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shri niwas ramanujan

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राष्ट्रीय गणिणित वर्ष-र -2012 पर िवर्शेष- लेख

िचंितन-िदिशा, अक्टू.-िदिस.2012 मे प्रकािशत

श्रीनिनिवास रामानिजुनि : एक िवलक्षण गणिणतज - डॉ. कृष्णकुमार िमश

वर्तमर्तमान वर्ष र्त भारतम सरकार द्वारा राष्ट्रीय गणिणितम वर्ष र्त के रूप में मनाया जा रहा है। यह वर्ष र्त महान भारतमीय गणिणितमज्ञ श्रीिनवर्ास रामानुजन के जन्म का 125 वर्ाँ वर्ष र्त है। रामानुजन िवर्लक्षणि प्रतितमभा के धनी थे। उनका जन्म 22 िदिसम्बर 1887 को मद्रास से 400 िकलोमीट्र दििक्षणि-पिश्चिम में िस्थतम इरोड नामक एक छोटे्-से गणांवर् में हुआ था। रामानुजन जब बहुतम छोटे् रहे होंगणे उसी समय उनका पिरवर्ार इरोड से कुम्भकोणिम आ गणया। ससंार में ऐसे अनेक गणिणितमज्ञ हुए हैं िजनके कुटु्म्ब के लोगण गणिणितमज्ञ या िफिर गणिणितम से लगणावर् वर्ाले थ।े लेिकन रामानुजन का मामला एकदिम से िभन्न ह।ै वर्े बहुतम ही साधारणि पिरवर्ार से तमाल्लुक रखतमे थ।े उनके िपतमा कुम्भकोणिम में एक कपड़ा व्यापारी के यहां मुनीम का काम करतमे थ।े जब वर्े पांचि वर्ष र्त के थे तमो उनका दिािखला कुम्भकोणिम के प्रताइमरी स्कूल में करा िदिया गणया। सन् 1898 में इन्होंने ट्ाउन हाईस्कूल में प्रतवर्ेश िलया और सभी िवर्ष यों में बहुतम अच्छे नम्बर हािसल कए। यहीं पर रामानुजन को जी. एस. कार की गणिणितम पर िलखी िकतमाब पढ़ने का मौका िमला। इस पुस्तमक से प्रतभािवर्तम होकर उन्होंने स्वर्यं ही गणिणितम पर कायर्त करना प्रतारंभ कर िदिया।

रामानुजन धािमर्तक प्रतवर्ृत्तित्ति और शांतम स्वर्भावर् के िचिन्तमनशील बालक थ।े अपने खपरैल की छतम वर्ाले पुश्तमैनी घर के सामने एक ऊंचिे चिबूतमरे पर बैठ कर रामानुजन गणिणितम के सवर्ाल हल करने में डूब जातमे थ।े रामानुजन का गणिणितम के प्रतितम जबदिर्तस्तम लगणावर् था। िवर्शुद्ध गणिणितम के अितमिरक्तम अन्य िवर्ष यों, जैसे गणिणितमीय भौितमकी और अनुप्रतयुक्तम गणिणितम में उनकी रुचिचि नहीं थी। रामानुजन गणिणितम की खोज को ईश्वर्र की खोज के सदृश मानतमे थ।े इसी कारणि गणिणितम के प्रतितम उनमें गणहरा लगणावर् था। उन्हें िवर्श्वर्ास था िक गणिणितम से ही ईश्वर्र का सही स्वर्रूप स्पष्ट् हो सकतमा ह।ै वर्े संख्या 'एक' को अनन्तम ईश्वर्र का स्वर्रूप मानतमे थे। वर्े रातमिदिन संख्याओं के गणुणिधमोर्मों के बारे में सोचितमे, मनन करतमे रहतमे थे और सुबह उठकर कागणज पर अकसर सूत्र िलख िलया करतमे थे। उनकी स्मृत्तितम और गणणिना शिक्तम अद्िभुतम थी। वर्े π,

