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Ŕीरामचिरतमानस-कथा मानसम तीस कथाएँ पƭिवभूषण जगƦुǤ रामान◌ाचायɷ Ēवामी रामभʼnाचायɷ

Shriramacharitamanasa-katha: Manas-mein Tees Kathayein · काशक जगुरामभाचायिवकलािविवालय कव,िचकट,उरदेश२१०२०४,भारत

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    ीरामचिरतमानस-कथामानसमें तीस कथाएँ

    प िवभूषण जग ु रामान◌ाचायवामी रामभ ाचाय

    ीरामचिरतमानस-कथा—मानसमेंतीस

    कथाएँवामीरामभ

    ाचाय

    प िवभूषण जग ु रामान◌ाचाय वामी रामभ ाचाय भारतक यात िव ा , िश ािव ,ब भाषािव , महाकिव, भा यकार, दाशिनक, रचनाकार, संगीतकार, वचनकार, कथाकार, व धमगुह। वे िच कट- थत ीतुलसीपीठक सं थापक एवं अ य और जग ु रामभ ाचाय िवकलािव िव ालयक सं थापक एवं आजीवन कलािधपित ह। वामी रामभ ाचाय दो मासक आयुसे

    ाच ु होते ए भी २२ भाषा क ाता, अनेक भाषा म आशुकिव, और शतािधक थ क रचियताह। उनक रचना म चार महाका य (दो सं कत और दो िह◌ीम), रामच रतमानसपर िह◌ी टीका,अ ा यायीपर ग और प म सं कत वृि याँ, और थान यीपर ( सू , भगव ीता, और धानउपिनषद पर) सं कत और िह◌ी भा य मुख ह। वे तुलसीदासपर भारतक मूध य िवशेष म िगने जातेह और रामच रतमानसक एक ामािणक सं करणक संपादक ह।

    ◌ुत थ वामी रामभ ाचायक १२५१व ऐितहािसक रामकथाका पु◌काकार प ह।ीरामचिरतमानस-कथा—मानसमें तीस कथाएँ शीषक वाली इस रामकथाका आयोजन िसत बर

    २०१६म मोदीनगर, मेरठ (उ र देश) म आ था।

    `300 `३००ISBN 978-93-82253-05-1

    9 789382 253051ज.रा.िव.िव.

    www.jrhu.com

  • ीरामचिरतमानस-कथा—मानसमें तीस कथाएँ

  • ीरामचिरतमानस-कथामानसमें तीस कथाएँ

    वाचकधमच वत महामहोपा याय किवकलर वाच पित प िवभूषण

    महाकिव ीिच कटतुलसीपीठाधी र जग ु रामान◌ाचाय

    वामी रामभ ाचायजीवन पय◌ कलािधपित

    जग ु रामभ ाचाय िवकला िव िव ालयिच कट

    संपादनडॉ. रामाधार शमा और िन यान िम

    जग ु रामभ ाचाय िवकला िव िव ालय, िच कट२०१७

  • काशकजग ु रामभ ाचाय िवकला िव िव ालयकव , िच कट, उ र देश २१०२०४, भारत

    www.jrhu.com

    थम सं करण: िच कट, जनवरी २०१७

    यौछावर: ३०० पये मा

    © २०१७ वामी रामभ ाचाय

    ISBN-13: 978-93-82253-05-1ISBN-10: 93-82253-05-X

    आवरण- परखा: िन यान◌ िम

    चाण सं कृतम अ र-संयोजन: िन यान◌ िम

    मु कNik & Nik Graphic

    Sheetal Vishram, Opp. Kalyani ComplexLanger Toli Chauraha, Patna 800004, India

    [email protected]

  • संकेता र-सूचीअ.को. अमरकोशअ.रा. अ या म-रामायणअ.शा. अिभ ानशाक◌लई.उ. ई ा योपिनषऋ.वे. ऋ वेदक. उ. कठोपिनषक. किवतावलीका.िव.◌ो. काशीिव नाथा क◌ोक.स. कमारस भवगी. गीतावलीचा.नी. चाण नीितत.सं. तकसं हतै.उ. तैि रीयोपिनषदु.स. दुगास शतीदो. दोहावलीना.भ.सू. ीनारदभि सूनी.श. नीितशतकप.पु. प पुराणपा.सू. पािणनीय सूपृ.रा. पृ वीराज-रासोबृ.उ. बृहदार यकोपिनष.सू. सू

    भ.गी. ीम गव ीताभ.गी.शा.भा. ीम गव ीता शांकरभा यभ.पु. भिव य-पुराणभ.मा. ीभ माल

  • भा.पा.सू. महाभा य पािणनीय सूभा.पु. ीम ागवत-पुराणम.भा. महाभारत गीता ेस सं करणम. मृ. मनु मृितमा. ीरामच रतमानस तुलसीपीठ सं करणमा.गी. े. ीरामच रतमानस गीता ेस सं करणमा.पु. माक डय-पुराणमु.उ. मु डकोपिनषर.वं. रघुवंशरा.र.◌ो. ीरामर ा◌ोरा.◌.◌ो. ीराम◌वराज◌ोल.िस.कौ. लघुिस ा◌कौमुदीवा.रा. वा मीक य रामायणिव.प. िवनयपि कािव.पु. िव णुपुराणवृ.र. वृ र ाकरवै.सू. वैशेिषक-सूश.◌ो. शत◌ो ीिश.पु. िशवपुराणिश.व. िशशुपालवधशु.य.वे. शु यजुवद (मा य ◌नी संिहता)

    े.उ. ेता तरोपिनषस.दु. स ोक दुगासां.का. सां यका रकासा. साकत महाका यक.पु. क◌पुराण

    ह.चा. ीहनुमा -चालीसाह.ना. हनुमा ाटकिह. िहतोपदेश

    vi

  • िवषय-सूचीसंपादकीय ixभूिमका १थम पु प २१

    ीरामच रतमानसम ३० कथाएँ ? . . . . . . . . . . . . . . . . २९कथा १: िनज संदेह ... हरनी (मा. १.३१.४) . . . . . . . . . . . . . ३३

    ि तीय पु प ४५कथा २: िनज ... मोह ... हरनी (मा. १.३१.४) . . . . . . . . . . . . ४८कथा ३: िनज ... म हरनी (मा. १.३१.४) . . . . . . . . . . . . . ५३

    तृतीय पु प ७५कथा ४: करउ कथा भव स रता तरनी (मा. १.३१.४) . . . . . . . . . . ८५कथा ५: बुध िब ाम (मा. १.३१.५) . . . . . . . . . . . . . . . . ८६कथा ६: सकल जन रजिन (मा. १.३१.५) . . . . . . . . . . . . . . ९३कथा ७: रामकथा किल कलष िबभंजिन (मा. १.३१.५) . . . . . . . . . ९८

    चतुथ पु प १०५कथा ८: रामकथा किल प ग भरनी (मा. १.३१.६) . . . . . . . . . . . १०९कथा ९: पुिन िबबेक पावक कह अरनी (मा. १.३१.६) . . . . . . . . . . १२६

    प म पु प १२९कथा १०: रामकथा किल कामद गाई (मा. १.३१.७) . . . . . . . . . . १३५कथा ११: सुजन सजीविन मू र सुहाई (मा. १.३१.७) . . . . . . . . . . १४२कथा १२: सोइ बसुधातल सुधा तरिगिन (मा. १.३१.८) . . . . . . . . . . १८८

    ष पु प २०५कथा १३: भय भंजिन (मा. १.३१.८) . . . . . . . . . . . . . . . . २०६

    स म पु प २२९कथा १४: म भेक भुजंिगिन (मा. १.३१.८) . . . . . . . . . . . . . २२९

  • अ म पु प २४९कथा १५: असुरसेन सम नरक िनकिदिन (मा. १.३१.९) . . . . . . . . . २४९कथा १६: साधु िबबुध कल िहत िग रनंिदिन (मा. १.३१.९) . . . . . . . . २५५कथा १७: संत समाज पयोिध रमा सी (मा. १.३१.१०) . . . . . . . . . . २५८कथा १८: िव भार भर अचल छमा सी (मा. १.३१.१०) . . . . . . . . . २६१कथा १९: जम गन मुँह मिस जग जुमना सी (मा. १.३१.११) . . . . . . . . २६२कथा २०: जीवन मुकित हतु जनु कासी (मा. १.३१.११) . . . . . . . . . २६३कथा २१: रामिह ि य पाविन तुलसी सी (मा. १.३१.१२) . . . . . . . . . २६७कथा २२: तुलसीदास िहत िहय लसी सी (मा. १.३१.१२) . . . . . . . . २६९कथा २३: िशवि य मेकल शैल सुता सी (मा. १.३१.१३) . . . . . . . . . २७१कथा २४: सकल िसि (मा. १.३१.१३) . . . . . . . . . . . . . . . २७५कथा २५: सुख (मा. १.३१.१३) . . . . . . . . . . . . . . . . . . २८०कथा २६: संपित रासी (मा. १.३१.१३) . . . . . . . . . . . . . . . २८२

