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 ब  चरत / / एडवन अना  ड / रमच   ल  म   खप   षठ  » रचनाकारो स   ची  » रचनाकार: रामच श   ल  प   षठ सारणी  अगला प   षठ >>  रमक इसी लीलभ पर भगवन  द  व भी जनक भव एशय  ड सर प  वा  ा भरत को इस गरी दश  भी  म और    खत चल रह रमकण चरतगन मध  र वर भरत सरी भष ग   ज रह पर  बौ धमा सथ ही गौतम    त तक जनत दय द  र हो गई 'भरथरी ' और '  गोपीचद ' क जोगी होन गीत गकर आज भी रमत जोगी को कणा करक अपन  ट पलत चल जत पर मर सथा महभनमण ध  दलन  वली वणी कह भी नह  नई पती जन बत स हमर गौरव उह भ  लत -भ  लत आज हमरी यह दश ई।   यह '  ब  चरत '    जी ' Light of Asia'  क हदी अवतरण यप  ग इसक ऐस रख गय एक वत  हदी इसक हण हो पर सथ ही म  ल  तक भव को करन भी प  णा कय गय वणा  न जह  अय   अपया   तीत वह बत कछ फरफर करन बन भी    जी अल  कर जो हदी आन वल नह   खोल दए गए , ज  स म  ल यह वय थ - ..........Where the Teacher spake wisdom and power,   इसम  Hendiadys नमक अल  कर जसम कसी    णवचक शद उसक आग एक  योजक शद डलकर   बनकर रख  दय जत , ज  स - और ओज= ओजप  णा न। वय हदी इस कर कय गय -ओजप णा अपवा भयो न शीभगवन।   तपया यह म  ल भव भी प  र यन रख गय शद बौ शो वत रख गए उनक भी  फ टनोट कर दी गई यद परपर  मय भी मनोरजन होग तो अपन सफल समझ     ग।  जस वणी कई करो हदी भषी रमक मध  र चरत मरण करत रह उसी वणी भगवन ब को मरण करन   क यह लघ यप यह वणी जभष नम पर वतव अपन  क यह सर उरपथ क भष रही  - रमच शल   ब  चरत / थम सगा / एडवन अना  ड / रमच   ल  '  जम '  दपत चर अपलोक तर सद वरजत ,  जो जग बीच अटल अन शसन सजत।  तनक तर  षतलोक जह जीव  तर   ग  ण - सहस - दस वषा वस कर जनमत भ पर।  रह जब लोक   भगवन दयमय  

बुद्धचरित

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budhism

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 बु चरत / व / एडवन अना ड / रमचं  शुल  म  खुप  षृठ   » रचनाकारो क स  चूी   » रचनाकार: रामचदं श  ुल  

प  षृठ सारणी  

अगला प  षृठ >> 

 रमकृण क इसी लीलभम पर भगवन् बु दे व भी ए ह जनके भव से एशय खं ड क सर प  वा ा भरत को इस गरी दश म 

भी े म और क दृ  से दे खत चल ज रह ह।ै रमकृण के चरतगन क मध ुर वर भरत क सरी भष म ग   ूज रह है पर 

 बौ धमा के सथ ही गौतम बु  क मृ त तक जनत के दय से द  र हो गई ह।ै 'भरथरी ' और ' गोपीचद ' के जोगी होने के गीत गकर 

आज भी कुछ रमते जोगी य को कणा करके अपन पे ट पलते चले जते ह पर कुमर सथा के महभनमण क सुध 

 दलने वली वणी कह भी नह सु नई पती ह।ै जन बत से हमर गौरव थ उह भ  लते-भ  लते आज हमरी यह दश ई। 

 यह ' बु चरत ' अं े जी के ' Light of Asia' क हदी क के प म अवतरण ह।ै यप ढ ंग इसक ऐस रख गय है क एक वत 

 हदी क के प म इसक हण हो पर सथ ही म  ल पु तक के भव को प करने क भी प  णा य कय गय है। दृय वणा न जह ू

अयु  य अपया  तीत ए वहू बत कुछ फेरफर करन य बन भी प ह।ै अं े जी अलं कर जो हदी म आने वले नह थे व े

 खोल दए गए ह, जै से म  ल म यह वय थ -

..........Where the Teacher spake wisdom and power, 

 इसम Hendiadys नमक अलं कर थ जसम कसी सं  क गु णवचक शद उसके आगे एक सं योजक शद डलकर सं  बनकर रख 

 दय जत ह,ै जै स-े न और ओज= ओजप  णा न। उ वय हदी म इस कर कय गय है-ओजपणूा अपवूा भयो न 

शीभगवन्।   तपया यह क म  ल के भव क भी प  र यन रख गय ह।ै शद बौ शो म वत रखे गए ह। उनक य भी 

 फुटनोट म कर दी गई ह।ै यद क परंपर के े मय क कुछ भी मनोरंजन होग तो म अपन म सफल समझ   ू ग। 

 जस वणी म कई करो हदी भषी रमकृण के मधु र चरत क मरण करते आ रहे ह उसी वणी म भगवन् बु  को मरण करन े

 क यह लघु य ह।ै यप यह वणी जभष के नम से स है पर वतव म अपने सं कृत प म यह सरे उरपथ क क 

भष रही है। 

- रमच शुल  

 बु चरत / थम सगा / एडवन अना ड / रमचं  शुल  

“' जम 

”'

 दपत चर अपलोक तर सद वरजत ,

 जो य जग के बीच अटल अनशुसन सजत।  तनके तर है तु षतलोक जहू जीव े तर   ग ुण - सहस - दस वषा वस कर जनमत भ पर। 

 रहे जबै य लोक बु  भगवन् दयमय  

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 जम चन भे गट पू च तनपै अत नय।  तु रत तह पहचन दे वगण ने कनी धु न  

" जै ह जग कयण हे तु भगवन् ब ु पु न।" 

 तब बोले भगवन् "जत ह जग सहय हत  

अब म अं तम बर , भयो ब बर जत तत। 

 जम मरण स रहत होयह म औ वे जन   जे चलह मम धमा मगा पै नै नल मन। 

शयवशं म अवतरह हमगर दिण तट ,

 वसत धमा रत ज जहू नृ प ययी उट।"  वही नश शु ोदन नृ प क रनी मय   सोई पत ढग लखी व म अभु त छय। 

 दे यो सपने म वलु त नमा ल तरो ,

 दीमन षड् अंशु धरे अतशय उजयरो।  नभमं डल त छट तसु ढग दमकत आयो  

औ दहनी दश आय गभा म तसु समयो। 

 जसौ लित भयो एक मतंग मनोहर   षड् द ंतन स यु  छीर सम े त कं तधर।  जगी जब आन ंद अलौकक उर म छयो   ऐसो जै सो क जनन ने कबू न पयो। 

 प  वा ही भत के भ प ुनीत जो छई  अदा मं डलं त भ  म भसमन नै गई। 

 कू पगे पहर , सधु नीर धीरत गही ,

 फल भनु पय जो खल, खले अकल ही। 

 मोद क तरंग े तलोक लौ गई बी  भनु योत अधंकर भे द जत य ची। 

 मं जु घोष होत ' जीव होयू जे जहू बह े

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आस क ैउठ सु न, पधर बु  ह रह'े। 

 लोक लोक म गई अपर शत छय है,

 फ ल ते रहे उमं ग न हये समय ह।ै भ  म औ पयोध पै समीर धीर जो बो  

और ही रो कछ , न जत क पै को। 

भयो य ही भोर ब द ैव ब  े आय  

 लगे भखन व को फल भ  प स हरखय - 

' कका बीच दनशे ह सब योग शुभ य कल   व को फल परम सु ं दर होयह,ै नरपल! 

ी महदे वी जयह सु त नवन् अपर  

 जो सधहै य जगत् के सब जीव को उपकर ,

अन त उरहै जो सकल मन ुज समज ,

 न तो सकल जग शसहै जो करन चहहै रज। 

- --

 गभा प  यो , उठी मय के दय यह बत  

 दे वदह चल पत के घर लख शशु नवजत।  नै गयो मधय तको ल ुं बनीबन जत  शलत तर एक ठी भई प ुलकत गत। 

 शखर सम सो खरो स धो वटप परम वशल  

 नवल कशलय धरे, सु रभत सु मन मं डत भल। 

 बु  को आगमन य सब वतु रह जनय  

 परयो आगम जन व को , उठयो लहरय। 

 हे र महम महदे वी पै सहत समन  

 हरी डर नवय सु ं दर दयो तन वतन। 

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भ  म सहस लय सु मनन दई से ज सजय   हयबे हत तह सोतो वमल फटो आय। 

 कयो रनी ने सव बनु पीर शशु अवदत   बु  के बीस िलण रहे जके गत।  पू चगो स ंवद शभु सद म तब जय   ले न तनको गई चत पलक चट आय। 

 मे  त छल आय बहक बने सब दपल   कमा णन के लखत जे रहत ह सब कल। 

 प  वा को दपल आयो , जसु अनु चर जल  

 रजत अं बर धवल धर,े लए मु  ढल। 

 चयो दिणपल लै कु ं भं डगण क भीर ,

 नील वजन च,े नीलम ढल सजे बीर। 

 चयो पमपल जके नगगण ह सं ग  

 गहे ढल वल क , और चे प तु ं रग। 

 घे र उर लोक पलह कनकमं डत गत   पीत हय पै वणा ढलन सजे िय लखत। शधर सब दे व आए अलख वभैव सं ग   पलक पै दयो कंध लगय सहत उम ंग। 

 रहे वहक प म कोउ तह जयो नह  

 दे वगण व दवस बचरे मले मनु जन मह। 

 रो वगा उछह सो भर ग ुन जगत् कयन ,

 जन यह नरलोक म पु न अवतरे भगवन।् 

 नृ प यह जयो नह रही चत चत पी  

 को गणकगण आय , ' पु  यह परम तपी।'

 चव यह सोइ भ  म भोगन जीवन भर  आवत है जो त सहे वसर य भ पर। 

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 सत र यह सु लभ - थम है चर वर  अजर जो भर ग ुं कर पग धरत मे घ पर। 

 हतर हम सरस े त वहन सु दर अत , नीतवशरद सचव तथ दु जा य से नपत ,

भया अनु पम पवती यु वती सु कुमरी   रमणीर अमोल उष स ब उजयरी।  सु न सु त वभैव नृ पत हरष अनशुसन फेरो  

' उसव और उछह नगर म होय घने रो '। 

 सब बट जत बहर , च ंदननीर छरको जत ह ै

 दमकत ु मन पै दीप , फहरत केतु ब दरसत ह। 

 सज स  र खू डे धर कर म करत आसन पै तरे  नट इंजलक खे ल दे खत लोग कू अचरज भरे। 

 कू र् नक चु न च  नरी , पग घ   ू घ झनकरत , नज चपल चरनन के चू दश मं द हस उभरत। 

 तीतर बटेर बटोर कोऊ कतू रहे लय ह,

 बै ठे मदरी कतू मकाट भलु रहे नचय ह। 

 इत भरत मोटे कल नन दू व पे च दखय कै,

 उत वकर मृ दं ग ढोल बजय सज मलय कै। 

आलप छू त बीन क झनकर मं जु उठय ह,

 य दे त रसक समज को बद बद हयो लसय ह। 

 ब बणक आए द  र त सं वद शभु यह पयकै  

 ल भ ट क ब वतु सु ं दर कनक थर सजयकै- 

 कौशे य अशंु क चीन के, नव शल ब कमीर को  

 मण पु परग , वल , मोती सु घर सगर तीर को। 

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 सु ं दर खलौनन के मनोहर म ेल कू सोहत धरे,

 घनसर , कुमकुम , अगर , मृ गमद , भर चं दन के भरे। 

 कोउ धरत अं बर ध  पछू ह सु रंग झीने लय ह,

 नह जसु बरहर् प सकत सल वदन छपय ह। 

 सरी कनरी जसु मोतन स जरी अत झलझली ,

अत भ भ  षण , वसन , भजन , फलन फलन क डली। 

 ब भ ट पठवत करद पु र , सब भवन भ  पत को भरो ,

 सथा व ' सवाथ स ' कुमर नम गयो धरो। 

आए अपरचत जनन म ऋष असत परम प ुनीत  

 सं सर सो फर वण जनके सु नत सु र सं गीत ,

अजथ तर बै ठे रहे जो धरे अपनो यन ,

 तहू बु  जम उछह को सु न परयो नभ म गन। 

 सोहत पु रणवीण प  णा कर तपबल पय।  समन स नयरय नरपत परे पयन जय। 

 उत महरनी आय पू यन पै दयो ससु डर ,

 पै दे ख तह मु नीश चरनन टर उठे पुकर - 

' हे दे व! करती कह ?' पु न शशु चरनरज सर लय  

 मु न को ' हौ तु म सोइ बं दन करत ह सर नय। 

 मृ दु योत लसत अप  वा, वतक चन सो दरसत ,

 बीस िलण मु य , अनु ंजन असी अवदत। 

 हौ ब ु , धमा सखय करहौ लोक को उर ,

अनु सरण   करह जीव जे ते होयह भव पर। 

 तब तइू रहह नह , मे री अवध गइ नयरय। 

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 तन रख करह कह नै कृतकृय दशा न पय ?

भ  पल परम सु जन! जनौ कली है यह सोय ,

 कपं त म कू एक बर वकस जको होय ,

 जग न सौरभ , े म के मकरंद स भर जय ,

 तव रजकुल म आज यह अरवद फटयो आय। 

 य भवन को अत भय! पै कछु द:ुख दरसत।  नृ प! तु ह य सु त हे तु परहै सहन हय आघत। 

 हे दे व! सु र नर य भई यह गभा धर जग मह ,भवतप भोगै और त अब नै सकत यह नह। लशेप यह जीवन जो सो नह रह ज ैह।ै  सत दवस म कर यको त अं त सधौह।ै 

 सतव दन भई वणी सय , नज गृ ह मह  

 रत सु ख स सोय रनी फेर जगी नह। 

 यशस् वगा म सो जय लयो नवस   दे वगण जहू रहत से व म खे चू पस। 

 मह जवत लगी पलन शशु सु खकरी ,

 सचन लगी कंठ सकल जग मं गलकरी। 

“' िश ”'

आठ वषा क ेभे कुमर जब नृ प मन मह वचरो ,

 रजकुमरह चहय पवन रजधमा अब सरो। 

 चमकर ग ुन सकल महीपत आगम कथन वचरै,

 चहत नह नै बु  पु  मम जग म न पसरै। 

भरी सभ के बीच एक दन भ  पत बै ठयो जई ,

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 प  छयो सब मं न स अपने सदर नकट बु लई। 

“ कहौ , सचववर! कौन नरन म अत वन कहवै,

 रजपु  के जोग सकल गु ण जो मम सु तह सखवै।” 

 को एक वर स सब मल के “ सु नो नृ पत! यह बनी ,

 वम समन न कोऊ बु मन औ नी। 

 वे द वषय परंगत सब वध , शन म रो ,

धनु व द म चतु र लसत सो , सकल कल म प  रो ”। 

 वम आय नृ प आ सु नी , अमत सु ख पयो। शभु दन औ शुभ घरी मह पु न कु  ू वर पन को आयो। 

 रनजरी रूगी च ंदन क पटी कू ख दबई   लए ले खनी गु  समीप भे ठे दीठ नवई। 

 तब बोले आचया ' वस! तु म लखौ मं  यह सरो '। 

 य कह पवन गयी को म  ल मं  उरो  

धीमे वर स , सु नै न जस कोउ नष नर नरी  

 सु नबे के केवल ह जके तीन वणा अधकरी। 

' लखत अब,ै आचया!' कु  ू वर बोयो वनीत वर  

 लयो अनेकन लपन मं  पवन पटी पर। 

 ी , दिण , दे व , उ , मं गय , अं ग लप , दरद , खय , मधयिर वतर , मगध , बं ग लप ,

औ खरोी , िय , नग , कर , सगर पु न  

 लख दखरए कु  ू वर सबन के िअर चु न चु न। 

 मग शक आदक के िअर छटे नही ,

 सय अ क जो उपसन करत सदह। 

 बोलन म ब चयो मं  सवी पु न भन  

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 को गु  ' बस करौ , चलो अब तो गनती गन। 

 कहत चलौ मम सथ नम सं यन को तौल  

 पू ची जयू हम , कु  ू वर! लख पय त न जौ ल। 

 कहत एक , ,ै तीन , चर त दस ल जओ ,

 दस त सौ ल , पु न सौ त चल सहस गनओ।'

 त पछे गन गयो कु  ू वर एकइ दहइ ,

शत सहे औ अयु त िल ल पू यो जइ ,

 गनत गयो कं यो नह सो कु  ू वर सयनो  ' तके आगे यु त कोट औ अबु  ा द मनो। 

 परं इखवा और महखवा औ महप पु न '

असं येय ल गनत गयौ , सु न चकत भए मु न। 

 बोले मु न ' है बत ठीक हे कूवर हमरे 

अब आयत परमण बतऊू तु मको सरे'। 

 यह सु न रजकुमर वचन बोयो वनीत अत  

'वण करौ , आचया! कहत ह सकल यथमत। 

 दस परमणु न को मलय परस म कहत ह  जोरे दस परस म एक सरेणु लहत ह। 

 दे त स सरेणु योग अणु एक बवई  भवनरंभृ त रवकर म जो परत लखई। 

 सत अगु ण को योग एक केश कहवत ,

 जो दस मल कै लय क ह सं  पवत। 

 दस लय को एक यक सब मनत आव,

 दस यकन को एक यवोदर सबै बतव। 

 दस जौ जोरे होत एक अं गु ल य मनत ,

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 बरह अं ग ुल को वतत सगरो जग जनत। 

 तके आगे हत , दं ड , धनु ल आव। 

 लन को लै बीस स द  री ठहरव।  ते ती द  री स होत जे ती के बहर   एक सू स म चलो जय बनु थमे कोउ नर। 

 चलस सन क द  री को गो ठहरवत।  होत चर गो को योजन यह सबै बतवत। 

 यद आयसु तव होय कह अब म, हे ग ुवर! 

 केते अणु ऍट सकत एक योजन के भीतर। 

 य कह तु रत कुमर दयो अण ुयोग बतई ,

 सु नतह वम परे चरनन पै जई। 

 बोले मु न ' त सकल गु न को ग ु जग मह। 

 त मे रो ग ु , म ते रो ग ु नय नह। 

 बं दत हौ सवा  कु  ू वर! त ेरो पद पवन ,

 मम चटसरह आयो त केवल दरसवन - 

 बनु पोथन ही सकल तव त आपह छनत ,

 तपै ग ुजन को आदर प  रो जनत।'

 करत ी भगवन गु जन को सद समन , वचन कहत वनीत यप परम ननधन। 

 रजते ज लखत मु ख प,ै तदप मृ दु वहर ,

 दय परम सशुील कोमल , यदप श  र अपर। 

 कबू जत अहे र को जब सख लै सं ग मह   सहसी असवर तन सम कोउ नकसत नह। 

 रजभवन समीप कबू हो जो लग जय  

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 रथ चलवन मह कोऊ तह सकत न पय। 

 करत रहत अहे र सहस ठठक जत कुमर ,

 जन दे त कुरंग को भज , लगत करन वचर। 

 कबू जब घु रदौर म हय हू क छू त सू स ,

 हर अपनी हे र व जब सख होत उदस। 

 लगत कोऊ बत अथव गु नन मन म आन  

 जीत आधी कु  ू वर बजी खोय दे तो जन।  बत य य गयो भु क वयस् लह दन रत   बत दन दन गई तनक दय यह भू त। 

 यथ कोमल पत ै त, होत वटप वशल ,

 करत छय द  र ल ब जो गए कछु कल।  कतु जनत नह अब ल रो रजकुमर  

लशे , पी , शोक कको कहत है सं सर। 

 इह ऐसी वतु कोऊ गु नत सो मन मह   रजकुल म कबू अनभुव होते जनको नह। 

 एक दवस वसं त ऋतु म भई ऐसी बत ,

 रहे उपवन बीच स नै हं स उ कै जत। 

 जत उर ओर नज नज नी दश ते धय ,

शु हमगर अं क म जो लसत ऊपर जय। 

 े म के सु र भरत , बधू धवल स ुं दर पू त  

 उे जत वहं ग कलरव करत नन भू त। 

 दे वद कुमर चप उठय , शर सधंन  

 लय अगले हं स को कर मर दीनो तन। 

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 जय बै ठयो पं ख म सो हं स के सु कुमर ,

 रो फैयो करन हत जो नील नभ को पर। 

 गरयो खग भहरय , तन म बधयो वशख करल ,

 ररंजत नै गयो सब  ेत पं ख वशल। 

 दे ख यह सथा लीनो धय तह उठय ,

 गोद म लै जय बै ठयो प इरआं सन लय। 

 फेर कर लघु जीव को भय दय सकल छुय ,

और धरकत दय को य दयो धीर धरय। 

 नवल कोमल कदलदल सम करन स सहरय ,

 े म स पु चकर तकत तसु मु ख दु ख पय। 

 ख च लीनो नठुर शर कर य बरंबर।  घव पै धर जी ब  टी कयो ब उपचर।  दे खबे हत पीर कैसी होत लगे तीर   लयो कु  ू वर ध ूसय सो शर आप खोल शरीर। 

 चक सो चट परयो पीर परी दण जन ,

 छय पयनन नीर खग पै लयो फेरन पन।  पस तके एक से वक तु रत बोयो आय  अबै मे रे कु  ू वर ने है हं स दयो गरय। 

 गरयो पटल बीच बध के ठौर पै सो यह।  मलै मोको , भो! मे रो कु  ू वर म ूगत तह।'

 बत तक सु नत बोयो तु रत रजकुमर   जय कै कह दे  दै ह नह क कर। 

 मरत जो खग अवस पवत तह मरनहर   जयत है जब तसु तपै नह कछु अधकर।  दयो मे रे बधंु ने बस तसु गत को मर  

 रही जो इन े त पं खन क उठवनहर।'

7/14/2019

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 दे वद कुमर बोयो ' जयै व मर जय  

 होत पं छी तसु है जो दे त वह गरय। 

 नह क को रौ जौ ल रो नभ मह ,

 गर परयो तब भयो मे रो , दे त हौ य नह ?'

 लयो तब खगकंठ को भु नज कपोलन लय   पु न परम गभंीर वर स को तह ब ुझय  

' उचत है यह नह जो कछु कहत हौ त ुम बत ,

 गयो नै यह वहग मे रो नह दै ह , तत! 

 जीव ब अपनयह य भू त य सं सर   दय को औ े म को नज कर भ ुव सर।  दयधमा सखयह म मनु जगन को टेर   म  क खग पशु के दय क बत कहह ह ेर। 

 रोकह भवतप क यह बती धर करल   परे जम मनु ज त लै सकल जीव बहल।  कतु चह कु  ू वर तो चल वजन के तीर  

 कह अपनी बत चह यय धर जय धीर।'

भयो अं त वचर नृ प के सभमं डप मह  

 कोउ ऐसो कहत , कोऊ कहत ऐसो नह। 

 को यही बीच उठ अत पं डत एक   ण है यद वतु कोऊ करौ न ैकु वव ेक। 

“ जीव पै है जीविरक को सकल अधकर  

 वव वको नह चो बधन जो कर वर।  बधक नसत औ मटवत रखत रछनहर  

 हं स है सथा को यह , सोइ पवनहर ”। 

7/14/2019

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 लयो सरी सभ को यह उचत यय वधन। 

भई मु न क खोज , पे सो भए अं तदन। 

 यल रगत लयो सब तहू और कह नह  

 दे वगण य प आवत कबू भ  तल मह। 

 दय के शभु कया को आरंभ यह कर   कयो ी भगवन ने लख द:ुखी यह सं सर।  छू  पीर वहं ग क उ मयो जो नज गोत  और लशे न कु  ू वर जनत कहू कसैे होत। 

 को नृ प एक वसं त के वसर वस! चलौ प ुर बहर आज।  जहू सु खम सरसत धन , धरती अपनो धन खोल अनज। 

 बछवत कटनहर समीप , चलौ अपनो यह दे खन रज। 

भरै नृ प के नत कोषह जो चल आवत पलत लोकसमज  

 चे रथ पै दोउ जत चले, वन , बग , तग लस चू ओर। 

 लसे नव पलव स लहर लह कै त म ंद समीर झकोर। 

 कू नव कशु कजल स लल लखत घने बनखं ड के छोर।  पर तहू खे त सु नत तहू मलीन कसनन को कल रोर। 

 लपे खरहनन म सथुर ेपथपर पयर क ेढह लखत।  मे नव मं ज ुल मौरन स सहकर न अं गन मू ह समत। 

भर छब सो छलकय रहे, मृ दु सौरभ लै बगरवत बत। 

 चर ब ढोर कछरन म जहू गवत वल नचवत गत। 

 लदे कलयन और फलन स कचनर रहे कू डर नवय। भरो जहू नीर धर रस भीज कै दीनी है द  ब क गोट चय।  रो कलगन वहं गन को अत मोद भरो चू ओर स आय। 

 क लघु जं तु अने क , भग पु न पस क झन को झहरय। 

 डोलत ह ब भृ ं ग पतं ग सरीसृ प मं गल मोद मनय। 

भगत झन स क तीतर पस कू कछु आहट पय। 

7/14/2019

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 बगन के फल के फल पै कू कर ह भगत चच चलय। धवत ह धरबे हत कटन चष धनी चत चह चय। 

 क क उठै कबू कल कंठ स कोकल कनन म रस नय।  गीध गर छत पै कछु दे खत , चील रह नभ म मू रय। 

यमल रेख धरे तन पै इत स उत दौर कै जत गलय।  नमा ल तल के तीर कू बक बै ठे ह मीन पै यन लगय। 

 चत मं दर पै च मोर रो नज चत पं ख दखय। 

 यह के बजन बजन क ध ुन द  र के गू व म दे त सु नय। 

 वतु न स सब शं त समृ  रही ब पन म दरसय।  दे ख इतो सु ख सज कुमर रो हय म अत ही हरखय। 

 स म प स पै वने कनो वचर जब   दे खे जीवन कुसु म बीच करे कंटक तब।  कैसो दीन कसन पसीनो अपनो गरत   केवल जीयन हे तु कठन म करत न हरत। 

 गोद लकुट स दीघा वलोचन ब ैलन हू कत   जरत घम म रहत ध  र खे तन क फू कत। 

 दे यो फेर कुमर खत ददु र पतं ग गह ,

 सपा तह भख जत , मोर स बचत सपा नह। 

यम पकरत कट , बज झपटत यम पर ,

 चह पकरत मीन , तह धर खय जत नर। 

 य इक बधकह बधत एक , बध जत आप पु न ,

 मरण एक को द  जे को जीवन , दे यो गुन। 

 जीवन के व सु खद दृय तर तह लखनो   एक द  सरे के बध को षच लु कनो। 

 परे कट त लै मनु य जम म खई   चे तन णी मनु ज बधत सो बधंु ह जई। 

7/14/2019

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भ  खे दु बा ल बै ल को नध फरवत ,

 ज  ए स छल छत कंध पै मनह न लवत। 

 जीबे क धु न मह जगत् के जीव मरत लर   लख यह सब सथा कु  ू वर बोयो उसस भर - 

' लोक कह यह कोइ लगत जो परम सु हवन ,

अवलोकन हत जह परयो मोको ू आवन ?

 के पसीने क कसन क खी रोटी , कैसो कवो कम करत बैलन क जोटी!  सबल नबल को समर चलत जल थल म ऐसो! 

 नै तटथ टुक धर यन , दे ख जग कैसो।'

 य कह ीभगवन् एक जब तर जई   बै ठे म  त समन अचल परइंसन लई। 

 लगे चतन करन मह भवध भय ंकर!  कह म  ल है यको और उपचर कहू पर ?

 उमगी दय अपर , ीत पसरी जीवन त  

लशे नवरण को जय म अभलष जयो अत। यनम नै गयो कु  ू वर य मनन करत जब   रही न तन सु ध आमभव बह गए द  र सब। 

 लो चतु वध यन तहू भगवन बु  तब  धमा मगा को कहत थम सोपन जह सब। 

 पं चदे व तह कल रहे कू जत सधए   तनके के वमन जबै त ऊपर आए।  परम चकत नै लगे ब  झन तक परपर  

 कौन अलौकक श हम खचत य त तर ?'

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 गई दीठ जो तरे परे भगवन् लखई  

 ललत योत सर लसत , वचरत लोक भलई। 

 चीह तह ते दे व लगे शभु गथ गवन - 

" तपशमन हत मनसरोवर चहत आवन ,

 नशन हत अन तमर दीपक जगहै अब   मं गल को आभस लखौ नै मु दत लोक सब।" 

 खोजत खोजत एक द  त नृ प को तहू आयो   पू यो वही ठौर कु  ू वर जहू यन लगयो। 

 पहर तीसरो चयो यन नह भं ग भयो पर  

अतचल क ओर बे भगवन् भकर। 

 छय घ  म सकल कतु जम ुन क छह  

 रही एक दश अी , टरी भु पर त नह। 

 जम भु के पवन सर पै परै न आई  

 रव क तरछी करन , तप भु ओर चई। 

 लयो द  त यह चरत हये अत अचरज मनी। 

 जमु न क मं जरन बीच फटी यह बनी - 

' रहहै इनके दय यन क छय जौ ल  

 नह सरकहै कतू हमरी छय तौ ल। 

 बु चरत / तीय सगा / भग -1 / एडवन अना ड / शुल  

रज क चत 

 वषा अठरह पर भए भगवन् ब ु जब  

 तीन भवन बनबे क आ न ृपत दई तब - 

 बनै एक तो दे वदर स मढयो भ अत  

शीतकल म होय शीत क नह जमे गत ,

 बनै े त ममा र को द  जो दमकत उवल ,

7/14/2019

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 ीमकल म बस जोग सथुरो औ शीतल ,

 लल ट को बनै तीसरो भवन मनोहर ,

 पवस ऋतु के हे तु खल चं पक जब सु ं दर। 

 तीन हया य-े शु , रय तीजो सु रय पु न - 

 रजकुमर नम भए नमत तहू चु न चु न। 

 तनके चर ओर खले उपवन मन मोहत ,

 नरे घ  मत बहत , बटप वीध ब सोहत। 

 सघन हरयरी मह लतमंडप ब छए।  जनम कबू कु  ू वर जए ब ैठत मन भए। 

 नव मोद आमोद तह बलमवत छन छन ,

 पय तण वय रहत सद सु ख स बतवत दन। 

 कबू कबू पै छय जत चत चत मह ,

 मनस जल वरय पय य बदर छह। 

 दे ख िलण ये महीपत को सचव बु लय - 

'यन है जो कह गए ऋष औ गणकगण आय ?