2, √ e आिदि संख्याओं के मान दिशमलवर् के हजारवर्ें स्थान तमक िनकाल लेने में सक्षम थ।े यह उनकी गणिणितमीय मेधा का प्रतमाणि है।

श्रीनिनिवास रामानिुजनि

रामानुजन का पैतृक घर

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रामानुजन जब दिसवर्ीं कक्षा के छात्र थे तमो उन्होंने स्थानीय कॉलेज के पुस्तमकालय से उच्चि गणिणितम में जाजर्त शुिब्रिजकार का एक ग्रन्थ "िसनॉिप्सस आफि प्योर मैथेमेिट्क्स" प्रताप्तम िकया। इस ग्रन्थ में बीजगणिणिज, ज्यािमितम, ित्रकोणििमितम और कलन गणिणितम के 6165 सूत्र िदिये गणये हैं। इनमें से कुछ सतू्रों की बहुतम संिक्षप्तम उपपित्ति दिी गणई ह।ै यह ग्रन्थ रामानुजन के िलये उच्चि गणिणितम का बहुतम बड़ा खजाना था। वर्े गणम्भीरतमा से इस ग्रन्थ के प्रतत्येक सतू्र को हल करने में जुट् गणये और इन सूत्रों को िसद्ध करना उनके िलए गणवर्षे णिा का कायर्त बन गणया। उन्होंने पहले मैिजक स्क्वर्ायर तमयैार करने की कुछ िवर्िधयाँ खोज िनकालीं। रामानुजन ने समाकलन पर अच्छा ज्ञान अिजर्ततम कर िलया। बीजगणिणितम की कई नई श्रेिणियां उन्होंने खोज िनकालीं। उनके गणुरुच डॉ. हाडी ने िलखा है- "इसमें संदेिह नहीं है िक इस ग्रन्थ ने रामानुजन को बेहदि प्रतभािवर्तम िकया और उनकी पूणिर्त क्षमतमा को जगणाया। यह ग्रन्थ उत्कृत्त ष्ट् कृत्त ितम नहीं है परन्तमु रामानुजन ने इसे सुप्रतिसद्ध कर िदिया। इसके अध्ययन के बादि ही एक गणिणितमज्ञ के रूप में रामानुजन के जीवर्न का नया अध्याय शुरू हुआ।"

कुम्भकोणिम के शासकीय महािवर्द्यालय में अध्ययन के िलए रामानुजन को छात्रवर्ृत्तित्ति िमलतमी थी। परंतमु रामानुजन द्वारा गणिणितम के अलावर्ा दूिसरे िवर्ष यों की अनदेिखी करने पर उनकी छात्रवर्ृत्तित्ति बंदि कर दिी गणई। सन् 1905 में रामानुजन मद्रास िवर्श्वर्िवर्द्यालय की प्रतवर्ेश परीक्षा में सिम्मिलतम हुए परंतमु गणिणितम को छोड़कर शेष सभी िवर्ष यों में वर्े अनुत्तिीणिर्त हो गणए। सन् 1906 एवर्ं 1907 की प्रतवर्ेश परीक्षा का भी यही पिरणिाम रहा। आगणे के वर्ष ोर्मों में रामानुजन कार की पुस्तमक को मागणर्तदिशर्तक मानतमे हुए गणिणितम में कायर्त करतमे रहे और अपने पिरणिामों को िलखतमे गणए जो िक 'नोट्बुक' नाम से प्रतिसद्ध हुए। रामानुजन को प्रतश्न पूछना बहुतम पसंदि था। उनके प्रतश्न अध्यापकों को कभी-कभी बहुतम अट्पटे् लगणतमे थ।े मसलन िक ससंार में पहला पुरुचष कौन था? पृत्तथ्वर्ी और बादिलों के बीचि की दूिरी िकतमनी होतमी है? वर्गणरैह।

