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assets.vmou.ac.inassets.vmou.ac.in/MAPA07.pdf · राजèथान का, भारतीय गणतं क ' jव gभÛन इकाइय I म E समाज—ऐ Óतहासक

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    पा य म अ भक प स म त अ य ो. (डॉ.) नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा(राज थान)

    संयोजक / सद य संयोजक एवं सम वयक ो. पी.सी. माथुर

    परामशदाता (लोक शासन) वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    सद य ो. अर व द शमा

    आचाय, बधं वकास सं थान गड़ुगांव

    ो.(डॉ.) अनाम जैतल आचाय, राजनी त व ान वभाग वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    ो.(डॉ.) पी.डी. शमा आचाय(सेवा नवृ त), राजनी त व ान वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    ो.(डॉ.) आर.वी. जैन आचाय(सेवा नवृ त), राजनी त व ान वभाग द ल व व व यालय, द ल

    ो. अशोक शमा आचाय(सेवा नवृ त), लोक शासन वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    ो.(डॉ.) र व शमा आचाय(सेवा नवृ त), लोक शासन वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    ो. राजे जोशी आचाय, राजनी त व ान वभाग मह ष दयान द सर वती व यालय, अजमेर

    ो.(डॉ.) बी.एम. चतलंगी आचाय, लोक शासन वभाग जय नारायण यास व व व यालय, जोधपरु

    डॉ. ल ला राम गुजर सह आचाय, राजनी त व ान वभाग वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    डॉ. अशोक शमा सह आचाय, राजनी त व ान वभाग वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    स पादन ो.(डॉ.) अनाम जैतल

    आचाय, राजनी त व ान वभाग वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    डॉ. ल ला राम गुजर सह आचाय, राजनी त व ान वभाग

    वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    डॉ. अशोक शमा सह आचाय, राजनी त व ान वभाग

    वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा संपादक पाठ लेखक (इकाई सं या ) पाठ लेखक (इकाई सं या) ो. पी.सी. माथुर

    परामशदाता (लोक शासन) वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    1 डॉ. ओ.पी. मीणा या याता, लोक शासन वभाग राजक य महा व यालय, ट क

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    ो. (डॉ.) नरेश दाधीच आचाय, राजनी त व ान राज थान व व व यालय, जयपरु तथा स त कुलप त वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    2 डॉ. अ नल पार क या याता, लोक शासन वभाग राजक य महा व यालय, कोटा

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    ो. (डॉ.) च मौ ल सहं आचाय(सेवा नवृ त), लोक शासन वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    3 डॉ. सु ी मीना सोगानी सह आचाय(से. न.) लोक शासन वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

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    ो. (डॉ.) हो शयार सहं कुलप त(सेवा नवृ त) बीकानेर व व व यालय, बीकानेर

    4 डॉ. शंकर सरो लया पु लस महा नर क (से. न.) जयपरु

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    ीमती शारदा गो वामी या याता, लोक शासन वभाग कानो डया महा व यालय, जयपरु

    5 डॉ. राकेश हूजा अ त र त मु य स चव एव ंअ य राज थान रेवे यू बोड, अजमेर

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    ो.(डॉ.) र व शमा आचाय(सेवा नवृ त), लोक शासन वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    11 ीमती मीना ी हूजा स चव, राज थान रा यपाल जयपरु

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    अकाद मक एवं शास नक यव था ो. (डॉ.) नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खलुा व व व यालय,कोटा

    ो.(डॉ.) अनाम जैतल नदेशक

    सकंाय वभाग वधमान महावीर खलुा व व व यालय,कोटा

    ो.(डॉ.) पी.के. शमा नदेशक

    पा य साम ी उ पादन एव ं वतरण वभाग वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    पा य म उ पादन योगे गोयल

    सहायक उ पादन अ धकार , वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    उ पादन- अ लै 2009 ISBN – 13/978-81-8496-033-4 इस साम ी के कसी भी अंश को व. म. खु. व., कोटा क ल खत अनुम त के बना कसी भी प मे ‘ म मयो ाफ ’ (च मु ण) वारा या अ य पुनः तुत करने क अनुम त नह ं है।

    व. म. खु. व., कोटा के लये कुलस चव व. म. खु. व., कोटा (राज.) वारा मु त एवं का शत।

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    वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    राज थान के वशेष संदभ म भारत म रा य शासन

    वषय सूची इकाई सं. इकाई का नाम पृ ठ सं या इकाई - 1 राज थान म रा य शासन : एक पा रि थ तक व लेषण 8—16 इकाई - 2 के रा य स ब ध : वधायी और शास नक 17—26 इकाई - 3 भारत म के -रा य व तीय स ब ध 27—41 इकाई - 4 भारत म शास नक सुधार एव ंभ व य के लये काय सचूी 42—52 इकाई – 5 मु यमं ी : पद, शि तया ंतथा रा यपाल से स ब ध 53—63 इकाई - 6 राज थान लोक सेवा आयोग 64—75 इकाई - 7 रा य स चवालय 76—87 इकाई – 8 मु य स चव : रा य शासन म उसक भू मका एव ंमह व 88—95 इकाई – 9 गहृ वभाग 96—113 इकाई – 10 िजलाधीश 114—119 इकाई – 11 उपिजला शासन क भू मका एव ंकाय : उपख ड अ धकार , तहसीलदार,

    एव ंपटवार के संदभ म 120—133

    इकाई – 12 रा य एव ंनीचे के तर पर जनजा त वकास हेतु शास नक तं 134—140

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    इकाई— 01 राज थान रा य शासन : एक पा रि थक व लेषण

    इकाई क परेखा 1.0 उ े य 1.1 तावना 1.2 भारत म शास नक पर परा 1.3 राज थान म शास नक पर परा 1.4 भ—ूआ थक पा रि थक 1.5 राज थान म शास नक वकास 1.6 न कष 1.7 अ यास न 1.8 संदभ थ सचूी

    1.0 उ े य इस इकाई के अ ययन के बाद आप जान पायगे –

    भारत म शास नक पर परा के बारे म, राज थान म शास नक पर परा क जानकार , राज थान क शास नक पृ ठभू म राज थान म शास नक वकास का ववेचन ।

    1.1 तावना राज थान का, भारतीय गणतं क व भ न इकाइय म समाज—ऐ तहा सक व पा रि थ तक

    आधार पर एक व श ट मह व है । लोक शासन के व या थय को इस व श टता के मह व को समझ लेना अ त आव यक है, य क, साधारण तौर पर सं वधान क यव थाओं व शास नक तं को व प भारत क व भ न इकाइय म ाय: वणना मक ि ट से एक प ह दखाई देता है । भारतीय सं वधान के अनसुार रा य को एक व श ट कार क इकाई माना गया है तथा वतमान म भारत के स पणू े को प चीस रा य व छ: के शास नक देश म बांट दया गया हे । े —फल, आकार, सामािजक सरंचना व आ थक वकास क ि ट से इन सभी रा य म समता अथवा एक पता नह ं है; ले कन संवधैा नक ि ट से ाय: सभी रा य को समान शि तयां व संगठना मक संरचना दान क गई है । अतएव सामा यतया लोक शासन के व या थय का यान रा य शासन क व श टताओं क ओर नह ंजाता है । राज थान के स दभ म रा य शासन के अ ययनकताओं को उसक पा रि थक प रि थ तय पर वशेष यान देना चा हए ।

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    1.2 भारत म शास नक पर परा भारत क ाचीन स यता म शासन के स ा त व शासन क यव थाओं के त च तन