    नवम पु प २८७कथा २७: सदगुन सुरगन अंब अिदित सी (मा. १.३१.१४) . . . . . . . . २८८कथा २८: रघुबर भगित (मा. १.३१.१४) . . . . . . . . . . . . . . . ३०३कथा २९: ेम परिमित सी (मा. १.३१.१४) . . . . . . . . . . . . . . ३०९कथा ३०: रामकथा मंदािकनी (मा. १.३१) . . . . . . . . . . . . . . ३१२

    ीसीतारामजीकी आरती ३१७ीरामचिरतमानसजीकी आरती ३१९

    viii

  • संपादकीयअकारणक णाव णालय भगवा ीसीतारामजी ेहवश हम मानव शरीर दान करते ह।

    िजनक िवषयम भ मालकारने किल कुिटल जीव िन ारिहत वा मीिक तुलसी भयो(भ.मा. १२९) कहा, ऐसे किलपावनावतार गो वामी तुलसीदासजी महाराजक कालजयी कितरामच रतमानसम यह घोषणा ह वयं रघुनाथजीक अथा जीव क नाथक । उ◌ ने आगे कहािक यह मानव शरीर ही भवसागरक िलए बेड़ा ह, भुक कपा ही अनुकलताक वायु ह, स ुही उस नौकाक अिवचल कणधार ह; ये सब ह तो दुलभ साज पर जीवने उनको सुलभ करकपा िलया ह। जो मनु य इस सु◌र समाजको पाकर भी भवसागरको पार नह कर पाता वहभुक ित कत ह और वह आ मह यारक गितको ा करता ह—

    कब क किर क ना नरदेही। देत ईश िबनु हेतु सनेही॥नरतनु भवबािरिध कह बेरो। स मुख म त अनु ह मेरो॥करनधार सदगु ढ़ नावा। दुलभ साज सुलभ किर पावा॥

    जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ।सो कृत िनंदक मंदमित आ माहन गित जाइ॥

    (मा. ७.४४.६–८, ७.४४)जैसा िक गो वािमपादक ित ा ह नानापुराणिनगमागमस मत (मा. १ म. ो. ७),

    यह भलीभाँित ◌ि गोचर होता ह। अब यह देिखये—नृदेहमा ं सुलभं सुदुलभं वं सुक पं गु कणधार ।मयानुकूलेन नभ वतेिरतं पुमा भवाि धं न तरे स आ महा॥

    (भा.पु. ११.२०.१७)अथा मनु य का शरीर सब फल का मूल ह और दुलभ होते ए भी सुलभतासे िमला ह।

    भवसागर पार करनेक िलए यह सु◌ढ नौका ह। स ु ही इसक कणधार (कवट) ह। भगवाकहते ह िक मेरी कपा पी अनुकल पवनसे यह नौका े रत अथा ल यक ओर अ सर भीह। इतना होनेपर भी जो मनु य इस संसार-सागर क पार नह करता वह आ मघाती ह।

    अब देिखए, िकतनी ग भीर बातको िकतनी सहजतासे गो वामीजीने कहा ह। उसे समझनाहोगा। पर कस?े उ र ऊपर ही िनिहत ह गु कणधार । तभी तो गु देव भगवा कहतेह—य मानसे त मानसे, जो रामच रतमानसम नह ह वह भारतीय मानसम भी नह ह।

    हम सब लोग का परम सौभा य ह िक मानसजीम िनिहत गूढाथको सहज पसेसोदाहरण ◌ुत करनेक िलए हमार बीच पदवा माणपारावारीण िनगमागमपार◌ ाकिवतािककचूडामिण सार वतसावभौम प डत का ड परमहस प र ाजकाचाय ि द डी र

  • ीरामच रतमानस-कथा संपादक य

    ीिच कटतुलसीपीठाधी र धमच वत महामहोपा याय प िवभूषण-स मािनत वाच पितजग ु रामान◌ाचाय वामी रामभ ाचायजी महाराज कणधारक पम उप थत ह।

    य तो भवसागर पार जानेक िलए संत और िव ान ने िविभ पंथ क चचा क ह—जैसे,ान-पंथ, वैरा य-पंथ, और भि -पंथ—पर◌ु ीरामच रतमानसका ता◌य तो भि ही ह। और

    हो भी नह ? ीम ागवत क माहा यम आया ह िक भि माँ ह और ान और वैरा यउनक पु । अतः भि क न होने पर तो ान और वैरा यक पु ता संिद ध हो जायेगी तथा वहपु भी तो कपु ही कहलायेगा जो माँका ही िनरादर कर दे। तभी तो गो वामीपाद मानसमकहते ह—

    िधग जीवन देवशरीर हरे। तव भि िबना भव भूिल परे॥(मा. ६.११.९)

    जे यान मान िबम तव भव हरिन भि न आदरी।ते पाइ सुर दुलभ पदादिप परत हम देखत हरी।

    (मा. ७.१३.३)भि वतं सकल सुख खानी। िबनु सतसंग न पाविह ानी॥

    (मा. ७.४५.५)मोदीनगर, मेरठक भि रसा◌ािवत रिसक ने इस भि क ाि क िलए ही स संग मागको

    अपनाया िक िबनु सतसंग न पाविह ानी, और वे शरणागत ए समथ कणधार जग ुरामान◌ाचाय वामी रामभ ाचायजी महाराजक। ीरामचिरतमानस-कथा—मानसमें तीसकथाएँ शीषक वाली रामकथाका ार भ १७ िसत बर २०१६को आ और िव ाम २५ िसत बर२०१६को। गु देव भगवा क कथा- वचन का यह साठवाँ वष चल रहा ह जो १४ जनवरी २०१७को पूण होगा। भि , ान, और वैरा यसे संपृ इस सौ य कथाने इस सौ य संव सरम हमसबको आ ािदत िकया। ब ऐसा कहा जाता ह िक वा मीिक रामायणक रचना २४ हजार

    ोक म इसिलए क गयी िक गाय ीजीक वण क सं या २४ ह। गु देवक अवधारणा हिक गाय ीका जप या ितय सिहत होता ह और या ितय सिहत गाय ीजी ३० वण क होजाती ह, अतः वा मीिकजी क गाय ीम◌ क या या का प र कार करते ए वा मीवतारतुलसीदासजी महाराजने मानसजीम ३० कथाएँ गु फत क । ा ही अ त अवधारणा ह!

    इस कथाक िवल णताका अनुमान तो पाठक पढ़कर ही लगा लगे। कथाक श द म यिदसागरक गहराई ह तो भाव म िहमालयक ऊचाई ह। िवषमसे िवषम िवषय का सरलतयािन पादन ह। गो वामी तुलसीदासक सम वयवादक तरह ही अनेकानेक िवषय , िस ा◌ , औरआ यान का रामकथासे अलौिकक सम वय ह। कह देवी दुगा म सम◌ देव क तेजक एक थहोनेक आ यानक साथ रामकथाका सम वय थािपत िकया गया ह, तो कह सां यशा मितपािदत उप थत व◌ुको भी न देख पानेक आठ कारण क साथ सम वय िदखाया गया ह।

    गु देवक यि वम यिद कछ सम ह तो वह ह उनक सरलता, तरलता, स दयता, इ यािदिजसे हम छकर भी नह छ पाते। इसी सरलताम गु वरका आदेश हो गया इन नौ िदवसीयवचन को पु◌काकार प देने का और वह भी िदस बर २०१६ तक ही। िवषयका गा भीय,

    x

  • संपादक य ीरामच रतमानस-कथा

    वाचकक ानग रमाम डत मह ा, और अपनी अ तासे हमलोग ल त और संकिचतहो रह थे। हाम भरने का साहस नह कर पा रह थे पर आ या िसर पर नाथ तु हारी (मा.१.७७.४)। अ◌तः यह काय ार भ िकया गया। पु◌काकार प देने म य -त कछ अिनवायप रवतन भी िकये गये ह। वचन-कालम िकसी िवषयको सु प करने हतु क गयी पुन ि कोछोड़ भी िदया गया ह तथा कछ थल पर सु प ता हतु गु देवक ही वा≠यिनिधसे कछ र कोजोड़ भी िदया गया ह, पर◌ु सव यह महाराज ीक अनुमोदनसे ही आ ह। इतना यान रखागया ह िक िवषयानु मिणका सवथा तदनुवत हो एवं भाव, भाषा, तथा शैली पूवव रह।