 ण त य पु  यह जग जीत करहै सज ,

 सकल अरदल दल कहै है महरजधरज।  नह तौ पु न भटकहै तप के कठन पथ मह  

 खोय सवा स पयहै सो कह जन नह। 

 लखत तसु वृ  हम य ओर ही अधकय   व हौ तु म दे  मोक म ं सोइ बतय। 

 उ पथ पग धरै जस कु  ू वर सज सु ख जत ,

 घट िलण सय सब , सो करै भ  तल रज। 

 रो जो अत े  बोयो बचन सीस नवय  

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' े म है सो वतु जो यह रोग दे य छुय। 

 कु  ू वर के य परम भोरे दय प,ै नररय! 

 तयन के छल छंद को चट दे  जल बछय। 

 प को रस कह जनै अबै कु  ू वर अजन ,

 चपल चख चत मथनहरे, अधर सधु समन। 

 दे  वको कमनी कर चत ुर सहचर सथ ,

 फेर दे खौ रंग अपने कु  ू वर को , हे नथ! 

 लोह सीक स नह जो भव रोको जय   कुटल कमन केश स सो सहज जत बधूय '। 

 को नृ प यद खोज यु वती कर यको यह ,

 े म क कछु परख औरै औ नरली चह। 

 यद कह हम तह ' हे सु त! प उपवन जय  

 ले  च ुन सो कली जो सब भू त तु ह सु हय '

 परम भोरो बह ूस कै सो बत दै है टर  भगहै आनं द स जह सकत नह जय धर। 

 को द  सरो सचव ' नृ पत यह समु झ ले  मन ,

 तौ ल कदत है कुरंग जौ ल शर खत न। 

 कोउ मोहहै अवस तह जनौ यह नय  

 क को मु ख तह वगा सम लगहै सु खमय। 

 प उष स उवल कोऊ लगहै तको ,

आय जगवत जो तदन सरी वसुध को। 

 रचौ सत दन म 'अशोक उसव ' नृ प! भरी  

 होयू जहू एक रय क सकल कुमरी। 

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 ब ूटै कु  ू वर 'अशोक भं ड ' सबको स मन  

 प और गु न करतब तनके नरखै नयनन। 

 लै लै नज उपहर जन जब जगै कुमरी ,

 छप कै दे खत रहै तहू कोऊ नर नरी  

 कके ऊपर कु  ू वर आपनी दीठ गव,ै

 कक चतवन मले उदसी मु ख क जवै।  चु न े म के नयन े यसी आपह जई। 

 रसबस कर कै कु  ू वरह हम य तो सकत भु लई।'

भली लगी यह बत , यु  सब के मन भई। 

 तु रत रय म नरपत ने डी फरवई - 

' रजभवन म आव सु ं दर सकल कुमरी ,

 ह ै'अशोक उसव ' क कनी नृ पत तयरी। 

 नज कर स उपहर बू टह ीकुमर क  

 पै है वतु अमोल नकसहै जो सब स ब।'

 बु चरत / तीय सगा / भग -2 / एडवन अना ड / शुल  मे 

 नृ पर कुमर चल पु र क , ऍगरग स ुगधं उै गहरी ,

 सज भ  षण अं बल रंग बरूग , उमं गन स मन मह भरी। 

 कवरीन म मं जु स  न गु छ,े दृ गकोरन कजर लीक परी , सत भल पै रोचनबदु लस,ै पग जवक रेख रची उछरी। 

 चल कु  ू वर आसन पस स मृ दु मं द गत स नगरी ,

 ह कत करे दीघा नयन नवय भोरी छव भरी। 

 ब रजते ज स कछ तहू हे र ते हहर हये,

 जहू लसत कु  ू वर वरग को म ृदु भव आनन पै लय।े 

7/14/2019

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 जो नकसै अत पवती , सब लोग सरहत जह दखय  

 सो चक कै हरनी सी खी चट होय कुमर के समुख आय - 

 द वप , महमु न सो सब भू त अलौकक जो दरसय - 

 लै अपनो उपहर मलै पु न कंपत गत सखीन म जय। 

 पु र क कुमरी एक पै चल एक यो पलटी जबै,

 टटयो छट को तर औ उपहर बू टगो सबै 

 ठी भई तब आय कु  ू वर समीप द यशोधर  अत चकत हे रत रह गयो सो वगा क सी असर। 

 मृ दु आनन पै लख इंदु भ अरबद सबै सकचुय परे शर हे र स  न के नै नन म हरनीन के नै न न ठहरे।  पु न जोर कुमर स दीठ चतै मु सकन कछु अधरन धरे 

" कछु पय सक हम"ू यह पछत भौहू न म कछुभव भरे। 

 सु न कहत रजकुमर "अब उपहर तो सब ब ूट गयो ,

 पै दे त ह जो नह अब ल और क क दयो"  चट क मरकत मल वके कंठ म नई हरी ,

 तहू नयन दोउन के मले जय ीत जस जग परी। 

 बत दनन म भए बु  पद कु  ू वर जब  

 बनती कर ब लोग जय तनस प  छयो तब  

य सहस लख गोप को य ढरयो तसु चत '

 को बु  ' हम रहे परपर नह अपरचत। 

 बत जम क बत सु नौ जमु न के तट पर ,

 नं ददे वी को सोहत जहू धवल शखर वर ,

 एक अहे री को कुमर मन मोद बई।  वनकयन के सं ग रो खे लत तहू जई। 

7/14/2019

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 बयो पं च सो , तह थम चल छुवन वचरी  

 दे वदर तर दौर हरनी सरस कुमरी। 

 बनज  ही स दे त क को भल सजई ,

 नीलकंठ के पं ख क को दे त लगई ,

औ ग  ं ज क मल क के गर म नवत ,

 क को चु न दे वदर के दल पहरवत। 

 दौरी पछे जो सबके सो आगे आई ,

 मृ गछौन दै एक तह स ीत लगई ,

 सु ख स दोऊ रहे बत दन ल बन मह ,

 बधंो ीत म दोउ अभ मन मरे तह ूह। 

 दे खौ! जै से बीज भ  म तर ढको रहत ह,ै

 फोरत अं कुर वषा क जब धर लहत है,

 यही वध सब कमा बीज पहले के भई -  रग  ेष , सु ख द:ुख , भलई और ब ुरई - 

 गटत है पु न जब कबू ते अवसर पव,

औ मीठे व कवे फल नज डरन लव। 

 सोइ अहे री को कुमर मोको त ुम मनौ ,

 है यशोधर सोइ चपल वनकय , जनो। 

 जम मरण को च भयौ जौ ल नह यरे,

आवन चह,ै रही बत जो बीच हमरे।" 

 रहे कु  ू वर को भव लखत जो उसव मह  

 जय सु नयो नृ प को सब , कछु छडयो नह। 

 कैसे कु  ू वर वर रो बन ब ैठो तौ ल  

 सु बु  क यशोधर आई नह जौ ल। 

7/14/2019

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 पलटयो कैस रंग कु  ू वर को य सो आई ,

 नरखन दोऊ लगे परपर दीठ मलई। 

 रहर दै बे क सरी बत गए कह ,

 रहे े म स एक द  सरे को कैसे चह। 

शपिरी   बोयो भ  पत बहू स "वतु हमने सो पई   रख लै है जो अवस हमरो कु  ू वर फूसई। 

 पठै द  त अब मू गौ सो कय सु कुमरी ,

 सु बु  स कहौ जय यह बत हमरी।" 

 रही रीत पै शयगणन म जो न सकै टर ,

 बे घरन क बरन चहै जो कय स ुंदरी  शकल म परै नपु णत तह दखवन   तन सब स ब जो जो चह तको पवन। 

 नृ पगण वपरीत रीत नह सक चलई   को कु  ू वर को पत "नृ पत स बोलौ जई। 

 द  र द  र के रजकु  ू वर ह चहत यको ,

 सब स जो ब सकै कु  ू वर तो दै ह तको। 

 ए शे हयचलन म यद सो ब ज ैह,ै

 वस ब कै और कहू बर कोऊ पै है?

 पै दे खत ह ढीले ढं गन को वके जब   कैसे आश कर होयहै वस यह सब ?"

भयो भ  प अत दु खी लयो सोचन मन मह - 

' चहत कु  ू वर है यशोधर को , सशंय नह। 

 कौन धनधुा र नगद स पै ब मरह?ै

 हय चलन म अजु  ा न समु ख कौन ठहरह?ै

7/14/2019

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 खं ग यु  म वीर नं द स ब कक गत ?"

 सोच सोच महपल भयो मन म उदस अत। 

 दे ख दश यह वहू स कु  ू वर बोयो सु खकरी  ' सु नो तत! ये सकल कल ह सखी हमरी। 

 करौ घोषण तु रत भड,ै मो स जो चहै 

 इन सब खे लन मह सोच क बत कहू है?

 ने ह वफल कर कु  ू वर हथ स जन न दै ह। 

 ऐसी छोटी बतन करन तह गव ह ?'

भयो ' घोष सथा कु  ू वर ह करत नमं त। 

आय सतव दवस दखव रणकौशल इत। 

 रजकु  ू वर स जो चहै सो हो लगवै,

 जो जीतै सो यशोधर को बर लै जवै।" 

 रंगभ  म लखत जको द  र ल वतर।  सतव दन आय पू चे सकल शयकुमर।  कु  ू वर को लै चली शवक सजी नन रंग।  चल मं गल गीत गवत सु ं दरी ब सं ग। 

 सु ं दरी को बरन को अभलष मन म लय   रजकुल को नगद कुमर पू यो आय। 

और आए न ंद अजु  ा न , दोउ परम कुलीन , सकल यु वकन के शरोमण समरकल वीन। 

अं त कंथक नम चपल तु रंग पै असवर ,

 लख अपरचत भी जो हहनत बरंबर ,

आय पू यो चट तहू सथा रजकुमर  

 चकत चख स जगण दश लखत , करत वचर - 

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भ  पतन स भ इनको खन पन नवस ,

 द:ुख सु ख म करत एक समन रोदन हस। 

अं त मं जु यशोधर क ओर हे र कुमर ,

 वहू स ख ची पट क बगडोर सहत सभंर ,

 क द कंथक पीठ त आयो अवन पै फेर ,

भु ज उठय वशल य वध को सब को टेर - 

' योय नह य र के जो योय सब स नह। 

आय ठो ह बरन क चह धर मन मह। 

 कयो अनु चत आज सहस था हम यह धय  

 स यको करै अब तपिगण सब आय।'

धनु व क पिरी हत चरयो न ंद।  जय रयौ लय षट् गो द  र पै सनं द। 

 वीर अजु  ा न ने धरयो नज लय षट् गो द  र ,

 नगद सगवा बगो आठ गो भरप  र। 

 पै कु  ू वर सथा ने आदशे दयो सु नय - 

'धरो मे रो लय दस गो द  र ू ते जय।'

 गयो एती द  र पै धर लय सो जब जय  

 दशा कन को एक कौी सो परयो दरसय।  ख च शर तब छ ू बेयो लय नं द सभंर   वीर अजु  ा न नसनो लयो अपनो मर। 

 नगद अच  क शर स लय कनो पर। 

 चकत जनसमु दय कनी 'धय धय ' पु कर। 

 पै कुमर यशोधर यह लख लयो मन मर ,

 चकत नयनन पै लयो नज च अं चल डर  

7/14/2019

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 लखै जम नह सो तन लोचनन स और   वफल अपने कु  ू वर को शर होत कू तह ठौर। 

 जय तनको धनु ष लीनो हथ रजकुमर , कसी जम तू त , च ूदी क बधूयो दृ  तर ,

 सकत जको तन आं गु र चर सोई वीर   जसु ब वशल म अत होय बल गंभीर।  बहू स तीर चय खच डोर कु  ू वर वीन   मल धनु क कोट दोउ औ म  ठ कर क पीन। 

 दयो य कह फेक वको द  र कु  ू वर उठय - 

' खे लबे को धनु ष यह तो दयो मोह थमय। 

 े म परखन योय नह यह , लखत सकल समज। 

शय अधपत योय धनु ष न कह कोउ पै आज ?

 एक बोयो ' सहहनु को धनु ष है पथृु एक ,

धरो मं दर मह कब स कोउ न जनत ने क ,

 सकत नह चय जक कोउ पतच तन ,

 जो चै तो सकत वको नह कोउ संधन। 

' व ेग लओ तह ' बोयो कु  ू वर तब हरषय  

 लोग लए जय सो चीन धनु ष उठय।  वनमत , कनकबे लनखचत , अत गु भर  

 चप घु टनन पै लयो बल ऑक तसु कुमर। 

 को पु न ' लै यह बेयो लय तो टुक जय '। 

 पै सयो लै तह कोऊ नेकु नह नवय। 

 कु  ू वर उठ तब सहज झु क को दं ड दयो लचय ,

 डोर क लै फू स दीनी कोट बीच चय ,

7/14/2019

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 शजनी पु न ख च कनी अत कठन टंकर  

भयो कंपत पवन , प  यो घोर रवपु र पर। 

 हहर नबा ल लोग प  छयो 'शद यह कह ओर ?'

 को सब ' यह सहहनु के धनु ष को रव घोर। 

 ह चयो जह अबह भ  प को सु त धीर ,

 जत है अब लय बेधन , लगी है अत भीर '। 

 सध शर सधंन छू यो जबै रजकुमर  

 पवन चीरत चयो , कनो भे द लयह पर। 

थयो नह शर गयो सनसन बत आगे द  र   दृ  क क नह पू ची जहू भरप  र।  नगद पु न खं ग चलवन क ठहरई।  तलद ु् रम दस ऑगु र मोटो दयो गरई। 

अजु  ा न खभंो दश ऑगु र मोटो ब जब   पं ह ऑगु र वटप छ कर दय नंद तब।  रहे तहू ै वटप खे ऐसे जु र सं गह।  चमकयो करवल कु  ू वर कर म अपने गह। 

 दोऊ य बे लग उे एकह हर लह   य के य ते खे जहू के तहू गए रह। 

 हरष पु करयो नं द 'धर बहू क कुमर क '।  कू पी मन म कु  ू वर दे ख यह बत हर क। 

 मत दे व यह चरत रहे अवलोकत व छन।  दिण दश स े र बहयो म ंद समीरन।  हरे भरे ते ऊूचे दोऊ तल मनोहर   तु रत गरे अररय आय नीचे धरती पर। 

7/14/2019

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 फेर तीखे तु रग चर ने बए जोर ,

 तीन फेरो कयो व मैदन के सब ओर।  गयो कंथक द  र ब पछे सबन को नय  

 वे ग ऐसो तसु जौ ल फेन मु  ू ह स आय। 

 गरै धरती प,ै उै सो बीस ल मन। 

 नं द बोयो ' हमू जीत पय अ समन। 

 बन फेरो तु रग कोऊ छोर लयो जय ,

 फेर दे खौ कौन वको सकै वश म लय '

 सीकन स बधं लए एक अ वशल ,

 जो नशीथ समन करो , नयन जसु करल ,

 झर केसर रो जो फरकय नथु ने दोउ   पीठ स नह जसु कबू लगन पयो कोउ। 

 चयौ वपै नं द कैस गयो सो जब छक  

 दोउ पग स भयो ठो दयो वको फ क   रो अजु  ा न ही जयो कछु कल आसन मर ,

 दयो चबु क पीठ पै कस बग को झटकर। 

 रोष औ भय स भक भयो तु रग झु क झु क ,

 बहू क कै फेरो लगयो खे त म व घ  म। 

 कतु खीस नकस सहस फरयो कूधी मर , ए स अजु  ा न दबयो , दयो तक ढर। 

अपल अने क एते मह पू चे आय ,

 ब ूध लीनो वह तु रतै लोह सीक नय। 

 को सब ' य भ  त ढग नह उचत कु  ू वरह जन ,

 दय ऑधी सरस जको धर अनल समन।'

7/14/2019

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 को कतु कुमर ' खोलौ अबै सीक जय ,

 दे  केसर तसु मे रे हथ नेकु थमय '। 

थम कसेर कु  ू वर प ुन कछु मं द शद उचर  

 दयो मथे पै तु रग के दहनो कर धर। 

 कंठ को गह पन फेरयो पीठ ल लै जय।  चकत भे सब लोग लख जब अ सीस नवय  

भयो ठो सहम के च ुपचप तहू बस मन ,

 मनो बं दन करन लयो परम भु पहचन। 

 नह डोयो हयो ज छन कु  ू वर भो असवर   चयो सीधो ए औ बगडोर के अनु सर। 

 उठे लोग पु कर ' बस , अब! इन कुमरन मह  

 है कु  ू वर सथा सब स  े सशंय नह '। 

ववह 

 सु बु  अत है स लख कौत ुक सरे 

 बोल े' तु म , हे कु  ू वर! रहे हम सब को यरे 

 सब स ब तु म कौ रही यह चह हमरी। 

 कौन श लह कयो आज यह अचरज भरी ?

 कहत सबै तु म रहत रंग म भ  ले अपने,

 फलन पै फैलय प ूव दे खत हौ सपन।े  यह अभु त पु षथा कहू त तु म म आयो   तनस ब   जो अपनो सरो समय बतयो  

 रणखे तन के बीच और आखे ट वनन म,

 सकल जगत् के वहरन म कुशल जनन म?'

 पत को नदशे पय सु ं दरी कुमरी उठी ,

 लीने जयमल दोउ हथ म सजय कै। 

7/14/2019

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 कंचनकलत पटसरी ख च आनन प,ै

 घ   ू घट बय चली मं द पग नय कै। 

 डोलत समज बीच पू ची त ठौर जह,ू

 सोहत सथा छट द छहरय कै। 

 ठो है समीप जके अ चुपचप सब  

 चौकी भु लय , करे कंठह नवय कै। 

 कु  ू वर के पस जय आनन उघरयो वन े

 जपै अनु रग के उमं ग क भ छई। 

 कंठ बीच डरी जयमल झु क छुयो पद ,

 पु लकत गत बोली भव सो भरी भई। 

' फेरो मे री ओर दीठ ने कु तो , कुमर यरे! 

 म तो सब भ ूत स तहरी आज नै गई '। 

 मु दत लोग भए दे ख उन दोउन को   जत कर बीच कर धरे ीत स नई   बत दनन म भए बु  सथा कु  ू वर जब  

 वनती कर यह ममा जय तनस ब  झयो सब - 

 कनकखचत सो चत सरी य कुमर धर  

 चली दय म गवा औ अनु रग इतो भर ?

 बोले जगदरधय ' वदत तब प  रो नह  

 रो हम यह , रही धरण कछु मन मह। 

 जम मरण को च रहत है नह कबू थर ,

 वगत वतु औ भव , भ  त जीवन गटत फर। 

आवत अब सुध मह वषा बीते ह लखन  

 रो बघ म हमगर के इक वपन बीच घन। 

7/14/2019

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िु धत ववगन सं ग फर म बन बन धवत। 

 कुश के झपस बीच बै ठ नत घत लगवत  

 गै यन पै तन जे करे दृ ग चक उठव,

 मृ यु नकट जो चरत चल आपह आव। 

 कबू तरकत गगन तरे खोज भख उत इत।  स   ू घत घ  म पंथ मनु ज म ृग गंध लहन हत।  सं गी म ेरे मलै मोह जो बन के भीतर  अथव नचु लन स छए मृदु सरत पु लन पर  

 तनम बघन एक वगा म सब स सु ं दर ,

 तह लहन हत बन के सरे बघ गए लर। 

 चमीकर सो चमा तसु जपै ब धरी ,

- कछु वै सोई जै सी गोप क सो सरी। 

भयो यु  घमसन दं त नख स व वन म, घवन स बह चयो र तब सबके तन म।  खी नीम तर सु ं दर बघन सो सब नरखत   वकट णय हत जसु मयो सो र कं ड अत। 

 बी चह स आई कदत मरे ने र,े

 च स लगी चटन हू फत तन को मे रे। 

 चली सं ग लै मोह गवा स सो पु न गरजत   तन सब बघन बीच कत जनको मरयो हत। 

 य मे रे सं ग े मगवा स वनह सधई। 

 जम मरण को च रहत घ  मत य , भई!'

 य भू त सु ंदरी कु  ू वर को लह कु  ू वर मन आनं द छयो ,

शभु ल उम धर गई जब म ेष को दनकर भयो। 

7/14/2019

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 सब यह के सु बु  के घर सज बज रचे गए ,

 छयो गयो मं डप कलत , तोरण चर ब ंधगे नए। 

अब र पै सब होत म ंगलचर नन भू त ह,

 दरसत भीर अपर औ गज बज क ब पू त ह। 

 लै खील फकत ह अटरन पै ची पु र नगरी ,

 कल कंठ स जनके कै धु न परम कोमल रस भरी। 

 मन मु दत वर कय वरसन पै वरजत आय ह 

 मधु पका , कंगन आद क सब रीत जत पु रय ह। औ ं थबधंन भू वरी के होत प  णा वधन ह 

 ऋष मं  ब ैठे पत ह, सब व पवत दन ह। 

 जब नै गई सब रीत कय को पत तब आय कै  

भर नीर नयनन म को ' हे कु  ू वर! हत चत लयकै। 

 टुक रखयो यपै दय जो अब तहरी है भई '

 दु लहन वद नै अं त सत रजमं दर म गई। 

 रंगभवन वहर   रहत े मह छयो नवल दं पत मह   े म ही पै पै भरोसो कयो भ  पत नह।  दई आ रचन क इक े म करगर  

अत मनोहर द औ रमणीय चर अपर। 

 कु  ू वर को वमवन सो बयो अत अभरम   नह वसधु बीच और वच व ैसो धम। 

 हया सीम बीच सोहत हरो भरो पहर ,

 बहत जके तरे नमा ल रोहणी क धर। 

 उतर कलकल सहत सर हमशै लतट स आय  

7/14/2019

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 जत है नज भ ट गं गतरंग दश लै धय। 

 लसत दिण ओर ह वट सघन , सल रसल  

 झपस जनपै रो कुसुमत मलती को जल। 

धम को व रहत यरे कए ते बलगय   जगत् स सब जहू एती हय हय सु नय। 

 कबू आवत नगर कलकल करत सीम पर ,

 द  र स पै लगत य स य मरग ुं जर। 

 खो उर ओर हमगर को अमल कर  

 नील नभ के बीच नखरो धवल मलकर। 

 वदत वसधु बीच जो अभ ुत अगय अपर ,

 जसु वपु ल अधयक और उठे वकट कगर ,

शृ ं ग तु ं ग तु षर मं डत , िव वशद वशल ,

 लहलहे अत ढर औ ब दरी , खोह करल  

 जत मनव यन लै ऊूचे चय चय  अमर धम तकय रखत स ुरन बीच रमय! 

 नझा रन स खचत औ घन आवरण स छय  े त हम तर रही कननरज कू लहरय। 

 परत नीचे ची अजु  ा न , दे वदर अपर। 

 गरज चीतन क परै सु न , करन को चर। 

 कू चटनन पै चे वनमे ष ह ममयत।  मर कै कलकर ऊपर ग ह मू रत। 

और नीचे हरो पटपर द  र ल दरसय ,

 दे ववे दन तर बछयो मनौ आसन लय। 

 सोध इनके समने समथल पही एक   थपकन मल द मं डप खे कए अने क। 

7/14/2019

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 उठत ऊूचे धौरहर नह ने कु लगी बे र। और शत अलद स ुं दर खच गए चौफेर। 

 खचत चकरी धरन पै ह चरत ब चीन।  कतू रधकृण वहरत गोपकन म लीन।  ौपदी को चीर ख चत कू दशुसन रय।  कू रहे हनु मन सय स पय सू दशे सु नय। 

 मु य तोरणर ऊपर वटुूडही सज   रहै वैभव बु दयक ीगणेश वरज।  जय ं गण और उपवन बीच पथ के पर। 

 वमल बदर 1 को मलै इक और भीतर र। 

1. एक कर क सं गमरमर जस पर बदल क सी धरयू पी होती ह। 

 लसत ममा र चौखटे पर नील तर भर।  लगे च ंदन के सु चत अत वच कवर। 

 मल आगे बृ हत् मं डप , कु ं ज शीतल धम।  बन सीी , गली , जली कटी अत अभरम। 

 खे अगणत खभं , चत छत रही छव छय। 

 फटक कु ं डन स फुहरे छुटत झरी लगय। 

 लसत इंदीवर तथ अरवदजल सर ,

 हरत , र , सु वणा मय जहू मीन करत वहर। 

 कू अने क वशलदृ ग मृ ग बस नकु ंजन मह। 

 टुूगत पटल के कुसु मदल , करत कछु भय नह। 

 कतू ऊूचे त ऊपर फरफरत वह ंग ,

 इंधनु सम पं ख जनके द रंग वरंग। 

 नील ध  म कपोत छन तर सु नहरे जय। 

7/14/2019

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अत सु रित सुघर अपने नी लए बनय। शु च खडं न पै फर कू मोर प   ू छ पसर।  बै ठ उवल छीर सम बक रहे तह नहर। 

 एक फल स द  सरे पै जय झ  लत कर।  फर मु नयू च ुहचु हती खले फलन तीर। शं त औ सु ख स बस सब जीव मल व धम।  ले त जली बीच नभा य छपकली बस घम। 

 हथ स लै जत भोजन गलहरी झटकर।  केतक तर बसत करो नग फ टी मर। 

 कतू बस कत  र म ृग ह करत ववध वहर।  वयसन क बोल पै कप करत कहू कलकर। 

 रहत सु ं दर सहचरन स भरो सो रसधम।  लसत सु खम बीच आनन क छट अभरम। 

 बोल मधु रै बै न से व म रह सब लीन ,

 सज सु ख के सज छनछन सुच सहत नवीन। 

 कु  ू वर को सु ख लख सखी त,े मु दत मोद नहर। 

 गवा बस आदशे पलन को सक जय धर।  ववध सु ख के बीज जीवन य बहत लखय   पु पहस वलस के बच रमत य सर जय। 

 मोहनी सी रहत मयभवन म व छय , रहत भ  लो मन , परत दन रत नह जय। 

 लसत गु गृ ह इन भवनन के भीतर जई ,

 मनमोहन हत शप जहू सब श लगई।  ं गण वतृ त परत थम ममा र को सु ं दर  

 ऊपर नीलो गगन , मय म लसत वमल सर। 

7/14/2019

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 ममा र के सोपन सभुग चर दश सोहत  

 पीकरी रंग रंग क लख मन मोहत। 

 जहू ीम म जतह ऐसो तप जत हर  

 परसे नमा ल य तु षर पै पू व रहे पर। 

 नय गविन स नै कै मृदु रवकर आव,

 ढर वणा क धर चर आभ फैलव।  जब व चर वलसभवन के भीतर आव ै

 खर दवस े म छक संय नै जवै 

 रंगभवन सो परत र के भीतर सु ं दर , सकल जगत् के अचरज को आगर मनोहर। 

अगरघटत दीपक स ुं गधमय बरत सु हवै,

 जसु अमल मृ दु योत झरोखन सो क आवै। 

 तनी चू दनी के ब  टे चमक मनभवन   परे कनक पय क बीच ग ुलगु ले बछवन। 

 कनक कलत पट सु ं दर रन पै लटकए ,

 सु मु खन भीतर ले न हे तु जो जत उठए। 

 उवलत , मृ दु त भत संय क सब छन  

 छई तहू लख परत , जन नह जत रत दन। 

 लगे रहत पकवन ववध , नत कत बीन धु न।  कंद म  ल फल धरे रहत डलयन म चु न चु न।  हम स शीतल कए मधु र रस धरे सजई।  कठन यु  स बनी रसीली सजी मठई। 

 नत रहत से व म लगी तहू सहचरी ब कमनी ,

 सु कुमर करी भहवरी , कम क सहगमनी। 

 जब नद म झप नयन लगत कु  ू वर के अलसय कै,

7/14/2019

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 नहरय बीजन करत कोमल कर सरोज हलय कै। 

 जग जत जब प ुन तसु मनह रझय कै बलमवती। 

 मु सु कय , रस के गीत मधु रे गय नच दखवती।  झनकय घु  ूघर बै ठ ब उठय भव बतवत।  वीण मृ दं ग उठय कोउ च ुपचप सज मलवत। 

 नत अगर , ध  प कप  र स उठ ध  म छवत घनो। 

 बगरय केशकलप बसत कमनी तहू आपनो  

 मृ दु अं ग लय उशीर च ंदन उरीय सजय कै,

 रसबस कुमर यशोधर के सं ग ब ैठत आय कै। 

 जर , मरण , द:ुख , रोग , लशे को व थल मह  

 कोऊ कबू नम ले न पवत है नह। 

 यद कोऊ व रस समज म होय ख मन ,

 परै नृ य म मं द चरण व धीमी चतवन  

 तु रतह सो व वगाधम स जय नकरी ,

 जस द:ुख लख तसु न होवै कु  ू वर दु खरी।  नयत नर ब दं ड दे न हत तनको हे री  

 जो कोउ चचा करै कतू दु खमय जग केरी ,

 जहू रोग , भय , शोक और पी ह छई ,

 ब वलप सु न परत चत दहकत धधुआुई।  गनो जत अपरधर् नकन को यह भरी।  वे णीबधंन छट पर ैजो कशे बगरी। 

 नत उठ तोरे जत कुसु म कुहलने सरे,

औ सब स  खे पत जत कर चु न चु न यरे।  य कर सब बु रे दृय नत जत दु रए। 

 बर बर य कहत भ  प मन आस बधूए - 

7/14/2019

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' तन बतन स द  र कु  ू वर यद यु व बतव 

 उदसीनत मनुस के मन म जो लव,

 कमा रेख क खोटी छय अवसह टरह,

 रजी धर सकल भ  म सो शसन करह,

 तह दे खह सकल भ  पतन स म भरी   छवत अपनी वमल कत बसधु म सरी। 

 े म पह जह,ू भोग के बंधन भरी ,

 तन सु ख करगरन के चू ओर अगरी  

 उठवई नृ प ऊूची चकरी चरदवरी।  जम फटक लयो एक पीतर को भरी। 

 मनु ज पचसक लग सक तो तह फरई ,

आधो योजन शद खु लन को परै सु नई  

 तके भीतर और लगे फटक ै दृ तर।  लू घै तीन र होय तब कोऊ बहर।  बे े सीकल लगे फटकन मूह भई।  एक एक पै गई की चौक ब ैठई। 

 को िरकन स ' नृ प हम आदशे दे त अब ,

 नै है जो तकल ण खोवौगे तु म सब। 

 दे खौ कोऊ फटक बहर होन न पव ै

 चहै होवै कु  ू वर , सोउ नह कू क जवै'। 

ततृीय सगा 

 बु चरत / तृ तीय सगा / भग -1 / एडवन अना ड / शुल  

7/14/2019

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 बसत बु  भगवन् सरस सु खमय थल मह  

 जर , मरण , द:ुख रोग लशे कछु जनत नह। 

 कबू कबू आभस म इनको सो पवत ,

 जै से सु ख क नद कोउ जो सोवत आवत  

 कबू कबू सो व मह छनत है सगर ,

 लहत कल जग , भर लद कछु अपने मन पर। 

 कबू ऐसो होत रहत सोयो कुमरवर  

 सर धर यरी यशोधर के वमल िव पर ,

 मृ दु कर मं द डुलय करत सो मु ख पै बीजन  

 उठत चक चलय ' जगत् मम! हे कुल जन! 

