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आलेख जाति और सामातजक गतिशीलिा ओमकाश कशप जीवन सभी का होिा है. इतिहास भी सभी का होिा है. जो लोग अपने इतिहास के ति उदासीन होिे हह, वे लटेरऔर आकामकर के इतिहास का तहसा बन जािे हह. लेककन िब उनक भतमकाए बदल जािी हह. लटेरे और आकामइतिहास म दाल और देशभ बन जािे हह. जबकक कमजोर और अपने इतिहास के ति उदासीन सीे-सादे लोग लटेरे, बेईमान और सकति के दशमन घोति कर कदए जािे हह. इसीतलए गणीजन कहिे हह, अपना इतिहास व तलखने क आदि डालो. तलखे-तलखाए इतिहास पर भरोसा मि करो. कद उसे पना मजबरी है िो उसके पातर क भतमका को बदलकर पो. उपलब इतिहास का सच जानना है िो उसक भतमकाए बदलकर पो. भारिी समाज, तवशेकर हहद म जाति के बि पराने हह. ह ऐसी हककि है तजसके कारण हद म को अनेकानेक आलोचनाए झेलनी पडी हह. इसका सहारा लेकर कतति ची जातिा शिातबदर से तनत जातिर का शोण करिी आई हह. इस कारण कछ आलोचक जाति-ता को भारिी समाज का कलक मानिे हह. वे गलि नह हह. आज भी समाज म जो भारी असमानिा और च-नीच है, आदमी-आदमी के बीच गहरा भेदभाव है जाति उसका बडा कारण है. समाजातक समानिा के लक ह आज भी सबसे बडी बाा है. जािी उपीडन के तशकार समाज के दो-तिहाई से अतक लोग, तनरिर इसक जकडबदी से बाहर आने को छटपटािे रहे हह. दा-कदा उह आतशक सफलिा भी तमली है. मगर आमतवशास क कमी और बतक दासिा क मनतति उह बार-बार कतति ची जातिर का वचव वीकारने को बा करिी रही है. भारिी समाज म जाति-तवान इिना अतक भावकारी है क तसख और इलाम जैसे म भी, तजनम जाति के तलए तसािि कोई तान नह है इसके भाव से अछिे नह हह. इनम तसख म का िो जम ही जाति और म पर आारि तवमिा के तिकार-वप आ ता, जबकक इलाम क बतनाद बराबरी और भाईचारे पर रखी गई ती. भारि म आने के बाद इलाम पर भी जाति- भेद का रग च चका है. जाति आारि तवभाजन परी िरह अमानवी है. ह मनष क नैसगक वितिा म अवरो उप करिा है. जाति और वण क सकलपना सामा मनोतवान के भी तवपरीि है, तजसके अनसार जम के सम सभी तशश एक समान होिे हह. उनका मतिषक कोरी सलेट जैसा होिा है. एकदम साफ. इबारि उसपर बाद म तलखी जािी है. ाण और श के तशश को कद एक सात, एक ही जगल म छोड कदा जाए और उनसे ककसी भी कार का सपक न रखा जाए; िो समान अवत के उपराि दोनर क बतक परपिा का िर लगभग एक-समान होगा. जो भी अिर होगा, उसके पीछे उनक देह-त का ोगदान होगा. लगभग वैसा ही तवकास जैसा पश और व ातण

जाति और सामाजिक गतिशीलता

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कार्य-विभाजन समाज की आवश्यकता है. मनुष्य की अनेकानेक भौतिक-अभौतिक आवश्यकताएं उससे जुड़ी होती हैं. इसलिए वही कार्य-विभाजन श्रेष्ठ माना जाता है, जो मनुष्य की अधिकतम उत्पादकता को सामने लाए और जरूरत पड़ने पर उसमें सुधार भी कर सके. उत्पादकता के आकलन के नियम आज के नहीं है. कम से कम दो शताब्दियों से तो उनपर खुलकर विचार किया जा रहा है. जाति-व्यवस्था उनके आगे कहीं नहीं टिकती. इसलिए वह आधुनिक विमर्श से बाहर है. केवल चलन में है. वह भी इसलिए कि जो वर्ग इससे लाभान्वित हैं, वे इसे छोड़ना नहीं चाहते. प्रत्यक्ष या परोक्ष हठ के द्वारा इसे अपनाए हुए हैं. अच्छा होता जाति-व्यवस्था का मूल्यांकन भी व्यक्ति की सामाजिक-आर्थिक और भौतिक जरूरतों के आधार पर किया जाता. यदि ऐसा होता तो उसकी परिभाषाओं पर बहस होती. उसकी समाजेतिहासिकता को बहुत पहले विमर्श में शामिल किया जाता. तब उन विसंगतियों से बचा जा सकता था, जो वर्ण के जाति में रूढ़ होने के साथ-साथ जन्मीं और लगातार बढ़ती गईं. मगर भारत में कार्य(वर्ण) विभाजन को सामाजिक-सांस्कृतिक सवाल बनाकर जानबूझकर समीक्षा से काट दिया. नतीजा यह हुआ कि जाति और वर्ण को लेकर पूरा समाज दो हिस्सों में बंट गया. एक वे जो उसका समर्थन करते हैं, दूसरे वे जो शताब्दियों तक जातीय शोषण का शिकार रहने के बाद आज उससे नफरत करते हैं. संख्या जाति-व्यवस्था के आलोचकों की अधिक और निर्णायक है. लोकतांत्रिक दौर में विचार बहुमत को प्रभावित ही नहीं करते, उससे प्रभावित भी होते हैं,

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आलेख

जाति और सामातजक गतिशीलिाओमप्रकाश कशकश्यप

जीवन सभी का होिा है. इतिहास भी सभी का होिा है. जो लोग अपने इतिहास के प्रति उदासीन होिे हह, वे ललुटेरर

और आकामकर के इतिहास का तहस्ससा बन जािे हह. लेककन िब उनककी भभूतमकाएएं बदल जािी हह. ललुटेरे और आकामक

इतिहास म में दकश्याललु और देशभक्त बन जािे हह. जबकक कमजोर और अपने इतिहास के प्रति उदासीन सीधेे-सादे लोग

ललुटेरे, बेईमान और सएंस्सककृति के दलुशमन घोतोषिि कर कदए जािे हह. इसीतलए गलुणीजन कहिे हह, अपना इतिहास स्सवकश्यएं

तलखने ककी आदि डालो. तलखे-तलखाए इतिहास पर भरोसा मि करो. कश्यकद उसे पढ़ना मजबभूरी है िो उसके पातर ककी

भभूतमका को बदलकर पढ़ो. उपलबधे इतिहास का सच जानना है िो उसककी भभूतमकाएएं बदलकर पढ़ो.

भारिीकश्य समाज, तवशेोषिकर हहएंदलुओं म में जाति के प्रश्न बहुि पलुराने हह. कश्यह ऐसी हककीकि है तजसके कारण हहएंदभू धेमर्म को

अनेकानेक आलोचनाएएं झेलनी पडी हह. इसका सहारा लेकर कतति ऊंएंची जातिकश्याएं शिातबदकश्यर से तनम्नस्सत जातिकश्यर का

शोोषिण करिी आई हह. इस कारण कलुछ आलोचक जाति-प्रता को भारिीकश्य समाज का कलएंक मानिे हह. वे गलि नहहीं हह.

आज भी समाज म में जो भारी असमानिा और ऊंएंच-नीच है, आदमी-आदमी के बीच गहरा भेदभाव हैꟷजाति उसका

बडा कारण है. समाजार्तर्मक समानिा के लककश्य ककी कश्यह आज भी सबसे बडी बाधेा है. जािीकश्य उत्पीडन के तशकार

समाज के दो-तिहाई से अतधेक लोग, तनरएंिर इसककी जकडबएंदी से बाहर आने को छटपटािे रहे हह. कश्यदा-कदा उन्हह में

आएंतशक सफलिा भी तमली है. मगर आत्मतवशास ककी कमी और ब बौतौद्धिक दासिा ककी मनी मनःतस्सतति उन्हह में बार-बार कतति

ऊंएंची जातिकश्यर का वचर्मस्सव स्सवीकारने को बाध्कश्य करिी रही है. भारिीकश्य समाज म में जाति-तवधेान इिना अतधेक

प्रभावकारी है कक तसख और इस्सलाम जैसे धेमर्म भी, तजनम में जाति के तलए तसौद्धिाएंििी मनः कोई स्सतान नहहीं हैꟷ इसके प्रभाव

से अछभूिे नहहीं हह. इनम में तसख धेमर्म का िो जन्हम ही जाति और धेमर्म पर आधेारिरि तवोषिमिाओं के प्रतिकार-स्सवरूप हुआ

ता, जबकक इस्सलाम ककी बलुतनकश्याद बराबरी और भाईचारे पर रखी गई ती. भारि म में आने के बाद इस्सलाम पर भी जाति-

भेद का रएंग चढ़ चलुका है.

जाति आधेारिरि तवभाजन पभूरी िरह अमानवीकश्य है. कश्यह मनलुषकश्य ककी नैसर्गर्मक स्सविएंतिा म में अवरोधे उत्पन्न करिा है.

जाति और वणर्म ककी सएंकलपना सामान्हकश्य मनोतवज्ान के भी तवपरीि है, तजसके अनलुसार जन्हम के समकश्य सभी तशशलु एक

समान होिे हह. उनका मतस्सिषक कोरी सलेट जैसा होिा है. एकदम साफ. इबारि उसपर बाद म में तलखी जािी है.

