहृ में थतूप का ननमावि

करवाया और ४८३ ई. पू. राजगहृ की सप्तपणिव गुफा में प्रथम बौद्ध संगीनत का आयोजन ककया। इस संगीनत में बौद्ध मभिुओ ंके सम्बजन्धत वपटकों को सुतवपटक और ववनयवपटक में ववभाजजत ककया।

मसहंली अनुशु्रनतयों के अनुसार उसने लगभग ३२ वर्ों तक शासन ककया और ४६० ई. पू. में अपने पुर उदयन द्वारा मारा गया था।

अजातशरु के शासनकाल में ही महात्मा बुद्ध ४८७ ई. पू. महापररननवावि तथा महावीर का भी ननधन ४६८ ई. पू. हुआ था।

उदयन- अजातशरु के बाद ४६० ई. पू. मगध का राजा बना। बौद्ध ग्रन्थानुसार इसे वपतृहन्ता लेककन जैन ग्रन्थानुसार

वपतृभक्त कहा गया है। इसकी माता का नाम पद्मावती था।

उदयन शासक बनने से पहले चम्पा का उपराजा था। वह वपता की तरह ही वीर और ववथतारवादी नीनत का पालक

था। इसने पाटमल पुर (गगंा और सोन के संगम) को बसाया तथा अपनी राजधानी राजगहृ से पाटमलपुर थथावपत की। मगध के प्रनतद्वन्दी राज्य अवजन्त के गुप्तचर द्वारा उदयन की हत्या कर दी गई। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार उदयन के तीन पुर अननरुद्ध, मंडक और नागदशक थे। उदयन के तीनों पुरों ने राज्य ककया। अजन्तम राजा नागदासक था। जो अत्यन्त ववलासी और ननबवल था। शासनतन्र में मशगथलता के कारि व्यापक

असन्तोर् जनता में फैला। राज्य ववद्रोह कर उनका सेनापनत मशशुनाग राजा बना। इस प्रकार हयवक वंश का अन्त और

मशशुनाग वंश की थथापना ४१२ई.पू. हुई।

लशशुनाग वंश

मशशुनाग ४१२ई. पू.गद्दी पर बेि। महावंश के अनुसार वह मलच्छवव राजा के वेश्या पतन्ी से उत्पनन् पुर था। पुरािों के

अनुसार वह िबरय था। इसने सववप्रथम मगध के प्रबल प्रनतद्वन्दी राज्य अवजन्त को ममलाया। मगध की सीमा पशग्चम मालवा तक फैल गई और वत्स को मगध में ममला ददया। वत्स और अवजन्त के मगध में ववलय से, पाटमलपुर

को पशग्चमी देशों से, व्यापाररक मागव के मलए राथता खुल गया।

मशशुनाग ने मगध से बंगाल की सीमा से मालवा तक ववशाल भू-भाग पर अगधकार कर मलया। मशशुनाग एक शक्नतशाली शासक था जजसने गगररव्रज के अलावा वैशाली नगर को भी अपनी राजधानी बनाया।

३९४ ई. पू. में इसकी मृत्यु हो गई। कालाशोक- यह मशशुनाग का पुर था जो मशशुनाग के ३९४ ई. पू. मृत्यु के बाद मगध का शासक बना। महावंश में इसे

कालाशोक तथा पुरािों में काकविव कहा गया है। कालाशोक ने अपनी राजधानी को पाटमलपुर थथानान्तररत कर ददया था। इसने २८ वर्ों तक शासन ककया। कालाशोक के शासनकाल में ही बौद्ध धमव की द्ववतीय संगीनत का आयोजन

हुआ।

बािभट्ट रगचत हर्वचररत के अनुसार काकविव को राजधानी पाटमलपुर में िूमते समय महापद्यनन्द नामक

व्यक्नत ने चाकू मारकर हत्या कर दी थी। ३६६ ई. पू. कालाशोक की मृत्यु हो गई। महाबोगधवंश के अनुसार कालाशोक के दस पुर थे, जजन्होंने मगध पर २२ वर्ों तक शासन ककया। ३४४ ई. पू. में मशशुनाग वंश का अन्त हो गया और नन्द वंश का उदय हुआ।

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नन्द वंश

३४४ ई. पू. में महापद्यनन्द नामक व्यक्नत ने नन्द वंश की थथापना की। पुरािों में इसे महापद्म तथा महाबोगधवंश में उग्रसेन कहा गया है। यह नाई जानत का था।

उसे महापद्म एकारट, सवव िरान्तक आदद उपागधयों से ववभूवर्त ककया गया है। महापद्म नन्द के प्रमुख राज्य

उत्तरागधकारी हुए हैं- उग्रसेन, पंडूक, पाण्डुगनत, भूतपाल, राठरपाल, योववर्ािक, दशमसद्धक, कैवतव, धनानन्द। इसके

शासन काल में भारत पर आक्रमि मसकन्दर द्वारा ककया गया। मसकन्दर के भारत से जाने के बाद मगध साम्राज्य में अशाजन्त और अव्यवथथा फैली। धनानन्द एक लालची और धन संग्रही शासक था, जजसे असीम शक्नत और सम्पवत्त के

बावजूद वह जनता के ववशव्ास को नहीं जीत सका। उसने एक महान ववद्वान ब्राह्मि चािक्य को अपमाननत ककया था।

चािक्य ने अपनी कूटनीनत से धनानन्द को पराजजत कर चन्द्रगुप्त मौयव को मगध का शासक बनाया। महापद्मनन्द पहला शासक था जो गगंा िाटी की सीमाओ ंका अनतक्रमि कर ववन््य पववत के दक्षिि तक ववजय

पताका लहराई। नन्द वंश के समय मगध राजनैनतक दृजठट से अत्यन्त समृद्धशाली साम्राज्य बन गया। व्याकरि के आचायव पाणिनी महापद्मनन्द के ममर थे। वर्व, उपवर्व, वर, रुगच, कात्यायन जैसे ववद्वान नन्द शासन में हुए। शाकटाय तथा थथलू भद्र धनानन्द के जैन मतावलम्बी अमात्य थे।

मौयय राजवंश

३२२ ई. पू. में चन्द्रगुप्त मौयव ने अपने गुरू चािक्य की सहायता से धनानन्द की हत्या कर मौयव वंश की नींव डाली थी।

चन्द्रगुप्त मौयव ने नन्दों के अत्याचार व िृणित शासन से मुक्नत ददलाई और देश को एकता के सूर में बााँधा और मौयव साम्राज्य की थथापना की। यह साम्राज्य गितन्र व्यवथथा पर राजतन्र व्यवथथा की जीत थी। इस कायव में अथवशाथर

नामक पुथतक द्वारा चािक्य ने सहयोग ककया। ववठिुगुप्त व कौदटल्य उनके अन्य नाम हैं। आयों के आगमन के बाद

यह प्रथम थथावपत साम्राज्य था।

चन्द्रगुप्त मौयव (३२२ ई. पू. से २९८ ई. पू.)- चन्द्रगुप्त मौयव के जन्म वंश के सम्बन्ध में वववाद है। ब्राह्मि, बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों में परथपर ववरोधी वववरि ममलता है।

ववववध प्रमािों और आलोचनात्मक समीिा के बाद यह तकव ननधावररत होता है कक चन्द्रगुप्त मोररय वंश का िबरय था। चन्द्रगुप्त के वपता मोररय नगर प्रमुख थे। जब वह गभव में ही था तब उसके वपता की मृत्यु युद्धभूमम में हो गयी थी। उसका पाटमलपुर में जन्म हुआ था तथा एक गोपालक द्वारा पोवर्त ककया गया था। चरावाह तथा मशकारी रूप में ही राजा-गुि होने का पता चािक्य ने कर मलया था तथा उसे एक हजार में कर्ापवि में खरीद मलया। तत्पशच्ात ्तिमशला लाकर सभी ववद्या में ननपुि बनाया। अ्ययन के दौरान ही सम्भवतिः चन्द्रगुप्त मसकन्दर से ममला था। ३२३ ई. पू. में मसकन्दर की मृत्यु हो गयी तथा उत्तरी मसन्धु िाटी में प्रमुख यूनानी िरप कफमलप द्ववतीय की हत्या हो गई।

जजस समय चन्द्रगुप्त राजा बना था भारत की राजनीनतक जथथनत बहुत खराब थी। उसने सबसे पहले एक सेना तैयार

की और मसकन्दर के ववरुद्ध युद्ध प्रारम्भ ककया। ३१७ ई. पू. तक उसने सम्पूिव मसन्ध और पंजाब प्रदेशों पर अगधकार

कर मलया। अब चन्द्रगुप्त मौयव मसन्ध तथा पंजाब का एकिर शासक हो गया। पंजाब और मसन्ध ववजय के बाद

चन्द्रगुप्त तथा चािक्य ने धनानन्द का नाश करने हेतु मगध पर आक्रमि कर ददया। युद्ध में धनाननन्द मारा गया

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अब चन्द्रगुप्त भारत के एक ववशाल साम्राज्य मगध का शासक बन गया। मसकन्दर की मृत्यु के बाद सेल्यूकस उसका उत्तरागधकारी बना। वह मसकन्दर द्वारा जीता हुआ भू-भाग प्राप्त करने के मलए उत्सुक था। इस उद्देश्य से ३०५ ई. पू. उसने भारत पर पुनिः चढाई की। चन्द्रगुप्त ने पशग्चमोत्तर भारत के यूनानी शासक सेल्यूकस ननकेटर को पराजजत कर

