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budhism
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7/14/2019
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बु चरत / व / एडवन अना ड / रमचं शुल म खुप षृठ » रचनाकारो क स चूी » रचनाकार: रामचदं श ुल
प षृठ सारणी
अगला प षृठ >>
रमकृण क इसी लीलभम पर भगवन् बु दे व भी ए ह जनके भव से एशय खं ड क सर प वा ा भरत को इस गरी दश म
भी े म और क दृ से दे खत चल ज रह ह।ै रमकृण के चरतगन क मध ुर वर भरत क सरी भष म ग ूज रह है पर
बौ धमा के सथ ही गौतम बु क मृ त तक जनत के दय से द र हो गई ह।ै 'भरथरी ' और ' गोपीचद ' के जोगी होने के गीत गकर
आज भी कुछ रमते जोगी य को कणा करके अपन पे ट पलते चले जते ह पर कुमर सथा के महभनमण क सुध
दलने वली वणी कह भी नह सु नई पती ह।ै जन बत से हमर गौरव थ उह भ लते-भ लते आज हमरी यह दश ई।
यह ' बु चरत ' अं े जी के ' Light of Asia' क हदी क के प म अवतरण ह।ै यप ढ ंग इसक ऐस रख गय है क एक वत
हदी क के प म इसक हण हो पर सथ ही म ल पु तक के भव को प करने क भी प णा य कय गय है। दृय वणा न जह ू
अयु य अपया तीत ए वहू बत कुछ फेरफर करन य बन भी प ह।ै अं े जी अलं कर जो हदी म आने वले नह थे व े
खोल दए गए ह, जै से म ल म यह वय थ -
..........Where the Teacher spake wisdom and power,
इसम Hendiadys नमक अलं कर थ जसम कसी सं क गु णवचक शद उसके आगे एक सं योजक शद डलकर सं बनकर रख
दय जत ह,ै जै स-े न और ओज= ओजप णा न। उ वय हदी म इस कर कय गय है-ओजपणूा अपवूा भयो न
शीभगवन्। तपया यह क म ल के भव क भी प र यन रख गय ह।ै शद बौ शो म वत रखे गए ह। उनक य भी
फुटनोट म कर दी गई ह।ै यद क परंपर के े मय क कुछ भी मनोरंजन होग तो म अपन म सफल समझ ू ग।
जस वणी म कई करो हदी भषी रमकृण के मधु र चरत क मरण करते आ रहे ह उसी वणी म भगवन् बु को मरण करन े
क यह लघु य ह।ै यप यह वणी जभष के नम से स है पर वतव म अपने सं कृत प म यह सरे उरपथ क क
भष रही है।
- रमच शुल
बु चरत / थम सगा / एडवन अना ड / रमचं शुल
“' जम
”'
दपत चर अपलोक तर सद वरजत ,
जो य जग के बीच अटल अनशुसन सजत। तनके तर है तु षतलोक जहू जीव े तर ग ुण - सहस - दस वषा वस कर जनमत भ पर।
रहे जबै य लोक बु भगवन् दयमय
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जम चन भे गट पू च तनपै अत नय। तु रत तह पहचन दे वगण ने कनी धु न
" जै ह जग कयण हे तु भगवन् ब ु पु न।"
तब बोले भगवन् "जत ह जग सहय हत
अब म अं तम बर , भयो ब बर जत तत।
जम मरण स रहत होयह म औ वे जन जे चलह मम धमा मगा पै नै नल मन।
शयवशं म अवतरह हमगर दिण तट ,
वसत धमा रत ज जहू नृ प ययी उट।" वही नश शु ोदन नृ प क रनी मय सोई पत ढग लखी व म अभु त छय।
दे यो सपने म वलु त नमा ल तरो ,
दीमन षड् अंशु धरे अतशय उजयरो। नभमं डल त छट तसु ढग दमकत आयो
औ दहनी दश आय गभा म तसु समयो।
जसौ लित भयो एक मतंग मनोहर षड् द ंतन स यु छीर सम े त कं तधर। जगी जब आन ंद अलौकक उर म छयो ऐसो जै सो क जनन ने कबू न पयो।
प वा ही भत के भ प ुनीत जो छई अदा मं डलं त भ म भसमन नै गई।
कू पगे पहर , सधु नीर धीरत गही ,
फल भनु पय जो खल, खले अकल ही।
मोद क तरंग े तलोक लौ गई बी भनु योत अधंकर भे द जत य ची।
मं जु घोष होत ' जीव होयू जे जहू बह े
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आस क ैउठ सु न, पधर बु ह रह'े।
लोक लोक म गई अपर शत छय है,
फ ल ते रहे उमं ग न हये समय ह।ै भ म औ पयोध पै समीर धीर जो बो
और ही रो कछ , न जत क पै को।
भयो य ही भोर ब द ैव ब े आय
लगे भखन व को फल भ प स हरखय -
' कका बीच दनशे ह सब योग शुभ य कल व को फल परम सु ं दर होयह,ै नरपल!
ी महदे वी जयह सु त नवन् अपर
जो सधहै य जगत् के सब जीव को उपकर ,
अन त उरहै जो सकल मन ुज समज ,
न तो सकल जग शसहै जो करन चहहै रज।
- --
गभा प यो , उठी मय के दय यह बत
दे वदह चल पत के घर लख शशु नवजत। नै गयो मधय तको ल ुं बनीबन जत शलत तर एक ठी भई प ुलकत गत।
शखर सम सो खरो स धो वटप परम वशल
नवल कशलय धरे, सु रभत सु मन मं डत भल।
बु को आगमन य सब वतु रह जनय
परयो आगम जन व को , उठयो लहरय।
हे र महम महदे वी पै सहत समन
हरी डर नवय सु ं दर दयो तन वतन।
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भ म सहस लय सु मनन दई से ज सजय हयबे हत तह सोतो वमल फटो आय।
कयो रनी ने सव बनु पीर शशु अवदत बु के बीस िलण रहे जके गत। पू चगो स ंवद शभु सद म तब जय ले न तनको गई चत पलक चट आय।
मे त छल आय बहक बने सब दपल कमा णन के लखत जे रहत ह सब कल।
प वा को दपल आयो , जसु अनु चर जल
रजत अं बर धवल धर,े लए मु ढल।
चयो दिणपल लै कु ं भं डगण क भीर ,
नील वजन च,े नीलम ढल सजे बीर।
चयो पमपल जके नगगण ह सं ग
गहे ढल वल क , और चे प तु ं रग।
घे र उर लोक पलह कनकमं डत गत पीत हय पै वणा ढलन सजे िय लखत। शधर सब दे व आए अलख वभैव सं ग पलक पै दयो कंध लगय सहत उम ंग।
रहे वहक प म कोउ तह जयो नह
दे वगण व दवस बचरे मले मनु जन मह।
रो वगा उछह सो भर ग ुन जगत् कयन ,
जन यह नरलोक म पु न अवतरे भगवन।्
नृ प यह जयो नह रही चत चत पी
को गणकगण आय , ' पु यह परम तपी।'
चव यह सोइ भ म भोगन जीवन भर आवत है जो त सहे वसर य भ पर।
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सत र यह सु लभ - थम है चर वर अजर जो भर ग ुं कर पग धरत मे घ पर।
हतर हम सरस े त वहन सु दर अत , नीतवशरद सचव तथ दु जा य से नपत ,
भया अनु पम पवती यु वती सु कुमरी रमणीर अमोल उष स ब उजयरी। सु न सु त वभैव नृ पत हरष अनशुसन फेरो
' उसव और उछह नगर म होय घने रो '।
सब बट जत बहर , च ंदननीर छरको जत ह ै
दमकत ु मन पै दीप , फहरत केतु ब दरसत ह।
सज स र खू डे धर कर म करत आसन पै तरे नट इंजलक खे ल दे खत लोग कू अचरज भरे।
कू र् नक चु न च नरी , पग घ ू घ झनकरत , नज चपल चरनन के चू दश मं द हस उभरत।
तीतर बटेर बटोर कोऊ कतू रहे लय ह,
बै ठे मदरी कतू मकाट भलु रहे नचय ह।
इत भरत मोटे कल नन दू व पे च दखय कै,
उत वकर मृ दं ग ढोल बजय सज मलय कै।
आलप छू त बीन क झनकर मं जु उठय ह,
य दे त रसक समज को बद बद हयो लसय ह।
ब बणक आए द र त सं वद शभु यह पयकै
ल भ ट क ब वतु सु ं दर कनक थर सजयकै-
कौशे य अशंु क चीन के, नव शल ब कमीर को
मण पु परग , वल , मोती सु घर सगर तीर को।
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सु ं दर खलौनन के मनोहर म ेल कू सोहत धरे,
घनसर , कुमकुम , अगर , मृ गमद , भर चं दन के भरे।
कोउ धरत अं बर ध पछू ह सु रंग झीने लय ह,
नह जसु बरहर् प सकत सल वदन छपय ह।
सरी कनरी जसु मोतन स जरी अत झलझली ,
अत भ भ षण , वसन , भजन , फलन फलन क डली।
ब भ ट पठवत करद पु र , सब भवन भ पत को भरो ,
सथा व ' सवाथ स ' कुमर नम गयो धरो।
आए अपरचत जनन म ऋष असत परम प ुनीत
सं सर सो फर वण जनके सु नत सु र सं गीत ,
अजथ तर बै ठे रहे जो धरे अपनो यन ,
तहू बु जम उछह को सु न परयो नभ म गन।
सोहत पु रणवीण प णा कर तपबल पय। समन स नयरय नरपत परे पयन जय।
उत महरनी आय पू यन पै दयो ससु डर ,
पै दे ख तह मु नीश चरनन टर उठे पुकर -
' हे दे व! करती कह ?' पु न शशु चरनरज सर लय
मु न को ' हौ तु म सोइ बं दन करत ह सर नय।
मृ दु योत लसत अप वा, वतक चन सो दरसत ,
बीस िलण मु य , अनु ंजन असी अवदत।
हौ ब ु , धमा सखय करहौ लोक को उर ,
अनु सरण करह जीव जे ते होयह भव पर।
तब तइू रहह नह , मे री अवध गइ नयरय।
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तन रख करह कह नै कृतकृय दशा न पय ?
भ पल परम सु जन! जनौ कली है यह सोय ,
कपं त म कू एक बर वकस जको होय ,
जग न सौरभ , े म के मकरंद स भर जय ,
तव रजकुल म आज यह अरवद फटयो आय।
य भवन को अत भय! पै कछु द:ुख दरसत। नृ प! तु ह य सु त हे तु परहै सहन हय आघत।
हे दे व! सु र नर य भई यह गभा धर जग मह ,भवतप भोगै और त अब नै सकत यह नह। लशेप यह जीवन जो सो नह रह ज ैह।ै सत दवस म कर यको त अं त सधौह।ै
सतव दन भई वणी सय , नज गृ ह मह
रत सु ख स सोय रनी फेर जगी नह।
यशस् वगा म सो जय लयो नवस दे वगण जहू रहत से व म खे चू पस।
मह जवत लगी पलन शशु सु खकरी ,
सचन लगी कंठ सकल जग मं गलकरी।
“' िश ”'
आठ वषा क ेभे कुमर जब नृ प मन मह वचरो ,
रजकुमरह चहय पवन रजधमा अब सरो।
चमकर ग ुन सकल महीपत आगम कथन वचरै,
चहत नह नै बु पु मम जग म न पसरै।
भरी सभ के बीच एक दन भ पत बै ठयो जई ,
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प छयो सब मं न स अपने सदर नकट बु लई।
“ कहौ , सचववर! कौन नरन म अत वन कहवै,
रजपु के जोग सकल गु ण जो मम सु तह सखवै।”
को एक वर स सब मल के “ सु नो नृ पत! यह बनी ,
वम समन न कोऊ बु मन औ नी।
वे द वषय परंगत सब वध , शन म रो ,
धनु व द म चतु र लसत सो , सकल कल म प रो ”।
वम आय नृ प आ सु नी , अमत सु ख पयो। शभु दन औ शुभ घरी मह पु न कु ू वर पन को आयो।
रनजरी रूगी च ंदन क पटी कू ख दबई लए ले खनी गु समीप भे ठे दीठ नवई।
तब बोले आचया ' वस! तु म लखौ मं यह सरो '।
य कह पवन गयी को म ल मं उरो
धीमे वर स , सु नै न जस कोउ नष नर नरी
सु नबे के केवल ह जके तीन वणा अधकरी।
' लखत अब,ै आचया!' कु ू वर बोयो वनीत वर
लयो अनेकन लपन मं पवन पटी पर।
ी , दिण , दे व , उ , मं गय , अं ग लप , दरद , खय , मधयिर वतर , मगध , बं ग लप ,
औ खरोी , िय , नग , कर , सगर पु न
लख दखरए कु ू वर सबन के िअर चु न चु न।
मग शक आदक के िअर छटे नही ,
सय अ क जो उपसन करत सदह।
बोलन म ब चयो मं सवी पु न भन
7/14/2019
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को गु ' बस करौ , चलो अब तो गनती गन।
कहत चलौ मम सथ नम सं यन को तौल
पू ची जयू हम , कु ू वर! लख पय त न जौ ल।
कहत एक , ,ै तीन , चर त दस ल जओ ,
दस त सौ ल , पु न सौ त चल सहस गनओ।'
त पछे गन गयो कु ू वर एकइ दहइ ,
शत सहे औ अयु त िल ल पू यो जइ ,
गनत गयो कं यो नह सो कु ू वर सयनो ' तके आगे यु त कोट औ अबु ा द मनो।
परं इखवा और महखवा औ महप पु न '
असं येय ल गनत गयौ , सु न चकत भए मु न।
बोले मु न ' है बत ठीक हे कूवर हमरे
अब आयत परमण बतऊू तु मको सरे'।
यह सु न रजकुमर वचन बोयो वनीत अत
'वण करौ , आचया! कहत ह सकल यथमत।
दस परमणु न को मलय परस म कहत ह जोरे दस परस म एक सरेणु लहत ह।
दे त स सरेणु योग अणु एक बवई भवनरंभृ त रवकर म जो परत लखई।
सत अगु ण को योग एक केश कहवत ,
जो दस मल कै लय क ह सं पवत।
दस लय को एक यक सब मनत आव,
दस यकन को एक यवोदर सबै बतव।
दस जौ जोरे होत एक अं गु ल य मनत ,
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बरह अं ग ुल को वतत सगरो जग जनत।
तके आगे हत , दं ड , धनु ल आव।
लन को लै बीस स द री ठहरव। ते ती द री स होत जे ती के बहर एक सू स म चलो जय बनु थमे कोउ नर।
चलस सन क द री को गो ठहरवत। होत चर गो को योजन यह सबै बतवत।
यद आयसु तव होय कह अब म, हे ग ुवर!
केते अणु ऍट सकत एक योजन के भीतर।
य कह तु रत कुमर दयो अण ुयोग बतई ,
सु नतह वम परे चरनन पै जई।
बोले मु न ' त सकल गु न को ग ु जग मह।
त मे रो ग ु , म ते रो ग ु नय नह।
बं दत हौ सवा कु ू वर! त ेरो पद पवन ,
मम चटसरह आयो त केवल दरसवन -
बनु पोथन ही सकल तव त आपह छनत ,
तपै ग ुजन को आदर प रो जनत।'
करत ी भगवन गु जन को सद समन , वचन कहत वनीत यप परम ननधन।
रजते ज लखत मु ख प,ै तदप मृ दु वहर ,
दय परम सशुील कोमल , यदप श र अपर।
कबू जत अहे र को जब सख लै सं ग मह सहसी असवर तन सम कोउ नकसत नह।
रजभवन समीप कबू हो जो लग जय
7/14/2019
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रथ चलवन मह कोऊ तह सकत न पय।
करत रहत अहे र सहस ठठक जत कुमर ,
जन दे त कुरंग को भज , लगत करन वचर।
कबू जब घु रदौर म हय हू क छू त सू स ,
हर अपनी हे र व जब सख होत उदस।
लगत कोऊ बत अथव गु नन मन म आन
जीत आधी कु ू वर बजी खोय दे तो जन। बत य य गयो भु क वयस् लह दन रत बत दन दन गई तनक दय यह भू त।
यथ कोमल पत ै त, होत वटप वशल ,
करत छय द र ल ब जो गए कछु कल। कतु जनत नह अब ल रो रजकुमर
लशे , पी , शोक कको कहत है सं सर।
इह ऐसी वतु कोऊ गु नत सो मन मह रजकुल म कबू अनभुव होते जनको नह।
एक दवस वसं त ऋतु म भई ऐसी बत ,
रहे उपवन बीच स नै हं स उ कै जत।
जत उर ओर नज नज नी दश ते धय ,
शु हमगर अं क म जो लसत ऊपर जय।
े म के सु र भरत , बधू धवल स ुं दर पू त
उे जत वहं ग कलरव करत नन भू त।
दे वद कुमर चप उठय , शर सधंन
लय अगले हं स को कर मर दीनो तन।
7/14/2019
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जय बै ठयो पं ख म सो हं स के सु कुमर ,
रो फैयो करन हत जो नील नभ को पर।
गरयो खग भहरय , तन म बधयो वशख करल ,
ररंजत नै गयो सब ेत पं ख वशल।
दे ख यह सथा लीनो धय तह उठय ,
गोद म लै जय बै ठयो प इरआं सन लय।
फेर कर लघु जीव को भय दय सकल छुय ,
और धरकत दय को य दयो धीर धरय।
नवल कोमल कदलदल सम करन स सहरय ,
े म स पु चकर तकत तसु मु ख दु ख पय।
ख च लीनो नठुर शर कर य बरंबर। घव पै धर जी ब टी कयो ब उपचर। दे खबे हत पीर कैसी होत लगे तीर लयो कु ू वर ध ूसय सो शर आप खोल शरीर।
चक सो चट परयो पीर परी दण जन ,
छय पयनन नीर खग पै लयो फेरन पन। पस तके एक से वक तु रत बोयो आय अबै मे रे कु ू वर ने है हं स दयो गरय।
गरयो पटल बीच बध के ठौर पै सो यह। मलै मोको , भो! मे रो कु ू वर म ूगत तह।'
बत तक सु नत बोयो तु रत रजकुमर जय कै कह दे दै ह नह क कर।
मरत जो खग अवस पवत तह मरनहर जयत है जब तसु तपै नह कछु अधकर। दयो मे रे बधंु ने बस तसु गत को मर
रही जो इन े त पं खन क उठवनहर।'
7/14/2019
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दे वद कुमर बोयो ' जयै व मर जय
होत पं छी तसु है जो दे त वह गरय।
नह क को रौ जौ ल रो नभ मह ,
गर परयो तब भयो मे रो , दे त हौ य नह ?'
लयो तब खगकंठ को भु नज कपोलन लय पु न परम गभंीर वर स को तह ब ुझय
' उचत है यह नह जो कछु कहत हौ त ुम बत ,
गयो नै यह वहग मे रो नह दै ह , तत!
जीव ब अपनयह य भू त य सं सर दय को औ े म को नज कर भ ुव सर। दयधमा सखयह म मनु जगन को टेर म क खग पशु के दय क बत कहह ह ेर।
रोकह भवतप क यह बती धर करल परे जम मनु ज त लै सकल जीव बहल। कतु चह कु ू वर तो चल वजन के तीर
कह अपनी बत चह यय धर जय धीर।'
भयो अं त वचर नृ प के सभमं डप मह
कोउ ऐसो कहत , कोऊ कहत ऐसो नह।
को यही बीच उठ अत पं डत एक ण है यद वतु कोऊ करौ न ैकु वव ेक।
“ जीव पै है जीविरक को सकल अधकर
वव वको नह चो बधन जो कर वर। बधक नसत औ मटवत रखत रछनहर
हं स है सथा को यह , सोइ पवनहर ”।
7/14/2019
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लयो सरी सभ को यह उचत यय वधन।
भई मु न क खोज , पे सो भए अं तदन।
यल रगत लयो सब तहू और कह नह
दे वगण य प आवत कबू भ तल मह।
दय के शभु कया को आरंभ यह कर कयो ी भगवन ने लख द:ुखी यह सं सर। छू पीर वहं ग क उ मयो जो नज गोत और लशे न कु ू वर जनत कहू कसैे होत।
को नृ प एक वसं त के वसर वस! चलौ प ुर बहर आज। जहू सु खम सरसत धन , धरती अपनो धन खोल अनज।
बछवत कटनहर समीप , चलौ अपनो यह दे खन रज।
भरै नृ प के नत कोषह जो चल आवत पलत लोकसमज
चे रथ पै दोउ जत चले, वन , बग , तग लस चू ओर।
लसे नव पलव स लहर लह कै त म ंद समीर झकोर।
कू नव कशु कजल स लल लखत घने बनखं ड के छोर। पर तहू खे त सु नत तहू मलीन कसनन को कल रोर।
लपे खरहनन म सथुर ेपथपर पयर क ेढह लखत। मे नव मं ज ुल मौरन स सहकर न अं गन मू ह समत।
भर छब सो छलकय रहे, मृ दु सौरभ लै बगरवत बत।
चर ब ढोर कछरन म जहू गवत वल नचवत गत।
लदे कलयन और फलन स कचनर रहे कू डर नवय। भरो जहू नीर धर रस भीज कै दीनी है द ब क गोट चय। रो कलगन वहं गन को अत मोद भरो चू ओर स आय।
क लघु जं तु अने क , भग पु न पस क झन को झहरय।
डोलत ह ब भृ ं ग पतं ग सरीसृ प मं गल मोद मनय।
भगत झन स क तीतर पस कू कछु आहट पय।
7/14/2019
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बगन के फल के फल पै कू कर ह भगत चच चलय। धवत ह धरबे हत कटन चष धनी चत चह चय।
क क उठै कबू कल कंठ स कोकल कनन म रस नय। गीध गर छत पै कछु दे खत , चील रह नभ म मू रय।
यमल रेख धरे तन पै इत स उत दौर कै जत गलय। नमा ल तल के तीर कू बक बै ठे ह मीन पै यन लगय।
चत मं दर पै च मोर रो नज चत पं ख दखय।
यह के बजन बजन क ध ुन द र के गू व म दे त सु नय।
वतु न स सब शं त समृ रही ब पन म दरसय। दे ख इतो सु ख सज कुमर रो हय म अत ही हरखय।
स म प स पै वने कनो वचर जब दे खे जीवन कुसु म बीच करे कंटक तब। कैसो दीन कसन पसीनो अपनो गरत केवल जीयन हे तु कठन म करत न हरत।
गोद लकुट स दीघा वलोचन ब ैलन हू कत जरत घम म रहत ध र खे तन क फू कत।
दे यो फेर कुमर खत ददु र पतं ग गह ,
सपा तह भख जत , मोर स बचत सपा नह।
यम पकरत कट , बज झपटत यम पर ,
चह पकरत मीन , तह धर खय जत नर।
य इक बधकह बधत एक , बध जत आप पु न ,
मरण एक को द जे को जीवन , दे यो गुन।
जीवन के व सु खद दृय तर तह लखनो एक द सरे के बध को षच लु कनो।
परे कट त लै मनु य जम म खई चे तन णी मनु ज बधत सो बधंु ह जई।
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भ खे दु बा ल बै ल को नध फरवत ,
ज ए स छल छत कंध पै मनह न लवत।
जीबे क धु न मह जगत् के जीव मरत लर लख यह सब सथा कु ू वर बोयो उसस भर -
' लोक कह यह कोइ लगत जो परम सु हवन ,
अवलोकन हत जह परयो मोको ू आवन ?
के पसीने क कसन क खी रोटी , कैसो कवो कम करत बैलन क जोटी! सबल नबल को समर चलत जल थल म ऐसो!
नै तटथ टुक धर यन , दे ख जग कैसो।'
य कह ीभगवन् एक जब तर जई बै ठे म त समन अचल परइंसन लई।
लगे चतन करन मह भवध भय ंकर! कह म ल है यको और उपचर कहू पर ?
उमगी दय अपर , ीत पसरी जीवन त
लशे नवरण को जय म अभलष जयो अत। यनम नै गयो कु ू वर य मनन करत जब रही न तन सु ध आमभव बह गए द र सब।
लो चतु वध यन तहू भगवन बु तब धमा मगा को कहत थम सोपन जह सब।
पं चदे व तह कल रहे कू जत सधए तनके के वमन जबै त ऊपर आए। परम चकत नै लगे ब झन तक परपर
कौन अलौकक श हम खचत य त तर ?'
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गई दीठ जो तरे परे भगवन् लखई
ललत योत सर लसत , वचरत लोक भलई।
चीह तह ते दे व लगे शभु गथ गवन -
" तपशमन हत मनसरोवर चहत आवन ,
नशन हत अन तमर दीपक जगहै अब मं गल को आभस लखौ नै मु दत लोक सब।"
खोजत खोजत एक द त नृ प को तहू आयो पू यो वही ठौर कु ू वर जहू यन लगयो।
पहर तीसरो चयो यन नह भं ग भयो पर
अतचल क ओर बे भगवन् भकर।
छय घ म सकल कतु जम ुन क छह
रही एक दश अी , टरी भु पर त नह।
जम भु के पवन सर पै परै न आई
रव क तरछी करन , तप भु ओर चई।
लयो द त यह चरत हये अत अचरज मनी।
जमु न क मं जरन बीच फटी यह बनी -
' रहहै इनके दय यन क छय जौ ल
नह सरकहै कतू हमरी छय तौ ल।
बु चरत / तीय सगा / भग -1 / एडवन अना ड / शुल
रज क चत
वषा अठरह पर भए भगवन् ब ु जब
तीन भवन बनबे क आ न ृपत दई तब -
बनै एक तो दे वदर स मढयो भ अत
शीतकल म होय शीत क नह जमे गत ,
बनै े त ममा र को द जो दमकत उवल ,
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ीमकल म बस जोग सथुरो औ शीतल ,
लल ट को बनै तीसरो भवन मनोहर ,
पवस ऋतु के हे तु खल चं पक जब सु ं दर।
तीन हया य-े शु , रय तीजो सु रय पु न -
रजकुमर नम भए नमत तहू चु न चु न।
तनके चर ओर खले उपवन मन मोहत ,
नरे घ मत बहत , बटप वीध ब सोहत।
सघन हरयरी मह लतमंडप ब छए। जनम कबू कु ू वर जए ब ैठत मन भए।
नव मोद आमोद तह बलमवत छन छन ,
पय तण वय रहत सद सु ख स बतवत दन।
कबू कबू पै छय जत चत चत मह ,
मनस जल वरय पय य बदर छह।
दे ख िलण ये महीपत को सचव बु लय -
'यन है जो कह गए ऋष औ गणकगण आय ?
ण त य पु यह जग जीत करहै सज ,
सकल अरदल दल कहै है महरजधरज। नह तौ पु न भटकहै तप के कठन पथ मह
खोय सवा स पयहै सो कह जन नह।
लखत तसु वृ हम य ओर ही अधकय व हौ तु म दे मोक म ं सोइ बतय।
उ पथ पग धरै जस कु ू वर सज सु ख जत ,
घट िलण सय सब , सो करै भ तल रज।
रो जो अत े बोयो बचन सीस नवय
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' े म है सो वतु जो यह रोग दे य छुय।
कु ू वर के य परम भोरे दय प,ै नररय!
तयन के छल छंद को चट दे जल बछय।
प को रस कह जनै अबै कु ू वर अजन ,
चपल चख चत मथनहरे, अधर सधु समन।
दे वको कमनी कर चत ुर सहचर सथ ,
फेर दे खौ रंग अपने कु ू वर को , हे नथ!