ब्ाह्मण और शभूद्र के तशशलुओं को कश्यकद एक सात, एक ही जएंगल म में छोड कदकश्या जाए और उनसे ककसी भी प्रकार का सएंपकर्म

न रखा जाए; िो समान अवतधे के उपराएंि दोनर ककी ब बौतौद्धिक परिरपक्विा का स्सिर लगभग एक-समान होगा. जो भी

अएंिर होगा, उसके पीछे उनककी देह-कश्यत्टि का कश्योगदान होगा. लगभग वैसा ही तवकास जैसा पशलुओं और वन्हकश्य प्रातणकश्यर

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म में कदखाई पडिा है. जातहर है मनलुषकश्य अपने गलुण-कमर्म और प्रवकृतवृत्तिकश्याएं समाज म में रहिे हुए ग्रहण करिा है. जाति-व्यवस्सता

के अनलुसार मान तलकश्या जािा है कक फलाएं तशशलु ‘पएंतडि’ के घर म में जन्हमा है, इसतलए उसम में जन्हमजाि पाएंतडत्कश्य है. जबकक

शभूद्र के घर म में जन्हम लेने वाले तशशलु सामान्हकश्य बलुतौद्धि-तववेक से भी वएंतचि मान तलए जािे हह. इसतलए उनका काम बिाकश्या

जािा हैꟷ तवप्र वगर्म ककी सेवा करना, उनककी चाकरी करिे हुए जीवन तबिाना. कश्यह तोपी हुई दासिा है, परएंिलु हहएंदभू

परएंपरा म में इसे धेमर्म बिाकश्या गकश्या है. तबना कोई शएंका ककए, चलुपचाप परएंपरानलुसरण करिे जाने को पलुरुोषिातर्म ककी सएंज्ा दी

जािी रही है. इस िरह जो धेमर्म बलुतौद्धिमवृत्तिापभूणर्म व्यवहार ककी अपेक्षा केा के सात ब्ाह्मण को शीोषिर्म पर रखिा है , और प्रकाएंिर

म में मानवीकश्य तववेक का सममान करिा हैꟷव्यवस्सता बनिे ही समाज के अस्ससी प्रतिशि लोगर से ब बौतौद्धिक हस्सिक्षा केेप और

पसएंदर का अतधेकार छीनकर, पभूरे समाज को नए ज्ान का तवरोधेी बना देिा है. हहएंदभू धेमर्म ककी कश्यही तवडएंबना समकश्य-

समकश्य पर उसके ब बौतौद्धिक एवएं राजनीतिक पराभव का कारण बनी है. आज भी समाज म में जो भारी असमानिा और

असएंिोोषि है, उसके मभूल म में भी जाति ही है. जाति का लाभ उठा रहे वग्गों और जािीकश्य उत्पीडन का तशकार रहे लोगर के

बीच अतवशास ककी खाई इिनी गहरी है कक सएंस्सककृति को लेकर जरा-सी बहस भी चले िो जनिा का बडा तहस्ससा

उसपर सएंदेह करने लगिा है. इससे कई बार धेार्मर्मक-साएंस्सककृतिक सलुधेारवादी आएंदोलन भी खटाई म में पड जािे हह.

वैसे भी पाएंतडत्कश्य, हचएंिन-मनन और स्सवाध्कश्याकश्य ककी उपलतबधे होिा है. वह न िो बैठ-ेठाले आ सकिा ह,ै न ही व्यतक्त का

जन्हमजाि गलुण हो सकिा है. कतति दैवी अनलुकएंपा भी जडबलुतौद्धि व्यतक्त को पएंतडि नहहीं बना सकिी. दभूसरी ओर जाति ह ै

कक उसके माध्कश्यम से एक वगर्म जन्हमजाि पाएंतडत्कश्य के दावे के सात हातजर होिा है िो दभूसरा वगर्म ‘शासक’ के रूप म में . कफर

तनतहि स्सवातर्म के तलए कश्ये दोनर वगर्म सएंगरिठि होकर शेोषि समाज के तलए शोोषिक ककी भभूतमका म में आ जािे हह . ‘पाएंतडत्कश्य’ को

कश्यकद ज्ान का पकश्यार्मकश्य भी मान तलकश्या जाए िो वह स्सवाभातवक रूप से व्यवहार का तवोषिकश्य होगा, अनलुभव का तवोषिकश्य

होगा, प्रदशर्मन ककी वस्सिलु वह हरतगज नहहीं हो सकिा. कश्यकद हम प्राचीन पलुराणर और टीकाओं ककी बाि कर में िो उनम में

दर्शर्मि ज्ान प्रदशर्मन और मतहमामएंडन से आगे नहहीं बढ़ पािा. पभूरी ककी पभूरी ब्ाह्मण मेधेा, कलुछ अपवादर को छोडकर,

देविाओं के नख-तसख वणर्मन और उनके छल-प्रपएंच भरे कालपतनक तवजकश्य अतभकश्यानर के बखान म में लगी रहिी है. मनलुषकश्य

का अतस्सित्व, तजसने तवोषिम परिरतस्सततिकश्यर से जभूझकर, आपदाओं से तनरएंिर सएंघोषिर्म करिे हुए इस धेरिी को रहने लाकश्यक

बनाकश्या है, इन ग्रएंतर म में बस एक दास तजिना है. उपतनोषिदर म में अवशकश्य कलुछ शे्ष, शे्षिर और शे्षिम है, मगर उनम में भी

जबरदस्सि दोहराव है. बाककी सब आत्मरति और मनी मनःरएंजन का तवोषिकश्य िो हो सकिा है. समाज का वास्सितवक तहि

उससे सधे ही नहहीं सकिा. इस वास्सितवकिा को जाति-व्यवस्सता के शीोषिर्म पर म बौजभूद लोग जानिे जरूर ते, मगर तनतहि

स्सवातर्म ककी खातिर सत्कश्य ककी ओर से मलुएंह फेरे रहिे ते. उन्हहरने शभूद्रर के तलए धेमर्मग्रएंतर का अध्कश्यकश्यन केवल इसतलए तनतोषिौद्धि

नहहीं कककश्या कक वे उन्हह में अपात मानिे ते. डर कश्यह भी ता कक शभूद्र कश्यकद वेदाकद धेमर्मग्रएंत पढे़ंेथएंगे िो उनम में दजर्म देवर ककी सवृत्तिा

लोललुपिा, वासनाएएं, साधेारण सम्ाट ककी िरह ककए गए छल-प्रपएंच पर तवमशर्म करने का अतधेकार भी उन्हह में तमल

जाएगा. ककश्यरकक धेमर्म और शास्त्र के नाम पर मनमानी िभी िक चल सकिी है, जब िक सामनेवाला अनपढ़ हो, कश्या

उसे जानबभूझकर अनपढ़ रखा गकश्या हो. जब व्यतक्त जानने लगिा है िो सवाल भी उठाने लगिा है. सएंभविी मनः वे भभूल गए

ते कक नदी ककी िरह तवचार भी तनरएंिर गतिशील रहने पर ही शलुौद्धि रह पािे हह . ठहराव आिे ही उनम में अशलुतौद्धिकश्याएं

पनपने लगिी हह. आलोचना, तवमशर्म न हो िो परएंपरा के नाम पर आडएंबरर को खलुली छभूट तमल जािी है. जाति, धेमर्म

और सएंस्सककृति के नाम पर इस देश म में कश्यही हुआ. आडएंबरपभूणर्म शास्त्रीकश्यिा धेीरे-धेीरे सभकश्यिा और सएंस्सककृति के पाखएंड म में

ढे़ंलिी चली गई. ऐसा नहहीं कक इसका तवरोधे नहहीं हुआ. आडएंबरवाद को प्रत्कश्येक कश्यलुग म में लिाडा गकश्या, किंकएंिलु सवृत्तिा के

तशखर पर म बौजभूद लोग तवरोधे को हमेशा नजरएंदाज करिे रहे. तवरोधे म में रचे गए सातहत्कश्य और कलाओं को पलुराने

जमाने के ‘गजनतवकश्यर’ दारा तनममर्मिापभूवर्मक तमटाकश्या जािा रहा.

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कलुछ देर के तलए कश्यकद मान भी तलकश्या जाए कक वणर्म-तवभाजन ित्कालीन समाज म में काकश्यर्म-तवभाजन के तलए आवशकश्यक

ता. हमारे पभूवर्मजर ने समाज ककी आवशकश्यकिाओं, सलुख एवएं सएंसाधेनर ककी वकृतौद्धि हेिलु बडे ही बलुतौद्धिमवृत्तिापभूणर्म ढे़ंएंग से उसे चार

वण्गों म में तवभातजि कककश्या ता. उनका ध्कश्येकश्य समाज के सएंपभूणर्म सलुख एवएं सएंसाधेनर म में वकृतौद्धि करना ता. दभूसरे शबदर म में जाति

और वणर्म को कश्यकद काकश्यर्म-तवभाजन ककी बेहिरीन पौद्धिति मान तलकश्या जाए िो उन्हह में अतर्मशास्त्र का तवोषिकश्य होना चातहए ता.

धेमर्म और सएंस्सककृति का तहस्ससा बनाने का कोई औतचत्कश्य नहहीं रह जािा. कश्यकद कश्यह कहा जाए कक प्राचीनकाल म में सभी कलुछ

धेमर्म और सएंस्सककृति का तहस्ससा ता....कक ‘अतर्मशास्त्र’ म में अतर्मनीति, राजनीति, व्यवहारशास्त्र आकद सभी कलुछ हैꟷ िो भी

जािीकश्यिा ककी सएंकलपना के चार-पाएंच हजार वोषि्गों म में उसपर कभी िो अतर्मशास्त्रीकश्य दकृत्टिकोण से तवचार कककश्या जाना

ता? आकलन कककश्या जािा कक काकश्यर्म-तवभाजन ककी उस परएंपरागि भारिीकश्य प्रणाली ककी समसामतकश्यक उपकश्योतगिा कैसी

और ककिनी है? तनषपक्षा के समीक्षा केा के बाद ही उन्हह में बनाए रखने कश्या हटाने का तनणर्मकश्य लेना चातहए ता. जैसे कश्यभूनान म में

हुआ ता. पलेटो ने मनलुषकश्यर को स्सवणर्म, रजि और ल बौह वग्गों म में बाएंटा ता. उसने जन्हम को उसके तलए आधेार नहहीं बनाकश्या

ता. उसके दारा ककए गए वगर्गीकरण का आधेार व्यतक्त के अपने गलुण और प्रवकृतवृत्तिकश्याएं तहीं. िो भी अरस्सिलु को अपने गलुरु का

कश्यह तवचार जमा नहहीं. उसने कश्यह मानिे हुए कक मानव-व्यतक्तत्व जरिटल रचना है, और उसका इस िरह सरलीकरण

नहहीं कककश्या जाना चातहए, पलेटो दारा ककए गए वगर्गीकरण को अनलुपकश्यलुक्त मानकर उसे आधेी शिाबदी से भी कम समकश्य

म में नकार कदकश्या ता. भारि म में ऐसा नहहीं हुआ. इसतलए नहहीं हुआ ककश्यरकक उस अवैज्ातनक काकश्यर्म-तवभाजन को तशखरस्सत

वग्गों का समतर्मन प्राप्त ता. सवृत्तिाधेारी वग्गों के स्सवातर्म उससे जलुडे ते. उसके बहाने वे समाज के अतधेकाएंश सएंसाधेनर पर

कबजा जमाए रखिे ते. इसतलए एक के बाद एक स्समकृति-ग्रएंत वणर्म-व्यवस्सता को मजबभूि बनाने के तलए रचे गए.

साएंस्सककृतिक वैतवध्कश्य के मलुख बौटे म में जािीकश्य भेदभाव को बचाकश्या गकश्या.