 जनत ह , ह सु नत सबै पू यौ म, भई ?'

 मु ख पै तके द योत तब परत लखई ,

 कण क मृ दु छय पु न दरसत तहू छई। 

अत सशं कदृ ग यशोधर प  छै अकुलई  

 कौन क है णनथ! कछु जत न जनो '। 

 परै कु  ू वर उठ , लखै य को मु ख कुहलनो। 

ऑसु सु खवन हे तु तसु पु न लगै बहू सन।  वीण को सु र छेन को दे वै अनशुसन। 

धरी रही खरक पै वीण एक उतनी ,

 परस भं जन तह करत मनमनी। 

 तरन को झननय नकसत अत अटपट धु न ,

 रहे पस जो तनको केवल परी सोइ सु न। 

 कतु कु  ू वर सथा सु यो दे वन को गवत। 

 तनके ये सब गीत कन म परे यथवत - 

7/14/2019

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 हम ह वह पवन क बनी जो इत उत नत धवै,

 ह ह करत वरम ह ेतु पै कतू वरम न पवै 

 जै सो पवन गु नौ वै सोई जीवन णन केरो ,

 हहकर उपसन को है झंझवत घने रो। 

आए हौ कह हे तु कहू ते परत न त ुह जनई ,

 गटत है यह जीवन कत त और जत कहू धई।  जै से तु म तै से हम सब जीव श  य स आव  इन परवता नमय लशेन म सु ख हम कछ न पव। 

औ परवता न रहत भोग म तु मू को सु ख नह।  यद होती थर ीत कछ सु ख कहते हम त मह।  पै जीवनगत और पवनगत एकह सी हम पव।  ह सब वतु िणक वर सम जो तरन स छ आव। 

 हे मयसु त! छनत घ  म हम वसधु यह सरी ,

 यत हम इन तरन पै ह रहे उसस नकरी।  दशे दशे म केती बध वपत वलोकत आव। 

 केते कर मल मल पछतव, नयनन नीर बहव। 

 पै उपहसजनक ही केवल लगै वलप हमरो।  जीवन को ते अत य मन जो असर है सरो। 

 यह द:ुख हरबो मनौ टकैबो घन तजा न दखरई ,

अथव बहत अपर धर को गहबो कर फैलई। 

 पै तु म ण हे तु हौ आए , करज तव नयरनो। 

 वकल जगत् है जोहत तु मको वध तप म सनो। भरमत ह भवच बीच ज अंध जीव ये सरे। 

 उठौ , उठौ , मयसु त! बनहै नह बन उरे। 

7/14/2019

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 हम ह वह पवन क बनी जो कू थर नह। 

 घ  मौ तु म,ू कु  ू वर! खोजन हत नज वरम जग मह। 

 छू ौ े मजल े मन हत , द:ुख मन म अब लऔ। 

 वभैव तजौ , वषद वलोकौ औ नतर बतओ। 

भर उसस इन तरन पै हम तव समीप द:ुख रोव। अब ल त ुम नह जनत जग म केतो द:ुख सब ढोव। 

 लख तु मको उपहस करत हम जत , गु नौ चत लई  

धोखे क यह छय है तु म जम रहे भु लई। 

 त पछे भइ सूझ , कु  ू वर ब ैठयो आसन पर  

 रस समज के बीच धरे य गोप को कर।  गोध  ली क बे ल कटन के हत त छन  

 लगी दसी एक कहनी कहन पु रतन ,

 जम चचा े म और उते तु रंग क ,

 तथ द  र दशेन क बत रंग रंग क ,

 जहू बसत ह पीत वणा के लोग लु गई ,

 रजनीमु ख लख सधु मह रव रहत समई। 

 कहत कु  ू वर ' हे चो! त सब कथ सु नई  

 फेर पवन के गीत आज मे रे मन लई। 

 दे  , य!े तु म यको मु हर उतरी। अहह! परी है एती वतृ त वसधु भरी! 

 नै ह ऐसे दशे जहू रव ब  त है नत।  नै ह कोटन जीव और जै से हम सब इत। 

 सु खी न य सं सर बीच नै ह बते र,े

 कछु सहय कर सक तह यद पव हे रे। 

7/14/2019

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 कबू कबू ह नरखत ही रह जत भकर   क प  रब स बत जबै सो वणा मगा पर।  सोच म वे कसैे ह उदयचल नी।  थम कर जो तके करनन क अगवनी। 

अं क बीच बस कबू कबू, हे य!े तहरे 

अत होत रव ओर रह नरखत मन मरे 

अण तीची ओर जन हत छटपटत मन ,

 सोच कैसे अतचल के बसनहर जन  

 नै ह जग म पर ेन जने कतेे नी   हम चहए े म करन जनस हत ठनी।  परत थ मोह जन आज ऐसी कछु भरी   सकत न तव मृ दु अधर जह च ुं बन स टरी। 

 चो! त  ने ब दशेन क बत स ुनई ,

 उनहर वे अ कहू यह दे ह बतई। 

 दे ू भवन यह , पवौ जो तु रंग सो बू को   घ  मत तपै फरौ लख वतर धर को। 

 इन गन को रज कू मोसो है भरी   उत फरत जो सद गगन म पं ख पसरी   मनमन नत जहू चह ते घ  म घम।  यद मे रे पं ख कहू व ैसे ही जम 

 उ उ छन हमगर के वे शखर उतर ,

 बस जहू रवकरन ललई लसत तु हन पर। 

 बै ठो बै ठो तहू लखौ म वसधु सरी ,

अपने चर ओर द  र लौ दीठ पसरी। 

अबल य नह कयो देश दे खन हत सरे?

 फटक बहर कहू कहू है परत हमरे?

7/14/2019

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 उर दीनो एक ' थम नगरी तव भरी ,

 ऊूचे मं दर , बग और आमन क बरी। 

आगे तनक ेपर खे त सु ं दर औ समथल ,

 पु न नर,े मै दन तथ कोसन के जं गल। 

 तके आगे बबसर को ' रजकु  ू वरवर! 

 है अपर यह धर बसत जम कोटन नर।'

 को कु  ू वर ' है ठीक! कहौ छंदकह ब ुलई ,

 लवै रथ सो जोत कल , दे खौ पु र जई।'

उोधन 

 जय द  त तब बत कही नृ प स यह सरी - 

' महरज! है तव कुमर क इछ भरी ,

 बहर के णन को दे ख,ै मन बहलव।ै 

 कहत कल मधयन समय रथ जोतो जव।ै'

 बोयो भ  प बचरत , ' ह!ू अब तो है अवसर ,

 कतु फरै यह डी सरे आज नगर भर ,

 हट बट सब सज, रहै न कछ अचकर  

अधं , पं ग,ु कृश , जरजीणा जन क न बहर।'

 जत मगा सब झर और छरको जल छन छन। 

धर कुल बध दध द  वा, रोचन नज रन। 

 घर घर बं दनवर बधूो , लह रंग सजील े

भीतन पर के च लगत चटकले गील।े 

 पे न पै फहरत केतु नन रूगवरे। 

भयो चर शृ ं गर मं दरन म है सरे।  स  या आद दे वन क तम गई सू वरी। 

7/14/2019

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अमरवत सी होय रही नगरी सो सरी। 

 घोषक डी पीटी को चरौ दश टे री  

' सु नौ सकल पु रवसी! यह आ नृ प केरी - आज अमं गल दृय न कोऊ समु ख आव,

अधं , पं ग,ु कृश , जरजीणा न नकसन पव। 

 दह हे तु शव कोउ न कै नश ल बहर। 

 है नदशे यह महरज क , सु न सकल नर।'

 गृ ह सू वरे सकल , शोभ नगर बीच अपर  

 बै ठ चत च रथ पै चयो रजकुमर।  चपल धवल तु रंग क जोी नधी दरसय   रो मं डप झलक रथ को खर रवकर पय। 

 बनै दे खत ही सकल पु रजनन को उलस ,

 कर अभवदन कु  ू वर को आय ते जब पस। भयो मु दत कु  ू वर लख सो नरसम  ह अपर।  हू सत य सब लोग जीवन है मनौ सु खसर। 

 कु  ू वर बोयो ' मोह चहत लोग सबै लखत  

 होत जीव सशुील ये जो नृ प कहे नह जत।  मगन ह भगनी हमरी लगी उम मह। 

 कयो इनको कौन हत हम ने कु जनत नह। 

 लखौ , बलक रो यह मो पै सु मन बगरय ,

 ले  रथ पै यह मे रे सं ग य न बठय ?

अह! कैसो सु खद है सब भूत करबो रज ,

 पय ऐसो दशे सु ं दर और लोक समज। 

7/14/2019

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और है आनं द कैसी सहज सी इक बत ,

 म जो आनं द म बस मोह लख ये त।  बत सी ह वतु ऐसी हमै चहए नह  

 पय तनको होयू जो ये तु  नज मन मह। 

 रथ बओ , लख,ै छंदक! आज हम दै यन  

और सु खमय जगत् यह , नह रो जको न। 

 फटकन स होत आगे चयो रथ गभंीर।  सोहती दोउ ओर पथ के लगी भरी भीर। 

 करत अपने कु  ू वर को मल सकल जयजयकर।  ह लखत समु ख सब नृ पवचन अनु सर। 

 कतु वही समय नकयो झोपी स आय।  एक जजा र व ृ पथ पै धरत डगमग पय। 

 फटे मै ले चीथरे तन पै लपे टे घोर ,

 जत क क न भ  ल दृ  जक ओर। 

 वच झ ुर भरी स  खी खल सी दरसत ,

 झ  ल पं जर पै रही पलहीन क भू त।  न ई वक पीठ है दब ब दनन के भर। धू सी ऑखन स बहै कच तथ जलधर। 

 हलत रह रह द जम एक नह द ूत। 

ध  म और उछह एतो दे ख दे ख सकत।  लए लठी एक नज कंकल कर म छीन   टेकबे हत अं ग जजा र और शवहीन  

 द  सरो कर धरे पसु रन पै दय क ेपस ,

 कै भरी क स रह रह जहू स सू स। 

िीण वर स कहत ह ै' दत! सद जय होय। 

 दे  कछु, मर जयह अब और ह दन दोय।'

7/14/2019

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 खो हथ पसर , कफ स गयो कंठ ूधय। 

 कठन पी स कहर पु न को ' कछु मल जय। 

 कतु तह ढकेल पथ स को लोग रसय  

'भग ू स , नह दे खत कु  ू वर ह रहे आय ?'

 कहत कु  ू वर पु कर ' ह ह! रहन य नह द ेत ?

 फेर ब  झत सरथी स करत कर सं केत - 

' कह है यह ? दे खबे म मनु ज सो दरसत ,

 वकृत , दीन , मलीन , छीन करल औ नतगत। 

 कबू जनमत कह ऐसे मनु ज सं सर ?

अथा यको कह जो यह कहत ' ह दन चर ?'

 नह भोजन मलत यको ह ह लखय। 

 वपद य पै कौन सी है परी ऐसी आय ?'

 दयो उर सरथी तब ' सु नौ , रजकुमर ,

 वृ  नर यह और नह कछु, जह जीवन भर ,

 रही चलस वषा पहले जसु स धी पीठ ,

 रहे अं ग सु डौल सब औ रही नमा ल दीठ। 

 लयो जीवन को सबै रस च  स तकर कल ,

 हरयो बल सब , फेर मत गत करयो यह बहल। 

भयो जीवनदीप यको नपट त ैलवहीन ,

 रह गयो नह सर कछु, अब भई योत मलीन। 

 रही जो लौ श ेष , तको नह ठकनो ठौर ,

 झलमलत बु झयबे हत चर दन ल और। 

 जर ऐसी वतु ह,ै प,ै हे कु  ू वर मतमन! 

7/14/2019

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 दे त य य बत पै तु म था अपनो यन ?'

 कु  ू वर प  छयो ' कह , यही गत सबै क होय ,

 मलत अथव कू ऐसो एक सौ म कोय ?'

 कहयो छंदक ' सबै यह दश म दरसयू,

 जयत एते दनन ल जो जगत् म रह जय।ू'

 फेर ब  झत कु  ू वर ' जो एते दनन पय त  

 रह जीवत हमू नै ह कह ऐसे अं त ?

 जयत असी वषा ल जो चली गोप जय ,

 जर व को कह य घ ेर लै है आय ?'

और गं ग गौतमी जो सखी परम वीन ,

 होयह व े कह य भूत जजा र छीन ?'

 दयो उर सरथी ' ह,ू अवस , हे नररय!'

 को रजकुमर ' बस , अब दे  रथह घु मय। 

 चलौ घर क ओर लै अब मोह ब ेग सु जन! 

आजु दे य रो जको नह कछु अनु मन।'

आयो फर सथा कु  ू वर नज भवन तह छन  

 सोचत यह सब उदसीन , अयं त खमन। 

 गए ववध पकवन और फल समु ख लए ,

 छयो नह , नह लयो , रो नज सीस नवए ,

 नपु णर् नक बलमवन क रही जतन कर  

 कतु रो सो मौन , कछ सोचत उसस भर। 

 यशोधर दु खभरी परी चरनन पै आई ,

7/14/2019

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 रोवत प  छयो ' नथ रहै य सु ख नह पई ?'

 को कु  ू वर ' सु ख लह सोइ खटकत मनमह। 

 नै ह यको अं त अवस , कछु सशंय नह। 

 नै ह ब  ढ,े यशोधरे! हम तु म दन पई ,

 नमत गत , रसप रहत , सब श गू वई ,

भु जपसन बू ध रह, अधर स अधर मलई  

 घु सहै कल करल तऊ नज घत लगई। 

 मम उमं ग औ तव यौवनी हरहै ऐस े

असत नश हर रही अण  ुत नग क ज ैस े

 यहै जन मम दय बीच शं क है छई। 

 सोच , कैसो है करल यह कल कसई! 

 कैसे यस यौवनरस हम सक बचई ?'

 नह कु  ू वर को च ैन , ब ैठ सब रैन बतई। 

 दे यो शु ोधन महपल   व रैनव नै अत वहल। 

 लख परयो इं को धवज वशल ,

अत शु , खचत रवकरणजल। 

 उठ तु रत भं जन बल फेर   कयो टक टक तको उधोर।  तके पछे तहू रहे छय   चू दश स छयप ुष आय  

 लै टक कतेु के करत रोर।  गे नगरर के प  वा ओर। 

अब व द  सरो है दखत ,

7/14/2019

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 दिण दश स दस रद जत। 

 पगभर दे त भ  तल कूपय ,

 नज रजत शु ं ड इत उत घु मय।  सबके आगे जो गज अन  प।  पै सु त अपनो लयो भ  प। 

अब व तीसरे म लखत  

 रथ खर एक अत जगमगत ,

 ह ख चत जको तु रग चर  

अत बल वे ग जनको अपर  

 नथु नन स नकसत ध  मखं ड ,

 मु ख अनल फेन उगलत चं ड।  चौथे सपने म च एक   लख परम फरत नह थमत ने क। 

 दमकत कंचन क नभ जत ,

आरन पै मणु त जगमगत।  ह लखे ने म क प  र कोर   ब म ं अलौकक चू ओर। 

 पु न लखत व पं चम नरेश ,

 नग और नगर बच जो दशे  

 तहू वदं ड लै कै कुमर   कर रो दु ं दभुी पै हर। 

 घननद सरस धु न कत घोर ,

 घहरती गगन म चू ओर। अब छठ व य लखत भप  

 पु र बीच धौरहर है अन  प ,

7/14/2019

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 नभ के ऊपर जो उठत जत ,

 घनमं डत मं डपसर लखत   बस जपै दोऊ कर उठय  

 रो कु  ू वर र इत उत लु टय। 

 मण मनक बरसत आय आय ,

 सगरो जग ल  टत धय धय।  पै व सतव म सु नत  अतर् आ नद दश दश समत।  छ: पु ष ढू प मु ख लख भत। 

 कर कर वलप ह भगे जत। 

भ  पत के मन इन वन क शं क छई ,

 जनको फल नह वको कोऊ सयो बतई। 

 बोले नृ प नै ख ' वपत मे रे घर आव,ै

 पै कोऊ नह ममा व को मोह बतवै 

 नै उदस सब लोग चले सोचत मन म तब   कैसे होय वचर भ  प के वन को अब।  परे र पै जत वृ  ऋष एक दखई  

धरे शु च म ृगचमा, सीस सत जट बई  

 को सबन को टेर 'भ  प के ढग हम आए ,

 व को फल चलौ दे त , हम अबै बतए।'

 गयो भ  प के पस , च , दै सु यौ व सब ,

 को वनय के सहत ' सु नौ , हे महरज! अब। 

धय धय यह धम जहू स नय कहै भु वनपनी भ भकर स जो बह।ै 

 सत व जो तु ह, नृ पतवर! परे लखई ,

 ह वे मं गल सत जगत् म जै ह छई। 

7/14/2019

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 इंधवज लख परी तु ह जो पहले भरी  

 टक टक नै गरत , लु टत पु न छन म सरी ,

 सु रन जनयो व लय सो केतु पतन को   नए धमा को उदय , अं त चीन मतन को। 

 एक दश नह रहत होयू चहै सु र व नर ,

 वही भू त वहत कप य बीतत वसर। भ  म कूपवनहर परे लख जो दस वरण   गु नौ तह दस शील जह अब करकै धरण  

 रजपट , घर बर छू है कु  ू वर तहरो  

 सय मगा को खोल कूपै है यह जग सरो।  रथ के घोे चर रहे वल जो उगलत   ऋपद ते चर कु  ू वर कर जह हतगत  

 सरे सशंय अधंकर को कट बहै है,

अतशय खर कश न को तह स ुझै ह।ै  वणा नभ यु त च लयो जो अत उजयरो  धमा च सो जह फरैहै कु  ू वर तहरो। 

औ दु ं दभुी वशल कु  ू वर जो रो बजवत ,

 जको घोर ननद गयो लोकन म यवत् 

 सो गजा न गभंीर वमल उपदशेन केरो , जह सु नै है कु  ू वर करत दशेन म फेरो। 

और धौरहर उठत परयो लख जो नभ ऊपर  

 बु श सो , जो चल ज ैहै बत नरंतर। 

 गरत र अनमोल शखर स जो दे खे पु न   सु र - नर वू छत तह धमा उपदशे ले  गु न। 

7/14/2019

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 रोवत जो म ुख ढू प अं त छह पु ष लखन े

 रहे प  वा आचया, जत जो अब लौ मने। 

 द न और अटल वद स कु  ू वर तहरो  

 तह सु झै है हे र - हे र तनको म सरो। 

 महरज! आनं द करौ , तव सु त क सं पत  

 सकल भु वन के रजपट स है बकै अत।  तन पै वस कषह कु  ू वर जो धरण करहै  वणा खचत वन स सो अनमोल ठहरह।ै 

 यहै व को सर , नृ पत! अब बद मू गह,

 बीते वसर सत बत ये घटन लगह,

 य कह ऋष भ परस दं डवत करत सधए ,

धन दै द  तन हथ तह नृ प दे न पठए। 

 कतु आय तन को ' सोम के मं दर मह  

 जत लयो हम तह , गए जब तहू कोउ नह   केवल कौशक एक मयो तहू पं ख हलवत।'

 कबू दे वगण भ  तल पै यही वध आवत। 

 चकत भयो अत समचर जब नृ प यह पयो ,

अत उदस नै मं न को आदशे सु नयो - 

' नए भोग रच और कु  ू वर को रखौ लभुई। 

 द  नी चौक जय फटकन पै बै ठई।'

 होनी कैसे टर?ै कु  ू वर के मन यह आई ,

 फटक बहर और लख जग क गत जई ,

 दे ख जीवन को वह जो अत सु हत ह,ै

 कल मथल जय , हय! पै सो बलत ह।ै 

7/14/2019

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 बनती कह जय पत स य कुमर तब - 

' चह दे खबो पु र ज ैसो है व ैसोई अब। 

 व दन तो अनशुसन फेरयो पु र म सरे 

 रह न द:ुख के दृय मगा म कोउ हमरे,

 मम सत हे तु बन बरबस स सब ,

 हट बट म होत रह ब मं गल उसव।  पै म लीनो जन नय को नह सो जीवन   दे यो जो म अपने चर ओर मु दत मन  

 यद मे रो सं बधं रय स तुहरे नते 

 जनन चहए गली गली क मोक बत,

 तन दीनन क दश च  र जो ह म मह ,

 रहन सहन तन लोगन क जो नरपत नह। 

आ मोको मलै जू म छ वश गह।  मु ख तनको य बर नरख म फरौ मोद लह!  यद नै ह नह सु खी बहै अनभुव जनो   मलै मोह आदशे फरौ पु र म मनमनो। 

 सु न इन बतन को महीप बोले मं न त - 

' सभंव है य बर कु  ू वर क   फरै कछ मत। 

 कर बधं दे  नगर दे खै सो जई। 

 कैसो वको च सु नओ मोको आई।'

 द  सरे दन के छंदक सथ रजकुमर ,

 चले बहर फटकन के नृ प वचन अनु सर। 

 बयो बणक कुमर , छंदक बयो तसु मु नीम। 

 पू व यदे चले दोऊ लखत भीर असीम। 

 जत पु रजन म मल े नह तह चीहत कोउ ,

7/14/2019

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 बत सु ख और द:ुख क वे जत दे खत दोउ।  गली चत लख परै औ उठत कलरव घोर।  बणक बै ठे धर मसले अ चर ओर। 

 हथ म लै वतु गहक मोल करत लखत - 

' दम एतो नह एतो ले  , मनौ बत।'

' हटौ छू ौ रह ' ऐसी टेर कतू सु नत ,

 मरमरती बोझ स है बै लगी जत। 

 कप स भर कलश जत गृहवध सर धर ,

 एक कर स गोद म नज चपल शश ुह सभूर।  है मठई क दु कनन पै भू वर क भीर।  तं तु वय पसर तनो बनत ह कहू चीर। 

 कतू धु नयू धु नत ई तूत को झननय। 

 चलत च कत,ू ककर खे प   ू छ हलय। 

 कतू शपी ह बनवत कवच और करवल। 

 बै ठ कतू लु हर पीटत फवो कर लल। 

 बै ठ गु  के समने कू अदा चं कर   शय सीखत वे द ह कर मं को उर। 

 कुसु म , आल , मजीठ स रूग , दोऊ कर स गर  

ध  प म रूगहर गीले वसन रहे पसर। 

 जत सै नक ढल बधूो , खं ग को खकय। 

 ऊूटहरो ऊूट पै कू बै ठ झमत जय। 

 व ते जवी मल औ धीर िय वीर ,

 कठन म म ह लगे कू श यमशरीर। 

 कू सपे र ब ैठ पथ के तीर करत पु कर ,

7/14/2019

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भू त भू त भु जं ग के धर अं ग ज ंगम हर। े त कौन स टूको मवर बजय बजय।  रो करे कल को फुफकर सहत नचय। 

 पलक लै वध लवन भीर सज कै जत ,

 सं ग सघे औ नगरे, चपल कोतल पू त। 

 कू दे वल पै बध कोउ फल मल चय।  फर पय परदशे स यह रही जय मनय। 

 पीट पीतर कू ठठेरे रहे ' ठन ठन ठन  

 ढर लोटे औ कटोरे, धरत दीवट आन ,

 बे आगे जत दोऊ फटकन के पर  धर तरंगनी - तीर - पथ जहू नगर को कर। 

 मरग के इक ओर परयो सु न यह आरत वर  

' हय! उठओ , मय पू चह म कसैे घर ?'

 एक अभगो जीव कु  ू वर को परयो लखई ,

 परयो ध  र म घोर ध स अत द:ुख पई। 

 सरो तन छत वछत , वे द छयो ललट पर ,

 रो ठ च दु सह थ सो , मीजत है कर  

 की परत ह ऑख , व ेदन कठन सहत है कर  

 हू फ हू फ कर टेक भ  म पै उठन चहत ह।ै 

आधो उठ इक बर पय गर कू पत थर थर ,

 बे बस उठयो पुकर 'धरौ कोऊ म ेरो कर।'

 दौर परयो सथा, ब ूह गह दयो सहरो ,

 नरख ने ह स तसु सीस नज उ पै धरो। 

 प  छन लयो ' बधं!ु दश है कह तहरी ?

7/14/2019

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 सकत न य उठ ? कहौ , कौन सो द:ुख है भरी। 

 छंदक! य यह परो करहत बलबलत ह?ै

 हू फ हू फ कछु कह उसस य ले त जत है?'

 को सरथी ' सु नौ , कु  ू वर! यह धत नर ,

 य के तन के तव बलग नै रहे परपर।  सोइ र जो रो अं ग म बल बगरवत  भीतर भीतर मथत सोइ अब तनह तपवत। 

भर उछह सो कबू दय जो उमगत रह रह  धरकत फ ट ढोल सरस सोई अब दु:ख सह।  खसी धनु ष क डोर सरस नस नस भई ढीली। 

 ब  तो तन को गयो , नई ीव गरबीली  

 जीवन को सदया और सु ख गयो बलई।  है यह रोगी जह पीर अत रही सतई। 

 दे खौ , कैसो रह रह कै ठत सरो तन! 

 की परत ह ऑख , पीर स टीसत दू तन। 

 चहत मरबो कतु मृ यु तौ ल नह ऐहै  जौ ल तन म भोग ध अपनो न प ुरैह।ै 

 जो जो के बंधन सरे जब उखरहै,

 नन स सब णश मश: नकरह,ै

 दै है यको छू  , जय परहै कू अनतह  

 द  र रहौ , हे कु  ू वर! ध कू लगै न आपह।'

 लए रो पै तह , कु  ू वर बोयो यह बनी - 

'और नै है परे अने कन ऐसे नी। 

 बोलौ सू ची , कह यह गत सब ही प ैह। 

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 है यह जै सो आज कबू हमू नै जै ह?

 को सरथी ' ध कबू ह अवस सतवत ,

 क न क प मह है सब पै आवत। 

 मर्  छ औ उमद , बत , पत , कफ , ज  ी , जर ,

 नन वध ण , अतीसर औ यकृत , जलधंर  

भोगत ह सब , बचत कतू है कोऊ नह। 

 र म ंस के जीव जहू ल ह जग मह। 

 ब  झत फेर कुमर ' मह यह दे  बतई ,

 परत न आवत जन कह ये द:ुखु सब , भई!'

 छंदक बोयो ' दबे पू व ये ऐसे आवत  

 य वषधर चु पचप आय नज दू त धू सवत ,

अथव झन बीच बघ य ल ुको रहत है,

 झटपत है पु न घत पय जब जहू चहत ह,ै

अथव जै से व परत नभ स घहरई ,

 दलत क को और क को जत बचई।'

 को कु  ू वर ' तब तो सब को सब घरी रहत भय ?'

 सरथ सीस हलय को ' यम क सशंय ?'

 को कु  ू वर ' तब तौ कोऊ यह सकत नह कह  

 सोवत सु ख स आज जगह कल ऐसह '

' कोउ कहत य नह , कु  ू वर! य जग के मह ,

 छन म नै ह कह कोउ यह जनत नह।" 

 को कु  ू वर ' है अं त कह सब द:ुखन केरो  

 यहै जर , तन जजा र औ मन शथल घने रो ?'

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 उर दयो सु जन सरथी ' ह,ू कृपलु वर! 

 इते दनन ल जीवत जो रह जयू नर नर।'

' पै न सकै यद भोग तप कोउ एतो द:ुसह ,

अथव भोगत भोगत होवै है जै सो यह ,

 रहै सू स ही चलत , जय सो दन दन थको ,

अत जजा र नै जय , कह पु न नै है तको  

' मर ज ैहै सो , कु  ू वर!' को छंदक न:सशंय  

' क वध , कोउ घरी मृ यु आवत है नय।'

 दे खी दीठ उठय कु  ू वर पु न भीर अगरी ,

 रोवत पीटत जत नदी क ओर सधरी। 

' रम नम है सय ' सबै ह रह रह टेरत ,

 सीस नवये जत , कतू इत उत नह हे रत। 

 पछे वलपत जत मृ तक के घर के नी ,

 इ म औ बधंु द:ुख सम उर म आनी। 

 चले जत तन बीच चर जन पू व बए ,

 हरे हरे बू सन क अथ कधू उठए ,

 जपै कठ समन परो दरसत म ृतक नर - 

 कोख सटी पथरई ऑख, वदन भयं कर। ' रम नम ' कर लोग तह लै गए नदी पर  

 जहू चत है सजी रख जल स कछु अं तर। 

 दीन तपै पर कठ ऊपर स डरी   कैसी सुख क नद इतै सोवत नर नरी! शीत घम को लेश नह पुन तह जगवत। 

 चर कोन प,ै लखौ , आग ह लोग लगवत। 

7/14/2019

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धीरे धीरे दहक लई सो शव को घ ेरी ,

 लू बी जीभ लफय मं स चटत चू फेरी। 

 सनसनत है चमा सीझी करकत ह बंधन।  परो पतरो ध  म , रख नै छतरनो तन! 

 केवल भ  री भम बीच अब जत नहरे े त अथ के खं ड - शे ष नरतनु क ेसर।े 

 को कु  ू वर पु न ' कह यहै सब क गत नै ह।ै'

 छंदक बोयो 'अं त यहै सब पै बन ऐह।ै 

 इतो अप अवशे ष चत पै रो जसु जर  

भ  खे कक अघत न यगत ' कू व क ूव ' कर  

 खत पयत औ हू सत रो जीवन अनु रगो  

 झको यही बीच वत को तन म लगो ,

अथव ठोकर लगी , तल म जय तरयो ,

 सपा डयो कू आय , कुपत अर अ धू सयो ,

 सीत समनी अं ग , ट सर पै भहरनी  

भयो ण को अ ंत , मरयो तुरतह सो नी। 

 पु न तको नह िधु द:ुख औ सु ख जग मह।  मु खचु ं बन औ अनलतप तको कछु नह। 

 नह चरा यन गधं मं स क अपने स   ू घत ,

और न चं दन अगर चत के तको महकत। 

 वदन रसन स वके सबै गयो ढर ,

वणश नस गई , नयन क योत गई हर। 

 रही न दे ह , होय छर छन मह बलनी। 

 जनस वको ने ह आज ते बलपत नी। 

7/14/2019

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 र म ंस के जीवन क सबक गत यही ,

 ऊूच नीच औ भले बु रे सब मरत सदही।  कहत श मर जीव फेर जनमत ह जई  

 नई दे ह धर कहू कहू, को सकै बतई।'

 नीर भरे नज नयन कु  ू वर नभ ओर उठई ,

 द दय स दीस दृ  इत उत दौरई। 

 नभ स भ ल , भ स नभ ल रो नहरी ,

 मनो तक दृ  सृ  छनत है सरी  

 पै बे हत सो झलक गई जो कू द  र पर ,

 जस द:ुख नदन परत लख एक एक कर। 

 े मदह स दमयो आनन आशप  रो ,

 उठयो पु कर अधीर 'अहो! जग द:ुख स झ  रो ,

 र म ंस के जीव त अत सरे! 