लोह सीक स नह जो भव रोको जय कुटल कमन केश स सो सहज जत बधूय '।
को नृ प यद खोज यु वती कर यको यह ,
े म क कछु परख औरै औ नरली चह।
यद कह हम तह ' हे सु त! प उपवन जय
ले च ुन सो कली जो सब भू त तु ह सु हय '
परम भोरो बह ूस कै सो बत दै है टर भगहै आनं द स जह सकत नह जय धर।
को द सरो सचव ' नृ पत यह समु झ ले मन ,
तौ ल कदत है कुरंग जौ ल शर खत न।
कोउ मोहहै अवस तह जनौ यह नय
क को मु ख तह वगा सम लगहै सु खमय।
प उष स उवल कोऊ लगहै तको ,
आय जगवत जो तदन सरी वसुध को।
रचौ सत दन म 'अशोक उसव ' नृ प! भरी
होयू जहू एक रय क सकल कुमरी।
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ब ूटै कु ू वर 'अशोक भं ड ' सबको स मन
प और गु न करतब तनके नरखै नयनन।
लै लै नज उपहर जन जब जगै कुमरी ,
छप कै दे खत रहै तहू कोऊ नर नरी
कके ऊपर कु ू वर आपनी दीठ गव,ै
कक चतवन मले उदसी मु ख क जवै। चु न े म के नयन े यसी आपह जई।
रसबस कर कै कु ू वरह हम य तो सकत भु लई।'
भली लगी यह बत , यु सब के मन भई।
तु रत रय म नरपत ने डी फरवई -
' रजभवन म आव सु ं दर सकल कुमरी ,
ह ै'अशोक उसव ' क कनी नृ पत तयरी।
नज कर स उपहर बू टह ीकुमर क
पै है वतु अमोल नकसहै जो सब स ब।'
बु चरत / तीय सगा / भग -2 / एडवन अना ड / शुल मे
नृ पर कुमर चल पु र क , ऍगरग स ुगधं उै गहरी ,
सज भ षण अं बल रंग बरूग , उमं गन स मन मह भरी।
कवरीन म मं जु स न गु छ,े दृ गकोरन कजर लीक परी , सत भल पै रोचनबदु लस,ै पग जवक रेख रची उछरी।
चल कु ू वर आसन पस स मृ दु मं द गत स नगरी ,
ह कत करे दीघा नयन नवय भोरी छव भरी।
ब रजते ज स कछ तहू हे र ते हहर हये,
जहू लसत कु ू वर वरग को म ृदु भव आनन पै लय।े
7/14/2019
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जो नकसै अत पवती , सब लोग सरहत जह दखय
सो चक कै हरनी सी खी चट होय कुमर के समुख आय -
द वप , महमु न सो सब भू त अलौकक जो दरसय -
लै अपनो उपहर मलै पु न कंपत गत सखीन म जय।
पु र क कुमरी एक पै चल एक यो पलटी जबै,
टटयो छट को तर औ उपहर बू टगो सबै
ठी भई तब आय कु ू वर समीप द यशोधर अत चकत हे रत रह गयो सो वगा क सी असर।
मृ दु आनन पै लख इंदु भ अरबद सबै सकचुय परे शर हे र स न के नै नन म हरनीन के नै न न ठहरे। पु न जोर कुमर स दीठ चतै मु सकन कछु अधरन धरे
" कछु पय सक हम"ू यह पछत भौहू न म कछुभव भरे।
सु न कहत रजकुमर "अब उपहर तो सब ब ूट गयो ,
पै दे त ह जो नह अब ल और क क दयो" चट क मरकत मल वके कंठ म नई हरी ,
तहू नयन दोउन के मले जय ीत जस जग परी।
बत दनन म भए बु पद कु ू वर जब
बनती कर ब लोग जय तनस प छयो तब
य सहस लख गोप को य ढरयो तसु चत '
को बु ' हम रहे परपर नह अपरचत।
बत जम क बत सु नौ जमु न के तट पर ,
नं ददे वी को सोहत जहू धवल शखर वर ,
एक अहे री को कुमर मन मोद बई। वनकयन के सं ग रो खे लत तहू जई।
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बयो पं च सो , तह थम चल छुवन वचरी
दे वदर तर दौर हरनी सरस कुमरी।
बनज ही स दे त क को भल सजई ,
नीलकंठ के पं ख क को दे त लगई ,
औ ग ं ज क मल क के गर म नवत ,
क को चु न दे वदर के दल पहरवत।
दौरी पछे जो सबके सो आगे आई ,
मृ गछौन दै एक तह स ीत लगई ,
सु ख स दोऊ रहे बत दन ल बन मह ,
बधंो ीत म दोउ अभ मन मरे तह ूह।
दे खौ! जै से बीज भ म तर ढको रहत ह,ै
फोरत अं कुर वषा क जब धर लहत है,
यही वध सब कमा बीज पहले के भई - रग ेष , सु ख द:ुख , भलई और ब ुरई -
गटत है पु न जब कबू ते अवसर पव,
औ मीठे व कवे फल नज डरन लव।
सोइ अहे री को कुमर मोको त ुम मनौ ,
है यशोधर सोइ चपल वनकय , जनो।
जम मरण को च भयौ जौ ल नह यरे,
आवन चह,ै रही बत जो बीच हमरे।"
रहे कु ू वर को भव लखत जो उसव मह
जय सु नयो नृ प को सब , कछु छडयो नह।
कैसे कु ू वर वर रो बन ब ैठो तौ ल
सु बु क यशोधर आई नह जौ ल।
7/14/2019
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पलटयो कैस रंग कु ू वर को य सो आई ,
नरखन दोऊ लगे परपर दीठ मलई।
रहर दै बे क सरी बत गए कह ,
रहे े म स एक द सरे को कैसे चह।
शपिरी बोयो भ पत बहू स "वतु हमने सो पई रख लै है जो अवस हमरो कु ू वर फूसई।
पठै द त अब मू गौ सो कय सु कुमरी ,
सु बु स कहौ जय यह बत हमरी।"
रही रीत पै शयगणन म जो न सकै टर ,
बे घरन क बरन चहै जो कय स ुंदरी शकल म परै नपु णत तह दखवन तन सब स ब जो जो चह तको पवन।
नृ पगण वपरीत रीत नह सक चलई को कु ू वर को पत "नृ पत स बोलौ जई।
द र द र के रजकु ू वर ह चहत यको ,
सब स जो ब सकै कु ू वर तो दै ह तको।
ए शे हयचलन म यद सो ब ज ैह,ै
वस ब कै और कहू बर कोऊ पै है?
पै दे खत ह ढीले ढं गन को वके जब कैसे आश कर होयहै वस यह सब ?"
भयो भ प अत दु खी लयो सोचन मन मह -
' चहत कु ू वर है यशोधर को , सशंय नह।
कौन धनधुा र नगद स पै ब मरह?ै
हय चलन म अजु ा न समु ख कौन ठहरह?ै
7/14/2019
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खं ग यु म वीर नं द स ब कक गत ?"
सोच सोच महपल भयो मन म उदस अत।
दे ख दश यह वहू स कु ू वर बोयो सु खकरी ' सु नो तत! ये सकल कल ह सखी हमरी।
करौ घोषण तु रत भड,ै मो स जो चहै
इन सब खे लन मह सोच क बत कहू है?
ने ह वफल कर कु ू वर हथ स जन न दै ह।
ऐसी छोटी बतन करन तह गव ह ?'
भयो ' घोष सथा कु ू वर ह करत नमं त।
आय सतव दवस दखव रणकौशल इत।
रजकु ू वर स जो चहै सो हो लगवै,
जो जीतै सो यशोधर को बर लै जवै।"
रंगभ म लखत जको द र ल वतर। सतव दन आय पू चे सकल शयकुमर। कु ू वर को लै चली शवक सजी नन रंग। चल मं गल गीत गवत सु ं दरी ब सं ग।
सु ं दरी को बरन को अभलष मन म लय रजकुल को नगद कुमर पू यो आय।
और आए न ंद अजु ा न , दोउ परम कुलीन , सकल यु वकन के शरोमण समरकल वीन।
अं त कंथक नम चपल तु रंग पै असवर ,
लख अपरचत भी जो हहनत बरंबर ,
आय पू यो चट तहू सथा रजकुमर
चकत चख स जगण दश लखत , करत वचर -
7/14/2019
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भ पतन स भ इनको खन पन नवस ,
द:ुख सु ख म करत एक समन रोदन हस।
अं त मं जु यशोधर क ओर हे र कुमर ,
वहू स ख ची पट क बगडोर सहत सभंर ,
क द कंथक पीठ त आयो अवन पै फेर ,
भु ज उठय वशल य वध को सब को टेर -
' योय नह य र के जो योय सब स नह।
आय ठो ह बरन क चह धर मन मह।
कयो अनु चत आज सहस था हम यह धय
स यको करै अब तपिगण सब आय।'
धनु व क पिरी हत चरयो न ंद। जय रयौ लय षट् गो द र पै सनं द।
वीर अजु ा न ने धरयो नज लय षट् गो द र ,
नगद सगवा बगो आठ गो भरप र।
पै कु ू वर सथा ने आदशे दयो सु नय -
'धरो मे रो लय दस गो द र ू ते जय।'
गयो एती द र पै धर लय सो जब जय
दशा कन को एक कौी सो परयो दरसय। ख च शर तब छ ू बेयो लय नं द सभंर वीर अजु ा न नसनो लयो अपनो मर।
नगद अच क शर स लय कनो पर।
चकत जनसमु दय कनी 'धय धय ' पु कर।
पै कुमर यशोधर यह लख लयो मन मर ,
चकत नयनन पै लयो नज च अं चल डर
7/14/2019
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लखै जम नह सो तन लोचनन स और वफल अपने कु ू वर को शर होत कू तह ठौर।
जय तनको धनु ष लीनो हथ रजकुमर , कसी जम तू त , च ूदी क बधूयो दृ तर ,
सकत जको तन आं गु र चर सोई वीर जसु ब वशल म अत होय बल गंभीर। बहू स तीर चय खच डोर कु ू वर वीन मल धनु क कोट दोउ औ म ठ कर क पीन।
दयो य कह फेक वको द र कु ू वर उठय -
' खे लबे को धनु ष यह तो दयो मोह थमय।
े म परखन योय नह यह , लखत सकल समज।
शय अधपत योय धनु ष न कह कोउ पै आज ?
एक बोयो ' सहहनु को धनु ष है पथृु एक ,
धरो मं दर मह कब स कोउ न जनत ने क ,
सकत नह चय जक कोउ पतच तन ,
जो चै तो सकत वको नह कोउ संधन।
' व ेग लओ तह ' बोयो कु ू वर तब हरषय
लोग लए जय सो चीन धनु ष उठय। वनमत , कनकबे लनखचत , अत गु भर
चप घु टनन पै लयो बल ऑक तसु कुमर।
को पु न ' लै यह बेयो लय तो टुक जय '।
पै सयो लै तह कोऊ नेकु नह नवय।
कु ू वर उठ तब सहज झु क को दं ड दयो लचय ,
डोर क लै फू स दीनी कोट बीच चय ,
7/14/2019
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शजनी पु न ख च कनी अत कठन टंकर
भयो कंपत पवन , प यो घोर रवपु र पर।
हहर नबा ल लोग प छयो 'शद यह कह ओर ?'
को सब ' यह सहहनु के धनु ष को रव घोर।
ह चयो जह अबह भ प को सु त धीर ,
जत है अब लय बेधन , लगी है अत भीर '।
सध शर सधंन छू यो जबै रजकुमर
पवन चीरत चयो , कनो भे द लयह पर।
थयो नह शर गयो सनसन बत आगे द र दृ क क नह पू ची जहू भरप र। नगद पु न खं ग चलवन क ठहरई। तलद ु् रम दस ऑगु र मोटो दयो गरई।
अजु ा न खभंो दश ऑगु र मोटो ब जब पं ह ऑगु र वटप छ कर दय नंद तब। रहे तहू ै वटप खे ऐसे जु र सं गह। चमकयो करवल कु ू वर कर म अपने गह।
दोऊ य बे लग उे एकह हर लह य के य ते खे जहू के तहू गए रह।
हरष पु करयो नं द 'धर बहू क कुमर क '। कू पी मन म कु ू वर दे ख यह बत हर क।
मत दे व यह चरत रहे अवलोकत व छन। दिण दश स े र बहयो म ंद समीरन। हरे भरे ते ऊूचे दोऊ तल मनोहर तु रत गरे अररय आय नीचे धरती पर।
7/14/2019
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फेर तीखे तु रग चर ने बए जोर ,
तीन फेरो कयो व मैदन के सब ओर। गयो कंथक द र ब पछे सबन को नय
वे ग ऐसो तसु जौ ल फेन मु ू ह स आय।
गरै धरती प,ै उै सो बीस ल मन।
नं द बोयो ' हमू जीत पय अ समन।
बन फेरो तु रग कोऊ छोर लयो जय ,
फेर दे खौ कौन वको सकै वश म लय '
सीकन स बधं लए एक अ वशल ,
जो नशीथ समन करो , नयन जसु करल ,
झर केसर रो जो फरकय नथु ने दोउ पीठ स नह जसु कबू लगन पयो कोउ।
चयौ वपै नं द कैस गयो सो जब छक
दोउ पग स भयो ठो दयो वको फ क रो अजु ा न ही जयो कछु कल आसन मर ,
दयो चबु क पीठ पै कस बग को झटकर।
रोष औ भय स भक भयो तु रग झु क झु क ,
बहू क कै फेरो लगयो खे त म व घ म।
कतु खीस नकस सहस फरयो कूधी मर , ए स अजु ा न दबयो , दयो तक ढर।
अपल अने क एते मह पू चे आय ,
ब ूध लीनो वह तु रतै लोह सीक नय।
को सब ' य भ त ढग नह उचत कु ू वरह जन ,
दय ऑधी सरस जको धर अनल समन।'
7/14/2019
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को कतु कुमर ' खोलौ अबै सीक जय ,
दे केसर तसु मे रे हथ नेकु थमय '।
थम कसेर कु ू वर प ुन कछु मं द शद उचर
दयो मथे पै तु रग के दहनो कर धर।
कंठ को गह पन फेरयो पीठ ल लै जय। चकत भे सब लोग लख जब अ सीस नवय
भयो ठो सहम के च ुपचप तहू बस मन ,
मनो बं दन करन लयो परम भु पहचन।
नह डोयो हयो ज छन कु ू वर भो असवर चयो सीधो ए औ बगडोर के अनु सर।
उठे लोग पु कर ' बस , अब! इन कुमरन मह
है कु ू वर सथा सब स े सशंय नह '।
ववह
सु बु अत है स लख कौत ुक सरे
बोल े' तु म , हे कु ू वर! रहे हम सब को यरे
सब स ब तु म कौ रही यह चह हमरी।
कौन श लह कयो आज यह अचरज भरी ?
कहत सबै तु म रहत रंग म भ ले अपने,
फलन पै फैलय प ूव दे खत हौ सपन।े यह अभु त पु षथा कहू त तु म म आयो तनस ब जो अपनो सरो समय बतयो
रणखे तन के बीच और आखे ट वनन म,
सकल जगत् के वहरन म कुशल जनन म?'
पत को नदशे पय सु ं दरी कुमरी उठी ,
लीने जयमल दोउ हथ म सजय कै।
7/14/2019
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कंचनकलत पटसरी ख च आनन प,ै
घ ू घट बय चली मं द पग नय कै।
डोलत समज बीच पू ची त ठौर जह,ू
सोहत सथा छट द छहरय कै।
ठो है समीप जके अ चुपचप सब
चौकी भु लय , करे कंठह नवय कै।
कु ू वर के पस जय आनन उघरयो वन े
जपै अनु रग के उमं ग क भ छई।
कंठ बीच डरी जयमल झु क छुयो पद ,
पु लकत गत बोली भव सो भरी भई।
' फेरो मे री ओर दीठ ने कु तो , कुमर यरे!
म तो सब भ ूत स तहरी आज नै गई '।
मु दत लोग भए दे ख उन दोउन को जत कर बीच कर धरे ीत स नई बत दनन म भए बु सथा कु ू वर जब
वनती कर यह ममा जय तनस ब झयो सब -
कनकखचत सो चत सरी य कुमर धर
चली दय म गवा औ अनु रग इतो भर ?
बोले जगदरधय ' वदत तब प रो नह
रो हम यह , रही धरण कछु मन मह।
जम मरण को च रहत है नह कबू थर ,
वगत वतु औ भव , भ त जीवन गटत फर।
आवत अब सुध मह वषा बीते ह लखन
रो बघ म हमगर के इक वपन बीच घन।
7/14/2019
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िु धत ववगन सं ग फर म बन बन धवत।
कुश के झपस बीच बै ठ नत घत लगवत
गै यन पै तन जे करे दृ ग चक उठव,
मृ यु नकट जो चरत चल आपह आव।
कबू तरकत गगन तरे खोज भख उत इत। स ू घत घ म पंथ मनु ज म ृग गंध लहन हत। सं गी म ेरे मलै मोह जो बन के भीतर अथव नचु लन स छए मृदु सरत पु लन पर
तनम बघन एक वगा म सब स सु ं दर ,
तह लहन हत बन के सरे बघ गए लर।
चमीकर सो चमा तसु जपै ब धरी ,
- कछु वै सोई जै सी गोप क सो सरी।
भयो यु घमसन दं त नख स व वन म, घवन स बह चयो र तब सबके तन म। खी नीम तर सु ं दर बघन सो सब नरखत वकट णय हत जसु मयो सो र कं ड अत।
बी चह स आई कदत मरे ने र,े
च स लगी चटन हू फत तन को मे रे।
चली सं ग लै मोह गवा स सो पु न गरजत तन सब बघन बीच कत जनको मरयो हत।
य मे रे सं ग े मगवा स वनह सधई।
जम मरण को च रहत घ मत य , भई!'
य भू त सु ंदरी कु ू वर को लह कु ू वर मन आनं द छयो ,
शभु ल उम धर गई जब म ेष को दनकर भयो।
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सब यह के सु बु के घर सज बज रचे गए ,
छयो गयो मं डप कलत , तोरण चर ब ंधगे नए।
अब र पै सब होत म ंगलचर नन भू त ह,
दरसत भीर अपर औ गज बज क ब पू त ह।
लै खील फकत ह अटरन पै ची पु र नगरी ,
कल कंठ स जनके कै धु न परम कोमल रस भरी।
मन मु दत वर कय वरसन पै वरजत आय ह
मधु पका , कंगन आद क सब रीत जत पु रय ह। औ ं थबधंन भू वरी के होत प णा वधन ह
ऋष मं ब ैठे पत ह, सब व पवत दन ह।
जब नै गई सब रीत कय को पत तब आय कै
भर नीर नयनन म को ' हे कु ू वर! हत चत लयकै।
टुक रखयो यपै दय जो अब तहरी है भई '
दु लहन वद नै अं त सत रजमं दर म गई।
रंगभवन वहर रहत े मह छयो नवल दं पत मह े म ही पै पै भरोसो कयो भ पत नह। दई आ रचन क इक े म करगर
अत मनोहर द औ रमणीय चर अपर।
कु ू वर को वमवन सो बयो अत अभरम नह वसधु बीच और वच व ैसो धम।
हया सीम बीच सोहत हरो भरो पहर ,
बहत जके तरे नमा ल रोहणी क धर।
उतर कलकल सहत सर हमशै लतट स आय
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जत है नज भ ट गं गतरंग दश लै धय।
लसत दिण ओर ह वट सघन , सल रसल
झपस जनपै रो कुसुमत मलती को जल।
धम को व रहत यरे कए ते बलगय जगत् स सब जहू एती हय हय सु नय।
कबू आवत नगर कलकल करत सीम पर ,
द र स पै लगत य स य मरग ुं जर।
खो उर ओर हमगर को अमल कर
नील नभ के बीच नखरो धवल मलकर।
वदत वसधु बीच जो अभ ुत अगय अपर ,
जसु वपु ल अधयक और उठे वकट कगर ,
शृ ं ग तु ं ग तु षर मं डत , िव वशद वशल ,
लहलहे अत ढर औ ब दरी , खोह करल
जत मनव यन लै ऊूचे चय चय अमर धम तकय रखत स ुरन बीच रमय!
नझा रन स खचत औ घन आवरण स छय े त हम तर रही कननरज कू लहरय।
परत नीचे ची अजु ा न , दे वदर अपर।
गरज चीतन क परै सु न , करन को चर।
कू चटनन पै चे वनमे ष ह ममयत। मर कै कलकर ऊपर ग ह मू रत।
और नीचे हरो पटपर द र ल दरसय ,
दे ववे दन तर बछयो मनौ आसन लय।
सोध इनके समने समथल पही एक थपकन मल द मं डप खे कए अने क।
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उठत ऊूचे धौरहर नह ने कु लगी बे र। और शत अलद स ुं दर खच गए चौफेर।
खचत चकरी धरन पै ह चरत ब चीन। कतू रधकृण वहरत गोपकन म लीन। ौपदी को चीर ख चत कू दशुसन रय। कू रहे हनु मन सय स पय सू दशे सु नय।
मु य तोरणर ऊपर वटुूडही सज रहै वैभव बु दयक ीगणेश वरज। जय ं गण और उपवन बीच पथ के पर।
वमल बदर 1 को मलै इक और भीतर र।
1. एक कर क सं गमरमर जस पर बदल क सी धरयू पी होती ह।
लसत ममा र चौखटे पर नील तर भर। लगे च ंदन के सु चत अत वच कवर।
मल आगे बृ हत् मं डप , कु ं ज शीतल धम। बन सीी , गली , जली कटी अत अभरम।
खे अगणत खभं , चत छत रही छव छय।
फटक कु ं डन स फुहरे छुटत झरी लगय।
लसत इंदीवर तथ अरवदजल सर ,
हरत , र , सु वणा मय जहू मीन करत वहर।
कू अने क वशलदृ ग मृ ग बस नकु ंजन मह।
टुूगत पटल के कुसु मदल , करत कछु भय नह।
कतू ऊूचे त ऊपर फरफरत वह ंग ,
इंधनु सम पं ख जनके द रंग वरंग।
नील ध म कपोत छन तर सु नहरे जय।
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अत सु रित सुघर अपने नी लए बनय। शु च खडं न पै फर कू मोर प ू छ पसर। बै ठ उवल छीर सम बक रहे तह नहर।
एक फल स द सरे पै जय झ लत कर। फर मु नयू च ुहचु हती खले फलन तीर। शं त औ सु ख स बस सब जीव मल व धम। ले त जली बीच नभा य छपकली बस घम।
हथ स लै जत भोजन गलहरी झटकर। केतक तर बसत करो नग फ टी मर।
कतू बस कत र म ृग ह करत ववध वहर। वयसन क बोल पै कप करत कहू कलकर।
रहत सु ं दर सहचरन स भरो सो रसधम। लसत सु खम बीच आनन क छट अभरम।
बोल मधु रै बै न से व म रह सब लीन ,
सज सु ख के सज छनछन सुच सहत नवीन।
कु ू वर को सु ख लख सखी त,े मु दत मोद नहर।
गवा बस आदशे पलन को सक जय धर। ववध सु ख के बीज जीवन य बहत लखय पु पहस वलस के बच रमत य सर जय।
मोहनी सी रहत मयभवन म व छय , रहत भ लो मन , परत दन रत नह जय।
लसत गु गृ ह इन भवनन के भीतर जई ,
मनमोहन हत शप जहू सब श लगई। ं गण वतृ त परत थम ममा र को सु ं दर
ऊपर नीलो गगन , मय म लसत वमल सर।
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ममा र के सोपन सभुग चर दश सोहत
पीकरी रंग रंग क लख मन मोहत।
जहू ीम म जतह ऐसो तप जत हर
परसे नमा ल य तु षर पै पू व रहे पर।
नय गविन स नै कै मृदु रवकर आव,
ढर वणा क धर चर आभ फैलव। जब व चर वलसभवन के भीतर आव ै
खर दवस े म छक संय नै जवै
रंगभवन सो परत र के भीतर सु ं दर , सकल जगत् के अचरज को आगर मनोहर।
अगरघटत दीपक स ुं गधमय बरत सु हवै,
जसु अमल मृ दु योत झरोखन सो क आवै।
तनी चू दनी के ब टे चमक मनभवन परे कनक पय क बीच ग ुलगु ले बछवन।
कनक कलत पट सु ं दर रन पै लटकए ,
सु मु खन भीतर ले न हे तु जो जत उठए।
उवलत , मृ दु त भत संय क सब छन
छई तहू लख परत , जन नह जत रत दन।
लगे रहत पकवन ववध , नत कत बीन धु न। कंद म ल फल धरे रहत डलयन म चु न चु न। हम स शीतल कए मधु र रस धरे सजई। कठन यु स बनी रसीली सजी मठई।
नत रहत से व म लगी तहू सहचरी ब कमनी ,
सु कुमर करी भहवरी , कम क सहगमनी।
जब नद म झप नयन लगत कु ू वर के अलसय कै,
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नहरय बीजन करत कोमल कर सरोज हलय कै।
जग जत जब प ुन तसु मनह रझय कै बलमवती।
मु सु कय , रस के गीत मधु रे गय नच दखवती। झनकय घु ूघर बै ठ ब उठय भव बतवत। वीण मृ दं ग उठय कोउ च ुपचप सज मलवत।
नत अगर , ध प कप र स उठ ध म छवत घनो।
बगरय केशकलप बसत कमनी तहू आपनो
मृ दु अं ग लय उशीर च ंदन उरीय सजय कै,
रसबस कुमर यशोधर के सं ग ब ैठत आय कै।
जर , मरण , द:ुख , रोग , लशे को व थल मह
कोऊ कबू नम ले न पवत है नह।
यद कोऊ व रस समज म होय ख मन ,
परै नृ य म मं द चरण व धीमी चतवन
तु रतह सो व वगाधम स जय नकरी ,
जस द:ुख लख तसु न होवै कु ू वर दु खरी। नयत नर ब दं ड दे न हत तनको हे री
जो कोउ चचा करै कतू दु खमय जग केरी ,
जहू रोग , भय , शोक और पी ह छई ,
ब वलप सु न परत चत दहकत धधुआुई। गनो जत अपरधर् नकन को यह भरी। वे णीबधंन छट पर ैजो कशे बगरी।
नत उठ तोरे जत कुसु म कुहलने सरे,
औ सब स खे पत जत कर चु न चु न यरे। य कर सब बु रे दृय नत जत दु रए।
बर बर य कहत भ प मन आस बधूए -
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' तन बतन स द र कु ू वर यद यु व बतव
उदसीनत मनुस के मन म जो लव,
कमा रेख क खोटी छय अवसह टरह,
रजी धर सकल भ म सो शसन करह,
तह दे खह सकल भ पतन स म भरी छवत अपनी वमल कत बसधु म सरी।
े म पह जह,ू भोग के बंधन भरी ,
तन सु ख करगरन के चू ओर अगरी
उठवई नृ प ऊूची चकरी चरदवरी। जम फटक लयो एक पीतर को भरी।
मनु ज पचसक लग सक तो तह फरई ,
आधो योजन शद खु लन को परै सु नई
तके भीतर और लगे फटक ै दृ तर। लू घै तीन र होय तब कोऊ बहर। बे े सीकल लगे फटकन मूह भई। एक एक पै गई की चौक ब ैठई।
को िरकन स ' नृ प हम आदशे दे त अब ,
नै है जो तकल ण खोवौगे तु म सब।
दे खौ कोऊ फटक बहर होन न पव ै
चहै होवै कु ू वर , सोउ नह कू क जवै'।
ततृीय सगा
बु चरत / तृ तीय सगा / भग -1 / एडवन अना ड / शुल
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बसत बु भगवन् सरस सु खमय थल मह
जर , मरण , द:ुख रोग लशे कछु जनत नह।
कबू कबू आभस म इनको सो पवत ,
जै से सु ख क नद कोउ जो सोवत आवत
कबू कबू सो व मह छनत है सगर ,
लहत कल जग , भर लद कछु अपने मन पर।
कबू ऐसो होत रहत सोयो कुमरवर
सर धर यरी यशोधर के वमल िव पर ,
मृ दु कर मं द डुलय करत सो मु ख पै बीजन
उठत चक चलय ' जगत् मम! हे कुल जन!
जनत ह , ह सु नत सबै पू यौ म, भई ?'