    क कई शताि दय क पर परा है, य य प हम वै दक अथवा अ त ाचीन काल म च लत शासन त का व ततृ प से ान ा त नह ं है, तथा प अशोक महान व च गु त जैसे परा मी शासक के इ तहास से यह तो प ट हो ह जाता है क भारतीय नाग रक के लए, शासन कोई नई सं था अथवा या नह ंहै । इन ाचीन वचारधाराओं व सं थागत पर पराओं का नवाह मौय काल से लेकर समु गु त व च गु त जसेै च वत शासक के काल म हुआ तथा इसके प चात भी हषवधन जैसे स ाट इसी कार क शासन प त का अनसुरण करत ेरहे । भारत के इ तहास म कह —ंकह ं गणरा य को भी उ लेख मलता है, पर त ुचाहे राजत हो या गणत शास नक या म ाय: रा य का व तार छोटा हो गया, पर तु फर भी शास नक ढांचे म नर तरता बनी रह , िजसका उपयोग मुगल सा ा य म अकबर जसेै सु व शासक ने कया । इ ह ं पर पराओं व णा लय का प रव तत प अं ेज शासक ने अपनाया तथा वतमान भारत म भी इन शासक य पर पराओं का अवल बन कर रखा है ।

    मूल प से भारतीय शासन का संगठन बहु तर य रहा है । इस बहु तर यता क जड़ भारत क ामीण यव था म न हत ह, िजसम अ धकांश ामवासी छोटे—छोटे गांव म कृ ष धान जीवन यतीत करते रहे । भारत के अ धकाशं भाग म म ी उपजाऊ होते हु ए भी यहां क कृ ष वषा पर नभर थी तथा समाज व स यता यनूीकरण क यव थाओं तथा अ नि चतताओं का नराकरण अथवा यनूीकरण करने क आकां ाओं से उ े रत व आ छा दत थी ंइस लए, भारतीय ामवा सय क यह वाभा वक कृ त सी बन गई थी क अपनी सभी आ थक, सामािजक व भौ तक आव यकताओं क

    पू त अ धक से अ धक वावलं बत प से कर ल । येक छोटे से छोटा गांव इस कार एक सामािजक व आ थक इकाई का प हण करने लगा तथा उनके नवा सय का मान सक एक करण इस सीमा तक सभंव था क वय ं शासन क व थ परंपराओं का नमाण होने लगा । यहां हम यह प ट करना आव यक समझते ह क येक भारतीय गांव क एक पणूत: वत अथवा वावल बी इकाई के प म शंसा करना एक अ तशयोि त है जो क एक मलूभूत विृ त को इं गत करती है जो क सै ाि तक प से व व यापी है, य क वह वषा— नभर कृ ष क पा रि थ तक म न हत है । फर भी जसैा क कुछ अं ेजी शासक ने 19 वीं शता द म नोट कया, अ धकाशं भारतीय गांव अपनी शासक य आव यकताओं क पू त वय ंअपने आप ह कर लेते थे तथा उनके रा य तर य अथवा सा ा य तर य शासन से स ब ध यनूतम थे । आज भी के य सरकार अथवा रा य सरकार के शास नक हाथ

    अ धकतर ामवा सय के दै नक जीवन को छू नह ंपात,े उनको भा वत व शा सत करने क तो बात ह अलग ह । ाम तर य शासन इस कार से भारत के इ तहास म एक व श ट प हण कर अपनी नर तरता कई शताि दय तक बनाये रख सका । अशोक, च गु त, अलाउ ीन खलजी, शेरशाह सूर व अकबर वारा सा ा य तर य शासन क णा लय व प तय का वकास करने के प चात भी भारत शास नक प से बहु— तर य पर परा का ह नवाह करता रहा ।

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    1.3 राज थान म शास नक पर परा राज थान म कर ब एक हजार वष पवू इस बहु तर य शास नक पर परा का नये प से

    सं थानीकरण आर भ हुआ । इस भू भाग के कई ख ड म व भ न राजपतू राजवशं के आ धप य के ादभुाव के बारे म य य प इ तहास एकमत नह ं है, पर तु फर भी लोक शासन के व या थय को यह समझ लेना चा हए क इन राजवशं ने एक ऐसी शास नक व शास नक णाल को ज म दया जो क कर ब एक हजार वष तक अप रव तत प से चलती रह तथा आज भी उसके अवशेष व मान सक अव श टताएं भारत के इस देश क शास नक यव था व कायकरण को भा वत करते ह ।

    वतमान राज थान का नमाण 19 नरेशीय रा य व 3 उपरा य को संग ठत करके कया गया है । अजमेर व आब ू(िज ह क 1956 म सि म लत कया गया है) के स भाग को छोड़कर सम त राज थान एक नरेश शा सत शासनो का समूह है । इस कार भारतीय गणत म राज थान का एक व श ट थान है, य क अ य कसी भी रा य म राजत क इतनी सु ढ़ पर पराओं का यापक भाव 1947 से पवू नह ं था । राज थान म सि म लत 22 इकाइय म भी राजत के शास नक व प म एक पता नह ं रह ; य क एक ओर तो तीन नरेशीय रा य म (भरतपरु, धौलपरु व ट क)

    राजपतू का अ धप य नह ं था, तथा दसूर ओर से सभी राजतं का इ तहास समान प से ल बा व ग रमामय नह ं रहा है । इस संदभ म यह उ लेखनीय है क ट क व झालावाड़ जसेै नरेशीय रा य क थापना ह 19 वी ंशता द म टश राजनै तक हत क पू त के लए क गई थी तथा अ य रा य को इ तहास भी उतना परुाना नह ं है, िजतना क उदयपरु के ससो दया राजवशं का है, पर त ुफर भी मोटे प से राज थान म पाचं राजपतू राजवशं (उदयपरु, जोधपरु, बीकानेर, जयपरु व कोटा) क व श टता मुखता रह है । इन सभी मखु व लघ ुनरेशीय रा य म शासन का संगठन व काय णाल बहु तर य, वशेष तौर पर व तर य रह ।

    नरेशीय रा य म शासन व शासन का के — ब द ुराजा अथवा नरेश वय ंहोता था, पर त ुराज थान के नरेशीय रा य म यह नरंकुश हो कर रा य के मुख सरदार तथा जागीरदार के ऊपर बड़ी मा ा म नभर रहता था । राज थान म च लत जागीरदार था के अनसुार येक नरेशीय रा य का अ धकाशं भू भाग शास नक ि ट से कई जागीर म बांट दया जाता था तथा येक जागीर का जागीरदार अपनी जागीर का वतं प से शासन करता था । यु के अवसर पर येक जागीरदार को नरेश क आ ानसुार सै नक व अ त क सहायता देना आव यक था । रा या भषेक अथवा इसी कार के अ य समारोह पर जागीरदार को रा य क पर पराओं के अनसुार उपि थत होना भी आव यक

    था, पर तु इन साम रक व समारो हक कत य के पालन के अलावा जागीरदार का अपना अलग शास नक अि त व था, िजसम नरेश सामा यत: ह त ेप नह ं करते थे । इस स दभ म यह त य

    भी उ लेख नय है क येक नरेशीय रा य म ाय: सभी मखु जागीरदार उसी राजपतू उपजा त के थे, िजनका स ब ध राजवशं से था तथा इन जागीर क थापना भी उसी समय से मानी जाती रह है, जब क इन नरेशीय रा य क थापना हु ई । राज थान के जागीरदार के इस व श ट व प को मुगल स ाट ने भी मा यता दान क , तथा जहां एक अपने सा ा य म वे जागीर को समा त करने व ह तांत रत करने म अपने को पणू समथ मानत ेथे, वह ं दसूर ओर वे राजपतू जागीरदार क वतन