ग बौरिलब है कक काकश्यर्म-तवभाजन समाज ककी आवशकश्यकिा है. मनलुषकश्य ककी अनेकानेक भ बौतिक-अभ बौतिक आवशकश्यकिाएएं

उससे जलुडी होिी हह. इसतलए वही काकश्यर्म-तवभाजन शे्ष माना जािा है, जो मनलुषकश्य ककी अतधेकिम उत्पादकिा को सामने

लाए और जरूरि पडने पर उसम में सलुधेार भी कर सके. उत्पादकिा के आकलन के तनकश्यम आज के नहहीं है. कम से कम दो

शिातबदकश्यर से िो उनपर खलुलकर तवचार कककश्या जा रहा है. जाति-व्यवस्सता उनके आगे कहहीं नहहीं रिटकिी. इसतलए वह

आधेलुतनक तवमशर्म से बाहर है. केवल चलन म में है. वह भी इसतलए कक जो वगर्म इससे लाभातन्हवि हह, वे इसे छोडना नहहीं

चाहिे. प्रत्कश्यक्षा के कश्या परोक्षा के हठ के दारा इसे अपनाए हुए हह. अचछा होिा जाति-व्यवस्सता का मभूलकश्याएंकन भी व्यतक्त ककी

सामातजक-आर्तर्मक और भ बौतिक जरूरिर के आधेार पर कककश्या जािा. कश्यकद ऐसा होिा िो उसककी परिरभाोषिाओं पर बहस

होिी. उसककी समाजेतिहातसकिा को बहुि पहले तवमशर्म म में शातमल कककश्या जािा. िब उन तवसएंगतिकश्यर से बचा जा

सकिा ता, जो वणर्म के जाति म में रूढ़ होने के सात-सात जन्हमहीं और लगािार बढ़िी गई. मगर भारि म में काकश्यर्म(वणर्म)

तवभाजन को सामातजक-साएंस्सककृतिक सवाल बनाकर जानबभूझकर समीक्षा केा से काट कदकश्या. निीजा कश्यह हुआ कक जाति

और वणर्म को लेकर पभूरा समाज दो तहस्ससर म में बएंट गकश्या. एक वे जो उसका समतर्मन करिे हह, दभूसरे वे जो शिातबदकश्यर िक

जािीकश्य शोोषिण का तशकार रहने के बाद आज उससे नफरि करिे हह. सएंखकश्या जाति-व्यवस्सता के आलोचकर ककी अतधेक

और तनणार्मकश्यक है. लोकिाएंततक द बौर म में तवचार बहुमि को प्रभातवि ही नहहीं करिे, उससे प्रभातवि भी होिे हह, इसतलए

जाति-समतर्मकर के स्सवर दबे-दबे होिे हह. चभूएंकक मन से वे जातिभेद के समतर्मक हह िता ककसी न ककसी रूप म में उससे

लाभातन्हवि भी हह, इसतलए उनका अपना जीवन और हचएंिन अएंिर्वर्मरोधेर से भरा होिा है. समाज का कश्यह वगर्म आज भी

जाति को अपनी अतस्समिा का पकश्यार्मकश्य समझिा है; और वह चाहिा है कक दभूसरे वगर्म भी जाति ककी मकश्यार्मदाओं को समझ में,

इसतलए उन वग्गों के पास जो जाति-अनलुकम म में तनचले स्सिर पर हह, सीधेे तवरोधे के अलावा और कोई रास्सिा रह ही

नहहीं जािा. कश्यह तवरोधे कभी धेमाांिरण के रूप म में सामने आिा है िो कभी जािीकश्य सएंघोषिर्म के रूप म में.

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सवाल है कक च बौिरफा तवरोधे और आलोचनाओं के बावजभूद जाति जीतवि ककश्यर है? तवरोधेर म में डटे रहने ककी खलुराक

उसे कहाएं से तमलिी है? प्रश्न भले ही नए लग में, इनका उवृत्तिर अनजाना नहहीं है. जैसा ऊंपर कहा गकश्या है, जाति कश्यकद

सचमलुच काकश्यर्म-तवभाजन ककी जरूरि होिी िो वह अतर्मशास्त्र के तवमशर्म का तवोषिकश्य भी होिी; कश्या देर-सवेर अतर्मशास्त्रीकश्य

दकृत्टिकोण से उसककी समीक्षा केा ककी जािी. उस अवस्सता म में उसे बहुि पहले अप्रासएंतगक मान तलकश्या गकश्या होिा. मगर ऐसा

कभी नहहीं कककश्या गकश्या. इसतलए कक वह काकश्यर्म-तवभाजन ककी प्रणाली ती ही नहहीं. असल म में वह अतभजन तहिर ककी सलुरक्षा केा

के तलए ककी गई असमानिाकारी और स्सवातर्मपरक व्यवस्सता ती, तजसम में शतक्तशाली वगर्म केवल अपनी जरूरिर के तहसाब

से लोगर को अलग-अलग पेशे म में बाएंट रहे ते. कफर जैसे-जैसे उस वगर्म ककी जरूरि में बढ़ी, जातिकश्यर ककी सएंखकश्या म में िेजी से

बढ़ोवृत्तिरी होिी गई. वह एक चालाककी-भरा कदम ता. उन अनेक कदमर म में से एक तजन्हह में अतभजन वगर्म शेोषि समाज पर

अपना वचर्मस्सव काकश्यम रखने के तलए उठािा है. आर्तर्मक-सामातजक असमानिा से ग्रस्सि समाजर म में मलुट्ठी-ी-भर अतभजन

सवृत्तिा-प्रतिषानर पर कबजा जमाए होिे हह. बाककी जनसमाज उनसे कहहीं अतधेक शतक्तशाली होने के बावजभूद, बएंटा होने

के कारण अपनी वास्सितवक शतक्त से अपरिरतचि होिा है. शीोषिर्मस्सत अतभजन उसे छोटे-छोटे वग्गों म में बाएंटकर उसककी

प्रभावी शतक्त को कमजोर कर देिे हह, और उस बएंटी हुई शतक्त को अपने तहिर ककी सलुरक्षा केा के तलए काम म में लािे हएंै. इससेै.

इससे गैर-अतभजन वगर्म ककी शतक्तकश्याएं अपने ही समभूहर से टकराकर जाकश्या होिी रहिी हह. बएंटा हुआ जनसमाज अपने ही

सदस्सकश्यर पर सएंदेह करना है. चभूएंकक उत्पादकिा के अतधेकाएंश सएंसाधेनर पर अतभजन समलुदाकश्य का अतधेकार होिा है,

इसतलए रोजी-रोटी ककी मजबभूरिरकश्याएं भी गैर-अतभजन समाज को अतभजनर के आदेशानलुपालन हेिलु तववश करिी हह. इस

काम म में धेमर्म और सएंस्सककृति मददगार बनिे हह. अिी मनः इस प्रश्न के उवृत्तिर म में कक जाति को तवरोधेर के बीच डटे रहने ककी

खलुराक कहाएं से तमलिी है, तवशासपभूवर्मक कहा जा सकिा हꟷै धेमर्म और सएंस्सककृति से.

ऋगवेद का पलुरुोषिसभूक्त जातिभेद-वगर्मभेद का बीज-मएंत है. उसम में तलखा है कक ब्ाह्मण, ब्ह्मा के मलुख से, क्षा केततकश्य भलुजाओं

से, वैशकश्य उदर से िता शभूद्र उसके पैरर से जन्हमे हह ‘ꟷ ब्ाह्मणोऽस्सकश्य मलुखामासीदाहू राजन्हकश्यी मनः ककृिी मनः. ऊंरू िदस्सकश्य कश्यदैशकश्यी मनः

पदाएं शभूद्रो अजाकश्यि.’ ब्ह्मा कश्यहाएं समाज का प्रिीक हह. इसका लककश्यातर्म है कक समाज म में ज्ान, व्यापार िता सेवाकमर्म

चार प्रमलुख अएंग होिे हह. रूपक के चकश्यन म में भी चिलुराई देखी जा सकिी है. कश्यकद सीधेे-सीधेे काकश्यर्म-तवभाजन कककश्या जािा

िो देर-सवेर लोगर का ध्कश्यान उसके औतचत्कश्य पर भी जािा. ऐसा न हो इसतलए अतभजन वैकदक मनीतोषिकश्यर ने उसे

साएंस्सककृतिक रूपक के माध्कश्यम से प्रस्सिलुि कककश्या ता. िाकक उसको आस्सता और तवशास ककी साम्गी के रूप म में देखा जाए.

आलएंकारिरक भाोषिा केवल कतविा म में ही फबिी है. ब बौतौद्धिक तवमशर्म को उससे दभूर रखने ककी सलाह दी जािी है. दरअसल

तमतकर और हबएंबर ककी तवशेोषििा होिी है कक उन्हह में सामान्हकश्य तववेक के सहारे मनचाहा आकार कदकश्या जा सकिा है . व े

सवर्मसाधेाराण ककी चेिना का तहस्ससा भले हर, मगर समकश्य-समकश्य पर उनककी ऐसी व्याखकश्याएएं होिी रहिी हह जो उनककी

मभूल सएंकलपना से एकदम अलग होिी हह. जैसे इएंद्र का तमतक. वह एक ओर देवराज है. दभूसरी ओर देविाओं म में ही सबसे

बडा खलनाकश्यक. तगरे हुए चरिरत का स्सवामी, तजसे अपने हसएंहासन के तखसकने का भकश्य हमेशा सिािा रहिा है. इसककी

प्रिीकात्मकिा को देख में िो सवृत्तिा तछन जाने का भकश्य केवल इएंद्र का भकश्य नहहीं ता. कश्यह हर उस राजा का डर हो सकिा है,

जो प्रजा कलकश्याण से दभूर, केवल भोग-तवलास म में तलप्त रहिा है. बावजभूद इसके देवराज इएंद्र के तमतक के जरिरकश्ये उस ओर

हमारा ध्कश्यान नहहीं जािा. इसतलए कक वह भ बौतिक जगि का न होकर, साएंस्सककृतिक तवमशर्म का तहस्ससा है; और सएंस्सककृति

Page 5: जाति और सामाजिक गतिशीलता

को प्राकश्यी मनः आस्सता और तवशास का तवोषिकश्य माना जािा है. इएंद्र उन देविाओं का सम्ाट है तजन्हह में मत्र्यकश्य जीवन के क्टिर का

सामना नहहीं करना पडिा. तमतकर के तवरूपण कश्या उनककी नवव्याखकश्याओं के पीछे सकारात्मक और नकारात्मक दोनर

ही प्रकार के दकृत्टिकोण हो सकिे हह. कलुल तमलाकर तमतक उससे अपने परएंपरागि सएंदभ्गों से कट सकिा है. अिएव

तमतक को कश्यतातर्म मानना, ‘ईशर ककी मभूर्िर्म है, इसतलए ईशर भी है’ꟷजैसा ही भाएंि धेारणा ह.ै इसके बावजभूद

परएंपरावाकदकश्यर का जािीकश्य तवभाजन को लेकर ब्ह्मा के तमतक म में तवशास आज भी बना हुआ है. गीिा म में ककृषण स्सवकश्यएं

को तवराट पलुरुोषि के रूप म में पेश कर, वणर्म-भेद ककी इसी सएंकलपना को आगे बढ़ािे हह ‘ꟷ चािलुवर्मणर्ममरूपक मकश्यास्रषएं गलुण-कमर्म

तवभागभकश्य’....‘महने चार प्रकार के मनलुषकश्यर ककी रचना ककी है. उनके गलुण, स्सवभाव के आधेार पर उन्हह में वण्गों म में तवभातजि

कककश्या है.’ दबे स्सवर म में ही सही, परएंपरावादी आज भी इन तघसे-तपटे िक्गों को आगे बढ़ाकर असमानिाकारी जाति-

व्यवस्सता के पोोषिण म में लगे रहिे हह.