 कल लशे के जल बीच जो परे ब ेचर,े

 दे खत ह य मया लोक क पी भरी  

औ असरत यके सु ख वभैव क सरी ,

 नीक त नीक यक वतु न को धोखो  और बु री त बु री वतु को तप अनोखो।  सु ख पछे द:ुख औ वयोग सं योग अनं तर  

 यौवन पछे जर , जम पै मरण लहत नर। 

 मरबे पै पु न कैसे कसैे जम न जने,

 रखत य यह च नध सब जीव भु लन े

भरमवत को तनको झ  ठे आनं द मू ह  औ अने क सं तपन म जो झठ ेनह। 

 मोू को यह  ंतजल चो वलमवन। 

7/14/2019

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 जस जीवन मोह परयो लख परम सु हवन।  लयो मोह जीवन वह व सर सम सु ं दर   रवरंजत सु ख - शं त - सहत जो बहत नरंतर। 

 पै अब दे ख वक धर के हलोर सब   हरे कछरन स उछरत ह जत एक ढब   केवल नमा ल नीर आपनो अं त गरवन   खरे कघए सगर म जो परम भयवन। 

 गयो सरक जो परो रो परदो ऑखन पर  

 वै से ही ह हमू एक जै से ह सब नर ,

अपने अपने दे वन को जो परे पु करत ,

 कतु सु नत जब नह कोउ तब हय म हरत। 

 नै है कतु उपय अवस कोऊ जो हे रो  

 तनके, मे रे और सबन के द:ुखन केरो। 

 चहत आप सहय दे व समया हीन जब  

 कह सकै कर दीन दु खन क सु न पु कर तब ?

 होय मोह समया बचवन क कछु जको   जन दे ू म य पु करबो वफल न तको।  है कैसी यह बत रचत ईर जग सरो  

 पै रखत है सद द:ुख म तह , नहरो! 

 सवाशमत् नै रखत यद सृ  दु खरी   कणमय सो नह और न है सु खकरी। और नह यद सवाशमत् ईर नह। 

 बस , छंदक , बस! बत लय म एते मह।'

 सु नी नृ पत यह बत , घोर चत चत छई ,

 दोहरी , तहरी फटक पै चौक बै ठई। 

7/14/2019

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 बोयो ' कोऊ जन न भीतर बहर पव 

 व घटन के दन न बीत सब जौ ल जव।'

 बु चरत / चतुथा सगा / भग -1 / एडवन अना ड / शुल  

 जब दन प  रे भए बु  भगवन् हमरे  तज अपनो घर बर घोर बन ओर सधरे। 

 जस परयो खभर रजमं दर म भरी ,

शोकवकल अत भ  प , ज सब भई द:ुखरी। 

 पै नकयो नतरपथं णन हत न  तन , गटयो श पु नीत कटे जस भवबधंन। 

महभनमण 

 नखरी रैन चै त प  नो क अत नमा ल उजयरी।  चहसनी खली चू दनी पटपर पै अत यरी। 

अमरइन म धू स अमयन को दरसवत बलगई , सकन म गु छ झल रह जो मं द झकोरन पई। 

 चु वत मध  क परस भ जौ ल ' टप टप ' शद सु नव 

 तके थम पलक मरत भर म नज झलक दखव। 

 महकत कतू अशोकमं जरी , कतू कतू पु र मह  

 रमजम उसव के अब ल सज हटे ह नह। 

 छटक वमल वमवन पै यमनी मृ दु तभरी  

 वसत सु गधं स  नपरमल स , नछन स जरी। 

 ऊूचे उठे हमवन क हमरश सो मनभवनी   सं चरत शै ल सु वयु शीतल मं द मं द सु हवनी। 

 चमकय शृ ं गन च ं च अब अमल अं बरपथ गो  

 झलकय नत भ  म , रोहन के हलोरन को रो। 

7/14/2019

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 रसधम के ब ूके मु  ू डे रन पै रही ु त छय है  जहू हलत डोलत नह कोऊ कतू परत लखय ह।ै 

 बस हू क केवल फटकन पै पहन क सुन परै, जहू एक ' मु  ' कह पु करत एक 'अं गन ' धु न करै। 

 बज उठत तोरणव ह पु न भ  म नीरवत लह।ै  है कबू बोलत फे प ुन झनकर झगु र क रहै। 

भवन भीतर जत जलन बीच स छन च ूदनी  भीत पै औ भ  म पै जो सीप ममा र क बनी। 

 करनमल मयं क क तनीन पै है पर रही।  वगा बच वमथल अमरीन को मनो यही। 

 कुमर के रंगनवस क ह अलबे ली नवे ली तहू रमनी। 

 लसै छव सोवत म मु ख क त एक क ऐसी लु नई सनी ,

 परै कू जह पै दीठ जहू सोई लगत स ुंदर ऐसी धनी  

 यहै कह आवत है मन म ' सब म यह र अमोल धनी।'

 पै ब सु ं दर एक स एक लखत अने क ह पस परी। 

 मोद म मत फर ऍखयू तहू प के रश के बीच भरी ,

 र क हट म दौरत य मण त मण ऊपर दीठी छरी ,

 लोभ रहै त एक पै जौ लग और क ओर न जय ढरी। 

 सोवत सभूर बनु सोभ सरसय , गत  आधो खु ले गोरे सु कुमर मृ दु ओपधर। 

 चीकने चकुर कू बूधो ह कसुु मदम ,

 करे सटकरे कू लहरत अं क पर। 

 सोव थक हस औ वलस स पसर प ूय ,

 जै से कलकंठ रसगीत गय दन भर। 

 पं ख बीच नए सर आपनो लखत तौ ल  

7/14/2019

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   जौ ल न भत आय खोलन कहत वर। 

 कंचन क दीवट पै दीपक सुगधंभरे 

 जगमग होत भौन भीतर उजस कर। 

आभ रंग रंग क दखय रही तस मल  

 करन मयं क क झरोखन स ढर ढर। 

 जम है नवे लन क नखरी नकई अं ग  

अं गन क वसन गए ह कू ने कु टर। 

 उठत उरोज ह उससन स बर बर , सरक परे ह हथ नीचे कू ढीले पर। 

 दे ख पर सू वरे सलोन,े कू गोरे मु ख ,

भृ कुटी वशल बं क , बनी बछी ह यम। 

अधखु ले अधर , दखत दं तकोर कछु 

 चु न धरे मोती मनो रचबे के हे तु दम। 

 कोमल कलई गोल , छोटे पू य पै जनी ह, दे त झनकर जहू हलै कू कोऊ वम। 

 व टट जत वको जम सो रही है पय  

 कु  ू वर रझय उपहर कछु अभरम। 

 नै कै परी लू बी कोऊ बीन लै कपोल तर ,

ऑगरी अझ रह अब तइू तर पर  

 वही प जै से जब कत सो तन रही  

 झ  म रस जके झपे लोचन वशल वर। 

 लै कै परी कोऊ म ृगशवक हए त लय ,

 सोय गयो टुूगत कुसु म पय तसु कर। 

 कुतरो कुसु म लसै कमनी के कर बीच ,

 पत लपटनी हरी हरन अधर तर। 

 सखयू ै आपस म जोर गर ग सोय  

7/14/2019

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   गु हत गु हत गु छ मोगरे को महकत ,

 े मपश प रो बू ध अंग अं गन जो  

अं तस् सो अं तस् मलवत न सरकत। 

 सोयबे के थम परोवत रही है कोऊ   कंठहर हे तु मोती मनक औ मरकत। 

 स  त म परोए रहे अझ कलई बीच  

 रंग रंग को कश तनस है झलकत। 

 उपवन भ टती नदी को कल नद सु न  

 सो सब वमल बछवन पै पस पस। 

 म   ू द दल नलनी अनेक रह जोह मनो। 

भनु को कश जह पय होत है वकस। 

 कोठरी कुमर क लखत जके र बीच  

 दमक सु रंगपट रहे पय कै उजस। 

 तके दोऊ ओर गं ग गौतमी सलोनी सो  

 रसधम बीच जो धन नै कर नवस। 

 लगे र पै च ंदन के ह चत चौखट ,

 कनककलत ब परे मनोहर अण नील पट।  च कै सीी तीन परत है जनके भीतर  

अत वच आवस कु  ू वर को परम मनोहर ,

 रेशम क गु लगु ली से ज जहू सजी सु नमा ल  

 लगत कमलदल सरस अं ग तर जो अत कोमल। 

भीतन पै ह मोतन क पटरी ब ैठई ,

 सहल क सीपन स जो ह गई मू गई। 

 सत ममा र क छत पै सु ं दर पीकरी ,

 रंग रंग के नग ज कै जो गई सू वरी।  ववध वणा क बनी बे लब  टी मन मोहत। 

 कटी झरोखन बीच चमय जली सोहत ,

7/14/2019

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 जनस खली चमे लन को सौरभ है आवत  

 चं करण , शीतल समीर को सं ग पु रवत। 

भीतर सु षम लसत नवल दं पत क भरी - शय कु  ू वर है बसत , लसत गोप छबवरी। 

 यशोधर उठ परी नद स कछु अकुलई ,

 उरस अं चल सरक रो कट सो लपटई। 

 रह रह ले त उसस , हथ भहन पे फेरत ,

भरे वलोचन वर चह नज पय दश हे रत। 

 तीन बर कर च  म कु  ू वर को बोली ससकत  

' उठौ , नथ! मो को बचनन स सु खी करौ अत।'

 को कु  ू वर ' है कह ? य!े मोह कहौ ब ुझई।'

 पै ससकत सो रही , बत मु ख पै नह आई। 

 पु न बोली ' हे नथ! गभा म शशु जो मे रे 

 सोचत तक बत सोच म गई सबे रे। 

 लखे भयनक व तीन म अत सु खघती ,

 करकै जनको यन अजू ल धरकत छती। 

 एक े त वृ ष अत वशलवपु परयो लखई  

 घ  मत वीथन बीच बपु ल नज शृ ं ग उठई , उवल नमा ल र एक धरे मतक पर   दमकत जो य परो टट तरो अत  ुतधर  

अथव जै सो नगरज को मण ु तवरो   जसो होत पतल बीच दन को उजयरो   मं द मं द पग धरत गलन म चयो वृ षभ ब  

 नगर र क ओर , रोक नह सयो कोउ क। 

7/14/2019

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भई इंमं दर स वणी यह वषदमय - 

' जो न रोकहौ यह नगरी नसहै नय।'

 जब कोऊ नह रोक सयो तब म बलखई ,

 तके गर भ ुजपश डर म लयो दबई। 

आ दीनी र ब ंद करबे क म पु न ,

 पै सो कंध हलय , गवा सो कर भीषण ध ुन  

 तु रत छट मम अं क बीच स धयो ह ूकरत ,

 तोरण अगा ल तोर भयो पहन को कचरत। 

 द  जे अभु त व मह म लयो चर जन ,

 नयनन स क रो ते ज जनके अत छन छन  

 मनो लोकप चल सु मे र त भ पै आए ,

 दे वन को लै सं ग रहे य पु र म छए। 

 जहू र के नकट इं क धवज प ुरनी  

 गरी टट अररय , कूपी सगरी रजधनी। 

 द केतु पु न उठयो एक औरह तहू फहरत ,

 रजततर म टूके अनल सम मनक छहरत ,

 जसो क ब करन शदपी छतरनी ,

 सु न जनको भे मु दत जगत् के सरे नी।  मृ दु झकोर सो चयो प  वा सो त समीरन ,

 रजटत सो केतु पसरयो , पढै सकल जन। 

 झरे अलौकक कुसु म न जने कत सो आई। 

 प रंग म व ैसे ू नह पर लखई।'

7/14/2019

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 को कु  ू वर ' हे कमलनयन! सपनो यह स ुंदर।'

 बोली सो ' हे आया पु ! आगे है द:ुखकर। 

 गगनगर सु न परी ' समय आयो नयरई।'

 यके आगे व तीसरो परयो लखई। 

 हे रयो म, ' हे नथ! हय , नज पा ओर जब  

 पयो स  नी से ज , तहरे वसन परे सब। 

 चन म तव रह,े छू  तु म मोह सधर,े

 जो म ेरे सवा व , णधन , जीवन , यरे। 

 दे खत ह पु न मोतन को कटबधं तहरो  

 लपटयो मे रे अं ग , भयो अह दशंनवरो। 

 सरके कर के कंगन और केयर गए नस ,

 वे णी सो मु रझय मलकदम परे खस। 

 यह सोहग क से ज रही भ मह समई , रन के पट चीथ उठे आपह उधरई। 

 सु यो द  र पै फेर े त वभृभह म हू करत ,

और लयो सोइ केतु द  र पै दमकत फहरत। 

 पु न बनी सु न परी ' समय आयो नयरई।'

 उठयो करेजो कू प , परी जग म अकुलई। 

 इन वन को अथा यह य तो म मरह। 

अथव तजहौ मोह , मृ यु ते ब द:ुख भरह।'

अथवत दनकर सम आभ मृ दु नयनन धरी।  रो कु  ू वर नज दु खत य क ओर नहरी। 

 बोयो पु न ' हे य!े रहौ तु म धीरज धरे,

 यद धीरज कछु मलै े म म तु ह हमरे। 

7/14/2019

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 चहै आगम कछ व ये होयू जनवत  

औ दे वन को आसन होवै डयो यथवत ,

औ नतर उपय जगत् चहत कछु जनन  

 हम तु म पै जो चहै परै रखौ नय मन - 

 यशोधर स रही ीत मम जु ग ज ुग जोरी ,

औ रहहै सो सद , ने कु नह नै है थोरी। 

 जनत हौ तु म केतो सोचत रहौ रत दन   य जग को नतर जह द ेयो ऑखन इन। 

 समय आयहै नै है जो कछु होनो सोऊ।  जो कछु हम पै परै सह हम तु म मल दोऊ। 

 जो आम मम थत अपरचत जीवन के हत ,

 जो परद:ुख लख द:ुखी रहत ह म ऐसो नत  

 सोचौ तो , मन मे रो वहरणशील उतर  

 रहहै कैसो लगो सद घर के नन पर ,

 जो सथी मम जीवन के, मोको सु खकरी ,

 जनम सब स ब अभ त ुम मे री यरी। 

 गभा मह तु म मम शशु क हौ धरनवरी ,

 जसु आस धर मल दे ह स दे ह हमरी।  जब म ेरो मन भटकत चर दश जल थल पर  

 बधूयो े म म जीवन के य भू त नरंतर - 

 उत कपोत बधूी े म म य शशु के नव -  मन मे रो मू रय बसत है आय पस तव। 

 करण यह , म जनत ह तु मको सशुील अत ,

 सब स ब आपनी , परम कोमल उदरमत। 

 सो अब जो कछु परै आय तु म पै, हे यरी! 

7/14/2019

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 कर लीजौ तु म यन े त व ृष को व भरी  

औ व रन जी धवज को गइ जो फहरत ,

 पु न रखयो मन मू ह आपनो यह नय अत - 

 सब स ब कै सद तु ह च औ चहह ,

 सबके हत जो वतु रो खोजत औ रहह ,

 तह तहरे हे तु खोजह अधक सबन स ,

धीरज यत धरौ छू  चत सब मन स। 

 परै द:ुख जो कछ धीर धरयो ग ुन यह चत   होय कदचत् हम दोउन के द:ुख स जगहत।  सय - े म - तकर सकै कोऊ ज ेतो चह   ीत नहोरे जे तो कोऊ रसभोग सकै लह  

 लहौ सकल तु म आलगन म मम , हे यरी! 

 वथाभव अत अबल  ेम के बीच बचरी। 

 च  मौ मम म ुख , पन करौ ये वचन हमरे,

 जनौगी तु म और न जके जननहरे। 

 सब स ब कै ीत करी तुमस म, यरी! 

 करण , मे री ीत सकल णन पै भरी। 

 णये ह!े सु ख सो सोओ तु म नधरक अब  

 ह ब ैठो म पस तहरे औ नरखत सब।'

 सजल नयन स सोय रही सो ससकत रोवत ,

' समय गयो अब आय ' व सो पु न यह जोवत। 

 उलट कु  ू वर सथा रो नभ ओर नहरी ,

 चमकत उवल चं  , वमल फैली उजयरी। 

 बीच बीच म कतू रजत सी आभ धरे 

7/14/2019

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 मल कै मनो रहे यहै कह सर ेतरे- 

' यहै रैन सो , गहौ पथं चहौ जो हे रो ,

 सु ख वभैव को अपने व जगमं गल केरो।  चहै करौ तु म रज चहै भटकौ तु म उत इत  

 मु कुटहीन जनहीन - होय जस जग को हत।'

 कौ सो ' म अवस जै ह घरी पू ची आय ,

 रह,े सोवनहर! तब ये मृ दु ल अधर बतय  

 करन को सो कटै जस जगत् को भवरोग , यदप मोसो और तोसो नै न जय वयोग। 

 गगन क नतधत म मह झलकत आज   जगत् म आयो करन हत कौन सो म कज।  रहे सबै बतय आय हरन को भवभर।  चह म नह मु कुट जपै वशंगत अधकर। 

 तजत ह वे दशे जनको जीततो म जय।  नह मे रो खं ग खु ल अब चमकह तहू धय।  धर सन रथच मे रे घ  मह नह घोर   रअं कत करन को मम नम चर ओर। 

 फरन चह धर पै धर अकलु षत पू व ,

ध  र नै है से ज म ेरी , बस स  नो ठू व।  तु छ त अत तुछ मे रे वतु रहह सं ग।  चु न पु रने चीथरे ही धरह म अं ग। 

 कोउ दै है खयह सो और  ंजन नह।  वस करह गरग ुह और वपन झन मह। 

अवस करह म यह,ै है परत मे रे कन  

7/14/2019

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 सकल जीवन को जगत केर् आनद महन। 

 दय उमगत है दय स दे ख भवज घोर ,

 द  र जको करन चह चलै जहू ल जोर। शमन करह यह , जो कछु उचत शमन उपय  

 कठन यग , बरग और य स मल जय। 

 ह अने कन दे व , इनम कौन सदय समथा?

 क न दे यो इहै जो करत से व था?

 नज उपसक करन क ये करै कौन सहय ? लोग कर आरधन इनक रहे क पय ?

 करत ववध वधन स प  ज अने क कर ,

धरत ह नै व े ब , कर म ं को उर। 

 हनत यन मह बल के हे तु पशु बललत  

औ उठव बे मं दर जहू पु जरी खत। 

 वण,ु शव औ स  या क कनी अने क पु कर  

 पै भले त भले को नह कयो इन उर ,

 नह बचयो तप त व जो सखवनहर  

 ठकुरसोहती , भयतु त के अने क कर। 

 इन उपयन स बयो मम बधंु कोउ बहल  

 कठन , रोग , वयोग , नन लशे स वकरल ?

 कौन ज  ी और वर स बयो य जग आय ?

 कौन जजा र िीणकरी जर स बच जय ?

भई िर कौन क है मृ यु स अत घोर ?

 पयो है भवच म नह कौन इनके जोर ?

7/14/2019

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 नए जमन सं ग उपजय नए लशे अपर ,

 वसन को वशं बत अं त जसु वकर। 

 कौन सी सु कुमर नरी लो य स ंसर   कठन त उपस को फल , भजन कौ तकर ?

भई क क सव क व ेदन कछु थोर  

 दही द  वा जो चवत वनय स कर जोर ?

 होयू गे कोउ दे व नीके, कोउ ब ुरे इन मह  

 कतु मनव दश फेरे कोउ ऐसो नह। 

 होयू गे नदा य सदय य नरन म दरसत ,

 पै बधूो भवच म सब रहत फरे ेखत। 

 है हमरे श को यह वचन सय मन। 

' जम को यह च घ  मत रहत एक समन।'

 होत ह आरोहम म जीव जो अवदत  

 कट , खग , पशु स मनु ज नै दे वयोनन जत। 

 सोइ पर अवरोह म पु न कट उमज होत।  ह जहू ल जीव ते ह सकल अपने गोत। 

शप त य मनु ज क कू होय जो उर ,

 परै हलको सकल णन को अव भर ,

 जसु छय है दखवत स सब कौ घोर ,

 जीवपी जसु नपट नठुर कठोर। 

 होत कैसी बत , ह! जो सकत कोउ बचय! 

अवस नै है कू न कू तो शरण और उपय। 

 रहे पीत शीत स तौ ल मन ुज भरप  र  

 कयो ज ल नह कोऊ कठन चकमक च  र ,

7/14/2019

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और अरणी मथ नकसी अ क चनगर   रही इनम लु क जो ब आवरण पट डर। 

 रहे अफुट शद स बबयत नर जग मह   वणा क ेसं केत जौ ल कोउ नकयो नह।  रहे टटत न सम ते मं स ऊपर जय   नह रोयो बीज जौ ल ख ेत कोउ बनय। 

 लही जो कछु वतु जग म है मनु ज ने चह  

 मली अपनी खोज , यग , य स है वह। 

 करै भरी यग कोऊ और खोजै जय   तो कदचत् ण को मल जय कोउ उपय। 

 जो सु खी सं प होवै लह सकल सु खसज ,

 जम जको होय करबे हे तु जग म रज ,

 होत जीवन नह भरी जह क कर ,

 जो लहत आनं द ही सब भू त य सं सर ,

 े म के रसरंग म जो सनो त ृ वहीन ,

 जो न होवै जरजजा र , शथल , चतलीन ,

 द:ुख आत वभव जग के हय करत लस ,

 एक स ब एक जको सु लभ भोग वलस ,

 होय मो सम जो , न जको रहै कोऊ लशे ,

औ न अपनी रहै चत सोच को कछ लशे ,

 सोच केवल जह पर द:ुख दे ख कै दन रत ,

 सोच केवल यह ै' म ू मनु ज सबक भू त ,'

 होय जो ऐसो , तजन हत होय एतो जह ,

 यग सवा स दे य जो नज मन ुजे म नबह ,

7/14/2019

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 खोज म पु न सय के जो लगै आठो यम  और मु  रहय खोजै होय सो ज ठम - 

 नरक म व वगा म चहै छपो जहू होय , चहै अं तर म सबन के ग ु होवै सोय -  द दृ  गय जो सो दे खहै चू ओर  

अवस टरहै कबू कतू आवरण यह घोर ,

अवस खु लहै मगा कू, जहू थक ेपू व पधर। 

 पयहै नतर को सो कोउ र नहर। 

 जसु हत सब यगहै सो अवस मलहै तह  और मु यु ं जय कदचत् होयहै सो चह। 

 करौ म यह , यगबे हत जह एतो रज। 

 हये कसकत पीर सो जो सहत मन ुजसमज।  है जहू जो कछु हमरो - कोटगु न और -  करत ह उसगा जस होय सु ख सब ठौर। 

 हो सिी आज गगन के सरे तरे! और भ  म जो दबी भर सो “आज पु करे! 

 यगत ह म आज आपनो यह यौवन , धन ,

 रजपट , सु ख , भोग , बधं,ु बधंव औ परजन ,

 सबस ब भु जपश , य!े तव तजत मनोहर  

 तजबो जको य जग म है सब स दु कर।  पै ते रो नतर जगत् क ेसू ग बन ऐहै,

 व को जो गभा बीच तव कछु दन रैहै- 

 है जो फल लहलहे े म को थम हमरे-  पै दे खन हत तह रहौ तो धरौय सधरे। 

 हे पी , शशु पत और म ेरे य पु रजन! 

 कछुक दवस सह ले  द:ुख जो परहै य छन ,

7/14/2019

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 जस नमा ल योत जगै सो अत उजयरी ,

 लह धमा को मगा सकल जग के नर नरी। 

अब यह दृ  संकप , आज सब तज म जै ह। 

 जब ल मलहै नह तव सो नह फर ऐह।” 

 य कह नयनन लय लयो नज यरी को कर।  ने हभरी पु न दीठ वद हत डरी मु ख पर  

 कर परम तीन से ज क प ूव बए ,

धकधकत छती को कर स दोउ दबए। 

 को “ कबू अब नह स ेज पै य पग धरह। 

 छनत पथ क ध  र धरतल बीच बचरह।” 

 तीन बे र उठ चयो , कतु सो फर फर आयो ,

 ऐसो वके प े म स रो बूधयो ,

अं त सीस पट नय , पलट आगे पग डरी  

आयो जहू सहचरी सकल सोवत सु कुमरी ,

 पय नश मनु बूधी कमलनी इत उत सोहत।  गं ग औ गोतमी अधक सब स मन मोहत! 

 पु न तनक दश हे र को ' सहचरी हमरी! 

 तु म सु खदयन परम , तजत तु मको द:ुख भरी। 

 पै जो तु मको तज नह तो अं त कहू है?

 जर , लशे अनवया, मरण वकरल मह ह।ै 

 दे खौ , जै से परी नद म हौ य छन सब  

 परहौ यही भू त मृ यु गरजत ऐहै जब। 

 स  ख गयो जब कुसु म कहू फर गंध प तब ?

7/14/2019

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 चुयो ते ल जब , योत दीप क गई कहू सब ?

 हे रजनी! तु म और नद स चपौ पलकन ,

अधरन रखौ म   ू द और तु म इनके य छन ,

 जस नयनन नीर और मु ख वचन दीनतर  

 रख मोह न रोक , जवू म तज अपनो घर। 

 जे तोई सु ख मोद लो म इनस भरी   ते तोई ह होत सोच यह बत दु खरी - 

 म, ये औ नर सकल भरत ज त सम जीवन , लहत सहत ह जो वसं त औ शीत तप तन। 

 कबू पत झु रत , झरत ह लहलहत पु न ,

“ कबू कुठर हर म  ल पै होत परत सु न! 

 नह जीवन य प बतै ह य जग मह। 

 द जम मम , जय था सो ऐसो नह। 

 वद ले त ह आज , अत,ु हे सकल सु द जन! 

 जौ ल है सु खसर प  णा मोरो यह जीवन  

 है अपा ण के योय वतु सो , यत अपा त। 

 खोजन हत ह जत मु  औ ग ु योत सत।्” 

 कयो मं द पग धरत कु  ू वर व नश म रह रह ,

 तरक पी नयन ने ह स रहे जसु चह। 

शीतल ससमीर आय च  यो फहरत पट ,

 जोो नह भत सु मन खोयो सौरभ चट। 

 हमगर स लै सधु तइ ूवसधु लहरनी ,

 नव आशू स तसु दय उमयो कछु जनी। 

 मधु र द सं गीत गगन म परयो सु नई। 

7/14/2019

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 दमक उठ सब दश , दे वगण स जो छई। 

 गणन लए नज सं ग , मे रन स भरी  

 चरो दपत आय र पै बरी बरी  

 तकत ह कर जोर कु  ू वर को म ुख , जो ठो  

 सजल नयन नभ ओर कए , हत धर हय गो  

 बहर आयो कु  ू वर प ुकरयो ' छंदक , छंदक ,

 उठौ , हमरो अ अबै कस लओ कंथक।'

 फटक ही पै रो सरथी छंदक सोवत ,

धीर ेस उठ को कु  ू वर म ुख जोवत जोवत - 

' कह कहत हौ , नथ , रत म य अं धयरी  

 जै हौ तु म कत , कु  ू वर! होत वमय मोह भरी।'

 बोलौ धीम,े लओ मे रे चपल तु षरह ,

' घरी पू च सो गई तज य करगरह ,

 जहू रहत मन बधूो , तव ढग पू च न पवत। 

अब म खोजन जत लोक हत तह यथवत्।'

 को सरथी “ हय , कु  ू वर! यह कह करत अब ?

 कहे वचन जो गणक कह झ  ठे नै ह सब ?

शु ोदनसु त करहै नन दशेन शसन ,

 रजन को नै महरज बसहै सहसन। 

 कह छू  धनधयप  णा धरती सो दै है?

 तज सब िभप कह अपने कर लै ह?ै

 जके ऐसो वगा सरस रसधम मनोहर  

7/14/2019

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भटकत फरहै कह अकेलो स  ने पथ पर ?” 

 उर दीनो कु  ू वर “ इतै आयो यही हत ,

 सहसन हत नह , सख! यह ले  धर चत। 

 चहत ह म रय सकल रयन स भरी। 

 लओ कंथक तु रत , होू वको अधकरी ?” 

 बोयो छंदक “ कृपनथ! हम कैसे रहह?

 महरज , तव पत शोक यह कैसे सहह?

 पु न जके तु म जीवनधन वको क नै है?

 करहौ कह सहय जबे जीवन नस जै है?” 

 उर दीन कु  ू वर “ सख ? यह े म न सू चो ,

 जो नज आनं द हे तु े म नय स कू चो।  पै इनस म े म करत नज आनं द स ब - 

औ तन क ेआनं द स ब -

यत अब क   जत उधरन हे तु इह औ णन को सब। 

 लओ कंथक तु रत , वलं ब न ने कु करौ अब।” 

' जो आ ' कह गयो अशल म छदंक ,

 तु रत नकसी बगडोर चू दी क झकझक।  तं ग पलनी कस कंथक को लयो बहर  

 फटक ढग , जहू कु  ू वर रो ठो व अवसर। 

 दे ख भु ह नज अत स नै हय हहननो ,

 नरखत तक ओर बवत मु  ू ह नयरनो। 

 सोवत जे जे रहे गई यह धवन तन ल , पर  

 रखे दे वगण म   ू द कन तनके व अवसर। 

थपथपय कर कु  ू वर कंठ पै वक ेफरेे,

7/14/2019

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 बोयो पु न “अब धीर धरौ , हे कंथक म ेरे! 

आज मोह लै चलौ जहू ल बनै नरंतर ,

 सय खोजबे हे तु कत ह आज छ घर। 

 कहू खोज को अं त होयह,ै यह नह जनत ,

 बनु पए नह अ ंत यहै नय मन ठनत। 

 सो अब सहस करौ कररो , तु रग हठील!े 

 खं गधर जो बछै पथं पग पर न ढील।े 

थमै न ते रो व ेग , कै न गत कू ते री।  खई खं दक पर, चहै पथर क ढ ेरी। 

 ज छन बोल ' बौ ' पवन पछे परौ ,

अनलते ज औ वयु वे ग तु म य छन धरौ। 

 पू चओ नज भु ह , होयहौ तु म भगी  

 महकया क महम के य जग हत लगी। 

 चलत आज म, गु नौ , नह केवल मनु जन हत  

 पै सब णन हे तु सहत द:ुख जो हम सब नत  

 कतु सकत कह नह , मरत नश दन य ही सब। 

अतु परम सहत भु ह लै चलौ तु रत अब।” 

धीरे स पु न उछर पीठ पै वके आयो ,

 केसर पै कर फेर कंठ वको सहरयो  

 बयो अ अब , पर टप पथरन पै वक ,

 बगडोर क की हल चमक अत बू क। 

 प ै' टप टप ' औ खनक नह कोऊ सुन पई ,

आय दे वगण दए मगा म सु मन बछई। 

 जब तोरण के नकट भ  म पै चल पग डरे,

7/14/2019

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 मय के पट ववध ियगण तहू पसरे। 

 य वध आहट बन कु  ू वर तोरण पै आए ,

 पीतर के तहरे कपट जहू रहे भए। 

 सौ मनु य जब लग खु ल जो तब कू जई ,

 खु ले आप त आप सरक , नह परे सु नई। 

 यही वध खु ल परे बहरी फटक सरे 

 य ही रजकुमर पू व तनके ढग धरे। 

 िरकगण जनु मरे परे ऐसे सब सोए ,

 डर ढल तरवर द  र , तन क सधु खोए। 

 ऐसी बही बयर कु  ू वर के आगे त छन   परे मोहन म लीने स जहू जन। 

 गयो गगनतट शु  , बो जब त समीरन ,

 लहरन लगी कछुक अनम पय झकोरन ,

 खच बग चट कु  ू वर कद मह पै पग धरे,

 कंथक को चु मकर , ठक म ृदु बचन उचरे। 

 छंदक सो पु न े म सहत बोयो कुमरवर  

“ जो कछु तु मने कयो आज वको फल स ुं दर  

 पै हौ तु म औ पै ह जग के सब नरी नर। 

धय भए त ुम आज जगत् म, हे सरथवर! 