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    जागीर म कोई छेड़छाड़ नह ं करत ेथे । यह बात तो इ तहास के सभी व याथ जानते ह क राजपतूाना के कई नरेश वशेषतः जयपरु, जोधपरु व बीकानेर रा य व राजकुमार को मुगल सा ा य म बहु त ऊँची मनसबदा रया मल हु ई थी, अत: लोक शासन के व या थय को मुगल सा ा य क जागीरदार यव था व राज थान म जागीरदार पर पराओं क व भ नताओं को समझने का यास करना पड़ेगा।

    नरेशीय रा य क शास नक यव था के अ तगत जहा ंएक ओर एका मता का अभाव था, वह ं साधारण यि त पर केवल जागीर शासन का ह भाव था, य क जागीरदार े म क ह ंरा य यापी शास नक अ धकरण का अि त व शू य ाय: ह होता था । कुछ अपवाद को छोड़कर जागीरदार को भी अपनी शास नक यव थाओं को ससुंग ठत करने का अवसर नह ं मला । अतएव राज थान के नरेशीय रा य म च लत जागीरदार यव था को अ य रा य क तलुना म शास नक प से अ यवि थत माना जा सकता है । राज थान के इन बड़—ेबड़े व छोटे नरेशीय रा य म न केवल

    राजत व जागीरदार यव था क शताि दय तक नर तरता बनी रह , अ पतु रा य म राजवशं का इ तहास न केवल थानीय पर त ुभारतीय तर पर भी गौरवशाल रहा है । पहले पि चमी राज थान के शासक ने महमूद व गौर जसेै आ मणकताओं का मुकाबला कया व बाद म द ण—पि चम के व अ य शासक ने मुगल स ाट क सेनाओं को लोहे के चने चबवा दये । अपने वा भमान व वत ता क र ा म राज थान के राजपतू नरेश ने न केवल वदेशी आ मण का सामना कया अ पत ु थानीय मुि लम व गरै मुि लम व तारवाद क जड़ को भी नह ं पनपने दया । यह स य है क अपनी कुछ व श ट सां कृ तक मा यताओं तथा थाओं का अनसुरण करने के कारण जहां इस भ—ूभाग के नरेश अभी भी सि म लत प से अपने श ओंु का सामना नह ं कर सके व अपने रा य क सीमाओं के अ दर भी अपने मुख जागीरदार से तनाव र हत स ब ध था पत नह ं कर पाये, वह ं लगातार कसी न कसी कार के यु म सलं न रहने के कारण नरेश व जागीरदार वारा सु ढ़ शास नक सं थाओं का नमाण भी सभंव न हो सका । प रणाम व प राज थान के सामा य नाग रक का दै नक जीवन कई शताि दय तक कसी भी कार के शासन से ाय: अछूता ह रहा । मुगल सा ा य के कुशल नी त नमाताओं वारा सं था पत शास नक सधुार से प र चत होते हु ए भी राज थान के अ धकाशं नरेश ने उनका अपनी शास नक यव थाओं म यनूतम प से ह अनसुरण कया । राजनै तक व सां कृ तक वा भमान व वावल बन क इ ह ंपर पराओं के अ तगत राज थान के नरेश ने टश इं डया म हो रहे आधु नक करण व शास नक वकास क ओर उदासीनता का दशन कया । इतना ह नह ं पर तु इन नरेश व इनके मुख शासक ने अं ेज रेजीडे ट व गवनर जरनल के एजे टो वारा आ थक व शास नक नवीनीकरण अथवा आधु नक करण क ओर कये गए यास का भरपरू वरोध भी कया ।

    प रणाम व प ाय: सम त राज थान के शासन का वकास सं थागत प से यनूा धक मा ा मे हो ह पाया । 1950 म न मत भारतीय गणत के सं वधान म इस राजनै तक व शास नक यथाथ को यान म रखते हु ए नव न मत राज थान रा य को 'बी' ेणी म रखा गया, जब क टश इं डया के सभी ा त को 'ए' ेणी दान क गई । इस वग करण के फल व प राज थान क शास नक यव था पर के का भु व था पत कर कया गया तथा 1947 से 1956 के दशक म के का राज थान म लोक— शासन के नमाण म प ट योगदान रहा ।

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    1.4 भू –आ थक पा रि थक राज थान आ थक ि ट से भारत के अ य रा य क तलुना म कुछ े म काफ पछड़ा

    हुआ है । य य प यहां के साधारण नाग रक का वा य काफ संतोषजनक है तथा यहां चरु मा ा म उ प न होने वाले मोटे खा यान जसेै जौ व बाजरा से यहां के नधन ामवा सय को भी यथे ट ऊ मा ा त हो जाती है ।

    राज थान के आ थक वकास म दो मुख अवरोध रहे ह — साम रक अि थरता व भौ तक अ मताय । राज थान के नरेश के लगातार यु म य त रहने के इ तहास का हम ऊपर उ लेख कर चुके ह तथा यहाँ पर यह कहना ह काफ होगा क इन साम रक अ भयान के कारण कसी भी नरेशीय रा य म पूजँी नमाण क दशा म द घकाल न यास करना स भव नह ं था । वसेै भी इन रा य क राज व आय का अ धकाशं भाग दगु के नमाण व रख—रखाव तथा सेना के लए सै नक व श क यव था म लग जाता था । दसूर ओर सतत ्यु क ि थ त बनी रहने के कारण कोई साधारण यापार अथवा महाजन उ योग ध ध के वकास क ओर यान नह ं दे सकता था; अतएव नरेशीय रा य णाल एव ं व श ट रा य वशं क नर तरता के होत ेहु ए भील राज थान के अ धकाशं नरेशीय रा य म आ थक प से कृ ष व उ योग े म कोई वशेष उ न त नह ंहो पाई । पर तु जहां यु ज नत उथलपथुल एक ओर आ थक अवरोध के प म राज थान के नरेशीय रा य म कई शताि दय तक बनी रह , वह ं पर लोक शासन के व या थय को यह भी यान म रखना चा हए क भारत के इस 'भ—ूख ड क भौ तक य पा रि थक भी आ थक वकास के —माग म एक मुख बाधा रह है, िजसका क नराकरण नकट भ व य म भी होने क संभावनाय ीण है ।

    भौगो लक प से वतमान राज थान क भ—ूआ थक पा रि थक कई वषमताओं व अ मताओं से भर हु ई है, िजसका सीधा भाव शास नक सं थाओं के संगठन व काय— मता पर पड़ता है । रा य के— ाय: दो तहाई भाग म थार म थल व यमान है, जहां पर वष बहु त कम मा ा म होती है तथा भ—ूजल के ोत जसेै क न दया,ं झरने, कंुए तथा अ य जलाशय का नता त अभाव है । रेत के ऊँचे—ऊँचे ट ल के इस देश म जहा ंकुछ मह न तक अ य त गम या कुछ स ताह तक अ य त सद का कोप त वष रहता है, मनु य जीवन अ य त क टसा य है; पर तु फर भी यह म थल जीवन र हत नह ं है तथा पछल कुछ दशाि दय म तो जनसं या व पश—ुसं या म जो वृ हुई है, वह अभूतपवू तो है ह , साथ ह वह राज थान क राजधानी जयपरु म ह बठेै हु ए नी त— नमाताओं को अ व वसनीय सी लगती है । ाचीन काल म राज थान के इस म थल य भ—ूसंभाग क अनु पादकता का अ दाजा तो शरेशाह सरू के इस व त य, जो क उसने इस े म एक कड़े यु संघष के वजय के उपरा त दया था, क म मु ीभर बाजरे के लए अपना सब कुछ खोने वाला था, से लग सकता है । पर तु वतमान म इस भ—ूभाग क पा रि थ तक अ मताओं का अभाव यहां के दै नक जनजीवन म देखा जा सकता है । राज थान के इस रेतीले भ—ूभाग म जनसं या का नवास एक—दसूरे से दरू ि थत छोटे—छोटे गांव म है िजनके योजनाब आ थक वकास क बात तो दरू रह , उनका शास नक प से संगठन करना भी दु ह है । इस शास नक क ठनाई का अ दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है क इस म थल य भ—ूभाग म जैसलमेर जसेै िजले व यमान है, िजनका े फल भारत के कई रा य से भी अ धक है ।