कलुछ तवदानर के अनलुसार पलुरुोषि-सभूक्त ऋगवेद का प्रक्षा केेतपि तहस्ससा है. इस िथ्कश्य से इन्हकार नहहीं कककश्या जा सकिा. ऋगवेद

आकश्य्गों ककी कई शिातबदकश्यर ककी कश्यादर को समेटे हुए है. उसका आरएंतभक तहस्ससा िब का है जब आकश्यर्म भारि-भभूतम पर पाएंव

जमाने का प्रकश्यास ही कर रहे ते. उस समकश्य िक वणर्म-व्यवस्सता इिनी जरिटल नहहीं हुई ती. वैसे भी ब्ह्मा प्राचीनिम

देविा नहहीं है. भारि म में तशव और बाककी सभकश्यिाओं म में सभूकश्यर्म प्राचीनिम देविा रहे हह. आरएंभ म में शभूद्र राजन्हकश्य और ब्ाह्मण

केवल िीन वणर्म ते. इसके सात ही ऋकक, कश्यजलुर्म, साम िीन वेद. वेद तकश्यी और वणर्म-तकश्यी का सामकश्य ता. कालाएंिर म में जब

शभूद्रर के एक वगर्म ने स्सवकश्यएं को आर्तर्मक रूप से सएंपन्न कर तलकश्या िो उसककी उपेक्षा केा कर पाना असएंभव हो गकश्या. च बौते वगर्म

ककी कलपना करनी पडी. कश्यजलुव्वेद म में वैशकश्य और क्षा केततकश्यर को सजािीकश्य कहा गकश्या है. इसतलए जब िक वेद िीन रहे, िब

िक िीन वणर्म भी मान्हकश्य रहे हरगे. कालाएंिर म में च बौते वणर्म को मान्हकश्यिा तमली िो अतवर्मवेद के रूप म में च बौते वेद को भी

स्सवीकार कककश्या जाने लगा. हालाएंकक इनम में पहले ककश्या हुआ? पहले च बौते वणर्म को मान्हकश्यिा तमली कश्या च बौते वेद को कश्यह

शोधे का तवोषिकश्य है. कलपना ककी जा सकिी है कक दोनर का समकश्य आसपास का रहा होगा. ऐसे म में परमपलुरुोषि ककी

अवधेारणा; कश्यानी पलुरुोषि सभूक्त ककी रचना ईसा से पाएंच से आठ स बौ वोषिर्म पहले िक ककी हो सकिी है.

आरएंभ म में वणर्म इिने रूढे़ं नहहीं ते. आरएंतभक ग्रएंतर म में अनलुलोम और तवलोम दोनर ही प्रकार के अएंिरण के उदाहरण तमलिे

हह. कश्यह अएंिरण ित्कालीन परिरतस्सततिकश्यर म में जब आकश्यर्म और मभूल तनवासी घलुलने-तमलने ककी कोतशश म में ते, स्सवाभातवक ता.

आकश्य्गों ने भारि भभूतम पर आकामक के रूप म में प्रवेश कककश्या. वे कश्यहाएं पहले से रह रहे मभूल तनवातसकश्यर ककी अपेक्षा केा तनपलुण

लडाके, रणक बौशल म में पारएंगि ते. उवृत्तिरी एतशकश्या से भारि िक पहुएंचने म में उन्हह में अनेक करिठनाइकश्यर का सामना करना

पडा. उनककी अपेक्षा केा इस देश के मभूल तनवासी शाएंतितप्रकश्य और अपने सएंिोोषि के सात जीवन जीने वाले ते. मभूल तनवासी

अनेक कबीलर म में बएंटे ते, किंकएंिलु लएंबे समकश्य िक सात रहने के बाद वे सहअतस्सित्व ककी कला म में तनपलुण होने लगे ते.

धेमर्मशास्त्रर म में देवासलुर सएंग्राम के अनेक उललेख हह, मगर ऐसा कोई उललेख नहहीं है जो दैत्कश्यर के आपसी वैमनस्सकश्य को

दशार्मिा हो. बहरहाल एक लएंबी सएंघोषिर्मपभूणर्म कश्याता के अनलुभव के बाद आकश्य्गों का कलुशल रणनीतिकार के रूप म में उभरना

स्सवाभातवक ता. बावजभूद इसके भारि के मभूल तनवातसकश्यर को अपने सात जोडना, उनपर अपना साएंस्सककृतिक वचर्मस्सव

स्सतातपि करना आसान नहहीं ता. हडपपा और मोन-जो-दाडो से प्राप्त अवशेोषि बिािे हह कक भारिीकश्य मभूल तनवासी एक

समकृौद्धि सएंस्सककृति के वासी ते. कदातचि उनककी समकृतौद्धि ही आकश्य्गों को मध्कश्य-एतशकश्या से भारि िक खहींच कर लाई ती. कश्याता

के द बौरान आकश्य्गों ने जहाएं आवशकश्यक समझा, वहाएं कश्यलुौद्धि कककश्या. जहाएं लगा कक कश्यलुौद्धि के माध्कश्यम से ऐतचछक परिरणाम िक

पहुएंचना असएंभव है, वहाएं उन्हहरने कश्यलुौेद्धिवृत्तिर नीतिकश्यर का सहारा तलकश्या.

Page 6: जाति और सामाजिक गतिशीलता

उदाहरण के तलए तशव भारि ककी आकदम जातिकश्यर के आराध्कश्य ते. उनका सभी समभूहर पर प्रभाव ता. मभूल तनवासी

कबीलर को प्रसन्न करने के तलए तशव को प्रसन्न करना अतनवाकश्यर्म ता. इसके तलए आकश्य्गों ने उनके सात वैवातहक सएंबएंधे

स्सतातपि ककए. उन्हह में महादेव ककी पदवी दी. पावर्मिी आकश्यर्म सम्ाट तहमवान ककी पलुती ती. तशव को अपना जामािा बना

लेने के बाद आकश्य्गों ककी मलुतशकल में आसान होने लगहीं. तशव का स्सतानीकश्य कबीलर के सवर्ममान्हकश्य मलुतखकश्या ते. तमली-जलुली

सभकश्यिा ककी खातिर उन्हहरने आकश्य्गों िता प्राचीन कबीलर के मध्कश्यस्सत का काम कककश्या. तशव के सहकश्योगी के रूप म में भभूि,

तपशाच, प्रेि आकद को हम भारि के आकदम कबीलर के प्रिीक के रूप म में देख सकिे हह. चिलुराईपभूवर्मक आकश्य्गों ने तशव को

िो अपनाकश्या, उन्हह में अपने आराध्कश्य और ‘महादेव’ का दजार्म कदकश्या. अपनी प्रवकृतवृत्ति के अनलुसार उनसे तहि-साधेन कककश्या.

लेककन तशव के सहकश्योगी भारि ककी प्राचीन कबीलर को, तजनके वे नेिा और आराध्कश्य ते, पभूरी िरह उपेक्षा केा ककी. उन्हह में

असभकश्य मानिे हुए भभूि, प्रेि, कापातलक आकद कहा गकश्या. निीजा कश्यह हुआ कक तशव का िो दैवीकरण हुआ, किंकएंिलु उनके

सहकश्योगी कबीलर ककी पभूरी िरह उपेक्षा केा हुई. उन्हह में ऐसा ही दशार्मकश्या जैसा तवकतसि सभकश्यिा पर गवार्मए सवृत्तिाधेीश करिे हह.

बखशा तशव को भी नहहीं गकश्या. उन्हह में आक, धेिभूरा खाने वाला, भभभूि लगाकर रमने वाले अवधेभूि ककी िरह दशार्मकश्या गकश्या.

इससे सकृत्टि को चलाने ककी तजममेदारी ‘ब्ाह्मण ब्ह्मा’ िता उसके सहकश्योगी ‘क्षा केततकश्य तवषणलु’ पर आ गई. इसके बावजभूद

एक डर उनके मन म में हमेशा बना रहा. उस डर ने ही तशव को मकृत्कश्यलु के देविा का पद देने को बाध्कश्य कककश्या. तशव ककी

िीसरी आएंख दरअसल जनसएंस्सककृति के वाहक उन कबीलर ककी सतममतलि िाकि और तवद्रोह शतक्त का प्रिीक है, तजन्हह में

भभूि, प्रेि, कापातलक आकद कहा जािा है और तजनके मलुतखकश्या तशव ते. ककसी भी राष्ट्र ककी शतक्त उसककी जनिा म में

तनतहि होिी है. राज्कश्य केवल उसका प्रिीक होिा है. जनिा कश्यकद कलुतपि हो जाए िो बडी से बडी सामरिरक शतक्त को

तमटी म में तमला सकिा है. चभूएंकक तशव के पीछे कबीलर ककी शतक्त ती, इसतलए उन्हह में महादेव, मकृत्कश्यलु का देविा जैसा पद

कदकश्या गकश्या. उनककी िीसरी आएंख खलुलने का अतभप्राकश्य ता, समतर्मक कबीलर के सात तवद्रोह पर उिर आना, तजनसे

अलपसएंखकश्यक अतभजाि िता उनके कतति देविा भकश्य खािे ते.