एररया (हेरात), अराकोमसया (कंधार), जेड्रोमसया पेरोपेननसडाई (काबुल) के भू-भाग को अगधकृत कर ववशाल भारतीय

साम्राज्य की थथापना की। सेल्यूकस ने अपनी पुरी हेलन का वववाह चन्द्रगुप्त से कर ददया। उसने मेगथथनीज को राजदतू के रूप में चन्द्रगुप्त मौयव के दरबार में ननयुक्त ककया।

चन्द्रगुप्त मौयव ने पशग्चम भारत में सौराठर तक प्रदेश जीतकर अपने प्रत्यि शासन के अन्तगवत शाममल ककया। गगरनार अमभलेख (१५० ई. पू.) के अनुसार इस प्रदेश में पुण्यगुप्त वैश्य चन्द्रगुप्त मौयव का राज्यपाल था। इसने

सुदशवन झील का ननमावि ककया। दक्षिि में चन्द्रगुप्त मौयव ने उत्तरी कनावटक तक ववजय प्राप्त की।

चन्द्रगुप्त मौयव के ववशाल साम्राज्य में काबुल, हेरात, कन्धार, बलूगचथतान, पंजाब, गगंा-यमुना का मैदान, बबहार,

बंगाल, गुजरात था तथा ववन््य और कश्मीर के भ-ूभाग सजम्ममलत थे, लेककन चन्द्रगुप्त मौयव ने अपना साम्राज्य

उत्तर-पशग्चम में ईरान से लेकर पूवव में बंगाल तथा उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिि में उत्तरी कनावटक तक ववथतृत

ककया था। अजन्तम समय में चन्द्रगुप्त मौयव जैन मुनन भद्रबाहु के साथ श्रविबेलगोला चला गया था। २९८ ई. पू. में उपवास द्वारा चन्द्रगुप्त मौयव ने अपना शरीर त्याग ददया।

बबन्दुसार (२९८ ई. पू. से २७३ ई. पू.)- यह चन्द्रगुप्त मौयव का पुर व उत्तरागधकारी था जजसे वायु पुराि में मद्रसार और

जैन सादहत्य में मसहंसेन कहा गया है। यूनानी लेखक ने इन्हें अमभलोचेट्स कहा है। यह २९८ ई. पू. मगध साम्राज्य के

मसहंासन पर बैिा। जैन ग्रन्थों के अनुसार बबन्दुसार की माता दुधवरा थी। थेरवाद परम्परा के अनुसार वह ब्राह्मि धमव का अनुयायी था।

बबन्दुसार के समय में भारत का पशग्चम एमशया से व्यापाररक सम्बन्ध अच्छा था। बबन्दुसार के दरबार में सीररया के

राजा एंनतयोकस ने डायमाइकस नामक राजदतू भेजा था। ममस्र के राजा टॉलेमी के काल में डाइनोमसयस नामक

राजदतू मौयव दरबार में बबन्दुसार की राज्यसभा में आया था।

ददव्यादान के अनुसार बबन्दुसार के शासनकाल में तिमशला में दो ववद्रोह हुए थे, जजनका दमन करने के मलए पहली बार

अशोक को, दसूरी बार सुसीम को भेजा

प्रशासन के िेर में बबन्दुसार ने अपने वपता का ही अनुसरि ककया। प्रनत में उपराजा के रूप में कुमार ननयुक्त ककए। ददव्यादान के अनुसार अशोक अवजन्त का उपराजा था। बबन्दुसार की सभा में ५०० सदथयों वाली मजन्रपररर्द् थी जजसका प्रधान खल्लाटक था। बबन्दुसार ने २५ वर्ों तक राज्य ककया अन्ततिः २७३ ई. पू. उसकी मृत्यु हो गयी।

अशोक (२७३ ई. पू. से २३६ ई. पू.)- राजगद्दी प्राप्त होने के बाद अशोक को अपनी आन्तररक जथथनत सुदृढ करने में चार

वर्व लगे। इस कारि राज्यारोहि चार साल बाद २६९ ई. पू. में हुआ था।

वह २७३ ई. पू. में मसहंासन पर बैिा। अमभलेखों में उसे देवाना वप्रय एवं राजा आदद उपागधयों से सम्बोगधत ककया गया है। माथकी तथा गजवरा के लेखों में उसका नाम अशोक तथा पुरािों में उसे अशोक वधवन कहा गया है। मसहंली अनुशु्रनतयों के अनुसार अशोक ने ९९ भाइयों की हत्या करके राजमसहंासन प्राप्त ककया था, लेककन इस उत्तरागधकार के

मलए कोई थवतंर प्रमाि प्राप्त नहीं हुआ है।

ददव्यादान में अशोक की माता का नाम सुभद्रांगी है, जो चम्पा के एक ब्राह्मि की पुरी थी।

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मसहंली अनुशु्रनतयों के अनुसार उज्जनयनी जाते समय अशोक ववददशा में रुका जहााँ उसने श्रठेिी की पुरी देवी से वववाह

ककया जजससे महेन्द्र और संिममरा का जन्म हुआ। ददव्यादान में उसकी एक पतन्ी का नाम नतठयरक्षिता ममलता है। उसके लेख में केवल उसकी पतन्ी का नाम करूिावकक है जो तीवर की माता थी। बौद्ध परम्परा एवं कथाओ ंके

अनुसार बबन्दुसार अशोक को राजा नहीं बनाकर सुसीम को मसहंासन पर बैिाना चाहता था, लेककन अशोक एवं ब़ेि भाई

सुसीम के बीच युद्ध की चचाव है।

अशोक का कललगं युद्ध

अशोक ने अपने राज्यामभरे्क के ८वें वर्व २६१ ई. प.ू में कमलगं पर आक्रमि ककया था। आन्तररक अशाजन्त से ननपटने

के बाद २६९ ई. पू. में उसका ववगधवत ्अमभरे्क हुआ। तेरहवें मशलालेख के अनुसार कमलगं युद्ध में एक लाख ५० हजार

व्यक्नत बन्दी बनाकर ननवावमसत कर ददए गये, एक लाख लोगों की हत्या कर दी गयी। सम्राट अशोक ने भारी नरसंहार

को अपनी आाँखों से देखा। इससे द्रववत होकर अशोक ने शाजन्त, सामाजजक प्रगनत तथा धाममवक प्रचार ककया।

कमलगं युद्ध ने अशोक के हृदय में महान पररवतवन कर ददया। उसका हृदय मानवता के प्रनत दया और करुिा से

उद्वेमलत हो गया। उसने युद्ध कक्रयाओ ंको सदा के मलए बन्द कर देने की प्रनतज्ञा की। यहााँ से आ्याजत्मक और धम्म

ववजय का युग शुरू हुआ। उसने बौद्ध धमव को अपना धमव थवीकार ककया।

मसहंली अनुशु्रनतयों दीपवंश एवं महावंश के अनुसार अशोक को अपने शासन के चौदहवें वर्व में ननगोथ नामक मभिु द्वारा बौद्ध धमव की दीिा दी गई थी। तत्पशच्ात ्मोगाली पुर ननथस के प्रभाव से वह पूिवतिः बौद्ध हो गया था। ददव्यादान के अनुसार अशोक को बौद्ध धमव में दीक्षित करने का श्रये उपगुप्त नामक बौद्ध मभिुक को जाता है। अपने

शासनकाल के दसवें वर्व में सववप्रथम बोधगया की यारा की थी। तदुपरान्त अपने राज्यामभरे्क के बीसवें वर्व में लुजम्बनी की यारा की थी तथा लुजम्बनी ग्राम को करमुक्त िोवर्त कर ददया था।

अशोक एवं बौद्ध धमय कमलगं के युद्ध के बाद अशोक ने व्यक्नतगत रूप से बौद्ध धमव अपना मलया। अशोक के शासनकाल में ही पाटमलपुर में तृतीय बौद्ध संगीनत का आयोजन ककया गया, जजसकी अ्यिता

मोगाली पुर नतठया ने की। इसी में अमभधम्मवपटक की रचना हुई और बौद्ध मभिु ववमभनन् देशों में भेजे गये

जजनमें अशोक के पुर महेन्द्र एवं पुरी संिममरा को श्रीलंका भेजा गया। ददव्यादान में उसकी एक पतन्ी का नाम नतठयरक्षिता ममलता है। उसके लेख में केवल उसकी पतन्ी करूिावकक है।

ददव्यादान में अशोक के दो भाइयों सुसीम तथा ववगताशोक का नाम का उल्लेख है। ववद्वानों अशोक की तुलना ववशव् इनतहास की ववभूनतयााँ कांथटेटाइन, ऐटोननयस, अकबर , सेन्टपॉल, नेपोमलयन

सीजर के साथ की है। अशोक ने अदहसंा, शाजन्त तथा लोक कल्यािकारी नीनतयों के ववशव्ववख्यात तथा अतुलनीय सम्राट हैं। एच. जी. वेल्स

के अनुसार अशोक का चररर “इनतहास के थतम्भों को भरने वाले राजाओ,ं सम्राटों, धमावगधकाररयों, सन्त-महात्माओ ं

आदद के बीच प्रकाशमान है और आकाश में प्रायिः एकाकी तारा की तरह चमकता है।"

अशोक ने बौद्ध धमव को अपना मलया और साम्राज्य के सभी साधनों को जनता के कल्याि हेतु लगा ददया। अशोक ने बौद्ध धमव के प्रचार के मलए ननम्नमलणखत साधन अपनाये-

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(अ) धमवयाराओ ंका प्रारम्भ, (ब) राजकीय पदागधकाररयों की ननयुक्नत, (स) धमव महापारों की ननयुक्नत, (द) ददव्य