मु ख पै तके द योत तब परत लखई ,
कण क मृ दु छय पु न दरसत तहू छई।
अत सशं कदृ ग यशोधर प छै अकुलई
कौन क है णनथ! कछु जत न जनो '।
परै कु ू वर उठ , लखै य को मु ख कुहलनो।
ऑसु सु खवन हे तु तसु पु न लगै बहू सन। वीण को सु र छेन को दे वै अनशुसन।
धरी रही खरक पै वीण एक उतनी ,
परस भं जन तह करत मनमनी।
तरन को झननय नकसत अत अटपट धु न ,
रहे पस जो तनको केवल परी सोइ सु न।
कतु कु ू वर सथा सु यो दे वन को गवत।
तनके ये सब गीत कन म परे यथवत -
7/14/2019
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हम ह वह पवन क बनी जो इत उत नत धवै,
ह ह करत वरम ह ेतु पै कतू वरम न पवै
जै सो पवन गु नौ वै सोई जीवन णन केरो ,
हहकर उपसन को है झंझवत घने रो।
आए हौ कह हे तु कहू ते परत न त ुह जनई ,
गटत है यह जीवन कत त और जत कहू धई। जै से तु म तै से हम सब जीव श य स आव इन परवता नमय लशेन म सु ख हम कछ न पव।
औ परवता न रहत भोग म तु मू को सु ख नह। यद होती थर ीत कछ सु ख कहते हम त मह। पै जीवनगत और पवनगत एकह सी हम पव। ह सब वतु िणक वर सम जो तरन स छ आव।
हे मयसु त! छनत घ म हम वसधु यह सरी ,
यत हम इन तरन पै ह रहे उसस नकरी। दशे दशे म केती बध वपत वलोकत आव।
केते कर मल मल पछतव, नयनन नीर बहव।
पै उपहसजनक ही केवल लगै वलप हमरो। जीवन को ते अत य मन जो असर है सरो।
यह द:ुख हरबो मनौ टकैबो घन तजा न दखरई ,
अथव बहत अपर धर को गहबो कर फैलई।
पै तु म ण हे तु हौ आए , करज तव नयरनो।
वकल जगत् है जोहत तु मको वध तप म सनो। भरमत ह भवच बीच ज अंध जीव ये सरे।
उठौ , उठौ , मयसु त! बनहै नह बन उरे।
7/14/2019
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हम ह वह पवन क बनी जो कू थर नह।
घ मौ तु म,ू कु ू वर! खोजन हत नज वरम जग मह।
छू ौ े मजल े मन हत , द:ुख मन म अब लऔ।
वभैव तजौ , वषद वलोकौ औ नतर बतओ।
भर उसस इन तरन पै हम तव समीप द:ुख रोव। अब ल त ुम नह जनत जग म केतो द:ुख सब ढोव।
लख तु मको उपहस करत हम जत , गु नौ चत लई
धोखे क यह छय है तु म जम रहे भु लई।
त पछे भइ सूझ , कु ू वर ब ैठयो आसन पर
रस समज के बीच धरे य गोप को कर। गोध ली क बे ल कटन के हत त छन
लगी दसी एक कहनी कहन पु रतन ,
जम चचा े म और उते तु रंग क ,
तथ द र दशेन क बत रंग रंग क ,
जहू बसत ह पीत वणा के लोग लु गई ,
रजनीमु ख लख सधु मह रव रहत समई।
कहत कु ू वर ' हे चो! त सब कथ सु नई
फेर पवन के गीत आज मे रे मन लई।
दे , य!े तु म यको मु हर उतरी। अहह! परी है एती वतृ त वसधु भरी!
नै ह ऐसे दशे जहू रव ब त है नत। नै ह कोटन जीव और जै से हम सब इत।
सु खी न य सं सर बीच नै ह बते र,े
कछु सहय कर सक तह यद पव हे रे।
7/14/2019
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कबू कबू ह नरखत ही रह जत भकर क प रब स बत जबै सो वणा मगा पर। सोच म वे कसैे ह उदयचल नी। थम कर जो तके करनन क अगवनी।
अं क बीच बस कबू कबू, हे य!े तहरे
अत होत रव ओर रह नरखत मन मरे
अण तीची ओर जन हत छटपटत मन ,
सोच कैसे अतचल के बसनहर जन
नै ह जग म पर ेन जने कतेे नी हम चहए े म करन जनस हत ठनी। परत थ मोह जन आज ऐसी कछु भरी सकत न तव मृ दु अधर जह च ुं बन स टरी।
चो! त ने ब दशेन क बत स ुनई ,
उनहर वे अ कहू यह दे ह बतई।
दे ू भवन यह , पवौ जो तु रंग सो बू को घ मत तपै फरौ लख वतर धर को।
इन गन को रज कू मोसो है भरी उत फरत जो सद गगन म पं ख पसरी मनमन नत जहू चह ते घ म घम। यद मे रे पं ख कहू व ैसे ही जम
उ उ छन हमगर के वे शखर उतर ,
बस जहू रवकरन ललई लसत तु हन पर।
बै ठो बै ठो तहू लखौ म वसधु सरी ,
अपने चर ओर द र लौ दीठ पसरी।
अबल य नह कयो देश दे खन हत सरे?
फटक बहर कहू कहू है परत हमरे?
7/14/2019
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उर दीनो एक ' थम नगरी तव भरी ,
ऊूचे मं दर , बग और आमन क बरी।
आगे तनक ेपर खे त सु ं दर औ समथल ,
पु न नर,े मै दन तथ कोसन के जं गल।
तके आगे बबसर को ' रजकु ू वरवर!
है अपर यह धर बसत जम कोटन नर।'
को कु ू वर ' है ठीक! कहौ छंदकह ब ुलई ,
लवै रथ सो जोत कल , दे खौ पु र जई।'
उोधन
जय द त तब बत कही नृ प स यह सरी -
' महरज! है तव कुमर क इछ भरी ,
बहर के णन को दे ख,ै मन बहलव।ै
कहत कल मधयन समय रथ जोतो जव।ै'
बोयो भ प बचरत , ' ह!ू अब तो है अवसर ,
कतु फरै यह डी सरे आज नगर भर ,
हट बट सब सज, रहै न कछ अचकर
अधं , पं ग,ु कृश , जरजीणा जन क न बहर।'
जत मगा सब झर और छरको जल छन छन।
धर कुल बध दध द वा, रोचन नज रन।
घर घर बं दनवर बधूो , लह रंग सजील े
भीतन पर के च लगत चटकले गील।े
पे न पै फहरत केतु नन रूगवरे।
भयो चर शृ ं गर मं दरन म है सरे। स या आद दे वन क तम गई सू वरी।
7/14/2019
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अमरवत सी होय रही नगरी सो सरी।
घोषक डी पीटी को चरौ दश टे री
' सु नौ सकल पु रवसी! यह आ नृ प केरी - आज अमं गल दृय न कोऊ समु ख आव,
अधं , पं ग,ु कृश , जरजीणा न नकसन पव।
दह हे तु शव कोउ न कै नश ल बहर।
है नदशे यह महरज क , सु न सकल नर।'
गृ ह सू वरे सकल , शोभ नगर बीच अपर
बै ठ चत च रथ पै चयो रजकुमर। चपल धवल तु रंग क जोी नधी दरसय रो मं डप झलक रथ को खर रवकर पय।
बनै दे खत ही सकल पु रजनन को उलस ,
कर अभवदन कु ू वर को आय ते जब पस। भयो मु दत कु ू वर लख सो नरसम ह अपर। हू सत य सब लोग जीवन है मनौ सु खसर।
कु ू वर बोयो ' मोह चहत लोग सबै लखत
होत जीव सशुील ये जो नृ प कहे नह जत। मगन ह भगनी हमरी लगी उम मह।
कयो इनको कौन हत हम ने कु जनत नह।
लखौ , बलक रो यह मो पै सु मन बगरय ,
ले रथ पै यह मे रे सं ग य न बठय ?
अह! कैसो सु खद है सब भूत करबो रज ,
पय ऐसो दशे सु ं दर और लोक समज।
7/14/2019
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और है आनं द कैसी सहज सी इक बत ,
म जो आनं द म बस मोह लख ये त। बत सी ह वतु ऐसी हमै चहए नह
पय तनको होयू जो ये तु नज मन मह।
रथ बओ , लख,ै छंदक! आज हम दै यन
और सु खमय जगत् यह , नह रो जको न।
फटकन स होत आगे चयो रथ गभंीर। सोहती दोउ ओर पथ के लगी भरी भीर।
करत अपने कु ू वर को मल सकल जयजयकर। ह लखत समु ख सब नृ पवचन अनु सर।
कतु वही समय नकयो झोपी स आय। एक जजा र व ृ पथ पै धरत डगमग पय।
फटे मै ले चीथरे तन पै लपे टे घोर ,
जत क क न भ ल दृ जक ओर।
वच झ ुर भरी स खी खल सी दरसत ,
झ ल पं जर पै रही पलहीन क भू त। न ई वक पीठ है दब ब दनन के भर। धू सी ऑखन स बहै कच तथ जलधर।
हलत रह रह द जम एक नह द ूत।
ध म और उछह एतो दे ख दे ख सकत। लए लठी एक नज कंकल कर म छीन टेकबे हत अं ग जजा र और शवहीन
द सरो कर धरे पसु रन पै दय क ेपस ,
कै भरी क स रह रह जहू स सू स।
िीण वर स कहत ह ै' दत! सद जय होय।
दे कछु, मर जयह अब और ह दन दोय।'
7/14/2019
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खो हथ पसर , कफ स गयो कंठ ूधय।
कठन पी स कहर पु न को ' कछु मल जय।
कतु तह ढकेल पथ स को लोग रसय
'भग ू स , नह दे खत कु ू वर ह रहे आय ?'
कहत कु ू वर पु कर ' ह ह! रहन य नह द ेत ?
फेर ब झत सरथी स करत कर सं केत -
' कह है यह ? दे खबे म मनु ज सो दरसत ,
वकृत , दीन , मलीन , छीन करल औ नतगत।
कबू जनमत कह ऐसे मनु ज सं सर ?
अथा यको कह जो यह कहत ' ह दन चर ?'
नह भोजन मलत यको ह ह लखय।
वपद य पै कौन सी है परी ऐसी आय ?'
दयो उर सरथी तब ' सु नौ , रजकुमर ,
वृ नर यह और नह कछु, जह जीवन भर ,
रही चलस वषा पहले जसु स धी पीठ ,
रहे अं ग सु डौल सब औ रही नमा ल दीठ।
लयो जीवन को सबै रस च स तकर कल ,
हरयो बल सब , फेर मत गत करयो यह बहल।
भयो जीवनदीप यको नपट त ैलवहीन ,
रह गयो नह सर कछु, अब भई योत मलीन।
रही जो लौ श ेष , तको नह ठकनो ठौर ,
झलमलत बु झयबे हत चर दन ल और।
जर ऐसी वतु ह,ै प,ै हे कु ू वर मतमन!
7/14/2019
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दे त य य बत पै तु म था अपनो यन ?'
कु ू वर प छयो ' कह , यही गत सबै क होय ,
मलत अथव कू ऐसो एक सौ म कोय ?'
कहयो छंदक ' सबै यह दश म दरसयू,
जयत एते दनन ल जो जगत् म रह जय।ू'
फेर ब झत कु ू वर ' जो एते दनन पय त
रह जीवत हमू नै ह कह ऐसे अं त ?
जयत असी वषा ल जो चली गोप जय ,
जर व को कह य घ ेर लै है आय ?'
और गं ग गौतमी जो सखी परम वीन ,
होयह व े कह य भूत जजा र छीन ?'
दयो उर सरथी ' ह,ू अवस , हे नररय!'
को रजकुमर ' बस , अब दे रथह घु मय।
चलौ घर क ओर लै अब मोह ब ेग सु जन!
आजु दे य रो जको नह कछु अनु मन।'
आयो फर सथा कु ू वर नज भवन तह छन
सोचत यह सब उदसीन , अयं त खमन।
गए ववध पकवन और फल समु ख लए ,
छयो नह , नह लयो , रो नज सीस नवए ,
नपु णर् नक बलमवन क रही जतन कर
कतु रो सो मौन , कछ सोचत उसस भर।
यशोधर दु खभरी परी चरनन पै आई ,
7/14/2019
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रोवत प छयो ' नथ रहै य सु ख नह पई ?'
को कु ू वर ' सु ख लह सोइ खटकत मनमह।
नै ह यको अं त अवस , कछु सशंय नह।
नै ह ब ढ,े यशोधरे! हम तु म दन पई ,
नमत गत , रसप रहत , सब श गू वई ,
भु जपसन बू ध रह, अधर स अधर मलई
घु सहै कल करल तऊ नज घत लगई।
मम उमं ग औ तव यौवनी हरहै ऐस े
असत नश हर रही अण ुत नग क ज ैस े
यहै जन मम दय बीच शं क है छई।
सोच , कैसो है करल यह कल कसई!
कैसे यस यौवनरस हम सक बचई ?'
नह कु ू वर को च ैन , ब ैठ सब रैन बतई।
दे यो शु ोधन महपल व रैनव नै अत वहल।
लख परयो इं को धवज वशल ,
अत शु , खचत रवकरणजल।
उठ तु रत भं जन बल फेर कयो टक टक तको उधोर। तके पछे तहू रहे छय चू दश स छयप ुष आय
लै टक कतेु के करत रोर। गे नगरर के प वा ओर।
अब व द सरो है दखत ,
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दिण दश स दस रद जत।
पगभर दे त भ तल कूपय ,
नज रजत शु ं ड इत उत घु मय। सबके आगे जो गज अन प। पै सु त अपनो लयो भ प।
अब व तीसरे म लखत
रथ खर एक अत जगमगत ,
ह ख चत जको तु रग चर
अत बल वे ग जनको अपर
नथु नन स नकसत ध मखं ड ,
मु ख अनल फेन उगलत चं ड। चौथे सपने म च एक लख परम फरत नह थमत ने क।
दमकत कंचन क नभ जत ,
आरन पै मणु त जगमगत। ह लखे ने म क प र कोर ब म ं अलौकक चू ओर।
पु न लखत व पं चम नरेश ,
नग और नगर बच जो दशे
तहू वदं ड लै कै कुमर कर रो दु ं दभुी पै हर।
घननद सरस धु न कत घोर ,
घहरती गगन म चू ओर। अब छठ व य लखत भप
पु र बीच धौरहर है अन प ,
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नभ के ऊपर जो उठत जत ,
घनमं डत मं डपसर लखत बस जपै दोऊ कर उठय
रो कु ू वर र इत उत लु टय।
मण मनक बरसत आय आय ,
सगरो जग ल टत धय धय। पै व सतव म सु नत अतर् आ नद दश दश समत। छ: पु ष ढू प मु ख लख भत।
कर कर वलप ह भगे जत।
भ पत के मन इन वन क शं क छई ,
जनको फल नह वको कोऊ सयो बतई।
बोले नृ प नै ख ' वपत मे रे घर आव,ै
पै कोऊ नह ममा व को मोह बतवै
नै उदस सब लोग चले सोचत मन म तब कैसे होय वचर भ प के वन को अब। परे र पै जत वृ ऋष एक दखई
धरे शु च म ृगचमा, सीस सत जट बई
को सबन को टेर 'भ प के ढग हम आए ,
व को फल चलौ दे त , हम अबै बतए।'
गयो भ प के पस , च , दै सु यौ व सब ,
को वनय के सहत ' सु नौ , हे महरज! अब।
धय धय यह धम जहू स नय कहै भु वनपनी भ भकर स जो बह।ै
सत व जो तु ह, नृ पतवर! परे लखई ,
ह वे मं गल सत जगत् म जै ह छई।
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इंधवज लख परी तु ह जो पहले भरी
टक टक नै गरत , लु टत पु न छन म सरी ,
सु रन जनयो व लय सो केतु पतन को नए धमा को उदय , अं त चीन मतन को।
एक दश नह रहत होयू चहै सु र व नर ,
वही भू त वहत कप य बीतत वसर। भ म कूपवनहर परे लख जो दस वरण गु नौ तह दस शील जह अब करकै धरण
रजपट , घर बर छू है कु ू वर तहरो
सय मगा को खोल कूपै है यह जग सरो। रथ के घोे चर रहे वल जो उगलत ऋपद ते चर कु ू वर कर जह हतगत
सरे सशंय अधंकर को कट बहै है,
अतशय खर कश न को तह स ुझै ह।ै वणा नभ यु त च लयो जो अत उजयरो धमा च सो जह फरैहै कु ू वर तहरो।
औ दु ं दभुी वशल कु ू वर जो रो बजवत ,
जको घोर ननद गयो लोकन म यवत्
सो गजा न गभंीर वमल उपदशेन केरो , जह सु नै है कु ू वर करत दशेन म फेरो।
और धौरहर उठत परयो लख जो नभ ऊपर
बु श सो , जो चल ज ैहै बत नरंतर।
गरत र अनमोल शखर स जो दे खे पु न सु र - नर वू छत तह धमा उपदशे ले गु न।
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रोवत जो म ुख ढू प अं त छह पु ष लखन े
रहे प वा आचया, जत जो अब लौ मने।
द न और अटल वद स कु ू वर तहरो
तह सु झै है हे र - हे र तनको म सरो।
महरज! आनं द करौ , तव सु त क सं पत
सकल भु वन के रजपट स है बकै अत। तन पै वस कषह कु ू वर जो धरण करहै वणा खचत वन स सो अनमोल ठहरह।ै
यहै व को सर , नृ पत! अब बद मू गह,
बीते वसर सत बत ये घटन लगह,
य कह ऋष भ परस दं डवत करत सधए ,
धन दै द तन हथ तह नृ प दे न पठए।
कतु आय तन को ' सोम के मं दर मह
जत लयो हम तह , गए जब तहू कोउ नह केवल कौशक एक मयो तहू पं ख हलवत।'
कबू दे वगण भ तल पै यही वध आवत।
चकत भयो अत समचर जब नृ प यह पयो ,
अत उदस नै मं न को आदशे सु नयो -
' नए भोग रच और कु ू वर को रखौ लभुई।
द नी चौक जय फटकन पै बै ठई।'
होनी कैसे टर?ै कु ू वर के मन यह आई ,
फटक बहर और लख जग क गत जई ,
दे ख जीवन को वह जो अत सु हत ह,ै
कल मथल जय , हय! पै सो बलत ह।ै
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बनती कह जय पत स य कुमर तब -
' चह दे खबो पु र ज ैसो है व ैसोई अब।
व दन तो अनशुसन फेरयो पु र म सरे
रह न द:ुख के दृय मगा म कोउ हमरे,
मम सत हे तु बन बरबस स सब ,
हट बट म होत रह ब मं गल उसव। पै म लीनो जन नय को नह सो जीवन दे यो जो म अपने चर ओर मु दत मन
यद मे रो सं बधं रय स तुहरे नते
जनन चहए गली गली क मोक बत,
तन दीनन क दश च र जो ह म मह ,
रहन सहन तन लोगन क जो नरपत नह।
आ मोको मलै जू म छ वश गह। मु ख तनको य बर नरख म फरौ मोद लह! यद नै ह नह सु खी बहै अनभुव जनो मलै मोह आदशे फरौ पु र म मनमनो।
सु न इन बतन को महीप बोले मं न त -
' सभंव है य बर कु ू वर क फरै कछ मत।
कर बधं दे नगर दे खै सो जई।
कैसो वको च सु नओ मोको आई।'
द सरे दन के छंदक सथ रजकुमर ,
चले बहर फटकन के नृ प वचन अनु सर।
बयो बणक कुमर , छंदक बयो तसु मु नीम।
पू व यदे चले दोऊ लखत भीर असीम।
जत पु रजन म मल े नह तह चीहत कोउ ,
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बत सु ख और द:ुख क वे जत दे खत दोउ। गली चत लख परै औ उठत कलरव घोर। बणक बै ठे धर मसले अ चर ओर।
हथ म लै वतु गहक मोल करत लखत -
' दम एतो नह एतो ले , मनौ बत।'
' हटौ छू ौ रह ' ऐसी टेर कतू सु नत ,
मरमरती बोझ स है बै लगी जत।
कप स भर कलश जत गृहवध सर धर ,
एक कर स गोद म नज चपल शश ुह सभूर। है मठई क दु कनन पै भू वर क भीर। तं तु वय पसर तनो बनत ह कहू चीर।
कतू धु नयू धु नत ई तूत को झननय।
चलत च कत,ू ककर खे प ू छ हलय।
कतू शपी ह बनवत कवच और करवल।
बै ठ कतू लु हर पीटत फवो कर लल।
बै ठ गु के समने कू अदा चं कर शय सीखत वे द ह कर मं को उर।
कुसु म , आल , मजीठ स रूग , दोऊ कर स गर
ध प म रूगहर गीले वसन रहे पसर।
जत सै नक ढल बधूो , खं ग को खकय।
ऊूटहरो ऊूट पै कू बै ठ झमत जय।
व ते जवी मल औ धीर िय वीर ,
कठन म म ह लगे कू श यमशरीर।
कू सपे र ब ैठ पथ के तीर करत पु कर ,
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भू त भू त भु जं ग के धर अं ग ज ंगम हर। े त कौन स टूको मवर बजय बजय। रो करे कल को फुफकर सहत नचय।
पलक लै वध लवन भीर सज कै जत ,
सं ग सघे औ नगरे, चपल कोतल पू त।
कू दे वल पै बध कोउ फल मल चय। फर पय परदशे स यह रही जय मनय।
पीट पीतर कू ठठेरे रहे ' ठन ठन ठन
ढर लोटे औ कटोरे, धरत दीवट आन ,
बे आगे जत दोऊ फटकन के पर धर तरंगनी - तीर - पथ जहू नगर को कर।
मरग के इक ओर परयो सु न यह आरत वर
' हय! उठओ , मय पू चह म कसैे घर ?'
एक अभगो जीव कु ू वर को परयो लखई ,
परयो ध र म घोर ध स अत द:ुख पई।
सरो तन छत वछत , वे द छयो ललट पर ,
रो ठ च दु सह थ सो , मीजत है कर
की परत ह ऑख , व ेदन कठन सहत है कर
हू फ हू फ कर टेक भ म पै उठन चहत ह।ै
आधो उठ इक बर पय गर कू पत थर थर ,
बे बस उठयो पुकर 'धरौ कोऊ म ेरो कर।'
दौर परयो सथा, ब ूह गह दयो सहरो ,
नरख ने ह स तसु सीस नज उ पै धरो।
प छन लयो ' बधं!ु दश है कह तहरी ?
7/14/2019
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सकत न य उठ ? कहौ , कौन सो द:ुख है भरी।
छंदक! य यह परो करहत बलबलत ह?ै
हू फ हू फ कछु कह उसस य ले त जत है?'
को सरथी ' सु नौ , कु ू वर! यह धत नर ,
य के तन के तव बलग नै रहे परपर। सोइ र जो रो अं ग म बल बगरवत भीतर भीतर मथत सोइ अब तनह तपवत।
भर उछह सो कबू दय जो उमगत रह रह धरकत फ ट ढोल सरस सोई अब दु:ख सह। खसी धनु ष क डोर सरस नस नस भई ढीली।
ब तो तन को गयो , नई ीव गरबीली
जीवन को सदया और सु ख गयो बलई। है यह रोगी जह पीर अत रही सतई।
दे खौ , कैसो रह रह कै ठत सरो तन!
की परत ह ऑख , पीर स टीसत दू तन।
चहत मरबो कतु मृ यु तौ ल नह ऐहै जौ ल तन म भोग ध अपनो न प ुरैह।ै
जो जो के बंधन सरे जब उखरहै,
नन स सब णश मश: नकरह,ै
दै है यको छू , जय परहै कू अनतह
द र रहौ , हे कु ू वर! ध कू लगै न आपह।'
लए रो पै तह , कु ू वर बोयो यह बनी -
'और नै है परे अने कन ऐसे नी।
बोलौ सू ची , कह यह गत सब ही प ैह।
7/14/2019
http://slidepdf.com/reader/full/55cf9cc4550346d033aaf680 57/164
है यह जै सो आज कबू हमू नै जै ह?
को सरथी ' ध कबू ह अवस सतवत ,
क न क प मह है सब पै आवत।
मर् छ औ उमद , बत , पत , कफ , ज ी , जर ,
नन वध ण , अतीसर औ यकृत , जलधंर
भोगत ह सब , बचत कतू है कोऊ नह।
र म ंस के जीव जहू ल ह जग मह।
ब झत फेर कुमर ' मह यह दे बतई ,
परत न आवत जन कह ये द:ुखु सब , भई!'
छंदक बोयो ' दबे पू व ये ऐसे आवत
य वषधर चु पचप आय नज दू त धू सवत ,
अथव झन बीच बघ य ल ुको रहत है,
झटपत है पु न घत पय जब जहू चहत ह,ै
अथव जै से व परत नभ स घहरई ,
दलत क को और क को जत बचई।'
को कु ू वर ' तब तो सब को सब घरी रहत भय ?'
सरथ सीस हलय को ' यम क सशंय ?'
को कु ू वर ' तब तौ कोऊ यह सकत नह कह
सोवत सु ख स आज जगह कल ऐसह '
' कोउ कहत य नह , कु ू वर! य जग के मह ,
छन म नै ह कह कोउ यह जनत नह।"
को कु ू वर ' है अं त कह सब द:ुखन केरो
यहै जर , तन जजा र औ मन शथल घने रो ?'
7/14/2019
http://slidepdf.com/reader/full/55cf9cc4550346d033aaf680 58/164
उर दयो सु जन सरथी ' ह,ू कृपलु वर!
इते दनन ल जीवत जो रह जयू नर नर।'
' पै न सकै यद भोग तप कोउ एतो द:ुसह ,
अथव भोगत भोगत होवै है जै सो यह ,
रहै सू स ही चलत , जय सो दन दन थको ,
अत जजा र नै जय , कह पु न नै है तको
' मर ज ैहै सो , कु ू वर!' को छंदक न:सशंय
' क वध , कोउ घरी मृ यु आवत है नय।'
दे खी दीठ उठय कु ू वर पु न भीर अगरी ,
रोवत पीटत जत नदी क ओर सधरी।
' रम नम है सय ' सबै ह रह रह टेरत ,
सीस नवये जत , कतू इत उत नह हे रत।
पछे वलपत जत मृ तक के घर के नी ,
इ म औ बधंु द:ुख सम उर म आनी।
चले जत तन बीच चर जन पू व बए ,
हरे हरे बू सन क अथ कधू उठए ,
जपै कठ समन परो दरसत म ृतक नर -
कोख सटी पथरई ऑख, वदन भयं कर। ' रम नम ' कर लोग तह लै गए नदी पर
जहू चत है सजी रख जल स कछु अं तर।
दीन तपै पर कठ ऊपर स डरी कैसी सुख क नद इतै सोवत नर नरी! शीत घम को लेश नह पुन तह जगवत।
चर कोन प,ै लखौ , आग ह लोग लगवत।
7/14/2019
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धीरे धीरे दहक लई सो शव को घ ेरी ,
लू बी जीभ लफय मं स चटत चू फेरी।
सनसनत है चमा सीझी करकत ह बंधन। परो पतरो ध म , रख नै छतरनो तन!
केवल भ री भम बीच अब जत नहरे े त अथ के खं ड - शे ष नरतनु क ेसर।े
को कु ू वर पु न ' कह यहै सब क गत नै ह।ै'
छंदक बोयो 'अं त यहै सब पै बन ऐह।ै
इतो अप अवशे ष चत पै रो जसु जर
भ खे कक अघत न यगत ' कू व क ूव ' कर
खत पयत औ हू सत रो जीवन अनु रगो
झको यही बीच वत को तन म लगो ,
अथव ठोकर लगी , तल म जय तरयो ,
सपा डयो कू आय , कुपत अर अ धू सयो ,
सीत समनी अं ग , ट सर पै भहरनी
भयो ण को अ ंत , मरयो तुरतह सो नी।
पु न तको नह िधु द:ुख औ सु ख जग मह। मु खचु ं बन औ अनलतप तको कछु नह।
नह चरा यन गधं मं स क अपने स ू घत ,
और न चं दन अगर चत के तको महकत।
वदन रसन स वके सबै गयो ढर ,
वणश नस गई , नयन क योत गई हर।
रही न दे ह , होय छर छन मह बलनी।
जनस वको ने ह आज ते बलपत नी।
7/14/2019
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र म ंस के जीवन क सबक गत यही ,
ऊूच नीच औ भले बु रे सब मरत सदही। कहत श मर जीव फेर जनमत ह जई
नई दे ह धर कहू कहू, को सकै बतई।'
नीर भरे नज नयन कु ू वर नभ ओर उठई ,
द दय स दीस दृ इत उत दौरई।
नभ स भ ल , भ स नभ ल रो नहरी ,
मनो तक दृ सृ छनत है सरी
पै बे हत सो झलक गई जो कू द र पर ,
जस द:ुख नदन परत लख एक एक कर।
े मदह स दमयो आनन आशप रो ,
उठयो पु कर अधीर 'अहो! जग द:ुख स झ रो ,
र म ंस के जीव त अत सरे!
कल लशे के जल बीच जो परे ब ेचर,े
दे खत ह य मया लोक क पी भरी
औ असरत यके सु ख वभैव क सरी ,
नीक त नीक यक वतु न को धोखो और बु री त बु री वतु को तप अनोखो। सु ख पछे द:ुख औ वयोग सं योग अनं तर
यौवन पछे जर , जम पै मरण लहत नर।
मरबे पै पु न कैसे कसैे जम न जने,
रखत य यह च नध सब जीव भु लन े
भरमवत को तनको झ ठे आनं द मू ह औ अने क सं तपन म जो झठ ेनह।
मोू को यह ंतजल चो वलमवन।
7/14/2019
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जस जीवन मोह परयो लख परम सु हवन। लयो मोह जीवन वह व सर सम सु ं दर रवरंजत सु ख - शं त - सहत जो बहत नरंतर।
पै अब दे ख वक धर के हलोर सब हरे कछरन स उछरत ह जत एक ढब केवल नमा ल नीर आपनो अं त गरवन खरे कघए सगर म जो परम भयवन।
गयो सरक जो परो रो परदो ऑखन पर
वै से ही ह हमू एक जै से ह सब नर ,
अपने अपने दे वन को जो परे पु करत ,
कतु सु नत जब नह कोउ तब हय म हरत।
नै है कतु उपय अवस कोऊ जो हे रो
तनके, मे रे और सबन के द:ुखन केरो।
चहत आप सहय दे व समया हीन जब
कह सकै कर दीन दु खन क सु न पु कर तब ?