 दे ख तहरो े म े म मे रो अत तु म पर ,

अब मे रे य यरे अह लै पलटौ घर। 

 ले  सीस को मुकुट , रजपरधन हमरे 

 जह न कोउ अब मोह दे खहै तन पै धरे। 

 रजटत कटबधं सहत यह खग ल े मम  

7/14/2019

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औ ये लू बी लट कट फकत जनको हम।  दै यह सब त ुम महरज स कहयो जई। 

' मे री सु ध अब रख त ल सकल भ ुलई  

 जौ ल आऊू नह रज स ब लह सं पत ,

 य योगबल , वजय पय , लह बोध वमल अत। 

 यद पऊू यह वजय होय वसधु मे री अब  

 हत नत,े उपकर नहोर,े यहै चहत अब। 

 गत मनु य क होनी है मनुय के हथन।  पयो न जै सो कोउ होय पचह दै तन मन। 

 जग के मं गल हे तु होत ह जग त यरे,

 पै ह कोऊ यु  क यह चत धरे'।” 

पचंम सगा  बु चरत / पं चम सगा / भग -1 / एडवन अना ड / शुल  

य 

 जहू रजगृ ह है रजधनी लसत घर बन स घने  तहू पू च पवा त परत पवन पस पस सु हवने- 

अत सघन तल - तमल - मं डत एक तो ' वभैर ' ह,ै

 द  जो ' वपु लगर ', बहत ज तर पतरी सरधर ह।ै 

 पु न सघन छय को ' तपोवन ' जहू सरोवर ह भर,े

 तबब यम शलन के दरसत है जनम परे। 

 ऊपर चटनन स शलजतु रसत जहू पसीज कै ,

 नीचे सलल को परस रह रह डर झ  मत भीज कै। 

 चल अदश क ओर सु ंदर 'शै लगर ' मन को हर,ै

7/14/2019

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 उठ ' गधृ् रकट ' सशृृ ं ग जको द  र ही स लख पर,ै

 ची दश क ओर सोहत ' रगर ' नखरी खरो ,

 जो वटप बीध स हरो , ब प रन स भरो। 

 पथ वकट पथरीलो परै जो फेर को आओ धर,े

 पग धरत बन म कसुु म के, आम जमु न के तर,े

 पै बचत झन स कटीली ब ेर क औ ब ूस क  

औ चत टीलन प,ै कत पु न भ  म पै सम पस क। 

 नव कलत कननकुसु म वह जो अचल अ ंचल ढर ह,ै

 चल दे खए वटकु ं ज भीतर जो ग ुफ को र ह।ै 

 य सरस पवन और थल नह सकल भ  तल पइए ,

 कर वमल मन सब भू त आदर सहत सीस नवइए। 

 य ठौर ीभगवन् बस कटत करल नदघ को ,

 जलधरमय घनघोर पवस , कठन जो मघ को।  सब लोक हत धर मलन वसन कषय कोमल गत प ै

 मू गे मलत जो भीख पलट पसर पवत पत पै। 

 तृ ण डस सोवत रैन म घर बर वजन बहय कै। 

 आूत चू दश यर , तपत बघ बनह कूपय कै। 

 य भू त जगदरधय बतवत ठौर य दन रत ह। 

 सु खभोग को सुकुमर तन तप स तपवत जत ह। 

 त नयम औ उपवस नन करत , धरत यन ह,

 लवत अखं ड समध आसन मर म  त समन ह।  च जनु ऊपर कद कबू धय जत गलय ह।  कन चु नत ढीठ कपोत कर ढग कबू कंठ हलय ह। 

 खरी दु पहरी म बै ठत भु यन लगए! 

7/14/2019

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 सन सन करती धर , ध  प धधकत दव लए। 

 गन गन नचत परत सकल बनखं ड लखई ,

 पै भु जनत नह जत कत दवस बहई। 

 ढरत दी अं गरबब सम गरतट दनकर ,

 पसरत आभ अण खे त औ खरयनन पर।  जु गज ुगत पु न जहू तहू नकसत नभ म तरे।  मल कै मं गलव उठत बज पु र के सरे। 

 छय जत पु न नश , जीव जग के सब सोवत। 

 केवल कौशक रटत क,ू कू जं बु क रोवत। 

 पै भु यननम रहत ह आसन धरे,

 य जीवन को तव कह सोचत मन मरे। 

आधीरत नखं ड होत , जग थरत धरत। 

 केवल हसक पशु क कै कू फरत पु करत - - 

 य मन के अनवपन भय े ष पु करत ,

 कम ोध मद लोभ घोर वचरत , नह हरत। 

 सोवत पछले पहर घरी त ेती ही भु वर  अमशं पथ ज ेती म क जत नशकर। 

 पौ फटबे के थम परत उठ भु पु न तदन ,

 फटक शल पै आय रहत ठे नत ब छन। 

 सोवत वसधु को नयनन भर नीर नहरत ,

 सब जीवन क दश दे ख , गु न हय म हरत। 

 पु लकत पु न लख परत लहलहे खे त मनोहर ,

 चु ं बन सो अनु रगवती ऊष के सु ं दर। 

 ची आश कहन लगत दनरत अवई ,

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 पहले केवल ध ुधं सरीखो परत लखई। 

 कतु पु करै अणच   जौ ल पु र भीतर ,

आभ नखरत शु रेख सी श ैलशीषा पर। 

 लगत परसन होत शुतर सो अब म म   दे खत दे खत होत वणा पीतभ भर सम। 

अण , नील औ पीत होत घनखं ड मनोरम ,

 क पै च जत स ुनहरी गोट चमचम ,

 सब जग जीवन म  ल तपी परम भकर   दनपत गटत धर योतपरधन मनोहर। 

 ऋष समन कर नयय सवतह सर नवत ,

 लै पु न िभप पू य पु र ओर बवत। 

 बीथी बीथी फरत यती को बनो धरे,

 जो कछु जो दै दे त ले त सो हथ पसरे। 

 िभ स भर जत प सो जहू पसरत ,

' महरज! ये ले  ' कते रह जत प ुकरत। 

 दे ख द सो प सौय , लोचनसु खकरी  

 जहू के तहू रह जत ठगे से पु र नरनरी। 

 द  र द  र स पु वती ब धवत आव,

 भु के पू यन पर ससु न , ब बर मनव 

 ले त चरणरज कोउ , कोउ पट सीस लगवत। 

अत मीठे पकवन और जल कोऊ लवत। 

 कबू कबू भु जत रहत अत मध ुर मं द गत। 

 द दय स दी , यन म भए लीन अत। 

 प अन  प लभुय लय टक रह कुमरी ,

 े म भ स भरी दीठ नज तन पै डरी। 

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 मनो प समय रो जो नयनन म अत ,

 समु ख लख रह जत चह स तको चतवत। 

 पै पकरे नज पंथ जत भु सीस नवए ,

धरे वषन कषय , भीख हत कर फैलए। 

 मृ दु वचनन स कर सबको परतोष यथवत् 

 फरत गरज ओर , आय पु न यन लगवत। 

 जे ते जोगी जती बसत तनके ढग ब छन  

 बै ठ सु नत ब न , सयपथ प  छत त दन। 

शं त कु ंजन बसत तपस रगर क ओर ह,

 गनत ह य तनह जो च ैतय को रपु घोर ह। 

 कहत इंय बल पशु ह, लय वश म मरए ,

लशे दै ब भू त इनको दमन य कर डरए  

लशे क सब व ेदन मर जय आपह , आपह ,

 तप स तन नह तपै औ शीत स क ूपै नह। 

 करत नन सधन योगी यती मन लय कै,

 यग जनपदवस नजा न बीच धम बनय कै। 

 कतू कोऊ ऊधवा व दनंत ल ठे रह,

 जो त भु जदं ड दोऊ मो न कबू लह, स  ख कै अत छीन औ गतहीन नै तन म मे  उकठ मनो ख त ै ख थ ऊपर को के। 

 कल रखे करन को कोउ कठ मर कठोर ह,

भलु क ेसे ब रहे नख ऑगु रन के छोर ह।  लोह कली बछय कोऊ बसत आसन मर कै। 

 कोउ ठत  अं ग , कोउ पं च तपत बर कै। 

7/14/2019

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 पथरन सो मर कोऊ जर तन जजा र करे,

 रख मटी पोत तन पै चीथरे चीकट धरे। 

 जपत कोउ शवनम बै ठ मसन पै दनरत ह,

 यर जहू शव नोच भगत , गीध ब म ंडरत ह। 

 कोउ कर म ुख भनु दश पग एक पै ठो रह,ै

 नह अथवत दे व जौ ल अजल नह कछु लह।ै 

 सहत सू सत सतत य , सब मं स गल तन क गई ,

 ह स सट चम सखो , तू त सी नस नस भई। 

 करत अनशन त कोऊ , कोउ कृछ च ंयण कर। 

ध  र म कोउ जय लोटत , रख कोउ मु  ू ह म भर। 

 करत रसन सु  कोऊ जी ब  टी चब ह,

 वद क सब वसन य भू त पवत दब ह। 

 कट कर पग , छू ट डरी जीभ कोऊ आपनी ,

 कच ऑखन , नोच कनन , कनक सी कय हनी ,

 वकल अं गवहीन , गतहत म  क , बहरो , ऑधरो ,

 जयत मृ तक समन नै पलपड सो भ पै परी। 

 कयदं ड कठोर जो सह ले त ह सरे यह   कठन यम क यतन रह जय पु न तनको नह। लशे सरे जीत स ुंदर दे वगत ते लहत ह।  वे द श पु रण आगम बत ऐसी कहत ह। 

 जय बचन भगवन एक स य कहे 

'अहो! लशे यह घोर आप तो सह रहे। 

 बीते मस अने क मोह य ठौर ह 

 दे खे आप समन तपत ब और ह। 

7/14/2019

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 है य जीवन मह द:ुख थोरो कह  

और बवत आप लशे जो यह मह ?'

 बोयो तपस 'और कह हम जनह?

 थंन म जो लखो चलत सो मनह। 

 जो कोउ तनह तपय लशे ही जनहै और मरण वमप कर मनहै 

लशेभोग स पपलशे नस जयह,ै

 नखर जीव नै शु  , लोक शभु पयह,ै

 नकस घोर य तपप  णा भवकप त  लोकन बीच बचरहै द वप त भू त भू त सु ख भोग भोगहै बस तहू 

 जनको ू अनु मन सकत कोउ कर कहू?

 को ीसथा ' वह जो शु मे घ दखत , इं आसन को मनो पट वणा मय दरसत ,

 वितु ध पयोध स सो उठो नभ म जय ,

अु बदु समन खस खस अबस गरहै आय ,

 कच स सन , धु नत सर , बह नदी नरन मह  

 जय परहै जलध म पु न अवस सशंय नह।  कह यही प को नह वगा को सब भोग ,

 जह अजा न करत मु नजन सध तप औ योग ?

 चत जो सो गरत , छीजत ले त जह बसह ,

 यह अटल वहर जग म वदत है नह कह ?

 र तन को गर य य करत हौ स ुरधम ,

7/14/2019

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 प  जहै जब भोग सोइ भवच प ुन अवरम।'

' कौन जनै होय ऐसो , सकत कह कह भू त ?

 नश पै पु न दवस आवत , म अनं तर शं त। 

 र पल क दे ह पै य हम ममत नह   रहत बधूो जीव को जो वषयबंधन मह। 

 जीव के हत दू व पै धरत दे वन पस  

िणक जीवनलशे यह चरकल सु ख क आस।'

 कु  ू वर बोल,े ' सोउ सु ख क अवध है पै त!  वषा कोटन लौ रह,ै पै अं त वै ही जत। 

अं त जो नह तो कह हम ल य ऐसो मन  

 है कू य प जीवन जसु होत न लन ,

 भ जो सब भू त जको होत नह परणम ?

 ह कह,ू ये दे व सरे नय नज धम ?

 को योगन ' दे व नह नय य जग मह  

 नय केवल है, हम और जनत नह।'

 को बु भगवन ्' सु नो , हे मे रे भई! 

 नवन , दृ च परत हौ हम लखई। 

य तु म अपनी हय दू व पै दे त लगई  

 ऐसे सु ख के हे तु व सम जो नस जई ?

आम को य मन दे ह य अय कनी ,

 तन कर ब तक तु म यह गत कर दीनी  धरन म समथा व जीवह नह  

 खोजत जो नज पथं , रो अ बीचह मह। 

7/14/2019

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 य कोउ तीखो तु रग बत जो आपह पथ पर   खय खय कै ए भयो बीचह म जजा र। 

 ढहत हो य भवन जीव को यह वरआई ,

 प  वा कमा अनु सर बसे हम जम आई ,

 जके रन स कश कछु हम ह पवत ,

 स  झत है यह हम दीठ नज जबै उठवत  

 सु भत कब होय घोर तम पु ं ज नसई ,

 सु ं दर , स धो सु गम मगा कत त नै जई।'

 योगी बोले हर ' पथं है यहै हमरो ,

 चलह यपै अं त तइू सहह द:ुख सरो। 

 जनत यत सु गम मगा यद हो , बतओ  

 नतो बस , आनं द रहौ , इत यन न लओ।'

 बढयो आगे खमन सो दे ख कै यह बत ,

 मृ यभुय नर करत ऐसो भय करत भय खत। 

 ीत जीवन स करत य ीत करत सकत ,

 करत कुल तह , तप क सहत सू सत गत। 

 करन चहत स य वध दे वगणह रझय ,

 सकत दे ख स मनव सृ जो नह , हय! 

 चहत नरकह य  न करबो नरक आप बनय।  मत तप उमद म ये रचत मु  उपय! 

 बोल उठयो सथा 'अहो! वनकुसु म मनोहर! 

 जोहत कोमल खले मु खन जो उदत भकर ,

 योत पय हरषय ससौरभ सं चरत ,

 रजत , वणा, अणभ नवल परधन स ूवरत ,

7/14/2019

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 तु म म ते कोऊ जीवत नह मटी कर डरत ,

 नह अपनो हठ प मनोहर कोउ बगरत। 

 एहो , तल! वशल भल जो रो उठई ,

 चहत भे दन गगन , पयत सो पवन अघई ,

शीतल नीरध नील अ ंक जो आवत परसत   मं जु मलयगर गधंभर भर म ंद मं द गत।  जनत ऐसो भे द कौन जस हे य ु म! 

अं कुर त फलकत तइू हौ रहत तु  तु म ?

 पं ख सरीखे पतन स ममा र धवन कत ,

अहस स हू सत हू सत तु म जग म बत। 

 तडरन पै बहरनहरे, हे बहं गगन! 

शु क , सरक , कपोत , शख , पक , कोकल , खं जन  

 तरकर नज जीवन को नह तु मू करत हौ ,

अधक सु खन क आस मर तन मन न मरत हौ। 

 पै णन म े  मनु ज जो बधत तु ह गह ,

 नी बोलत रपत बच पोसी मत लह। 

 सोइ बु  लै ह वृ  ये नर बते र े

आमलशे दै बे म नन भू तन केरे। 

 कहत य भु शै लतट पथ धरे गे कछु द  र।  खु रन के आघत स तहू उठत दे खी ध  र। 

 झु ं ड भरी भे  छेरन को रो है आय ,

 ठमक पछे द  ब पै कोउ दे त मु खै चलय। 

 जतै झलकत नीर , ग  लर लसी लटकत डर  

7/14/2019

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 लपक तक ओर धव छू  पथ ै चर ,

 जह बहकत लख गरयो उठत है चलय   लकुट स नज हू क पथ पै फर लवत जय। 

 लखी भु इक भे  आवत यु गल बन सं ग ,

 एक जनम नै रो है चोट स अत प ंग। 

 छट पछे जत , रह रह चलत है लू गरत ,

थके नह पू व सो है र बहत च ुचत। 

 ठमक हे रत तह फर फर तसु जनन अधीर ,

 बत आगे बनत है नह दे ख शशु क पीर। 

 दे ख यह भु लयो ब ल ूगरत पशु ह उठय ,

 लद लीन कंध पै नज करन स सहरय  

 कहत य ' हे ऊणा दयन जनन! जन घबरय ,

 दे त ह पू चय यको जहू ल त जय।  पशु  क इक पीर हरबो ग ुनत ह म आज  

 योग औ तपसधन स अधक शभु को कज।'

 ब चरवनहर दश भु बर ब  झी बत  

' जत ऐसी ध  प म कत लए इनको , त ?'

 दयो उर सबन 'आ मली है यह आज ,

 मे ष अज सौ बीछ कै लै चलौ बल के कज। 

 दे वप  जन रत करह महरजधरज। 

 होत ह य हे तु नृ प के भवन नन सज।'

' चलत हम'ू बोल य भु चले धीरज लय  

ध  प म व सं ग तनके पशु ह गोद उठय। 

7/14/2019

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 वे दकणक ध  र छए भल पै दरसत ,

 लगी पछे जत रह रह भे  सो ममयत। 

कस गौतमी 

 चलत य सब जय पू चे एक सरत तीर।  मली तणी एक खं जननयन धरे नीर।  लगी भु स कहन य कर जोर करत णम  

" तु ह चीहत ह भु! त ुम सोइ कणधम  

 जो धरयो धीर मोको व कुटी म जय   जहू इकली शशु लए म रही दनन बतय। 

 रो फलन बीच घ  मत एक दन सो बल ,

 रो ढग नह कोउ , लपटयो आय कर स ल। 

 लयो खे लन तह लै सो मर ब कलकर ,

 क दु हरी जीभ वषधर उो दै फुफकर। 

 हय! पीरो परो वको अं ग सब छन मह ,

 गयो हलबो डोलबो , थन धरयो मु ख म नह  

 कहन लयो कोउ यको वष गयो अब छय ,

 कोउ बोयो ' सकल यको नह कोउ बचय।'

 कतु कैसे बनै खोवत णधन नज , हय! 

 झ फ   ू क करय , दे वन थक सकल मनय। 

 कए जतन अने क खोलै ऑख सो शशु फेर ,

 मु दत ' मय ' पु कर बोलै कछुक मो तन ह ेर। 

 गु यो म नह सपा को है दशं अधक करल ,

 नह अय क को है नेकु मे रो लल। 

7/14/2019

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 ठन यस बै र कहे सू प लै है न ?

 खे ल म य यह डसहै, जन बल अजन ?

 को कोउ ' बसत गर पै स एक महन ,

 जय त ढग दे खु तौ कर सक कछु कयन।'

 सु नत धई पस , भ!ु तव वकल कंपतगत ,

 द दशा न पय परयो पु लक पद जलजत। 

 बलख शशु तहू डर , दीनो तसु मु खपट टर ,

' करय कछु उपचर ' भ!ु य वनय कनी हर। 

 करी मोपै दय भगवन!् नह टरयो मोह   परस शशु भरी नीर नयनन को मो तन जोह  

' हे भगन! जनत जतन जो म दे त तोह सु नय ,

 उपचर ते रो और ते रे शशु  को नै जय ,

 पै सके जो त लय जो म दे त तोह बतय , है कहत जो कछु वै  रोगी दे त तह जु टय। 

 मू ग घर स क के दे लल सरस लय ,

यन रख य बत को त जहू मू गन जय   ले य व घर स न त जहू मरो कोऊ होय - 

 पत , मत , बहन , बलक पु ष अथव जोय। 

 दे य सरस लय ऐसी उठै तो तव बल ,

 कह मोस रही भु वर बत यह व कल '

 को मृदु मु सु कय भ ु' हे कस गोतम! तोह  

 कही म ने रही ऐसी बत , सु ध है मोह। 

 मली सरस तोह ऐसी कतू दे य बतय।'

7/14/2019

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 बलख बोली नर सो भगवन के गह पय  

 मरे शशु ह गर ब ूध फरी म सकल म वन ,

 र र पै मू गी सरस धीर धर मन।  मू गत जस जय दे त सो मोह ब ुलई।  दीनन पै तो दय दीन जन क चल आई। 

 पै जब प  छत ' मरयो कबू कोऊ तु हरे घर - 

 मत,ु पत , पत , पु  , बंध,ु भगनी व दे वर ?'

 कहत चकत न ै' बहन! कह यह कहत अजनी ,

 मरे न जने कत,े जयत तो थोरे नी।'

 सरस तनक फेर जय ज ूचत पु न औरन ,

 पै सब यही प कहत कछु उदसीन मन  

' सरस तो है कतु मरो है मे रो भई।'

' सरस है पै पत दीनो चल मोह बहई।'

' सरस है पै बोयो जने सो है नह। 

 कटन को जब समय , गयो चल सु रपु र मह।'

 मयो न ऐसो मोह कोउ घर , हे भु नी! 

 कबू न होवै मरो जहू पै कोऊ नी। 

 नदी कनरे नरकट के व झपस मह   दीनो म शशु डर हू सत बोलत जो नह। 

 तव पू यन ढग फेर , भो! बनवत ह आ ,

 सरस मलहै कहू दे  , भ,ु यहौ बतई।'

 बोले भ ु' जो मलत न तो त हे रत हरी ,

 पै हे रत म लह एक कटु औषध भरी। 

 कली लयो नज शशु ह महन म सोवत ,

7/14/2019

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 दे खत है त आज सबै सोई द:ुख रोवत। 

 सब पै जो द:ुख परत लगत हओ जग मह ,

 बतन म बू टी लगत एक को गओ नह। थमै तहरी ऑसु दे ू तो रह गरी ,

 पै नह जनत ममा मृ यु को कोउ नर नरी ,

 े ममधु री बीच द ेत जो कटु वष घोरी ,

 जो नत बल के हे तु नरन लै जत बटोरी   फलन स लहलही वटक बीच नकरत - 

 म  क पशु न इन लए जत य , लखौ , हू करत! 

 खोजत ह म सोइ रहय , भगनी मे री! 

 लै अपनो शशु जय य क त व केरी।'

यबलदशान 

 पशु पलन सं ग वेश कयो प ुर म भु दे खत दे खत जय ,

 ढर कंचन सी करन रव क जहू सोन को नीर रह झलकय  

 सब बीथन म पु र क परकै परछई रही अत दीरघ नय ,

 पु रर के पर जहू तहर खे ब दीरघ दं ड उठय। 

 पशु लै भु को तन आवत दे ख दयो पथ सदर मौनह धर। 

 सब हट क बट म ब ैठनहर लई बगरी नज वतु न टर!  झगरो नज रोक कै गहक औ बनय रहे मृ दु प नहर।  कर बीच हथौो उठय लु हर गयो रह नह सयो घनमर। 

 तनबो तज तक जु लह रह,े ब ले खक ले खन हथ उठय। 

 गनबो नज पै सन को चकरय गयो सु ध खोय सरफ भु लय। 

 नह अ क रश पै कक ऑख , रहे सु खस मलसू  चबय। 

 मटक पर धर चली पय क बह , वल रहे भु पै टक लय। 

7/14/2019

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 पु रनर जु री ब ब  झत ह ' बल हे तु लए पशु को यह जत ?

शु च शं तभरी मृ दु त मु ख पै, अत कोमल म ंजु मनोहर गत। 

 क जत कह इनक ? इन पए कहू अत सु ं दर नै न लजत ?

 तन धर अनं ग कधौ मघव यह जत चलो गत म ंद ललत ?

 कोउ भखत ' ससोई यह जो तन योगन सं ग बसै गर पर '। 

 भु जत चले नज पथं गहे मन मह बचरत यह कर - 

'भटक नर भ े समन , अहो! इनको नह कोउ चरवनहर ,

 सब जत चले उत अधं भए बल हे तु खची जत है जमधर।'

आय नृ पत स कही एक भु को आवत स ुन  

'आवत ह तव य मह , भ!ु एक मह म ुन।'

 यशल म बसत नृ प , बधूो बं दनवर ,

शु पट धर करत ण म ं को उर।  दे त आत जत ह मल सकल बरंबर।  मयवे दी बीच धधकत अ धऑुधर। 

 गधंकठन सो उठत लौ जसु जीभ लफय ,

 खत बल , धधुआुत रह रह धर घ ृत क पय ,

भखत बल सह सोमरस जो पय इं अघत ,

अशं दे वन को सकल तन पस पू चत जत। 

 बधो बलपशु के धर क लल गी धर   बछी बल बीच थम थम बहत व ेदी पर। 

 लखौ अज इक बे सगन को खो ममयत ,

 म   ू ज स गर कसो जको य  प म दरसत। 

 तन तके कंठ पै करवल अत खरधर  

7/14/2019

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 एक ऋवज् लयो बोलन म ं वध अनु सर - 

' हण यको करौ तु म , हे दे वगण , सब आय  

 यबल शभु बबसर नरेश को हरषय। 

 हो आज स लख जो र रहे बहय।  जरत पल त वप क यह गधं ले  अघय। भ  प को मम अशभु यक ेसीस पै सब जय। 

 हनत हौ अब यह , ले व भग सु रगण आय।'

आय ठे भए नृ प ढग बु  भु तकल  

 बरज बोले ' यही मरन दे  न , नरपल! 

 जय बलपशु पस बधंन तु रत दीनो खोल ,

 ते ज स दब रहे सब , नह सयो कोऊ बोल। 

 कहन पु न भगवन् लग े' ग ुनौ , नृ प! मन मह ,

 लै सकत ह ण सब , पै दै सकत कोउ नह। 

िु  कैसउ होय यरो होत सबको न।  नह तको तजन चहत कोउ अपनी जन। 

 है अम  य सद जीवन , यद दय को भव ,

 सबल नबा ल दोउ पै है वदत जसु भव। 

अबल हत कर दे त कोमल जगत क गत घोर ,

 सबल को लै जत है सो े पथ क ओर। 

 चहत दे वन स दय नर होत नदा य आप ,

 दे व सम नै पशु न हत इन , दे त इन को तप। 

 जगत म ह जीव जे ते सबै एकह गोत ,

े  है सो जीव जको न ऐसो होत। 

7/14/2019

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 रहत जो वस प,ै ऊन दै तृ ण खत ,

 दीन जीवन सं ग ऐसे करत ह नर घत! श सरे कहत केते नर शरीर बहय  

भोग पशु खग योन पु न नरदे ह पवत आय। 

अकण सम जीव पर भवच फेरो खत ,

 कबू दमकत नखर कै औ कबू लपट वत। 

 य म पशु हनन नय पप ह,ै नररय! 

 जीव क गत रोकबो य भ ूत है अयय। 

 जीव श ु न नै सकत है र स जग मह।  दे वगण भले ह यद तु  नै ह नह! 

 र ह यद , सकत कैसे तह हम बहरय  

 दीन ग   ू गे पशु न को इन मर र बहय ?

 करत नर जो पप नन भू त कमा कमय   तसु फल तल भर न सकहै पशु न के सर जय।  करत जो ह सोइ भोगत और कोऊ नह। 

 व को ले खो भरत सब रहत जीवन मह ,

 होत जीवन मह ज ैसे कमा, वचन , वचर  

 गत भली व बु री पवत तह के अनु सर।  नय है यह नयम अ ंतररहत औ अवरम। 

 कहत भवी जह सो है कमा को परणम।'

 सु नत दय स भरी खरी बनी भु केरी   ररूगे कर ढू प रहे ज इकटक हे री।  सदर सहम नृ पल खे कर जोर अगरी।  लगे कहन भु फेर सबन क ओर नहरी - 

'धरधम यह कैसो सु ंदर होतो , भई! 

7/14/2019

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 जो रहते सब जीव े म म बू ध गर लई ,

 एक एक धर खत न जो कर जतन घने रो ,

 होत नरमख रहीन भोजन सब केरो। 

अमृ तोपम फल , कनक सरस कन , सग सलोन े

 सब हत उपजत जो , दे खौ , सब थल सब कोन।े'

 सु न यह सरी बत सहम सबही सर नयो ,

 दय धमा को भव सबन पै ऐसो छयो  

 ऋवज् सब दई अ इत उत बगरई , बल को खू ो दयो हथ स द  र बहई। 

 द  जे दन नृ प दशे मह डी फरवई ,

 शल पटल औ खभंन पै यह दयो खु दई - 

 महरज ह करत आज य वध अनुशसन -  यन म बल हे तु और करबे हत भोजन  

 होत रहयो वध ववध पशु न को अबल घर घर ,

 पै अब स नह र बहवै कतू कोउ नर। 

 जीव सबै को एक , न हत जीवन सरो। 

 दयवन् पै दय होत नय यह धरो।'

थल थल पै शभु शलले ख यह सोहत सु ंदर। 

 व दन स उत गं गतट के रय दशे भर , जहू जहू भु घ  म दय को मं  सु नयो ,

 पश,ु पं छी , नर बीच शं त सु ख प  रो छयो। 

 भु क ऐसी दय रही तन सब पै भरी  

 णवयु जो ख च रहे चल जीवन धरी ,

 सु ख द:ुख के जो एक स   म बूधो बे चरे,

 जग म नन जतन करत जो पच पच हरे। 

7/14/2019

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 जतक म है लखी कथ यह एक पु रनी -  प  वा जम म रहे ब ु इक ण नी। 

 बसत बीच दल म के मु ं डशल पर। भरी स  खो एक बर पर गयो दशे भर। 

 ढू पे न ढे ल,े खे त बीच ही धन गए मर ,

 घस , पत , तृ ण , लत गु म म ुरझय गए जर। 

 तल तलै यन को सरो जल गयो सु खई।  पशु पं छी जो बचे वकल नै गए परई। 

 स  खे नर ेक ेतट पै भु जय एक दन   परी कू करन पै दे खी इक भ  खी बघन। 

धू से नयन नै योतहीन , हू फत मु  ू ह बई ,

 दन स ब जीभ द  र क बहर आई। 

 पसु रन स सट रो चमा चत , य छपर  

 ब ूसन बच धू स रहत होय वषा स जजा र।  वकल िधु स शवक ै थन पै मु  ू ह लई। 

 ख च ख च रहे हर , ब   ू द नह मु ख म जई  

 छटपटत नज शशु न दे ख जननी सर नई   सरक और तन ओर ने ह स चटत जई।  रही भ  ल नज भ  ख ने ह के आगे सरी! 