महाकाव्य काल म में ही वणर्म जातिकश्यर म में ढे़ंलने लगे ते. व्यतक्त के अपने क बौशल का कोई महत्तव नहहीं रह गकश्या ता. कणर्म

और एकलव्य ऐसे ही उदाहरण हह. जो उस समकश्य ककी व्यवस्सता के अनलुसार क्षा केततकश्य नहहीं ते. लेककन दोनर ने ही स्सवकश्यएं को

धेनलुर्वर्मदा म में अत्कश्यएंि तनपलुण बना तलकश्या ता. महाभारि कश्यलुौद्धि म में दलुकश्युर्योधेन के पक्षा के म में होने के बावजभूद कणर्म को बार-बार

आहि और अपमातनि होना पडिा है. वहहीं एकलव्य के वाण-क बौशल से तवतस्समि द्रोणाचाकश्यर्म उसका अएंगभूठा ही माएंग

लेिा है. हालाएंकक इस कश्यलुग िक जाति को रूढे़ं बनाने का तवरोधे भी जारी रहा. लोग जाति-तवहीन सभकश्यिा ककी कश्याद भी

कदलािे रहिे ते, जैसे महाभारि के शाएंतिपवर्म म में कहा गकश्या ‘ꟷ असतलकश्यि म में वणर्म-तवभाजन जैसी कोई चीज नहहीं है. कश्यह

पभूरी सकृत्टि ब्ह्म है, ककश्यरकक इसे ब्ह्मा ने बनाकश्या है.’ इस प्रसएंग ककी कश्यकद एकलव्य और कणर्म के प्रकरण से िलुलना ककी जाए

िो उस सभकश्यिा के तवरोधेाभास सामने आने लगिे हह. लेककन हम में कश्याद रखना चातहए कक ‘जकश्य’ से ‘तवजकश्य’, ‘तवजकश्य’ से

‘भारि’ और कफर ‘महाभारि’ िक ककी कश्याता अनेक तवरोधेाभासर से भरी है. इसतलए कक हर मनीोषिी ने सत्कश्य को अपनी

िरह से देखा और उसे प्रक्षा केेपण का तहस्ससा बना कदकश्या.

बाद के धेमर्मग्रएंतर म में रक्तशलुौद्धििा एवएं कलुलीनिा पर काफकी जोर कदकश्या गकश्या, लेककन आरएंभ म में ऐसा न ता. आकश्य्गों के आगमन

Page 7: जाति और सामाजिक गतिशीलता

के सात ही उनका कश्यहाएं रह रही प्राचीन जातिकश्यर के सात सतममलन शलुरू हो चलुका ता. भारि म में आकश्य्गों का आगमन एक

समभूह म में नहहीं रहा. वे अनेक बार टलुकडर-टलुकडर म में आए ते. इस बाि ककी प्रबल सएंभावना है कक जो आरएंतभक कबीले

भारि िक पहुएंचे हर उनम में स्त्री सदस्सकश्यर ककी सएंखकश्या आनलुपातिक रूप से कम रही हो; कश्या हो सकिा है कक लएंबी कश्याता के

पशाि भारि िक पहुएंचने म में उनका हलएंगानलुपाि गडबडा गकश्या हो. इसतलए आरएंभ म में ही हम अएंिवगर्गीकश्य सएंबएंधेर ककी

बहुलिा देखिे हह. व्यवस्सता ककी गई कक स्त्री ककसी भी वगर्म ककी हो, उससे उत्पन्न सएंिान तपिा के ग बौत ककी होगी.

मनलुस्समकृति म में कहा गकश्या, ‘वैधे दाएंपत्कश्य म में बएंधेने के बाद स्त्री अपने पति के वणर्म म में सतममतलि हो जािी है, ठीक ऐसे ही

जैसे नदी सागर म में तमलकर उसके गलुणर को धेारण कर लेिी है.’(मनलुस्समकृति 9/22). उदाहरण कई हह. वतश्टि ककी पत्ी

अक्षा केमाला तनम्न जाति ककी स्त्री ती. इसी प्रकार सारएंग मलुतन ककी पत्ी भी तनम्न वणर्म से आिी ती. भतवषकश्य पलुराण के

अनलुसार शकृएंग ऋतोषि हरिरणी के गभर्म से उत्पन्न ते. पराशर चाएंडाल स्त्री ककी सएंिान हह, व्यास केवट पलुती मत्स्सकश्यगएंधेा ककी.

वतश्टि वेशकश्या के गभर्म से जन्हमिे हह. अपनी लग्न और प्रतिभा के बल पर वे ब्ाह्मण बनिे हह. तभन्न वण्गों के बीच तववाह

सामान्हकश्य ते. क्षा केततकश्य सम्ाट कश्यकश्याति ककी एक पत्ी देवकश्यानी ब्ाह्मण-सलुिा ती, दभूसरी असलुर राज ककी बेटी. बाद म में रक्त

शलुौद्धििा ककी अवधेारणा तवकतसि होने पर, आकश्य्गों ने प्राचीन अएंिजार्मिीकश्य सएंबएंधेर को वैधे बनाने अतवा चमत्कार तसौद्धि

करने के तलए उन्हह में तमतककीकश्य आखकश्यानर का तहस्ससा बना तलकश्या. लोग उन कदनर चमत्कार पर भरोसा भी खभूब करिे ते.

कश्यकद आकतस्समक रूप से कलुछ हो जाए िो उसे दैवी ककृपा मानकर चलुपचाप स्सवीकार कर लेिे ते . इसके फलस्सवरूप लोक-

महत्तव के तवतभन्न मलुद्दोंर को लेकर ब्ाह्मणवादी नजरिरकश्ये से कहातनकश्याएं गढ़ी जाने लगहीं.

अपनी प्रतिभा और लगन के बल पर दभूसरे वगर्म म में अएंिरण के भी अनेक उदाहरण धेमर्मग्रएंतर म में उपलबधे हह. तवशातमत के

क्षा केततकश्य कलुल से ब्ाह्मण वगर्म म में दातखल होने का ककस्ससा िो जाना-पहचाना है. क्षा केततकश्य कदवोदास का पलुत मैतेकश्य ब्ाह्मण

बनिा है. हरिरवएंश पलुराण के अनलुसार वैशकश्य पलुत नाभाग और अरिर्टि ब्ाह्मण कलुल म में शातमल होिे हह. वणर्म-अएंिरण को

लेकर सत्कश्यकाम जाबाल का ककस्ससा भी खभूब चर्चर्मि है. सत्कश्यकाम दासी-पलुत ता. उसने गलुरु ककी शरण म में जाकर तशक्षा केा

लेने ककी इचछा व्यक्त ककी िो गलुरु ने उसका नाम, ग बौत आकद पभूछा. सत्कश्यकाम ने घर आकर कश्यही प्रश्न अपनी माएं से कककश्या.

िब माएं ने बिाकश्या, ‘पलुत, दासी होने के कारण मलुझे अनेक घरर म में काम के तलए जाना पडिा है. एक घर से दभूसरे घर ककी

कश्याता के द बौरान िभू कब मेरे गभर्म म में आ गकश्या, मलुझे नहहीं पिा. िभू सत्कश्यकाम है. मेरा नाम जाबाला है. सो िभू सत्कश्यकाम

जाबाल हुआ.’ सत्कश्यकाम कश्यही बाि गलुरु से बिा देिा है. गलुरु उसके सत्कश्यवाचन से प्रसन्न होकर दीक्षा केा देने के तलए िैकश्यार

हो जािे हह. कश्यही सत्कश्यकाम जाबाल आगे चलकर वेदमएंतर के रतचकश्यिा के रूप म में उभरिा है.

जाति प्रता चलिे ही कश्यह सएंभव हुआ कक पएंतडि के घर पएंतडिजी जन्हम लेने लगे. कश्यकद सबकलुछ तबना ककए जन्हम ही से

प्राप्त है िो कलुछ और पाने के तलए गलुणववृत्तिा को ककश्यर बढ़ाकश्या जाए! इसतलए िप और स्सवाध्कश्याकश्य का अतभप्राकश्य राम-राम

जपने िक तसमट गकश्या और अध्कश्यापन कमर्मकाएंड िक. लोग सोलह पकृष ककी पएंतजका पढ़कर ‘पएंतडि’ कहलाने लगे. तबना

‘सत्कश्य’ और ‘सत्कश्यनाराकश्यण’ वाली ‘सत्कश्यनाराकश्यण ककी कता’ घर-घर बएंची-बएंचवाई जाने लगी. उन कहातनकश्यर म में आदमी

ककी पहचान जाति से जलुडी ती. जानिे सब ते कक जन्हम आधेारिरि वगर्गीकरण मनलुषकश्य के मभूल स्सवभाव के तवरुौद्धि है. दो

व्यतक्त कभी-भी पभूरी िरह से एक हो ही नहहीं सकिे. इसतलए ककसी एक ककी परिरतस्सततिकश्यर पर तवचार कर हू-ब-हू वही

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तनणर्मकश्य दभूसरे के तलए नहहीं तलकश्या जा सकिा. चभूएंकक कश्यह मनलुषकश्य ककी प्रवकृतवृत्ति के तवरुौद्धि है, समाजीकरण ककी धेारा के तवरुौद्धि

है, इसतलए व्यतक्त केवल परएंपराएएं ढे़ंोिा रहा. समाज जड और लोग कश्यतातस्सततिवादी बन गए. जाति ने लोगर से

उनका तववेक, चकश्यन का अतधेकार छीनकर उन्हह में एक नशा तमा कदकश्या. तबना कलुछ ककए-धेरे खास होने का नशा. जाति

आधेारिरि तवभाजन ककी खभूबी है कक उसम में हर कोई खास होिा है. हालाएंकक खातसकश्यि के तलए उसका अपना कोई

कश्योगदान नहहीं होिा. बस अपनी लककीर के बराबर म में मनमाकफक तोडी छोटी लककीर खहींच लेिा है. इसतलए कक वह

जािीकश्य पाकश्यदान पर अपने से नीचे के ककसी कम खास ककी उपतस्सतति मानकर मन को िसलली देने लगिा है. दभूसरा

चाहे उसका तवरोधे करे, और तवरोधे होिा ही है, कफर भी वह खलुद को ‘अपने मलुएंह हमएंकश्या तमटठभू’ बनने से रोक नहहीं

पािा. चभूएंकक जाति पर उसका जोर नहहीं चलिा, इसतलए तजस जाति वगर्म म में वह जन्हम लेिा है, उसे अपनी तनकश्यति

मानकर जीवन से समझ बौिा ककए रहिा है. इससे भागकश्यवाद और तनकश्यतिवाद को बढ़ावा तमलिा है, जो परिरविर्मनकामी

आएंदोलनर ककी आएंच पर राख डालिे रहने का काम करिा है.