रूपों का प्रदशवन, (य) धमव श्रावि एवं धमोपदेश की व्यवथथा, (र) लोकाचाररता के कायव, (ल) धमवमलवपयों का खुदवाना, (ह) ववदेशों में धमव प्रचार को प्रचारक भेजना आदद।

अशोक ने बौद्ध धमव का प्रचार का प्रारम्भ धमवयाराओ ंसे ककया। वह अमभरे्क के १०वें वर्व बोधगया की यारा पर गया। कमलगं युद्ध के बाद आमोद-प्रमोद की याराओ ंपर पाबन्दी लगा दी। अपने अमभरे्क २०वें वर्व में लुजम्बनी ग्राम की यारा की। नेपाल तराई में जथथत ननगलीवा में उसने कनकमुनन के थतूप की मरम्मत करवाई। बौद्ध धमव के प्रचार के

मलए अपने साम्राज्य के उच्च पदागधकाररयों को ननयुक्त ककया। थतम्भ लेख तीन और सात के अनुसार उसने व्युठट,

रज्जुक, प्रादेमशक तथा युक्त नामक पदागधकाररयों को जनता के बीच जाकर धमव प्रचार करने और उपदेश देने का आदेश ददया।

अमभरे्क के १३वें वर्व के बाद उसने बौद्ध धमव प्रचार हेतु पदागधकाररयों का एक नया वगव बनाया जजसे धमव महापार

कहा गया था। इसका कयव ववमभनन् धाममवक सम्प्रदायों के बीच द्वेर्भाव को ममटाकर धमव की एकता थथावपत करना था।

अशोक के लशलालेख

अशोक के १४ मशलालेख ववमभनन् लेखों का समूह है जो आि मभनन्-मभनन् थथानों से प्राप्त ककए गये हैं-

(१) धौली- यह उ़िीसा के पुरी जजला में है।

(२) शाहबाज गढी- यह पाककथतान (पेशावर) में है।

(३) मान सेहरा- यह हजारा जजले में जथथत है।

(४) कालपी- यह वतवमान उत्तरांचल (देहरादनू) में है।

(५) जौगढ- यह उ़िीसा के जौगढ में जथथत है।

(६) सोपरा- यह महराठर के थािे जजले में है।

(७) एरागुडड- यह आन्र प्रदेश के कुनूवल जजले में जथथत है।

(८) गगरनार- यह कादियाबा़ि में जूनागढ के पास है।

अशोक के लघु लशलालेख

अशोक के लिु मशलालेख चौदह मशलालेखों के मुख्य वगव में सजम्ममलत नहीं है जजसे लिु मशलालेख कहा जाता है। ये

ननम्नांककत थथानों से प्राप्त हुए हैं-

(१) रूपनाथ- यह म्य प्रदेश के जबलपुर जजले में है।

(२) गुजरी- यह म्य प्रदेश के दनतया जजले में है।

(३) भबू- यह राजथथान के जयपुर जजले में है।

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(४) माथकी- यह रायचरू जजले में जथथत है।

(५) सहसराम- यह बबहार के शाहाबाद जजले में है।

धम्म को लोकवप्रय बनाने के मलए अशोक ने मानव व पशु जानत के कल्याि हेतु पशु-पक्षियों की हत्या पर प्रनतबन्ध

लगा ददया था। राज्य तथा ववदेशी राज्यों में भी मानव तथा पशु के मलए अलग गचककत्सा की व््वथथा की। अशोक के

महान पुण्य का कायव एवं थवगव प्राजप्त का उपदेश बौद्ध ग्रन्थ संयुक्त ननकाय में ददया गया है।

अशोक ने दरू-दरू तक बौद्ध धमव के प्रचार हेतु दतूों, प्रचारकों को ववदेशों में भेजा अपने दसूरे तथा १३वें मशलालेख में उसने उन देशों का नाम मलखवाया जहााँ दतू भेजे गये थे।

दक्षिि सीमा पर जथथत राज्य चोल, पाण््य, सनतययुक्त केरल पुर एवं ताम्रपाणिव बताये गये हैं।

अशोक के अलिलेख

अशोक के अमभलेखों में शाहनाज गढी एवं मान सेहरा (पाककथतान) के अमभलेख खरोठिी मलवप में उत्कीिव हैं। तिमशला एवं लिमान (काबुल) के समीप अफगाननथतान अमभलेख आरमाइक एवं ग्रीक में उत्कीिव हैं। इसके अनतररक्त अशोक

के समथत मशलालेख लिुमशला थतम्भ लेख एवं लिु लेख ब्राह्मी मलवप में उत्कीिव हैं। अशोक का इनतहास भी हमें इन

अमभलेखों से प्राप्त होता है।

अभी तक अशोक के ४० अमभलेख प्राप्त हो चुके हैं। सववप्रथम १८३७ ई. पू. में जेम्स वप्रसेंप नामक ववद्वान ने अशोक के

अमभलेख को पढने में सफलता हामसल की थी।

रायपुरबा- यह भी बबहार राज्य के चम्पारि जजले में जथथत है।

प्रयाग- यह पहले कौशाम्बी में जथथत था जो बाद में मुगल सम्राट अकबर द्वारा इलाहाबाद के ककले में रखवाया गया था।

अशोक के लघु स्तम्ि लेख

सम्राट अशोक की राजकीय िोर्िाएाँ जजन थतम्भों पर उत्कीिव हैं उन्हें लिु थतम्भ लेख कहा जाता है जो ननम्न थथानों पर जथथत हैं-

१. सांची- म्य प्रदेश के रायसेन जजले में है।

२. सारनाथ- उत्तर प्रदेश के वारािसी जजले में है।

३. रूजभ्मनदेई- नेपाल के तराई में है।

४. कौशाम्बी- इलाहाबाद के ननकट है।

५. ननग्लीवा- नेपाल के तराई में है।

६. ब्रह्मगगरर- यह मैसूर के गचबल दुगव में जथथत है।

७. मसद्धपुर- यह ब्रह्मगगरर से एक मील उ. पू. में जथथत है।

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८. जनतगं रामेशव्र- जो ब्रह्मगगरर से तीन मील उ. पू. में जथथत है।

९. एरागुडड- यह आन्र प्रदेश के कूनुवल जजले में जथथत है।

१०. गोववमि- यह मैसूर के कोपवाय नामक थथान के ननकट है।

११. पालककगुण्क- यह गोववमि की चार मील की दरूी पर है।

१२. राजूल मंडागगरर- यह आन्र प्रदेश के कूनुवल जजले में जथथत है।

१३. अहरौरा- यह उत्तर प्रदेश के ममजावपुर जजले में जथथत है।

१४. सारो-मारो- यह म्य प्रदेश के शहडोल जजले में जथथत है।

१५. नेतुर- यह मैसूर जजले में जथथत है।

अशोक के गुहा लेख

दक्षिि बबहार के गया जजले में जथथत बराबर नामक तीन गुफाओ ंकी दीवारों पर अशोक के लेख उत्कीिव प्राप्त हुए हैं। इन सभी की भार्ा प्राकृत तथा ब्राह्मी मलवप में है। केवल दो अमभलेखों शाहवाजगढी तथा मान सेहरा की मलवप ब्राह्मी न

होकर खरोठिी है। यह मलवप दायीं से बायीं और मलखी जाती है।

तिमशला से आरमाइक मलवप में मलखा गया एक भग्न अमभलेख कन्धार के पास शारे-कुना नामक थथान से यूनानी तथा आरमाइक द्ववभार्ीय अमभलेख प्राप्त हुआ है।

अशोक के स्तम्ि लेख

अशोक के थतम्भ लेखों की संख्या सात है जो छिः मभनन् थथानों में पार्ाि थतम्भों पर उत्कीिव पाये गये हैं। इन थथानों के नाम हैं-

(१) ददल्ली तोपरा- यह थतम्भ लेख प्रारंभ में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जजले में पाया गया था। यह म्य युगीन सुल्तान

कफरोजशाह तुगलक द्वारा ददल्ली लाया गया। इस पर अशोक के सातों अमभलेख उत्कीिव हैं।

(२) ददल्ली मेरि- यह थतम्भ लेख भी पहले मेरि में था जो बाद में कफरोजशाह द्वारा ददल्ली लाया गया।

(३) लौररया अरराज तथा लौररया नन्दगढ- यह थतम्भ लेख बबहार राज्य के चम्पारि जजले में है।

सैन्य व्यवथथा- सैन्य व्यवथथा छिः सममनतयों में ववभक्त सैन्य ववभाग द्वारा ननददवठट थी। प्रत्येक सममनत में पााँच

सैन्य ववशेर्ज्ञ होते थे।

पैदल सेना, अशव् सेना, गज सेना, रथ सेना तथा नौ सेना की व्यवथथा थी।

सैननक प्रबन्ध का सवोच्च अगधकारी अन्तपाल कहलाता था। यह सीमान्त िेरों का भी व्यवथथापक होता था। मेगथथनीज के अनुसार चन्द्रगुप्त मौयव की सेना छिः लाख पैदल, पचास हजार अशव्ारोही, नौ हजार हाथी तथा आि सौ रथों से सुसजज्जत अजेय सैननक थे।

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प्रान्तीय प्रशासन

चन्द्रगुप्त मौयव ने शासन संचालन को सुचारु रूप से चलाने के मलए चार प्रान्तों में ववभाजजत कर ददया था जजन्हें चक्र

कहा जाता था। इन प्रान्तों का शासन सम्राट के प्रनतननगध द्वारा संचामलत होता था। सम्राट अशोक के काल में प्रान्तों की संख्या पााँच हो गई थी। ये प्रान्त थे-