 गजा न नह रह गयो , बलख ू करत गर फरी। 

 दे ख दश यह तसु भ  ल भु अपनो तन मन   कण क नज सहज बन वश लगे सोचन  

' कैसे बन क हयरन क करौ सहई ?

 केवल एक उपय परत है मोह लखई। 

7/14/2019

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 मं स बन दन डबत ही ये तीनो मरह,

 ऐसे मलह कौन दय जो इन पै करह। 

 जह र क यस , मं स क भ  ख सतवत  

 तनपै जग म दय नह क को आवत। 

 यके समु ख डर दे ू जो म अपनो तन   मोह छू  नह हन और क क य छन। अपनी तो हन नह कछु मोह दखती   जीवन त नज ने ह नबहौ जो य भू ती। 

 य कह अपनो उरीय उणीष बहई।  उतर कररे स बघन ढग पू चे जई। 

 बोल े' लै यह , मत!ु मं स ते रे हत आयो।'

भ  खी बघन झपट तह तहू तु रत गरयो। 

 कुटल नखन स तन बदर , मु  ू ह दयो लगई ,

 बोर र म दू त मं स सब गई चबई। 

 हसत करल , स व पशु क जई  

 भु के अं तम े म उससन मह समई। 

 रो भु को सद यही भूत दय उदर।  बरज पशु बल ब ु कनो दयधमा चर।  जन भु को रजकुल औ यग अमत अपर   बबसर नरेश कनी वनय य ब बर - 

' रजकुल पल , रहे ऐसे कठन नयम नबह। 

धरत जो कर रजद ंड न भीख सोहत तह। 

 रहौ मे रे पस चल , नह मोह कोउ सं तन। 

 ज जब ल त ुम सखओ ज को मम न। 

 करौ तु म मम भवन सु ं दर बध सहत नवस।' को दृ  सं कप नज सथा होय उदस - 

7/14/2019

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' रही मोको वतु ये सब सु लभ , नृ पत उदर! 

 सय पथ क खोज म ह तयो सब घर बर। 

 खोज ह और रहह तह क चत लय ,

 नह थमह इं को भवन जो मली जय।  ले न आवौ असर मोह रमं डत र   कतु नज सं कप त न टर क कर। 

 जत ह म धमाभवन उठयबे हत जोह   गय के घन बनन म जहू बोध नै है मोह। 

 ऋषन को कर सं ग दे यो छन श पु रन ,

 कए नन भू त के त और लशे वधन ,

 सय क पै योत मोक मली अब ल नह ,

 योत ऐसी है अवस यह उठत है मन मह।  लो जो म तह तो प ुन पलट य थल आय  

 े म को फल अवस दै ह तु ह, हे नररय!'

 तीन बर दिण भु क करी नरपल ,

 वद दनी फेर सदर पू व पै धर भल। 

 चले भु उवव दश संतोष न कछु पय ,

 परो पीरो वदन तप स , दे ह रही झु रय। 

 पं चवग िभु सु न यह पस भु के आय   बत चौ रोकबो ब भू त य समझय - 

' बत है सब लखी य नह पत श उठय। 

 सु नौ , ु त के न स ब सक मु नू न जय। 

 न भखत जो हमरो नकं ड महन ्

िु  मनुष पयहै ब कहू तस न ?

7/14/2019

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  नय , सवा गत , सत् और चत् आनं द ,

अपरणमी , नवकर , नरीह , अज , न । 

 कहत ु त य , रग तज औ कमा को कर नश ,

अहं कर वम ु नै नपध वयं कश ,

 जीव बंधन कट मश: म मल जत। 

 व पौ तो तु म जनह सब बत ,

असत् ते सत् ओर कसैे जीव यह चल जय  

 लहत पु न चर शं त कैसे वषयं  वहय।' सु नी तन क बत भु च ुपचप सीस नवय  

भयो पै परतोष नह , चट दए पू व बय। 

षम सगा  बु चरत / षम सगा / भग -1 / एडवन अना ड / शुल  

तपशचाय 

 जहू बोध योत कश भइ थल वलोकन चहए  

 तो चल ' सहे रम ' स वय दश को जइए। 

 कर पर ग ंग कछर पू व पहर प धरए वही   जस नकस नीरंजन क पतरी धर बही। 

अब होत तके तीर चकरे पत के मअन तरे,

 हगट औ अं कोट क झीन को मरग धरे,

 पटपरन म क जइए जहू फगु फोर नगवली   चपती चटनन बीच पू चत है गय क शभुथली। 

 बलु ए पहरन और टीलन सो जो सु षम भरो  

 उवव को ऊसर कटीलो द  र ल फैलो परो।  लहरत तके छोर पै बन परत एक लखय है 

7/14/2019

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अत लहलहे तृ ण स रही तल भ  म जक छय है। 

 जु र कतू सोतन को वमल जल लसत धीर गभीर ह ,ै

 जहू अण , नील सरोज ढग वक सरसन क भीर ह।ै 

 कछु द  र पै दरसत तन बीच छपर फस के ,

 जहू कृषक ' से नम ' के सु खनद सोवत ह थक।े 

 जहू वजन वन के बीच बस भु यन धर सोचत सद  

 रध क गत अटपटी औ मनु ज क सब आपद ,

 परणम जीवन के जतन को , कमा क बती ली ,आगम नगम सं त सब औ पशु न क पी बी ,

 व श  य को सब भे द जहू स कत सब दरसत ह,

 पु न भे द व तम को जहू सब अं त म चल जत ह।  य भू त दोउ अ बच यह जीवन ढरत ह ै

 य मे घ स लै मेघ ल नभ इंधनु लख परत ह,ै

 नीहर स औ धम सो जु र जसु तन बन जत ह ै

 जो ववध रंग दखय कै पुन श  य बीच बलत है,

 पु खरज , मरकत , नीलमण , मनक छट छहरय कै,

 जो छीन छन छन होत अं त समत है कू जय कै। 

 य मस पै चल मस जत लखत भु वन म जम,े

 चतन करत सब तव को नज यन म ऐसे रमे,

 सु ध रहत भोजन क न , उठ अपरन म दे ख तह  

 रीतो परो है प वम एक कन है नह। 

 बन खत बनफल जह बलमु ख दे त डर हलय ह 

औ हरत श ुक जो लल ठोरन मर दे त गरय ह। 

 ु त मं द मु ख क पर गई , सब अं ग चत स दह,े

7/14/2019

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 बीस िलण मट गए जो बु  के तन पै रह।े 

 झ  रे झरत जो पत तहू जहू बु  तप म च  र ह,

 ऋतु रज के ते लहलहे पन स न एते द  र ह  जे ते भए भु भ ह नज प स व पछले  नज रज के जब वे रहे यु वरज यौवन स खल।े 

 घोर तप स छीन नै भु एक दन म ुरछय   गरे धरती पै मृ तक से सकल चे त वहय।  जन परत न सू स औ न र को सं चर। 

 परी पीरी दे ह नल परो रजकुमर। 

 कयो व मग स गरयो एक वही कल ,

 लयो सो सथा को तहू परो वकल वहल ,

 मु  ू दे दोऊ नयन , पीर अधर पै दरसत ,

ध  प सर पै पर रही मधयन क अत तत। 

 दे ख यह सो हरी जमु नडर तहू ब लय ,

 ग ूछ तनको छय मुख पै छू ह कनी आय।  द  र स मु ख म दयो दु ह उण द ध सकत - 

श   कैसे करै सहस छुवन को श ुच गत ?

 तु रत जम ुन डर पनपी नयो जीवन पय ,

 उठ कोमल दलन स गु छ , फल फल स छय ,

 मनो चकने पट को है तनो च वतन ,

 रूग बरंगी झलरन स सजो एक समन। 

 करी ब अजपल प  ज दे व गु न कोउ तह। 

 वथ नै उठ को भ ु' दे द ध लोटे मह।'

 को सो कर जोर ' कैसे दे ू कृपनधन ?

7/14/2019

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श   ह म अधम , दे खत आप ह, भगवन!्'

 को जगदरधय ' कैसी कहत हौ यह बत ?

 यचन औ दय नते जीव सब ह त। 

 वणाभे द न र म है बहत एकह रंग ,

अु म नह जत , खरो ढरत एकह ढं ग  

 नह जनमत कोउ दीने तलक अपने भल ,

 रहत कधूो पै जने ऊ नह जनमत कल। 

 करत जो सकमा सू चो सोइ ज जग मह , करत जो दु कमा सो है व ृषल , सशंय नह। 

 दे ह भै य! द ध मो को यग भ ेद वचर ,

 सफल नै ह , अवस ते रो होयहै उपकर।'

 सु नत भु के बचन ऐसे तु रत सो अजपल ,

 दयो   लोटो टर भु प,ै भयो परम नहल। 

 सु जत   बसत रो तहू एक नदीतट पै भ  वमी  

धमा वन,् धनधयप  णा, सु कृत औ नमी ,

 ढोर सहे न म   ू  जह , जो ययी नयक ,

आसपस के दीन दु खन को परम सहयक। 

' से न ' तसु कुलनम , म  ' से न ' ह बोलत  

 बस सु ख स जहू सो भर भर नत म  ठी खोलत। 

 रही सु जत नर तसु च रखनहरी ,

 पवती , ग ुणवती , सती , भोरी , सु कुमरी। 

 मत गत गौरवभरी , दय द:ुख लख दरसवत। 

 सब स मीठो बचन बोल परतोष बवत। 

7/14/2019

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आनन पै आनं द , चह चतवन म सोहत। 

 नरन म सो र , शील स जनमन मोहत। 

शं त सहत सुखधम बीच बतवत दन दोऊ ,

 द:ुख यद कोऊ रो , यहै संतत नह कोऊ। 

 करी सु जत लमी क प  ज ब भ ूती ,

 नय सया के मं दर म सो उठ कै जती। 

 कर िदण बर बर नज वनय सु नवत। 

ध  प , गधं दै फल औ नै व े चवत।  एक बर बन बीच जय कर जोर मनयो - 

" नै है यद , वनदे व! कू मे रो मनभयौ  

 यो य तवर आय फेर नज सीस नवै ह ,

 कनक कटोरे मह खीर अनमोल चै ह।" 

 सफल कमन भई , भयो इक बलक स ुदर। 

 तीन मस को होत तह नकसी लै बहर। 

 चली मं द गत , भ भरी , समी सज े

 नजा न वन क ओर जहू वनदे व वरजे। 

 एक हथ स थमे सरी के अं चल तर  

 बी सध को यरो अपनो शशु सो सु दर , द  जो कर म ुर उठयो सीस ल , रो सभूरी  

 कनक कटोरन सजी खीर जम सो थरी। 

 दसी रध गई रही पहले स व थल   वे दी झर बहर लीप करबे को नमा ल।  दौरत आई लगी कहन "है वमन मोरी! 

 गट भए वनदे व ले न प  ज यह ते री। 

7/14/2019

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 सित् तहू आय वरजत आसन मरे,

यन लय , दोउ हथ जनु के ऊपर धरे। 

 द योत दृ ग मह , अलौकक ते ज भल पर  

भ भव यु त लसत सौय शु च म  त मनोहर। 

 हे वमन! कलकल मह य सम ुख आई   बे भय स दे त दे व िय दखई।" 

 गु न तको वनदे व द  र स कर ब फेर,े

 कू पत कू पत गई सु जत तके ने रे। 

 करत दं डवत भ  म च  म बोली यह बनी - 

' हे वन के रखवर! दे व , अत शभु फल दनी! 

 दशा न दै य दय करी दसी पै भरी ,

 प पु प कर हण करौ भ!ु मोह स ुखरी '

 तव नम ब जतनन स यह खीर बनई ,

 दध कप  र सम े त आज भु समु ख लई।'

 कनक कटोरे मह खीर भु ढग सरकई  

 चं दन गधं चय , फलमल पहरई। 

 खन लगे भगवन् बचन मु ख पै नह लए ,

 खी सु जत द  र भ स सीस नवए।  ऐसो गु ण कछु रो खीर म, खतह वके 

 गई श भु क बरी , वे सु ख स छके। 

 प  रो बल तन मह गयो पु न ऐसो आई   त औ तप के दवस व से परे जनई। 

 तन म जब बल परयो च लयो फरकन ,

 ब ब वषयन ओर लयो छनत हत सरकन ,

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 जै से पं छी थको मथल क रज छनत   गरत परत जल तीर आय सहस बल आनत। 

 य य भु मु ख कं त मनोहर बत जत अत।  य य और खी सु जत है आरधत। 

 बोले भ ु' यह कौन पदरथ मो पै लई ?

 बोली सु न यह बत सु जत सीस नवई - 

' सौ गै यन को द ध थम दु हवय मू गयो ,

 लै पचस धौरी गै यन को तह खवयो ,

 तनको लै म द ध खवयो पु न पचीस चु न ,

 तन पचीस को पय बरह को म दीनो पु न ,

 तन बरह को द ध दयो पु न सब गु न ऑक  

 छ: गै यन को बीछ , रह जो सब म ब ूक। 

 दु ह तनको सो छीर ऑच पै मृ दु औटई ,

 तज , कप  र औ केसर स वध सहत बसई ,

 नए खे त स बसमती चवर मू गवई ,

 एक एक कन बीन धोय यह खीर बनई। 

भ भव स स ूचे, भ!ु म कनो यह सब। 

 करी मनौती रही होयहै मोह पु  जब   तब य त तर आय चै ह प  ज त ेरी ,

 नथ दय स सकल कमन प  जी मे री।'

भु वन उबरनहर हथ धर शशु के सर पर  

 बोले भ ु' सु ख बत तहरो जय नरंतर। 

 परै न यह भवभर जन य जीवन मह ,

 से व तु मने करी , दे व म कोऊ नह। 

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 म ू भई एक और जै से सब ते रे,

 पहले रजकुमर रो , अब डरत फेरे। 

 नश दन खोजत फर योत जो कतू जगत  

 लहै कोउ जो तह , मटै जग अधंकर अत। 

 पै ह म सो योत होत आभस घन ेरो ,

 त ने तन मन गरत सूभरयो भगनी! म ेरो। 

अत पु नीत सं जीवन पयस त यह लई ,

अपने जतनन ऐसी जीवनश ज ुटई ,

 ब जीवन बच होत गई जो बटुरत , बत ,

 लहत जम ब गहत जत य जीव उ गत। 

 जीवन म आनं द कह सू च त पवत ?

 गृ हसु ख म जन म और कछु मनह न लवत ?'

 सु न सु जत दयो उर ' सुनौ , हे भगवन!् 

 नर को यह दय छोटो , नह जनत आन। 

 नह भीजत भ  म जे तो म ह थोरो पय  

 नलनपु ट भर जत ह,ै लख उठत है लहरय  

 चह बस सौभयरव क रह आभ हे र  

अमल पतमु ख कमल म, मु सकन म शशु केर। 

 यहै जीवन को हमरे, नथ! है मधु कल ,

 मगन रखत मोह तो घरबर को जं जल। 

 सु मर दे वन उठत ह नत उवत दन , भगवन!् 

 हय धोय करय प  जन दे त ह कछु दन। 

 कज म लग आप दसन दे त सकल लगय। 

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 जत य मधयन न,ै पतदे व मे रे आय  

 सीस मे री जनु पै धर परत पू व पसर ,

 कर बीजन पस बस मु खच ं तसु नहर। आय जब घर मह भोजन करन ब ैठत रत   ठ परसत तह ं जन लय नन भू त। 

 रससं ग उठय ब कछु ब ेर ल बतरय   फेर सु ख क नद सोवत शशु ह अं क बसय। 

और सु ख अब कौन चहए मोह य जग मह ?

 रही भु क दय स कछु कमी मोको नह। 

 पु  दै नज पतह अब म भई प  रनकम ,

 जसु कर को पड लह सो भोगहै सु रधम। 

धमाश पु रण भखत , हरत जे परपीर ,

 पथक छय हत लगवत पे  जे पथतीर ,

 जे खनवत कप , छू त पु  जे कुल मह  

 सु गत लह ते जत उम लोक , सशंय नह  

 को थंन मह जो जो चलत ह सो मन ,

 सक म तन मु नन सो ब बत कैसे जन  

 होन समु ख रहे जनके दे वगण सब आय , गए जे ब मं  और पु रण श बनय ,

धमा को जे तव जनत रहे प  णा कर ,

शं त को जन मगा खोयो यग वषय वकर ?

 बत म यह जनती सब कल म सब ठौर  

भलो को फल शुभ बु रे को अशभु ह,ै नह और  

 लहत ह फल मधु र नीके बीच को सब बोय  

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औ वषै ले बीज को फल अवस कघवो होय। 

 लखत इत ही बै र , उपजत े ष स ज भू त ,

शील स म ृदु मत औ धरौय स शु च शं त।  जयह तन छू  जब तब कह नै है नह  

भलो व लोक म य होत है य मह ?

 होयहै ब कै कू- य परत है जब खे त  

धन को कन एक , अं कुर फ क सहसन दे त। 

 सकल चं पक को सु नहरो वणा औ वतर  

 रहत बदी सी कलन म लुको प  णा कर। 

 यहौ जन , परत ऐसी आपद ह आय ,

 छट जब सब धीरत मु  ू ह मोर जत परय। 

 जय जै से मर कू मम णय यह लल ,

 दरक मे रो हयो नै है टक ै तकल। 

 चहह तौ अवस ही ै टक सो नै जय ,

अं क म शशु दब यह व लोक जू सधय।  बट पत क रह तब ल जोहती तहू जय  अं त वक घरी जब ल नह पू चै आय। 

 कतु म ेरे समने परलोक जो पत जय ,

 चत पै म च वकौ सीस अं क बसय।  फ ल अं ग समू न जब अनल दहकै घोर ,

 उठै कु ं डल बू ध , छवै ध  म चर ओर। 

 लखी है यह बत , जो सहमरण करती वम  

 तसु पु यभव स पत लहत है सु रधम ,

 सं ग तके करत सु ख स तहू ववध वहर   वषा एते कोट तके सीस जेते बर। 

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 रहत मे रे हये चत क न कोऊ बत ,

 दवस जीवन के सद आनं द म चल जत। 

 कतु सु ख म लीन म नह भल तनको जत   पतत ह, जे दीन ह, द:ुख सहत जे दन रत। 

 यहै चह दय तन पै कर ी भगवन्,

भलौ जो बन परत मोस करत अपनी जन। 

 चलत ह म धमा प,ै वस यह मन आन। 

 होयहै जो कछु भलोई , होयहै नह हन। 

 कहत भ ु' सख सकल तोस जो सखवत आन को ,

 कथत भोरी बत स ते री अधक जो न को। 

 त भली जो नह जनत , मगन जीवन म रह,ै

धमा अपनो जन , बस त और नह जनन चह।ै 

 सहत परजन छू ह म सु ख क सद फलै फरै!  सय क खर योत कोमल पत पै य न परै।  बत बीरो जय यह ब लोक बीच पसर कै! 

अं त क जम म क जय यह भव पर कै। 

 मोह प  जन त चली , म तोह प  जत ह , अरी! 

धय ते री हयो नमा ल! धय तव गत मतभरी!  बु  लह , अनजने म शभु पथं त दरसवती ,

 य परेई े म के वश नी क दशी धवती। 

 होत तोह वलोक नर उर क आश सही ,

 म  ठ जीवन च क लख परत अपने हथ ही।  होय तव कयण सु ख म रह ते रे दन सन!े 

 कर म नज कज प  रो करत य त आपन,े

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 चहत यह आसीस जको दे व त जनत रही।'

' कज प  रो होय भु को ' सु न सु जत ने कही। 

 शशु बए हथ भु क ओर हे रत चव स।  करत बदन है मनो भगवन् को भर भव स। 

बोधमु 

 बल पय पयस को उठे भु डर पग व दश दए  

 जहू लसत बोधु म मनोहर द  र ल छय कए ,

 कपं त ल जो रहत ठो , कब नह मु रझत ह,ै

 जो लहत प  ज लोक म चरकल ल चल जत ह।ै 

 है होत आयो ब ुगण को बोध यही के तरे।  पहचन भु तकल तकौ ओर आपह स ढरे।  सब लोक लोकन   मह मं गल मोद गन सु नत ह। 

 भु आज चल व िअय त क ओर , दे ख , जत ह। 

 तक व त क छू ह जत जहू उनई डर वशल।  मं डप सम सज रो चकनो चमकत चल - दल - जल।  भु पयन स पु लकत प  जन करत अवन हरषय  

 चरणन तर ब लहलहत तृ ण , कोमल कुसु म बछय। 

 छय करत डर झु क बन क , मे घ गगन म छय। 

 पठवत वण वयु कमलन को गधंभर लदवय। 

 मृ ग , बरह औ बघ आद सब वनपशु ब ैर बसर  

 ठे जहू तहू चकत चह भर भु मु ख रहे नहर। 

 फन उठय नचत उमं ग भर नकस बलन स ल।  जत पं ख फरकय सं ग बरंग वह ंग नहल।  सवज डर दयो नज मु ख त चील मर कलकर। 

 भु दशा न के हे तु गलई कदत डरन डर। 

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 दे ख गगन घनघट मु दत य नचत इत उत मोर। 

 कोकल कजत , फरत , परेव भु के चर ओर। 

 कट पतं ग परम म ुदत लख , नभ थल एक समन  

 जनके कन , सु नत ते सगरे यह मृ दु मं गलगन - 

' हे भगवन!् तु म जग के सू चे मीत उबरनहरे। 

 कम , ोध , मद , सशंय , भय , म , सकल दमन करडरे। 

 वकल जीव कयण हे तु दै जीवन अपनो सरो  

 जव आज य बोधु म तर , भ,ु हत होय हमरो। 

धरती बर बर आसीसत दबी भर स भरी। 

 तु म हौ ब ु , हरौगे सब द:ुख , जय जयमं गलकरी! 

 जय जय जगदरधय! हमरी करौ सहय दु हई! 

 जु ग ज ुग जको जोहत आवत सो जतन अब आई।'

मरवजय 

 बै ठे भु व रैन यन धर जय वटप तर।  कतु मु पथ बधक नर को मर भयं कर  

शोध घरी चट पू च गयो तहू व करन को ,

 जन ब ु को करनहर नतर नरन को। 

 तृ ण , रत औ अरत आद को आ कनी ,

 से न अपनी छू तमसी सरी दीनी। 

भय , वचकस , लोभ , अहं त , िम आद अर ,

 ईषा, इछ , कम , ोध सब सं ग दए कर। 

 बल शु ये भु ह डगवन हत बते र े

 करत रत भर रहे व उपत घने रे। ऑधी लै घनघोर घट करी घहरई  

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 बल तमीचर अपनी अनी घरी चर दश छई। 

 गजा न तजा न करत , मे दनी कक कूपवत ,

 तमक करत चकचध चमचम व चलवत।  कबू कमनी परम मनोहर प सजई ,

 चहत लभुवन मन भवन म ृदु ब ैन सु नई। 

 डोलत धीर समीर सरस दल परस सु हवन ,

 लगत रसीले गीत कन म रस बरसवन।  कबू रजसु ख वभव समने तके लवत। 

 सशंय कबू लय ' सय ' को हीन दखवत। 

 दृय प म भ कधौ ये बत बहर ,

 कैधौ अनभुव कयो ब ु इनको अयं तर ,

आपह ले  बचर , सकल हम कह कछु नह। 

 लखी बत हम , जै सी पई पोथन मह। 

 चले सथी मर के दस महपतक घोर। 

 थम ' हम हम ' करत पू यो 'आमवद ' कठोर ,

 व भर म प अपनो परत जह लखय।  चलै तक जो कू यह सृ  ही नस जय। 

आय बोयो "ब ु हौ यद करो तु म आनं द। 

 जय भटकन दे  औरन , फरौ तु म वछंद। 

 गु न तु म हौ त ुमह , उठ कै मलौ दे वन मह ,

अमर ह, न  ह, जे करत चत नह।" 

 बु  बोले "कहत उम जह त , है नीच ,

 वथा म रत होयू जे बकु जय तनके बीच।" 

 पु न ' वचकस ' आई जो नह कछ सकरत। 

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 बोली भु के कनन लग हठ सशंय डरत  

" ह असर सब वत-ु सकल झ  ठो पसर ह-ै 

औ असरत को तनक न असर है। 

धवत है त गहन आपनी केवल छय। 

 चल , ू ते उठ! ' सय ' आद सबही ह मय। 

 मनु न कछु, क तरकर , पथ ह,ै यह बू को। 

 कैसो नर उर और भवच कहू को ?"

 बोले ी भगवन् "शु त रही सद ही , हे वचकस!े कज यहू तेरो कछु नह।" 

'शीलतपरमषा' परम मयवी आयो ,

 दशे दशे म जने ब पखं ड चलयो ,

 कमा कं ड औ तवन मह जो नरन बझवत ,

 वगाधम क कु ं जी बूधो फरत दखवत। 

 बोयो भु स "लु  कह त ु तपथ करह?ै

 दे वन को कर वद यमं डपन उजरहै?

 लोप धमा को करन चहत त बस य आसन ,

 यजक जस पलत , चलत दशेन को शसन  

 बोले भ ुतू कहत जह अनुसरन मोह है ,

िणभं ग ुर है प म , नह वदत तोह ह?ै

 कतु सय है नय , एकरस , अचल सनतन। 

अधंकर म भग,ु न ू त रहै एक छन। 

 दपा सहत कंदपा चयो पु न भु क ेऊपर ,

 जो सु रगण वश करत , बपु रो रहत कहू नर ?

 हू सत कुसु म धनशुयक लै प ूयो व त तर ,

 बधेत हय वषवशख स ब जसु पं च शर। 

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 चू ओर च प ुन चं मु खी अत चोप स चं चल नै न चलय। 

 रसरंगतरंग उठय रह , मधु रो सु र सज के सं ग मलय। 

 सु र सो सु न मन,ू मोहत नै रजनी थर सी परती दरसय ,

 नभ म थम तरक च ंद रह,े नवनगर गय रह समझय - 

धक! खोय रो नज जीवन तू तनीन को हस वलसवहय  

 यह स बकै सु ख और नह कोउ तीन लोकन मह लखय ,

 बगसे नव पीन पयोधर को परसै सरसे रस सौरभ पय ,

भर भव स भमन भौहू मरोर , चत,ै मु  ू ह मोर रहै मु सकय। 

 कुछ ऐसी लु नई लखत लली ललनन के अं गन मह ललम।  कह जत न जो मन जय ढरै उत आप उमं ग भरो अभरम।  सु ख जो यह भोगत ह जग म तनको यह लोकह म सु रधम।  यह के हत स सु जन अने क सझवत ह तन आठ यम। 

 फटकै द:ुख पस कहू जब कमन रखत है भु जपश म लय ?

 यह जीवन को सब सर लस उसस म दोउन के मल जय।  मृ दु च ुं बन पै इक चह भरे सगरो जग होत नछवर आय।  यही भू त अने कन भव बतय रह सब सु ं दर गय रझय। 

 मद क दु त नै नन म दरसै, अधरन पै मं द लसै मु सकन। 

 फर नचत म सु ठ अं ग सुढर छप उधर ललचवत न ,

 खल कै कछु मनू कंजकली लह बत झकोर लगै लहरन ,

 दरसवत रंग , छपचत पै मकरंद भरो हय आपनी जन। 

 यह रंग क पछट क घट उनई कबू नह दे ख पर   त पस कयो दल पै दल आय नवे लन को नश म नखरी। 

 ब एक स एक रसीली कह भु स  य! हे र जत मरी।  

अधरन को पन कर इन , लै यह यौवन को रस एकघरी।" 

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 डगे नह भगवन् जब कर यन नेक भ ंग ,

 तब चयो दप स उठ चप आप अनं ग।  लख परयो चट कमनीदल द  सरो चतचोर। 

 रही जो सब मह री बी भु क ओर।  चर प यशोधर को धरे पू ची आय ,

 सजल नयनन म बरह को भव मृ दु दरसय   ललक दोऊ भु जन को भगवन् ओर पसर  

 मं द मृ दु वर सहत बोली , भर उसस नहर - 

' कु  ू वर म ेरे! मरत ह म बनु तहरे, हय! 

 वगा सु ख सो कह,ू यरे! सकत हौ तु म पय  

 लहत जो रसधम म व रोहणी के तीर ,

 जहू पहर समन दन म कट रही अधीर। 

 चलौ फर , पय! भवन , परसौ अधर मे रे आय ,

 फेर अपने अं क म इक बे र ले  लगय। 

भ  ल झ  ठे व म तु म रहे सब कुछ खोय।  जह चहत रहे एतो , लखो ह म सोय। 

 को भ ु' हे असत् छय! बस न आगे और। 

 था ते रे य और उपय ह य ठौर।  दे त ह नह शप व य प को कर मन।  कमपन! जह धर त हरन आई न। 

 कतु ज ैसी त , जगत् को दृय सब दरसय। 

 की जहू स भगु वही श  य म मलु जय।'

 कत ही ये वचन छयप सब छन म ूह  

 उ गयो चट ध  म न,ै तहू रह गयो कछु नह। 

अधं घन उठय , ऍधोर नभ म छए ,

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भरी पतक और और सब भु पै आए। 

आई ' तघ , कट म करे अह लपटई ,

 दे त शप जो तनके ब फुफकर मलई। 

 सौय दृ  से भु क मर तक बोली ,

 मु ख म करी जीभ कल सी उठ न डोली।  भु को कछु कर सक नह सब वध स हरी।  करे नग रहे समट फन नीचे डरी। 

' परग ' पु न आयो जके वश नरनरी  

 जीवन को कर लोभ दे त जीवनह बगरी। 

 पछे लगो 'अपरग ' ू पू यो आई  

 दे तर् क क लस जो मन मह जगई ,

 बधुजन पर जत जल म जके जई ,

 ब म सहस करत , लरत रणभ  म कूपई। 

आयो तन अभमन , चयो 'औय ' फेर ब  

 जस धम गनत लोग आपह सब स ब। 

 चली 'अव ' अपनो दल बीभस सं ग कर ,

 कुसत और वप वतु स गई भ  म भर।  परम घनौनी बी डोकरी ब  ी सो जब  अधंकर अत घोर छय सब ओर गयो तब। 

 वचले भ धर , उठी भं जन स हल यमन ,

 छू ी म  सलधर दरक घन , दमक दमन। 

भीषण उकपत बीच मह क ूपी सरी   खु ले घव पै तके मनो परी अ ंगरी। 

 व ऍधयरी मह भयो पंखन को फरफर ,

7/14/2019

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 चीकर सु न परयो , प लख परे भय ंकर। 

 े तलोक त दल क दल च स ेन आई ,

 भु ह डगवन हे तु रही सौ ठ लगई। 

 कतु डगे नह ने कु बु  भगवन् हमरे।  य के य तहू रहे अचल दृ  आसन मरे। 

 लसत धमा स रित चर दश स भ ुवर ,

 ख , कोटन बीच बसत य नडर कोउ नर। 

 बोधद ु् रम अचल रो व अधं मह , हयो न एकौ पत , ढरे हमबदु  नह। 

 बहर सब उपत व नै रहे भयं कर   कतु शं त अत छय रही तक छय तर। 

अभसबंोधन 

 बीतत पहलो पहर मर क से न भगी। 

 गई शं त अत छय , वयु मृ दु डोलन लगी। 

 भु न े' सयक् दृ  ' थम यमह म पई ,

 सकल चरचर क जस गत परी लखई। 

' प  वा नु मृ त न ' द  सरे पहर पय पु न  

 जतमर नै गए प  णा भगवन् शयमुन। 

 तु रत सहे न जमन क सु ध तनको आई , जब जब जमे जहू जहू जन जोनन जई! 