तवदानर ने जाति-प्रता ककी आलोचना ककी. कहा कक जाति ऐसी व्यवस्सता है तजसम में व्यतक्त अपनी मजर्गी से शातमल नहहीं

होिा. जन्हम व्यतक्त ककी जाति तनधेार्मरिरि करिा है, कफर मनलुषकश्य मकृत्कश्यलुपकश्यांि उसके चएंगलुल से तनकल नहहीं पािा. दभूसरे शबदर

म में जाति व्यतक्त ककी नैसर्गर्मक स्सविएंतिा का हनन करिी है. कश्यह काकश्यर्म-तवभाजन ककी असमानिाकारी तनककृ्टि शैली है. कश्यह

व्यतक्त के चकश्यन के अतधेकार को बातधेि करिी है. जन्हमना जाति मनलुषकश्य का कलुदरि के नाम पर लगाकश्या गकश्या बदसभूरि

ठपपा है, जो मनलुषकश्यिा का अवमभूलकश्यन करिा है. कहहीं आने-जाने, पेशा बदल देने से व्यतक्त ककी जाति म में कोई बदलाव

नहहीं आिा. कफर भी कलुछ तवदान जाति के जड स्सवभाव के कारण ही उसे पसएंद करिे रहे. जाति उनके दारा भारिीकश्य

समाज और सएंस्सककृति के मतहमामएंडन का कारण बनी. उनम में प्राकश्यी मनः वही लोग ते, जो समाज के शीोषिर्म पर तवराजमान,

समस्सि सएंसाधेनर पर कलुएंडली मारे नजर आिे हह. समकश्य-समकश्य पर ऐसे काकश्यर्मकिार्म और तवदान भी हुए हह तजन्हहरने जाति

प्रता का जमकर तवरोधे कककश्या. जाति और जन्हम के आधेार पर पक्षा केपाि करनेवालर को बलुरी िरह से लिाडा. समकश्य-

समकश्य पर जाति-तवरोधेी आएंदोलन चले. कह सकिे हह जाति का जब से जन्हम हुआ, जब से उसने समाज को जकडना

आरएंभ कककश्या, िभी से उसपर हमले आरएंभ हो चलुके ते.

ज्ाि इतिहास म में जाति प्रता को सबसे पहली चलुन बौिी ग बौिम बलुौद्धि ने दी ती. उन्हहरने तभक्षा केलु सएंघ ककी स्सतापना ककी, तजसम में

जाति सएंबएंधेी ककसी भी प्रकार का पक्षा केपाि न ता. मध्कश्यकाल म में सएंि कतवकश्यर ने जाति को भारिीकश्य समाज का कलएंक

मानिे हुए जन्हम के आधेार पर आदमी-आदमी म में भेद करने वालर को तधेकारा. िीखे शबदर म में उनककी आलोचना

ककी ‘ꟷ जो िभू कहे बाहमन का जाकश्या, और मागर्म ने ककश्यर न आकश्या.’(कबीर). बावजभूद इसके जाति का बाल भी बाएंका न

हुआ. इसतलए कक बहुि पहले से इसे रोजी-रोटी से जोड कदकश्या गकश्या ता. उस व्यवस्सता म में समस्सि सएंसाधेनर पर कतति

ऊंएंची जातिकश्यर का कबजा ता. क्षा केततकश्य को हततकश्यार उठाने का अतधेकार कदकश्या गकश्या ता. ब्ाह्मण को सलाह देने का. इन

दोनर ने बाककी वग्गों को उभरने ही नहहीं कदकश्या. तजसने तवरोधे कककश्या, उसको दएंतडि कककश्या गकश्या. धेीरे-धेीरे कश्ये जातिकश्याएं

व्यवस्सता से अनलुकभूतलि होिी गई. धेमर्म ने इसम में मदद ककी. तपछला जन्हम ककसी ने देखा नहहीं ता, न उसका कोई प्रमाण

ही ता. बावजभूद इसके हहएंदलुओं म में कमर्म-तसौद्धिाएंि ककी ऐसी आएंधेी चली कक अचछे-अचछर के तववेक को उडाकर ले गई. लोग

लककीर पीटने के अभकश्यासी होिे चले गए. शिातबदकश्यर िक ऐसा ही चलिा रहा.

ग बौरिलब है कक ग बौिम बलुौद्धि ने जाति व्यवस्सता के तवरोधे म में सीधेे कलुछ नहहीं कहा ता. केवल तभक्षा केलुसएंघ म में सभी जाति-वगर्म

के लोगर को प्रवेश देकर बराबरी का सएंदेश कदकश्या ता. लेककन उसका चामत्कारिरक असर हुआ. धेार्मर्मक बएंधेन तशततल

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पडने से लोग, तवशेोषिकर कमर्मकार जातिकश्याएं भतवषकश्य के बारे म में नए तसरे से सोचने को उौद्धिि हुए. सएंसाधेनर ककी कमी को

उन्हहरने अपने सएंगठन-सामथ्कश्य से पाटा. भारिीकश्य तशलपकार सएंगठन हालाएंकक पहले से ही अएंिदवीपीकश्य बाजार म में आगे

ते. ग बौिम बलुौद्धि के समकश्य म में उसम में बहुि िेजी से वकृतौद्धि हुई. िेली, चमर्मकार, बलुनकर, काषकार, रएंगरेज, राजतमस्त्री, गलुड

बनाने वाले, रतवाह आकद तजिने भी तशलपकार वगर्म ते, उन सबके अपने-अपने व्यावसातकश्यक सएंगठन ते. वैकदक परएंपरा

म में प्रतिवोषिर्म लाखर पशलुओं ककी कश्यज्र म में दी जानेवाली बतलकश्यर के कारण ित्कालीन समाज ककी अतर्मव्यवस्सता पर तवपरीि

प्रभाव पडा ता. ब बौौद्धि और जैन दशर्मन के प्रभाव म में बतल म में कमी आई ती. बचा हुआ पशलुधेन ककसानर और पशलु-पालन

दारा आजीतवका चलाने वाली जातिकश्यर के तलए आर्तर्मक रूप से बहुि मददगार तसौद्धि हुआ ता. इसका प्रभाव उस समकश्य

के व्यापार पर पडा ता. उसम में िेजी आई. सहकश्योगाधेारिरि उन व्यापारिरक सएंगठनर को शे्तण, पभूग, तगलड, वात्कश्य, सएंघ

आकद कहा जािा ता. चएंद्रगलुप्त म बौकश्यर्म िक िो शे्तणकश्याएं खलुद को प्रमलुख आर्तर्मक शतक्त के रूप म में स्सतातपि कर चलुककी तहीं.

शे्तणकश्यर ककी शतक्त का आकलन इससे भी कककश्या जा सकिा ता कक क बौरिटलकश्य उनके सएंगठनर को राज्कश्य पर सएंकट ककी

सएंभावना के रूप म में देखिा है. इसतलए उसने शे्तणकश्यर पर नजर रखने ककी अनलुशएंसा ‘अतर्मशास्त्र’ म में ककी ती. शे्तणकश्यर ककी

आर्तर्मक हैतसकश्यि ऊंएंची ती. वे जरूरिमएंद राजाओं ककी आर्तर्मक मदद भी खभूब करिी तहीं. ईसा पभूवर्म दो-िीन स बौ वोषिर्म के

समकश्य को अनेक तवदान भारि का स्सवणर्मकाल मानिे हह. उसके पीछे तशलपकार सएंगठनर का बडा कश्योगदान ता.

अतर्मव्यवस्सता तवक मेंद्रीककृि ती. गाएंव सएंपन्न, आत्मतनभर्मर इकाई. धेीरे-धेीरे शे्तणकश्यर का पिन होने लगा. दभूसरी-िीसरी

शिाबदी म में उनके कारोबार म में मएंदी आने लगी ती. इसका पहला कारण ब बौौद्धि धेमर्म के कमजोर पडिे ही जातिवादी

बएंधेनर का एक बार कफर मजबभूि हो जाना ता. व्यापारी सएंगठन को चलाने के तलए अनेक प्रकार के तशलपकारर ककी

जरूरि पडिी ती. पहले वे अपनी जािीकश्य शलुतचिा को तबसराकर सात-सात काम करिे ते. जािीकश्य अनलुशासन मजबभूि

होने से एकजलुट होकर काम करना करिठन हो गकश्या. देश छोटे-छोटे राज्कश्यर म में बएंटने लगा ता. खलुलकर व्यापार करना

करिठन होिा गकश्या. शे्तणकश्यर के कारोबार म में कमी आई. तशलपकार सएंगठन तबखरने से लोग एक बार कफर अपनी-अपनी

जाति के दडबर म में ल बौटने लगे. इस िरह जािीकश्यिा के बएंधेनर के तशततल पडने ककी जो शलुरुआि बलुौद्धि के समकश्य हुई ती,

उसपर पानी कफरने लगा. आगे चलकर वणर्म-व्यवस्सता और भी रूढ़ होने लगी. उससे नई-नई जातिकश्याएं बनने लगहीं.

जािीकश्य शलुतचिा के नाम पर भेदभाव परोसा जाने लगा.

मध्कश्यकाल म में जाति तवरोधेी आएंदोलन के सभूतधेार सएंिकतव ते. सएंि रैदास, कबीर, दादभू, आकद समाज के तनचले वग्गों से

आए ते. जो जािीकश्य उत्पीडन का तशकार ते. इसतलए उन्हहरने जाति-आधेारिरि ऊंएंच-नीच को अपनी समानिाधेारिरि

समाज ककी स्सतापना के सपने का अवरोधेक माना ता. लेककन समानिा से उनका आशकश्य बस इिना ता कक गरीब-गरीब

रहे, अमीर-अमीर और सब अपने-अपने सएंिोोषि के सात जीना सीख ल में. बावजभूद इसके सएंि कतव जािीकश्य उत्पीडन का

तशकार रहे लोगर ककी उममीद का क मेंद्र ते. इसतलए वे सएंि कतवकश्यर के आसपास जलुटने लगे. जाति-भेद को बढ़ावा देने के

तलए सएंि कतवकश्यर ने ब्ाह्मणर एवएं जाति के पैरोकारर को ललकारा. लेककन कलुछ खास नहहीं कर पाए. बहुि जलदी उनके

आएंदोलन को सएंस्सककृति का तहस्ससा बनाकर हहएंदभू धेमर्म म में समातहि कर तलकश्या गकश्या. सामएंिवादी द बौर म में उनककी आवृत्तिर्म पलुकार

झोपतथडकश्यर और च बौराहर पर दम िोडने लगी. जाति को सामातजक असमानिा एवएं अएंिदांदर का कारण मानिे हुए

तववेकानएंद, दकश्यानएंद आकद ने भी उसककी आलोचना ककी. लेककन परिरणाम लगभग शभून्हकश्य ही तनकला. उनककी असफलिा के

कारण एकदम स्सप्टि ते. वे तवचारक चाहिे ते कक कतति ऊंएंची जातिकश्याएं अपने से तनम्न जातिकश्यर के प्रति करुणा-भाव