होय मोह समया बचवन क कछु जको जन दे ू म य पु करबो वफल न तको। है कैसी यह बत रचत ईर जग सरो
पै रखत है सद द:ुख म तह , नहरो!
सवाशमत् नै रखत यद सृ दु खरी कणमय सो नह और न है सु खकरी। और नह यद सवाशमत् ईर नह।
बस , छंदक , बस! बत लय म एते मह।'
सु नी नृ पत यह बत , घोर चत चत छई ,
दोहरी , तहरी फटक पै चौक बै ठई।
7/14/2019
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बोयो ' कोऊ जन न भीतर बहर पव
व घटन के दन न बीत सब जौ ल जव।'
बु चरत / चतुथा सगा / भग -1 / एडवन अना ड / शुल
जब दन प रे भए बु भगवन् हमरे तज अपनो घर बर घोर बन ओर सधरे।
जस परयो खभर रजमं दर म भरी ,
शोकवकल अत भ प , ज सब भई द:ुखरी।
पै नकयो नतरपथं णन हत न तन , गटयो श पु नीत कटे जस भवबधंन।
महभनमण
नखरी रैन चै त प नो क अत नमा ल उजयरी। चहसनी खली चू दनी पटपर पै अत यरी।
अमरइन म धू स अमयन को दरसवत बलगई , सकन म गु छ झल रह जो मं द झकोरन पई।
चु वत मध क परस भ जौ ल ' टप टप ' शद सु नव
तके थम पलक मरत भर म नज झलक दखव।
महकत कतू अशोकमं जरी , कतू कतू पु र मह
रमजम उसव के अब ल सज हटे ह नह।
छटक वमल वमवन पै यमनी मृ दु तभरी
वसत सु गधं स नपरमल स , नछन स जरी।
ऊूचे उठे हमवन क हमरश सो मनभवनी सं चरत शै ल सु वयु शीतल मं द मं द सु हवनी।
चमकय शृ ं गन च ं च अब अमल अं बरपथ गो
झलकय नत भ म , रोहन के हलोरन को रो।
7/14/2019
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रसधम के ब ूके मु ू डे रन पै रही ु त छय है जहू हलत डोलत नह कोऊ कतू परत लखय ह।ै
बस हू क केवल फटकन पै पहन क सुन परै, जहू एक ' मु ' कह पु करत एक 'अं गन ' धु न करै।
बज उठत तोरणव ह पु न भ म नीरवत लह।ै है कबू बोलत फे प ुन झनकर झगु र क रहै।
भवन भीतर जत जलन बीच स छन च ूदनी भीत पै औ भ म पै जो सीप ममा र क बनी।
करनमल मयं क क तनीन पै है पर रही। वगा बच वमथल अमरीन को मनो यही।
कुमर के रंगनवस क ह अलबे ली नवे ली तहू रमनी।
लसै छव सोवत म मु ख क त एक क ऐसी लु नई सनी ,
परै कू जह पै दीठ जहू सोई लगत स ुंदर ऐसी धनी
यहै कह आवत है मन म ' सब म यह र अमोल धनी।'
पै ब सु ं दर एक स एक लखत अने क ह पस परी।
मोद म मत फर ऍखयू तहू प के रश के बीच भरी ,
र क हट म दौरत य मण त मण ऊपर दीठी छरी ,
लोभ रहै त एक पै जौ लग और क ओर न जय ढरी।
सोवत सभूर बनु सोभ सरसय , गत आधो खु ले गोरे सु कुमर मृ दु ओपधर।
चीकने चकुर कू बूधो ह कसुु मदम ,
करे सटकरे कू लहरत अं क पर।
सोव थक हस औ वलस स पसर प ूय ,
जै से कलकंठ रसगीत गय दन भर।
पं ख बीच नए सर आपनो लखत तौ ल
7/14/2019
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जौ ल न भत आय खोलन कहत वर।
कंचन क दीवट पै दीपक सुगधंभरे
जगमग होत भौन भीतर उजस कर।
आभ रंग रंग क दखय रही तस मल
करन मयं क क झरोखन स ढर ढर।
जम है नवे लन क नखरी नकई अं ग
अं गन क वसन गए ह कू ने कु टर।
उठत उरोज ह उससन स बर बर , सरक परे ह हथ नीचे कू ढीले पर।
दे ख पर सू वरे सलोन,े कू गोरे मु ख ,
भृ कुटी वशल बं क , बनी बछी ह यम।
अधखु ले अधर , दखत दं तकोर कछु
चु न धरे मोती मनो रचबे के हे तु दम।
कोमल कलई गोल , छोटे पू य पै जनी ह, दे त झनकर जहू हलै कू कोऊ वम।
व टट जत वको जम सो रही है पय
कु ू वर रझय उपहर कछु अभरम।
नै कै परी लू बी कोऊ बीन लै कपोल तर ,
ऑगरी अझ रह अब तइू तर पर
वही प जै से जब कत सो तन रही
झ म रस जके झपे लोचन वशल वर।
लै कै परी कोऊ म ृगशवक हए त लय ,
सोय गयो टुूगत कुसु म पय तसु कर।
कुतरो कुसु म लसै कमनी के कर बीच ,
पत लपटनी हरी हरन अधर तर।
सखयू ै आपस म जोर गर ग सोय
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गु हत गु हत गु छ मोगरे को महकत ,
े मपश प रो बू ध अंग अं गन जो
अं तस् सो अं तस् मलवत न सरकत।
सोयबे के थम परोवत रही है कोऊ कंठहर हे तु मोती मनक औ मरकत।
स त म परोए रहे अझ कलई बीच
रंग रंग को कश तनस है झलकत।
उपवन भ टती नदी को कल नद सु न
सो सब वमल बछवन पै पस पस।
म ू द दल नलनी अनेक रह जोह मनो।
भनु को कश जह पय होत है वकस।
कोठरी कुमर क लखत जके र बीच
दमक सु रंगपट रहे पय कै उजस।
तके दोऊ ओर गं ग गौतमी सलोनी सो
रसधम बीच जो धन नै कर नवस।
लगे र पै च ंदन के ह चत चौखट ,
कनककलत ब परे मनोहर अण नील पट। च कै सीी तीन परत है जनके भीतर
अत वच आवस कु ू वर को परम मनोहर ,
रेशम क गु लगु ली से ज जहू सजी सु नमा ल
लगत कमलदल सरस अं ग तर जो अत कोमल।
भीतन पै ह मोतन क पटरी ब ैठई ,
सहल क सीपन स जो ह गई मू गई।
सत ममा र क छत पै सु ं दर पीकरी ,
रंग रंग के नग ज कै जो गई सू वरी। ववध वणा क बनी बे लब टी मन मोहत।
कटी झरोखन बीच चमय जली सोहत ,
7/14/2019
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जनस खली चमे लन को सौरभ है आवत
चं करण , शीतल समीर को सं ग पु रवत।
भीतर सु षम लसत नवल दं पत क भरी - शय कु ू वर है बसत , लसत गोप छबवरी।
यशोधर उठ परी नद स कछु अकुलई ,
उरस अं चल सरक रो कट सो लपटई।
रह रह ले त उसस , हथ भहन पे फेरत ,
भरे वलोचन वर चह नज पय दश हे रत।
तीन बर कर च म कु ू वर को बोली ससकत
' उठौ , नथ! मो को बचनन स सु खी करौ अत।'
को कु ू वर ' है कह ? य!े मोह कहौ ब ुझई।'
पै ससकत सो रही , बत मु ख पै नह आई।
पु न बोली ' हे नथ! गभा म शशु जो मे रे
सोचत तक बत सोच म गई सबे रे।
लखे भयनक व तीन म अत सु खघती ,
करकै जनको यन अजू ल धरकत छती।
एक े त वृ ष अत वशलवपु परयो लखई
घ मत वीथन बीच बपु ल नज शृ ं ग उठई , उवल नमा ल र एक धरे मतक पर दमकत जो य परो टट तरो अत ुतधर
अथव जै सो नगरज को मण ु तवरो जसो होत पतल बीच दन को उजयरो मं द मं द पग धरत गलन म चयो वृ षभ ब
नगर र क ओर , रोक नह सयो कोउ क।
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भई इंमं दर स वणी यह वषदमय -
' जो न रोकहौ यह नगरी नसहै नय।'
जब कोऊ नह रोक सयो तब म बलखई ,
तके गर भ ुजपश डर म लयो दबई।
आ दीनी र ब ंद करबे क म पु न ,
पै सो कंध हलय , गवा सो कर भीषण ध ुन
तु रत छट मम अं क बीच स धयो ह ूकरत ,
तोरण अगा ल तोर भयो पहन को कचरत।
द जे अभु त व मह म लयो चर जन ,
नयनन स क रो ते ज जनके अत छन छन
मनो लोकप चल सु मे र त भ पै आए ,
दे वन को लै सं ग रहे य पु र म छए।
जहू र के नकट इं क धवज प ुरनी
गरी टट अररय , कूपी सगरी रजधनी।
द केतु पु न उठयो एक औरह तहू फहरत ,
रजततर म टूके अनल सम मनक छहरत ,
जसो क ब करन शदपी छतरनी ,
सु न जनको भे मु दत जगत् के सरे नी। मृ दु झकोर सो चयो प वा सो त समीरन ,
रजटत सो केतु पसरयो , पढै सकल जन।
झरे अलौकक कुसु म न जने कत सो आई।
प रंग म व ैसे ू नह पर लखई।'
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को कु ू वर ' हे कमलनयन! सपनो यह स ुंदर।'
बोली सो ' हे आया पु ! आगे है द:ुखकर।
गगनगर सु न परी ' समय आयो नयरई।'
यके आगे व तीसरो परयो लखई।
हे रयो म, ' हे नथ! हय , नज पा ओर जब
पयो स नी से ज , तहरे वसन परे सब।
चन म तव रह,े छू तु म मोह सधर,े
जो म ेरे सवा व , णधन , जीवन , यरे।
दे खत ह पु न मोतन को कटबधं तहरो
लपटयो मे रे अं ग , भयो अह दशंनवरो।
सरके कर के कंगन और केयर गए नस ,
वे णी सो मु रझय मलकदम परे खस।
यह सोहग क से ज रही भ मह समई , रन के पट चीथ उठे आपह उधरई।
सु यो द र पै फेर े त वभृभह म हू करत ,
और लयो सोइ केतु द र पै दमकत फहरत।
पु न बनी सु न परी ' समय आयो नयरई।'
उठयो करेजो कू प , परी जग म अकुलई।
इन वन को अथा यह य तो म मरह।
अथव तजहौ मोह , मृ यु ते ब द:ुख भरह।'
अथवत दनकर सम आभ मृ दु नयनन धरी। रो कु ू वर नज दु खत य क ओर नहरी।
बोयो पु न ' हे य!े रहौ तु म धीरज धरे,
यद धीरज कछु मलै े म म तु ह हमरे।
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चहै आगम कछ व ये होयू जनवत
औ दे वन को आसन होवै डयो यथवत ,
औ नतर उपय जगत् चहत कछु जनन
हम तु म पै जो चहै परै रखौ नय मन -
यशोधर स रही ीत मम जु ग ज ुग जोरी ,
औ रहहै सो सद , ने कु नह नै है थोरी।
जनत हौ तु म केतो सोचत रहौ रत दन य जग को नतर जह द ेयो ऑखन इन।
समय आयहै नै है जो कछु होनो सोऊ। जो कछु हम पै परै सह हम तु म मल दोऊ।
जो आम मम थत अपरचत जीवन के हत ,
जो परद:ुख लख द:ुखी रहत ह म ऐसो नत
सोचौ तो , मन मे रो वहरणशील उतर
रहहै कैसो लगो सद घर के नन पर ,
जो सथी मम जीवन के, मोको सु खकरी ,
जनम सब स ब अभ त ुम मे री यरी।
गभा मह तु म मम शशु क हौ धरनवरी ,
जसु आस धर मल दे ह स दे ह हमरी। जब म ेरो मन भटकत चर दश जल थल पर
बधूयो े म म जीवन के य भू त नरंतर -
उत कपोत बधूी े म म य शशु के नव - मन मे रो मू रय बसत है आय पस तव।
करण यह , म जनत ह तु मको सशुील अत ,
सब स ब आपनी , परम कोमल उदरमत।
सो अब जो कछु परै आय तु म पै, हे यरी!
7/14/2019
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कर लीजौ तु म यन े त व ृष को व भरी
औ व रन जी धवज को गइ जो फहरत ,
पु न रखयो मन मू ह आपनो यह नय अत -
सब स ब कै सद तु ह च औ चहह ,
सबके हत जो वतु रो खोजत औ रहह ,
तह तहरे हे तु खोजह अधक सबन स ,
धीरज यत धरौ छू चत सब मन स।
परै द:ुख जो कछ धीर धरयो ग ुन यह चत होय कदचत् हम दोउन के द:ुख स जगहत। सय - े म - तकर सकै कोऊ ज ेतो चह ीत नहोरे जे तो कोऊ रसभोग सकै लह
लहौ सकल तु म आलगन म मम , हे यरी!
वथाभव अत अबल ेम के बीच बचरी।
च मौ मम म ुख , पन करौ ये वचन हमरे,
जनौगी तु म और न जके जननहरे।
सब स ब कै ीत करी तुमस म, यरी!
करण , मे री ीत सकल णन पै भरी।
णये ह!े सु ख सो सोओ तु म नधरक अब
ह ब ैठो म पस तहरे औ नरखत सब।'
सजल नयन स सोय रही सो ससकत रोवत ,
' समय गयो अब आय ' व सो पु न यह जोवत।
उलट कु ू वर सथा रो नभ ओर नहरी ,
चमकत उवल चं , वमल फैली उजयरी।
बीच बीच म कतू रजत सी आभ धरे
7/14/2019
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मल कै मनो रहे यहै कह सर ेतरे-
' यहै रैन सो , गहौ पथं चहौ जो हे रो ,
सु ख वभैव को अपने व जगमं गल केरो। चहै करौ तु म रज चहै भटकौ तु म उत इत
मु कुटहीन जनहीन - होय जस जग को हत।'
कौ सो ' म अवस जै ह घरी पू ची आय ,
रह,े सोवनहर! तब ये मृ दु ल अधर बतय
करन को सो कटै जस जगत् को भवरोग , यदप मोसो और तोसो नै न जय वयोग।
गगन क नतधत म मह झलकत आज जगत् म आयो करन हत कौन सो म कज। रहे सबै बतय आय हरन को भवभर। चह म नह मु कुट जपै वशंगत अधकर।
तजत ह वे दशे जनको जीततो म जय। नह मे रो खं ग खु ल अब चमकह तहू धय। धर सन रथच मे रे घ मह नह घोर रअं कत करन को मम नम चर ओर।
फरन चह धर पै धर अकलु षत पू व ,
ध र नै है से ज म ेरी , बस स नो ठू व। तु छ त अत तुछ मे रे वतु रहह सं ग। चु न पु रने चीथरे ही धरह म अं ग।
कोउ दै है खयह सो और ंजन नह। वस करह गरग ुह और वपन झन मह।
अवस करह म यह,ै है परत मे रे कन
7/14/2019
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सकल जीवन को जगत केर् आनद महन।
दय उमगत है दय स दे ख भवज घोर ,
द र जको करन चह चलै जहू ल जोर। शमन करह यह , जो कछु उचत शमन उपय
कठन यग , बरग और य स मल जय।
ह अने कन दे व , इनम कौन सदय समथा?
क न दे यो इहै जो करत से व था?
नज उपसक करन क ये करै कौन सहय ? लोग कर आरधन इनक रहे क पय ?
करत ववध वधन स प ज अने क कर ,
धरत ह नै व े ब , कर म ं को उर।
हनत यन मह बल के हे तु पशु बललत
औ उठव बे मं दर जहू पु जरी खत।
वण,ु शव औ स या क कनी अने क पु कर
पै भले त भले को नह कयो इन उर ,
नह बचयो तप त व जो सखवनहर
ठकुरसोहती , भयतु त के अने क कर।
इन उपयन स बयो मम बधंु कोउ बहल
कठन , रोग , वयोग , नन लशे स वकरल ?
कौन ज ी और वर स बयो य जग आय ?
कौन जजा र िीणकरी जर स बच जय ?
भई िर कौन क है मृ यु स अत घोर ?
पयो है भवच म नह कौन इनके जोर ?
7/14/2019
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नए जमन सं ग उपजय नए लशे अपर ,
वसन को वशं बत अं त जसु वकर।
कौन सी सु कुमर नरी लो य स ंसर कठन त उपस को फल , भजन कौ तकर ?
भई क क सव क व ेदन कछु थोर
दही द वा जो चवत वनय स कर जोर ?
होयू गे कोउ दे व नीके, कोउ ब ुरे इन मह
कतु मनव दश फेरे कोउ ऐसो नह।
होयू गे नदा य सदय य नरन म दरसत ,
पै बधूो भवच म सब रहत फरे ेखत।
है हमरे श को यह वचन सय मन।
' जम को यह च घ मत रहत एक समन।'
होत ह आरोहम म जीव जो अवदत
कट , खग , पशु स मनु ज नै दे वयोनन जत।
सोइ पर अवरोह म पु न कट उमज होत। ह जहू ल जीव ते ह सकल अपने गोत।
शप त य मनु ज क कू होय जो उर ,
परै हलको सकल णन को अव भर ,
जसु छय है दखवत स सब कौ घोर ,
जीवपी जसु नपट नठुर कठोर।
होत कैसी बत , ह! जो सकत कोउ बचय!
अवस नै है कू न कू तो शरण और उपय।
रहे पीत शीत स तौ ल मन ुज भरप र
कयो ज ल नह कोऊ कठन चकमक च र ,
7/14/2019
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और अरणी मथ नकसी अ क चनगर रही इनम लु क जो ब आवरण पट डर।
रहे अफुट शद स बबयत नर जग मह वणा क ेसं केत जौ ल कोउ नकयो नह। रहे टटत न सम ते मं स ऊपर जय नह रोयो बीज जौ ल ख ेत कोउ बनय।
लही जो कछु वतु जग म है मनु ज ने चह
मली अपनी खोज , यग , य स है वह।
करै भरी यग कोऊ और खोजै जय तो कदचत् ण को मल जय कोउ उपय।
जो सु खी सं प होवै लह सकल सु खसज ,
जम जको होय करबे हे तु जग म रज ,
होत जीवन नह भरी जह क कर ,
जो लहत आनं द ही सब भू त य सं सर ,
े म के रसरंग म जो सनो त ृ वहीन ,
जो न होवै जरजजा र , शथल , चतलीन ,
द:ुख आत वभव जग के हय करत लस ,
एक स ब एक जको सु लभ भोग वलस ,
होय मो सम जो , न जको रहै कोऊ लशे ,
औ न अपनी रहै चत सोच को कछ लशे ,
सोच केवल जह पर द:ुख दे ख कै दन रत ,
सोच केवल यह ै' म ू मनु ज सबक भू त ,'
होय जो ऐसो , तजन हत होय एतो जह ,
यग सवा स दे य जो नज मन ुजे म नबह ,
7/14/2019
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खोज म पु न सय के जो लगै आठो यम और मु रहय खोजै होय सो ज ठम -
नरक म व वगा म चहै छपो जहू होय , चहै अं तर म सबन के ग ु होवै सोय - द दृ गय जो सो दे खहै चू ओर
अवस टरहै कबू कतू आवरण यह घोर ,
अवस खु लहै मगा कू, जहू थक ेपू व पधर।
पयहै नतर को सो कोउ र नहर।
जसु हत सब यगहै सो अवस मलहै तह और मु यु ं जय कदचत् होयहै सो चह।
करौ म यह , यगबे हत जह एतो रज।
हये कसकत पीर सो जो सहत मन ुजसमज। है जहू जो कछु हमरो - कोटगु न और - करत ह उसगा जस होय सु ख सब ठौर।
हो सिी आज गगन के सरे तरे! और भ म जो दबी भर सो “आज पु करे!
यगत ह म आज आपनो यह यौवन , धन ,
रजपट , सु ख , भोग , बधं,ु बधंव औ परजन ,
सबस ब भु जपश , य!े तव तजत मनोहर
तजबो जको य जग म है सब स दु कर। पै ते रो नतर जगत् क ेसू ग बन ऐहै,
व को जो गभा बीच तव कछु दन रैहै-
है जो फल लहलहे े म को थम हमरे- पै दे खन हत तह रहौ तो धरौय सधरे।
हे पी , शशु पत और म ेरे य पु रजन!
कछुक दवस सह ले द:ुख जो परहै य छन ,
7/14/2019
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जस नमा ल योत जगै सो अत उजयरी ,
लह धमा को मगा सकल जग के नर नरी।
अब यह दृ संकप , आज सब तज म जै ह।
जब ल मलहै नह तव सो नह फर ऐह।”
य कह नयनन लय लयो नज यरी को कर। ने हभरी पु न दीठ वद हत डरी मु ख पर
कर परम तीन से ज क प ूव बए ,
धकधकत छती को कर स दोउ दबए।
को “ कबू अब नह स ेज पै य पग धरह।
छनत पथ क ध र धरतल बीच बचरह।”
तीन बे र उठ चयो , कतु सो फर फर आयो ,
ऐसो वके प े म स रो बूधयो ,
अं त सीस पट नय , पलट आगे पग डरी
आयो जहू सहचरी सकल सोवत सु कुमरी ,
पय नश मनु बूधी कमलनी इत उत सोहत। गं ग औ गोतमी अधक सब स मन मोहत!
पु न तनक दश हे र को ' सहचरी हमरी!
तु म सु खदयन परम , तजत तु मको द:ुख भरी।
पै जो तु मको तज नह तो अं त कहू है?
जर , लशे अनवया, मरण वकरल मह ह।ै
दे खौ , जै से परी नद म हौ य छन सब
परहौ यही भू त मृ यु गरजत ऐहै जब।
स ख गयो जब कुसु म कहू फर गंध प तब ?
7/14/2019
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चुयो ते ल जब , योत दीप क गई कहू सब ?
हे रजनी! तु म और नद स चपौ पलकन ,
अधरन रखौ म ू द और तु म इनके य छन ,
जस नयनन नीर और मु ख वचन दीनतर
रख मोह न रोक , जवू म तज अपनो घर।
जे तोई सु ख मोद लो म इनस भरी ते तोई ह होत सोच यह बत दु खरी -
म, ये औ नर सकल भरत ज त सम जीवन , लहत सहत ह जो वसं त औ शीत तप तन।
कबू पत झु रत , झरत ह लहलहत पु न ,
“ कबू कुठर हर म ल पै होत परत सु न!
नह जीवन य प बतै ह य जग मह।
द जम मम , जय था सो ऐसो नह।
वद ले त ह आज , अत,ु हे सकल सु द जन!
जौ ल है सु खसर प णा मोरो यह जीवन
है अपा ण के योय वतु सो , यत अपा त।
खोजन हत ह जत मु औ ग ु योत सत।्”
कयो मं द पग धरत कु ू वर व नश म रह रह ,
तरक पी नयन ने ह स रहे जसु चह।
शीतल ससमीर आय च यो फहरत पट ,
जोो नह भत सु मन खोयो सौरभ चट।
हमगर स लै सधु तइ ूवसधु लहरनी ,
नव आशू स तसु दय उमयो कछु जनी।
मधु र द सं गीत गगन म परयो सु नई।
7/14/2019
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दमक उठ सब दश , दे वगण स जो छई।
गणन लए नज सं ग , मे रन स भरी
चरो दपत आय र पै बरी बरी
तकत ह कर जोर कु ू वर को म ुख , जो ठो
सजल नयन नभ ओर कए , हत धर हय गो
बहर आयो कु ू वर प ुकरयो ' छंदक , छंदक ,
उठौ , हमरो अ अबै कस लओ कंथक।'
फटक ही पै रो सरथी छंदक सोवत ,
धीर ेस उठ को कु ू वर म ुख जोवत जोवत -
' कह कहत हौ , नथ , रत म य अं धयरी
जै हौ तु म कत , कु ू वर! होत वमय मोह भरी।'
बोलौ धीम,े लओ मे रे चपल तु षरह ,
' घरी पू च सो गई तज य करगरह ,
जहू रहत मन बधूो , तव ढग पू च न पवत।
अब म खोजन जत लोक हत तह यथवत्।'
को सरथी “ हय , कु ू वर! यह कह करत अब ?
कहे वचन जो गणक कह झ ठे नै ह सब ?
शु ोदनसु त करहै नन दशेन शसन ,
रजन को नै महरज बसहै सहसन।
कह छू धनधयप णा धरती सो दै है?
तज सब िभप कह अपने कर लै ह?ै
जके ऐसो वगा सरस रसधम मनोहर
7/14/2019
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भटकत फरहै कह अकेलो स ने पथ पर ?”
उर दीनो कु ू वर “ इतै आयो यही हत ,
सहसन हत नह , सख! यह ले धर चत।
चहत ह म रय सकल रयन स भरी।
लओ कंथक तु रत , होू वको अधकरी ?”
बोयो छंदक “ कृपनथ! हम कैसे रहह?
महरज , तव पत शोक यह कैसे सहह?
पु न जके तु म जीवनधन वको क नै है?
करहौ कह सहय जबे जीवन नस जै है?”
उर दीन कु ू वर “ सख ? यह े म न सू चो ,
जो नज आनं द हे तु े म नय स कू चो। पै इनस म े म करत नज आनं द स ब -
औ तन क ेआनं द स ब -
यत अब क जत उधरन हे तु इह औ णन को सब।
लओ कंथक तु रत , वलं ब न ने कु करौ अब।”
' जो आ ' कह गयो अशल म छदंक ,
तु रत नकसी बगडोर चू दी क झकझक। तं ग पलनी कस कंथक को लयो बहर
फटक ढग , जहू कु ू वर रो ठो व अवसर।
दे ख भु ह नज अत स नै हय हहननो ,
नरखत तक ओर बवत मु ू ह नयरनो।
सोवत जे जे रहे गई यह धवन तन ल , पर
रखे दे वगण म ू द कन तनके व अवसर।
थपथपय कर कु ू वर कंठ पै वक ेफरेे,
7/14/2019
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बोयो पु न “अब धीर धरौ , हे कंथक म ेरे!
आज मोह लै चलौ जहू ल बनै नरंतर ,
सय खोजबे हे तु कत ह आज छ घर।
कहू खोज को अं त होयह,ै यह नह जनत ,
बनु पए नह अ ंत यहै नय मन ठनत।
सो अब सहस करौ कररो , तु रग हठील!े
खं गधर जो बछै पथं पग पर न ढील।े
थमै न ते रो व ेग , कै न गत कू ते री। खई खं दक पर, चहै पथर क ढ ेरी।
ज छन बोल ' बौ ' पवन पछे परौ ,
अनलते ज औ वयु वे ग तु म य छन धरौ।
पू चओ नज भु ह , होयहौ तु म भगी
महकया क महम के य जग हत लगी।
चलत आज म, गु नौ , नह केवल मनु जन हत
पै सब णन हे तु सहत द:ुख जो हम सब नत
कतु सकत कह नह , मरत नश दन य ही सब।
अतु परम सहत भु ह लै चलौ तु रत अब।”
धीरे स पु न उछर पीठ पै वके आयो ,
केसर पै कर फेर कंठ वको सहरयो
बयो अ अब , पर टप पथरन पै वक ,
बगडोर क की हल चमक अत बू क।
प ै' टप टप ' औ खनक नह कोऊ सुन पई ,
आय दे वगण दए मगा म सु मन बछई।
जब तोरण के नकट भ म पै चल पग डरे,
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मय के पट ववध ियगण तहू पसरे।
य वध आहट बन कु ू वर तोरण पै आए ,
पीतर के तहरे कपट जहू रहे भए।
सौ मनु य जब लग खु ल जो तब कू जई ,
खु ले आप त आप सरक , नह परे सु नई।
यही वध खु ल परे बहरी फटक सरे
य ही रजकुमर पू व तनके ढग धरे।
िरकगण जनु मरे परे ऐसे सब सोए ,
डर ढल तरवर द र , तन क सधु खोए।
ऐसी बही बयर कु ू वर के आगे त छन परे मोहन म लीने स जहू जन।
गयो गगनतट शु , बो जब त समीरन ,
लहरन लगी कछुक अनम पय झकोरन ,
खच बग चट कु ू वर कद मह पै पग धरे,
कंथक को चु मकर , ठक म ृदु बचन उचरे।
छंदक सो पु न े म सहत बोयो कुमरवर
“ जो कछु तु मने कयो आज वको फल स ुं दर
पै हौ तु म औ पै ह जग के सब नरी नर।
धय भए त ुम आज जगत् म, हे सरथवर!