 य फर पछे कोउ नहरत दीठ पसरी  

 बत द  र चल पू च शखर पै गर के भरी ,

 दे खत पथ म परे मोह कैसे कसैे थल! 

 ऊूचे नीचे ढह , खोह , नरे औ दलदल ,

7/14/2019

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 बीह वन घन , दे ख परत जौ समटे ऐस े

 मह अं चल पै टूक हरी चकती है ज ैस,े

 गहरे गहरेर् ग गो जन मह पसीनो ,

 जनस नकसन हे तु सू स भर भर म कनो ,

 ऊूचे अगम कगर छुटी झ जहू चतह  

 खसलत खसलत पू व गयो ब बर जहू रह ,

 हरी हरी द  बन स छए पटपर सु ं दर ,

 नमा ल नझा र , दरी और अत सभुग सरोवर ,

औ धु  धूले नग अं चल समतल जनपै जई   लपयो पू चन हे तु नीले नभ कर फैलई।  ब जमन क दीघा शृ ं खल भु लख पई। 

 म म ऊूची होत चली सीी सी आई ,

अधम वृ  क अधोभ  म स चत नरंतर  

 उ भ  म पै पू ची नमा ल , पवन सु ं दर ,

 लसत जह ू' दश शील ' जीव को लै जै बे हत  

अत ऊूचे नवा णपथं क ओर अवचलत। 

 दे यो पुन भगवन् जीव कैसे तन पई   प  वा जम से जो बोयो कटत सो आई।  चलत द  सरो जम एक को अं त होत जब  

 जु रत म  र म लभ , जत क खोयो जो सब। 

 लयो जम पै जम जत य य बहत ह 

 बत पु य स पु य , पप स पप जत ह। 

 बीच बीच म मरणकल क ेअं तर मह ,

 ले खो सब को होत जत है तुरत सदह। 

7/14/2019

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 य अच  क ले खे म बदु  छटत नह ,

 सं कर क छप जत लग जीवन मह।  य वध जब जब नयो जम णी ह पवत  

 प  वा जम के कमा बीच सू ग लीने आवत। 

भई 'अभ '  तीसरे पहर भु ह पु न ,

 पयो 'आय न ' तबै भगवन् शय मुन। 

 लोक लोक म दृ  तसु जब पू ची जई   हतमलक समन व सब परयो लखई। 

 लखे भु वन पै भु वन , स  या प ैस  या करोरन ,

 बधूी चल स घ  मत लीने अपने हगन  

 य हीरक के ीप नीलमण , अं ब ुध मह ,

ओर छोर नह जसु, थह कू जक नह ,

 बत घटत नह कब,ू िु ध जो रहत नरंतर ,

 जम पतरंग उठत रह रह छन छन पर। अमत भकर पड कए भु य अवलोकन ,

अलक स   स बू ध नचवत जो ब लोकन ,

 करत परम आपू अपने स ब केरी ,

 सोउ अपने स महयोत क डरत फेरी।  परंपर यह जगी योत क भु ह लखनी  

अमत , अखं ड , न अं त सकत कू जको मनी। 

 लगत क सो जो सोऊ है डरत फरेे,

 बत च पै च गए य वध बते रे  द दृ  स दे यो भु लोकन को यवत् अपनो अपनो कलच जो घ  म पु रवत। 

7/14/2019

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 महकप व कप आद भर भोग पु रई ,

 योतहीन न,ै छीज , अं त म जत बलई। 

 ऊूचे नीचे चर दश भु डरयो छनी ,

 नीलरश सो लख अनं त मत रही भु लनी। 

 सब पन स परे, लोक लोकन स यर,े

और जगत् क णश स द  र कनरे,

अलख भव स चलत नयत आदशे सनतन ,

 करत तमर को जो कश औ ज को च ेतन ,

 करत श  य को प  णा, घटत अघटत को जो ह ै

औ सु ं दर को और सु ं दर कर जग मोहै। 

 य अटल आदशे म कू शद आखर नह।  नह आ करनहरो कोउ य वध मह।  सकल दे वन स परे यह लसत नय वधन  

अटल और अकय , सब स बल और महन।् 

श यह जग रचत नसत , रचत बरंबर ,

 करत ववध वधन सब नज धमा वध अनु सर। 

 सगा मु ख गत मह जके ग ुण ह बलगत ,

 रजस् स नै सव क दश लय जसु लखत। 

भले व ेई चल जे य शगत अनु कल।  चल जे वपरीत वे ई करत भरी भ  ल। 

 करत कट भलो अपनो जतधमा पु रय ,

 बज नीको करत ग ेदन हत लव लै जय। 

 मल परपर वपु ल ववधन म दै योग  

ओसकण उडुगण दमक नज करत प  रो भोग। 

7/14/2019

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 मरन हत जो मनु ज जीयत , मरत पवन हे त  

 जम उम , चलै सो यद धमा पथ पग दे त ,

 रहै कमषहीन , सब सं कप दृ  वै जयू,

 बे छोटे जहू ल भव भोग करत लखयू  करै तनको पथ सु गम नह कबू बध दे य।  लोक म परलोक म सब भू त य यश लेय। 

 लयो चौथे पहर भु पु न ' द:ुखसय ' महन ्

 पप स मल घोर कटु जो करत ववधन , चलत भथी मह जै से सी लग लग जय   जत दहकत आग जस बर बर वय। 

'आया सयन ' मह जो यह ' द:ुखसय ' धन ,

 पय तसु नदन दे यो यन म भगवन ्

 द:ुख छयप लयो रहत जीवन स ंग  

 जहू जीवन तहू सोऊ रहत क ढं ग। 

 छुटै सो नह कबू जौ ल , छुटै जीवन नह  

 नज दशन समे त पलटत रहत जो पल मह - 

 छुटै जब ल यह स और कमा वकर ,

 जत , वृ  , वनश , सु ख , द:ुख , रग , े ष अपर  

 सु खसमवत शोक सब और द:ुखमय आनं द  

 छुटत नह , नह होत जब ल न ' ये ह फदं।'

 कतु जनत जो 'अव के सबै ये जल '

 यग जीवनमोह पवत िमो सो तकल। 

 पक तक दृ  होत सो लखत आप तब  

 यह 'अव ' स जनमत ह ' सं कर ' सब ,

7/14/2019

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' सं कर ' स उपजत ह ' वन ' घने र े

' नमप ' उप होत जनस बते रे। 

' नमप ' स ' षडयतन ' उपजत जको लह  

 जीव ववश नै दपा ण सम ब दृय रहत गह। 

' षडयतन ' स फेर ' व ेदन ' उव पवत  

 जो झ  ठे सु ख औ दण द:ुख ब दरसवत। 

 यहै व ेदन व ' तृ ण ' क जनन पु रनी  

भवसगर म धू सत जत जके वश नी , चल तरंग बच खरी तके रहत टकई  

 सु ख सं पत , ब सध , मन और् क , बई ,

 ीत , वजय , अधकर , वसनसु ं दर , ब ं जन ,

 कुलगौरव अभमन , भवन ऊूचे मनरंजन  

 दीघा आयु कमन तथ जीबे हय स ंगर , पतक सं गरजनत , कोउ कटु, कोऊ चकर। 

 य वध तृ ण ब  झत सद इन घ   ू टन पई   जो वको कर द  नी और दे त बई। 

 पै नी ह द  र करत मन स य तृ णह ,

 झ  ठे दृयन स इंन को त ृ करत नह। 

 रखत मन दृ  वचल न क ओर डुलवत  

 करत जतन जं जल नह , नह द:ुख पू चवत  

 प  वा कमा अनु सर परत जो कछु तन ऊपर   सो सब ह सह ले त अवचलत च नरंतर। 

 कम , ोध , रगद दमन सबको कर डरत ,

 दन दन कर कै छीन यह बध तनको मरत। 

7/14/2019

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अं त मह य प  वा जम को सर भरमय ,

 जम जम को जीवम को जो सब स ंचय - 

 मन म जो कुछ ग ुयो और जो कनो तन स ,

अहभंव को जटल जल जो बयो ज ुगन स  

 कल कमा को तनो बनो तन अगोचर - 

 सो सब कमषहीन शु नै जत नरंतर। 

 फर तो जीवह धरन परत नह दे हह य तो  अथव ऐसो वमल न तको वै जतो। धरत दे ह जो फेर कतू नव जमह पई   हओ नै भव भर तह नह परत जनई। 

 चलत जत आरोहपथ पै य कर स  

 मु  ' कंधन ' स छटत मयतप स  

 उपदन के बधंन औ भवच हटई  

 प  णा  नै जगत् मनो द:ुव बहई ,

अं त लहत पद भ  पन स , सब दे वन सो ब। 

 जीवन क सब हय मट जत द  र क। 

 गहत मु  शभु जीवन , जो नह य जीवन सम ,

 लहत चरम आनं द , शं त , नवा ण श  यतम। 

 नवकर अवचल वरम को यहै ठौर ह,ै

 यहै परम गत , जको नह परणम और ह।ै 

 इत बु  ने सं बोध पई गट उत ऊष भई। 

 ची दश म योत अभनव दवस क जो जग गई ,

 सो जत सरकत यमनीपट बीच करे ढर रही ,

भगवन् क य वजय क म ृदु घोषण सी कर रही  

7/14/2019

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 नव अण - आभ रेख अब धधूले दगं चल पै की।  नभनीलम य य नखर कै जत ऊपर को बी  

 य य सहम कै शु अपनो ते ज खोवत जत है,

 पीरो परो , फको भयो , अब लु  होत लखत ह।ै 

शभु दरस दनकर को थम ही पय नग छयसन े

 कर परंगा- करीट - भ  षत भल सोहत समन।े 

 सं चरत त समीर को सु खपरस लह सु मन जग,े

 ब रंगरंजत दलदृ गं चल नवल नज खोलन लग।े 

 हमजटत द  बन पै भ मृ दु दौर जो छन म गई   गत रैन कै ऍसु वन क ब   ू द बखर मोती भ। आलोक के आभस स व भम सरी म रही।  उत गगनतट घन पै सु नहरी गोट चमचम च रही। 

 हे मभ वृ ं त हलय हरषत तल करत णम ह।  गरगनरन के बीच ध ूस जगमगत करन ललम ह। 

 जलधर मनक के तरंगत जल सी दरसय ह।ै  जग योत सरे जीव जं तु न जय रही जगय है,

 घु स सघन झपस मह वन क चर रय थलीन के 

 है कहत ' दन अब नै गयो ' चकचध चख हरनीनके,

 जो नी म सर नद म ग बीच पं खन के परे 

 चल कहत तनके पस गीत भत के गओ , अर!े 

 कलरव पखे न को सु नई परत अब जओ जहू,

 मृ दु कक कोयल क , पपीहन क बधूी रट ' पी कह'ू,

 ततर क ' उठ दे ख ', ' चु ह चु ह ' चपल फलचु हीन क  

 ट ट सअुन क , धु न सु रीली सरीक स  हीन क ,

 कलकलन क कलकर , ' कू कू' कककंठ कठोर क ,

7/14/2019

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' टर टर ' करेटुन क कररी , कतू केक मोर क ,

 पु लकत परेवन क परम य  ेमगथ रसभरी   जो च ुकनहरी नह ज ल चु कतनह जीवनघरी। 

 ऐसो पु नीत भव भु के परम वजयभत को  

 घर घर बरजी शं त , झगरो नह क घत को। 

 झट फ क दीनी द  र छरी बधक तज बधकज को। 

 लै फेर धन बटपर दीनो , बणक छू यो यज को। 

भे र कोमल , दय कोमल और कोमल भए  

 पीय  ष सो सं चर द भत को व लह नए।  रण थम दीनो तु रत नरपत लरत जो रस स परे।  ब दनन के रोगी हू सतमु ख उछर खटन स परे। 

 नर मरन के जो नकट सहस सोउ मु दत नै गए   लख उदत होत भत मनो दशे स क नए। 

 पय से ज ढग जो दीन हीन यशोधर बै ठी रही ,

 हय बीच त के हरख क धर सी सहस बही ,

 मन मह तके उठत आपह आप ऐसी बत ह ै

' जो  ेम सू चो होय कबू नह नफल जत ह।ै 

 य घोर द:ुख को अ ंत य सु ख भए बनु रह जयह ै

 नै सकत ऐसो नह , आगम परत कछुक जनय ह।ै'

 छयो उछह अपर यप न कोउ जनत क भयो।  सु नसन बं जर बीच सं गीत को सु र भर गयो। आगम तथगत को नरख नज म ु आस बधूय कै। 

 मल भ  त , े त , पशच गवत पवन म हरखय क।ै 

' जगकज प  रो नै गयो ' दे ववणी यह भई ,

अत चकत प ुरजन बीच प ंडत खे बीथन म कई  

7/14/2019

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 ल वणा योत वह सो जौ गगन बोरत जत ह,ै

 य कहत 'भई! भइ अलौकक अवस कोऊ बत है।'

 बन , म के सब जीव ब ैर बहय बहरत लख परे। 

 जहू द ध बघन यवती तहू चमृ ग सोहत खरे।  बृ क मे ष मलप स ह चरत एकह बट प।ै  गो सह पनी पयत ह मल जय एकह घट पै। 

 भतरय गरल भु जं ग मणधर फन रहे लहरय ह,

 बस पस चचन सो ग नज पं ख रहे खु जय ह। 

 क समने स जत बजन के लव , कछु भय नह। 

 बै ठे मगन बक यन म, ब मीन खे लत ह वह। 

 बै ठे भु जं गे डर पै कू रहे प   ू छ हलय ह,

 पै आज झपटत ने कु नह ततलीन पै दरसयू ह,

 य फल त व फल पै जौ चपल गत स धवत ,

 सत , पीत , नील , सु रंग , चत पं ख को फरकवत। 

धर द ते ज दनेश स ब नशहत भवभर के,

 लह अमत वजय वभ  त जीवन हत सकल सं सरके।  व बोधत तर यन म भगवन् ह बै ठे अबै  पै तसु आमभव परयो मनु ज पशु पं छन सब।ै 

अब बोधत तर स उठ ेहरखय कै  

 भु द ते ज , अनं त शह पय कै। 

 यह बोल वणी उठे अत ऊूचे वरै,

 सब दशे म सब कल म जो सु न पर-ै 

'अने क जत सं सरं सधंवसमनबसं।  गहकरकं गव ेसं तो द:ुखजत पु न: पु न:। 

7/14/2019

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 गहकरक दोस पु न गे हं न कहस। 

 सब ते फसक भग , गहकटं वसं कत।ं 

 वसं खरगतं च,ं तहनं खयमझग।'

' गहत अने क जम भव के द:ुख भोगत ब चल आयो। 

 खोजत रो यह गृ हकरह , आज हे र ह पयो। 

 हे गृ हकर! फेर अब सकहै त नह भवन उठई।  सज बं द सब तोर धौरहर ते रो दयो ढहई। 

 सं कर स रहत सवाथ च भयो अब म ेरो! 

 तृ ण को िय भयो , यह जम जम को फेरो।'

सम सगा  बु चरत / सम सगा / भग -1 / एडवन अना ड / शुल  

कपलवतगुमन 

 इन ब वषा न बीच बसत नरपत शु ोदन   पु  वरह म शय नयकन बीच ख मन। 

 पयवयोग म यशोधर द:ुख के दन प  रत ,

 छू  सकल सुख भोग सोग म परी बस  रत। 

 ढोर लए जो कंजर थल थल डोलनहरे,

 लभ हे तु जो दशे दशे घ  मत बनजरे  तनस क यती वरगी क सु ध पवत   नरपत द  त अने क तहू तु रतह दौरवत। 

 ते फर आवत , कहत बत ब सधु न केरी। 

 जो तज कै घरबर बसत नजा न थल हे री।  पै लयो सं वद नह कोउ तक यरो  

 कपलवतु के रजवशं को जो उजयरो ,

7/14/2019

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भ  पत क सरी आश को एक सहरो ,

 यशोधर के णन को धन सवा स यरो ,

 कहू कहू जो भ  लो भटको घ  मत नै ह ै

भयो और को और , चीह नह कोऊ पै ह।ै 

 दे खो यह बसर वसं त को , रसल फ ल  

अं ग न समत मं जु मं जरीन स भरे। 

 सरी धर सजे ऋतु रज रज सोहत है,

 सु मन सहत पत चीकने हरे हरे। 

 कु  ू वर उदस बै ठी वटक के बीच जय  

 कंजपु ट कलत सरततीर झू वरे। 

 दपा ण सी धर म बलोके ब बर जहू 

ओठन पै ओठ , पणपश कंठ म परे। 

ऑसु न पलक भरी , कोमल कपोल छीन ,

 बरह क पीर अधरन पै लखत ह।ै  चप रही चीकने चकुर क चमक च ,

 बे णी बीच ब ूध ने कु नह बगरत ह।ै 

आभरनहीन पीरी दे ह पै है से त सरी ,

 खचत न जपै कू हे मनगपू त ह।ै 

 पय पय बोल गत हरत जो हं सन क  

 चरन धरत सोइ आज थहरत ह।ै 

 े हदीप सरस नवल जन नै नन क  

 कलम स फटत रही है ु त अभरम - 

शवा री के शं तपट बीच नै जगत मनो  

 दवस क योत कमनीय यही सु खधम - 

 योतहीन , लयहीन आज सोइ घ  मत ह,

 लखत न ने कु ऋतु रज क छट ललम। 

7/14/2019

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 पलक रही ह ढर , उघरत नह प  री ,

अधखु ली प  तरी पै बनी परी ह यम। 

 एक कर म ूह मोतीजरो कटबधं सोइ  

 जह तज कु  ू वर नकस गयो रैन वह। 

 हय! वकरल सोइ जमन जनन भई  

 केते द:ुखभरे दवसन क , न जत कह। 

 गो े म एतो नह नठुर कबू भयौ  

 सू चे े म त ऐसे कू जग बीच यह। 

 एक बत भई यस , जीवन ल , यही बू ध   मत यह े म क हमरे नह गई रह। 

 द  जे कर बीच कर सु ं दर परम नज  

 बलक को , जसु नम रल धरो गयो ,

थती प छू  कै कुमर चल गयो जह ,

 ब कै जो आज सत वषा एक को भयो।  चं चल वभवबस डोलन लयो है घ  म  

 जननी के पस इत उत मोद स छयो। 

 वभव वकस पु पहस कुसु मकर को  

 हे र ह ेर होत है लस च म नयो। 

 नलनमय व पु लन पै दोउ रहे बस कछु कल। 

 हू सत फेकत जत मीनन ओर मोदक बल।  बै ठ दु खय जनन नरखत उत हं सन ओर ,

 करत वनय उसस भर , धर नीर दृ ग क कोर - 

' हे गगनचर! होय जहू पय कौ जो तहू जय ,

 दीजयो सं दशे मे रो तह ने कु सु नय। 

 दरस हत औ परस हत  

अत तरस ब दु खपय  

 दीन हीन यशोधर अब मरन ढग गई आय।'

7/14/2019

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 बहू स बोल अनु चरी ब आय एते मह  

' दे व! अब ल सु यो यह संवद कैध नह ?

 पु ष , भलक नम के ै से ठ मल लदय  

आज दिण नगरतोरण पस उतरे आय। 

 द  र दशेन फरत सगरकंठ ल जे जत  

 लए नन वतु जो ह सं ग म दरसत - 

 वणा खचत अमोल अं बर , रजटत कटर ,

 प च वच , मृ गमद , अगर कु ं कुमभर। 

 कतु ये सब वतु जके समने कछु नह ,

 परम य सं वद लए आज जो पु र मह। 

 दोउ दे खे चले आवत शय रजकुमर ,

 णपत जीवन तहरे, दशे के आधर। 

 कहत हम सित् दशा न कयो तनको जय ,

 दं डवत कर करी प  ज भभ ट चय! 

 को बधुजन रो जो सो भए प  णा कर ,

 परम दु लाभ न नन को सखवनहर। 

भए जगदरधय भ,ु अत शु  बु  महन ,

 करत नर नतर औ उर दै शभु न   मधु र वणी स , दयस जसु ओर न छोर। 

 कहत दोऊ से ठ भु ह चले यही ओर '

 सु नत शभु सं वद उमयो दय मह उछह ,

 य हमचल स उमग कै कत गं गवह। 

 कु  ू वर उठ कै भई ठी हषा पु लकत गत  

 ढर दृ ग स ब   ू द मोती सरस , बोली बत - 

7/14/2019

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' तु रत लओ जय से ठन को हमरे पस ,

 पन हत सं वद के शभु वण को अत यस ,

 जव , तनको तु रत लओ संग मह लवय। 

 कतू जो सं वद तनको नकस सू चो जय! 

 नकसहै सं वद जो यह सय , कहयो जय ,

अवस फू न मह दै ह वणा र भरय। 

और तु मू आइयो सू ग ले न को उपहर - 

 नै सक ैपै नह सो आनंद के अनु सर।'

 चले दोउ बणक दसन संग , आ पय  

 कु  ू वर के व रंगभवन वशे कनो जय।  चलत कंचनकलत पथ पै धरत धीमे पू व   रजवैभव नरख लोचन चकत ह सब ठू व। 

 कनकचत पट परे ज ूह दोउ पू चे जय। 

िीण , कंपत , मधु र वर यह परयो कनन आय - 

' से ठ! आवत द  र त ह , कतू रजकुमर  

 परे तु मको दे ख , ये सब कहत बरंबर। 

 करी प  ज तसु तु मन,े यग जो भवभर  

शु  बु  लोकप  जत नै करत उर।  सु यो अब य ओर आवत , कहौ , यद यह होय  

 परम य य रजकुल के होयहौ तु म दोय।'

 बोयो सीस नवय पु ष ' हे दे व , हमरी! 

आवत ह इन नयनन स हम भु ह नहरी। 

 पू यन पै हम परे, रो जो कु  ू वर हरयो   सब रजन महरजन स ब वको पयो। 

7/14/2019

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 बोधु म तर फगु कनरे आसन लई   जस जग उरै स सो वने पई। 

 सब को सू चो सख , सकल जीवनपत यरो   पै सब स कू बकै है सो , दे व! तहरो ,

 जके सू चे ऑसु न ही को मोल कहै ह ै

 जो अनु पम सु ख भु के वचनन स जग प ैह।ै 

' कुशल िे म स ह' कहबो यह है वडं बन  

 सब तपन स परे, तह द:ुख परस सकत न। 

भे द सकल भवजल गए दे वन त ऊपर ,

 सय धमा क योत पय जगमगत भु वन भर।  नगर नगर म य य फर उपदशे सु नवत  

 तन मू गन को जीव श ंतसु ख जनस पवत ,

 य य पछे होत जत तनके नरनरी - 

 य पतझ के पत वत के नै अनु सरी।  पस गय के रय िीरकबन म जई   हम दोउन ने सु ने वचन तनके सर नई। 

 चौमसे के थम अवस भु इत पधरह,

 उपदशेन स मध ुर शोक द:ुख सकल टरह।'

 यशोधर को कंठ हषा स गद भरी ,

 बी बे र म सभूर वचन यह सक उचरी - 

“ हे सु जन जन! भलो होयहै सद तु हरो। 

 लए तु म सं वद मोह णन त यरो। 

 जनत जो तु म हो , मोह अब यहौ बतओ  

 कैसे यह सब बत भई , कह मोह सु नओ।” 

7/14/2019

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भलक ने तब कही बत व नश क सरी। 

 जनत जको ' गय ' पवा त के सब नरनरी  

 कैसी घनी ऍधोरी म छय दरसनी ,

 मरकोप स कूपी धर , भो खलभल पनी। 

 कैसो भ भत भयो पु न , भनु सं ग जब  

आश क नव योत जगी सो जीवन हत सब ,

 कैसे तब भगवन् मले व बोधवटप तर  धरे ते ज आनं द अलौकक मु ख पै सु ं दर। 

भए आप तो म ु बु  सं बोधह पई  

' कैसे हमस द:ुखी जगत् क होय भलई '

 परे सोच म रहे यह भु कछु दन त ,

 बोझ सरीखो एक दय पै परत जनई। 

 वषय भोग म ल पपरत जन सं सरी ,

 गहत रहत जो नन वतु न स म भरी ,

ऑखन पर को परदो जो नह चहत टरन ,

 उरझे जम तोर सकत सो इंयजलन ,

 कैसे ऐसे जीव हण य नह करह?

'अ मगा' ' दश नदन ' कैसे चत धरह। 

 ये ई ह उरर , पै है वच गत! 

 खग पजर म पलो लखत नह खु ले र त। 

 खोज मु  को मगा तह नर हे तु कठन गु न  

आपै इकले चलते जो भगवन् शय मुन ,

 जग म कह जन तव को नह अधकरी  

 तजते जो भु लहते गत कैसे नरनरी ?

7/14/2019

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 सब जीवन पै दय रही पै भु क ेदय समनी ,

 यह बीच सु न परी द:ुखभरी अतशय आरत बनी। 

 जन ु' नयम अहू भ  नयत लोक:' भ चलई। 

 कछुक बे र ल शं त रही पु न ध ुन पवनू त आई - 

भगवन!् धमा सु नइए , भगवन!् धमा सु नइए। 

भवतप त ह जर रहे अब ने कु बर न लइए।  द दृ  भगवन् तु रत णन पै डरी  

 दे यो को ह सु नन योय , को नह अधकरी  

 जै से रव , जो करत कनकमय अमल कमलसर  

 लखत कौन ह, कौन नह कलयू बगसन पर। 

 बोल उठे भगवन ्' सु नै जौ जहू जहू ह,

अवस सखै ह धमा, सख जो सीखन चह।'

 िभु पं चवगय यन म भु के आए।  वरणस क ओर तु रत भगवन् सधए। 

 तन ही को उपदशे थम भु जय सु नयो ,

'धमा च ' को कयो वन न सखयो। 

 मं गलमय ' मयम तपद ' तह बतई  

'आया सय ' गत दयो ' मगा अं ग ' सु झई। 

 जम मरण स छट सकत ह कसैे नी ,

 प  रो जतन बतय बु  बोले यह बनी - 

' है मनु य क गत वही के हथन मह ,

 प  वा कमा को छ और भवी कछु नह। 

 नह तके अतर नरक है कोऊ , भई! 