    एक बात और, इस बार मानसजीक छ◌ और चौपाई इ यािदक का पाठ गु देवने स वरिकया ह। अतएव य -त जो माि क िवकितयाँ देखी जाती ह उनका भी यान इस पु◌कमरखा गया ह। सामा यतः ए कार तथा ओ कार गु (ि माि क) होते ह पर छ◌ और गायनकअनुरोधसे यह कभी-कभी लघु (एकमाि क) भी होते ह, यथा मन जािह राँचॆउ िमिलिह सोबर सहज सु र साँवरो (मा. १.२३६.९)। यहाँ राँचॆउम ए कार एकमाि क ह, अत: वमा ािच (चॆ)का योग िकया गया। यही थित ओ कारम भी ह यथा सॊइ बसुधातल सुधातरिगिन (मा. १.३१.८)। यहाँ सॊइम ओ कार एकमाि क ह, अत: व मा ािच (सॊ )कायोग िकया गया। यास िकया गया ह िक पाठम इसका सव अनुसरण िकया जाए। िफर

    भी म- माद-िव िल सा-करणापाटवािद स भा य दोष तथा हम लोग क अ ानताक कारणजो भी ुिटयाँ रह गय ह गी, उनक िलए िव वर हम लोग को मा करते ए माग- दशन करतािक भिव यम ुिटय का अपमाजन हो सक।

    अ◌म, िजस कार ग ाजी क समचा ग ाजलसे ही होती ह उसी कार गु देव भगवाक समचा उ◌ क कित एवं उ◌ ारा द साम यसे उनक वचन को पु◌काकार पदेकर क जा रही ह िजससे गु वर और रघुवरक कपा ा हो।

    इित िनवेदयतो गु पादप च रीकौ

    डॉ. रामाधार शमा और िन यान िम

    मकर सं ा ◌ िव.सं. २०७३(१४ जनवरी २०१७ ई.)

    xi

  • भूिमका॥ नमो राघवाय॥

    भुषुि डभूते रया व तुल युश मानसराजहस ।सौिमि सीतािचतपादप ं रामं भजे नीलपयोदकाि ॥

    तुलसीिगिरस भूता ीरामाणवसंगता।एषा ीमानसी ग ा पुनाित भुवन य ॥

    सीताराम पदारिव मकर मधु त।रामभ सुरधेनु शा िनगमागम स मत॥

    ोक सोरठा छद िद य दोहा चौपाई।तुलसीदास महेश मुिदत किव कोिकल गाई॥रामभ िगिरधर गिदत म लमय पावन था।ेमसिहत सादर सुनो रामचिरतमानस कथा॥

    प रपूणतम परा◌र परमा मा भगवा ीसीतारामजीक अहतुक कपाने सम◌ भारतीयमनीषाको पू ीभूत करक गो वामी तुलसीदासजीक पम अवतीण िकया और उ◌लसी-हषवधन भु वा मीिकक अवतार गो वामी तुलसीदासजीक कालजयी रचनाीरामच रतमानसजीक म लमयी कथाने स पूण िव को एक ऐसा सां कितक पा दान

    िकया िक िजसका सह ा दय पय◌ आधम य वीकारता रहगा मानव समाज। स पूण वैिदकवा≠यम गाय ी-म◌का एक अपूव अवदान रहा ह और सभी लोग यह कहते ह—गाय ींवेदमातर । अथा , गाय ी वेद क माँ ह। महिष वा मीिकजीने गाय ीक चौबीस अ र कआधार पर वा मीिक-रामायणम चौबीस हजार म◌ क रचना क । वह म ार भ होताह—त सिवतुवरे यं भग देव य धीमिह िधयो यो नः चोदया । इस ि पदाक ार भसेवरेिणय को मानकर चौबीस (२४) अ र हो जाते ह। पर◌ु, इस गणनाम या ितयाँ छटजाती ह और यिद णवक साथ या ितय को जोड़ा जाए तो होते ह कल उनतीस अ र—ॐ भूभुव वः त सिवतुवरेिणयं भग देव य धीमिह िधयो योनः चोदया । पर◌ु, इसकप ा ॐ जोड़ देनेसे गाय ीक तीस अ र हो जाते ह, अथा ॐ भूभुव वः त सिवतुवरेिणयंभग देव य धीमिह िधयो योनः चोदया ॐ। अतएव, कदािच गो वामी तुलसीदासजीमहाराजने िवचार िकया होगा िक पूवावतार अथा वा मीिकक पम गाय ीक चौबीस (२४)अ र को ही याय िदया, पर◌ु इस बार या ित और णव सिहत गाय ीको याय देना होगा।और ऐसा करने पर गाय ीक कल अ र क सं या तीस (३०) होगी। फलतः गो वामीजीने तीस(३०) अ र क आधारपर रामच रतमानसम तीस (३०) कथाएँ िलख । और, यिद व थ मानससे

  • ीरामच रतमानस-कथा भूिमका

    गणना क जाए तो रामच रतमानसम तीस (३०) ही कथाएँ ह। इस योगक साथ गो वामीजीकएक अवधारणा भी िनिहत ह िक येक महीनेम तीस (३०) ही िदन होते ह। अतः येक िदनकक याणाथ गो वामीजीने एक-एक कथाका िनवचन िकया। इसीिलए रामच रतमानसम उ◌ नेतीस (३०) कथाएँ कह , और उन तीस कथा का बड़ा ही मनोहर म ह। रामच रतमानसजीकबालका डक इकतीसव दोहक चतुथ पि से एकतीसव दोह पय◌, अथा बारह पि य म,गो वामीजीने ीरामकथा क सूची ◌ुत क ह। गो वामीजी ारा गायी गय कथाएँ ह इसकार—

    िनज संदेह मोह म हरनी। करउ कथा भव सिरता तरनी॥बुध िब ाम सकल जन रजिन। रामकथा किलकलष िबभंजिन॥रामकथा किल प ग भरनी। पुिन िबबेक पावक कह अरनी॥रामकथा किल कामद गाई। सुजन सजीविन मूिर सुहाई॥सॊइ बसुधातल सुधातरिगिन। भय भंजिन म भेक भुजंिगिन॥असुरसेन सम नरक िनकंिदिन। साधु िबबुध कुल िहत िगिरनंिदिन॥संतसमाज पयोिध रमा सी। िव भार भर अचल छमा सी॥जमगन मुँह मिस जग जुमना सी। जीवन मुि हेतु जनु कासी॥रामिह ि य पाविन तुलसी सी। तुलसीदास िहत िहय लसी सी॥िशवि य मेकल शैलसुता सी। सकल िसि सुख संपित रासी॥सदगुन सुरगन अंब अिदित सी। रघुबरभगित ेम परिमित सी॥

    रामकथा मंदािकनी िच कूट िचत चा ।तुलसी सुभग सनेह बन िसय रघुबीर िबहा ॥

    (मा. १.३१.४–१.३१)यहाँ गो वामीजीने मका ब त ग भीरतापूवक िनवचन िकया ह। ार भ करते ह

    ीरामच रतमानसम विणत तीस (३०) कथा क सूची अथा तािलका—(१) िनज संदेह हरनी(२) िनज मोह भरनी (३) िनज म हरनी (४) करउ कथा भव सिरता तरनी (५) बुधिब ाम (६) सकल जन रजिन (७) रामकथा किलकलष िबभंजिन (८) रामकथा किलप ग भरनी (९) पुिन िबबेक पावक कह अरनी (१०) रामकथा किल कामद गाई(११) सुजन सजीविन मूिर सुहाई (१२) सॊइ बसुधातल सुधातरिगिन (१३) भय भंजिन(१४) म भेक भुजंिगिन (१५) असुरसेन सम नरक िनकंिदिन (१६) साधु िबबुध कुलिहत िगिरनंिदिन (१७) संतसमाज पयोिध रमा सी (१८) िव भार भर अचल छमा सी(१९) जमगन मुँह मिस जग जुमना सी (२०) जीवन मुि हेतु जनु कासी (२१) रामिहि य पाविन तुलसी सी (२२) तुलसीदास िहत िहय लसी सी (२३) िशवि य मेकलशैलसुता सी (२४) सकल िसि (२५) सुख (२६) संपित रासी (२७) सदगुन सुरगन अंबअिदित सी (२८) रघुबरभगित (२९) ेम परिमित सी (३०) रामकथा मंदािकनी िच कूटिचत चा , तुलसी सुभग सनेह बन िसय रघुबीर िबहा ।