दे ख तहरो े म े म मे रो अत तु म पर ,
अब मे रे य यरे अह लै पलटौ घर।
ले सीस को मुकुट , रजपरधन हमरे
जह न कोउ अब मोह दे खहै तन पै धरे।
रजटत कटबधं सहत यह खग ल े मम
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औ ये लू बी लट कट फकत जनको हम। दै यह सब त ुम महरज स कहयो जई।
' मे री सु ध अब रख त ल सकल भ ुलई
जौ ल आऊू नह रज स ब लह सं पत ,
य योगबल , वजय पय , लह बोध वमल अत।
यद पऊू यह वजय होय वसधु मे री अब
हत नत,े उपकर नहोर,े यहै चहत अब।
गत मनु य क होनी है मनुय के हथन। पयो न जै सो कोउ होय पचह दै तन मन।
जग के मं गल हे तु होत ह जग त यरे,
पै ह कोऊ यु क यह चत धरे'।”
पचंम सगा बु चरत / पं चम सगा / भग -1 / एडवन अना ड / शुल
य
जहू रजगृ ह है रजधनी लसत घर बन स घने तहू पू च पवा त परत पवन पस पस सु हवने-
अत सघन तल - तमल - मं डत एक तो ' वभैर ' ह,ै
द जो ' वपु लगर ', बहत ज तर पतरी सरधर ह।ै
पु न सघन छय को ' तपोवन ' जहू सरोवर ह भर,े
तबब यम शलन के दरसत है जनम परे।
ऊपर चटनन स शलजतु रसत जहू पसीज कै ,
नीचे सलल को परस रह रह डर झ मत भीज कै।
चल अदश क ओर सु ंदर 'शै लगर ' मन को हर,ै
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उठ ' गधृ् रकट ' सशृृ ं ग जको द र ही स लख पर,ै
ची दश क ओर सोहत ' रगर ' नखरी खरो ,
जो वटप बीध स हरो , ब प रन स भरो।
पथ वकट पथरीलो परै जो फेर को आओ धर,े
पग धरत बन म कसुु म के, आम जमु न के तर,े
पै बचत झन स कटीली ब ेर क औ ब ूस क
औ चत टीलन प,ै कत पु न भ म पै सम पस क।
नव कलत कननकुसु म वह जो अचल अ ंचल ढर ह,ै
चल दे खए वटकु ं ज भीतर जो ग ुफ को र ह।ै
य सरस पवन और थल नह सकल भ तल पइए ,
कर वमल मन सब भू त आदर सहत सीस नवइए।
य ठौर ीभगवन् बस कटत करल नदघ को ,
जलधरमय घनघोर पवस , कठन जो मघ को। सब लोक हत धर मलन वसन कषय कोमल गत प ै
मू गे मलत जो भीख पलट पसर पवत पत पै।
तृ ण डस सोवत रैन म घर बर वजन बहय कै।
आूत चू दश यर , तपत बघ बनह कूपय कै।
य भू त जगदरधय बतवत ठौर य दन रत ह।
सु खभोग को सुकुमर तन तप स तपवत जत ह।
त नयम औ उपवस नन करत , धरत यन ह,
लवत अखं ड समध आसन मर म त समन ह। च जनु ऊपर कद कबू धय जत गलय ह। कन चु नत ढीठ कपोत कर ढग कबू कंठ हलय ह।
खरी दु पहरी म बै ठत भु यन लगए!
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सन सन करती धर , ध प धधकत दव लए।
गन गन नचत परत सकल बनखं ड लखई ,
पै भु जनत नह जत कत दवस बहई।
ढरत दी अं गरबब सम गरतट दनकर ,
पसरत आभ अण खे त औ खरयनन पर। जु गज ुगत पु न जहू तहू नकसत नभ म तरे। मल कै मं गलव उठत बज पु र के सरे।
छय जत पु न नश , जीव जग के सब सोवत।
केवल कौशक रटत क,ू कू जं बु क रोवत।
पै भु यननम रहत ह आसन धरे,
य जीवन को तव कह सोचत मन मरे।
आधीरत नखं ड होत , जग थरत धरत।
केवल हसक पशु क कै कू फरत पु करत - -
य मन के अनवपन भय े ष पु करत ,
कम ोध मद लोभ घोर वचरत , नह हरत।
सोवत पछले पहर घरी त ेती ही भु वर अमशं पथ ज ेती म क जत नशकर।
पौ फटबे के थम परत उठ भु पु न तदन ,
फटक शल पै आय रहत ठे नत ब छन।
सोवत वसधु को नयनन भर नीर नहरत ,
सब जीवन क दश दे ख , गु न हय म हरत।
पु लकत पु न लख परत लहलहे खे त मनोहर ,
चु ं बन सो अनु रगवती ऊष के सु ं दर।
ची आश कहन लगत दनरत अवई ,
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पहले केवल ध ुधं सरीखो परत लखई।
कतु पु करै अणच जौ ल पु र भीतर ,
आभ नखरत शु रेख सी श ैलशीषा पर।
लगत परसन होत शुतर सो अब म म दे खत दे खत होत वणा पीतभ भर सम।
अण , नील औ पीत होत घनखं ड मनोरम ,
क पै च जत स ुनहरी गोट चमचम ,
सब जग जीवन म ल तपी परम भकर दनपत गटत धर योतपरधन मनोहर।
ऋष समन कर नयय सवतह सर नवत ,
लै पु न िभप पू य पु र ओर बवत।
बीथी बीथी फरत यती को बनो धरे,
जो कछु जो दै दे त ले त सो हथ पसरे।
िभ स भर जत प सो जहू पसरत ,
' महरज! ये ले ' कते रह जत प ुकरत।
दे ख द सो प सौय , लोचनसु खकरी
जहू के तहू रह जत ठगे से पु र नरनरी।
द र द र स पु वती ब धवत आव,
भु के पू यन पर ससु न , ब बर मनव
ले त चरणरज कोउ , कोउ पट सीस लगवत।
अत मीठे पकवन और जल कोऊ लवत।
कबू कबू भु जत रहत अत मध ुर मं द गत।
द दय स दी , यन म भए लीन अत।
प अन प लभुय लय टक रह कुमरी ,
े म भ स भरी दीठ नज तन पै डरी।
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मनो प समय रो जो नयनन म अत ,
समु ख लख रह जत चह स तको चतवत।
पै पकरे नज पंथ जत भु सीस नवए ,
धरे वषन कषय , भीख हत कर फैलए।
मृ दु वचनन स कर सबको परतोष यथवत्
फरत गरज ओर , आय पु न यन लगवत।
जे ते जोगी जती बसत तनके ढग ब छन
बै ठ सु नत ब न , सयपथ प छत त दन।
शं त कु ंजन बसत तपस रगर क ओर ह,
गनत ह य तनह जो च ैतय को रपु घोर ह।
कहत इंय बल पशु ह, लय वश म मरए ,
लशे दै ब भू त इनको दमन य कर डरए
लशे क सब व ेदन मर जय आपह , आपह ,
तप स तन नह तपै औ शीत स क ूपै नह।
करत नन सधन योगी यती मन लय कै,
यग जनपदवस नजा न बीच धम बनय कै।
कतू कोऊ ऊधवा व दनंत ल ठे रह,
जो त भु जदं ड दोऊ मो न कबू लह, स ख कै अत छीन औ गतहीन नै तन म मे उकठ मनो ख त ै ख थ ऊपर को के।
कल रखे करन को कोउ कठ मर कठोर ह,
भलु क ेसे ब रहे नख ऑगु रन के छोर ह। लोह कली बछय कोऊ बसत आसन मर कै।
कोउ ठत अं ग , कोउ पं च तपत बर कै।
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पथरन सो मर कोऊ जर तन जजा र करे,
रख मटी पोत तन पै चीथरे चीकट धरे।
जपत कोउ शवनम बै ठ मसन पै दनरत ह,
यर जहू शव नोच भगत , गीध ब म ंडरत ह।
कोउ कर म ुख भनु दश पग एक पै ठो रह,ै
नह अथवत दे व जौ ल अजल नह कछु लह।ै
सहत सू सत सतत य , सब मं स गल तन क गई ,
ह स सट चम सखो , तू त सी नस नस भई।
करत अनशन त कोऊ , कोउ कृछ च ंयण कर।
ध र म कोउ जय लोटत , रख कोउ मु ू ह म भर।
करत रसन सु कोऊ जी ब टी चब ह,
वद क सब वसन य भू त पवत दब ह।
कट कर पग , छू ट डरी जीभ कोऊ आपनी ,
कच ऑखन , नोच कनन , कनक सी कय हनी ,
वकल अं गवहीन , गतहत म क , बहरो , ऑधरो ,
जयत मृ तक समन नै पलपड सो भ पै परी।
कयदं ड कठोर जो सह ले त ह सरे यह कठन यम क यतन रह जय पु न तनको नह। लशे सरे जीत स ुंदर दे वगत ते लहत ह। वे द श पु रण आगम बत ऐसी कहत ह।
जय बचन भगवन एक स य कहे
'अहो! लशे यह घोर आप तो सह रहे।
बीते मस अने क मोह य ठौर ह
दे खे आप समन तपत ब और ह।
7/14/2019
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है य जीवन मह द:ुख थोरो कह
और बवत आप लशे जो यह मह ?'
बोयो तपस 'और कह हम जनह?
थंन म जो लखो चलत सो मनह।
जो कोउ तनह तपय लशे ही जनहै और मरण वमप कर मनहै
लशेभोग स पपलशे नस जयह,ै
नखर जीव नै शु , लोक शभु पयह,ै
नकस घोर य तपप णा भवकप त लोकन बीच बचरहै द वप त भू त भू त सु ख भोग भोगहै बस तहू
जनको ू अनु मन सकत कोउ कर कहू?
को ीसथा ' वह जो शु मे घ दखत , इं आसन को मनो पट वणा मय दरसत ,
वितु ध पयोध स सो उठो नभ म जय ,
अु बदु समन खस खस अबस गरहै आय ,
कच स सन , धु नत सर , बह नदी नरन मह
जय परहै जलध म पु न अवस सशंय नह। कह यही प को नह वगा को सब भोग ,
जह अजा न करत मु नजन सध तप औ योग ?
चत जो सो गरत , छीजत ले त जह बसह ,
यह अटल वहर जग म वदत है नह कह ?
र तन को गर य य करत हौ स ुरधम ,
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प जहै जब भोग सोइ भवच प ुन अवरम।'
' कौन जनै होय ऐसो , सकत कह कह भू त ?
नश पै पु न दवस आवत , म अनं तर शं त।
र पल क दे ह पै य हम ममत नह रहत बधूो जीव को जो वषयबंधन मह।
जीव के हत दू व पै धरत दे वन पस
िणक जीवनलशे यह चरकल सु ख क आस।'
कु ू वर बोल,े ' सोउ सु ख क अवध है पै त! वषा कोटन लौ रह,ै पै अं त वै ही जत।
अं त जो नह तो कह हम ल य ऐसो मन
है कू य प जीवन जसु होत न लन ,
भ जो सब भू त जको होत नह परणम ?
ह कह,ू ये दे व सरे नय नज धम ?
को योगन ' दे व नह नय य जग मह
नय केवल है, हम और जनत नह।'
को बु भगवन ्' सु नो , हे मे रे भई!
नवन , दृ च परत हौ हम लखई।
य तु म अपनी हय दू व पै दे त लगई
ऐसे सु ख के हे तु व सम जो नस जई ?
आम को य मन दे ह य अय कनी ,
तन कर ब तक तु म यह गत कर दीनी धरन म समथा व जीवह नह
खोजत जो नज पथं , रो अ बीचह मह।
7/14/2019
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य कोउ तीखो तु रग बत जो आपह पथ पर खय खय कै ए भयो बीचह म जजा र।
ढहत हो य भवन जीव को यह वरआई ,
प वा कमा अनु सर बसे हम जम आई ,
जके रन स कश कछु हम ह पवत ,
स झत है यह हम दीठ नज जबै उठवत
सु भत कब होय घोर तम पु ं ज नसई ,
सु ं दर , स धो सु गम मगा कत त नै जई।'
योगी बोले हर ' पथं है यहै हमरो ,
चलह यपै अं त तइू सहह द:ुख सरो।
जनत यत सु गम मगा यद हो , बतओ
नतो बस , आनं द रहौ , इत यन न लओ।'
बढयो आगे खमन सो दे ख कै यह बत ,
मृ यभुय नर करत ऐसो भय करत भय खत।
ीत जीवन स करत य ीत करत सकत ,
करत कुल तह , तप क सहत सू सत गत।
करन चहत स य वध दे वगणह रझय ,
सकत दे ख स मनव सृ जो नह , हय!
चहत नरकह य न करबो नरक आप बनय। मत तप उमद म ये रचत मु उपय!
बोल उठयो सथा 'अहो! वनकुसु म मनोहर!
जोहत कोमल खले मु खन जो उदत भकर ,
योत पय हरषय ससौरभ सं चरत ,
रजत , वणा, अणभ नवल परधन स ूवरत ,
7/14/2019
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तु म म ते कोऊ जीवत नह मटी कर डरत ,
नह अपनो हठ प मनोहर कोउ बगरत।
एहो , तल! वशल भल जो रो उठई ,
चहत भे दन गगन , पयत सो पवन अघई ,
शीतल नीरध नील अ ंक जो आवत परसत मं जु मलयगर गधंभर भर म ंद मं द गत। जनत ऐसो भे द कौन जस हे य ु म!
अं कुर त फलकत तइू हौ रहत तु तु म ?
पं ख सरीखे पतन स ममा र धवन कत ,
अहस स हू सत हू सत तु म जग म बत।
तडरन पै बहरनहरे, हे बहं गगन!
शु क , सरक , कपोत , शख , पक , कोकल , खं जन
तरकर नज जीवन को नह तु मू करत हौ ,
अधक सु खन क आस मर तन मन न मरत हौ।
पै णन म े मनु ज जो बधत तु ह गह ,
नी बोलत रपत बच पोसी मत लह।
सोइ बु लै ह वृ ये नर बते र े
आमलशे दै बे म नन भू तन केरे।
कहत य भु शै लतट पथ धरे गे कछु द र। खु रन के आघत स तहू उठत दे खी ध र।
झु ं ड भरी भे छेरन को रो है आय ,
ठमक पछे द ब पै कोउ दे त मु खै चलय।
जतै झलकत नीर , ग लर लसी लटकत डर
7/14/2019
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लपक तक ओर धव छू पथ ै चर ,
जह बहकत लख गरयो उठत है चलय लकुट स नज हू क पथ पै फर लवत जय।
लखी भु इक भे आवत यु गल बन सं ग ,
एक जनम नै रो है चोट स अत प ंग।
छट पछे जत , रह रह चलत है लू गरत ,
थके नह पू व सो है र बहत च ुचत।
ठमक हे रत तह फर फर तसु जनन अधीर ,
बत आगे बनत है नह दे ख शशु क पीर।
दे ख यह भु लयो ब ल ूगरत पशु ह उठय ,
लद लीन कंध पै नज करन स सहरय
कहत य ' हे ऊणा दयन जनन! जन घबरय ,
दे त ह पू चय यको जहू ल त जय। पशु क इक पीर हरबो ग ुनत ह म आज
योग औ तपसधन स अधक शभु को कज।'
ब चरवनहर दश भु बर ब झी बत
' जत ऐसी ध प म कत लए इनको , त ?'
दयो उर सबन 'आ मली है यह आज ,
मे ष अज सौ बीछ कै लै चलौ बल के कज।
दे वप जन रत करह महरजधरज।
होत ह य हे तु नृ प के भवन नन सज।'
' चलत हम'ू बोल य भु चले धीरज लय
ध प म व सं ग तनके पशु ह गोद उठय।
7/14/2019
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वे दकणक ध र छए भल पै दरसत ,
लगी पछे जत रह रह भे सो ममयत।
कस गौतमी
चलत य सब जय पू चे एक सरत तीर। मली तणी एक खं जननयन धरे नीर। लगी भु स कहन य कर जोर करत णम
" तु ह चीहत ह भु! त ुम सोइ कणधम
जो धरयो धीर मोको व कुटी म जय जहू इकली शशु लए म रही दनन बतय।
रो फलन बीच घ मत एक दन सो बल ,
रो ढग नह कोउ , लपटयो आय कर स ल।
लयो खे लन तह लै सो मर ब कलकर ,
क दु हरी जीभ वषधर उो दै फुफकर।
हय! पीरो परो वको अं ग सब छन मह ,
गयो हलबो डोलबो , थन धरयो मु ख म नह
कहन लयो कोउ यको वष गयो अब छय ,
कोउ बोयो ' सकल यको नह कोउ बचय।'
कतु कैसे बनै खोवत णधन नज , हय!
झ फ ू क करय , दे वन थक सकल मनय।
कए जतन अने क खोलै ऑख सो शशु फेर ,
मु दत ' मय ' पु कर बोलै कछुक मो तन ह ेर।
गु यो म नह सपा को है दशं अधक करल ,
नह अय क को है नेकु मे रो लल।
7/14/2019
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ठन यस बै र कहे सू प लै है न ?
खे ल म य यह डसहै, जन बल अजन ?
को कोउ ' बसत गर पै स एक महन ,
जय त ढग दे खु तौ कर सक कछु कयन।'
सु नत धई पस , भ!ु तव वकल कंपतगत ,
द दशा न पय परयो पु लक पद जलजत।
बलख शशु तहू डर , दीनो तसु मु खपट टर ,
' करय कछु उपचर ' भ!ु य वनय कनी हर।
करी मोपै दय भगवन!् नह टरयो मोह परस शशु भरी नीर नयनन को मो तन जोह
' हे भगन! जनत जतन जो म दे त तोह सु नय ,
उपचर ते रो और ते रे शशु को नै जय ,
पै सके जो त लय जो म दे त तोह बतय , है कहत जो कछु वै रोगी दे त तह जु टय।
मू ग घर स क के दे लल सरस लय ,
यन रख य बत को त जहू मू गन जय ले य व घर स न त जहू मरो कोऊ होय -
पत , मत , बहन , बलक पु ष अथव जोय।
दे य सरस लय ऐसी उठै तो तव बल ,
कह मोस रही भु वर बत यह व कल '
को मृदु मु सु कय भ ु' हे कस गोतम! तोह
कही म ने रही ऐसी बत , सु ध है मोह।
मली सरस तोह ऐसी कतू दे य बतय।'
7/14/2019
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बलख बोली नर सो भगवन के गह पय
मरे शशु ह गर ब ूध फरी म सकल म वन ,
र र पै मू गी सरस धीर धर मन। मू गत जस जय दे त सो मोह ब ुलई। दीनन पै तो दय दीन जन क चल आई।
पै जब प छत ' मरयो कबू कोऊ तु हरे घर -
मत,ु पत , पत , पु , बंध,ु भगनी व दे वर ?'
कहत चकत न ै' बहन! कह यह कहत अजनी ,
मरे न जने कत,े जयत तो थोरे नी।'
सरस तनक फेर जय ज ूचत पु न औरन ,
पै सब यही प कहत कछु उदसीन मन
' सरस तो है कतु मरो है मे रो भई।'
' सरस है पै पत दीनो चल मोह बहई।'
' सरस है पै बोयो जने सो है नह।
कटन को जब समय , गयो चल सु रपु र मह।'
मयो न ऐसो मोह कोउ घर , हे भु नी!
कबू न होवै मरो जहू पै कोऊ नी।
नदी कनरे नरकट के व झपस मह दीनो म शशु डर हू सत बोलत जो नह।
तव पू यन ढग फेर , भो! बनवत ह आ ,
सरस मलहै कहू दे , भ,ु यहौ बतई।'
बोले भ ु' जो मलत न तो त हे रत हरी ,
पै हे रत म लह एक कटु औषध भरी।
कली लयो नज शशु ह महन म सोवत ,
7/14/2019
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दे खत है त आज सबै सोई द:ुख रोवत।
सब पै जो द:ुख परत लगत हओ जग मह ,
बतन म बू टी लगत एक को गओ नह। थमै तहरी ऑसु दे ू तो रह गरी ,
पै नह जनत ममा मृ यु को कोउ नर नरी ,
े ममधु री बीच द ेत जो कटु वष घोरी ,
जो नत बल के हे तु नरन लै जत बटोरी फलन स लहलही वटक बीच नकरत -
म क पशु न इन लए जत य , लखौ , हू करत!
खोजत ह म सोइ रहय , भगनी मे री!
लै अपनो शशु जय य क त व केरी।'
यबलदशान
पशु पलन सं ग वेश कयो प ुर म भु दे खत दे खत जय ,
ढर कंचन सी करन रव क जहू सोन को नीर रह झलकय
सब बीथन म पु र क परकै परछई रही अत दीरघ नय ,
पु रर के पर जहू तहर खे ब दीरघ दं ड उठय।
पशु लै भु को तन आवत दे ख दयो पथ सदर मौनह धर।
सब हट क बट म ब ैठनहर लई बगरी नज वतु न टर! झगरो नज रोक कै गहक औ बनय रहे मृ दु प नहर। कर बीच हथौो उठय लु हर गयो रह नह सयो घनमर।
तनबो तज तक जु लह रह,े ब ले खक ले खन हथ उठय।
गनबो नज पै सन को चकरय गयो सु ध खोय सरफ भु लय।
नह अ क रश पै कक ऑख , रहे सु खस मलसू चबय।
मटक पर धर चली पय क बह , वल रहे भु पै टक लय।
7/14/2019
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पु रनर जु री ब ब झत ह ' बल हे तु लए पशु को यह जत ?
शु च शं तभरी मृ दु त मु ख पै, अत कोमल म ंजु मनोहर गत।
क जत कह इनक ? इन पए कहू अत सु ं दर नै न लजत ?
तन धर अनं ग कधौ मघव यह जत चलो गत म ंद ललत ?
कोउ भखत ' ससोई यह जो तन योगन सं ग बसै गर पर '।
भु जत चले नज पथं गहे मन मह बचरत यह कर -
'भटक नर भ े समन , अहो! इनको नह कोउ चरवनहर ,
सब जत चले उत अधं भए बल हे तु खची जत है जमधर।'
आय नृ पत स कही एक भु को आवत स ुन
'आवत ह तव य मह , भ!ु एक मह म ुन।'
यशल म बसत नृ प , बधूो बं दनवर ,
शु पट धर करत ण म ं को उर। दे त आत जत ह मल सकल बरंबर। मयवे दी बीच धधकत अ धऑुधर।
गधंकठन सो उठत लौ जसु जीभ लफय ,
खत बल , धधुआुत रह रह धर घ ृत क पय ,
भखत बल सह सोमरस जो पय इं अघत ,
अशं दे वन को सकल तन पस पू चत जत।
बधो बलपशु के धर क लल गी धर बछी बल बीच थम थम बहत व ेदी पर।
लखौ अज इक बे सगन को खो ममयत ,
म ू ज स गर कसो जको य प म दरसत।
तन तके कंठ पै करवल अत खरधर
7/14/2019
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एक ऋवज् लयो बोलन म ं वध अनु सर -
' हण यको करौ तु म , हे दे वगण , सब आय
यबल शभु बबसर नरेश को हरषय।
हो आज स लख जो र रहे बहय। जरत पल त वप क यह गधं ले अघय। भ प को मम अशभु यक ेसीस पै सब जय।
हनत हौ अब यह , ले व भग सु रगण आय।'
आय ठे भए नृ प ढग बु भु तकल
बरज बोले ' यही मरन दे न , नरपल!
जय बलपशु पस बधंन तु रत दीनो खोल ,
ते ज स दब रहे सब , नह सयो कोऊ बोल।
कहन पु न भगवन् लग े' ग ुनौ , नृ प! मन मह ,
लै सकत ह ण सब , पै दै सकत कोउ नह।
िु कैसउ होय यरो होत सबको न। नह तको तजन चहत कोउ अपनी जन।
है अम य सद जीवन , यद दय को भव ,
सबल नबा ल दोउ पै है वदत जसु भव।
अबल हत कर दे त कोमल जगत क गत घोर ,
सबल को लै जत है सो े पथ क ओर।
चहत दे वन स दय नर होत नदा य आप ,
दे व सम नै पशु न हत इन , दे त इन को तप।
जगत म ह जीव जे ते सबै एकह गोत ,
े है सो जीव जको न ऐसो होत।
7/14/2019
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रहत जो वस प,ै ऊन दै तृ ण खत ,
दीन जीवन सं ग ऐसे करत ह नर घत! श सरे कहत केते नर शरीर बहय
भोग पशु खग योन पु न नरदे ह पवत आय।
अकण सम जीव पर भवच फेरो खत ,
कबू दमकत नखर कै औ कबू लपट वत।
य म पशु हनन नय पप ह,ै नररय!
जीव क गत रोकबो य भ ूत है अयय।
जीव श ु न नै सकत है र स जग मह। दे वगण भले ह यद तु नै ह नह!
र ह यद , सकत कैसे तह हम बहरय
दीन ग ू गे पशु न को इन मर र बहय ?
करत नर जो पप नन भू त कमा कमय तसु फल तल भर न सकहै पशु न के सर जय। करत जो ह सोइ भोगत और कोऊ नह।
व को ले खो भरत सब रहत जीवन मह ,
होत जीवन मह ज ैसे कमा, वचन , वचर
गत भली व बु री पवत तह के अनु सर। नय है यह नयम अ ंतररहत औ अवरम।
कहत भवी जह सो है कमा को परणम।'
सु नत दय स भरी खरी बनी भु केरी ररूगे कर ढू प रहे ज इकटक हे री। सदर सहम नृ पल खे कर जोर अगरी। लगे कहन भु फेर सबन क ओर नहरी -
'धरधम यह कैसो सु ंदर होतो , भई!
7/14/2019
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जो रहते सब जीव े म म बू ध गर लई ,
एक एक धर खत न जो कर जतन घने रो ,
होत नरमख रहीन भोजन सब केरो।
अमृ तोपम फल , कनक सरस कन , सग सलोन े
सब हत उपजत जो , दे खौ , सब थल सब कोन।े'
सु न यह सरी बत सहम सबही सर नयो ,
दय धमा को भव सबन पै ऐसो छयो
ऋवज् सब दई अ इत उत बगरई , बल को खू ो दयो हथ स द र बहई।
द जे दन नृ प दशे मह डी फरवई ,
शल पटल औ खभंन पै यह दयो खु दई -
महरज ह करत आज य वध अनुशसन - यन म बल हे तु और करबे हत भोजन
होत रहयो वध ववध पशु न को अबल घर घर ,
पै अब स नह र बहवै कतू कोउ नर।
जीव सबै को एक , न हत जीवन सरो।
दयवन् पै दय होत नय यह धरो।'
थल थल पै शभु शलले ख यह सोहत सु ंदर।
व दन स उत गं गतट के रय दशे भर , जहू जहू भु घ म दय को मं सु नयो ,
पश,ु पं छी , नर बीच शं त सु ख प रो छयो।
भु क ऐसी दय रही तन सब पै भरी
णवयु जो ख च रहे चल जीवन धरी ,
सु ख द:ुख के जो एक स म बूधो बे चरे,
जग म नन जतन करत जो पच पच हरे।
7/14/2019
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जतक म है लखी कथ यह एक पु रनी - प वा जम म रहे ब ु इक ण नी।
बसत बीच दल म के मु ं डशल पर। भरी स खो एक बर पर गयो दशे भर।
ढू पे न ढे ल,े खे त बीच ही धन गए मर ,
घस , पत , तृ ण , लत गु म म ुरझय गए जर।
तल तलै यन को सरो जल गयो सु खई। पशु पं छी जो बचे वकल नै गए परई।
स खे नर ेक ेतट पै भु जय एक दन परी कू करन पै दे खी इक भ खी बघन।
धू से नयन नै योतहीन , हू फत मु ू ह बई ,
दन स ब जीभ द र क बहर आई।
पसु रन स सट रो चमा चत , य छपर
ब ूसन बच धू स रहत होय वषा स जजा र। वकल िधु स शवक ै थन पै मु ू ह लई।
ख च ख च रहे हर , ब ू द नह मु ख म जई
छटपटत नज शशु न दे ख जननी सर नई सरक और तन ओर ने ह स चटत जई। रही भ ल नज भ ख ने ह के आगे सरी!
गजा न नह रह गयो , बलख ू करत गर फरी।
दे ख दश यह तसु भ ल भु अपनो तन मन कण क नज सहज बन वश लगे सोचन
' कैसे बन क हयरन क करौ सहई ?