लाएएं और अपने मन से ऊंएंच-नीच ककी भावना को तनकाल फहक में. प्रकाराएंिर म में जाति उन्हमभूलन उनके तलए शीोषिर्मस्सत

जातिकश्यर ककी ककृपा पर रिटका ऐतचछक प्रश्न ता. तवचारक शीोषिर्म जातिकश्यर से अपेक्षा केा करिे ते कक वे अपना बडपपन कदखािे

हुए जािीकश्य भेदभाव को कदल से तनकाल फ मेंक में और तपछडे वग्गों के सात करुणा के सात पेश आएएं. कश्यह ठीक ऐसा ही ता,

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जैसे ‘ट्रस्सटीतशप’ के सहारे गाएंधेी जी ने जमहींदारर और पभूएंजीपतिकश्यर से दलुबर्मल और आर्तर्मक रूप से तवपन्न लोगर के पक्षा के म में,

अपने सएंपतवृत्ति अतधेकार समाज को स सौंप द मेंने का आवाह्नन कककश्या ता. जबकक मलुफ्ि म में तमलने वाला सममान हो कश्या

सलुतवधेाएएं, तशखरस्सत वगर्म अपनी मजर्गी से कलुछ भी छोडने को िैकश्यार न ते. अिएव इन महापलुरुोषिर ककी सदेचछाओं िता

वक्त ककी जरूरि होने के बावजभूद जाति ककी सामातजक सवृत्तिा पर कोई प्रभाव नहहीं पडा. कफर भी उन महापलुरुोषिर के

प्रकश्यास तनरतर्मक नहहीं गए. उनके अनतक प्रकश्यत्र के फलस्सवरूप समाज म में तोडी हलचल अवशकश्य मची. लोग धेमर्म और

जाति के नाम पर होने पाखएंड के प्रति एकजलुट होने लगे. तजससे समाज सलुधेार के आएंदोलनर को प्रेरणा तमली. उसके

फलस्सवरूप तवचारकर का ध्कश्यान तनचले वग्गों समस्सकश्याओं ककी ओर गकश्या.

जाति तवरोधेी प्रकश्यासर ककी असफलिा के कलुछ कारण एकदम साफ ते. जािीकश्य सएंरचना के सएंगठन से जलुडी, उसके बनाए

रखने ककी समतर्मक जातिकश्यर ककी मभूल प्रवकृतवृत्ति कछलुए के समान ती. परिरतस्सततिकश्याएं प्रतिकभूल हर िो वे कछलुए ककी भाएंति अपने

अएंग-प्रत्कश्यएंगर को धेमर्म के कवच म में ढे़ंक लेिी तहीं. परिरतस्सततिकश्याएं अनलुकभूल होिे ही अपने पैने नख-दएंिर के सात वे अपने

आलोचकर पर आकामक होकर जािीकश्यिा के बएंधेनर को और भी कसने लगिी तहीं. जैसा लगभग 1900 वोषिर्म पहले ब बौौद्धि

धेमर्म के अवसान के समकश्य देखने को तमला. बलुौद्धि ने जाति का सीधेे तवरोधे नहहीं कककश्या ता. मगर उनके ब बौौद्धि तवहारर के

दरबार सभी जाति-वग्गों के तलए खलुले ते. उन्हहरने हहएंदभू धेमर्म म में व्याप्त कलुरीतिकश्यर और बतलप्रता के माध्कश्यम से उसपर

गहरी चोट ककी. बावजभूद इसके ब बौौद्धि दशर्मन ने तजिनी चोट वैकदक धेमर्म-दशर्मन पर ककी ती, उिनी चोट जाति प्रता पर

नहहीं कर सका. उनका तवरोधे मलुखकश्यिी मनः हहएंदभू धेमर्म म में व्याप्त कमर्मकाएंड िता बतल प्रता से ता. जो सामातजक असमानिा को

साएंस्सतातनक बनािे ते. इसतलए जाति उन्हह में अपनी सएंघीकश्य मान्हकश्यिाओं ककी अवरोधेक लगी. चभूएंकक ब बौौद्धि दशर्मन धेमर्म ककी

अधेीनिा म में जाति व्यवस्सता का तवरोधे करिा ता, इसतलए उसका जाति पर वास्सितवक प्रभाव बहुि ही कम पडा.

जाति और सामातजक गतिशीलिा

जाति हहएंदभू धेमर्म ककी मानस रचना है. उसका पभूरा कारोबार धेमर्म के सहारे चलिा है. हहएंदभू धेमर्म मजबभूि, िो जाति

मजबभूि. हहएंदभू धेमर्म तशततल िो जाति बएंधेन तशततल. ब बौौद्धि धेमर्म ने हहएंदभू धेमर्म को पाश्रव म में ढे़ंकेला िो जाति भी नेपथ्कश्य म में

जाने लगी ती. अठारहवहीं शिाबदी म में मलुगल साम्ाज्कश्य के कमजोर होने के सात हहएंदभू धेमर्म ने अपनी जड में दलुबारा मजबभूि

कं िो जाति भी तसर उठाने लगी. महाराष्ट्र, दतक्षा केण भारि, बएंगाल कश्यानी जहाएं-जहाएं हहएंदभू धेमर्म पलुनजार्मगरण ककी ओर

बढ़ा, वहाएं-वहाएं जाति भी पाएंव पसारने लगी. हहएंदभू धेमार्मचाकश्य्गों म में से अनेक आज भी जाति को हहएंदभू धेमर्म का आभभूोषिण

समझिे हह. उन्हह में आज भी लगिा है कक जाति के न रहने पर धेमर्म सएंकट म में पड सकिा है . इसतलए आजादी के सािव में

दशक म में भी दतलिर को मएंकदर ककी च बौखट पर देख उन्हह में अपना धेमर्म सएंकट म में नजर आने लगिा है . तवोषिम परिरतस्सततिकश्यर

म में भी वे शाएंि नहहीं बैठिे. जब-िब जाति तवरोधेी आएंदोलन होिे हह, जब उनम में लगे लोगर को लगिा है कक वे बस

जीिने ही वाले हह, जाति का जनाजा अब उठा कक बस अब उठा; िब िब वे ऐसी चाल चलिे हह कक परिरविर्मन और

सलुधेार ककी सारी सएंभावनाओं पर पानी कफर जािा है. जाति समतर्मक लोग धेमर्म, सएंस्सककृति और राष्ट्रीकश्यिा ककी आड म में,

बहुि िसलली के सात जाति को िरह-िरह से मजबभूि कर, सामातजक व्यवहार के क मेंद्र म में बनाए रखने हेिलु जलुटे होिे हह.

उनके प्रकश्यास बहुि ही महीन, आसानी से न समझ म में आनेवाले होिे हह. तजन कदनर ब बौौद्धि धेमर्म प्रभाव म में ता, उन कदनर

पलुराणर और स्समकृतिकश्यर के लेखन म में िेजी आई ती. मध्कश्यकाल म में ककस्ससे-कहातनकश्यर के माध्कश्यम से ब्ाह्मणवाद म में जान फभूएंककी

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गई िो भतक्त सातहत्कश्य म में जाति को बचाए रखने का काम िलुलसी, सभूरदास, मीरा, हरिरदास जैसे भक्त कतवकश्यर ने कककश्या.

इन कदनर कानभून के दखल से जाति सएंबएंधेी आचार-तवचार तशततल पडे हह िो जातिवादी सएंगठन उसे साएंस्सककृतिक

राष्ट्रवाद का कवच पहनाने ककी िैकश्यारी म में लगे हह. धेमर्म और जाति के इस नातभ-नाल सएंबएंधे को सवर्मप्रतम महामना

ज्कश्योतिबा फलुले ने समझा ता. इसतलए उन्हहरने जाति के मभूल कश्यानी धेमर्म ककी तवककृतिकश्यर पर प्रहार कककश्या. उनके आएंदोलन

को जमीन शाहू जी महाराज ने दी. दतलिर-शोतोषिि वग्गों को आत्मतवशास से लैस करने, अपने अतधेकारर के तलए खडे

होने िता दतलि आएंदोलन को सही कदशा देकर नई कश्यलुगचेिना लाने का सबसे महत्तवपभूणर्म काम डा. अएंबेडकर ने कककश्या.

फलस्सवरूप अतस्समिावादी आएंदोलनर को जमीन तमली. दब-ेकलुचले लोग अपने अतधेकारर के तलए आगे आने लगे.

पहले जाति प्रता ककी आलोचना वे लोग करिे ते जो खलुद जािीकश्य उत्पीडन और असमानिा का तशकार ते. िब

उत्पीतथडि वगर्म जाति का उचछेद चाहिा ता. उसके तलए ‘जाति-िोडक’ आएंदोलन चलाए गए ते. स्सवकश्यएं डा. अएंबेडकर ने

‘जाति का उचछेद’ पलुस्सिक तलखकर जाति और जातिवादी शोोषिण दोनर को कठघरे म में खडा कर कदकश्या ता. अब हालाि

बदले हुए हह. जािीकश्य शोोषिण का तशकार रहे वगर्म अब जाति को ही हततकश्यार बना रहे हह. ऐसा नहहीं है कक जाति-

आधेारिरि शोोषिण समाप्त हो चलुका है? कश्या उन्हहरने उन्हहरने जाति के नाम पर सामातजक ऊंएंच-नीच से समझ बौिा कर

तलकश्या है. जािीकश्य आधेार पर ऊंएंच-नीच ककी भावना िो आज भी बरकार है. लेककन वह केवल सामातजक सएंबएंधेर िक

सीतमि है. लोकिएंत ने जाति आधेारिरि भेदभाव को तसौद्धिाएंििी मनः समाप्त कककश्या है. अस्सपकृशकश्यिा आज एक कानभूनी अपराधे

है, भले ही सामातजक स्सिर पर उसके अवशेोषि आज हचएंिा का तवोषिकश्य हर. कानभून हालाएंकक बराबरी का अतधेकार देिा ह,ै

लेककन सामातजक और आर्तर्मक स्सिर पर भेदभाव पभूरी िरह बना हुआ है. इसतलए नए परिरवेश म में जािीकश्य शोोषिण का

तशकार रहे वग्गों को अपनी रणनीतिकश्यर म में सएंशोधेन करना पडा है. दतलिर और तपछडर ककी समझ म में आ चलुका है कक

केवल कानभूनी प्रावधेान होने से समानिा के लककश्य को प्राप्त कर पाना असएंभव है. कलकश्याण राज्कश्य ककी अवधेारणा के

चलिे सरकार से कलुछ उममीद ककी जा सकिी है, लेककन अपनी पैठ और राजनीतिक हैतसकश्यि का लाभ उठाकर सवृत्तिा म में

बारी-बारी से वही लोग आिे रहिे हह, जो जािीकश्य शोोषिण के तलए तजममेदार हह. ऐसी परिरतस्सततिकश्यर म में शोतोषिि वगर्म का

नकश्या सएंघोषिर्म आनलुपातिक तहस्ससेदारी को लेकर है. दतलि और तपछडे वगर्म अब सएंसाधेनर और अवसरर म में आनलुपातिक

तहस्ससेदारी ककी माएंग कर रहे हह. चभूएंकक कश्यह माएंग न्हकश्याकश्य सममि है, इसतलए सएंवैधेातनक तस्सततिकश्याएं भी उनके पक्षा के म में हह.