    इस मम थम कथा ह—िनज संदेह हरनी (मा. १.३१.४), यही ह गो वामी

  • भूिमका ीरामच रतमानस-कथा

    तुलसीदासजी ारा कही ई कथा; िक गो वामीजीने अपने ही मानसी-संभवसंदेहको दूर करनेक िलए और—िनज संदेह, िनज जन क संदेहको दूर करनेक िलएरामच रतमानसजीका णयन िकया और वो कह भी रह ह— वा ःसुखाय तुलसीरघुनाथगाथा भाषािनब धमितम ुलमातनोित (मा. १. मं. ो. ७)। यहाँ वा ःसुखकायही ता◌य ह िक म—(१) व अथा स पूण जीवा मा क अ◌ःकरणक सुखक िलएमानसजीक रचना कर रहा । (२) व अथा आ मीय जन क अ◌ःसुखक िलए मानसजीकरचना कर रहा अथा अपनी मानव जाितक सुखक िलए मानसजीक रचना कर रहा ।(३) व अथा अपने धन ीरामजीक अ◌ःकरणक सुखक िलए मानसजीक रचना कर रहा। (४) व अथा ीरामजीक जो सेवक ह उनक सुखक िलए मानसजीक रचना कर रहा ।

    वे यह भी कह रह ह—भाषाब करब मैं सोई, मोरे मन बोध जॆिह होई (मा. १.३१.२)।अतएव वणानामथस ानांसे ार भ करक ततालीसव दोह पय◌ गो वामीजीने अपने तथासंत क संदेह को दूर करने वाली कथाका णयन िकया। यही ह थम िदनक कथा।

    दूसरी कथा ह मोह हरनी (मा. १.३१.४)। भर ाजजीको ीरामजीक लीला म मोह आऔर वे कह भी रह ह—अस िबचािर गटउ िनज मो (मा. १.४६.१)। भर ाजक मोहकोन करनेक िलए ीरामच रतमानसका णयन िकया गया। अतः या व ारा कही गयीऔर भर ाज ारा सुनी गयी कथा मोह हरनी ह। यह ह ि तीय कथा।

    तीसरी कथा ह म हरनी (मा. १.३१.४)। सतीजीको म आ िक भगवा श रनेराघवजीको णाम कसे कर िलया—

    श र जगतबं जगदीशा। सुर नर मुिन सब नावत शीशा॥ितन नृपसुतिह की परनामा। किह सि दानंद परधामा॥भये मगन छिब तासु िबलोकी। अज ीित उर रहित न रोकी॥

    (मा. १.५०.६-८)अतः पावतीजीक मको िनवृ करनेक िलए िशवजी ारा ीरामकथा कही गयी और वे

    कह भी रह ह—सुनु िगिरराजकुमािर म तम रिबकर बचन मम (मा. १.११५)। पावतीकोम था अतः िशवजी कहते ह—

    जासु चिरत अवलोिक भवानी। सतीशरीर रिह बौरानी॥अज न छाया िमटित तु हारी। तासु चिरत सुनु म ज हारी॥

    (मा. १.१४१.५)अतः िशव-पावती पम ◌ुत ई ीरामकथा म हरनी ह।चतुथ कथा ह—करउ कथा भव सिरता तरनी (मा. १.३१.४)। संसारनदीक तरणीक

    पम ◌ुत हो रही ह ीरामकथा। यही भुशु डजी ारा गायी गई ीरामकथा ह, जोउ रका डम पतीस (३५) चौपाइय म कही गयी। यह जीवको संसारक नदीसे पार कर देतीह—मोह नदी कह सु र तरनी (मा. ७.१५.७)।

    अब प म कथा जो रामच रतमानसक एक सौ इ सव दोहसे ार भ होकर एक सौचालीसव दोहपर िव ाम लती ह। इस कथाका नाम ह बुध िव ाम (मा. १.३१.५)। इस

  • ीरामच रतमानस-कथा भूिमका

    कथाम तीन अवतार क संि चचाक गयी ह। सनकािदको जब जय-िवजयक यवहारपरोध आया तो उ◌ ने ाप िदया; तब जय-िवजय ही िहर यकिशपु और िहर या , रावण और

    क भकण, तथा िशशुपाल और द◌व बने। और इधर जाल धरक प ी वृ◌ाक तको भुनेथाना◌ रत िकया तो वृ◌ाने शाप देकर जाल धरको रावण बननेक िलए िववश कर िदया और

    िविवधिव ािवशारद वशीकतशारद देविष नारद जब मोिहत ए तब उनक मोह-भ क िलएभगवा ने अ त लीला रची। इन तीन घटना को गो वामीजीने एक करणम बाँधा ह। इसकानाम ह—बुध िव ाम, िक बुध जन को भगवा क यशम ही िव ाम िमलता ह। भगवा कयश का वणन करक ही िव न अपनी वाणीको पिव करते ह। गो वामी तुलसीदासजीबालका डक ार भम कहते ह—

    एक अनीह अ प अनामा। अज सि दानंद पर धामा॥यापक िब प भगवाना। तॆिह धिर देह चिरत कृत नाना॥

    सो केवल भगतन िहत लागी। परम कृपाल नत अनुरागी॥जॆिह जन पर ममता अित छो । जॆिह क ना किर की न को ॥गई बहोर गरीबिनवाजू। सरल सबल सािहब रघुराजू॥बुध बरनिह हिरजश अस जानी। करिह पुनीत सुफल िनज बानी॥

    (मा. १.१३.३-८)अथा िव न भगवा क बीस यश का िचंतन करते ह। उनमसे दस यश ऐ यपरक ह और

    दस सुयश भगवा क माधुयपरक ह। तीत होता ह िक ये ही भगवा क बीस यश रावणक बीसभुजाएँ काट डालते ह। भुकपासे ये बीस यश ह और ठीक इसक िवपरीत रावणक अपयश भीह—(१) एक—देिखये, रामच◌जी एक ह तो रावण अनेक ह। (२) अनीह—यिद रामच◌जीअनीह ह तो रावणक पास ईहा ह अथा िविवध अ य◌ गलत चे ाएँ ह। (३) अ प—यिद रामच◌जी अ प ह तो रावण क प ह। (४) अनामा—यिद रामच◌जी अनाम ह तोरावण कनाम ह। (५) अज—यिद रामच◌जी अज मा ह तो रावण बार-बार ज म लता ह।(६) सि दानंद—यिद रामच◌जी सि दानंद ह तो रावण असि दानंद ह। (७) परधामा—यिद रामच◌जी परधाम ह तो रावण पापधाम ह। (८) यापक—यिद रामच◌जी यापक हतो रावण या य ह। (९) िब प—यिद रामच◌जी िव प ह तो रावणका प संि ह।(१०) भगवाना—यिद रामच◌जी भगवा ह तो रावण षड य-िवहीन ह। (११) परम कृपाल—यिद रामच◌जी परम कपाल ह तो रावण िन र ह। (१२) नत अनुरागी—यिद रामच◌जीणत-अनुरागी ह तो रावण पािपय म अनुराग करता ह। (१३) जॆिह जन पर ममता अित

    छो —यिद रामच◌जीको अपने जन पर मम व और छोह ह तो रावणको आ ोश ह, न मम वह न छोह ह उसको। (१४) जॆिह क ना किर की न को —यिद रामच◌जी क णाकरह, ोध नह करते तो रावण सदैव ोध करता ह। (१५) गई बहोर—यिद रामच◌जी -गई-बहोर- ह तो रावण व◌ु को छीन लता ह, लौटाता नह । (१६) गरीबिनवाजू—यिदरामच◌जी गरीबिनवाजू ह, गरीब का स मान करते ह तो रावण गरीब का अस मान करता ह।(१७) सरल—यिद रामच◌जी सरल ह तो रावण कठोर ह। (१८) सबल—यिद रामच◌जी

  • भूिमका ीरामच रतमानस-कथा

    सबल ह तो रावण िनबल ह। (१९) सािहब—यिद रामच◌जी सािहब ह तो रावण काम-िककरह। तथा (२०) रघुराजू—यिद रामच◌जी रघुराज ह तो रावण कछ नह , कथि ल ाकाराजा बन गया ह। इस कार भगवा क बीस यश को थािपत करनेक िलए यह बुध िव ामह। इनम परम कपाल णत अनुरागी सगुण साकारक पम भगवा ने दस यश कट िकये।जय-िवजयका उ ार करनेक िलए भगवा परम कपाल और णत अनुरागी ह। भगवा नेपृ वीपर कपा क । और णत ादसे ेह िकया। पृ वीपर कपा करक बारह अनुराग िकयेऔर ादपर भी अनु ह करनेक िलए नरिसंहावतार वीकार कर िलया भुने। जॆिह जन परममता अित छो अथा भगवा को भ पर मम व और छोह भी ह। पृ वीपर ममता ह और