केवल एक उपय परत है मोह लखई।
7/14/2019
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मं स बन दन डबत ही ये तीनो मरह,
ऐसे मलह कौन दय जो इन पै करह।
जह र क यस , मं स क भ ख सतवत
तनपै जग म दय नह क को आवत।
यके समु ख डर दे ू जो म अपनो तन मोह छू नह हन और क क य छन। अपनी तो हन नह कछु मोह दखती जीवन त नज ने ह नबहौ जो य भू ती।
य कह अपनो उरीय उणीष बहई। उतर कररे स बघन ढग पू चे जई।
बोल े' लै यह , मत!ु मं स ते रे हत आयो।'
भ खी बघन झपट तह तहू तु रत गरयो।
कुटल नखन स तन बदर , मु ू ह दयो लगई ,
बोर र म दू त मं स सब गई चबई।
हसत करल , स व पशु क जई
भु के अं तम े म उससन मह समई।
रो भु को सद यही भूत दय उदर। बरज पशु बल ब ु कनो दयधमा चर। जन भु को रजकुल औ यग अमत अपर बबसर नरेश कनी वनय य ब बर -
' रजकुल पल , रहे ऐसे कठन नयम नबह।
धरत जो कर रजद ंड न भीख सोहत तह।
रहौ मे रे पस चल , नह मोह कोउ सं तन।
ज जब ल त ुम सखओ ज को मम न।
करौ तु म मम भवन सु ं दर बध सहत नवस।' को दृ सं कप नज सथा होय उदस -
7/14/2019
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' रही मोको वतु ये सब सु लभ , नृ पत उदर!
सय पथ क खोज म ह तयो सब घर बर।
खोज ह और रहह तह क चत लय ,
नह थमह इं को भवन जो मली जय। ले न आवौ असर मोह रमं डत र कतु नज सं कप त न टर क कर।
जत ह म धमाभवन उठयबे हत जोह गय के घन बनन म जहू बोध नै है मोह।
ऋषन को कर सं ग दे यो छन श पु रन ,
कए नन भू त के त और लशे वधन ,
सय क पै योत मोक मली अब ल नह ,
योत ऐसी है अवस यह उठत है मन मह। लो जो म तह तो प ुन पलट य थल आय
े म को फल अवस दै ह तु ह, हे नररय!'
तीन बर दिण भु क करी नरपल ,
वद दनी फेर सदर पू व पै धर भल।
चले भु उवव दश संतोष न कछु पय ,
परो पीरो वदन तप स , दे ह रही झु रय।
पं चवग िभु सु न यह पस भु के आय बत चौ रोकबो ब भू त य समझय -
' बत है सब लखी य नह पत श उठय।
सु नौ , ु त के न स ब सक मु नू न जय।
न भखत जो हमरो नकं ड महन ्
िु मनुष पयहै ब कहू तस न ?
7/14/2019
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नय , सवा गत , सत् और चत् आनं द ,
अपरणमी , नवकर , नरीह , अज , न ।
कहत ु त य , रग तज औ कमा को कर नश ,
अहं कर वम ु नै नपध वयं कश ,
जीव बंधन कट मश: म मल जत।
व पौ तो तु म जनह सब बत ,
असत् ते सत् ओर कसैे जीव यह चल जय
लहत पु न चर शं त कैसे वषयं वहय।' सु नी तन क बत भु च ुपचप सीस नवय
भयो पै परतोष नह , चट दए पू व बय।
षम सगा बु चरत / षम सगा / भग -1 / एडवन अना ड / शुल
तपशचाय
जहू बोध योत कश भइ थल वलोकन चहए
तो चल ' सहे रम ' स वय दश को जइए।
कर पर ग ंग कछर पू व पहर प धरए वही जस नकस नीरंजन क पतरी धर बही।
अब होत तके तीर चकरे पत के मअन तरे,
हगट औ अं कोट क झीन को मरग धरे,
पटपरन म क जइए जहू फगु फोर नगवली चपती चटनन बीच पू चत है गय क शभुथली।
बलु ए पहरन और टीलन सो जो सु षम भरो
उवव को ऊसर कटीलो द र ल फैलो परो। लहरत तके छोर पै बन परत एक लखय है
7/14/2019
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अत लहलहे तृ ण स रही तल भ म जक छय है।
जु र कतू सोतन को वमल जल लसत धीर गभीर ह ,ै
जहू अण , नील सरोज ढग वक सरसन क भीर ह।ै
कछु द र पै दरसत तन बीच छपर फस के ,
जहू कृषक ' से नम ' के सु खनद सोवत ह थक।े
जहू वजन वन के बीच बस भु यन धर सोचत सद
रध क गत अटपटी औ मनु ज क सब आपद ,
परणम जीवन के जतन को , कमा क बती ली ,आगम नगम सं त सब औ पशु न क पी बी ,
व श य को सब भे द जहू स कत सब दरसत ह,
पु न भे द व तम को जहू सब अं त म चल जत ह। य भू त दोउ अ बच यह जीवन ढरत ह ै
य मे घ स लै मेघ ल नभ इंधनु लख परत ह,ै
नीहर स औ धम सो जु र जसु तन बन जत ह ै
जो ववध रंग दखय कै पुन श य बीच बलत है,
पु खरज , मरकत , नीलमण , मनक छट छहरय कै,
जो छीन छन छन होत अं त समत है कू जय कै।
य मस पै चल मस जत लखत भु वन म जम,े
चतन करत सब तव को नज यन म ऐसे रमे,
सु ध रहत भोजन क न , उठ अपरन म दे ख तह
रीतो परो है प वम एक कन है नह।
बन खत बनफल जह बलमु ख दे त डर हलय ह
औ हरत श ुक जो लल ठोरन मर दे त गरय ह।
ु त मं द मु ख क पर गई , सब अं ग चत स दह,े
7/14/2019
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बीस िलण मट गए जो बु के तन पै रह।े
झ रे झरत जो पत तहू जहू बु तप म च र ह,
ऋतु रज के ते लहलहे पन स न एते द र ह जे ते भए भु भ ह नज प स व पछले नज रज के जब वे रहे यु वरज यौवन स खल।े
घोर तप स छीन नै भु एक दन म ुरछय गरे धरती पै मृ तक से सकल चे त वहय। जन परत न सू स औ न र को सं चर।
परी पीरी दे ह नल परो रजकुमर।
कयो व मग स गरयो एक वही कल ,
लयो सो सथा को तहू परो वकल वहल ,
मु ू दे दोऊ नयन , पीर अधर पै दरसत ,
ध प सर पै पर रही मधयन क अत तत।
दे ख यह सो हरी जमु नडर तहू ब लय ,
ग ूछ तनको छय मुख पै छू ह कनी आय। द र स मु ख म दयो दु ह उण द ध सकत -
श कैसे करै सहस छुवन को श ुच गत ?
तु रत जम ुन डर पनपी नयो जीवन पय ,
उठ कोमल दलन स गु छ , फल फल स छय ,
मनो चकने पट को है तनो च वतन ,
रूग बरंगी झलरन स सजो एक समन।
करी ब अजपल प ज दे व गु न कोउ तह।
वथ नै उठ को भ ु' दे द ध लोटे मह।'
को सो कर जोर ' कैसे दे ू कृपनधन ?
7/14/2019
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श ह म अधम , दे खत आप ह, भगवन!्'
को जगदरधय ' कैसी कहत हौ यह बत ?
यचन औ दय नते जीव सब ह त।
वणाभे द न र म है बहत एकह रंग ,
अु म नह जत , खरो ढरत एकह ढं ग
नह जनमत कोउ दीने तलक अपने भल ,
रहत कधूो पै जने ऊ नह जनमत कल।
करत जो सकमा सू चो सोइ ज जग मह , करत जो दु कमा सो है व ृषल , सशंय नह।
दे ह भै य! द ध मो को यग भ ेद वचर ,
सफल नै ह , अवस ते रो होयहै उपकर।'
सु नत भु के बचन ऐसे तु रत सो अजपल ,
दयो लोटो टर भु प,ै भयो परम नहल।
सु जत बसत रो तहू एक नदीतट पै भ वमी
धमा वन,् धनधयप णा, सु कृत औ नमी ,
ढोर सहे न म ू जह , जो ययी नयक ,
आसपस के दीन दु खन को परम सहयक।
' से न ' तसु कुलनम , म ' से न ' ह बोलत
बस सु ख स जहू सो भर भर नत म ठी खोलत।
रही सु जत नर तसु च रखनहरी ,
पवती , ग ुणवती , सती , भोरी , सु कुमरी।
मत गत गौरवभरी , दय द:ुख लख दरसवत।
सब स मीठो बचन बोल परतोष बवत।
7/14/2019
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आनन पै आनं द , चह चतवन म सोहत।
नरन म सो र , शील स जनमन मोहत।
शं त सहत सुखधम बीच बतवत दन दोऊ ,
द:ुख यद कोऊ रो , यहै संतत नह कोऊ।
करी सु जत लमी क प ज ब भ ूती ,
नय सया के मं दर म सो उठ कै जती।
कर िदण बर बर नज वनय सु नवत।
ध प , गधं दै फल औ नै व े चवत। एक बर बन बीच जय कर जोर मनयो -
" नै है यद , वनदे व! कू मे रो मनभयौ
यो य तवर आय फेर नज सीस नवै ह ,
कनक कटोरे मह खीर अनमोल चै ह।"
सफल कमन भई , भयो इक बलक स ुदर।
तीन मस को होत तह नकसी लै बहर।
चली मं द गत , भ भरी , समी सज े
नजा न वन क ओर जहू वनदे व वरजे।
एक हथ स थमे सरी के अं चल तर
बी सध को यरो अपनो शशु सो सु दर , द जो कर म ुर उठयो सीस ल , रो सभूरी
कनक कटोरन सजी खीर जम सो थरी।
दसी रध गई रही पहले स व थल वे दी झर बहर लीप करबे को नमा ल। दौरत आई लगी कहन "है वमन मोरी!
गट भए वनदे व ले न प ज यह ते री।
7/14/2019
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सित् तहू आय वरजत आसन मरे,
यन लय , दोउ हथ जनु के ऊपर धरे।
द योत दृ ग मह , अलौकक ते ज भल पर
भ भव यु त लसत सौय शु च म त मनोहर।
हे वमन! कलकल मह य सम ुख आई बे भय स दे त दे व िय दखई।"
गु न तको वनदे व द र स कर ब फेर,े
कू पत कू पत गई सु जत तके ने रे।
करत दं डवत भ म च म बोली यह बनी -
' हे वन के रखवर! दे व , अत शभु फल दनी!
दशा न दै य दय करी दसी पै भरी ,
प पु प कर हण करौ भ!ु मोह स ुखरी '
तव नम ब जतनन स यह खीर बनई ,
दध कप र सम े त आज भु समु ख लई।'
कनक कटोरे मह खीर भु ढग सरकई
चं दन गधं चय , फलमल पहरई।
खन लगे भगवन् बचन मु ख पै नह लए ,
खी सु जत द र भ स सीस नवए। ऐसो गु ण कछु रो खीर म, खतह वके
गई श भु क बरी , वे सु ख स छके।
प रो बल तन मह गयो पु न ऐसो आई त औ तप के दवस व से परे जनई।
तन म जब बल परयो च लयो फरकन ,
ब ब वषयन ओर लयो छनत हत सरकन ,
7/14/2019
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जै से पं छी थको मथल क रज छनत गरत परत जल तीर आय सहस बल आनत।
य य भु मु ख कं त मनोहर बत जत अत। य य और खी सु जत है आरधत।
बोले भ ु' यह कौन पदरथ मो पै लई ?
बोली सु न यह बत सु जत सीस नवई -
' सौ गै यन को द ध थम दु हवय मू गयो ,
लै पचस धौरी गै यन को तह खवयो ,
तनको लै म द ध खवयो पु न पचीस चु न ,
तन पचीस को पय बरह को म दीनो पु न ,
तन बरह को द ध दयो पु न सब गु न ऑक
छ: गै यन को बीछ , रह जो सब म ब ूक।
दु ह तनको सो छीर ऑच पै मृ दु औटई ,
तज , कप र औ केसर स वध सहत बसई ,
नए खे त स बसमती चवर मू गवई ,
एक एक कन बीन धोय यह खीर बनई।
भ भव स स ूचे, भ!ु म कनो यह सब।
करी मनौती रही होयहै मोह पु जब तब य त तर आय चै ह प ज त ेरी ,
नथ दय स सकल कमन प जी मे री।'
भु वन उबरनहर हथ धर शशु के सर पर
बोले भ ु' सु ख बत तहरो जय नरंतर।
परै न यह भवभर जन य जीवन मह ,
से व तु मने करी , दे व म कोऊ नह।
7/14/2019
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म ू भई एक और जै से सब ते रे,
पहले रजकुमर रो , अब डरत फेरे।
नश दन खोजत फर योत जो कतू जगत
लहै कोउ जो तह , मटै जग अधंकर अत।
पै ह म सो योत होत आभस घन ेरो ,
त ने तन मन गरत सूभरयो भगनी! म ेरो।
अत पु नीत सं जीवन पयस त यह लई ,
अपने जतनन ऐसी जीवनश ज ुटई ,
ब जीवन बच होत गई जो बटुरत , बत ,
लहत जम ब गहत जत य जीव उ गत।
जीवन म आनं द कह सू च त पवत ?
गृ हसु ख म जन म और कछु मनह न लवत ?'
सु न सु जत दयो उर ' सुनौ , हे भगवन!्
नर को यह दय छोटो , नह जनत आन।
नह भीजत भ म जे तो म ह थोरो पय
नलनपु ट भर जत ह,ै लख उठत है लहरय
चह बस सौभयरव क रह आभ हे र
अमल पतमु ख कमल म, मु सकन म शशु केर।
यहै जीवन को हमरे, नथ! है मधु कल ,
मगन रखत मोह तो घरबर को जं जल।
सु मर दे वन उठत ह नत उवत दन , भगवन!्
हय धोय करय प जन दे त ह कछु दन।
कज म लग आप दसन दे त सकल लगय।
7/14/2019
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जत य मधयन न,ै पतदे व मे रे आय
सीस मे री जनु पै धर परत पू व पसर ,
कर बीजन पस बस मु खच ं तसु नहर। आय जब घर मह भोजन करन ब ैठत रत ठ परसत तह ं जन लय नन भू त।
रससं ग उठय ब कछु ब ेर ल बतरय फेर सु ख क नद सोवत शशु ह अं क बसय।
और सु ख अब कौन चहए मोह य जग मह ?
रही भु क दय स कछु कमी मोको नह।
पु दै नज पतह अब म भई प रनकम ,
जसु कर को पड लह सो भोगहै सु रधम।
धमाश पु रण भखत , हरत जे परपीर ,
पथक छय हत लगवत पे जे पथतीर ,
जे खनवत कप , छू त पु जे कुल मह
सु गत लह ते जत उम लोक , सशंय नह
को थंन मह जो जो चलत ह सो मन ,
सक म तन मु नन सो ब बत कैसे जन
होन समु ख रहे जनके दे वगण सब आय , गए जे ब मं और पु रण श बनय ,
धमा को जे तव जनत रहे प णा कर ,
शं त को जन मगा खोयो यग वषय वकर ?
बत म यह जनती सब कल म सब ठौर
भलो को फल शुभ बु रे को अशभु ह,ै नह और
लहत ह फल मधु र नीके बीच को सब बोय
7/14/2019
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औ वषै ले बीज को फल अवस कघवो होय।
लखत इत ही बै र , उपजत े ष स ज भू त ,
शील स म ृदु मत औ धरौय स शु च शं त। जयह तन छू जब तब कह नै है नह
भलो व लोक म य होत है य मह ?
होयहै ब कै कू- य परत है जब खे त
धन को कन एक , अं कुर फ क सहसन दे त।
सकल चं पक को सु नहरो वणा औ वतर
रहत बदी सी कलन म लुको प णा कर।
यहौ जन , परत ऐसी आपद ह आय ,
छट जब सब धीरत मु ू ह मोर जत परय।
जय जै से मर कू मम णय यह लल ,
दरक मे रो हयो नै है टक ै तकल।
चहह तौ अवस ही ै टक सो नै जय ,
अं क म शशु दब यह व लोक जू सधय। बट पत क रह तब ल जोहती तहू जय अं त वक घरी जब ल नह पू चै आय।
कतु म ेरे समने परलोक जो पत जय ,
चत पै म च वकौ सीस अं क बसय। फ ल अं ग समू न जब अनल दहकै घोर ,
उठै कु ं डल बू ध , छवै ध म चर ओर।
लखी है यह बत , जो सहमरण करती वम
तसु पु यभव स पत लहत है सु रधम ,
सं ग तके करत सु ख स तहू ववध वहर वषा एते कोट तके सीस जेते बर।
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रहत मे रे हये चत क न कोऊ बत ,
दवस जीवन के सद आनं द म चल जत।
कतु सु ख म लीन म नह भल तनको जत पतत ह, जे दीन ह, द:ुख सहत जे दन रत।
यहै चह दय तन पै कर ी भगवन्,
भलौ जो बन परत मोस करत अपनी जन।
चलत ह म धमा प,ै वस यह मन आन।
होयहै जो कछु भलोई , होयहै नह हन।
कहत भ ु' सख सकल तोस जो सखवत आन को ,
कथत भोरी बत स ते री अधक जो न को।
त भली जो नह जनत , मगन जीवन म रह,ै
धमा अपनो जन , बस त और नह जनन चह।ै
सहत परजन छू ह म सु ख क सद फलै फरै! सय क खर योत कोमल पत पै य न परै। बत बीरो जय यह ब लोक बीच पसर कै!
अं त क जम म क जय यह भव पर कै।
मोह प जन त चली , म तोह प जत ह , अरी!
धय ते री हयो नमा ल! धय तव गत मतभरी! बु लह , अनजने म शभु पथं त दरसवती ,
य परेई े म के वश नी क दशी धवती।
होत तोह वलोक नर उर क आश सही ,
म ठ जीवन च क लख परत अपने हथ ही। होय तव कयण सु ख म रह ते रे दन सन!े
कर म नज कज प रो करत य त आपन,े
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चहत यह आसीस जको दे व त जनत रही।'
' कज प रो होय भु को ' सु न सु जत ने कही।
शशु बए हथ भु क ओर हे रत चव स। करत बदन है मनो भगवन् को भर भव स।
बोधमु
बल पय पयस को उठे भु डर पग व दश दए
जहू लसत बोधु म मनोहर द र ल छय कए ,
कपं त ल जो रहत ठो , कब नह मु रझत ह,ै
जो लहत प ज लोक म चरकल ल चल जत ह।ै
है होत आयो ब ुगण को बोध यही के तरे। पहचन भु तकल तकौ ओर आपह स ढरे। सब लोक लोकन मह मं गल मोद गन सु नत ह।
भु आज चल व िअय त क ओर , दे ख , जत ह।
तक व त क छू ह जत जहू उनई डर वशल। मं डप सम सज रो चकनो चमकत चल - दल - जल। भु पयन स पु लकत प जन करत अवन हरषय
चरणन तर ब लहलहत तृ ण , कोमल कुसु म बछय।
छय करत डर झु क बन क , मे घ गगन म छय।
पठवत वण वयु कमलन को गधंभर लदवय।
मृ ग , बरह औ बघ आद सब वनपशु ब ैर बसर
ठे जहू तहू चकत चह भर भु मु ख रहे नहर।
फन उठय नचत उमं ग भर नकस बलन स ल। जत पं ख फरकय सं ग बरंग वह ंग नहल। सवज डर दयो नज मु ख त चील मर कलकर।
भु दशा न के हे तु गलई कदत डरन डर।
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दे ख गगन घनघट मु दत य नचत इत उत मोर।
कोकल कजत , फरत , परेव भु के चर ओर।
कट पतं ग परम म ुदत लख , नभ थल एक समन
जनके कन , सु नत ते सगरे यह मृ दु मं गलगन -
' हे भगवन!् तु म जग के सू चे मीत उबरनहरे।
कम , ोध , मद , सशंय , भय , म , सकल दमन करडरे।
वकल जीव कयण हे तु दै जीवन अपनो सरो
जव आज य बोधु म तर , भ,ु हत होय हमरो।
धरती बर बर आसीसत दबी भर स भरी।
तु म हौ ब ु , हरौगे सब द:ुख , जय जयमं गलकरी!
जय जय जगदरधय! हमरी करौ सहय दु हई!
जु ग ज ुग जको जोहत आवत सो जतन अब आई।'
मरवजय
बै ठे भु व रैन यन धर जय वटप तर। कतु मु पथ बधक नर को मर भयं कर
शोध घरी चट पू च गयो तहू व करन को ,
जन ब ु को करनहर नतर नरन को।
तृ ण , रत औ अरत आद को आ कनी ,
से न अपनी छू तमसी सरी दीनी।
भय , वचकस , लोभ , अहं त , िम आद अर ,
ईषा, इछ , कम , ोध सब सं ग दए कर।
बल शु ये भु ह डगवन हत बते र े
करत रत भर रहे व उपत घने रे। ऑधी लै घनघोर घट करी घहरई
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बल तमीचर अपनी अनी घरी चर दश छई।
गजा न तजा न करत , मे दनी कक कूपवत ,
तमक करत चकचध चमचम व चलवत। कबू कमनी परम मनोहर प सजई ,
चहत लभुवन मन भवन म ृदु ब ैन सु नई।
डोलत धीर समीर सरस दल परस सु हवन ,
लगत रसीले गीत कन म रस बरसवन। कबू रजसु ख वभव समने तके लवत।
सशंय कबू लय ' सय ' को हीन दखवत।
दृय प म भ कधौ ये बत बहर ,
कैधौ अनभुव कयो ब ु इनको अयं तर ,
आपह ले बचर , सकल हम कह कछु नह।
लखी बत हम , जै सी पई पोथन मह।
चले सथी मर के दस महपतक घोर।
थम ' हम हम ' करत पू यो 'आमवद ' कठोर ,
व भर म प अपनो परत जह लखय। चलै तक जो कू यह सृ ही नस जय।
आय बोयो "ब ु हौ यद करो तु म आनं द।
जय भटकन दे औरन , फरौ तु म वछंद।
गु न तु म हौ त ुमह , उठ कै मलौ दे वन मह ,
अमर ह, न ह, जे करत चत नह।"
बु बोले "कहत उम जह त , है नीच ,
वथा म रत होयू जे बकु जय तनके बीच।"
पु न ' वचकस ' आई जो नह कछ सकरत।
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बोली भु के कनन लग हठ सशंय डरत
" ह असर सब वत-ु सकल झ ठो पसर ह-ै
औ असरत को तनक न असर है।
धवत है त गहन आपनी केवल छय।
चल , ू ते उठ! ' सय ' आद सबही ह मय।
मनु न कछु, क तरकर , पथ ह,ै यह बू को।
कैसो नर उर और भवच कहू को ?"
बोले ी भगवन् "शु त रही सद ही , हे वचकस!े कज यहू तेरो कछु नह।"
'शीलतपरमषा' परम मयवी आयो ,
दशे दशे म जने ब पखं ड चलयो ,
कमा कं ड औ तवन मह जो नरन बझवत ,
वगाधम क कु ं जी बूधो फरत दखवत।
बोयो भु स "लु कह त ु तपथ करह?ै
दे वन को कर वद यमं डपन उजरहै?
लोप धमा को करन चहत त बस य आसन ,
यजक जस पलत , चलत दशेन को शसन
बोले भ ुतू कहत जह अनुसरन मोह है ,
िणभं ग ुर है प म , नह वदत तोह ह?ै
कतु सय है नय , एकरस , अचल सनतन।
अधंकर म भग,ु न ू त रहै एक छन।
दपा सहत कंदपा चयो पु न भु क ेऊपर ,
जो सु रगण वश करत , बपु रो रहत कहू नर ?
हू सत कुसु म धनशुयक लै प ूयो व त तर ,
बधेत हय वषवशख स ब जसु पं च शर।
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चू ओर च प ुन चं मु खी अत चोप स चं चल नै न चलय।
रसरंगतरंग उठय रह , मधु रो सु र सज के सं ग मलय।
सु र सो सु न मन,ू मोहत नै रजनी थर सी परती दरसय ,
नभ म थम तरक च ंद रह,े नवनगर गय रह समझय -
धक! खोय रो नज जीवन तू तनीन को हस वलसवहय
यह स बकै सु ख और नह कोउ तीन लोकन मह लखय ,
बगसे नव पीन पयोधर को परसै सरसे रस सौरभ पय ,
भर भव स भमन भौहू मरोर , चत,ै मु ू ह मोर रहै मु सकय।
कुछ ऐसी लु नई लखत लली ललनन के अं गन मह ललम। कह जत न जो मन जय ढरै उत आप उमं ग भरो अभरम। सु ख जो यह भोगत ह जग म तनको यह लोकह म सु रधम। यह के हत स सु जन अने क सझवत ह तन आठ यम।
फटकै द:ुख पस कहू जब कमन रखत है भु जपश म लय ?
यह जीवन को सब सर लस उसस म दोउन के मल जय। मृ दु च ुं बन पै इक चह भरे सगरो जग होत नछवर आय। यही भू त अने कन भव बतय रह सब सु ं दर गय रझय।
मद क दु त नै नन म दरसै, अधरन पै मं द लसै मु सकन।
फर नचत म सु ठ अं ग सुढर छप उधर ललचवत न ,
खल कै कछु मनू कंजकली लह बत झकोर लगै लहरन ,
दरसवत रंग , छपचत पै मकरंद भरो हय आपनी जन।
यह रंग क पछट क घट उनई कबू नह दे ख पर त पस कयो दल पै दल आय नवे लन को नश म नखरी।
ब एक स एक रसीली कह भु स य! हे र जत मरी।
अधरन को पन कर इन , लै यह यौवन को रस एकघरी।"
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डगे नह भगवन् जब कर यन नेक भ ंग ,
तब चयो दप स उठ चप आप अनं ग। लख परयो चट कमनीदल द सरो चतचोर।
रही जो सब मह री बी भु क ओर। चर प यशोधर को धरे पू ची आय ,
सजल नयनन म बरह को भव मृ दु दरसय ललक दोऊ भु जन को भगवन् ओर पसर
मं द मृ दु वर सहत बोली , भर उसस नहर -
' कु ू वर म ेरे! मरत ह म बनु तहरे, हय!
वगा सु ख सो कह,ू यरे! सकत हौ तु म पय
लहत जो रसधम म व रोहणी के तीर ,
जहू पहर समन दन म कट रही अधीर।
चलौ फर , पय! भवन , परसौ अधर मे रे आय ,
फेर अपने अं क म इक बे र ले लगय।
भ ल झ ठे व म तु म रहे सब कुछ खोय। जह चहत रहे एतो , लखो ह म सोय।
को भ ु' हे असत् छय! बस न आगे और।
था ते रे य और उपय ह य ठौर। दे त ह नह शप व य प को कर मन। कमपन! जह धर त हरन आई न।
कतु ज ैसी त , जगत् को दृय सब दरसय।
की जहू स भगु वही श य म मलु जय।'
कत ही ये वचन छयप सब छन म ूह
उ गयो चट ध म न,ै तहू रह गयो कछु नह।
अधं घन उठय , ऍधोर नभ म छए ,
7/14/2019
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भरी पतक और और सब भु पै आए।
आई ' तघ , कट म करे अह लपटई ,
दे त शप जो तनके ब फुफकर मलई।
सौय दृ से भु क मर तक बोली ,
मु ख म करी जीभ कल सी उठ न डोली। भु को कछु कर सक नह सब वध स हरी। करे नग रहे समट फन नीचे डरी।
' परग ' पु न आयो जके वश नरनरी
जीवन को कर लोभ दे त जीवनह बगरी।
पछे लगो 'अपरग ' ू पू यो आई
दे तर् क क लस जो मन मह जगई ,
बधुजन पर जत जल म जके जई ,
ब म सहस करत , लरत रणभ म कूपई।
आयो तन अभमन , चयो 'औय ' फेर ब
जस धम गनत लोग आपह सब स ब।
चली 'अव ' अपनो दल बीभस सं ग कर ,
कुसत और वप वतु स गई भ म भर। परम घनौनी बी डोकरी ब ी सो जब अधंकर अत घोर छय सब ओर गयो तब।
वचले भ धर , उठी भं जन स हल यमन ,
छू ी म सलधर दरक घन , दमक दमन।
भीषण उकपत बीच मह क ूपी सरी खु ले घव पै तके मनो परी अ ंगरी।
व ऍधयरी मह भयो पंखन को फरफर ,
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चीकर सु न परयो , प लख परे भय ंकर।
े तलोक त दल क दल च स ेन आई ,
भु ह डगवन हे तु रही सौ ठ लगई।
कतु डगे नह ने कु बु भगवन् हमरे। य के य तहू रहे अचल दृ आसन मरे।
लसत धमा स रित चर दश स भ ुवर ,
ख , कोटन बीच बसत य नडर कोउ नर।
बोधद ु् रम अचल रो व अधं मह , हयो न एकौ पत , ढरे हमबदु नह।
बहर सब उपत व नै रहे भयं कर कतु शं त अत छय रही तक छय तर।
अभसबंोधन
बीतत पहलो पहर मर क से न भगी।
गई शं त अत छय , वयु मृ दु डोलन लगी।
भु न े' सयक् दृ ' थम यमह म पई ,
सकल चरचर क जस गत परी लखई।
' प वा नु मृ त न ' द सरे पहर पय पु न
जतमर नै गए प णा भगवन् शयमुन।
तु रत सहे न जमन क सु ध तनको आई , जब जब जमे जहू जहू जन जोनन जई!