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    वतमान राज थान को अरावल पवत क ृंखला उ तर—पवू से लेकर द ण—पि चम तक दो भाग म वभािजत करती है, िजसम पि चम क ओर शु क म थल है तथा इस ृंखला के पवू म कुछ िजल म भू म समतल है तथा वषा म कुछ छोट न दय के वारा कृ ष के लए पया त मा ा म जल भी उपल ध है । द ण—पवू राज थान म जहा ंपर अरावल पवत ृंखला क ऊंचाई अपे ाकृत अ धक है, कृ ष क अ नि चतताय अ धक ह । राज थान के इस पवतीय भ—ूभाग म छोट —छोट न दयां भी वषा के दन म वकराल प धारण कर लेती ह, िजससे न केवल आ थक त होती है, पर त ुकुछ दन के लए सम त शास नक ग त व धयां ह ब द सी हो जाती ह, य क अ धकाशं गांव अलग—थलग पड़ जाते ह । इस पवतीय भ—ूभाग म गांव क बनावट भी अ य समतल गांव से कुछ भ न है, िजसके कारण ाम— तर य शास नक अ धका रय को अपने काय संपादन म काफ क ठनाइय का सामना करना पड़ता है । अरावल पवत ृंखला से सटे हु ए इस भ—ूभाग म जन जा तय क सं या काफ अ धक है । भील इ या द जन जा तय का 21 वीं शता द से 15 वष पवू तक भी आधु नक करण बहु त कम मा ा म हुआ है तथा वे लोग अभी भी शास नक याओं क ज टलताओं को समझने म अ म ह, चाहे भले ह इन याओं के वारा भारत व राज थान के नी त नमाता उनका व उनके जीवन तर का वकास करना चाहते ह । राज थान के इस पवतीय भ—ूभाग म जहां एक ओर चुर मा ा म वन—स पदा उपल ध है वह ं दसूर ओर कुछ बहु मू य ख नज पदाथ जैसे — िजंक, अ क व ता बा का भी बाहु य है । राजनै तक उथल—पथुल के कारण इस भू—भाग के नरेश इन दोन कार क स पदाओं का यथे ट प से उपयोग नह ंकर पाये तथा वतमान राज थान म भी इस दशा म अपे त सफलता नह ं मल पाई, य क राज थान रा य का शासन वनस पदा के द घकाल न वकास योजनाय बनाने के लए पणू प से स म नह ं रहा है ।

    राज थान के उ तर म तथा अरावल पवत के पवू म समतल व उपजाऊ भू—भाग है, िजसका क आ थक ि ट से वकास और भी अ धक हो सकता था, य द वह आगरा व द ल के शासक के राज थान पर आ धप य था पत करने के यास के कारण, नर तर एक यु थल न बना रहता; फर भी इस े म आमेर (जयपरु) नरेश वारा द ल ' के मगुल स ाट के साथ मधरु स ब ध रखने के कारण इस े का राज थान के अ य भाग से अपे ाकृत अ धक वकास हुआ । वतमान म इस े म जनसं या का घन व काफ अ धक है तथा भारत क राजधानी के समीप होने के कारण

    औ यो गक वकास क सभंावनाय भी काफ बल हे । हाल ह म राज थान सरकार ने भारत सरकार वारा सा रत ' 'नेशनल कै पटल र जन' ' योजना म भाग लेना वीकार कर लया है, पर त ुइस नणय

    क शास नक अ नवायताओं का अभी तक कोई प ट प सामने नह ं आया है । वसेै कुछ वष पवू इस सभंाग म रा य सरकार ने एक मह वपणू शास नक नणय एक नये िजले क (िजसका मु यालय धौलपरु म है) थापना करके लया है । यहा ंयह उ लेख करना उ चत होगा क इस नणय के फल व प अब राज थान म िजल क सं या 26 से बढ़ कर 27 हो गई है ।

    1.5 राज थान म शास नक वकास वीं शता द के आर भ म राज थान के कई नरेश ने ई ट इि डया क पनी के साथ, मराठ

    के आ मण से उ पी ड़त हो कर, मै ी स ब ध था पत करने शु कर दये तथा इस शता द के पहले तीन दशक समा त होने से पहले इस कार क सं धय म राज थान के लगभग सभी नरेशीय रा य

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    बधं गए । इन सं धय के अ तगत अं जे ने एक ओर नरेश व नरेशी रा य के अि त व को सुर ा दान क तथा दसूर ओर इन नरेशी रा य को अं जे वारा टश इं डया म कये जा रहे

    आधु नक करण व शास नक वकास क मु यधारा से अलग—अलग कर दया । अं जेी शासक के वारा नरेश क स ता को सहारा देने के कारण नरेशीय रा य के मुख सरदार व जागीरदार क मह ता

    कम हो गई, य क अब उनक यु काल न सेवाओं क आव यकता नह ं रह ; पर तु नरेशीय रा य के शासक ने इस नव न मत शि त का उपयोग आ थक व शास नक यथाि थ त को बनाये रखने म ह कया तथा अं जेी शासक वारा तपा दत शास नक सधुार के य न का भी अपनी पूण साम य से वरोध कया । 1857 के बाद तो अं ेजी शासक ने भी नरेशीय रा य म समाज सधुार व ' शास नक वकास क आव यकता पर जोर देना कम कर दया पर तु सम त भारत म हो रहे प रवतन के भाव से नरेशीय रा य भी अ भा वत नह ंरह सके । 20 वीं शता द के ादभुाव के बाद प रवतन का यह म ओर भी ग तमान हो गया, वशेष प से उन नरेशीय रा य म, जहा ंके शासक द ण भारत के व यात व वान व शासक को अपनी सेवा म मु य पद पर आक षत कर सके । टश इि डया भी भारतीय रा य कां से के वारा चलाये गए वत ता सं ाम क त या भी 20 वीं शता द के दसूरे दशक से राज थान के नरेशीय रा य म होने लगी तथा कुछ दरूदश नरेश ने इसके नराकरण के लए कई मह वपणू राजनै तक व शास नक सुधार, कये, िजससे उन पर शि त के के यकरण व उसके वे छाचा रता पवूक योग करने स ब धी कां ेसी आरोप को ख डन कया जा सके । फल व प कई रा य के त न ध सभाय था पत क गई तथा कुछ रा य म अलग से यायपा लका का भी नमाण कया गया । पर तु फर भी यह कहना अ तशयोि त नह ं होगी क