    ादपर छोह। पृ वी भगवा क प ी ह और ाद ह पु । जॆिह क ना किर की न को ।जाल धरक प ीक तको भगवा ने टाला। वृ◌ाम कोई पा ता नह थी, पर भगवा ने क णाक । क णा करक उसक पास आये। वृ◌ाक ाप देनेपर भी भगवा ने ोध नह िकया। यहीह—जॆिह क ना किर की न को । और इसी कार, नारदजीक यि वम तो भगवा कछह ऐ य पूण पसे प िदख रह ह। और व◌ुतः यश ा, ये भगवा क छह भग ह—(१) ऐ य —गई बहोर भगवा का ऐ य ह। (२) धम —गरीबिनवाजू भगवा का धम ह।(३) यश —सरल भगवा का यश ह। (४) ी —सबल भगवा क ी ह। (५) ान —सािहबभगवा का ान ह। (६) वैरा य —रघुराजू भगवा का वैरा य ह। अथा िव मोिहनीको देखकरनारदक मनम काम, ोध, लोभ, मद, मोह, और मा सय छह व◌ुएँ आ गय । (१) काम —काम आया, नारदका सब कछ चला गया—गई बहोर। (२) ोध — ोध आया, नारद गरीबहो गये, अथा िव मोिहनीक मोहम अपनेको इतना परत◌ कर िलया। (३) लोभ —लोभ आयातो नारद किटल हो गये, सरल नह रह। िव मोिहनीको देखकर झूठ बोल िदया। ल ण कोदेखकर बनावटी बात क —ल न तासु िबलोिक भुलाने, दय हरष निह गट बखाने(मा. १.१३१.२)। (४) मोह —मनम मोह आया तो िनबल हो गये—देिख प मुिन िबरितिबसारी, बड़ी बार लिग रहे िनहारी (मा. १.१३१.१)। (५) मद —नारदक मनम मद आयातो उ◌ ने उ म ताका बताव िकया और भगवा क पास जाकर उ◌ क आसनपर बैठ गये।(६) मा सय —नारदक मनम मा सय आ तभी तो—समरभूिम तॆिह जीत न कोई (मा.१.१३१.३) अथा नारद ऐसी मिहला चाहते ह िजसक आने से वे िव िवजयी हो जाएँ, उ◌कोई जीत न सक। इस कार काम, ोध, लोभ, मद, मोह, और मा सय इन छह कामकिवषय ने नारदको पतनो मुख बना िदया। पर नारद एक ऐसे यि वसे जुड़ रह ह िजसकम क पना नह कर सकता। काम, ोध, लोभ, मद, मोह, और मा सय छह ह। अतएवनारदको बचानेक िलए भगवा ने छः यश का योग िकया। (१) गई बहोर—नारदका गयाआ च र लौटा िलया भगवा ने। पुिन जल दीख प िनज पावा, तदिप दय संतोष न

    आवा (मा. १.१३६.१)। वानरका प देकर भगवा ने कपा क , काम को समा कर िदया।(२) गरीबिनवाजू—भगवा ने नारदको स मािनत िकया, ोध समा िकया। (३) सरल—ाप लनेक बीचम ही आ गये—बीचिह पंथ िमले दनुजारी। (मा. १.१३६.४), नारदका लोभ

    समा कर उ◌ शर य बनाया। (४) सबल—नारदका मोह समा कर उ◌ सबल बनाया।

  • ीरामच रतमानस-कथा भूिमका

    (५) सािहब—नारदका मद समा कर उ◌ सािहब बना डाला और (६) रघुराजू—नारदकामा सय समा कर उ◌ रघुकल-राज बना िदया। इस कार बुध िव ाम।

    अब छठी कथा—सकल जन रजिन (मा. १.३१.५)। यह कथा स पूण भ को आन◌देती ह। यह ह मनुक कथा। मनुका स पूण प रवार स प ह िफर भी वे भगवा क समानपु चाहते ह—चाहउ तुमिह समान सुत भु सन कवन दुराव (मा. १.१४९)। भगवाकट हो रह ह। वे तीन को आन◌ दे रह ह—नील सरो ह नील मिन नील नीरधर याम,

    लाजिह तनशोभा िनरिख कोिट कोिट शत काम (मा. १.१४६)। सकल जन रजिन, अथासबक मनको यह कथा स कर रही ह। सबक मनको यह कथा आन◌ दे रही ह। इसिलए(१) नील सरो हसे पातालवािसय क मनको, (२) नील मिनसे म यलोकवािसय क मनकोतथा (३) नील नीरधर यामसे आकाशवािसय क मनको आन◌ दे रही ह। यह ह—बुधिब ाम सकल जन रजिन। इस कार यही ह मनुक कथा, जो छठी कथा ह। और संयोगसेइसी व पम भगवा ने—(१) नारदजीको ध य-ध य कर िदया, (२) मनुजीको ध य-ध य करिदया, (३) शत पाजीको ध य-ध य कर िदया। सबको आन ◌त िकया। बुध िब ाम सकलजन रजिन, रामकथा किलकलष िबभंजिन। और मनुने भी यही माँगा था िक आप मेर यहाँपु बनकर आय। छठी कथाम तीन लोक म रहने वाल को आन ◌त िकया। इसीिलए, इसेसकल जन रजिन। कहा गया। हमार भारतीय वा≠यम (१) आकाश, (२) पाताल, (३) म यलोक—ये तीन लोक कह जाते ह तथा इ◌ को सं कत ि लोक कहते ह। स पूण प रवारकोछोड़कर मनुजी शत पाक सिहत ीरामजीको ा करनेक िलए नैिमषार य गये और उ◌ नेतप याक भी तीन ही िवभाग िकये ह— (१) थम िवभागम जल िपया, (२) ि तीय िवभागमवायु पी, और (३) तृतीय िवभागम वायु भी छोड़ दी—

    ऄिह िविध बीते बरष षट सहस बािर आहार।संबत स सह पुिन रहे समीर अधार॥

    बरष सहस दश यागॆउ सॊऊ। ठाढ़े रहे एक पद दोऊ॥(मा. १.१४४, १४५.१)

    इसीिलए मनुको वरदान देनेक िलए (१) ा, (२) िव णु, और (३) िशव—ये ि देव आये,पर इनको भी उ◌ ने लौटाया। अतएव, तीन लोक को रि त करने वाल भगवा ीरामकााक आ और गो वामीजीने उस शोभाका वणन िकया—नील सरो ह नील मिन नील

    नीरधर याम, लाजिह तनशोभा िनरिख कोिट कोिट शत काम (मा. १.१४६)। भगवा ने(१) नील सरो हसे जलचर को आन ◌त िकया, (२) नील मिनसे थलचर को आन ◌त िकयातथा (३) नील नीरधर यामसे नभ र को आन ◌त िकया। इस कार सबको आन ◌त िकया।अ◌तोग वा, लाजिह तनशोभा िनरिख कोिट कोिट शत काम (मा. १.१४६)। मनुक समभगवा कट ए। भगवा ने पूछा—“ा चािहए मनु?” सकुच िबहाइ माँगु नृप मोही, मोरेनिह अदेय कछ तोही (मा. १.१४९.८)। “संकोच छोड़कर माँग लो न!” मनुने कहा—चाहउतुमिह समान सुत (मा. १.१४९), “म आपक समान पु चाहता । और व◌ुत◌ु, समानतु याथम नह पर मानक सिहत। म पु तो चाहता पर◌ु आपक ित मेरा स मान उसी

  • भूिमका ीरामच रतमानस-कथा

    कार रहना चािहए अथा साधारणीकरण मुझे वीकाय नह होगा। आप भगवा बनकर मुझेकतक य कर।” भगवा ने ध य कर िदया। अतएव—सकल जन रजिन।

    रामकथा किलकलष िबभंजिन (मा. १.३१.५)— ीरामकथा किलयुगक पाप को नकरती ह। यह सातव कथा ह। किलयुगक पाप ा ह—तामस ब त रजोगुन थोरा, किलभाव िबरोध च ओरा (मा. ७.१०४.५)। यहाँ तमोगुण ब त ह, रजोगुण थोड़ा ह, और