य फर पछे कोउ नहरत दीठ पसरी
बत द र चल पू च शखर पै गर के भरी ,
दे खत पथ म परे मोह कैसे कसैे थल!
ऊूचे नीचे ढह , खोह , नरे औ दलदल ,
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बीह वन घन , दे ख परत जौ समटे ऐस े
मह अं चल पै टूक हरी चकती है ज ैस,े
गहरे गहरेर् ग गो जन मह पसीनो ,
जनस नकसन हे तु सू स भर भर म कनो ,
ऊूचे अगम कगर छुटी झ जहू चतह
खसलत खसलत पू व गयो ब बर जहू रह ,
हरी हरी द बन स छए पटपर सु ं दर ,
नमा ल नझा र , दरी और अत सभुग सरोवर ,
औ धु धूले नग अं चल समतल जनपै जई लपयो पू चन हे तु नीले नभ कर फैलई। ब जमन क दीघा शृ ं खल भु लख पई।
म म ऊूची होत चली सीी सी आई ,
अधम वृ क अधोभ म स चत नरंतर
उ भ म पै पू ची नमा ल , पवन सु ं दर ,
लसत जह ू' दश शील ' जीव को लै जै बे हत
अत ऊूचे नवा णपथं क ओर अवचलत।
दे यो पुन भगवन् जीव कैसे तन पई प वा जम से जो बोयो कटत सो आई। चलत द सरो जम एक को अं त होत जब
जु रत म र म लभ , जत क खोयो जो सब।
लयो जम पै जम जत य य बहत ह
बत पु य स पु य , पप स पप जत ह।
बीच बीच म मरणकल क ेअं तर मह ,
ले खो सब को होत जत है तुरत सदह।
7/14/2019
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य अच क ले खे म बदु छटत नह ,
सं कर क छप जत लग जीवन मह। य वध जब जब नयो जम णी ह पवत
प वा जम के कमा बीच सू ग लीने आवत।
भई 'अभ ' तीसरे पहर भु ह पु न ,
पयो 'आय न ' तबै भगवन् शय मुन।
लोक लोक म दृ तसु जब पू ची जई हतमलक समन व सब परयो लखई।
लखे भु वन पै भु वन , स या प ैस या करोरन ,
बधूी चल स घ मत लीने अपने हगन
य हीरक के ीप नीलमण , अं ब ुध मह ,
ओर छोर नह जसु, थह कू जक नह ,
बत घटत नह कब,ू िु ध जो रहत नरंतर ,
जम पतरंग उठत रह रह छन छन पर। अमत भकर पड कए भु य अवलोकन ,
अलक स स बू ध नचवत जो ब लोकन ,
करत परम आपू अपने स ब केरी ,
सोउ अपने स महयोत क डरत फेरी। परंपर यह जगी योत क भु ह लखनी
अमत , अखं ड , न अं त सकत कू जको मनी।
लगत क सो जो सोऊ है डरत फरेे,
बत च पै च गए य वध बते रे द दृ स दे यो भु लोकन को यवत् अपनो अपनो कलच जो घ म पु रवत।
7/14/2019
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महकप व कप आद भर भोग पु रई ,
योतहीन न,ै छीज , अं त म जत बलई।
ऊूचे नीचे चर दश भु डरयो छनी ,
नीलरश सो लख अनं त मत रही भु लनी।
सब पन स परे, लोक लोकन स यर,े
और जगत् क णश स द र कनरे,
अलख भव स चलत नयत आदशे सनतन ,
करत तमर को जो कश औ ज को च ेतन ,
करत श य को प णा, घटत अघटत को जो ह ै
औ सु ं दर को और सु ं दर कर जग मोहै।
य अटल आदशे म कू शद आखर नह। नह आ करनहरो कोउ य वध मह। सकल दे वन स परे यह लसत नय वधन
अटल और अकय , सब स बल और महन।्
श यह जग रचत नसत , रचत बरंबर ,
करत ववध वधन सब नज धमा वध अनु सर।
सगा मु ख गत मह जके ग ुण ह बलगत ,
रजस् स नै सव क दश लय जसु लखत।
भले व ेई चल जे य शगत अनु कल। चल जे वपरीत वे ई करत भरी भ ल।
करत कट भलो अपनो जतधमा पु रय ,
बज नीको करत ग ेदन हत लव लै जय।
मल परपर वपु ल ववधन म दै योग
ओसकण उडुगण दमक नज करत प रो भोग।
7/14/2019
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मरन हत जो मनु ज जीयत , मरत पवन हे त
जम उम , चलै सो यद धमा पथ पग दे त ,
रहै कमषहीन , सब सं कप दृ वै जयू,
बे छोटे जहू ल भव भोग करत लखयू करै तनको पथ सु गम नह कबू बध दे य। लोक म परलोक म सब भू त य यश लेय।
लयो चौथे पहर भु पु न ' द:ुखसय ' महन ्
पप स मल घोर कटु जो करत ववधन , चलत भथी मह जै से सी लग लग जय जत दहकत आग जस बर बर वय।
'आया सयन ' मह जो यह ' द:ुखसय ' धन ,
पय तसु नदन दे यो यन म भगवन ्
द:ुख छयप लयो रहत जीवन स ंग
जहू जीवन तहू सोऊ रहत क ढं ग।
छुटै सो नह कबू जौ ल , छुटै जीवन नह
नज दशन समे त पलटत रहत जो पल मह -
छुटै जब ल यह स और कमा वकर ,
जत , वृ , वनश , सु ख , द:ुख , रग , े ष अपर
सु खसमवत शोक सब और द:ुखमय आनं द
छुटत नह , नह होत जब ल न ' ये ह फदं।'
कतु जनत जो 'अव के सबै ये जल '
यग जीवनमोह पवत िमो सो तकल।
पक तक दृ होत सो लखत आप तब
यह 'अव ' स जनमत ह ' सं कर ' सब ,
7/14/2019
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' सं कर ' स उपजत ह ' वन ' घने र े
' नमप ' उप होत जनस बते रे।
' नमप ' स ' षडयतन ' उपजत जको लह
जीव ववश नै दपा ण सम ब दृय रहत गह।
' षडयतन ' स फेर ' व ेदन ' उव पवत
जो झ ठे सु ख औ दण द:ुख ब दरसवत।
यहै व ेदन व ' तृ ण ' क जनन पु रनी
भवसगर म धू सत जत जके वश नी , चल तरंग बच खरी तके रहत टकई
सु ख सं पत , ब सध , मन और् क , बई ,
ीत , वजय , अधकर , वसनसु ं दर , ब ं जन ,
कुलगौरव अभमन , भवन ऊूचे मनरंजन
दीघा आयु कमन तथ जीबे हय स ंगर , पतक सं गरजनत , कोउ कटु, कोऊ चकर।
य वध तृ ण ब झत सद इन घ ू टन पई जो वको कर द नी और दे त बई।
पै नी ह द र करत मन स य तृ णह ,
झ ठे दृयन स इंन को त ृ करत नह।
रखत मन दृ वचल न क ओर डुलवत
करत जतन जं जल नह , नह द:ुख पू चवत
प वा कमा अनु सर परत जो कछु तन ऊपर सो सब ह सह ले त अवचलत च नरंतर।
कम , ोध , रगद दमन सबको कर डरत ,
दन दन कर कै छीन यह बध तनको मरत।
7/14/2019
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अं त मह य प वा जम को सर भरमय ,
जम जम को जीवम को जो सब स ंचय -
मन म जो कुछ ग ुयो और जो कनो तन स ,
अहभंव को जटल जल जो बयो ज ुगन स
कल कमा को तनो बनो तन अगोचर -
सो सब कमषहीन शु नै जत नरंतर।
फर तो जीवह धरन परत नह दे हह य तो अथव ऐसो वमल न तको वै जतो। धरत दे ह जो फेर कतू नव जमह पई हओ नै भव भर तह नह परत जनई।
चलत जत आरोहपथ पै य कर स
मु ' कंधन ' स छटत मयतप स
उपदन के बधंन औ भवच हटई
प णा नै जगत् मनो द:ुव बहई ,
अं त लहत पद भ पन स , सब दे वन सो ब।
जीवन क सब हय मट जत द र क।
गहत मु शभु जीवन , जो नह य जीवन सम ,
लहत चरम आनं द , शं त , नवा ण श यतम।
नवकर अवचल वरम को यहै ठौर ह,ै
यहै परम गत , जको नह परणम और ह।ै
इत बु ने सं बोध पई गट उत ऊष भई।
ची दश म योत अभनव दवस क जो जग गई ,
सो जत सरकत यमनीपट बीच करे ढर रही ,
भगवन् क य वजय क म ृदु घोषण सी कर रही
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नव अण - आभ रेख अब धधूले दगं चल पै की। नभनीलम य य नखर कै जत ऊपर को बी
य य सहम कै शु अपनो ते ज खोवत जत है,
पीरो परो , फको भयो , अब लु होत लखत ह।ै
शभु दरस दनकर को थम ही पय नग छयसन े
कर परंगा- करीट - भ षत भल सोहत समन।े
सं चरत त समीर को सु खपरस लह सु मन जग,े
ब रंगरंजत दलदृ गं चल नवल नज खोलन लग।े
हमजटत द बन पै भ मृ दु दौर जो छन म गई गत रैन कै ऍसु वन क ब ू द बखर मोती भ। आलोक के आभस स व भम सरी म रही। उत गगनतट घन पै सु नहरी गोट चमचम च रही।
हे मभ वृ ं त हलय हरषत तल करत णम ह। गरगनरन के बीच ध ूस जगमगत करन ललम ह।
जलधर मनक के तरंगत जल सी दरसय ह।ै जग योत सरे जीव जं तु न जय रही जगय है,
घु स सघन झपस मह वन क चर रय थलीन के
है कहत ' दन अब नै गयो ' चकचध चख हरनीनके,
जो नी म सर नद म ग बीच पं खन के परे
चल कहत तनके पस गीत भत के गओ , अर!े
कलरव पखे न को सु नई परत अब जओ जहू,
मृ दु कक कोयल क , पपीहन क बधूी रट ' पी कह'ू,
ततर क ' उठ दे ख ', ' चु ह चु ह ' चपल फलचु हीन क
ट ट सअुन क , धु न सु रीली सरीक स हीन क ,
कलकलन क कलकर , ' कू कू' कककंठ कठोर क ,
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' टर टर ' करेटुन क कररी , कतू केक मोर क ,
पु लकत परेवन क परम य ेमगथ रसभरी जो च ुकनहरी नह ज ल चु कतनह जीवनघरी।
ऐसो पु नीत भव भु के परम वजयभत को
घर घर बरजी शं त , झगरो नह क घत को।
झट फ क दीनी द र छरी बधक तज बधकज को।
लै फेर धन बटपर दीनो , बणक छू यो यज को।
भे र कोमल , दय कोमल और कोमल भए
पीय ष सो सं चर द भत को व लह नए। रण थम दीनो तु रत नरपत लरत जो रस स परे। ब दनन के रोगी हू सतमु ख उछर खटन स परे।
नर मरन के जो नकट सहस सोउ मु दत नै गए लख उदत होत भत मनो दशे स क नए।
पय से ज ढग जो दीन हीन यशोधर बै ठी रही ,
हय बीच त के हरख क धर सी सहस बही ,
मन मह तके उठत आपह आप ऐसी बत ह ै
' जो ेम सू चो होय कबू नह नफल जत ह।ै
य घोर द:ुख को अ ंत य सु ख भए बनु रह जयह ै
नै सकत ऐसो नह , आगम परत कछुक जनय ह।ै'
छयो उछह अपर यप न कोउ जनत क भयो। सु नसन बं जर बीच सं गीत को सु र भर गयो। आगम तथगत को नरख नज म ु आस बधूय कै।
मल भ त , े त , पशच गवत पवन म हरखय क।ै
' जगकज प रो नै गयो ' दे ववणी यह भई ,
अत चकत प ुरजन बीच प ंडत खे बीथन म कई
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ल वणा योत वह सो जौ गगन बोरत जत ह,ै
य कहत 'भई! भइ अलौकक अवस कोऊ बत है।'
बन , म के सब जीव ब ैर बहय बहरत लख परे।
जहू द ध बघन यवती तहू चमृ ग सोहत खरे। बृ क मे ष मलप स ह चरत एकह बट प।ै गो सह पनी पयत ह मल जय एकह घट पै।
भतरय गरल भु जं ग मणधर फन रहे लहरय ह,
बस पस चचन सो ग नज पं ख रहे खु जय ह।
क समने स जत बजन के लव , कछु भय नह।
बै ठे मगन बक यन म, ब मीन खे लत ह वह।
बै ठे भु जं गे डर पै कू रहे प ू छ हलय ह,
पै आज झपटत ने कु नह ततलीन पै दरसयू ह,
य फल त व फल पै जौ चपल गत स धवत ,
सत , पीत , नील , सु रंग , चत पं ख को फरकवत।
धर द ते ज दनेश स ब नशहत भवभर के,
लह अमत वजय वभ त जीवन हत सकल सं सरके। व बोधत तर यन म भगवन् ह बै ठे अबै पै तसु आमभव परयो मनु ज पशु पं छन सब।ै
अब बोधत तर स उठ ेहरखय कै
भु द ते ज , अनं त शह पय कै।
यह बोल वणी उठे अत ऊूचे वरै,
सब दशे म सब कल म जो सु न पर-ै
'अने क जत सं सरं सधंवसमनबसं। गहकरकं गव ेसं तो द:ुखजत पु न: पु न:।
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गहकरक दोस पु न गे हं न कहस।
सब ते फसक भग , गहकटं वसं कत।ं
वसं खरगतं च,ं तहनं खयमझग।'
' गहत अने क जम भव के द:ुख भोगत ब चल आयो।
खोजत रो यह गृ हकरह , आज हे र ह पयो।
हे गृ हकर! फेर अब सकहै त नह भवन उठई। सज बं द सब तोर धौरहर ते रो दयो ढहई।
सं कर स रहत सवाथ च भयो अब म ेरो!
तृ ण को िय भयो , यह जम जम को फेरो।'
सम सगा बु चरत / सम सगा / भग -1 / एडवन अना ड / शुल
कपलवतगुमन
इन ब वषा न बीच बसत नरपत शु ोदन पु वरह म शय नयकन बीच ख मन।
पयवयोग म यशोधर द:ुख के दन प रत ,
छू सकल सुख भोग सोग म परी बस रत।
ढोर लए जो कंजर थल थल डोलनहरे,
लभ हे तु जो दशे दशे घ मत बनजरे तनस क यती वरगी क सु ध पवत नरपत द त अने क तहू तु रतह दौरवत।
ते फर आवत , कहत बत ब सधु न केरी।
जो तज कै घरबर बसत नजा न थल हे री। पै लयो सं वद नह कोउ तक यरो
कपलवतु के रजवशं को जो उजयरो ,
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भ पत क सरी आश को एक सहरो ,
यशोधर के णन को धन सवा स यरो ,
कहू कहू जो भ लो भटको घ मत नै ह ै
भयो और को और , चीह नह कोऊ पै ह।ै
दे खो यह बसर वसं त को , रसल फ ल
अं ग न समत मं जु मं जरीन स भरे।
सरी धर सजे ऋतु रज रज सोहत है,
सु मन सहत पत चीकने हरे हरे।
कु ू वर उदस बै ठी वटक के बीच जय
कंजपु ट कलत सरततीर झू वरे।
दपा ण सी धर म बलोके ब बर जहू
ओठन पै ओठ , पणपश कंठ म परे।
ऑसु न पलक भरी , कोमल कपोल छीन ,
बरह क पीर अधरन पै लखत ह।ै चप रही चीकने चकुर क चमक च ,
बे णी बीच ब ूध ने कु नह बगरत ह।ै
आभरनहीन पीरी दे ह पै है से त सरी ,
खचत न जपै कू हे मनगपू त ह।ै
पय पय बोल गत हरत जो हं सन क
चरन धरत सोइ आज थहरत ह।ै
े हदीप सरस नवल जन नै नन क
कलम स फटत रही है ु त अभरम -
शवा री के शं तपट बीच नै जगत मनो
दवस क योत कमनीय यही सु खधम -
योतहीन , लयहीन आज सोइ घ मत ह,
लखत न ने कु ऋतु रज क छट ललम।
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पलक रही ह ढर , उघरत नह प री ,
अधखु ली प तरी पै बनी परी ह यम।
एक कर म ूह मोतीजरो कटबधं सोइ
जह तज कु ू वर नकस गयो रैन वह।
हय! वकरल सोइ जमन जनन भई
केते द:ुखभरे दवसन क , न जत कह।
गो े म एतो नह नठुर कबू भयौ
सू चे े म त ऐसे कू जग बीच यह।
एक बत भई यस , जीवन ल , यही बू ध मत यह े म क हमरे नह गई रह।
द जे कर बीच कर सु ं दर परम नज
बलक को , जसु नम रल धरो गयो ,
थती प छू कै कुमर चल गयो जह ,
ब कै जो आज सत वषा एक को भयो। चं चल वभवबस डोलन लयो है घ म
जननी के पस इत उत मोद स छयो।
वभव वकस पु पहस कुसु मकर को
हे र ह ेर होत है लस च म नयो।
नलनमय व पु लन पै दोउ रहे बस कछु कल।
हू सत फेकत जत मीनन ओर मोदक बल। बै ठ दु खय जनन नरखत उत हं सन ओर ,
करत वनय उसस भर , धर नीर दृ ग क कोर -
' हे गगनचर! होय जहू पय कौ जो तहू जय ,
दीजयो सं दशे मे रो तह ने कु सु नय।
दरस हत औ परस हत
अत तरस ब दु खपय
दीन हीन यशोधर अब मरन ढग गई आय।'
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बहू स बोल अनु चरी ब आय एते मह
' दे व! अब ल सु यो यह संवद कैध नह ?
पु ष , भलक नम के ै से ठ मल लदय
आज दिण नगरतोरण पस उतरे आय।
द र दशेन फरत सगरकंठ ल जे जत
लए नन वतु जो ह सं ग म दरसत -
वणा खचत अमोल अं बर , रजटत कटर ,
प च वच , मृ गमद , अगर कु ं कुमभर।
कतु ये सब वतु जके समने कछु नह ,
परम य सं वद लए आज जो पु र मह।
दोउ दे खे चले आवत शय रजकुमर ,
णपत जीवन तहरे, दशे के आधर।
कहत हम सित् दशा न कयो तनको जय ,
दं डवत कर करी प ज भभ ट चय!
को बधुजन रो जो सो भए प णा कर ,
परम दु लाभ न नन को सखवनहर।
भए जगदरधय भ,ु अत शु बु महन ,
करत नर नतर औ उर दै शभु न मधु र वणी स , दयस जसु ओर न छोर।
कहत दोऊ से ठ भु ह चले यही ओर '
सु नत शभु सं वद उमयो दय मह उछह ,
य हमचल स उमग कै कत गं गवह।
कु ू वर उठ कै भई ठी हषा पु लकत गत
ढर दृ ग स ब ू द मोती सरस , बोली बत -
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' तु रत लओ जय से ठन को हमरे पस ,
पन हत सं वद के शभु वण को अत यस ,
जव , तनको तु रत लओ संग मह लवय।
कतू जो सं वद तनको नकस सू चो जय!
नकसहै सं वद जो यह सय , कहयो जय ,
अवस फू न मह दै ह वणा र भरय।
और तु मू आइयो सू ग ले न को उपहर -
नै सक ैपै नह सो आनंद के अनु सर।'
चले दोउ बणक दसन संग , आ पय
कु ू वर के व रंगभवन वशे कनो जय। चलत कंचनकलत पथ पै धरत धीमे पू व रजवैभव नरख लोचन चकत ह सब ठू व।
कनकचत पट परे ज ूह दोउ पू चे जय।
िीण , कंपत , मधु र वर यह परयो कनन आय -
' से ठ! आवत द र त ह , कतू रजकुमर
परे तु मको दे ख , ये सब कहत बरंबर।
करी प ज तसु तु मन,े यग जो भवभर
शु बु लोकप जत नै करत उर। सु यो अब य ओर आवत , कहौ , यद यह होय
परम य य रजकुल के होयहौ तु म दोय।'
बोयो सीस नवय पु ष ' हे दे व , हमरी!
आवत ह इन नयनन स हम भु ह नहरी।
पू यन पै हम परे, रो जो कु ू वर हरयो सब रजन महरजन स ब वको पयो।
7/14/2019
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बोधु म तर फगु कनरे आसन लई जस जग उरै स सो वने पई।
सब को सू चो सख , सकल जीवनपत यरो पै सब स कू बकै है सो , दे व! तहरो ,
जके सू चे ऑसु न ही को मोल कहै ह ै
जो अनु पम सु ख भु के वचनन स जग प ैह।ै
' कुशल िे म स ह' कहबो यह है वडं बन
सब तपन स परे, तह द:ुख परस सकत न।
भे द सकल भवजल गए दे वन त ऊपर ,
सय धमा क योत पय जगमगत भु वन भर। नगर नगर म य य फर उपदशे सु नवत
तन मू गन को जीव श ंतसु ख जनस पवत ,
य य पछे होत जत तनके नरनरी -
य पतझ के पत वत के नै अनु सरी। पस गय के रय िीरकबन म जई हम दोउन ने सु ने वचन तनके सर नई।
चौमसे के थम अवस भु इत पधरह,
उपदशेन स मध ुर शोक द:ुख सकल टरह।'
यशोधर को कंठ हषा स गद भरी ,
बी बे र म सभूर वचन यह सक उचरी -
“ हे सु जन जन! भलो होयहै सद तु हरो।
लए तु म सं वद मोह णन त यरो।
जनत जो तु म हो , मोह अब यहौ बतओ
कैसे यह सब बत भई , कह मोह सु नओ।”
7/14/2019
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भलक ने तब कही बत व नश क सरी।
जनत जको ' गय ' पवा त के सब नरनरी
कैसी घनी ऍधोरी म छय दरसनी ,
मरकोप स कूपी धर , भो खलभल पनी।
कैसो भ भत भयो पु न , भनु सं ग जब
आश क नव योत जगी सो जीवन हत सब ,
कैसे तब भगवन् मले व बोधवटप तर धरे ते ज आनं द अलौकक मु ख पै सु ं दर।
भए आप तो म ु बु सं बोधह पई
' कैसे हमस द:ुखी जगत् क होय भलई '
परे सोच म रहे यह भु कछु दन त ,
बोझ सरीखो एक दय पै परत जनई।
वषय भोग म ल पपरत जन सं सरी ,
गहत रहत जो नन वतु न स म भरी ,
ऑखन पर को परदो जो नह चहत टरन ,
उरझे जम तोर सकत सो इंयजलन ,
कैसे ऐसे जीव हण य नह करह?
'अ मगा' ' दश नदन ' कैसे चत धरह।
ये ई ह उरर , पै है वच गत!
खग पजर म पलो लखत नह खु ले र त।
खोज मु को मगा तह नर हे तु कठन गु न
आपै इकले चलते जो भगवन् शय मुन ,
जग म कह जन तव को नह अधकरी
तजते जो भु लहते गत कैसे नरनरी ?
7/14/2019
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सब जीवन पै दय रही पै भु क ेदय समनी ,
यह बीच सु न परी द:ुखभरी अतशय आरत बनी।
जन ु' नयम अहू भ नयत लोक:' भ चलई।
कछुक बे र ल शं त रही पु न ध ुन पवनू त आई -
भगवन!् धमा सु नइए , भगवन!् धमा सु नइए।
भवतप त ह जर रहे अब ने कु बर न लइए। द दृ भगवन् तु रत णन पै डरी
दे यो को ह सु नन योय , को नह अधकरी
जै से रव , जो करत कनकमय अमल कमलसर
लखत कौन ह, कौन नह कलयू बगसन पर।
बोल उठे भगवन ्' सु नै जौ जहू जहू ह,
अवस सखै ह धमा, सख जो सीखन चह।'
िभु पं चवगय यन म भु के आए। वरणस क ओर तु रत भगवन् सधए।
तन ही को उपदशे थम भु जय सु नयो ,
'धमा च ' को कयो वन न सखयो।
मं गलमय ' मयम तपद ' तह बतई
'आया सय ' गत दयो ' मगा अं ग ' सु झई।
जम मरण स छट सकत ह कसैे नी ,
प रो जतन बतय बु बोले यह बनी -
' है मनु य क गत वही के हथन मह ,
प वा कमा को छ और भवी कछु नह।
नह तके अतर नरक है कोऊ , भई!