प्रान्त राजधानी

प्राची (म्य देश)- पाटमलपुर

उत्तरापथ - तिमशला

दक्षििापथ - सुविवगगरर

अवजन्त राठर - उज्जनयनी

कमलगं - तोलायी

प्रान्तों (चक्रों) का प्रशासन राजवंशीय कुमार (आयव पुर) नामक पदागधकाररयों द्वारा होता था।

कुमाराभाठय की सहायता के मलए प्रत्येक प्रान्त में महापार नामक अगधकारी होते थे। शीर्व पर साम्राज्य का केन्द्रीय

प्रभाग तत्पशच्ात ्प्रान्त आहार (ववर्य) में ववभक्त था। ग्राम प्रशासन की ननम्न इकाई था, १०० ग्राम के समूह को संग्रहि कहा जाता था।

आहार ववर्यपनत के अधीन होता था। जजले के प्रशासननक अगधकारी थथाननक था। गोप दस गााँव की व्यवथथा करता था।

नगर प्रशासन

मेगथथनीज के अनुसार मौयव शासन की नगरीय प्रशासन छिः सममनत में ववभक्त था।

प्रथम सममनत- उद्योग मशल्पों का ननरीिि करता था।

द्ववतीय सममनत- ववदेमशयों की देखरेख करता है।

तृतीय सममनत- जनगिना।

चतुथव सममनत- व्यापार वाणिज्य की व्यवथथा।

पंचम सममनत- ववक्रय की व्यवथथा, ननरीिि।

र्ठि सममनत- बबक्री कर व्यवथथा।

नगर में अनुशासन बनाये रखने के मलए तथा अपराधों पर ननयन्रि रखने हेतु पुमलस व्यवथथा थी जजसे रक्षित कहा जाता था।

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यूनानी थरोतों से ज्ञात होता है कक नगर प्रशासन में तीन प्रकार के अगधकारी होते थे-एग्रोनोयोई (जजलागधकारी), एण्टीनोमोई (नगर आयुक्त), सैन्य अगधकार।

अशोक के परवती मौयव सम्राट- मगध साम्राज्य के महान मौयव सम्राट अशोक की मृत्यु २३७-२३६ ई. पू. में (लगभग) हुई

थी। अशोक के उपरान्त अगले पााँच दशक तक उनके ननबवल उत्तरागधकारी शासन संचामलत करते रहे।

अशोक के उत्तरागधकारी- जैन, बौद्ध तथा ब्राह्मि ग्रन्थों में अशोक के उत्तरागधकाररयों के शासन के बारे में परथपर

ववरोधी ववचार पाये जाते हैं। पुरािों में अशोक के बाद ९ या १० शासकों की चचाव है, जबकक ददव्यादान के अनुसार ६

शासकों ने असोक के बाद शासन ककया। अशोक की मृत्यु के बाद मौयव साम्राज्य पशग्चमी और पूवी भाग में बाँट गया। पशग्चमी भाग पर कुिाल शासन करता था, जबकक पूवी भाग पर सम्प्रनत का शासन था लेककन १८० ई. पू. तक

पशग्चमी भाग पर बैजक्रया यूनानी का पूिव अगधकार हो गया था। पूवी भाग पर दशरथ का राज्य था। वह मौयव वंश का अजन्तम शासक है।

मौयय साम्राज्य का पतन

मौयव सम्राट की मृत्यु (२३७-२३६ई. पू.) के उपरान्त करीबन दो सददयों (३२२-१८४ई.पू.) से चले आ रहे शक्नतशाली मौयव साम्राज्य का वविटन होने लगा।

अजन्तम मौयव सम्राट वृहद्रथ की हत्या उसके सेनापनत पुठयममर ने कर दी। इससे मौयव साम्राज्य समाप्त हो गया।

इसके पतन के कारि ननम्न हैं-

१.अयोग्य एवं ननबवल उत्तरागधकारी,२.प्रशासन का अत्यगधक केन्द्रीयकरि,३.राठरीय चेतना का अभाव, ४.आगथवक एवं सांथकृनतक असमानताएाँ ५.प्रान्तीय शासकों के अत्याचार,६.करों की अगधकता।

ववमभन्न इनतहासकारों ने मौयव वंश का पतन के मलए मभन्न-मभन्न कारिों का उल्लेख ककया है-

हर प्रसाद शाथरी - धाममवक नीनत (ब्राह्मि ववरोधी नीनत के कारि)

हेमचन्द्र राय चौधरी - सम्राट अशोक की अदहसंक एवं शाजन्तवप्रय नीनत। डी. डी.कौशाम्बी- आगथवक संकटग्रथत व्यवथथा का होना। डी.एन.झा-ननबवल उत्तरागधकारी रोममला थापर - मौयव साम्राज्य के पतन के मलए केन्द्रीय शासन अगधकारी तन्र का अव्यवथथा एवं अप्रमशक्षित

होना। मौयव शासन - भारत में सववप्रथम मौयव वंश के शासनकाल में ही राठरीय राजनीनतक एकता थथावपत हुइ थी। मौयव प्रशासन में सत्ता का सुदृढ केन्द्रीयकरि था परन्तु राजा ननरंकुश नहीं होता था। मौयव काल में गितन्र का ह्रास हुआ

और राजतन्रात्मक व्यवथथा सुदृढ हुई। कौदटल्य ने राज्य सप्तांक मसद्धान्त ननददवठट ककया था, जजनके आधार पर

मौयव प्रशासन और उसकी गहृ तथा ववदेश नीनत संचामलत होती थी -राजा, अमात्य जनपद, दुगव, कोर्, सेना और, ममर।

शंुग राजवंश

पुठयममर शुंग- मौयव साम्राज्य के अजन्तम शासक वृहद्रथ की हत्या करके १८४ई.पू. में पुठयममर ने मौयव साम्राज्य के

राज्य पर अगधकार कर मलया। जजस नये राजवंश की थथापना की उसे पूरे देश में शुंग राजवंश के नाम से जाना जाता है। शुंग ब्राह्मि थे। बौद्ध धमव के प्रचार-प्रसार के फ़लथवरुप अशोक द्वारा यज्ञों पर रोक लगा ददये जाने के बाद उन्होंने

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पुरोदहत का कमव त्यागकर सैननक वृनत को अपना मलया था। पुठयममर अजन्तम मौयव शासक वृहद्रथ का प्रधान सेनापनत

था। पुठयममर शुंग के पश्चात इस वंश में नौ शासक और हुए जजनके नाम थे -अजग्नममर, वसुज्येठि, वसुममर, भद्रक,

तीन अज्ञात शासक, भागवत और देवभूनत। एक ददन सेना का ननररिि करते समय वृह््थ की धोखे से हत्या कर दी। उसने ‘सेनानी’ की उपागध धारि की थी। दीिवकाल तक मौयों की सेना का सेनापनत होने के कारि पुठयममर इसी रुप में ववख्यात था तथा राजा बन जाने के बाद भी उसने अपनी यह उपागध बनाये रखी। शुंग काल में संथकृत भार्ा का पुनरुत्थान हुआ था मनुथमृनत के वतवमान थवरुप की रचना इसी युग में हुई थी। अतिः उसने ननथसंदेह राजत्व को प्राप्त

ककया था। परवती मौयों के ननबवल शासन में मगध का सरकारी प्रशासन तन्र मशगथल प़ि गया था एवं देश को आन्तररक एवं बाह्य संकटों का खतरा था। ऐसी ववकट जथथनत में पुठय ममर शुंग ने मगध साम्राज्य पर अपना अगधकार

जमाकर जहााँ एक ओर यवनों के आक्रमि से देश की रिा की और देश में शाजन्त और व्यवथथा की थथापना कर वैददक

धमव एवं आदेशों की जो अशोक के शासनकाल में अपेक्षित हो गये थे। इसी कारि इसका काल वैददक प्रनतकक्रया अथवा वैददक पुनजावगरि का काल कहलाता है। शुंग वंश के अजन्तम सम्राट देवभूनत की हत्या करके उसके सगचव वसुदेव ने

७५ ई. पू. कण्व वंश की नींंंव डाली।

शुंगकालीन संथकृनत के प्रमुख तथ्य

शुंग राजाओ ंका काल वैददक अथवा ब्राह्मि धमव का पुनजावगरि काल माना जाता है। मानव आकृनतयों के अंकन में कुशलता ददखायी गयी है। एक गचर में गरुङ सूयव तथा दसूरे में श्रीलक्ष्मी का अंकन

अत्यन्त कलापूिव है। पुठयममर शुंग ने ब्राह्मि धमव का पुनरुत्थान ककया। शुंग के सवोत्तम थमारक थतूप हैं। बोधगया के ववशाल मजन्दर के चारों और एक छोटी पार्ाि वेददका ममली है। इसका ननमावि भी शुंगकाल में हुआ

था। इसमें कमल, राजा, रानी, पुरुर्, पशु, बोगधवृि, छ्त्र, बररत्न, कल्पवृि, आदद प्रमुख हैं। थविव मुद्रा ननठक, ददनार, सुविव, माबरक कहा जाता था। तााँबे के मसक्के कार्ापवि कहलाते थे। चााँदी के मसक्के के

मलए ‘पुराि’अथवा ‘धारि’ शब्द आया है। शुंग काल में समाज में बाल वववाह का प्रचलन हो गया था। तथा कन्याओ ंका वववाह आि से १२ वर्व की आयु में

ककया जाने लगा था। शुंग राजाओ ंका काल वैददक काल की अपेिा एक ब़ेि वगव के लोगों के मजथतठक परम्परा, संथकृनत एवं ववचारधारा