    अ धकांश नरेशीय रा य म शासन पर परागत शलै से चलता रहा तथा जन साधारण क आकां ाओं का नी त नमाण क या म कोई वशेष भाव भारत क वत ता ाि त क पवू— सं या तक भी इन नरेशीय रा य म ि टगोचर नह ंहोता था ।

    15 अग त 1947 को भारत वत हुआ तथा त काल न गहृ मं ी सरदार व लभ भाई पटेल क सूझबझू के कारण नरेशीय रा य का कुछ नवीनीकरण बहु त थोड़े से समय म शाि त पवू हो गया । इस या म अ धकाशं नरेशीय रा य का अि त व पणू प से वलु त हो गया, पर तु राज थान के प म एक ऐसी इकाई का नमाण हुआ िजसका क नमाण भूतपवू नरेशी रा य को मलाकर हुआ था । वतमान राज थान म जोड़ दया गया । े फल के आधार पर ि थरता आ जाने के बाद भी राज थान के अ दर शास नक नयम , याओं व सं थाओं म एक पता लाने म काफ समय लगा, पर तु यह ज टल काय भी इतनी सरलतापवूक स प न हो गया क आज यह अनमुान लगाना भी मुि कल है क सफ 35 वष पहले ह राज थान म 20 या इससे भी यादा कार क शास नक यव थाएं व यमान थी । य क वत भारत म एक रा य पी इकाई का पद हण करते ह राज थान म मु यमं ी तर पर राजनै तक अि थरता ि टगोचर होने लगी थी, अत: राज थान म शास नक वकास को नई दशा व अ छ ग त दान करने का ेय भी ी मोहनलाल सुखा ड़या को दया जा सकता है, िज ह ने 1954 से अगले 17 वष तक मु यमं ी पद संभाले रखा तथा शास नक अ भनवीकरण के कई नये क तमान था पत कये । राज थान के शास नक इ तहास म सुखा ड़या शासन (1954— 1971) स मा नत प से पचंायती राज सं थान क थापना के लए याद कया

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    जा सकता है । ''लोकतां क वके करण' ' क अवधारणा को रा य वकास प रषद के बलव त राय मेहता अ ययन दल ने 1958 म तपा दत कया तथा राज थान के सुखा ड़या मं ीम डल को इस बात का ेय अव य दया जाना चा हए क पचंायती राज के प म उ ह ने इस धारणा को सं थागत प देने म उस समय पहल क जब क शास नक प से अ धक वक सत रा य म इस ताव पर

    कोई वशेष यान नह ं दया जा रहा था । य य प 2 अ टूबर, 1959 को सं था पत 7394 पचंायत, 232 पचंायत स म तयां व 26 िजलाप रषद अपनी ारि भक सफलताओं को यादा अ धक समय तक बनाये नह ं रख सक ं तथा 1967 के बाद ी सुखा ड़या के मु यमं ी रहते हु ए भी उनके त उपे ा क नी त अपनाई जाने लगी । पर तु फर भी यह न ववाद प से कहा जा सकता है क राज थान के शास नक वकास म पचंायती राज का बहु त बड़ा योगदान रहा है य क इससे पहले तो ामीण जनजीवन, वकास शासन क तो बात ह अलग है एक कार से शासन से ह अछूता था ।

    भारतीय गणरा य म एक इकाई के प म सि म लत कये जाने के समय राज थान प टतया शास नक ि ट से बहु त कम वक सत था । पर त ुबहु त से अथ म यह अ वक सत होने क दशा

    एक वरदान सा बत हु , य क इन खाल प पर शास नक वकास के नये नयम व संगठन का च ण बहु त आसानी से कया जा सका, जब क, वत दशाय दान करने के लए के सरकार व रा य सरकार को काफ तरोध का सामना करना पड़ा । कनाटक, आं देश व महारा जसेै रा य म जहां दो या तीन कार क व भ न शास नक पर पराओं वाले भ—ूभाग का सि म ण कया गया है, आज भी शास नक बहु पता क कई सम याऐं व यमान ह, य क 1947 से पवू व भ न सू व नरेशीय रा य म च लत शास नक यव थाओं को एक प म ढ़ालना इतना आसान स नह ं हुआ िजतना क राज थान के नरेशीय रा य क राजनै तक व शास नक यव थाओं को हटा कर परेू राज थान म नये शास नक त के नमाण क ओर काफ ग त क जा चुक है । लोक शासन के व या थय को यह जानकर आ चय होगा क महारा , कनाटक, पि चम बगंाल व

    त मलनाडू क तलुना म शास नक प से कम वक सत समझे जाने वाले राज थान म कुछ ऐसे अ भनव योग सफलतापवूक कये गये ह िजनके बारे म अ य रा य सरकार तो अलग, के म भी ठोस कदम नह ं उठाये जा सके ह । पचंायती राज का तो हम ऊपर उ लेख कर ह चुके ह, पर त ुइन सब यास क नि चत जानकार के लए पाठक को ी मोहन मुखज वारा संपा दत "एड म न े टव इनोवेश स इन राज थान" (नई द ल , 1982) का वय ंअ ययन करना चा हए । इस संदभ म यह उ लेख करना भी उ चत तीत होता है क इस पु तक का राज भवन म वमोचन करने समय पवू रा यपाल ी ओ पी. मेहरा ने इस बात पर आ चय गट कया क जहां महारा म रेवे य ूक म नर ड वजन तर पर शासन क एक मु य कड़ी के प म अभी भी कुशलतापवूक काय संपादन कर रहे ह, वह ं राज थान म क म नर का पद ह समा त कर दया गया, जब क िजला शासन क बागडोर बहु त कम सेवा अनभुव वाले अ धका रय को स प द गई है । पाँच या छ: वष तक क व र ठता के आई. ए. एस. अथवा आर. ए. एस. से नव पदो नत आई. ए. एस. अ धका रय को िजलाधीश के पद पर नयु त करने क वृ त स भवत : भारत के सभी रा य म चल पड़ी है, पर तु ाय: इन सभी रा य म राजधानी व िजल के बीच क म नर के प म अनभुवी आई. ए. एस. अ धकार ह काय कर रहे ह । इसी लए राज थान म क म नर के पद से पनुसजृन क आव यकता पर वचार कर इसे

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    पनु: था पत कया गया है । इस संदभ म हम इस त य क ओर भी यान देना पड़ेगा क राज थान म रा य शासन का कुछ वशेष े म "' े ीयकरण" कर दया गया है तथा इन नव न मत े ीय तर पर व र ठ आई. ए. एस. अ धका रय को क म नर के समक अथवा समान पद व अ धकार दान कर दये गये ह यथा 'कमा ड ए रया डवलपमट क म नर' एक बीकानेर राज थान नहर प रयोजना

    के लए) तथा दसूरा कोटा म (च बल प रयोजना के लए); डेजट डवलपमट क म नर (िजसका मु यालय जोधपरु म है) तथा ाहबल डवलपमट क म नर िजसका मु यालय उदयपरु म है ।

    1.6 न कष राज थान म शास नक पर परा का एक ल बा इ तहास रहा है । यह पर परा देशी रयासत

    के शास नक यव था के प म अ भ य त हु ई है । यहा ं क शास नक यव था पर भौगो लक एव ंआ थक कारक का भी भाव रहा है, िजसक अ भ यि त यहां क शास नक यव था के व पण म दखाई देती है ।

    1.7 अ यास न 1. राज थान म शास नक यव था के ऐ तहा सक पृ ठभू म का उ लेख क िजए । 2. राज थान म भ—ूआ थक पा रि थ तक का शास नक यव था पर भाव का उ लेख क िजए । 3. राज थान म शास नक वकास क या या क िजए ।

    1.8 संदभ थ सूची 1. सहं, च मौ ल, शमा अशोक एव ंगोयल सरेुश: राज थान म रा य शासन, आर. बी. एस. ए.