रामानुजन का व्यवर्हार बड़ा ही मधुर था। सामान्य से कुछ ज्यादिा ही कृत्त शकाय, और िजज्ञासा से चिमकतमी आखें इन्हें एक अलगण पहचिान देितमी थीं। इनके सहपािठयों के अनुसार इनका व्यवर्हार इतमना सौम्य था िक कोई इनसे नाराज हो ही नहीं सकतमा था। िवर्द्यालय में इनकी प्रतितमभा ने दूिसरे िवर्द्यािथर्तयों और िशक्षकों पर छाप छोड़ना आरंभ कर िदिया। इन्होंने स्कूल के समय में ही कालेज के स्तमर की गणिणितम का अध्ययन कर िलया था। एक बार इनके िवर्द्यालय के हेडमास्ट्र ने कहा भी िक िवर्द्यालय में होने वर्ाली परीक्षाओं के मापदंिड रामानुजन के िलए लागणू नहीं होतम।े हाईस्कूल की परीक्षा उत्तिीणिर्त करने के बादि इन्हें गणिणितम और अंग्रेजी में अच्छे अंक लाने के कारणि सुब्रिमण्यम छात्रवर्ृत्तित्ति िमली और आगणे कालेज की िशक्षा के िलए प्रतवर्ेश भी िमला।

सन् 1909 में इनका िवर्वर्ाह हो गणया और वर्े आजीिवर्का के िलए नौकरी ढूँढ़ने लगणे। नौकरी की खोज के दिौरान रामानुजन कई प्रतभावर्शाली व्यिक्तमयों के सम्पकर्त में आए। 'इंिडयन मैथमैिट्कल सोसायट्ी' के ससं्थापकों में से एक रामचिंद्र रावर् भी उन्हीं प्रतभावर्शाली व्यिक्तमयों में से एक थ।े रामानुजन ने रामचिंद्र रावर् के साथ एक वर्ष र्त तमक कायर्त िकया। इसके िलए उन्हें 25 रुचपये महीना िमलतमा था। इन्होंने 'इंिडयन मैथमैिट्कल सोसायट्ी' के जनर्तल के िलए प्रतश्न एवर्ं उनके हल तमयैार करने का कायर्त प्रतारंभ कर िदिया। सन् 1911 में बनोर्तली संख्याओं पर प्रतस्तमुतम शोधपत्र से इन्हें बहुतम प्रतिसिद्ध िमली और मद्रास में गणिणितम के िवर्द्वान के रूप में पहचिाने जाने लगणे। सन् 1912 में रामचिंद्र रावर् की सहायतमा से मद्रास पोट्र्त ट्रस्ट् के लेखा िवर्भागण में िलिपक की नौकरी करने लगणे। रामानुजन ने गणिणितम में शोध करना जारी रखा और सन् 8 फिरवर्री 1913 में इन्होंने जी. एचि. हाडी को पत्र िलखा। साथ में स्वर्यं के द्वारा खोजे प्रतमेयों की एक लम्बी सचूिी भी भेजी। ये पत्र हाडी को सुबह नाश्तमे के टे्बल पर िमले। इस पत्र में एक अनजान भारतमीय द्वारा बहतुम सारे िबना उपपित्ति के प्रतमेय िलखे थे िजनमें से कई प्रतमेय हाडी देिख चिकेु थ।े पहली नज़र में हाडी को ये सब बकवर्ास लगणा। उन्होंने इस पत्र को एक तमरफि रख िदिया और अपने कायोर्मों में

हाडी और रामानुजन

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लगण गणए। परतंमु इस पत्र की वर्जह से उनका मन अशांतम था। इस पत्र में बहुतम सारे ऐसे प्रतमेय थे जो उन्होंने न कभी देिखे और न सोचिे थे। उन्हें बार-बार यह लगण रहा था िक यह व्यिक्तम (रामानुजन) या तमो धोखेबाज है या िफिर गणिणितम का बहुतम बड़ा िवर्द्वान। रातम को 9 बजे हाडी ने अपने एक िशष्य िलिट्लवर्ुड के साथ एक बार िफिर इन प्रतमेयों को देिखना शुरू िकया तमथा आधी रातम तमक वर्े लोगण समझ गणये िक रामानुजन कोई धोखेबाज नही बिल्क गणिणितम के बहुतम बड़े िवर्द्वान हैं िजनकी प्रतितमभा को दुििनया के सामने लाना आवर्श्यक है। इसके बादि हाडी ने उन्हें कैिम्ब्रिज बुलाने का फैिसला िकया। हाडी का यह िनणिर्तय एक ऐसा िनणिर्तय था िजसस ेन केवर्ल उनकी बिल्क पूरे गणिणितम की ही धारा बदिल गणई।