को प्रनतबबजम्बत कर सकने में अगधक समथव है। शुंग काल के उत्कृठट नमूने बबहार के बोधगया से प्राप्त होते हैं। भरहुत, सांची, बेसनगर की कला भी उत्कृठट है। महाभाठय के अलावा मनुथमृनत का मौजूदा थवरुप सम्भवतिः इसी युग में रचा गया था। ववद्वानो के अनुसार शुंग

काल में ही महाभारत के शाजन्तपूिव तथा अशव्मेध का भी पररवतवन हुआ। माना जाता है की पुठयममर ने बौद्ध

धमाववलजम्बयों पर बहुत अत्याचार ककया, लेककन सम्भवतिः इसका कारि बौद्धों द्वारा ववदेशी आक्रमि अथावत

यवनों की मदद करना था। पुठयममर ने अशोक द्वारा ननमावि करवाये गये ८४ हजार थतूपों को नठट करवाया। बौद्ध ग्रन्थ ददव्यावदान के अनुसार यह भी सच है कक उसने कुछ बौद्धों को अपना मन्री ननयुक्त कर रखा था। पुरािों के अनुसार पुठयममर ने ३६ वर्ों तक शासन ककया। इस प्रकार उसका काल ई.पू से १४८ई.पू.तक माना जाता है।

पुष्यलमत्र के उत्तराधधकारी अजग्नममर- पुठयममर की मृत्यु (१४८इ.पू.) के पशच्ात उसका पुर अजग्नममर शुंग वंश का राजा हुआ। वह ववददशा का उपराजा था। उसने कुल ८ वर्ों तक शासन कीया।

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वसुज्येठि या सुज्येठि - अजग्नममर के बाद वसुज्येठि राजा हुआ।

वसुममर - शुंग वंश का चौथा राजा वसुममर हुआ। उसने यवनों को पराजजत ककया था। एक ददन नृत्य का आनन्द लेते

समय मूजदेव नामक व्यक्नत ने उसकी हत्या कर दी। उसने १० वर्ों तक शाशन ककय। वसुममर के बाद भद्रक,

पुमलदंक, िोर् तथा कफर वज्रममर क्रमशिः राजा हुए। इसके शाशन के १४वें वर्व में तिमशला के यवन नरेश

एंटीयालकी्स का राजदतू हेमलयोंडोरस उसके ववददशा जथथत दरबार में उपजथथत हुआ था। वह अत्यन्त ववलासी शाशक था। उसके अमात्य वसुदेव ने उसकी हत्या कर दी। इस प्रकार शुंग वंश का अन्त हो गया।

महत्व- इस वंश के राजाओ ंने मगध साम्रज्य के केन्द्रीय भाग की ववदेमशयों से रिा की तथा म्य भारत में शाजन्त और

सुव्यव्थथा की थथापना कर ववकेन्द्रीकरि की प्रवृवत्त को कुछ समय तक रोके रखा। मौयव साम्राज्य के ्वंसावशेर्ों पर

उन्होंने वैददक संथकृनत के आदशों की प्रनतठिा की। यही कारि है की उसका शासनकाल वैददक पुनजावगरि का काल

माना जाता है।

ववदभव युद्ध- मालववकाममरम के अनुसार पुठयममर के काल में लगभग १८४इ.पू.में ववदभव युद्ध में पुठयममर की ववजय

हुई और राज्य दो भागों में ब ददया गया। वर्ाव नदी दोनों राज्यों कीं सीमा मान ली गई। दोनो भागों के नरेश ने पुठयममर

को अपना सम्राट मान मलया तथा इस राज्य का एक भाग माधवसेन को प्राप्त हुआ। पुठयममर का प्रभाव िेर नमवदा नदी के दक्षिि तक ववथतृत हो गया।

यवनों का आक्रमि - यवनों को म्य देश से ननकालकर मसन्धु के ककनारे तक खदेङ ददया और पुठयममर के हाथों सेनापनत एवं राजा के रुप में उन्हें पराजजत होना पङा। यह पुठयममर के काल की सबसे महत्वपूिव िटना थी।

पुठयममर का शासन प्रबन्ध- साम्राज्य की राजधानी पाटमलपुर थी। पुठयममर प्राचीन मौयव साम्राज्य के म्यवती भाग

को सुरक्षित रख सकने में सफ़ल रहा। पुठयममर का साम्राज्य उत्तर में दहमालय से लेकर दक्षिि में बरार तक तथा पशग्चम में पंजाब से लेकर पूवव में मगध तक फै़ला हुआ था। ददव्यावदान और तारानाथ के अनुसार जालन्धर और

थयालकोट पर भी उसका अगधकार था। साम्राज्य के ववमभन्न भागों में राजकुमार या राजकुल के लोगो को राज्यपाल

ननयुक्त करने की परम्परा चलती रही। पुठयममर ने अपने पुरों को साम्राज्य के ववमभन्न िेरों में सह -शाशक ननयुक्त

कर रखा था। और उसका पुर अजग्नममर ववददशा का उपराजा था। धनदेव कौशल का राज्यपाल था। राजकुमार जी सेना के संचालक भी थे। इस समय भी ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई होती थी। इस काल तक आते-आते मौयवकालीन

केन्द्रीय ननयन्रि में मशगथलता आ गयी थी तथा सामंतीकरि की प्रवृवत्त सकक्रय होने लगी थीं।

कण्व राजवंश

शुंग वंश के अजन्तम शासक देवभूनत के मजन्र वसुदेव ने उसकी हत्या कर सत्ता प्राप्त कर कण्व वंश की थथापना की। कण्व वंश ने ७५इ.पू. से ३०इ.पू. तक शासन ककया। वसुदेव पाटमलपुर के कण्व वंश का प्रवतवक था। वैददक धमव एवं संथकृनत संरिि की जो परम्परा शुंगो ने प्रारम्भ की थी। उसे कण्व वंश ने जारी रखा। इस वंश का अजन्तम सम्राट

सुशमी कण्य अत्यन्त अयोग्य और दुबवल था। और मगध िेर संकुगचत होने लगा। कण्व वंश का साम्राज्य बबहार, पूवी उत्तर प्रदेश तक सीममत हो गया और अनेक प्रान्तों ने अपने को थवतन्र िोवर्त कर ददया तत्पश्चात उसका पुर

नारायि और अन्त में सुशमी जजसे सातवाहन वंश के प्रवतवक मसमुक ने पदच्युत कर ददया था। इस वंश के चार राजाओ ं

ने ७५इ.पू.से ३०इ.पू.तक शासन ककया।

आन्र व कुषाण वंश

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मगध में आन्रों का शासन था या नहीं ममलती है। कुर्ािकालीन अवशेर् भी बबहार से अनेक थथानों से प्राप्त हुए हैं। कुछ समय के पश्चात प्रथम सदी इ. में इस िेर में कुर्ािों का अमभयान हुआ। कुर्ाि शासक कननठक द्वारा पाटमलपुर

पर आक्रमि ककये जाने और यह के प्रमसद्ध बौद्ध ववद्वान अश्विोर् को अपने दरबार में प्रश्रय देने की चचाव ममलती है। कुर्ाि साम्राज्य के पतन के बाद मगध पर मलच्छववयों का शासन रहा। अन्य ववद्वान मगध पर शक मुण्डों का शासन मानते हैं।

गुप्त साम्राज्य (गुप्तकालीन बबहार)

मौयव वंश के पतन के बाद दीिवकाल तक भारत में राजनीनतक एकता थथावपत नहीं रही। कुर्ाि एवं सातवाहनों ने

राजनीनतक एकता लाने का प्रयास ककया।

मौयोत्तर काल के उपरान्त तीसरी शताब्दी इ. में तीन राजवंशो का उदय हुआ जजसमें म्य भारत में नाग शक्नत,

दक्षिि में बाकाटक तथा पूवी में गुप्त वंश प्रमुख हैं। मौयव वंश के पतन के पश्चात नठट हुई राजनीनतक एकता को पुनथथावपत करने का श्रये गुप्त वंश को है। गुप्त साम्राज्य की नींव तीसरी शताब्दी के चौथे दशक में तथा उत्थान चौथी शताब्दी की शुरुआत में हुआ। गुप्त वंश

का प्रारजम्भक राज्य आधुननक उत्तर प्रदेश और बबहार में था।

गुप्त वंश की स्थापना गुप्त राजवंश की थथापना महाराजा गुप्त ने लगभग २७५ई.में की थी। उनका वाथतववक नाम श्रीगुप्त था। गुप्त

अमभलेखों से ज्ञात होता है कक चन्द्रगुप्त प्रथम का पुर िटोत्कच था।

चन््गुप्त के मसहंासनारोहि के अवसर पर (३०२ई.) को गुप्त सम्वत भी कहा गया है। चीनी यारी इजत्संग के अनुसार

मगध के मृग मशखावन में एक मजन्दर का ननमावि करवाया था। तथा मजन्दर के व्यय में २४ गााँव को दान ददये थे।

श्रीगुप्त के समय में महाराजा की उपागध सामन्तों को प्रदान की जाती थी, अतिः श्रीगुप्त ककसी के अधीन शासक था। प्रमसद्ध इनतहासकार के. पी. जायसवाल के अनुसार श्रीगुप्त भारमशवों के अधीन छोटे से राज्य प्रयाग का शासक था।

िटोत्कच- िटोत्कच श्रीगुप्त का पुर था। २८० ई. प.ू से ३२० ई. तक गुप्त साम्राज्य का शासक बना रहा। इसने भी महाराजा की उपागध धारि की थी।

चन्द्रगुप्त प्रथम- यह िटोत्कच का उत्तरागधकारी था, जो ३२० ई. में शासक बना।

चन्द्रगुप्त गुप्त वंशावली में सबसे पहला शासक था जो प्रथम थवतन्र शासक है। यह ववदेशी को ववद्रोह द्वारा हटाकर शासक बना।

इसने नवीन सम्वत (गुप्त सम्वत) की थथापना की। इसने मलच्छवव वंश की राजकुमारी कुमार देवी से वववाह

सम्बन्ध थथावपत ककया। चन्द्रगुप्त प्रथम के शासनकाल को भारतीय इनतहास का थविव युग कहा जाता है। इसने महाराजागधराज की उपागध

धारि की थी। बाद में मलच्छवव को अपने साम्राज्य में सजम्ममलत कर मलया। इसका शासन काल (३२० ई. से ३५० ई.