    पि लशस, जयपरु, 1990 2. महे वर , एस. आर : टेट एड म न ेशन इन इं डया, मैक मलन, नई द ल , 1979 3. राजपतू, सरला : रोल ऑफ चीफ म न टर इन टेट एड म न ेशन, राधा पि लकेश स, नई

    द ल , 1994 4. गहलोत, सुखवीर सहं राज थान म रा य शासन, रा वरा नव बर, 1999 5. कटा रया, सुरे : भारत म रा य शासन, म लक ए ड क पनी, जयपरु, 2009

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    इकाई — 02 के रा य स ब ध : वधायी ओर शास नक

    इकाई क परेखा 2.0 उ े य 2.1 तावना 2.2 ऐ तहा सक पृ ठभू म 2.3 वधायी स ब ध

    2.3.1 संघ सचूी 2.3.2 रा य सचूी 2.3.3 समवत सचूी

    2.4 शास नक स ब ध 2.4.1 के वारा रा य पर नय ण करने के तर के 2.4.2 अ त: रा य सौहा

    2.5 न कष 2.6 अ यास न 2.7 संदभ थ सचूी

    2.0 उ े य इस इकाई का उ े य है —

    के —रा य के स ब ध क ववेचना करना, के —रा य वधायी स ब ध क या या करना, के —रा य के वधायी स ब ध का ववरण तुत करना ।

    2.1 तावना भारतीय नमाताओं ने भारतीय सं वधान को एक संघवाद व प दान कया । संघवाद क

    मूलभूत वशेषताओं को रखते हु ए भी भारतीय संघवाद एक अन य संघवाद है । संघवाद के नमाण के मुखत: दो तर के ह । पहला, वत इकाईयां आपसी समझबझू और समझौते के वारा एक के के अधीन रहना वीकार कर और इसके लए सं वधान म कुछ मह वपणू सामा य वषय के स दभ म काननू बनाने और इसके लए सं वधान म कुछ मह वपणू सामा य वषय के संदभ म काननू बनाने का अ धकार के को स पे और बाक सभी वषय रा य (इकाईय ) के अ धकार— े म रह । इस कार क यव था अमे रका म है । दसूरा, के य सरकार वारा अपने अधीन रा य को अ धकतम वाय तता देना है । इसके अ तगत सं वधान म वषय स ब धी दो सू चयां होती ह िजनम से एक

    के के अ धकार े म और दसूर रा य के अ धकार े म होती है तथा बचे हु ए वषय के के पास होत ेह । इस कार क यव था कनाडा म ह । भारतीय संघवाद मलू प से इसी कार का है ले कन इसम आ े लयाई सं वधान क तरह समवत सूची का भी ावधान है, िजसम वे वषय

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    सि म लत ह िजन पर के एव ंरा य दोन काननू बना सकत ेहै । पहले कार क यव था म रा य काफ शि तशाल होते ह जब क दसूरे कार क यव था म के अ धक शि तशाल होता है ।

    2.2 ऐ तहा सक पृ ठभू म 1919 से पहले भारतीय सरकार क संरचना म ा तीय सरकार के वत अि त व क

    क पना भी नह ं क गयी थी । ा त म सरकार अपनी सार शि तयां के से ा त करती थी और वधानम डल क कायपा लकाओं का वहृत व प ह माना जाता था । 1919 के अ ध नयम म भी सरकार के एका मक व प को ह वीकार कया गया और ा तीय सरकार को कुछ शि तयां के य सरकार क यायोिजत शि तय के प म ह मल । इस अ ध नयम के वारा वषय को पहल बार के एव ं ा तीय सरकार के म य बांटा गया ; ले कन एका मक शासन णाल के कारण यह वषय— वभाजन केवल सै ाि तक था, यवहार म ा तीय सरकार के य सरकार के अधीन थी ।

    1935 के अ ध नयम ने ा तीय सरकार क ि थ त म एक मौ लक अ तर ला दया । इस अ ध नयम के वारा सरकार का व प संघवाद बनाया गया, िजसके फल व प ा तीय सरकार अ धक शि तशाल बनीं और के य तथा ा तीय सरकार क शि तय का प ट सीमांकन कया गया । इस अ ध नयम के वारा वषय को तीन सू चय म बांटा गया — (1) संघीय सूची, (2) ा तीय सूची और (3) समवत सचूी । के य सरकार केवल संघीय सचूी म दये गये वषय पर काननू बना सकती थी तथा ा तीय सूची म दये गये वषय पर काननू बनाने का अन य अ धकार ा तीय वधानम डल को था । ले कन दो या दो से अ धक ा तीय वधानम डल ा तीय सचूी म दये गये वषय पर काननू बनाने का अनरुोध, संघीय वधानम डल से कर तो वह केवल उ ह ं ा त के लए काननू बना सकती थी । इसी कार गवनर—जनरल वारा आपातकाल घो षत कये जाने पर के य वधानम डल सारे

    टश भारत के लए सभी वषय पर काननू बनाने म स म था । समवत सचूी म दये गये वषय पर काननू बनाने म टकराव क ि थ त समा त करने के लए यह ावधान रखा गया क एक ह वषय पर बनाये गये के य एव ं ा तीय सरकार के काननू म के य सरकार वारा बनाये गये काननू को मा यता द जायेगी । अव श ट शि तय के बारे म गवनर—जनरल अपने वशेषा धकार वारा नि चत करता था क उनका योग करने का अ धकार के अथवा ा त म से कसे दया जाये ।

    सं वधान सभा म सं वधान के ा प पर बहस करते हु ए डॉ. अ बेडकर ने सं वधान के संघीय व प क जोरदार वकालत क । भारतीय संदभ म संघवाद को प ट करते हु ए उ ह ने बताया क,

    "यह के य तथा रा य म रा य सरकार क थापना कर शासन के दो तर था पत करता है िजनम से येक अपने े म सं वधान वारा नयत सव च शि त का उपभोग करत ेह । '' भारतीय संघ न तो रा य के आपसी सहयोग वारा न मत एक संघ है और न ह रा य, के क थानीय शाखाएं ह । संघ और रा य, दोन सं वधान वारा न मत ह और अपनी शि त और स ता सं वधान से ा त सकते ह और स ता का सं यवहार करने म एक दसूरे के परूक ह ।

    2.3 वधायी स ब ध भारतीय सं वधान के अ तगत के —रा य स ब ध वधायी स ब ध म 1935 के अ ध नयम

    म व णत वषय के बटंवारे का अनगुमन कया गया है । सं वधान के अनु छेद 246 के अ तगत यह

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    वषय तीन सू चय म बांटे गये ह — संघ सूची, रा य सूची और समवत सचूी, िजनका सं त ववरण इस कार है —