इससे उनका आत्मतवशास बढ़ा है. जाति को लेकर हीनिाबोधे समाप्त हो चलुका है. दबी-कलुचली जातिकश्याएं पहले सरकार

और शीोषिर्मस्सत वग्गों से अपनी जरूरिर ककी भरपाई ककी उममीद करिी तहीं, दैन्हकश्य कदखािी तहीं, उनसे तवकास के समलुतचि

अवसरर ककी माएंग करिी तहीं. अब उन्हह में लगिा है कक दैन्हकश्य कदखाने, तगडतगडाने ककी अपेक्षा केा सएंगरिठि सएंघोषिर्म दारा, अपने

अतधेकारर को ससममान प्राप्त कककश्या जा सकिा है.

पेशागि आधेार पर भी जािीकश्य तवभाजन बेमानी तसौद्धि हो रहा है. ब्ाह्मण चमडे का काम करने लगे हह. जबकक

चमर्मकार जाति के होनहार पढ़-तलखकर दभूसरर को पढ़ाने लगे हह. दभूसरी दबी-कलुचली जातिकश्याएं भी मलुखकश्यधेारा ककी ओर

बढ़ रही हह. गति बहुि धेीमी है, मगर जैसे-जैसे लोग तशतक्षा केि हो रहे हह, उनम में अपने अतधेकारर के प्रति चेिना भी

बढ़िी जा रही है. कश्यकद आधेलुतनक समाज म में परिरविर्मन ककी ललक है और कलुछ समभूह िेजी से तवकास ककी ओर अग्रसर हह

िो इसका एक कारण कश्यह भी है कक वे लोग जो शिातबदकश्यर िक शोतोषिि-उत्पीतथडि होिे आए ते, तजन्हहरने पीढ़ी-दर-

पीढ़ी जािीकश्य आधेार पर भेदभाव, उत्पीडन, और असमानिा का दएंश सहा है, तजन्हह में जाति के आधेार पर तवकास के

अवसरर से वएंतचि रखा गकश्या ताꟷअब सएंगरिठि होकर तवकास म में साझेदारी चाहिे हह. प्र बौदोतगककी के अलावा जाति

आज सामातजक गतिशीलिा ककी सबसे बडी उत्पेरक है. कलुछ मामलर म में िो कश्यह प्र बौदोतगककी से अतधेक प्रभावशाली है.

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आधेलुतनक प्र बौदोतगककी ककी क्षा केमिाएएं अनएंि हह. मगर पभूएंजीपतिकश्यर के तनकश्यएंतण के कारण वह फैशन का तहस्ससा बन चलुककी है.

वह मनलुषकश्य को िकनीक के स्सिर पर समकृौद्धि, किंकएंिलु मनोभ बौतिक स्सिर पर ब बौतौद्धिक-तवपन्न बना रही है. एक िरह से जीिे-

जागिे मनलुषकश्यर को मशीन म में िबदील कर रही है. दभूसरी ओर जाति नए-नए तवमशर्म छेडकर मानव-समाज को नए

तवचारर से लैस कर रही है. जाति के पीछे कोई कलकश्याणकारी तवचारधेारा नहहीं है. हो भी नहहीं सकिी. किंकएंिलु जाति के

माध्कश्यम से सएंघोषिर्मरि आएंदोलनकारिरकश्यर को लगिा है कक केवल सएंगरिठि प्रतिकार ही उन्हह में समाजार्तर्मक शोोषिण से मलुतक्त

कदला सकिा है. कलुछ लोग जाति के उभार से तखन्न हह. वे लगािार आरोप लगा रहे हह कक जातिवादी आएंदोलन देश को

शिातबदकश्यर पीछे ले जाने ककी कोतशश कर रहे हह. ऐसा सोचने वालर म में वही लोग हह तजन्हह में अतस्समिावादी आएंदोलनर से

खिरा है. जो जाति के नाम पर सएंगरिठि होिे कश्यलुवाओं को सएंस्सककृति और राष्ट्र के वास्सिे जाति से अलग होने को उपदेश दे

रहे हह. जबकक जाति स्सवकश्यएं उनके आचार-व्यवहार का तहस्ससा है. समाचारपतर म में छपने वाले वैवातहक तवज्ापनर से

उनककी मनतस्सतति और दैधे को आसानी से समझा जा सकिा है. कलुल तमलाकर जािीकश्य शोोषिण का तशकार रहे वग्गों के

तलए आज जाति ही सबसे बडा हततकश्यार है. वे काएंटे से काएंटा तनकालना चाहिे हह. जाति उन्हह में सएंगरिठि होने म में मदद

करिी है. इसतलए काकश्यर्म-तवभाजन ककी अवैज्ातनक शैली होने के बावजभूद अतधेकाएंश मानव-समभूह जाति को सएंगठनकारी

औजार ककी िरह इस्सिेमाल कर रहे हह.

इन कदनर एक ओर िो तवतभन्न जातिकश्यर के बीच अतस्समिा ककी पहचान को लेकर होड मची हुई है . दभूसरी ओर

आरएसएस जैसे सएंगठन धेमर्म और सएंस्सककृति को रोपने म में लगे हुए हह. इसतलए जो लोग भारिीकश्य समाज को जातिमलुक्त

देखना चाहिे हह, उन्हह में धेमर्म ककी सएंकलपना म में आमभूल-चभूल बदलाव करना पडेगा. जो समझिे हह कक हहएंदभू धेमर्म अपने

विर्ममान स्सवरूप म में, ललुएंज-पलुएंज देविाओं ककी फ बौज के रूप म में रहे और जाति चली जाए? वे कश्या िो बहुि भोले हह कश्या जाति

व्यवस्सता के उन्हमभूलन के प्रति अगएंभीर हह. बहुजन राजनीति के पैरोकार इस िथ्कश्य को बाखभूबी समझिे हह. इसतलए वे इस

बार जाति के सवालर को सीधेे नहहीं उठा रहे हह. देखा जाए िो उठा ही नहहीं रहे हह. शिातबदकश्यर से जो जाति के औतचत्कश्य

पर सवाल उठािे ते, अब उन्हहरने इसे भारिीकश्य समाज ककी हककीकि के रूप म में, भले ही अस्सताकश्यी ि बौर पर, स्सवीकार कर

तलकश्या है. इसतलए जाति के आधेार पर सवाल उठाने के बजाकश्य उसके आधेार पर हुए समाजार्तर्मक शोोषिण और

गैरबराबरी पर सवाल उठाए जा रहे हह. जाति का सहारा लेकर शोतोषिि और वएंतचि वग्गों को सएंगरिठि कककश्या जा रहा

है. लएंबे अस्वे के बाद कश्यह समझ तलकश्या है कक लोकिएंत म में राजनीतिक सहभातगिा सामातजक अन्हकश्याकश्य को मेटने वाले

प्रमलुख उपकरणर म में से है. इससे आर्तर्मक समानिा के उस लककश्य को प्राप्त कककश्या जा सकिा है, जो मनलुषकश्यिा का अभी्टि है.

इस तवभेदकारी समस्सकश्या के तनदान के तलए तशक्षा केा और सएंसाधेनर म में साझेदारी ककी आवाज बलुलएंद ककी जा रही है . चभूएंकक

इस बार जाति भी समानिा के सएंघोषिर्म का एक हततकश्यार है, इसतलए उससे सबसे अतधेक िखलीफ उन लोगर को हो रही

है, जो अभी िक जाति प्रता का लाभ उठािे आए हह. और तजसका सहारा लेकर उन्हहरने बहुसएंखकश्यक समाज को अपना

आतश्ि बनाए रखा है.

एक समकश्य ता जब आर्तर्मक सलुदकृढ़ीकरण देश के तवकास ककी धेलुरी ता. तवशेोषिकर देश ककी आजादी के समकश्य. िब आर्तर्मक

उन्नति को लेकर नई-नई कश्योजनाएएं बनाई जा रही तहीं. इन कदनर सामातजक न्हकश्याकश्य जैसी समसामतकश्यक अवधेारणा

तवकास के सात जलुड चलुककी है. तवकास हो और उसका लाभ देश के सभी वग्गों िक पहुएंचेꟷ˹ऐसी अपेक्षा केा ककी जािी है.

सामातजक न्हकश्याकश्य के सएंघोषिर्म म में जाति एक िात्कातलक माध्कश्यम बन सकिी है. लेककन कश्यह एकदम आसान भी नहहीं है.

जाति ककी अवधेारणा ही अपने आप म में नकारात्मक है. अिएव जाति को औजार ककी िरह इस्सिेमाल कर रहे वग्गों और

समभूहर को समझना चातहए कक औजार केवल माध्कश्यम होिा है. वह लककश्य को अपेक्षा केाककृि सलुगम िो बनािा है, लेककन

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स्सवकश्यएं लककश्य नहहीं होिा. इसतलए अतस्समिावादी आएंदोलनर ककी मभूल प्रवकृतवृत्ति छोटे जाति-समभूहर को बडे जाति समभूहर म में

ढे़ंालने, जन से बहुजन और बहुजन से सवर्मजन ककी ओर ले जाने वाली होनी चातहए. ऐसा होगा, िभी जाति के कलएंक

से मलुतक्त पाई जा सकिी है. साएंस्सककृतिक राष्ट्रवाद का सामना वैकतलपक जनसएंस्सककृति और श्मसएंस्सककृति के उभार दारा

आसानी से कककश्या जा सकिा है. वह ऐसी सएंस्सककृति होगी तजसम में लोग धेमर्म के आधेार पर नहहीं तहिर ककी समानिा के

आधेार पर एकजलुट हरगे िता परस्सपर सहकश्योग करिे हुए आगे बढ़ मेंगे. उस समकश्य धेमर्म और उसपर रिटककी तवभेदक सएंस्सककृति

उनके रास्सिे के सबसे बडे अवरोधेक हरगे. िब कश्यह कश्याद रखना उन्हह में तवशेोषि बल देगा कक प्रककृति ने अतधेकार िो सभी

को कदए हह, बराबर कदए हह, मगर तवशेोषिातधेकार सएंपन्न ककसी को भी नहहीं बनाकश्या है.

© ओमप्रकाश कशकश्यप