तक) था। पुरािों तथा प्रयाग प्रशजथत से चन्द्रगुप्त प्रथम के राज्य के ववथतार के ववर्य में जानकारी ममलती है। चन्द्रगुप्त प्रथम तथा मलच्छवव सम्बन्ध

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चन्द्रगुप्त प्रथम ने मलच्छवव के साथ वैवादहक सम्बन्ध थथावपत ककया। वह एक दरूदशी सम्राट था। चन्द्रगुप्त ने

मलच्छववयों के सहयोग और समथवन पाने के मलए उनकी राजकुमारी कुमार देवी के साथ वववाह ककया। जथमथ के

अनुसार इस वैवादहक सम्बन्ध के पररिामथवरूप चन्द्रगुप्त ने मलच्छववयों का राज्य प्राप्त कर मलया तथा मगध उसके

सीमावती िेर में आ गया। कुमार देवी के साथ वववाह-सम्बन्ध करके चन्द्रगुप्त प्रथम ने वैशाली राज्य प्राप्त ककया। मलच्छववयों के दसूरे राज्य नेपाल के राज्य को उसके पुर समुद्रगुप्त ने ममलाया।

हेमचन्द्र राय चौधरी के अनुसार अपने महान पूवववती शासक बबजम्बसार की भााँनत चन्द्रगुप्त प्रथम ने मलच्छवव

राजकुमारी कुमार देवी के साथ वववाह कर द्ववतीय मगध साम्राज्य की थथापना की।

उसने वववाह की थमृनत में राजा-रानी प्रकार के मसक्कों का चलन करवाया। इस प्रकार थपठट है कक मलच्छववयों के साथ

सम्बन्ध थथावपत कर चन्द्रगुप्त प्रथम ने अपने राज्य को राजनैनतक दृजठट से सुदृढ तथा आगथवक दृजठट से समृद्ध बना ददया। राय चौधरी के अनुसार चन्द्रगुप्त प्रथम ने कौशाम्बी तथा कौशल के महाराजाओ ंको जीतकर अपने राज्य में ममलाया तथा साम्राज्य की राजधानी पाटमलपुर में थथावपत की।

समुद्रगुप्त- चन्द्रगुप्त प्रथम के बाद ३५० ई. में उसका पुर समुद्रगुप्त राजमसहंासन पर बैिा। समुद्रगुप्त का जन्म

मलच्छवव राजकुमारी कुमार देवी के गभव से हुआ था। सम्पूिव प्राचीन भारतीय इनतहास में महानतम शासकों के रूप में वह नाममत ककया जाता है। इन्हें परक्रमांक कहा गया है। समुद्रगुप्त का शासनकाल राजनैनतक एवं सांथकृनतक दृजठट से

गुप्त साम्राज्य के उत्कर्व का काल माना जाता है। इस साम्राज्य की राजधानी पाटमलपुर थी।

हरररे्ि समुद्रगुप्त का मन्री एवं दरबारी कवव था। हरररे्ि द्वारा रगचत प्रयाग प्रशजथत से समुद्रगुप्त के राज्यारोहि,

ववजय, साम्राज्य ववथतार के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है।

समुद्रगुप्त ने महाराजागधराज की उपागध धारि की। ववन्सेट जथमथ ने इन्हें नेपोमलयन की उपगध दी। समुद्रगुप्त एक असाधारि सैननक योग्यता वाला महान ववजजत सम्राट था। यह उच्चकोदट का ववद्वान तथा ववद्या का उदार संरिक था। उसे कववराज भी कहा गया है। वह महान संगीतज्ञ था जजसे वीिा वादन का शौक था। इसने प्रमसद्ध

बौद्ध ववद्वान वसुबन्धु को अपना मन्री ननयुक्त ककया था।

काव्यालंकार सूर में समुद्रगुप्त का नाम चन्द्रप्रकाश ममलता है। उसने उदार, दानशील, असहायी तथा अनाथों को अपना आश्रय ददया। समुद्रगुप्त एक धमवननठि भी था लेककन वह दहन्द ूधमव मत का पालन करता था। वैददक धमव के

अनुसार इन्हें धमव व प्राचीर बन्ध यानी धमव की प्राचीर कहा गया है।

समुद्रगुप्त का साम्राज्य- समुद्रगुप्त ने एक ववशाल साम्राज्य का ननमावि ककया जो उत्तर में दहमालय से लेकर दक्षिि में ववन््य पववत तक तथा पूवव में बंगाल की खा़िी से पशग्चम में पूवी मालवा तक ववथतृत था। कश्मीर, पशग्चमी पंजाब,

पशग्चमी राजपूताना, मसन्ध तथा गुजरात को छो़िकर समथत उत्तर भारत इसमें सजम्ममलत थे।

दक्षििापथ के शासक तथा पशग्चमोत्तर भारत की ववदेशी शक्नतयााँ उसकी अधीनता थवीकार करती थीं।

समुद्रगुप्त के काल में सददयों के राजनीनतक ववकेन्द्रीकरि तथा ववदेशी शक्नतयों के आगधपत्य के बाद आयाववतव पुनिः नैनतक, बौद्गधक तथा भौनतक उनन्नत की चोटी पर जा पहुाँचा था।

रामगुप्त- समुद्रगुप्त के बाद रामगुप्त सम्राट बना, लेककन इसके राजा बनने में ववमभनन् ववद्वानों में मतभेद है|

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ववमभनन् साक्ष्यों के आधार पर पता चलता है कक समुद्रगुप्त के दो पुर थे- रामगुप्त तथा चन्द्रगुप्त। रामगुप्त ब़िा होने

के कारि वपता की मृत्यु के बाद गद्दी पर बैिा, लेककन वह ननबवल एवं कायर था। वह शकों द्वारा पराजजत हुआ और

अत्यन्त अपमानजनक सजन्ध कर अपनी पतन्ी रुवथवाममनी को शकराज को भेंट में दे ददया था, लेककन उसका छोटा भाई चन्द्रगुप्त द्ववतीय ब़िा ही वीर एवं थवामभमानी व्यक्नत था। वह छद्म भेर् में रुवथवाममनी के वेश में शकराज के

पास गया। फलतिः रामगुप्त ननन्दनीय होता ग्श। तत्पशच्ात ्चन्द्रगुप्त द्ववतीय ने अपने ब़ेि भाई रामगुप्त की हत्या कर दी। उसकी पतन्ी से वववाह कर मलया और गुप्त वंश का शासक बन बैिा।

चन्द्रगुप्त द्ववतीय ववक्रमाददत्य- चन्द्रगुप्त द्ववतीय ३७५ ई. में मसहंासन पर आसीन हुआ। वह समुद्रगुप्त की प्रधान

मदहर्ी दत्तदेवी से हुआ था। वह ववक्रमाददत्य के नाम से इनतहास में प्रमसद्ध हुआ। उसने ३७५ से ४१५ ई. तक (४० वर्व) शासन ककया।

हालांकक चन्द्रगुप्त द्ववतीय का अन्य नाम देव, देवगुप्त, देवराज, देवश्री आदद हैं। उसने ववक्रयांक, ववक्रमाददत्य, परम

भागवत आदद उपागधयााँ धारि की। उसने नागवंश, वाकाटक और कदम्ब राजवंश के साथ वैवादहक सम्बन्ध थथावपत

ककये। चन्द्रगुप्त द्ववतीय ने नाग राजकुमारी कुबेर नागा के साथ वववाह ककया जजससे एक कन्या प्रभावती गुप्त पैदा हुई। वाकाटकों का सहयोग पाने के मलए चन्द्रगुप्त ने अपनी पुरी प्रभावती गुप्त का वववाह वाकाटक नरेश रूद्रसेन

द्ववतीय के साथ कर ददया। उसने प्रभावती गुप्त के सहयोग से गुजरात और कादियावा़ि की ववजय प्राप्त की।

वाकाटकों और गुप्तों की सजम्ममलत शक्नत से शकों का उन्मूलन ककया। कदम्ब राजवंश का शासन कंुतल

(कनावटक) में था। चन्द्रगुप्त के पुर कुमारगुप्त प्रथम का वववाह कदम्ब वंश में हुआ। चन्द्रगुप्त द्ववतीय के शासनकाल को थविव युग भी कहा गया है। चन्द्रगुप्त द्ववतीय के समय में ही फाह्यान नामक

चीनी यारी (३९९ ई.) आया था।

चन्द्रगुप्त द्ववतीय की ववजय यारा चन्द्रगुप्त एक महान प्रतापी सम्राट था। उसने अपने साम्राज्य का और ववथतार ककया।

(१) शक ववजय- पशग्चम में शक िरप शक्नतशाली साम्राज्य था। ये गुप्त राजाओ ंको हमेशा परेशान करते थे। शक