    2.3.1 संघ सचूी

    सं वधान लाग ूहोने के समय आर भ म इसम 97 वषय थे क तु वतमान म इसम रा य मह व के 99 वषय ह जसेै : भारत क सरु ा, सेना, अ —श तथा गोला बा द, परमाण ुशि त, वदेै शक स ब ध, राजन यक सं धय , संयु त रा संघ, यु और शाि त, वदेशीय े ा धकार, नाग रकता, देशीयकरण रेल राजपथ, समु नौहवन और नौ—प रवहन, वाय ुमाग, डाक और तार, दरूभाष, बेतार, लोक ऋण, वदेशीय ऋण, भारतीय रजव बक, लाटर , वदेशीय यापार और वा ण य, अ तरा यीय यापार और वा ण य, बीमा, शाि त नकेतन, बनारस तथा अल गढ़ व व व यालय, परुात वीय थान, भारतीय सव ण, जनगणना, संघ लोक सेवाएं, नवाचन आयोग संसद सद य के चुनाव, भ ते इ या द एव ंरा प त के चुनाव, भ ते इ या द, उ चतम यायालय के गठन व े ा धकार तथा कृ ष आय के अलावा अ य आय पर कर, सीमा शु क नगम कर इ या द ।

    2.3.2 रा य सचूी

    वतमान म इसम 62 वषय ह । इन वषय म मुख ह — सावज नक यव था, पु लस, याय शासन, जेल, सुधारालय थानीय शासन, सावज नक वा य, च क सालय, पु तकालय, सड़क,

    कृ ष, सचंाई, खान, गसै, मेले, सनेमा, मनोरंजन कर, रा य लोक सेवा आयोग, भ—ूराज व, रा य म न मत या उ पा दत व तुओं के उ पादन शु क, सावज नक नमाण काय, रा य का लोक ऋण, वलास व तुओं पर कर इ या द । (यह सचूी जग क मीर पर लाग ूनह ं है)

    2.3.3 समवत सचूी

    वतमान म इस सचूी म रा य तथा थानीय मह व के 52 वषय सि म लत ह । इस सचूी म ऐसे वषय ह िजनके स बि धत काननू का सारे रा म समान होना वाछंनीय तो है, ले कन अ नवाय नह ,ं इस लए इनको संघ तथा रा य दोन के े ा धकार म रखा गया है । इन वषय पर रा य एव ंके दोन काननू बना सकते ह, क तु य द उनम वरोधाभास हो तो के का काननू ह मा य होगा । इसम सि म लत मखु वषय ह — रा य क सरु ा स ब धी नवारक नरोध, ववाह एव ंतलाक, कृ ष भू म को छोड़ के अ य प रस पि तय का ह ता तरण, सं वदाएं, दवाला, यास और यासी, यायालय अवमान, पागलपन, पशुओं के त नदयता का नवारण, खा य पदाथ और अ य व तुओं

    म अप म ण, आ थक एव ंसामािजक योजना, वा णि यक और औ यो गक एका धप य, मक संगठन, औ यो गक और मक ववाद, सामािजक सरु ा और सामािजक बीमा, मक क याण, श ा, वन, काननूी, च क सा एव ंअ य यवसाय, जीवन स ब धी सांि यक , मू य नय ण, कारखाने, व यतु, समाचार—प , पु तक एव ंमु णालय, या यक मु ाकं ( टा प यू ट) इ या द।

    अव श ट वषय (िजनका उ लेख उपरो त तीन सू चय म नह ंहै) से स बि धत काननू बनाने का अ धकर, कनाडा के सं वधान के तरह भारत म भी के य सरकार को दया गया है । 1935 के

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    अ ध नयम म अव श ट शि तयां गवनर जनरल को द गयी थीं जो अपने व— ववेक से उ ह के या ा त के वधानम डल को स प सकता था ।

    शि त वतरण क उपरो त यव था से प ट है क के को अ धक मह व दया गया है । भारत जसेै वशाल रा म सामािजक एव ंसां कृ तक व भ नताओं क आड़ म व वसकंार शि तया ंकभी भी सर उठा सकती ह, िजसे रोकने के लए के का शि तशाल होना आव यक माना गया है । सं वधान म, इसी लए रा य क अन य सचूी म भी, वशेष प रि थ तय म, के के ह त ेप का ावधान था जसेै क — 1. अनु छेद 249 के अ तगत — य द रा यसभा ने उपि थत और मत देने वाले सद य क दो— तहाई

    सं या से सम थत ताव वारा घो षत कया है क रा य हत म यह आव यक या इ ट कर है क ससंद रा य सूची म सि म लत और उस ताव म उि ल खत कसी वषय के बारे म व ध बनाये तो संसद के लए उस वषय के बारे म भारत के स पणू रा य े अथवा उसके कसी भाग के लए व ध बनाना व ध संगत होगा । ऐसा ताव एक वष तक क अव ध के लए मा य है । एक वष के अ त म भी य द वसैी ह असामा य प रि थ तय बनी रह जैसी क ताव पा रत करते समय थी तो संसद पनु: उसी कार से ताव पा रत कर उसे एक और वष तक के लए मा य कर सकती है । ऐसे कसी पनु: ताव के अभाव म संसद वारा पा रत व ध एक वष क अव ध समा त होने के प चात ्6 मह ने के भीतर वत: अमा य हो जायेगी ।

    2. अनु छेद 250 के अ तगत — संसद को, जब तक आपात काल क घोषणा लाग ूहै, भारत के स पणू रा य े के अथवा उसके कसी भाग के लए रा य—सूची म व णत वषय म से कसी के बारे म व ध बनाने क शि त होगी । ऐसी व ध आपात काल क समाि त के 6 मह ने प चात ्तक मा य रहेगी उसके प चात ्वह वत: ह अमा य हो जायेगी ।

    3. अनु छेद 252 के अ तगत — य द दो या दो से अ धक रा य के वधानम डल यह नि चत कर क रा य सूची म व णत वषय पर संसद वारा न मत व ध वांछनीय है तो संसद ऐसी व ध बना सकती है । ऐसी व ध उन रा य म भी लाग ूहो सकती है िजनके वधान म डल ने बाद म इसे वीकारा हो । ऐसी व ध म संशोधन क शि त ससंद म न हत है ।

    4. अनु छेद 253 के अ तगत — संसद कसी देश के साथ क गई सि ध करार या अ भसमय या कसी अ तरा य स मेलन या सं था म कये गये कसी भी नणय को लाग ूकरने के लए काननू बना सकती है, चाहे उसका वषय—रा य सचूी के अ तगत ह य न आता हो ।

    इसके अ त र त भी कम से कम दो सं वधा नक उपबधं इन कार के ह िजनका उपयोग के वारा रा य पर नय ण रखने म कया जाता है ।

    थम—रा य म जब एक वधेयक वधानम डल वारा पा रत कया जाता है तो उसके काननू बनने के लए रा यपाल क सहम त आव यक है । रा यपाल अपने पास सहम त के लए आये वधेयक पर तीन तरह से नणय ले सकता ह — (1) वह उसे सहम त दान कर; (2) वह उसे अपनी आपि तय के साथ पनु वचार के लए वधान म डल को वा पस भेज दे या (3) वह उसे रा प त क सहम त के लए अपने पास रख ले ।

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    इस तीसरे तर के से के य सरकार रा य म वरोधी दल क सरकार पर नय ण रख सकत ेहै । केरल श ा वधेयक इसका उदाहरण है।

    वतीय—सं वधान के अनु छेद 356 के अ तगत रा प त कसी रा य वशेष के शासन को आपात काल न शि तय के अ तगत अपने हाथ म ले सकता है । इसके वारा भी के य सरकार रा य के अ धकार े म दखल कर सकती है और करती रह है ।

    2.4 शास नक स ब ध कसी भी संघवाद क सफलता के लए के व रा य के म य और रा य म आपस म सहयोग

