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उदय काश टेपच यह ि जो कु छ लिख हुआ है, वह कहनी नह है। कभी-कभी सचई कहनी से भी यद हैरत ि गेज होती है। टेपचू के बरे सब कु छ जन िने के बद आपको भी ऐस ही िगेग। टेपचू को बहुत करीब से जनत हि हमर ि मड़र सोन नदी के लकनरे एक–दो फिग के फसिे पर बस हुआ है। री शयद कु छ और कम हो, यलक ि की औरत सुबह खेत जने से पहिे और शम को वह ि से िटने के बद सोन नदी से ही घरेिू कम–कज के लिए पनी भरती है। ये औरत कु छ ऐसी औरत ह, लजह मने थकते हुए कभी नह देख है। वे िगतर कम करती जती है। ि के िसोन नदी ही डुबलकय ि ि-िगकर नहते ह। डुबलकय ि िपने ियक पनी गहर करने के लिए नदी के भीतर कु इय ि खोदनी पड़ती है। नदी की बहती हुई धर के नीचे बिू को ि जुलिय से सरक लदय जए तो कु इय ि बन जती है। गमी के लदन सोन नदी पनी इतन कम होत है लक लबन कु इय ि बनए आदमी धड़ ही नह भगत। यही सोन नदी लबहर पहुि चते–पहुि चते लकतनी बड़ी हो गई है, इसक अनुमन आप हमरे ि के घट पर खड़े होकर नह िसकते। हमरे ि दस-यरह सि पहिे अबी नम एक मुसिमन रहत थ। ि के बहर जह ि चमर की बती है, उसी से कु छ हटकर तीन-चर घर मुसिमन के थे। मुसिमन मुलगिय ि , बकररय ि पिते थे। िउह लचकव कटुआ कहते थे। वे बकरे -बकररय के गोत ि भी करते थे। थोड़ी बहुत जमीन भी उनके पस होती थी। अबी आवर और फकड़ लकम आदमी थ। उसने दो–दो औरत के सथ शदी कर रखी थी। बद एक औरत जो यद खूबसूरत थी, कबे के दजी के घर जकर बैठ गई। अबी ने ग़म नह लकय। ि चयत ने दी को लजतनी रकम भरने को कह, उसने भर दी। अबी ने उन ऱपय से कु छ लदन ऐश लकय और लफर एक हरमोलनयम खरीद िय। अबी जब भी हट जत, उसी दी के घर रकत। खत–

Uday Prakash - Tepchu

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Short story of the famous contemporary Hindi writer Uday Prakash.

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