गुजरात के कादियावा़ि तथा पशग्चमी मालवा पर राज्य करते थे। ३८९ ई. ४१२ ई. के म्य चन्द्रगुप्त द्ववतीय द्वारा शकों पर आक्रमि कर ववजजत ककया।

(२) वाहीक ववजय- महाशैली थतम्भ लेख के अनुसार चन्द्र गुप्त द्ववतीय ने मसन्धु के पााँच मुखों को पार कर वादहकों पर ववजय प्राप्त की थी। वादहकों का समीकरि कुर्ािों से ककया गया है, पंजाब का वह भाग जो व्यास का ननकटवती भाग है।

(३) बंगाल ववजय- महाशैली थतम्भ लेख के अनुसार यह ज्ञात होता है कक चन्द्र गुप्त द्ववतीय ने बंगाल के शासकों के

संि को पराथत ककया था।

(४) गिराज्यों पर ववजय- पशग्चमोत्तर भारत के अनेक गिराज्यों द्वारा समुद्रगुप्त की मृत्यु के पशच्ात ्अपनी थवतन्रता िोवर्त कर दी गई थी।

पररिामतिः चन्द्रगुप्त द्ववतीय द्वारा इन गिरज्यों को पुनिः ववजजत कर गुप्त साम्राज्य में ववलीन ककया गया। अपनी ववजयों के पररिामथवरूप चन्द्रगुप्त द्ववतीय ने एक ववशाल साम्राज्य की थथापना की। उसका साम्राज्य पशग्चम में

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गुजरात से लेकर पूवव में बंगाल तक तथा उत्तर में दहमालय की तापिटी से दक्षिि में नमवदा नदी तक ववथतृत था। चन्द्रगुप्त द्ववतीय के शासन काल में उसकी प्रथम राजधानी पाटमलपुर और द्ववतीय राजधानी उज्जनयनी थी।

चन्द्रगुप्त द्ववतीय का काल कला-सादहत्य का थविव युग कहा जाता है। उसके दरबार में ववद्वानों एवं कलाकारों को आश्रय प्राप्त था। उसके दरबार में नौ रतन् थे- कामलदास, धन्वन्तरर, िपिक, अमरमसहं, शंकु, बेताल भट्ट, िटकपवर,

वाराहममदहर, वररुगच उल्लेखनीय थे।

ननथसंदेह चन्द्रगुप्त द्ववतीय का काल ब्राह्मि धमव का चरमोत्कर्व का काल रहा था।

कुमारगुप्त प्रथम (४१५ ई. से ४५५ ई.)- चन्द्रगुप्त द्ववतीय के पशच्ात ्४१५ ई. में उसका पुर कुमारगुप्त प्रथम मसहंासन

पर बैिा। वह चन्द्रगुप्त द्ववतीय की पतन्ी रुवदेवी से उत्पनन् सबसे ब़िा पुर था, जबकक गोववन्दगुप्त उसका छोटा भाई था। यह कुमारगुप्त के बसाि (वैशाली) का राज्यपाल था।

कुमारगुप्त प्रथम का शासन शाजन्त और सुव्यवथथा का काल था। साम्राज्य की उनन्नत के पराकाठिा पर था। इसने

अपने साम्राज्य का अगधक संगदित और सुशोमभत बनाये रखा। गुप्त सेना ने पुठयममरों को बुरी तरह पराथत ककया था।

कुमारगुप्त ने अपने ववशाल साम्राज्य की पूरी तरह रिा की जो उत्तर में दहमालय से दक्षिि में नमवदा तक तथा पूवव में बंगाल की खा़िी से लेकर पशग्चम में अरब सागर तक ववथतृत था।

कुमारगुप्त प्रथम के अमभलेखों या मुद्राओ ंसे ज्ञात होता है कक उसने अनेक उपागधयााँ धारि कीं। उसने महेन्द्र

कुमार, श्री महेन्द्र, श्री महेन्द्र मसहं, महेन्द्रा ददव्य आदद उपागध धारि की थी। ममलरक्द अमभलेख से ज्ञात होता है कक कुमारगुप्त के साम्राज्य में चतुददवक सुख एव ंशाजन्त का वातावरि

ववद्यमान था। कुमारगुप्त प्रथम थवयं वैठिव धमावनुयायी था, ककन्तु उसने धमव सदहठिुता की नीनत का पालन ककया। गुप्त शासकों में सवावगधक अमभलेख कुमारगुप्त के ही प्राप्त हुए हैं। उसने अगधकागधक संक्या में मयूर आकृनत की

रजत मुद्राएं प्रचमलत की थीं। उसी के शासनकाल में नालन्दा ववशव्ववद्यालय की थथापना की गई थी। कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल की प्रमुख िटनओ ंका ननम्न वववरि है- १. पुठयममर से युद्ध- भीतरी अमभलेख से ज्ञात होता है कक कुमारगुप्त के शासनकाल के अजन्तम िि में शाजन्त नहीं थी। इस काल में पुठयममर ने गुप्त साम्राज्य पर आक्रमि ककया। इस युद्ध का संचालन कुमारगुप्त के पुर थकन्दगुप्त

ने ककया था। उसने पुठयममर को युद्ध में पराथत ककया।

२. दक्षििी ववजय अमभयान- कुछ इनतहास के ववद्वानों के मतानुसार कुमारगुप्त ने भी समुद्रगुप्त के समान दक्षिि

भारत का ववजय अमभयान चलाया था, लेककन सतारा जजले से प्राप्त अमभलेखों से यह थपठट नहीं हो पाता है।

अशव्मेध यज्ञ- सतारा जजले से प्राप्त १,३९५ मुद्राओ ंव लेकर पुर से १३ मुद्राओ ंके सहारे से अशव्मेध यज्ञ करने की पुजठट होती है।

थकन्दगुप्त (४५५ ई. से ४६७ ई.)- पुठयममर के आक्रमि के समय ही गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम की ४५५ ई. में मृत्यु

हो गयी थी।

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उसकी मृत्यु के बाद उसका पुर थकन्दगुप्त मसहंासन पर बैिा। उसने सववप्रथम पुठयममर को पराजजत ककया और उस

पर ववजय प्राप्त की। उसने १२ वर्व तक शासन ककया। थकन्दगुप्त ने ववक्रमाददत्य, क्रमाददत्य आदद उपागधयााँ धारि

कीं। कहीय अमभलेख में थकन्दगुप्त को शक्रोपन कहा गया है।

उदारता एवं परोपकररता का कायव- थकन्दगुप्त का शासन ब़िा उदार था जजसमें प्रजा पूिवरूपेि सुखी और समृद्ध थी। थकन्दगुप्त एक अत्यन्त लोकोपकारी शासक था जजसे अपनी प्रजा के सुख-दुिःख की ननरन्तर गचन्ता बनी रहती थी।

जूनागढ अमभलेख से पता चलता है कक थकन्दगुप्त के शासन काल में भारी वर्ाव के कारि सुदशवन झील का बााँध टूट

गया था उसने दो माह के भीतर अतुल धन का व्यय करके पत्थरों की ज़िाई द्वारा उस झील के बााँध का पुनननवमावि

करवा ददया।

हूिों का आक्रमि- हूिों का प्रथम आक्रमि थकन्दगुप्त के काल में हुआ था। हूि म्य एमशया की एक बबवर जानत थी। हूिों ने अपनी जनसंख्या और प्रसार के मलए दो शाखाओ ंमें ववभाजजत होकर ववशव् के ववमभनन् िेरों में फैल गये। पूवी शाखा के हूिों ने भारत पर अनेकों बार आक्रमि ककया। थकन्दगुप्त ने हूिों के आक्रमि से रिा कर अपनी संथकृनत

को नठट होने से बचाया।

पुरुगुप्त- पुरुगुप्त बुढापा अवथथा में राजमसहंासन पर बैिा था फलतिः वह सुचारु रूप से शासन को नहीं चला पाया और

साम्राज्य का पतन प्रारम्भ हो गया।

कुमारगुप्त द्ववतीय- पुरुगुप्त का उत्तरागधकारी कुमारगुप्त द्ववतीय हुआ। सारनाथ लेख में इसका समय ४४५ ई.