7/14/2019

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आपह नर जो ल ेत आपने हे तु बनई।  वगा न ऐसो कोउ जहू सो जय सकत नह  

 जो रखत मन शं त , दमन कर वषय वसनह।'

 पू च जनन म भयो थम कडय स ुदीित  

' चर सय ', 'अं ग मगा' म नै कै शित ,

 महनम , पु न भक , वसव और अजत  

धमा मगा म कर वशे नै गए शं त चत। 

' यश ' नमक पु न एक से ठ कशी को भरी  

 बु  शरण गह भयो य को अधकरी।  चर म स ुन तसु भए पु न िभु क आई।  पु रजन और पचस य भु स पई। 

 परी कन म जहू जहू बनी भु केरी  

 उपजी तहू तहू नवयु ग क सी श ंत घने री ,

 य पवस क धर परत जब पटपर ऊपर   नव तृ ण अं कुर लहलहय फटत अत सु ं दर। 

 पठयो भु इन सठ िभ ुकन को चर हत  

 पय तह सं यमी , वरगी और धीर चत। 

 इसीपन मृ गदव मह यह सं घ बनई   गए रजग ृह पस यवन ओर सधई। 

 कछुक दनन ल रहे तहू उपदशे सु नवत। 

 बबसर नृ प , पु रजन परजन ल सब यवत ्

भए बु  क शरण सब मोह बहई  

धमा, शील , सं यम , नरोध क िश पई। 

 कुश लै कै संकप दयो कर भ  पत ने तब  

 परम सु हवन रय वे णु वन ' सं घ ' हे तु सब ,

7/14/2019

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 जम सु ं दर गु ह सरत , सर , कु ंज सु हए। 

 शल तहू गवय नृ पत ये वय खु दए - 

 ये धम हे तु पभव ते सं हे तु ं तथगतो आह।  ते सं च यो नरोधो एवं वदी महसमणो। 

“ हे तु त उप जो ह धमा- द:ुखसमु दय - 

 हे तु तनको कह तथगत ने दयो सब आय। और तसु नरोध प ुन महमण बतय  

 लयो य ब  त जगत् को बहू दे य बचय।” 

 सोइ उपवन मह बै ठयो सं घ एक महन् ओजप  णा अप  वा भयो न ीभगवन।् 

 सु नत सब पै गयो द भव ऐसो छय ,

आय नौ सौ जनन ने लै लयो व कषय  

और लगे जय कै ते करन धमा चर।  बु  ने य कह वसजत कयो स ंघ अपर - 

 सब पपस अकरण,ं कुसलस उपसं पद  

 सच परयो दवनं एतं बु नु ससनं। 

' करबौ पप न कोउ संचबो शभु है ज ेतो ,

 करबो च नरोध ब ु अनशुसन एतो।'

 य वध से ठन ने सरी कह कथ स ुनई।  यशोधर ने भरी तनक करी बदई। 

 कंचन र भरय थर समुख धरवयो।  चलत चलत यह प  छन हत पु न तह बु लयो  

' कौन मगा धर केते दन म ऐह, यर?े'

 फर कै दोऊ से ठ बोल यह वचन सधरे- 

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' य पु र के चीर स , हे दे व! ग ुनत हम ,

 परत रजग ृह नगर सठ योजन त नह कम। 

आवत तहू स सु गम मगा कर पर पहरन ,

 सोन नदी के तीर तीर वै कत कछरन। 

 चलत शकट के बै ल हमरे आठ कोस नत ,

 एक मस म वू स चल कै आवत ह इत।” 

कपलवतगुमन 

 परी नृ प के कन म जब बत यह सब जय  अचलन म चतु र समं त नौ बु लवय  

 यह सू दे सो कह पठयो अलग अलग सीत - 

“ बन तहरे गए कलपत सत वसर बीत। 

 रो नश दन खोज म सब ओर द  त पठय ,

 चत पै अब चन के दन गए ह नयरय। 

 वनय   यते करत ह अब बोल बरंबर ,

 जहू तहरो सबै कछु तहू आय जव कुमर। 

 रजपट बलत , तरसत ज दरस न पय। 

अतथ थोरे दनन को ह , मु ख दखयो आय।' नौ द  त छट यशोधर क ओर स गे धय  

 सं दे स लै यह ' रजकुल क रन , रल मय  

 मु ख दे खबे के हत तहरो परम कुल छीन - 

 जै से कमुु दनी वट जोहत चं  क नै दीन ,

 जै से अशोक वकश हत नज रीत के अनु सर  

 पयरय जोहत रहत कोमल तण - चरण - हर। 

7/14/2019

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 जो तय वस ब पदरथ मलो जो कोउ होय ,

 है अवस तम भग त को , चहत है सोय।” 

 तु रत शय समं त मगध क ओर सधरे।  पै पू चे व समय वे णु वन बीच बे चरे  रहे धमा उपदशे करत भगवन् बु  जब। 

 लगे सु नन त,े भ  ल सं दशे आद सब। 

 रो यन नह महरज को कछु मन मह  और कु  ू वर क रनी क सुध कछु नह। 

 चलखे से रह,े सके नह वचन उचरी ,

 रहे अचल अनमे ष दृ  स भु ह नहरी। 

 मत गत थर नै गई सु नत भु क शभु बनी। 

 नदयनी , ओजभरी , कणरस सनी। 

 य खोजन आवस मर कोउ नकसत बहर ,

 लखत मलती फल कू छए खल सु ं दर ,

औ पवनू म मधु र महक तनक है पवत ,

ऑधी पनी रत ऍधोरी मनह न लवत ,

 बै ठत वकसत कुसु मन पै तन अवस जय कै ,

 गहत मधु र मकरंदसधु नज म ुख गय कै,

 य पू चे ते सबै शय समं त तहू जब  

 बु  वचन पीय  ष पन कर भ  ल गए सब ,

 रो चे त कछु नह कौन करज स आए। 

 िभु संघ म मले जय , नह कछु कह पए। 

 बीते जब ब मस बर नह कोऊ आयो  

 कलउदयी सचवपु  को न ृपत पठयो ,

7/14/2019

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 बलसख जो रो कु  ू वर को अत सहकरी ,

 जपै भ  पत करत भरोसो सब स भरी। 

 पै सोऊ नै गयो िभु तहू म   ू  मु ई ,

 रहन लयो भु सं घ मह घरबर वहई। 

 एक दवस ऋतु परम मनोहर रही स ुहई ,

 बोयो भु के नकट जय सो अवसर पई - 

“ हे भगवन!् यह बत उठत म ेरे मन मह ,

 एक ठौर को वस उचत िभु न को नह। 

 घ  म घ  म कै तह चहए धमा चर। 

भलो होय , भु कपलवतु क ओर पधर 

 जहू भ  प तव वृ  पत तरसत दशा न हत  

औ रल क मत द:ुख स बकल रहत नत।” 

 बोले तब भगवन् बहू स सब क दश हे री - 

“अवस जयह , धमा और इछ यह म ेरी। 

आदर म न च  कै कोऊ मतु पत के,

 जो ह जीवन दे त , सकल सधन वश जके,

 जको लह नर चह तो सो जतन सकत कर   जम मरण को बंधन जस जय सकल टर। 

 लहै चरम आनं दप नवा ण अवस नर   रहै धमा के पलन म जो नरत नरंतर ,

 दहै प  वा दु कमा, तर तनको , तोर,ै

 हओ करतो जय भर , पु न और न जोर,ै

 होय े म म प  णा दय दिय भव भर ,

 जीवन अपनो दे य आप परहत अपत कर। 

7/14/2019

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 महरज के पस जय यह दे  जनई  

आवत ह आदशे तसु नज सीस चई।” 

 कपलवतु म बत जय जब पू ची सरी ,

अगवई के हे तु कु  ू वर के सब नर नरी  अत उछह स करन लगे नन आयोजन  

भ  ल सकल नज कम धम , न औ भोजन। 

 पु रदिणर के पस घनो  

अत च वच बतन तनो ,

 जहू तोरण खभंन प,ै बगस े

 नव मं जु स  न के हर लस।े 

 पट पट के, कंचनतर भर,े

 ब रंग के चर ओर परे। 

शभु सोहत बं दनवर हर,े

 घट मं गल सजय धरे। 

 पु र के सब पं कल पथं भए   जब च ंदननीर स सच गए। 

 नव पलव आमन के लहर,

 सु ठ पू त पतकन क फहर। 

 नरपल नदशे सु यो सबन-े 

 पु रर पै दं त रह कतन े

 सज वणा वरडंक स सगरे 

 सत दं त चमचम सम धर,े

धु न धौसन क घहरय कह,ू

 सब ले यू कुमरह जय कहू,

 कहू बरबध मल गन कर,

7/14/2019

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 बरसय स  न मोद भर,

 पथ फलन स यह भू त भरै 

 जहू पू व कुमर तु रंग धर ै

धू स टप न तसु लखय पर,

 मल लोग सबै जयनद कर। 

 यह भू त नरेशनदशे भयो ,

 सब के हय मह उछय छयो।  दन ऊगत नय सबै अकन 

 कू आगम दु ं दु भ बज भन। 

धय मलन हत पयह थम धर चह अपर   गई यशोधर शवक पै च पु र के र। 

 जके चू दश लसत रय योधरम ,

 जहू सोहत ब वटप ब ेल वीध अभरम। 

 झ  मत दोऊ ओर फल फल स झु क डर ,

 हरयली बच घ  म घम पथ के सु ढर।  रजमगा चल गयो धरे सोइ उपवन छोर। 

 परत अं यजन क बती है द  जी ओर ,

 पु र बहर जे बसत बे चरे सब बध दीन ,

 छुअत जह ज नह मन कै अतशयहीन।  तनू बीच उछह नह थोरो दरसत ,

 इत उत डोलन लगत सबै य होत भत। 

 घं टन को रव , बजन क धु न कू सु न पय  

 लखत मगा म क , पे न च सीस उठय। 

 पै जब आवत नह कतू कोउ परै लखय   लगत झोपन को सू वरबे म पु न जय। 

7/14/2019

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 करत र नत फेर झकझक झर बहर ,

 पछ चौखटन , लीप चौतरन , चौक सधुर ,

 पु न अशोक क लय लहलही कोमल डर   चु न च ुन पलव ग   थूत न  तन बं दनवर। 

 प  छत पथकन स नकसत जो व मग जय  

“ कतू सवरी रही कु  ू वर क य दश आय ?” 

 यशोधर चह भरे चख तनपै डर   पथकन को उर सु नती झुक पथं नहर। 

 मु ं डी एक अचनक आवत परयो लखय  धरे वसन कषय कंध पर स लै जय। 

 कबू पसरत प जय दीनन के र ,

 पवत ले त , न पवत लवत बत न बर। 

 तके पछे रहे िभु ै और आय   लए कमं डल कर म, धरे वसन कषय। 

 पै जो तनके आगे आवत धर पथतीर  

 ऐसी गौरवभरी तसु गत अत गभंीर ,

 फटत ऐसी द दी क चर ओर ,

 ऐसो मृ दु ल पु नीत भव दरसत दृ गकोर  

 िभ लै जो दे न बत दोउ हथ उठय   च लखे से चकत चह मु ख रहत ठगय। 

 कोऊ कोऊ धय परत पू यन पै जय ,

 फरत ले न कछु और दीनत पै पछतय ,

धीरे धीरे लगे नर , नर , बलक सं ग  

 कनफसी करत परपर नै क ैदं ग - 

7/14/2019

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“ कहौ कौन यह ? कहौ , कछ आवत मन मह ?

 ऋष तो ऐसो परो लखई अब ल नह।” 

 चलत चलत सो पू यो य मं डप नयरय  

 खु यो पटपट , यशोधर चट पू ची धय। 

 ठी पथ पै भई अमल मु खच ं उघर  

' हे वमी! हे आया पु !' यह उठी पु कर। 

भरे वलोचन वर , जोर कर ससक अधीर  

 दे खत दे खत परी पू य पै पथ के तीर। 

 जब दीित नै चु क धमा म रजवध वह  

 एक शय ने जय करी भु स शं क यह - 

“ सब रगन स रहत , वसन सकल नवरी ,

 यग कमनी परस कुसु मकोमल मनहरी  

 यशोधर को करन दयो भु य आलगन ?” 

 सु नत बु  भगवन् वचन बोले स मन - 

“ महे म य छोटे े मन दे त सहरो  

 सहजह ऊूचे जत तह लै दै पु चकरो। यन रहै जो कोउ छट बधंन स जवै  मु गवा कर ब जीव कबू न दु खव।ै 

 समु झ ले  यह मु  लही है जन,े भई! 

 एक बर ही नह कतू क ने पई।  जम जम ब जतन करत औ लहत नबल  

आवत ह जो चल,े अं त म पवत यह फल। 

 तीन कप ल कर यस अत बल अखं डत  

 बोधसव ह मु  होत जग क सहय हत। 

7/14/2019

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 थम कप म होत ' मन: णधन ' े तर। 

 बु  होन क जगत ललस मन के भीतर। 

 होत ' वक् णधन ' द  सरे कप मह पु न ,

' नै जै ह म बु  ' कहत यह बत परत सु न। 

 लहत तीसरे कप मह ' ववरण ' पु न जई  

'अवस होगे ब ु ' बु  कोउ बोलत आई। 

 थम कप म रो न शुभ मगा गु नत सब ,

 पै ऑखन पै परदो मे रे परो रो तब। भयो न जने कते लख वषान को अ ंतर  

' रम ' नम को वैय रो जब सगर तट पर ,

 परत समने वणाभ  म दिण दश जके 

 नकसत सीपन स मोती जहू ब ूके ब ूके। 

अम सगा 

 बु चरत / अम सगा / भग -1 / एडवन अना ड / शुल  

उपदशे 

 व रोहणी के तीर हर आज ल फैलो परो   जहू द  ब स छयो गयो ब द  र ल पटपर हरो।  ईशन दश वरणसी स शकट च जो जइए  

 तो पू च दन को मगा चल व रय थल को पइए ,

 लख परत जहू स धवल हमगरश ृं ग , जो फलोफरो  

 है रहत बरह मस , सचत सरस बगन स भरो ,

 जहू लसत ढर सु ढर शीतल छू ह मृ दु सौरभ लए।  है अजू भवपु नीत बरसत ठौर व जो जइए। 

7/14/2019

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 नत बहत सधंय समीर नै अत शं त झन पै हरे,

 जहू ढे र चत पथरन के ढह नै कर ेपरे,

अथ जनको भे द फैले म  लजल बछय कै,

 जो लसत चर और तृ णदल - तरल - पट स छयकै। 

 क कतू कज कठ के ब सज स जो नस ध ूसो।  चु पचप फ टी मर करो नग फलकन पै बसो। ऑगनन म जन नृ पत टहरत फरत गरगट ह तह ूअब यर बे दी तर बसत तहू सजत सहसन जहू। 

 बस शृ ं ग , सरत , कछर और समीर य के य रहे 

 नस और सब शोभ गई , वे दृय जीवन के बहे। 

 नृ प शय शु ोदन बसत ू रजधनी यह रही। भगवन् जहू उपदशे भयो एक दन सो थल यही। 

 प  वा कल म कबू रो यह थल अत सु ं दर।  यके चू दश लसत रय आरम मनोहर। 

 बट बच बच कट , से तु नरन पै सोहत ,

 चलत रहत जलयं  , सरोवर जनमन मोहत। 

 पटल के परमं डल भीतर चमकत चवर। 

 लसत अने क अलद , खभं ब सोहत स ुं दर। 

 इत उत तोरण रजभवन के कू ब आए। 

 चमकत जनके कलश द  र स रवकर पए। 

 यही थल भगवन् एक दन बै ठे आई ,

भ भव स घ ेर लोग भु दश टक लई  

 जोहत मु ख सु नबे को बणी न भरी अत ,

 जको लह जग श ंत वृ  गह तजी रमत ,

 नर पं चशत् कोट आज ल जके अन ुगत ,

 कटन हत भवपश आस कर होत धमा रत। 

7/14/2019

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 बीच म भगवन् सोहत शय भ  पत तीर। 

 घे र चर ओर स समं त बै ठे धीर - 

 दे वद अनं द आदक सभ के सब लोग  धमा िदी रय दीनो ' सं घ ' म जो योग। 

 मौल , मन सरपु  बसे भु पत ्

' सं घ ' मह धन सब स शय जे कह जत। 

 रो रल हू सतमु ख गहे भ-ु पट - कोर ,

 बल चख स चकत चतवत भ मु खकओर। 

 चरण ढग भगवन् के बस रही गोप जय ,

आज तन - मन - पीर तक गई सकल नसय। भयो सू चे े म को व बोध अ ंतस् मह। िणक इंयवे ग पै अवलं ब जको नह। 

भयो भसत नयो जीवन जर जह न खत  और अं तम मृ यु जस मृ यु ही मर जत। भई भगनी य वजय क सोउ भु क ेसं ग   मन आपह धय फ ल समत न नज अं ग। 

भगवन् के कषय पट को छोर सर प ैडर ,

शु च वम कर पै तसु सदर रही नज कर धर। 

 नकटथ अत य भू त तक परत सो दरसय   ौलोय वणी जसु जोहत रो अत अकुलय। 

भगवन् क ेमु ख स कयो जो न परम नवीन   कह सक तसु शतशं म नह अत मतहीन। 

 य कल म बस बत सब म सक कैसे जन ?

 हय धर बस कछु भ भु के े म को पहचन। 

7/14/2019

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आचया गण जो लख गए चीन पोथन मह   ह कह तस ब कछ समया एती नह। भगवन् ने जो दयो व उपदेश को कछु सर   जो कछ थोरो बत जनत कहत मत अनु सर  

 उपदशे केते सु नन आए करै गनती कौन ?

 िय जे लख परे तहू बस सु नत धरे मौन   कू रहे तनसो लख और करोरग ुन अधकय।  सब दे व पतर अदृय नै तहू रहे भीर लगय। 

 सब लोक ऊपर के भए स  ने नपट व कल।  छुट नरक के जीव आए तोर सू सत जल।  बलमी रही ब अवध स रवयोत परम ललम  अनु रग स अत झूकते गरश ृं ग पै अभरम। 

 रैन मनो घटन म, बसर पहरन प ै

 ठमक सु नत बनी भु क सधुभरी। 

 बीच म सलोनी सू च असर सो मनो कोउ , मत गत खोय थक मोहत सी जो खरी। 

 छटके घु व से घन कु ं तलकलप मनो ,

 तरवल मोतन क लरी बखरी परी। 

अदा चं  सोइ मनो ब दी बलसत भल ,

 तम को पसर मनो नील सरी पतरी। 

 सु रभत मं द मं द बहत समीर , सोई  

 मनो थम थम सूस छू त बसर गत। 

 सु ं दर समय पय बस यही ठौर शु च  

 कर रहे भु उपदशे अत अवदत। 

 जने जने सु ने जने सु ने अनजने सब - 

 ऊूच , नीच , आया, ले छ , कोल , भील औ करत - 

7/14/2019

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   परत सु नय तह बोलन म नज नज  

भखत जो जत भगवन् नभरी बत। 

 नर , दे व , पतरन क कह जो रहे भीर लगय  

 सब , कट , खग , मृ ग आद को परत कछुकजनय  

 व े म को आभस जो भु दय मह अपर।  बू ध रही आश तह भु के वचन के अनु सर। 

 जे बधूो सरे जीव नन प द ेहन सं ग - 

 वृ क , बघ , मका ट , भलु, ज ंबु क , न , मृ ग सरंग , ब रम ंडत मोर , मोतीच  र नयन कपोत ,

 सत कंक , करे कग आमष भोज जनको होत ,

अत लवनपटु म ंडक , गरगट , गोह , च भु जं ग ,

 झष चपल उछरत झलक जो छलकूय सललतरंग ,

 सब जोर नतो मनु ज स , जो श ु तन सम नह ,अब कटन बंधन चहत गु न यह मु दत ह मनमह। 

 नृ प को सु नय सब धमा सर   उपदशे कयो भु य कर - 

ऊ अमतय!ु 

अमे य को न शद बू ध कै बतइए ,

 जो अथह तह स न बु  स थहइए। 

 तह प  छ औ बतय लोग भ  ल ही कर,

 सो सं ग लय था वद मह ते पर। 

अधंकर आद म रो पु रण य कहै,

 व महनश अखं ड बीच ही रहै। 

7/14/2019

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 फेर म न के , न आद के रहौ , अरे! 

 चमा िचु को अगय और ब ु के परे। 

 दे ख ऑखन स न सकहै कोउ क कर  औ न मन दौरय प ैहै भे द खोजनहर। 

 उठत जै ह चले पट पै पट , न नै है अं त ,

 मलत जै ह परे पट पै पट अपर अन ंत। 

 चलत तरे रहत प  छन जत यह सब नह।  ले  एतो जन बस - ह चलत य जग मह  

 सद जीवन मरण , सु ख द:ुख , शोक और उछह ,

 कया करण क लरी औ कलच वह ,

और यह भवधर जो अवरम चलत लखत ,

 द  र उम स सरत चल सधु दश यजत ,

 एक पछे एक उठत तरंग तर लगय ,

 एक ह सब , एक सी पै परत नह लखय। 

 तरणकर लह सोई लु  तरंग पु न कू जय  

 घु व से घन क घट नै गगन म घहरय ,

आा नै नगशृ ं ग पै पु न परत धरमर ,

 सोइ धर तरंग प ुन नह थमत यह पर। 

 जनबो एतो बत - भ वगा आदक धम  

 सकल मय दृय ह, सब प है परणम। 

 रहत घ  मत च यह मद:ुखप  णा अपर ,

थम जको सकत कोऊ नह क कर। 

 बं दन जन करौ , नै है कछु न व तम मह ,

श  य स कछु यचन जन करौ , सु न है नह। 

7/14/2019

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 मरौ जन पच और सब तप आप बय  लशे नन भ ूत के दै था मनह तपय। 

 चहौ कछु असमथा दे वन स न भ ट चय   तवन कर ब भू त , ब ेदन बीच रबहय। 

आप अं तस् मह खोजौ मु  को त ुम र।  तु म बनवत आप अपने हे तु करगर। 

श तु हरे हथ दे वन स कछु कम नह। 

 दे व , नर , पशु आद जे ते जीव लोकन मह  

 कमा वश सब रहत भरमत बत यह भवभर , लहत सु ख औ सहत दु ख नज कमा के अनु सर। 

 गयो जो न,ै वह स उप जो अब होत ,

 होयहै जो खरो खोटो सोउ तको गोत।  दे वगण जो करत नं दनवन वसं त वहर   प  वा पु य पु नीत को फल कमा वध अनु सर। 

 े म नै जो फरत अथव नरक म बललत  भोग स दु कमा को िय ते करत ह जत। िणक है सब पु यबल अं त छीजत जय।  पप फलभोग स है सकल जत नसय। 

 रो जो अत दीन म स पे ट पलत दस  

 पु य बल स भ  प नै सो करत ववध वलस।  नै परी व बन परी नह बत तके हे त  

 रो नृ प जो , भीख हत सो फरत फेरी दे त। 

 चलत जत अलय जौ ल च यह अवरम  

 कहू थरत शं त तौ ल औ कहू वम ?

 चत जो गरत औ जो गरत सो च जत। 

 रहत घ  मत और थमत न एक छन , हे त! 

7/14/2019

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 बधूो च म रहौ मु  को मगा न पई  

 नै न सकत यह - अखल सव नह ऐसो ,भई। 

 नय ब तु म नह बत यह नय धरो ,

 सब द:ुखन स सबल , त! सं कप तहरो। 

 दृ  नै कै जो चलौ , भलो जो कछु बन ऐहै। 

 म म स सो और भलोई होतह जै ह।ै  सब बधंु न क ऑसु न म नज ऑसु मलई  

 ह ू रोवत रो कबू जै सो तु म , भई! 

 फटत मे रो हयो रो लख जगदु:ख भरी ,

 हू स आज सनं द बु  नै बधंन टरी। 

' मु मगा ह'ै सु नौ मरत जो द:ुख के मरे! 

अपने हत तु म आपह दु ख बवत हौ सरे। 

और कोउ नह जम मरण म तु ह बझवत ,

और कोउ नह बू ध च म तु ह नचवत ,

 क के आदशे स न भेटत हौ प ुन पु न   तपआर और अने म और असत् नभ चु न। 

 सय मगा अब तु ह बतवत ह अत स ुं दर। 

 वगा नरक स द  र , नछन स सब ऊपर   लोक त परे सनतन श वरजत  

 जो य जग म 'धमा' नम स आवत बजत ,

आद अं त नह जस,ु नयम ह जके अवचल  

 सवोमु ख जो करत सगा गत सं चत कर फल  

 परस तसु फुल पटल मह परत लखय ,

 सु घर कर स तसु सरसजदल कत छव पय। 

7/14/2019

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 पै ठ मटी बीच बीजन म बगर चु पचप   नवल वसन वसं त को सो बनत आपह आप। 

 कल तक करत है घनपु ं ज रंजत जय।  चं कन पै मोर क दु त तह क दरसय। 

 नखत ह म सोइ , तही को कर उपचर  

 दमक दमन , बह पवन और मे घ दै जलधर। 

 घोर तम स सृ यो मनव दय परम महन ,

िु  अं डन म करत कलकठं को सु वधन। 

 य म नज सद तपर रहत , मरग हे र  

 कल को जो व ंस तको करत सु ं दर फेर। 

 तसु र् वु ल नध रखवत चष नीन जय   छत म छह पहल मध ुपु ट प  णा तसु लखय! 

 चलत चटी सद तके मगा को पहचन ,

और े त कपोत ह उत तको जन। 

 ग सवज लै फरत घर वे ग स ज कल  श सोई है पसरत तसु पं ख वशल।  है पठवत वृ कजनन को सोइ शवक पस।  चहत जह न कोउ तनको करत सोइ स ुपस। 

 नह कु ं ठत होत कैस करन म वहर ,

 होत जो कछु जहू सो सब तसु च अनु सर। भरत जननउरोज म जो मधु र छीर रसल  धरत सोइ लदशनन बीच गरल करल। 

 गगनमं डप बीच सोई ह िन सजय  

 ब ूध गत , सु र तल पै नज रही नच नचय। 

 सोइ गहरे खत म भ  गभा भीतर जय  

 वणा, मनक , नीलमण क रश धरत छपय। 

7/14/2019

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 हरत वन के बीच उरझी रहत सो दन रत ,

 जतन कर कर रहत खोलत नहत ननभू त। 

शलत तर पोस बीजन और अ ंकुर फोर   कं ड कपल , कुसु म वरचत ज ुगु त स नजजोर। 

 सोइ भछत , सोइ रछत , बधत , ले त बचय। 

 फलवधनह छू  औ कछु करन स नह जय। 

 े म जीवन स  त तके जह तनतआप ,

 तसु पई और ढरक ह मरण औ तप। 

 सो बनवत औ बगरत सब सधुरत जय।  रो जो तस भलो है बयो जो अब आय।  चलत करतब भरो तको हथ य ब कल   जय कै तब कतू उतरत कोउ चोखो मल। 

 कया ह ये तसु गोचर होत जो जग म ूह। और केती ह अगोचर वतु गनती नह। 

 नरन के सं कप , तनके दय , बु  , वचर  

धमा के य नयम स ह बूधो प  णा कर। अलख करत सहय सू चो दे त है करदन। 

 करत अु त घोष घन क गरज स बलवन। 

 मनु ज ही क ब ूट म ह दय े म अन  प ,

 यु गन क ब रगर सह ज ने लो नरप। श क अवहे लन जो करै तक भ  ल। 

 वमु ख खोवत , लहत सो जो चलत ह अनु कल। 

 नहत पु यह स नकसत शं त , सु ख , आनं द। 

 छपे पपह स गट सो करत है दु खं । 

ऑख तक रहत है नह रहै चहै और ,

7/14/2019

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 सद दे खत रहत जो कुछ होत है ज ठौर।  करौ ज ेतो भलो ते तो लहौ फल अभरम।  करौ खोटौ नेकु तको ले  कटु परणम। 

 ोध कैसो ? िम कैसी ? श करत न मन  

 ठीक कू टे पै तु ले सब होत तसु वधन। 

 कल क नह बत , चहे आज अथव कल  

 दे ततफल अवससोनजनयम अवचलपल। 

 यह वध अनु सर घतक मरत आपह मर ,

 र शसक खोय अपनो रज बै ठत हर ,

अनृ तवदन जीभ ज नै रहत बत न पय ,

 चोर ठग ह हरत धन पै भरत द  नो जय। 

 रहत श वृ  सत् क लीक थपन मह ,

थम अथव फेर तको सकत कोऊ नह। 

 प  णा त औ शं त तको लय , े मह सर।  उचत ह,ै हे बंध!ु चलबो तह के अन ुसर। 

 कहत ह सब शो कैसी खरी चोखी बत - 

 होत जो य जम म सब प  वा को फल , त! 

 प  वा पपन स कत ह शोक , द:ुख , वषद। 

 होत जो सु ख आज सो सब प  वा- पु य - सद। 

 बवत जो सो लु नत सब , वह लखौ खे त दखत  

अ स जह ूअ उपजत , तलन स तल , त! 

 महश  य अपर परखत रहत सब सं सर!  मनु ज को हे भय नमत होत यह कर। 

 बयो पहले जम म जो अ तल बगरय  

7/14/2019

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 सोइ कटन फेर आवत जीव जमह पय। 

 बे र और बब  र , कंटक झ , वष क बे ल  

 गयो जो कछु रोप सो लह मरत पु न द:ुख झे ल। 

 कत,ु तनको जो उखरै लय उचत उपय  

और तनके ठौर नीके बीज रोपत जय  

 वछ , सु ं दर , लहलही नै जयहै भ फेर ,

 चु र रश बटोर सी सु ख पयहै पु न हे र। 

 पय जीवन लखै जो द:ुख कत कत स आय ,

 सहै पु न धर धीर तन पै परत जो कछु जय ,

 पप को व कयो जो सब प  वा जीवन मह  

 सय समु ख दं ड प  रो भरै, हरै नह ,

अहभंव नकस होवै नखर नमा लकय ,

 वथा स नह तसु रंचक क को कछु जय ,

 न नै सब सह,ै कोऊ करै यद अपकर  

 पय अवसर करै तको बनै जो उपकर ,

 होत दन दन जय सो यद सदय , पवन , धीर ,

 ययन , सशुील सू चो , न औ गभंीर ,

 जय तृ ण को उखरत म  ल त छन मह  

 होय जीवन वसन को नश जौ ल नह ,

 मरे पै तब तसु रहहै अशभु को नह च  र ,

 जम को ले खो सकल चु क जयहै भरप  र ,

 जयहै शभु म रह वै सबल बध हीन ,

 पय फल सो परम मं गल मह वै है लीन। 

7/14/2019

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 जह जीवन कहत तु म सो नह पै हे फेर।  लगो जो कछु चलो आवत रो वको घे र  

 गयो चु क सो , भयो प  रो लय सो गभंीर  

 मलो जके हे तु वको रो मनु ज शरीर। 

 नह तह सतयहै पु न वसन को जल  और कवष कल ंक लगयहै नह भल। 

 जगत् के सु ख द:ुख न सो चर शं त करहै भं ग ,

 जम मरण न लगहै पु न और तके सं ग। 

 पयहै सो परम पद नवा ण प  णा कर ,

 नय जीवन मह मलहै होय जीवन पर ,

 होयहै न:शे ष वै सो धय , महै नह - 

 जय मलहै ओसबदु अनं त अं ब ुध मह। 

ओम मणप 

 कमा को सं त है यह , ले  यको जन। 

 पप के सब पु ं ज क नै जत है जब हन ,

 जत जीवन जबै सरो लौ समन बु तय   तबै तक ेसं ग ही यह मृ यु मर जय। 

' हम रह,े' ' हम ह', ' होयू गे हम ' कहौ जनयहबत ,

 समझौ न पथकन सरस पल के घरन म ब ,त! 

 तु म एक छू त गहत द  जो करत आवत बस   सु ध रख अथव भ  ल जो कछु होत द:ुख सु पस। 

¹ रह जत है कछु नह णी मरत है ज कल ,

 चै तय अथव आतम नस जत है य वल। 

 रह जत केवल कमा ही है शे ष ववध कर ,

 ब खं ड तनस लहत उव जम जोरनहर। 

7/14/2019

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 जग मह तनको योग गटत जीव एक नवीन ,

 सो आप अपने हे तु घर रच होत वम लीन। 

 य पटवरो कट आपह स  त कतत जय   पु न आप वम बसत है जो ले त कोश बनय। 

 सो गहत भौतक सव औ गु ण आपही रच जल - 

 य फ ट वषधर अं ड कच ुर दं  गहत करल ,

 य िपधर शरबीज घ  मत उत नन ठौर ,

 लह वरतट कू बत , फकत पत , धरत मौर। 

 य नए जीवन क गत शभु अशभु दश लै जय।  जब हनत कल करल पु न नज र करह उठय।  रह जत तब व जीव को जो श ेष शु  वहीन   सो फेर झं झवत झे लत सहत तप नवीन। 

 पै मरत है जब जीव कोऊ पु यवन सधुीर   ब जत जग क सं पद कछु, बहत सु खद समीर। 

 म भ  म क य धर बल बीच जत बलय।  नै शु  नमा ल फेर चमकत कत है कू जय। 

 य भू त अजत पु य अजत करत है शभुकल ,

 यद पप तको दे त बध कत तक चल। 

ओम मणप 

 कमा को सं त है यह , ले  यको जन। 

 पप के सब पु ं ज क नै जत है जब हन ,

 जत जीवन जबै सरो लौ समन बु तय   तबै तके सं ग ही यह मृ यु मर जय। 

7/14/2019

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' हम रह,े' ' हम ह', ' होयू गे हम ' कहौ जनयहबत ,

 समझौ न पथकन सरस पल के घरन म ब ,त! 

 तु म एक छू त गहत द  जो करत आवत बस   सु ध रख अथव भ  ल जो कछु होत द:ुख सु पस। 

¹ रह जत है कछु नह णी मरत है ज कल ,

 चै तय अथव आतम नस जत है य वल। 

 रह जत केवल कमा ही है शे ष ववध कर ,

 ब खं ड तनस लहत उव जम जोरनहर। 

 जग मह तनको योग गटत जीव एक नवीन ,

 सो आप अपने हे तु घर रच होत वम लीन।  य पटवरो कट आपह स  त कतत जय   पु न आप वम बसत है जो ले त कोश बनय। 

 सो गहत भौतक सव औ गु ण आपही रच जल - 

 य फ ट वषधर अं ड कचु र दं  गहत करल ,

 य िपधर शरबीज घ  मत उत नन ठौर ,

 लह वरतट कू बत , फ कत पत , धरत मौर। 

 य नए जीवन क गत शभु अशभु दश लै जय।  जब हनत कल करल पु न नज र करह उठय।  रह जत तब व जीव को जो शे ष शु  वहीन   सो फेर झं झवत झे लत सहत तप नवीन। 

 पै मरत है जब जीव कोऊ पु यवन सधुीर  

 ब जत जग क सं पद कछु, बहत सु खद समीर। 

7/14/2019

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 म भ  म क य धर बल बीच जत बलय।  नै शु  नमा ल फेर चमकत कत है कू जय। 

 य भू त अजत पु य अजत करत है शभुकल ,

 यद पप तको दे त बध कत तक चल। 

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