सन् 1913 में हाडी के पत्र के आधार पर रामानुजन को मद्रास िवर्श्वर्िवर्द्यालय से छात्रवर्ृत्तित्ति िमलने लगणी। अगणले वर्ष र्त सन् 1914 में हाडी ने रामानुजन के िलए कैिम्ब्रिज के िट्रिनट्ी कॉलेज आने की व्यवर्स्था की। रामानुजन ने गणिणितम में जो कुछ भी िकया था वर्ह सब अपने बलबूतमे िकया था। रामानुजन को गणिणितम की कुछ शाखाओं का िबलकुल भी ज्ञान नहीं था, पर कुछ क्षेत्रों में उनका कोई सानी नहीं था। इसिलए हाडी ने रामानुजन को पढ़ाने का िजम्मा स्वर्यं िलया। हाडी ने इस बातम को स्वर्ीकार िकया है िक िजतमना उन्होंने रामानुजन को िसखाया, उससे कहीं ज्यादिा रामानुजन ने उन्हें िसखाया। सन् 1916 में रामानुजन ने कैिम्ब्रिज से बी.एस-सी. की उपािध प्रताप्तम की।

रामानुजन और हाडी के कायोर्मों से शुरू से ही महत्वर्पूणिर्त पिरणिाम िमले। सन् 1917 से ही रामानुजन बीमार रहने लगणे थे और अिधकांश समय िबस्तमर पर ही रहतमे थ।े बीमारी की एक वर्जह थी। रामानुजन ब्रिाह्मणि कुल में पैदिा हुए थे। वर्े धमर्त-कमर्त में िवर्श्वर्ास करतमे थे तमथा आचिार-िवर्चिार का कड़ाई से पालन करतमे थ।े रामानुजन शाकाहारी थे और इंग्लैण्ड में रहतमे समय अपना भोजन स्वर्यं पकातमे थ।े इंग्लैण्ड की कड़ी सदिी और उस पर किठन पिरश्रम। फिलस्वर्रूप रामानुजन का स्वर्ास्थ्य खराब रहने लगणा। और जब उनमें तमपेिदिक के लक्षणि िदिखाई देिने लगणे तमो उन्हें अस्पतमाल में भतमी कर िदिया गणया। इधर उनके लेख उच्चिकोिट् की पित्रकाओं में प्रतकािशतम होने लगणे थे। सन् 1918 में एक ही वर्ष र्त में रामानुजन को कैिम्ब्रिज िफिलोसॉिफिकल सोसायट्ी, रॉयल सोसायट्ी तमथा िट्रिनट्ी कॉलेज, कैिम्ब्रिज तमीनों का फेिलो चिुना गणया। इससे रामानुजन का उत्साह और भी अिधक बढ़ा और वर्ह काम में जी-जान से जुट् गणए। सन् 1919 में स्वर्ास्थ ज्यादिा खराब होने की वर्जह से उन्हें भारतम वर्ापस लौट्ना पड़ा।