अंककत है।

बुधगुप्त- कुमारगुप्त द्ववतीय के बाद बुधगुप्त शासक बना जो नालन्दा से प्राप्त मुहर के अनुसार पुरुगुप्त का पुर था। उसकी मााँ चन्द्रदेवी था। उसने ४७५ ई. से ४९५ ई. तक शासन ककया।

ह्वेनसांग के अनुसार वह बौद्ध मत अनुयायी था। उसने नालन्दा बौद्ध महाववहार को काफी धन ददया था।

नरमसहंगुप्त बालाददत्य- बुधगुप्त की मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई नरमसहंगुप्त शासक बना।

इस समय गुप्त साम्राज्य तीन भागों क्रमशिः मगध, मालवा तथा बंगाल में बाँट गया। मगध में नरमसहंगुप्त, मालवा में भानुगुप्त, बबहार में तथा बंगाल िेर में वैन्यगुप्त ने अपना थवतन्र शसन थथावपत ककया। नरमसहंगुप्त तीनों में सबसे

अगधक शक्नतशाली राजा था। हूिों का कुरु एवं अत्याचारी आक्रमि ममदहरकुल को पराजजत कर ददया था। नालन्दा मुद्रा लेख में नरमसहंगुप्त को परम भागवत कहा गया है।

कुमारगुप्त तृतीय- नरमसहंगुप्त के बाद उसका पुर कुमारगुप्त तृतीय मगध के मसहंासन पर बैिा। वह २४ वााँ शासक

बना। कुमारगुप्त तृतीय गुप्त वंश का अजन्तम शासक था।

गोववन्दगुप्त का ववद्रोह- यह थकन्दगुप्त का छोटा चाचा था, जो मालवा के गवनवर पद पर ननयुक्त था। इसने

थकन्दगुप्त के ववरुद्ध ववद्रोह कर ददया। थकन्दगुप्त ने इस ववद्रोह का दमन ककया।

वाकाटकों से युद्ध- मन्दसौर मशलालेख से ज‘जात होता है कक थकन्दगुप्त की प्रारजम्भक कदिनाइयों का फायदा उिाते

हुए वाकाटक शासक नरेन्द्र सेन ने मालवा पर अगधकार कर मलया परन्तु थकन्दगुप्त ने वाकाटक शासक नरेन्द्र सेन को पराजजत कर ददया।

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गुप्त साम्राज्य की अवनत- थकन्दगुप्त राजवंश का आणखरी शक्नतशाली सम्राट था। ४६७ ई. उसका ननधन हो गया। थकन्दगुप्त के बाद इस साम्राज्य में ननम्नमलणखत प्रमुख राजा हुए-

पुरुगुप्त- यह कुमारगुप्त का पुर था और थकन्दगुप्त का सौतेला भाई था। थकन्दगुप्त का कोई अपना पुर नहीं था।

दामोदरगुप्त- कुमरगुप्त के ननधन के बाद उसका पुर दामोदरगुप्त राजा बना। ईशान वमाव का पुर सवववमाव उसका प्रमुख प्रनतद्वन्दी मौखरर शासक था। सवववमाव ने अपने वपता की पराजय का बदला लेने हेतु युद्ध ककया। इस युद्ध में दामोदरगुप्त की हार हुई। यह युद्ध ५८२ ई. के आस-पस हुआ था।

महासेनगुप्त- दामोदरगुप्त के बाद उसका पुर महासेनगुप्त शासक बना था। उसने मौखरर नरेश अवजन्त वमाव की अधीनता थवीकार कर ली। महासेनगुप्त ने असम नरेश सुजथथत वमवन को ब्राह्मि नदी के तट पर पराजजत ककया।

अफसढ लेख के अनुसार महासेनगुप्त बहुत पराक्रमी था।

देवगुप्त- महासेनगुप्त के बाद उसका पुर देवगुप्त मलवा का शासक बना। उसके दो सौतेले भाई कुमारगुप्त और

माधवगुप्त थे।

देवगुप्त ने गौ़ि शासक शशांक के सहयोग से कनन्ौज के मौखरर राज्य पर आक्रमि ककया और गहृ वमाव की हत्या कर

दी।

प्रभाकर वधवन के ब़ेि पुर राज्यवधवन ने शीघ्र ही देवगुप्त पर आक्रमि करके उसे मार डाल्श।

माधवगुप्त- हर्ववधवन के समय में माधवगुप्त मगध के सामन्त के रूप में शासन करता था। वह हर्व का िननठि ममर

और ववशव्ासपार था। हर्व जब शशांक को दजण्डत करने हेतु गया तो माधवगुप्त साथ गया था। उसने ६५० ई. तक

शासन ककया।

हर्व की मृत्यु के उपरान्त उत्तर भारत में अराजकता फैली तो माधवगुप्त ने भी अपने को थवतन्र शासक िोवर्त ककया।

गुप्तोत्तर बबहार

गुप्त साम्राज्य का ५५० ई. में पतन हो गया। गुप्त वंश के पतन के बाद भारतीय राजनीनत में ववकेन्द्रीकरि एवं अननशग्चतता का माहौल उत्पनन् हो गया। अनेक थथानीय सामन्तों एवं शासकों ने साम्राज्य के ववथतृत िेरों में अलग-अलग छोते-छोटे राजवंशों की थथापना कर ली। इसमें एक था- उत्तर गुप्त राजवंश। इस राजवंश ने करीब दो शताजब्दयों तक शासन ककया। इस वंश के लेखों में चक्रवती गुप्त राजाओ ंका उल्लेख नहीं है।

परवती गुप्त वंश के संथथापक कृठिगुप्त ने (५१० ई. ५२१ ई.) थथापना की।

अफसढ लेख के अनुसार मगध उसका मूल थथान था, जबकक ववद्वानों ने उनका मूल थथान मालवा कहा गया है। उसका उत्तरागधकारी हर्वगुप्त हुआ है। उत्तर गुप्त वंश के तीन शासकों ने शासन ककया। तीनों शासकों ने मौखरर वंश से

मैरीपूिव सम्बन्ध कायम रह।

कुमारगुप्त- यह उत्तर गुप्त वंश का चौथा राजा था जो जीववत गुप्त का पुर था। यह शासक अत्यन्त शक्नतशाली एवं महत्वाकांिी था। इसने महाराजागधराज की उपागध धारि की। उसका प्रनतद्वन्दी मौखरर नरेश ईशान वमाव समान रूप

से महत्वाकांिी शासक था। इस समय प्रयाग में पूठयाजवन हेतु प्रािान्त करने की प्रथा प्रचमलत थी।

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हांग गांगेय देव जैसे शसकों का अनुसरि करते हुए कुमार गुप्त ने प्रयाग जाकर थवगव प्राजप्त की लालसा से अपने

जीवन का त्याग ककया।

पाल वंश

यह पूवव म्यकालीन राजवंश था। जब हर्ववधवन काल के बाद समथत उत्तरी भारत में राजनीनतक, सामाजजक एवं आगथवक गहरा संकट उत्पन६न हो गया, तब बबहार, बंगाल और उ़िीसा के सम्पूिव िेर में पूरी तरह अराजकत फैली थी।

इसी समय गोपाल ने बंगाल में एक थवतन्र राज्य िोवर्त ककया। जनता द्वारा गोपाल को मसहंासन पर आसीन ककया गया था। वह योग्य और कुशल शासक था, जजसने ७५० ई. से ७७० ई. तक शासन ककया। इस दौरान उसने औदंतपुरी (बबहार शरीफ) में एक मि तथा ववशव्ववद्यालय का ननमावि करवाया। पाल शासक बौद्ध धमव को मानते थे। आिवीं सदी के म्य में पूवी भारत में पाल वंश का उदय हुआ। गोपाल को पाल वंश का संथथापक माना जाता है।

धमवपाल (७७०-८१० ई.)- गोपाल के बाद उसका पुर धमवपाल ७७० ई. में मसहंासन पर बैिा। धमवपाल ने ४० वर्ों तक

शासन ककया। धमवपाल ने कनन्ौज के मलए बरदलीय संिर्व में उलझा रहा। उसने कनन्ौज की गद्दी से इंद्रायूध को हराकर चक्रायुध को आसीन ककया। चक्रायुध को गद्दी पर बैिाने के बाद उसने एक भव्य दरबार का आयोजन ककया तथा उत्तरापथ थवाममन की उपागध धारि की। धमवपाल बौद्ध धमाववलम्बी था। उसने काफी मि व बौद्ध ववहार

बनवाये।

उसने भागलपुर जजले में जथथत ववक्रममशला ववशव्ववद्यालय का ननमावि करवाया था। उसके देखभाल के मलए सौ गााँव

दान में ददये थे। उल्लेखनीय है कक प्रनतहार राजा नागभट्ट द्ववतीय एवं राठरकूट राजा रुव ने धमवपाल को पराजजत

ककया था।

देवपाल (८१०-८५० ई.)- धमवपाल के बाद उसका पुर देवपाल गद्दी पर बैिा। इसने अपने वपता के अनुसार ववथतारवादी नीनत का अनुसरि ककया। इसी के शासनकाल में अरब यारी सुलेमान आया था। उसने मुंगेर को अपनी राजधानी बनाई। उसने पूवोत्तर में प्राज्योनतर्पुर, उत्तर में नेपाल, पूवी तट पर उ़िीसा तक ववथतार ककया। कनन्ौज के संिर्व में देवपाल ने भाग मलया था। उसके शासनकाल में दक्षिि-पूवव एमशया के साथ भी मैरीपूिव सम्बन्ध रहे। उसने जावा के

शासक बालपुरदेव के आग्रह पर नालन्दा में एक ववहार की देखरेख के मलए ५ गााँव अनुदान में ददए।

देवपाल ने ८५० ई. तक शासन ककया था। देवपाल के बाद पाल वंश की अवननत प्रारम्भ हो गयी। ममदहरभोज और

महेन्द्रपाल के शासनकाल में प्रनतहारों ने पूवी उत्तर प्रदेश और बबहार के अगधकांश भागों पर अगधकार कर मलया। ११वीं सदी में महीपाल प्रथम ने ९८८ ई.-१००८ ई. तक शासन ककया। महीफाल को पाल वंश का द्ववतीय संथथापक

कहा जाता है। उसने समथत बंगाल और मगध पर शासन ककया। महीपाल के बाद पाल वंशीय शासक ननबवल थे जजससे आन्तररक द्वेर् और सामन्तों ने ववद्रोह उत्पनन् कर ददया

था। बंगाल में केवतव, उत्तरी बबहार मॆम सेन आदद शक्नतशाली हो गये थे। रामपाल के ननधन के बाद गह़िवालों ने बबहार में शाहाबाद और गया तक ववथतार ककया था। सेन शसकों वल्लासेन और ववजयसेन ने भी अपनी सत्ता का ववथतार ककया। इस अराजकता के पररवेश में तुकों का आक्रमि प्रारम्भ हो गया।