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Ĥभु Įी राम जी का आशीवा[द सब पर सदा बना रहे (S. Sood ) उ×तर काÖड Įी गणेशाय नमः Įीजानकȧवãलभो वजयते Įीरामचǐरतमानस सÜतम सोपान (उ×तरकाÖड) æलोक के कȧकÖठाभनीलं सुरवरवलसɮवĤपादाÞजचéनं शोभाɭयं पीतवèğं सरसजनयनं सव[दा सुĤसÛनम ्। पाणौ नाराचचापं कपǓनकरयुतं बÛधुना सेåयमानं नौमीɬयं जानकȧशं रघुवरमǓनशं पुçपकाǾढरामम ्।।1।। कोसलेÛġपदकÑजमÑजुलौ कोमलावजमहेशविÛदतौ। जानकȧकरसरोजलालतौ चÛतकèय मनभृɨगसɬगनौ।। 2।। कु ÛदइÛदुदरगौरसुÛदरं अिàबकापǓतमभीçटसƨदम ्। काǽणीककलकÑजलोचनं नौम शंकरमनंगमोचनम ्।।3।। दो0-रहा एक Ǒदन अवध कर अǓत आरत पुर लोग। जहँ तहँ सोचǑहं नाǐर नर कृ स तन राम ǒबयोग।। –*–*– सगुन होǑहं सुंदर सकल मन ĤसÛन सब के र। Ĥभु आगवन जनाव जनु नगर रàय चहु ँ फे र।। कौसãयाǑद मातु सब मन अनंद अस होइ। आयउ Ĥभु Įी अनुज जुत कहन चहत अब कोइ।। भरत नयन भुज दिÍछन फरकत बारǑहं बार। जाǓन सगुन मन हरष अǓत लागे करन ǒबचार।। रहेउ एक Ǒदन अवध अधारा। समुझत मन दुख भयउ अपारा।। कारन कवन नाथ नǑहं आयउ। जाǓन कु Ǒटल कधɋ मोǑह ǒबसरायउ।।

Shri ram katha uttarkand

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Open to download & Please Respect Every Religion तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं - रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।। मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।। रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।। त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।। (बा.35) वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है। श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे । मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन

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