    चार ओरसे िवरोध ह। इसी िवड बनाको दूर करने क िलए भुका रामावतार हो रहा ह। यहाँतमोगुण और रजोगुण समा ए— ेता भइ कृतजुग कै करनी (मा. ७.२३.६) अथा ेतामभी कतयुग, थम युग, आ गया। और, भगवा ीरामका अवतार आ—चर अ अचरहरषजुत राम जनम सुखमूल (मा. १.१९०)। स यसंध भुक आनेसे सार पाप दूर हो गये।अब कह पाप नह होगा। भगवा ीरामका नाम ही सार पाप को न कर देता ह—जासु नामपावक अघ तूला, सुिमरत सकल सुमंगल मूला (मा. २.२४८.२)। इसिलए—रामकथाकिलकलष िबभंजिन।

    रामकथा किल प ग भरनी (मा. १.३१.६)—किलयुग प सपको न करनेक िलएभरणी न क भूिमकाम ह आठव ीरामकथा। यही भगवा का शेष-च रत ह। शेष-च रतमकिलयुगम सप नह रह जाता, वह समा हो जाता ह। जीव भगव मय हो जाता ह। रामकथाकिल प ग भरनी।

    पुिन िबबेक पावक कह अरनी (मा. १. ३१.६)। नौव ीरामकथा िववेक प अरिणकिलए अि क समान ह। यहाँ िववेकका ही तो योग हो रहा ह। भोजन करते ए दशरथजीीरामजीको बुला रह ह, पर उनक िम को नह बुला रह ह तो—निह आवत तिज बाल

    समाजा (मा. १.२०३.६)। इसीिलए भगवा ीरामजी नह आये। यहाँ भी िववेक ह। भगवा कोअकल कभी नह बुलाना चािहए, उनको तो सायुध सप रकर बुलाना चािहए। इसी कार—गु गृह गए पढ़न रघुराई, अलप काल िब ा सब आई (मा. १.२०४.४); यहाँ पढ़नेजा रह ह। िव ाका फल ही ह िववेक—िव ा िबनु िबवेक उपजाये, म फल पढ़े िकएअ पाये (मा. ३.२१.९)। ीित नय िबनु मद ते गुनी, नासिह बेिग नीित अिस सुनी(मा. ३.२१.११)। िरपु ज पावक पाप भु अिह गिनय न छोट किर, अस किह िबिबधिबलाप किर लागी रोदन करन (मा. ३.११)। अतः िववेक प अरिणक िलए यह कथाअि क समान ह। सव िववेकका ही प रचय यहाँ भगवा ने िदया ह। अलप काल िब ासब आई—िव ाका आना ही िववेकका वा◌िवक ल य ह। इसिलए यह लीला िववेक पअरिणक िलए पावकक समान ह।

    और अब, भगवा क िववाहक कथा। इसिलए कहते ह—रामकथा किल कामद गाई(मा. १.३१.७)। यह दसव कथा किलयुगम कामधेनुक समान ह। सब कछ दे देती ह। यही कथाह िव ािम क आगमनक कथा। िव ािम जी ीअवध पधार रह ह और दशरथजी िनःसंकोचीरामका दान कर रह ह। िनि त पसे यह कथा किलयुगम कामधेनु गायक समान ह। गायक

    पास चार ◌न होते ह। इसी कार इस कथाम भी चार िवभाग कह गये ह—(१) ीराम दशन,(२) ीरामक त वका िवमश, (३) ीरामका दान, और (४) पुनः ीरामक झाँक क धारणा।

  • ीरामच रतमानस-कथा भूिमका

    इसम भगवा ने तीन लोग का दमन (ताटका, मारीच, और सुबा ) करक िव ािम क र ा कतथा आपु रहे मख की रखवारी (मा. १.२१०.२)। अतः वयं किलकामद गाई िस होगयी।

    सुजन सजीविन मूिर सुहाई (मा. १.३१.७)—यही ह अह यो ारक यारहव कथा।अह यो ारम भगवा ने एक स ीवनीको ◌ुत िकया और वह ह—रघुपित भगित सजीवनमूरी (मा. ७.१२२.७)। भगवा क भि ही स ीवनी बूटी ह, भगवा ने उसीको कट करिदया। अह या ध य हो गयी। अह याने भगवा क चरण-कमलक रज चाही। भगवा ीरामनेिव ािम जीसे िज ासा क —“अह या मेरी चरण-रज चाहती ह?” िव ािम जीने कहा—“आप गु ह—जग ु च शा त , तुरीयमेव केवल (मा. ३.४.९)। पर◌ु भु िपतु मातुसु द गु वामी (मा. २.२९८.१), और गु होनेक कारण िश य तो गु देवक चरण-कमलकरज चाहगा ही। ा आपि कर दी?” िव ािम जी और िव◌ारसे भगवा से कहते ह—“आप गु ह। हमको आपक चरण-कमलक परागम सु िच ह—बंदउ गु पद पदुम परागा,सु िच सुबास सरस अनुरागा (मा. १.१.१)। आपक चरणम सु िच ह और अह याक मनमक िच ह। आपक चरणम सुबास ह और अह याक मनम कबास ह। आपक चरण सरस हऔर अह याका मन नीरस ह। आपक चरणम अनुराग ह और अह याक मनम हयराग ह।इसिलए चरन कमल रज चाहती (मा. १.२१०)। भु! अिमय मूिरमय चूरन चा (मा.१.१.२)—अह या ण हो चुक ह। अिमय मूिरमय—अमृतक जड़ी, जो सु◌र चूण ह, वहमाया और मोहका जो एक कारसे अ यासा मक स ब ध ह उसको यह दूर कर देती ह। शमनसकल भव ज पिरवा (मा. १.१.२)—अह या ण ह और आपक चरण क धूिल सभीरोग क प रवारको दूर कर देती ह। भु! इसिलए भी उसे आपक चरण-कमलक धूिल चािहए।सुकृित शंभु तनु िबमल िबभूती (मा. १.१.३)—आप सवसमथ ह भु! अह या आपसेअपे ा करती ह िक उसे पूण श र बना िदया जाए, आधा श र तो बन चुक ह। अह याअपने िपता ाका कतृ व भी झुठलानेक िलए तैयार ह िक उसका जीवन वासना मक होचुका ह, अतः ण ह। श र तो बन गयी, आधा श र बनी। उसे पूरा श र बनना ह औरपूरा श र बननेक िलए आपक चरण क उसे िवभूित चािहए। अह याक जीवनम म ल नहह और आपक चरण क धूिल मंजुल मंगल मोद सूती (मा. १.१.३) ह अथा यह मधुरम ल और स ता को ज म देने वाली ह। इसिलए भी अह याको आपक चरण-कमलकरज चािहए। जन मन मंजु मुकुर मल हरनी (मा. १.१.४)—अह याका मन दपणक समानह और उसक मलको दूर करना होगा, पर कोमलतासे। यिद हठा हो गया तो उसका मनोभभी हो सकता ह। िकये ितलक गुनगन बश करनी (मा. १.१.४)—इसिलए उसको ितलकसेिवभूिषत कर दीिजये, िजससे स पूण गुण-गण को वशम कर सक। ीगु पदनख मिनगनजोती (मा. १.१.५)—अह याक मनम कोई योित नह ह इसिलए कोई िसि ा नहहो रही ह। सुिमरत िद य ि िहय होती (मा. १.१.५)— भु! आपक चरणक नख पमिणगण क योितक सुिमरनसे िद य ◌ि आती ह और अह याक पास िद य ◌ि नह ह,अतः वह चरण-कमल रज चाहती ह। अब कपा क िजये भु! दलन मोह तम सो सु कासू

  • भूिमका ीरामच रतमानस-कथा

    (मा. १.१.६)—अह याक मनम जो मोह प अ धकार ह, उसको न कर दीिजये। बड़े भागउर आवइ जासू (मा. १.१.६)। उघरिह िबमल िबलोचन ही के (मा. १.१.७)—अह याकपास ने का अभाव ह, इसक दयक ने खुलने चािहएँ। िमटिह दोष दुख भवरजनी के (मा.१.१.७)—संसार-राि क दोषको िमटाना होगा। आप कपा करक अह याक संसारक दोषकोिमटा दीिजये। जथा सुअंजन अंिज ग साधक िस सुजान, कौतुक देखिह शैल बनभूतल भूिर िनधान (मा. १.१)—अह याक जीवनम अ न चािहए और आपक चरण कधूिल अ न ही तो ह। इस कार, सुजन सजीविन मूिर सुहाई अथा अह याजीक कथास न क िलए स ीवनी बूटी ह। अब कपा क िजये भु!”