एक बार का िकस्सा ह।ै रामानुजन अस्पतमाल में भतमी थे। डॉ. हाडी टै्क्सी में बैठकर उन्हें देिखने अस्पतमाल पहुँचिे। टै्क्सी का नंबर 1729 था। रामानुजन से िमलने पर डॉ. हाडी ने ऐसे ही सहज भावर् से कह िदिया िक यह एक अशुभ संख्या ह।ै बातम यह थी िक 1729= 7 13 19x x । यहाँ आप देिखेंगणे िक 1729 का एक गणुणिनखंड 13 है। यरूोप के अंधिवर्श्वर्ासी लोगण इस 13 संख्या से बहुतम भय खातमे हैं। वर्े संख्या 13 को अशुभ मानतमे हैं। वर्े 13 संख्यावर्ाली कुसी पर बैठने से बचिेंगणे, 13 संख्यावर्ाले कमरे में ठहरने से बचिेंगणें। इसिलए डॉ. हाडी ने रामानुजन से कहा था िक 1729 एक अशुभ संख्या है। लेिकन रामानुजन ने झट् जवर्ाब िदिया- नहीं, यह एक अद्िभुतम संख्या है। वर्ास्तमवर् में यह वर्ह सबसे छोट्ी संख्या है िजसे हम दिो घन संख्याओं के जोड़ से दिो तमरीकों में व्यक्तम कर सकतमे है; जैसे- 1729 = 123 + 13 तमथा 1729=103+93

इिलनॉय िवर्श्वर्िवर्द्यालय के गणिणितम के प्रतोफेिसर ब्रिूस सी. बनार्तड्ट् ने रामानुजन की तमीन पुस्तमकों पर 20 वर्ष ोर्मों तमक शोध िकया और उनके िनष्कष र्त पाचँि पुस्तमकों के संकलन के रूप में प्रतकािशतम हुए हैं। प्रतो. बनार्तड्ट् कहतमे हैं, “मुझे यह सही नहीं लगणतमा जब लोगण रामानुजन की गणिणितमीय प्रतितमभा को िकसी दैिवर्ीय या आध्याित्मक शिक्तम से जोड़ कर देिखतमे हैं। यह मान्यतमा ठीक नहीं है। उन्होंने बड़ी सावर्धानी से अपने शोध िनष्कष ोर्मों को अपनी पुिस्तमकाओं में दिजर्त िकया ह।ै" सन् 1903 से 1914 के दिरम्यान कैिम्ब्रिज जाने से पहले रामानुजन अपनी पुिस्तमकाओं में 3,542 प्रतमेय िलख चिुके थ।े उन्होंने ज्यादिातमर अपने िनष्कष र्त ही िदिए

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थे, उनकी उपपित्ति नहीं दिी। शायदि इसिलए िक वर्े काग़ज़ ख़रीदिने में सक्षम नहीं थे और अपना कायर्त पहले स्लेट् पर करतमे थ।े बादि में िबना उपपित्ति िदिए उसे पुिस्तमका में िलख लेतमे थ।े

रामानुजन के प्रतमुख गणिणितमीय कायोर्मों में एक है िकसी संख्या के िवर्भाजनों की सखं्या ज्ञातम करने के फिामूर्तले की खोज। उदिाहरणि के िलए संख्या 5 के कुल िवर्भाजनों की संख्या 7 है। इस प्रतकार: 5, 4+1, 3+2, 2+2+1, 2+1+1+1, 1+1+1+1+1 । रामानुजन के फिामूर्तले से िकसी भी संख्या के िवर्भाजनों की संख्या ज्ञातम की जा सकतमी है। उदिाहरणि के िलए संख्या 200 के कुल 3972999029388 िवर्भाजन होतमे हैं। हाल ही में भौितमक जगणतम की नयी थ्योरी 'सुपरिस्ट्रगंण थ्योरी' में इस फिामूर्तले का काफ़ी उपयोगण हुआ है। रामानुजन ने उच्चि गणिणितम के क्षेत्रों जैसे संख्या िसद्धान्तम, इिलिप्ट्क फिलन, हाईपरज्योमैिट्रक श्रेणिी इत्यािदि में अनेक महत्वर्पूणिर्त खोज कीं। रामानुजन ने वर्ृत्तत्ति की पिरिध और व्यास के अनुपातम 'पाई' ( )π के अिधक से अिधक शुद्ध मान प्रताप्तम करने के अनेक सतू्र प्रतस्तमुतम िकए हैं। ये सूत्र अब कम्प्यूट्र द्वारा π के दिशमलवर् के लाखों स्थानों तमक पिरशुद्ध मान ज्ञातम करने के िलए कारगणर िसद्ध हो रहे हैं। आज सुपरकम्प्यूट्रों की क्षमतमा प्रतायः इस परीक्षणि से आंकी जातमी है िक वर्े π का मान दिशमलवर् के िकतमने स्थानों तमक िकतमने अल्पकाल में प्रतस्तमुतम कर सकतमे हैं।

