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|| हरः शरणम || रोग रोग रोग रोग - अिभशाप अिभशाप अिभशाप अिभशाप हैहैहैहै या या या या वरदान वरदान वरदान वरदान ? (लीन पूयपाद ःवामी ौी शरणानद जी महाराज लीन पूयपाद ःवामी ौी शरणानद जी महाराज लीन पूयपाद ःवामी ौी शरणानद जी महाराज लीन पूयपाद ःवामी ौी शरणानद जी महाराज) 1) रोग वाःतव म तप है, यक यद रोग न हो तो इिय के रस से वर नहं हो सकती, और न शरर का यथाथ ान होता और न सेवा करनेवाल को अवसर न सेवा करनेवाल को अवसर न सेवा करनेवाल को अवसर न सेवा करनेवाल को अवसर िमलता िमलता िमलता िमलता | सेवा करने से दय पवऽ होता है | देखये,रोग भगवान क कृपा से रोगी का तथा और लोगका कतना लाभ हआ ! (संतपऽावली-१,पऽ-१०९) 2) रोग शरर का राग िमटाने के िलए अथवा दसर का पुय रोग शरर का राग िमटाने के िलए अथवा दसर का पुय रोग शरर का राग िमटाने के िलए अथवा दसर का पुय रोग शरर का राग िमटाने के िलए अथवा दसर का पुय -कम बढ़ाने के िलए आता है कम बढ़ाने के िलए आता है कम बढ़ाने के िलए आता है कम बढ़ाने के िलए आता है अथवा आरोय शररको सुख दान करने के िलए आता है | रोगावःथा म शरर के साथ मजाक करनेका अवसर िमलता है | रोग होने पर िनज ःवप म िना हो जानी चाहए, यक दःख से असंगता ःवाभावक होती है | जैसे टटे मकान म सूय का काश और वायु अपने आप आते है उसी कार रोग आ जाने जैसे टटे मकान म सूय का काश और वायु अपने आप आते है उसी कार रोग आ जाने जैसे टटे मकान म सूय का काश और वायु अपने आप आते है उसी कार रोग आ जाने जैसे टटे मकान म सूय का काश और वायु अपने आप आते है उसी कार रोग आ जाने पर वैरायपी वायु और ानपी काश ःवयं होता है पर वैरायपी वायु और ानपी काश ःवयं होता है पर वैरायपी वायु और ानपी काश ःवयं होता है पर वैरायपी वायु और ानपी काश ःवयं होता है | शरर तथा संसार क अनुकूलता क आशा मत करो | शरर क सयता तथा सुदरता िमट जाने पर काम का अत हो जाता है | काम का अत होते ह राम अपने आप आ जाते है | (संतपऽावली-१, पऽ-९५) 3) ाकृितक वधान के अनुसार रोग वाःतव म तप है ाकृितक वधान के अनुसार रोग वाःतव म तप है ाकृितक वधान के अनुसार रोग वाःतव म तप है ाकृितक वधान के अनुसार रोग वाःतव म तप है | कतु साधारण ाणी उससे भयभीत होकर वाःतवक लाभ नहं उठा पाते | रोग से शरर क वाःतवकता का ान होता है तथा इिय-लोलुपता िमट जाती है | भयंकर रोग छोटे छोटे रोग को िमटाकर आरोय तथा वकास दान करता है | भोग वासनाओं का अत कर देने पर मन म ःथरता ःवतः आ जाती है | य-य ःथरता ःथायी होती जाती है य-य रोग िमटाने क श अपने आप उपन होती जाती है | (संतपऽावली-१, पऽ-१४७) 4) शाररक दशा कहने म नहं आती, यक कथन उसका हो सकता है जो एक सा रहे | इस सराय म इस सराय म इस सराय म इस सराय म रोग रोग रोग रोग-पी मुसाफर तो ठहरे ह रहते है पी मुसाफर तो ठहरे ह रहते है पी मुसाफर तो ठहरे ह रहते है पी मुसाफर तो ठहरे ह रहते है | वाःतवम तो जीवन क आशा ह परम रोग और िनराशा ह आरोयता है | देहभाव का याग ह सची औषिध है | (संतपऽावली-१, पऽ-३३) 5) जब ाणी तप नहं करता तब उसको रोग के ःवप म तप करना पड़ता है जब ाणी तप नहं करता तब उसको रोग के ःवप म तप करना पड़ता है जब ाणी तप नहं करता तब उसको रोग के ःवप म तप करना पड़ता है जब ाणी तप नहं करता तब उसको रोग के ःवप म तप करना पड़ता है | (संतपऽावली-१, पऽ-१३२) 6) रोग क िचंता रोग से भी अिधक रोग है | अतः रोग क िचंता न करना परम औषिध है | रोग शरर क वाःतवकता समजाने के िलए आता है | साधारण ाणी शरर क सुदरता म आस होकर रोग से डरते है | वाःतव म रोग आरोय क अपेा जीवन क अिधक आवयक वःतु है | यक आरोय से माद तथा रोग से जागृित होती है | वचारशील को रोग से न डरकर उसका सदपयोग करना चाहए वचारशील को रोग से न डरकर उसका सदपयोग करना चाहए वचारशील को रोग से न डरकर उसका सदपयोग करना चाहए वचारशील को रोग से न डरकर उसका सदपयोग करना चाहए | (संतपऽावली-१, पऽ-१०४) 7) रोग का वाःतवक हेतु केवल राग है यक राग से यथ िचंतन तथा असंयम होना ःवाभावक है और यथ िचंतन तथा असंयम से ाण यथ िचंतन तथा असंयम से ाण यथ िचंतन तथा असंयम से ाण यथ िचंतन तथा असंयम से ाण-श का ीण होना अिनवाय है श का ीण होना अिनवाय है श का ीण होना अिनवाय है श का ीण होना अिनवाय है | ाण-श के दबल होने पर अनेक रोग ःवतः आ जाते है | (संतपऽावली-१, पऽ-१६५) 8) कुछ रोग अिय क मिलनता अथात पूव कम के फल ःवप होते है कुछ रोग अिय क मिलनता अथात पूव कम के फल ःवप होते है कुछ रोग अिय क मिलनता अथात पूव कम के फल ःवप होते है कुछ रोग अिय क मिलनता अथात पूव कम के फल ःवप होते है | उनक िनवृ तप, याग तथा पुयकम से अथवा भोगने से ह होती है |असंयम ारा उपन रोग यथे पय अथात आहार-वहार के ठक होने से िमट जाते है | और वीतराग होने पर राग से उपन होनेवाले रोग भी िमट जाते है | (Please read separate chapter on 'Roag' in 'Krantikari Santvani' book.) (संतपऽावली-१, पऽ-१६५)

Roag-Abhishap Hai Ya Vardan - Swami Sharnanand Ji

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