7/14/2019
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आपह नर जो ल ेत आपने हे तु बनई। वगा न ऐसो कोउ जहू सो जय सकत नह
जो रखत मन शं त , दमन कर वषय वसनह।'
पू च जनन म भयो थम कडय स ुदीित
' चर सय ', 'अं ग मगा' म नै कै शित ,
महनम , पु न भक , वसव और अजत
धमा मगा म कर वशे नै गए शं त चत।
' यश ' नमक पु न एक से ठ कशी को भरी
बु शरण गह भयो य को अधकरी। चर म स ुन तसु भए पु न िभु क आई। पु रजन और पचस य भु स पई।
परी कन म जहू जहू बनी भु केरी
उपजी तहू तहू नवयु ग क सी श ंत घने री ,
य पवस क धर परत जब पटपर ऊपर नव तृ ण अं कुर लहलहय फटत अत सु ं दर।
पठयो भु इन सठ िभ ुकन को चर हत
पय तह सं यमी , वरगी और धीर चत।
इसीपन मृ गदव मह यह सं घ बनई गए रजग ृह पस यवन ओर सधई।
कछुक दनन ल रहे तहू उपदशे सु नवत।
बबसर नृ प , पु रजन परजन ल सब यवत ्
भए बु क शरण सब मोह बहई
धमा, शील , सं यम , नरोध क िश पई।
कुश लै कै संकप दयो कर भ पत ने तब
परम सु हवन रय वे णु वन ' सं घ ' हे तु सब ,
7/14/2019
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जम सु ं दर गु ह सरत , सर , कु ंज सु हए।
शल तहू गवय नृ पत ये वय खु दए -
ये धम हे तु पभव ते सं हे तु ं तथगतो आह। ते सं च यो नरोधो एवं वदी महसमणो।
“ हे तु त उप जो ह धमा- द:ुखसमु दय -
हे तु तनको कह तथगत ने दयो सब आय। और तसु नरोध प ुन महमण बतय
लयो य ब त जगत् को बहू दे य बचय।”
सोइ उपवन मह बै ठयो सं घ एक महन् ओजप णा अप वा भयो न ीभगवन।्
सु नत सब पै गयो द भव ऐसो छय ,
आय नौ सौ जनन ने लै लयो व कषय
और लगे जय कै ते करन धमा चर। बु ने य कह वसजत कयो स ंघ अपर -
सब पपस अकरण,ं कुसलस उपसं पद
सच परयो दवनं एतं बु नु ससनं।
' करबौ पप न कोउ संचबो शभु है ज ेतो ,
करबो च नरोध ब ु अनशुसन एतो।'
य वध से ठन ने सरी कह कथ स ुनई। यशोधर ने भरी तनक करी बदई।
कंचन र भरय थर समुख धरवयो। चलत चलत यह प छन हत पु न तह बु लयो
' कौन मगा धर केते दन म ऐह, यर?े'
फर कै दोऊ से ठ बोल यह वचन सधरे-
7/14/2019
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' य पु र के चीर स , हे दे व! ग ुनत हम ,
परत रजग ृह नगर सठ योजन त नह कम।
आवत तहू स सु गम मगा कर पर पहरन ,
सोन नदी के तीर तीर वै कत कछरन।
चलत शकट के बै ल हमरे आठ कोस नत ,
एक मस म वू स चल कै आवत ह इत।”
कपलवतगुमन
परी नृ प के कन म जब बत यह सब जय अचलन म चतु र समं त नौ बु लवय
यह सू दे सो कह पठयो अलग अलग सीत -
“ बन तहरे गए कलपत सत वसर बीत।
रो नश दन खोज म सब ओर द त पठय ,
चत पै अब चन के दन गए ह नयरय।
वनय यते करत ह अब बोल बरंबर ,
जहू तहरो सबै कछु तहू आय जव कुमर।
रजपट बलत , तरसत ज दरस न पय।
अतथ थोरे दनन को ह , मु ख दखयो आय।' नौ द त छट यशोधर क ओर स गे धय
सं दे स लै यह ' रजकुल क रन , रल मय
मु ख दे खबे के हत तहरो परम कुल छीन -
जै से कमुु दनी वट जोहत चं क नै दीन ,
जै से अशोक वकश हत नज रीत के अनु सर
पयरय जोहत रहत कोमल तण - चरण - हर।
7/14/2019
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जो तय वस ब पदरथ मलो जो कोउ होय ,
है अवस तम भग त को , चहत है सोय।”
तु रत शय समं त मगध क ओर सधरे। पै पू चे व समय वे णु वन बीच बे चरे रहे धमा उपदशे करत भगवन् बु जब।
लगे सु नन त,े भ ल सं दशे आद सब।
रो यन नह महरज को कछु मन मह और कु ू वर क रनी क सुध कछु नह।
चलखे से रह,े सके नह वचन उचरी ,
रहे अचल अनमे ष दृ स भु ह नहरी।
मत गत थर नै गई सु नत भु क शभु बनी।
नदयनी , ओजभरी , कणरस सनी।
य खोजन आवस मर कोउ नकसत बहर ,
लखत मलती फल कू छए खल सु ं दर ,
औ पवनू म मधु र महक तनक है पवत ,
ऑधी पनी रत ऍधोरी मनह न लवत ,
बै ठत वकसत कुसु मन पै तन अवस जय कै ,
गहत मधु र मकरंदसधु नज म ुख गय कै,
य पू चे ते सबै शय समं त तहू जब
बु वचन पीय ष पन कर भ ल गए सब ,
रो चे त कछु नह कौन करज स आए।
िभु संघ म मले जय , नह कछु कह पए।
बीते जब ब मस बर नह कोऊ आयो
कलउदयी सचवपु को न ृपत पठयो ,
7/14/2019
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बलसख जो रो कु ू वर को अत सहकरी ,
जपै भ पत करत भरोसो सब स भरी।
पै सोऊ नै गयो िभु तहू म ू मु ई ,
रहन लयो भु सं घ मह घरबर वहई।
एक दवस ऋतु परम मनोहर रही स ुहई ,
बोयो भु के नकट जय सो अवसर पई -
“ हे भगवन!् यह बत उठत म ेरे मन मह ,
एक ठौर को वस उचत िभु न को नह।
घ म घ म कै तह चहए धमा चर।
भलो होय , भु कपलवतु क ओर पधर
जहू भ प तव वृ पत तरसत दशा न हत
औ रल क मत द:ुख स बकल रहत नत।”
बोले तब भगवन् बहू स सब क दश हे री -
“अवस जयह , धमा और इछ यह म ेरी।
आदर म न च कै कोऊ मतु पत के,
जो ह जीवन दे त , सकल सधन वश जके,
जको लह नर चह तो सो जतन सकत कर जम मरण को बंधन जस जय सकल टर।
लहै चरम आनं दप नवा ण अवस नर रहै धमा के पलन म जो नरत नरंतर ,
दहै प वा दु कमा, तर तनको , तोर,ै
हओ करतो जय भर , पु न और न जोर,ै
होय े म म प णा दय दिय भव भर ,
जीवन अपनो दे य आप परहत अपत कर।
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महरज के पस जय यह दे जनई
आवत ह आदशे तसु नज सीस चई।”
कपलवतु म बत जय जब पू ची सरी ,
अगवई के हे तु कु ू वर के सब नर नरी अत उछह स करन लगे नन आयोजन
भ ल सकल नज कम धम , न औ भोजन।
पु रदिणर के पस घनो
अत च वच बतन तनो ,
जहू तोरण खभंन प,ै बगस े
नव मं जु स न के हर लस।े
पट पट के, कंचनतर भर,े
ब रंग के चर ओर परे।
शभु सोहत बं दनवर हर,े
घट मं गल सजय धरे।
पु र के सब पं कल पथं भए जब च ंदननीर स सच गए।
नव पलव आमन के लहर,
सु ठ पू त पतकन क फहर।
नरपल नदशे सु यो सबन-े
पु रर पै दं त रह कतन े
सज वणा वरडंक स सगरे
सत दं त चमचम सम धर,े
धु न धौसन क घहरय कह,ू
सब ले यू कुमरह जय कहू,
कहू बरबध मल गन कर,
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बरसय स न मोद भर,
पथ फलन स यह भू त भरै
जहू पू व कुमर तु रंग धर ै
धू स टप न तसु लखय पर,
मल लोग सबै जयनद कर।
यह भू त नरेशनदशे भयो ,
सब के हय मह उछय छयो। दन ऊगत नय सबै अकन
कू आगम दु ं दु भ बज भन।
धय मलन हत पयह थम धर चह अपर गई यशोधर शवक पै च पु र के र।
जके चू दश लसत रय योधरम ,
जहू सोहत ब वटप ब ेल वीध अभरम।
झ मत दोऊ ओर फल फल स झु क डर ,
हरयली बच घ म घम पथ के सु ढर। रजमगा चल गयो धरे सोइ उपवन छोर।
परत अं यजन क बती है द जी ओर ,
पु र बहर जे बसत बे चरे सब बध दीन ,
छुअत जह ज नह मन कै अतशयहीन। तनू बीच उछह नह थोरो दरसत ,
इत उत डोलन लगत सबै य होत भत।
घं टन को रव , बजन क धु न कू सु न पय
लखत मगा म क , पे न च सीस उठय।
पै जब आवत नह कतू कोउ परै लखय लगत झोपन को सू वरबे म पु न जय।
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करत र नत फेर झकझक झर बहर ,
पछ चौखटन , लीप चौतरन , चौक सधुर ,
पु न अशोक क लय लहलही कोमल डर चु न च ुन पलव ग थूत न तन बं दनवर।
प छत पथकन स नकसत जो व मग जय
“ कतू सवरी रही कु ू वर क य दश आय ?”
यशोधर चह भरे चख तनपै डर पथकन को उर सु नती झुक पथं नहर।
मु ं डी एक अचनक आवत परयो लखय धरे वसन कषय कंध पर स लै जय।
कबू पसरत प जय दीनन के र ,
पवत ले त , न पवत लवत बत न बर।
तके पछे रहे िभु ै और आय लए कमं डल कर म, धरे वसन कषय।
पै जो तनके आगे आवत धर पथतीर
ऐसी गौरवभरी तसु गत अत गभंीर ,
फटत ऐसी द दी क चर ओर ,
ऐसो मृ दु ल पु नीत भव दरसत दृ गकोर
िभ लै जो दे न बत दोउ हथ उठय च लखे से चकत चह मु ख रहत ठगय।
कोऊ कोऊ धय परत पू यन पै जय ,
फरत ले न कछु और दीनत पै पछतय ,
धीरे धीरे लगे नर , नर , बलक सं ग
कनफसी करत परपर नै क ैदं ग -
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“ कहौ कौन यह ? कहौ , कछ आवत मन मह ?
ऋष तो ऐसो परो लखई अब ल नह।”
चलत चलत सो पू यो य मं डप नयरय
खु यो पटपट , यशोधर चट पू ची धय।
ठी पथ पै भई अमल मु खच ं उघर
' हे वमी! हे आया पु !' यह उठी पु कर।
भरे वलोचन वर , जोर कर ससक अधीर
दे खत दे खत परी पू य पै पथ के तीर।
जब दीित नै चु क धमा म रजवध वह
एक शय ने जय करी भु स शं क यह -
“ सब रगन स रहत , वसन सकल नवरी ,
यग कमनी परस कुसु मकोमल मनहरी
यशोधर को करन दयो भु य आलगन ?”
सु नत बु भगवन् वचन बोले स मन -
“ महे म य छोटे े मन दे त सहरो
सहजह ऊूचे जत तह लै दै पु चकरो। यन रहै जो कोउ छट बधंन स जवै मु गवा कर ब जीव कबू न दु खव।ै
समु झ ले यह मु लही है जन,े भई!
एक बर ही नह कतू क ने पई। जम जम ब जतन करत औ लहत नबल
आवत ह जो चल,े अं त म पवत यह फल।
तीन कप ल कर यस अत बल अखं डत
बोधसव ह मु होत जग क सहय हत।
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थम कप म होत ' मन: णधन ' े तर।
बु होन क जगत ललस मन के भीतर।
होत ' वक् णधन ' द सरे कप मह पु न ,
' नै जै ह म बु ' कहत यह बत परत सु न।
लहत तीसरे कप मह ' ववरण ' पु न जई
'अवस होगे ब ु ' बु कोउ बोलत आई।
थम कप म रो न शुभ मगा गु नत सब ,
पै ऑखन पै परदो मे रे परो रो तब। भयो न जने कते लख वषान को अ ंतर
' रम ' नम को वैय रो जब सगर तट पर ,
परत समने वणाभ म दिण दश जके
नकसत सीपन स मोती जहू ब ूके ब ूके।
अम सगा
बु चरत / अम सगा / भग -1 / एडवन अना ड / शुल
उपदशे
व रोहणी के तीर हर आज ल फैलो परो जहू द ब स छयो गयो ब द र ल पटपर हरो। ईशन दश वरणसी स शकट च जो जइए
तो पू च दन को मगा चल व रय थल को पइए ,
लख परत जहू स धवल हमगरश ृं ग , जो फलोफरो
है रहत बरह मस , सचत सरस बगन स भरो ,
जहू लसत ढर सु ढर शीतल छू ह मृ दु सौरभ लए। है अजू भवपु नीत बरसत ठौर व जो जइए।
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नत बहत सधंय समीर नै अत शं त झन पै हरे,
जहू ढे र चत पथरन के ढह नै कर ेपरे,
अथ जनको भे द फैले म लजल बछय कै,
जो लसत चर और तृ णदल - तरल - पट स छयकै।
क कतू कज कठ के ब सज स जो नस ध ूसो। चु पचप फ टी मर करो नग फलकन पै बसो। ऑगनन म जन नृ पत टहरत फरत गरगट ह तह ूअब यर बे दी तर बसत तहू सजत सहसन जहू।
बस शृ ं ग , सरत , कछर और समीर य के य रहे
नस और सब शोभ गई , वे दृय जीवन के बहे।
नृ प शय शु ोदन बसत ू रजधनी यह रही। भगवन् जहू उपदशे भयो एक दन सो थल यही।
प वा कल म कबू रो यह थल अत सु ं दर। यके चू दश लसत रय आरम मनोहर।
बट बच बच कट , से तु नरन पै सोहत ,
चलत रहत जलयं , सरोवर जनमन मोहत।
पटल के परमं डल भीतर चमकत चवर।
लसत अने क अलद , खभं ब सोहत स ुं दर।
इत उत तोरण रजभवन के कू ब आए।
चमकत जनके कलश द र स रवकर पए।
यही थल भगवन् एक दन बै ठे आई ,
भ भव स घ ेर लोग भु दश टक लई
जोहत मु ख सु नबे को बणी न भरी अत ,
जको लह जग श ंत वृ गह तजी रमत ,
नर पं चशत् कोट आज ल जके अन ुगत ,
कटन हत भवपश आस कर होत धमा रत।
7/14/2019
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बीच म भगवन् सोहत शय भ पत तीर।
घे र चर ओर स समं त बै ठे धीर -
दे वद अनं द आदक सभ के सब लोग धमा िदी रय दीनो ' सं घ ' म जो योग।
मौल , मन सरपु बसे भु पत ्
' सं घ ' मह धन सब स शय जे कह जत।
रो रल हू सतमु ख गहे भ-ु पट - कोर ,
बल चख स चकत चतवत भ मु खकओर।
चरण ढग भगवन् के बस रही गोप जय ,
आज तन - मन - पीर तक गई सकल नसय। भयो सू चे े म को व बोध अ ंतस् मह। िणक इंयवे ग पै अवलं ब जको नह।
भयो भसत नयो जीवन जर जह न खत और अं तम मृ यु जस मृ यु ही मर जत। भई भगनी य वजय क सोउ भु क ेसं ग मन आपह धय फ ल समत न नज अं ग।
भगवन् के कषय पट को छोर सर प ैडर ,
शु च वम कर पै तसु सदर रही नज कर धर।
नकटथ अत य भू त तक परत सो दरसय ौलोय वणी जसु जोहत रो अत अकुलय।
भगवन् क ेमु ख स कयो जो न परम नवीन कह सक तसु शतशं म नह अत मतहीन।
य कल म बस बत सब म सक कैसे जन ?
हय धर बस कछु भ भु के े म को पहचन।
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आचया गण जो लख गए चीन पोथन मह ह कह तस ब कछ समया एती नह। भगवन् ने जो दयो व उपदेश को कछु सर जो कछ थोरो बत जनत कहत मत अनु सर
उपदशे केते सु नन आए करै गनती कौन ?
िय जे लख परे तहू बस सु नत धरे मौन कू रहे तनसो लख और करोरग ुन अधकय। सब दे व पतर अदृय नै तहू रहे भीर लगय।
सब लोक ऊपर के भए स ने नपट व कल। छुट नरक के जीव आए तोर सू सत जल। बलमी रही ब अवध स रवयोत परम ललम अनु रग स अत झूकते गरश ृं ग पै अभरम।
रैन मनो घटन म, बसर पहरन प ै
ठमक सु नत बनी भु क सधुभरी।
बीच म सलोनी सू च असर सो मनो कोउ , मत गत खोय थक मोहत सी जो खरी।
छटके घु व से घन कु ं तलकलप मनो ,
तरवल मोतन क लरी बखरी परी।
अदा चं सोइ मनो ब दी बलसत भल ,
तम को पसर मनो नील सरी पतरी।
सु रभत मं द मं द बहत समीर , सोई
मनो थम थम सूस छू त बसर गत।
सु ं दर समय पय बस यही ठौर शु च
कर रहे भु उपदशे अत अवदत।
जने जने सु ने जने सु ने अनजने सब -
ऊूच , नीच , आया, ले छ , कोल , भील औ करत -
7/14/2019
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परत सु नय तह बोलन म नज नज
भखत जो जत भगवन् नभरी बत।
नर , दे व , पतरन क कह जो रहे भीर लगय
सब , कट , खग , मृ ग आद को परत कछुकजनय
व े म को आभस जो भु दय मह अपर। बू ध रही आश तह भु के वचन के अनु सर।
जे बधूो सरे जीव नन प द ेहन सं ग -
वृ क , बघ , मका ट , भलु, ज ंबु क , न , मृ ग सरंग , ब रम ंडत मोर , मोतीच र नयन कपोत ,
सत कंक , करे कग आमष भोज जनको होत ,
अत लवनपटु म ंडक , गरगट , गोह , च भु जं ग ,
झष चपल उछरत झलक जो छलकूय सललतरंग ,
सब जोर नतो मनु ज स , जो श ु तन सम नह ,अब कटन बंधन चहत गु न यह मु दत ह मनमह।
नृ प को सु नय सब धमा सर उपदशे कयो भु य कर -
ऊ अमतय!ु
अमे य को न शद बू ध कै बतइए ,
जो अथह तह स न बु स थहइए।
तह प छ औ बतय लोग भ ल ही कर,
सो सं ग लय था वद मह ते पर।
अधंकर आद म रो पु रण य कहै,
व महनश अखं ड बीच ही रहै।
7/14/2019
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फेर म न के , न आद के रहौ , अरे!
चमा िचु को अगय और ब ु के परे।
दे ख ऑखन स न सकहै कोउ क कर औ न मन दौरय प ैहै भे द खोजनहर।
उठत जै ह चले पट पै पट , न नै है अं त ,
मलत जै ह परे पट पै पट अपर अन ंत।
चलत तरे रहत प छन जत यह सब नह। ले एतो जन बस - ह चलत य जग मह
सद जीवन मरण , सु ख द:ुख , शोक और उछह ,
कया करण क लरी औ कलच वह ,
और यह भवधर जो अवरम चलत लखत ,
द र उम स सरत चल सधु दश यजत ,
एक पछे एक उठत तरंग तर लगय ,
एक ह सब , एक सी पै परत नह लखय।
तरणकर लह सोई लु तरंग पु न कू जय
घु व से घन क घट नै गगन म घहरय ,
आा नै नगशृ ं ग पै पु न परत धरमर ,
सोइ धर तरंग प ुन नह थमत यह पर।
जनबो एतो बत - भ वगा आदक धम
सकल मय दृय ह, सब प है परणम।
रहत घ मत च यह मद:ुखप णा अपर ,
थम जको सकत कोऊ नह क कर।
बं दन जन करौ , नै है कछु न व तम मह ,
श य स कछु यचन जन करौ , सु न है नह।
7/14/2019
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मरौ जन पच और सब तप आप बय लशे नन भ ूत के दै था मनह तपय।
चहौ कछु असमथा दे वन स न भ ट चय तवन कर ब भू त , ब ेदन बीच रबहय।
आप अं तस् मह खोजौ मु को त ुम र। तु म बनवत आप अपने हे तु करगर।
श तु हरे हथ दे वन स कछु कम नह।
दे व , नर , पशु आद जे ते जीव लोकन मह
कमा वश सब रहत भरमत बत यह भवभर , लहत सु ख औ सहत दु ख नज कमा के अनु सर।
गयो जो न,ै वह स उप जो अब होत ,
होयहै जो खरो खोटो सोउ तको गोत। दे वगण जो करत नं दनवन वसं त वहर प वा पु य पु नीत को फल कमा वध अनु सर।
े म नै जो फरत अथव नरक म बललत भोग स दु कमा को िय ते करत ह जत। िणक है सब पु यबल अं त छीजत जय। पप फलभोग स है सकल जत नसय।
रो जो अत दीन म स पे ट पलत दस
पु य बल स भ प नै सो करत ववध वलस। नै परी व बन परी नह बत तके हे त
रो नृ प जो , भीख हत सो फरत फेरी दे त।
चलत जत अलय जौ ल च यह अवरम
कहू थरत शं त तौ ल औ कहू वम ?
चत जो गरत औ जो गरत सो च जत।
रहत घ मत और थमत न एक छन , हे त!
7/14/2019
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बधूो च म रहौ मु को मगा न पई
नै न सकत यह - अखल सव नह ऐसो ,भई।
नय ब तु म नह बत यह नय धरो ,
सब द:ुखन स सबल , त! सं कप तहरो।
दृ नै कै जो चलौ , भलो जो कछु बन ऐहै।
म म स सो और भलोई होतह जै ह।ै सब बधंु न क ऑसु न म नज ऑसु मलई
ह ू रोवत रो कबू जै सो तु म , भई!
फटत मे रो हयो रो लख जगदु:ख भरी ,
हू स आज सनं द बु नै बधंन टरी।
' मु मगा ह'ै सु नौ मरत जो द:ुख के मरे!
अपने हत तु म आपह दु ख बवत हौ सरे।
और कोउ नह जम मरण म तु ह बझवत ,
और कोउ नह बू ध च म तु ह नचवत ,
क के आदशे स न भेटत हौ प ुन पु न तपआर और अने म और असत् नभ चु न।
सय मगा अब तु ह बतवत ह अत स ुं दर।
वगा नरक स द र , नछन स सब ऊपर लोक त परे सनतन श वरजत
जो य जग म 'धमा' नम स आवत बजत ,
आद अं त नह जस,ु नयम ह जके अवचल
सवोमु ख जो करत सगा गत सं चत कर फल
परस तसु फुल पटल मह परत लखय ,
सु घर कर स तसु सरसजदल कत छव पय।
7/14/2019
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पै ठ मटी बीच बीजन म बगर चु पचप नवल वसन वसं त को सो बनत आपह आप।
कल तक करत है घनपु ं ज रंजत जय। चं कन पै मोर क दु त तह क दरसय।
नखत ह म सोइ , तही को कर उपचर
दमक दमन , बह पवन और मे घ दै जलधर।
घोर तम स सृ यो मनव दय परम महन ,
िु अं डन म करत कलकठं को सु वधन।
य म नज सद तपर रहत , मरग हे र
कल को जो व ंस तको करत सु ं दर फेर।
तसु र् वु ल नध रखवत चष नीन जय छत म छह पहल मध ुपु ट प णा तसु लखय!
चलत चटी सद तके मगा को पहचन ,
और े त कपोत ह उत तको जन।
ग सवज लै फरत घर वे ग स ज कल श सोई है पसरत तसु पं ख वशल। है पठवत वृ कजनन को सोइ शवक पस। चहत जह न कोउ तनको करत सोइ स ुपस।
नह कु ं ठत होत कैस करन म वहर ,
होत जो कछु जहू सो सब तसु च अनु सर। भरत जननउरोज म जो मधु र छीर रसल धरत सोइ लदशनन बीच गरल करल।
गगनमं डप बीच सोई ह िन सजय
ब ूध गत , सु र तल पै नज रही नच नचय।
सोइ गहरे खत म भ गभा भीतर जय
वणा, मनक , नीलमण क रश धरत छपय।
7/14/2019
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हरत वन के बीच उरझी रहत सो दन रत ,
जतन कर कर रहत खोलत नहत ननभू त।
शलत तर पोस बीजन और अ ंकुर फोर कं ड कपल , कुसु म वरचत ज ुगु त स नजजोर।
सोइ भछत , सोइ रछत , बधत , ले त बचय।
फलवधनह छू औ कछु करन स नह जय।
े म जीवन स त तके जह तनतआप ,
तसु पई और ढरक ह मरण औ तप।
सो बनवत औ बगरत सब सधुरत जय। रो जो तस भलो है बयो जो अब आय। चलत करतब भरो तको हथ य ब कल जय कै तब कतू उतरत कोउ चोखो मल।
कया ह ये तसु गोचर होत जो जग म ूह। और केती ह अगोचर वतु गनती नह।
नरन के सं कप , तनके दय , बु , वचर
धमा के य नयम स ह बूधो प णा कर। अलख करत सहय सू चो दे त है करदन।
करत अु त घोष घन क गरज स बलवन।
मनु ज ही क ब ूट म ह दय े म अन प ,
यु गन क ब रगर सह ज ने लो नरप। श क अवहे लन जो करै तक भ ल।
वमु ख खोवत , लहत सो जो चलत ह अनु कल।
नहत पु यह स नकसत शं त , सु ख , आनं द।
छपे पपह स गट सो करत है दु खं ।
ऑख तक रहत है नह रहै चहै और ,
7/14/2019
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सद दे खत रहत जो कुछ होत है ज ठौर। करौ ज ेतो भलो ते तो लहौ फल अभरम। करौ खोटौ नेकु तको ले कटु परणम।
ोध कैसो ? िम कैसी ? श करत न मन
ठीक कू टे पै तु ले सब होत तसु वधन।
कल क नह बत , चहे आज अथव कल
दे ततफल अवससोनजनयम अवचलपल।
यह वध अनु सर घतक मरत आपह मर ,
र शसक खोय अपनो रज बै ठत हर ,
अनृ तवदन जीभ ज नै रहत बत न पय ,
चोर ठग ह हरत धन पै भरत द नो जय।
रहत श वृ सत् क लीक थपन मह ,
थम अथव फेर तको सकत कोऊ नह।
प णा त औ शं त तको लय , े मह सर। उचत ह,ै हे बंध!ु चलबो तह के अन ुसर।
कहत ह सब शो कैसी खरी चोखी बत -
होत जो य जम म सब प वा को फल , त!
प वा पपन स कत ह शोक , द:ुख , वषद।
होत जो सु ख आज सो सब प वा- पु य - सद।
बवत जो सो लु नत सब , वह लखौ खे त दखत
अ स जह ूअ उपजत , तलन स तल , त!
महश य अपर परखत रहत सब सं सर! मनु ज को हे भय नमत होत यह कर।
बयो पहले जम म जो अ तल बगरय
7/14/2019
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सोइ कटन फेर आवत जीव जमह पय।
बे र और बब र , कंटक झ , वष क बे ल
गयो जो कछु रोप सो लह मरत पु न द:ुख झे ल।
कत,ु तनको जो उखरै लय उचत उपय
और तनके ठौर नीके बीज रोपत जय
वछ , सु ं दर , लहलही नै जयहै भ फेर ,
चु र रश बटोर सी सु ख पयहै पु न हे र।
पय जीवन लखै जो द:ुख कत कत स आय ,
सहै पु न धर धीर तन पै परत जो कछु जय ,
पप को व कयो जो सब प वा जीवन मह
सय समु ख दं ड प रो भरै, हरै नह ,
अहभंव नकस होवै नखर नमा लकय ,
वथा स नह तसु रंचक क को कछु जय ,
न नै सब सह,ै कोऊ करै यद अपकर
पय अवसर करै तको बनै जो उपकर ,
होत दन दन जय सो यद सदय , पवन , धीर ,
ययन , सशुील सू चो , न औ गभंीर ,
जय तृ ण को उखरत म ल त छन मह
होय जीवन वसन को नश जौ ल नह ,
मरे पै तब तसु रहहै अशभु को नह च र ,
जम को ले खो सकल चु क जयहै भरप र ,
जयहै शभु म रह वै सबल बध हीन ,
पय फल सो परम मं गल मह वै है लीन।
7/14/2019
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जह जीवन कहत तु म सो नह पै हे फेर। लगो जो कछु चलो आवत रो वको घे र
गयो चु क सो , भयो प रो लय सो गभंीर
मलो जके हे तु वको रो मनु ज शरीर।
नह तह सतयहै पु न वसन को जल और कवष कल ंक लगयहै नह भल।
जगत् के सु ख द:ुख न सो चर शं त करहै भं ग ,
जम मरण न लगहै पु न और तके सं ग।
पयहै सो परम पद नवा ण प णा कर ,
नय जीवन मह मलहै होय जीवन पर ,
होयहै न:शे ष वै सो धय , महै नह -
जय मलहै ओसबदु अनं त अं ब ुध मह।
ओम मणप
कमा को सं त है यह , ले यको जन।
पप के सब पु ं ज क नै जत है जब हन ,
जत जीवन जबै सरो लौ समन बु तय तबै तक ेसं ग ही यह मृ यु मर जय।
' हम रह,े' ' हम ह', ' होयू गे हम ' कहौ जनयहबत ,
समझौ न पथकन सरस पल के घरन म ब ,त!
तु म एक छू त गहत द जो करत आवत बस सु ध रख अथव भ ल जो कछु होत द:ुख सु पस।
¹ रह जत है कछु नह णी मरत है ज कल ,
चै तय अथव आतम नस जत है य वल।
रह जत केवल कमा ही है शे ष ववध कर ,
ब खं ड तनस लहत उव जम जोरनहर।
7/14/2019
http://slidepdf.com/reader/full/55cf9cc4550346d033aaf680 162/164
जग मह तनको योग गटत जीव एक नवीन ,
सो आप अपने हे तु घर रच होत वम लीन।
य पटवरो कट आपह स त कतत जय पु न आप वम बसत है जो ले त कोश बनय।
सो गहत भौतक सव औ गु ण आपही रच जल -
य फ ट वषधर अं ड कच ुर दं गहत करल ,
य िपधर शरबीज घ मत उत नन ठौर ,
लह वरतट कू बत , फकत पत , धरत मौर।
य नए जीवन क गत शभु अशभु दश लै जय। जब हनत कल करल पु न नज र करह उठय। रह जत तब व जीव को जो श ेष शु वहीन सो फेर झं झवत झे लत सहत तप नवीन।
पै मरत है जब जीव कोऊ पु यवन सधुीर ब जत जग क सं पद कछु, बहत सु खद समीर।
म भ म क य धर बल बीच जत बलय। नै शु नमा ल फेर चमकत कत है कू जय।
य भू त अजत पु य अजत करत है शभुकल ,
यद पप तको दे त बध कत तक चल।
ओम मणप
कमा को सं त है यह , ले यको जन।
पप के सब पु ं ज क नै जत है जब हन ,
जत जीवन जबै सरो लौ समन बु तय तबै तके सं ग ही यह मृ यु मर जय।
7/14/2019
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' हम रह,े' ' हम ह', ' होयू गे हम ' कहौ जनयहबत ,
समझौ न पथकन सरस पल के घरन म ब ,त!
तु म एक छू त गहत द जो करत आवत बस सु ध रख अथव भ ल जो कछु होत द:ुख सु पस।
¹ रह जत है कछु नह णी मरत है ज कल ,
चै तय अथव आतम नस जत है य वल।
रह जत केवल कमा ही है शे ष ववध कर ,
ब खं ड तनस लहत उव जम जोरनहर।
जग मह तनको योग गटत जीव एक नवीन ,
सो आप अपने हे तु घर रच होत वम लीन। य पटवरो कट आपह स त कतत जय पु न आप वम बसत है जो ले त कोश बनय।
सो गहत भौतक सव औ गु ण आपही रच जल -
य फ ट वषधर अं ड कचु र दं गहत करल ,
य िपधर शरबीज घ मत उत नन ठौर ,
लह वरतट कू बत , फ कत पत , धरत मौर।
य नए जीवन क गत शभु अशभु दश लै जय। जब हनत कल करल पु न नज र करह उठय। रह जत तब व जीव को जो शे ष शु वहीन सो फेर झं झवत झे लत सहत तप नवीन।
पै मरत है जब जीव कोऊ पु यवन सधुीर
ब जत जग क सं पद कछु, बहत सु खद समीर।