    अह यो ारक प ा , अब गो वामीजीक बारहव कथा ह—सॊइ बसुधातल सुधातरिगिन(मा. १.३१.८)। यह िववाह कथा ह। अथा यह ीरामकथा पृ वी पम अमृत बनकर कटई। िमिथलाक या ाम भुने सव अमर व ही दान िकया। िकसीको ेह-सुधा दी, िकसीकोप-सुधा, िकसीको शील-सुधा, िकसीको सौ◌य-सुधा, िकसीको ऐ य-सुधा, और िकसीको

    माधुय-सुधा। िक ब ना, भल राजा ने तो कह िदया िक ीराम-ल मण सुधाक सागर बनकरआये ह—सुधा समु समीप िबहाई, मृगजल िनरिख मर कत धाई (मा. १.२४६.५)। येसुधाक सागर ह। िजतना हो सक, अमृत पी लो। िमिथलािनयाँ कहती ह—मरनशील िजिम पाविपयूषा, सुरत लहै जनम कर भूखा (मा. १.३३५.५) अथा भुका दशन मरणशीलकिलए अमृत ाि क समान ह। सॊइ बसुधातल सुधातरिगिन। अह यो ारक प ा भुकािमिथलाम गमन हो रहा ह। सव अमृतक ही वषा हो रही ह, जहाँ देखो वहाँ अमृत ही अमृतह। मरण-धमसे भुने सबको मु िकया ह।

    राम सीय िशर सेंदुर देहीं। शोभा किह न जाित िबिध केहीं॥अ न पराग जलज भिर नीके। शिशिह भूष अिह लोभ अमी के॥

    (मा. १.३२५.८-९)यहाँ अमृतक लोभसे सप कमलम भली कारसे लाल पराग भरकर च◌माको सुशोिभत

    कर रहा ह। यहाँ सीताजीका मुख च◌मा ह। सोहत जनु जुग जलज सनाला, शिशिह सभीतदेत जयमाला (मा. १.२६४.७)। तो वहाँ ीरामच◌जीका मुख च◌मा ह—रामचं मुख चंछिब लोचन चा चकोर, करत पान सादर सकल ेम मोद न थोर (मा. १.३२१)।इसीिलए यहाँ चकोर क बड़ी लबी तािलका ह। सभी चकोर ही बने। िव ािम जी चकोर बन रहह—भये मगन देखत मुख शोभा, जनु चकोर पूरन शिश लोभा (मा. १.२०७.६)। वयंिवदेहराज जनक चकोर बन रह ह—सहज िबराग प मन मोरा, थिकत होत िजिम चंचकोरा (मा. १.२१६.३)। ीसीतामुखक ीरामच◌जी चकोर बने—अस किह िफिर िचतयेतॆिह ओरा, िसयमुख शिश भे नयन चकोरा (मा. १.२३०.३), एवं सीताजी वयं चकोरीबन —अिधक सनेह देह भइ भोरी, शरदशिशिह जनु िचतव चकोरी (मा. १.२३२.६)।सव चकोर क ही भरमार ह। िक ब ना, सीताजीक माता चकोरी बन —

    तुलसी मुिदत मन जनकनगर जनझाँकतीं झरोखें लागीं सोभा रानीं पावतीं।

  • ीरामच रतमानस-कथा भूिमका

    मन चकोरीं चा बैठीं िनज िनज नीडचंदकी िकिरन पीवैं पलकौ न लावतीं॥

    (क. १.१३)अयो या पय◌ अमृतक नदी बहती आयी और माता को भी भगव◌ाि उसी कार हो

    रही ह—पावा परम त व जनु जोगी, अमृत लहेउ जनु संतत रोगी (मा. १.३५०.६)। इसकार ीरामिववाह कथा—सुधा तरि नी।

    अब गो वामीजी अयो याका डका उप म करते ह। अयो याका डम दो ही कथा का◌ाव िकया ह—भय भंजिन म भेक भुजंिगनी (मा. १.३१.८)। अयो याका डक

    पूवाधक कथा भय भंजिन ह। सबको अभय दान करनेक िलए भुने अपने वनवासकलीला ◌ुत क ह। सभीक मनम िकसी न िकसी कारका भय ह। िक ब ना, महाराज दशरथवयं भयभीत ह—कोपभवन सुिन सकुचॆउ राऊ, भयबश अग ड़ परइ न पाऊ (मा.

    २.२५.१)। ककयी वयं भयभीत ह—सभय रािन कह कहिस िकन कुशल राम मिहपाल(मा. २.१३)। सिचव सुम◌ भयभीत ह—सिचव सभीत सकइ निह पूँछी (मा. २.३८.८)।और ल मणजी—माँगत िबदा सभय सकुचाहीं (मा. २.७३.८)। सव भय ही भय ह। िनभयकवल भगवा ीराम ह और उनका यि व ह। सबको िनभयता दान कर रह ह। इसीसेआज कवट भी नह डरा—माँगी नाव न केवट आना, कहइ तु हार मरम मैं जाना (मा.२.१००.३)। च वत क पु से िनभ क होकर तू-तू म-म करता जा रहा ह। उसे िकसी भी कारकाडर नह लग रहा ह। कहता ह िक भल ही—केवटकी जाित कछ बेद न पढ़ाइहौं, ..., िबनापग धोये नाथ नाव ना चढ़ाइहौं (क. २.८)। कह देता ह िक भु! िबना पग धोये नाथनाव ना चढ़ाइहौं। इसिलए अयो याका डका पूवाध, राम-वनवास करण, सबको िनभय बनारहा ह। इस तेरहव कथाम कोल-िकरात भी िनभ क होकर भगवा ीरामसे बातचीत करते ह।

    म भेक भुजंिगनी (मा. १.३१.८)—चौदहव भरतकथा म प मढकको न करनेकिलए सिपनीक समान ह। सबको एक कारका म ह िक ा होगा, ा नह । प रणाम िकसकप म जायेगा। अयो यावािसय को भरतक ित म ह—भरत कुशल पूँिछ न सकिह भयिबषाद मन मािह (मा. २.१५८)। ककयीक यि वक ित सबको म ह िक ऐसा हो गया। और यह भरतजीका च र जीवनक सभी प क मको न करता ह। दुख दाहदािरद दंभ दूषन सुजश िमस अपहरत को, किलकाल तुलसी से शठिन हिठ रामसनमुखकरत को (मा. २.३२६.९)। अतएव, भरतचिरत किर नेम तुलसी जो सादर सुनिह, सीयराम पद ेम अविश होइ भवरस िबरित (मा. २.३२६)। म भेक भुजंिगनी—यह म

    प मढकको न करनेक िलए सिपनीक समान ह। सबका म दूर आ। भरतजीको भुनेपादुका दान कर दी— भु किर कृपा पाँवरी दी ीं, सादर भरत शीष धिर ली ी (मा.२.३१६.४)।

    अर यका डक ार भको गो वामीजीने कहा िक यह कथा पावतीक समान ह—असुरसेनसम नरक िनकंिदिन, साधु िबबुध कुल िहत िगिरनंिदिन (मा. १.३१.९)। िगिरनंिदिनश दम यहाँ ेष ह, अथा असुरसेन सम नरक िनकंिदिन िगिरनंिदिन। इस कार अथ

    १०

  • भूिमका ीरामच रतमानस-कथा

    आ िक िजस कार पावतीजीने असुर क सेनाका संहार िकया, उसी कार यह कथा नरककासंहार करती ह। यही ह जय◌िन ह कथा। जय◌ने नरक जैसा कक य िकया पर◌ु भुककपाने उसका समाधान कर िदया। जय◌पर भगवा ने ा का योग िकया। कनोपिनष मपावतीजीने इ◌को का बोध कराया था। उसी कार इस कथाने इ◌-पु जय◌को काबोध कराया—

    नारद देखा िबकल जयंता। लािग दया कोमलिचत संता॥पठवा तुरत राम पह ताही। कहॆिस पुकािर नतिहत पाही॥

    (मा. ३.२.९-१०)इसिलए यह जय◌-िन हक कथा प◌हव कथा ह।साधु िबबुध कुल िहत िगिरनंिदिन (मा. १.३१.९)। संत को आन◌ देनेक िलए सोलहव

    ीरामकथा ग ाजीक समान ह। ग ाजीने चार थान को े बनाया—(१) ह र ार, (२)याग, (३) काशी, और (४) ग ासागर। उसी कार इस स म यह कथा भी चार मुिनय कयि वसे स ब होकर िवराजमान हो रही ह—(१) अि , (२) शरभ , (३) सुती ण, और