    और स ावना आव यक है । हर संघीय यव था म कुछ न कुछ ताकते ऐसी होती है जो काननू वारा बि धत न होने पर वघटनकार शि तय को बढ़ावा देती ह और रा क एकता के लए खतरा उ प न करती ह । के —रा य के वधायी स ब ध म शासन वषय के लए खतरा उ प न करती है । के —रा य के वधायी स ब ध म शासन वषय स ब धी प ट वभाजन के बावजूद व छ और समथ शासन के लए के और रा य म अ छे शास नक स ब ध होना अप रहाय आव यकता है । वा तव म संघवाद क साम य और सफलता के और रा य तथा रा य म आपसी सहयोग और सम वय पर आधा रत है ।

    शास नक ि ट से रा य व के के म य स ब ध से स बि धत दो मत च लत ह । एक के अनसुार रा य और के दोन शासन के स दभ म समान शि त वाले ह । दसूरे मत के अनसुार के य सरकार शास नक े म रा य पर न:स देह नभर है । भारतीय सं वधान नमाताओं ने के और रा य पर न:स देह नभर है । भारतीय सं वधान नमाताओं ने के और रा य के म य शास नक े म टकराव को कम करने के लए सं वधान म व ततृ यव थाएं क ह । यह यव थाएं

    भी मलू प से 1935 अ ध नयम पर आधा रत है । सं वधान म अनु छेद 256 से 263 तक के —रा य शास नक स ब ध क या या क गई है । इन स ब ध को अ ययन क ि ट से दो भाग म बांटा

    जा सकता है : (1) के वारा रा य पर नय ण रखने के तर के तथा (2) अ त: रा य सौहा ।

    2.4.1 के वारा रा य पर नय ण करने के तर के

    रा के वकास के लए और वशेष प से योजनागत आ थक वकास को अपनाने के कारण के या रा य पर नय ण आव यक है । आपातकाल म यह स पणू होता है तथा साधारण समय म भी के रा य पर व भ न तर क से नय ण बनाये रखने का य न करता है — (अ) संघ वारा रा य को नदश — अ धकतर संघीय सं वधान म इसक यव था नह ं है । अमे रका

    और आ े लया म ऐसी यव था को असंघीय माना जाता है । भारत म रा य का नदश देने का ावधान सं वधान से व भ न अनु छेद म कया गया है :

    (i) अनु छेद 256 के अनसुार येक रा य क कायपा लका शि त का योग इस कार होगा क, िजससे ससंद वारा न मत काननू का तथा क ह ं वतमान काननू का, जो उस रा य म लाग ूह , पालन सु नि चत रहे । संघ क कायपा लका शि त का व तार कसी रा य को ऐसे नदश देने तक व ततृ होगा जो क भारत सरकार को उसे योजन के लए आव यक तीत ह । डा. अ बेडकर ने सं वधान सभा म इस अनु छेद के उ े य को प ट करते हु ए इसके दो आधार बताये — "पहल तावना यह है क समवत सचूी

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    म सि म लत वषय स ब धी काननू को, चाहे वे ससंद वारा बनाये गये ह या रा य वधानम डल वारा, याि व त करने क शि त साधारणतया रा य म होगी । दसूरे, य द कसी वशेष वषय (जो समवत सूची म है) स ब धी काननू के बारे म ससंद यह समझती है क उसका या वयन के य सरकार वारा हो तो संसद के पास ऐसा करवाने क शि त है । '' इस स ब ध म डा. अ बेडकर ने कई उदाहरण (जैसे अ पृ यता उ मलून स ब धी काननू, कारखाने स ब धी काननू, बाल— ववाह उ मलून काननू इ या द) वारा यह बतलाने क चे टा क है क ऐसे रा य मह व के मामल म के क भू मका ह अहम है । डा. अ बेडकर के अनसुार, ' ' या यह वांछनीय है क के य सरकार के काननू पर कोई अमल नह ं कया जाए और वे केवल कागज पर लखी व ध मा ह रह जाएं? सं वधान वारा के को दा य व स पा गया है क वह अ पृ यता का उ मलून कर । या यह यिु तसंगत होगा क के एक वधेयक पा रत कर शाि त से बठै जाये और ती ा करता रहे क रा य सरकार कस कार उ त वधेयक क याि व त करती है।

    (ii) के क रा य को नदश देने क उपरो त शि त के अलावा भी अनु छेद 257(1) म रा य को ऐसे काय करते रहने को कहा गया है िजनसे क के के काय म ह त ेप न हो । इस अनु छेद के अनसुार, " येक रा य क कायपा लका शि त का इस कार योग होगा िजससे संघ क कायपा लका शि त के योग म कोई अड़चन न आये या तकूल भाव न पड़े तथा संघ क कायपा लका शि त का व तार कसी रा य को ऐसे

    नदश तक व ततृ होगा जो भारत सरकार को उस योजन के लए आव यक तीत हो । '' के वारा रा य को नदश देने कुछ वषय ह — साम रक या रा य मह व क सड़क तथा अ य संचार—साधन क देख—भाल, मर मत, नमाण, रा य के अ तगत रेल—पथ क सरु ा इ या द। इस कार क यव था बनाये रखने के लए रा य वारा कये गये अ त र त यय को के सरकार वारा वहन करने का ावधान भी ह ।

    के वारा रा य को दये जाने वाले नदश का पालन करना रा य के लए बा यकार है। अनु छेद 365 के अनसुार, "जहां इस सं वधान के उपब ध म से कसी के अधीन संघ क कायपा लका—शि त के योग के वषय म दये गये क ह ं नदश का अनवुतन करने म या उनको भावी करने म कोई रा य असफल हुआ है, वहां रा प त के लए यह मानना संगत होगा क ऐसी

    अव था उ प न हो गयी है क िजसम रा य का शासन सं वधान के उपब ध के अनकूुल नह ं चलाया जा सकता । '' इसका अथ है क य द कोई रा य के के नदश का पालन उ चत ढंग से नह ं कर सके तो अनु छेद 356 के अ तगत रा प त उस रा य म सं वधा नक यव था के वफल होने क घोषणा कर रा य क सम त शि त एव ंकाय को अपने हाथ म ले सकता है ।

    1968 के के य कमचा रय क ता वत हड़ताल को वफल बनाने के लए रा प त वारा ''अ याव यक सेवा अ यादेश' ' जार कर हड़ताल को अवधै घो षत कया गया । के ने इस स दभ म रा य सरकार को यह नदश दये क अ यादेश म जार नदश के अ तगत के य कायालय और त ठान क र ा क जाये और के य कमचा रय को हड़ताल के लए उकसाने वाले यि तय को दि डत कया जाये । अ यादेश म व णत नदश के पालन करने म केरल सरकार ने अपने व ववेक

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    के अ धकार को सुर त रखते हु ए सारे नदश का अ रशः पालन करने म अपनी असमथता य त क । तब के सरकार ने रा य म अपने नदश का पणूतया पालन करवाने के लए रा य सरकार को बना सचूना दये हु ए सी. आर. पी. क कुछ टुक डया ंभेज द ंऔर इस काय को सं वधान के अनु छेद 256 व 257 का हवाला देकर सह ठहराया । (ब) संघीय काय को रा य को स पना — अनु छेद 258 (1) के अनसुार, "संसद, कसी रा य सरकार क स म त से, संघीय कायपा लका—शि त से स बि धत कसी वषय को उस सरकार को अथवा उसके पदा धका रय को सशत या बना शत स प सकती है ।"

    अनु छेद 258 (2) के अनसुार, संसद को संघीय वधान के संचालन के लए रा य के शासन—तं का योग करने क शि त ा त है और इस योजन के लए वह रा य अथवा उसके

    पदा धका रय को ऐसी शि त स प सक