सन् 1919 में इंग्लैण्ड से वर्ापस आने के पश्चिातम् रामानुजन कुम्भकोणिम में रहने लगणे। उनका अंितमम समय चिारपाई पर ही बीतमा। वर्े चिारपाई पर पेट् के बल लेटे्-लेटे् काग़ज़ पर बहतुम तमजे गणितम से यूँ िलखतमे रहतमे थे मानो उनके मिस्तमष्क में गणिणितमीय िवर्चिारों की आधँी चिल रही हो। रामानुजन स्वर्यं कहतमे थे िक उनके द्वारा िलखे सभी प्रतमेय उनकी कुलदेिवर्ी नामिगणिर की पे्रतरणिा हैं। इंग्लैण्ड का मौसम उन्हें रास नहीं आया था। उनका िगणरतमा स्वर्ास्थ्य सबके िलए िचितंमा का िवर्ष य बन गणया और यहां तमक िक डॉक्ट्रों ने भी जवर्ाब देि िदिया था। अंतमतम: रामानुजन के जीवर्न की सांध्यवर्ेला आ ही गणई। 26 अपै्रतल 1920 की सुबह वर्े अचिेतम हो गणए, और दिोपहर होतमे-होतमे उनका देिहावर्सान हो गणया। उस समय वर्े महज 32 वर्ष र्त के थ।े अल्पायु में उनके असामियक िनधन से गणिणितम जगणतम की अपूरणिीय क्षितम हुई।

उनकी मृत्तत्योपरान्तम मॉक थीनटा फंक्शनि से सम्बिन्धतम उनकी 'नोट्बुक' मद्रास िवर्श्वर्िवर्द्यालय में जमा थी, जो बादि में प्रतो. हाडी के जिरए डॉ. वर्ाट्सन के पास पहुँचिी। तमदिोपरान्तम रामानुजन की यह 130 पृत्तष्ठों की नोट्बुक िट्रिनट्ी कालेज के ग्रन्थालय को सौंपी गणई। इस 'नोट् बुक' में रामानुजन ने जल्दिी-जल्दिी में लगणभगण 600 पिरणिाम प्रतस्तमतुम िकए हैं परन्तमु उनकी उपपित्ति नहीं दिी थी। िवर्स्कोिन्सन िवर्श्वर्िवर्द्यालय के गणिणितमज्ञ डॉ. िरचिडर्त आस्की िलखतमे है- “मृत्तत्युशैय्या पर लेटे्-लेटे् साल भर में िकया गणया रामानुजन का यह कायर्त बड़े-बड़ै गणिणितमज्ञों के जीवर्नभर के कायर्त के बराबर है। सहसा यकीन नहीं होतमा िक उन्होंने अपनी उस दिशा में यह कायर्त िकया। कदिािचितम िकसी उपन्यास में ऐसा िवर्वर्रणि िदिया जातमा तमो उस पर कोई भी िवर्श्वर्ास नहीं करतमा।" रामानुजन की नोट् बुकों की यह अमूल्य िवर्रासतम गणिणितमज्ञों के िलए शोध का िवर्ष य रहेगणी। संख्या-िसद्धान्तम पर उनके हरैतमअंगणेज कायर्त के िलए उन्हें 'संख्याओं का जादूगणर' माना जातमा है। उनके महान गणिणितमीय अवर्दिान के िलए रामानुजन को "गणिणतजों का गणिणतज" भी कहा जातमा ह।ै

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पता:

होमी भाभा िवर्ज्ञान िशक्षा केन्द

टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान

मंुबई-400088

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