    (४) अग◌य। अि से भट ह र ारक ग ा ह। भगवा शरभ से िमल रह ह, यही यागक ग ाह। यहाँ कामदेवक पाँच बाण का भ हो रहा ह और माियक प को छोड़कर शरभ जीवैक ठ जा रह ह—अस किह जोग अिगिन तनु जारा, रामकृपा बैकुंठ िसधारा (मा.३.९.१)। सुती णजीका जो दशन भगवा का हो रहा ह वह काशीक ग ा ह। और ग ासागरक समान अग◌यजीसे िमलन ह। वहाँ ग ा सागरसे िमलती ह और यहाँ अग◌यजीका यि वरामजीसे िमल रहा ह। ग ाजीने साठ हजार सगरपु का उ ार िकया। यहाँ अग◌यजीक योगसेअनेकानेक ा ण का उ ार आ, वैिदक धमका उ ार आ। इसिलए, साधु िबबुध कुलिहत िगिरनंिदिन—सा ा ग ाक समान।

    अ त आन◌ हो रहा ह। संतसमाज पयोिध रमा सी, िव भार भर अचल छमा सी(मा. १.३१.१०)। स हव ीरामकथा संत समाज प ीरसागरसे उ◌ ई ल मीजीकसमान ह। यही ह ल मण-गीताका करण। ल मण-गीताम भगवा ीरामने पाँच िस ा◌ कािन पण िकया ह—(१) व व प, (२) पर व प, (३) उपाय व प, (४) फल व प, और(५) िवरोिध व प। इसी कार जैसे यहाँ संत क समाज प ल मीजीका ाक समु -म थनसेआ, उसी कार वेद प सागरका म थन कर ीरामकथा कट हो रही ह— पयोिनिध

    मंदर ान संत सुर आिह, कथा सुधा मिथ काढ़िह भगित मधुरता जािह (मा. ७.१२०)।िव भार भर अचल छमा सी (मा. १.३१.१०)—संसारक भारको धारण करनेक िलए

    यह ीरामकथा अचल पृ वीक समान ह। यही स ह शूपणखाका जो अठारहव कथा ह।अथा िजस कार िकसी भी कारसे पृ वी नह िडगती उसी कार इस कथाक नायक भगवाीराम शूपणखाक िकसी भी प से नह िडग रह ह, सु थर ह। पृ वीको शेषने धारण िकया

    ह। इसी कार शूपणखाको िव िपत कर ल मणजीने चा रि क पर परा प पृ वीक र ा करली।

    और अब—जमगन मुँह मिस जग जुमना सी (मा. १.३१.११)। अथा यम-गण क मुखपर

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  • ीरामच रतमानस-कथा भूिमका

    याही लगानेक िलए यह उ ीसव कथा यमुनाक समान ह। यही खरदूषण- स क कथा ह।इ◌ ने इतना बड़ा पाप िकया था िक इनको यमराजक यहाँ जाना था, इनको नरक होता पर◌ुीरामकथाने यम-गण क मुखम कािलख लगाकर इ◌ सा ा िनवाण पद दे िदया—राम राम

    किह तनु तजिह पाविह पद िनबान, किर उपाय िरपु मारेउ छन मह कृपािनधान (मा.३.२०)। और स पूण रा स समाज साकत-लोकको ा हो गया। खर, दूषण, ि िशरा, औरउनक चौदह सह सैिनक को भगवा ने साकत लोक दे िदया—जमगन मुँह मिस जग जुमनासी। वहाँ भी यमुना यमराजक बहन ह, पर◌ु उनक स पकम आकर भ गण यमराजसे छटगये, इसी कार यहाँ भी भगवा ीरामक कथाक स पकम आकर, भगवा रामका गुणगानकर रा स भी यमराजक ब धनसे छट गये।

    जीवन मुि हेतु जनु कासी (मा. १.३१.११)। यह बीसव कथा ह। इसका ार भसीताजीक अि -िनवास करणसे होता ह। काशी महा मशान ह। वहाँ अि कभी बुझती नह ।इसी कार यहाँ भी अि बुझ नह रही ह। िक ब ना, काशीम तो अि देव सबको जला डालते हपर यहाँ सीताजीको भगवा ने अि म िनवास िदया। अि ने सीताजीको भ म नह िकया िक—नैनं िछ ि श ािण नैनं दहित पावकः, न चैनं ेदय ापो न शोषयित मा तः (भ.गी. २.२३)। काशीम ही आ मत वका िववेचन होता ह और आ मत वक िलए यही कहा जाताह। इसीिलए अि नह जलाती, श नह काटते, जल गीला नह करता, वायु नह सुखाता। ठीकइसी आ मत वक आधारपर सीताजीको भगवा ने अि म िनवास िदया—तुम पावक मह करिनवासा, जब लिग करौं िनशाचरनाशा (मा. ३.२४.२) अथा जबतक म रा स का नाशकर रहा तबतक आप अि म िनवास कर लीिजये। और सीताजी अि म वेश कर गय — भुपद धिर िहय अनल समानी (मा. ३.२४.३)। पूण काशीका वणन! वहाँ भी महा मशान औरयहाँ भी। पर◌ु वहाँ मशानम मृतक जला और यहाँ अि म जाकर भी सीताजी नह जल ,यह वैिश◌ ह। काशी प ोशा मका ह, यहाँ भी पाँच लोग को भगवा ने मुि दी—(१)मारीचको, (२) जटायुको, (३) कब धको, (४) शबरीको, एवं (५) नारदको। मुि क शा नेपाँच भेद कह—(१) सामी य मुि —इस कथाम भगवा ने मारीच जैसे रा सको सामी य मुिदे दी। मारीच भुको दूर ल गया—ऄिह िविध भुिह गऄऊ लै दूरी (मा. ३.२७.१४), पर◌ुभगवा मारीचको समीप ल आये। यही तो वैल य ह। िनज पद दी असुर कह दीनबंधुरघुनाथ (मा. ३.२७)। (२) सा य मुि —जटायुको भगवा ने सा य मुि दी—गीध देहतिज धिर हिर पा, भूषन ब पट पीत अनूपा (मा. ३.३४.१)। सा यका अथ होता हसमान प। समान श द ति त सा यका वाचक होता ह। ीरामजीने जटायुको अपना

    प नह िदया, अपने समान िव णुजीका प िदया—गीध देह तिज धिर हिर पा। भूषन ब पट पीत अनूपा॥याम गात िबशाल भुज चारी। अ ुित करत नयन भिर बारी॥

    (मा. ३.३४.१-२)(३) सालो मुि —कब धको भगवा ने सालो मुि दी। कब धने भगवा को अपनी

    बा म जकड़ िलया। भगवा ीराम और ल मणने उसक भुजाएँ काट दी, उसको मारकर

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  • भूिमका ीरामच रतमानस-कथा

    जलाया और तुर◌ उसे रा स योिनसे छटकारा िमला—रघुपितचरन कमल िशर नाई, गऄउगगन आपिन गित पाई (मा. ३.३६.४)। (४) साि मुि —शबरीको भगवा ने साि मुिदी। साि का अथ होता ह सायु य, भगवा म लीन हो जाना। शबरीने भुको मातृ- ेम िदया,चरणपखार, अपने आँचलक आसनपर बैठाया और क◌, मूल तथा फल िखलाये। भुने नवधाभि दी। िफर शबरी योगाि म शरीर छोड़कर भुक चरण म लीन हो गय —तिज जोग पावकदेह हिर पद लीन भइ जह निह िफरे (मा. ३.३८.१४)। यही ह साि अथा सायु य मुि ।(५) एक व मुि —नारदजीको भगवा ने एक व मुि दी। एक वका अथ भागवतक अनुसारहोता ह—एक वं स ब धः।

    गो यः कामा या ंसो ेषा ै ादयो नृपाः।स ब धा ृ णयः ेहा ूयं भ ा वयं िवभो॥

    (भा.पु. ७.१.३०)स ब धा ृ णयः, इसी स ब धक या या क —कामं ोधं भयं ेहमै ं सौ दमेव च

    (भा.पु. १०.२९.१५)। तो, ऐ ं स ब ध (त य भावाथदीिपका), ऐसा ीधराचाय भी कहतेह। अथा नारदजीको भगवा ने स ब ध-बोध कराकर एक व मुि दे दी। भगवा ने नारदजीसेकहा िक तुमको सब कछ ा ह, पर एक प से अभी तुम अधूर हो। तुमको माँ नह िमली िक तुम ाजीक गोदसे उ◌ ए हो—उ स ा ारदो ज े (भा.पु. ३.१२.२३), अतःम तु ह स ब ध-बोध करा रहा । अब तुम मुझे माँ मान लो— वमेव म